युग मशीहा परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज इस विश्व के महान संत हैं| जिन्होंने जयगुरुदेव नाम को जगाया और बताया कि 'जयगुरुदेव' नाम भगवान का नाम है| जयगुरुदेव नाम के तहत परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने अपने धार्मिक सत्संग गंगा के माध्यम से आत्मा के उत्थान के लिए उपदेश दिया |

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने बताया कि यह मनुष्य शरीर ही असली मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर या चर्च है जिसमे बैठ कर भगवान की सच्ची पूजा या इबादत या प्रार्थना की जा सकती है और जीते जी प्रभु , खुदा या भगवान से मिला जा सकता है | मरने के बाद कुछ नहीं मिलता|

परम संत बाबा जयगुरुदेव ने स्पस्ट शब्दों में बताया की जीवो की हिंसा मत करो ये बहुत बड़ा पाप है और कोई ऐसा नशा मत करो जिससे आप की बुद्धि पागल हो जाये और आप अच्छाई और बुराई की पहचान न कर सके| यदि आप प्रभू से मिलना चाहते हो तो शुद्ध शाकाहारी रहो और जीवो पर दया करो|

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने पूरे भारत में घूम घूम कर समस्त मानव जाति को मानव प्रेम करना सिखाया और मानवता का पाठ पढ़ाया और अध्यात्मिक ज्ञान को सम्पूर्ण रूप से पढ़ाया और समझाया और प्रभू या भगवान या खुदा से मिलने का सच्चा मार्ग बताया और अपने अनेको शिष्यो को जीते जी भगवान का दर्शन दीदार कराया| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी ने नाम रतन धन अर्थात नाम दान को खोल कर सम्पूर्ण विश्व के मानव को दिया जिसमें से करोड़ों को आंतरिक अनुभव हो रहा है | जिन मनुष्यो को सच्चा नाम दान मिला वह अपने प्रभू से अपनी तीसरी आँख गुरु की दया मेहर से खोल कर प्रतिदिन मिलते हैं और ऊपरी मंडलो की मधुर धुनो को सुनते हैं |

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से ग्राम - खितौरा में हुआ था| अतः खितौरा परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की जन्मस्थली है और सतगुरु की इस जन्मस्थली को हम कोटि बार प्रणाम करते हैं | जयगुरुदेव मथुरा आश्रम परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की कर्म स्थली है जहाँ से सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने अधिकतर जीवो को नाम दान दिया| जयगुरुदेव मथुरा आश्रम ही परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के शिष्यों का गुरुद्वारा है | इस गुरूद्वारे को सतसत नमन |

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज का आश्रम आगरा मथुरा बाई पास रोड पर बना हुआ है जहाँ मालिक ने ज्यादातर वक़्त बिताया है लेकिन ये भी उतना ही बड़ा सच है कि शायद ही कोई ऐसा प्रदेश या जिला हो जहाँ गुरु महाराज का आश्रम नहीं है | मालिक काफिला लेकर कई बार निकले और अलग अलग प्रांतों और जिलों में गए इसलिए शायद ही कोई ऐसा स्थान हो जहाँ मालिक के चरण न पड़े हों | कहते हैं "संत" के चरण जहाँ पड़ जाये वो भूमि पवित्र हो जाती है इसलिए ये भूमि ये धरती और हमारा संपूर्ण भारतवर्ष पवित्र है | मालिक ने काफिले के दौरान जहाँ -२ चरण रखे वो धरती पवित्र हो गयी है | संत कभी किसी स्थान से बंधे नहीं होते | यदि उनके जीव उन तक नहीं पहुँच पा रहे तो वो स्वयं उनसे मिलने चल पड़ते हैं | मालिक ने काफिले के दौरान करोड़ो को नामदान दिया किन्तु अब भी मालिक के कुछ जीव रह गए हैं जिन्हे अब आगे मालिक नामदान देंगे | स्वामी जी महाराज ने अपने जीवन में अपने ही जीवों के लिए बड़े कष्ट उठाये | बाहरी कष्ट तो हम देख और समझ सकते हैं जैसे कि जून की भरी गर्मी में मालिक काफिले के दौरान उन प्रदेशो में भी गए जहाँ भीषण गर्मी पड़ती है | इसी प्रकार ठण्ड में राजस्थान और अन्य प्रदेशों में भी महीनो काफिले में चलते रहे जब कि राजस्थान में पारा -१ डिग्री से भी कम था | अंतर के कष्टों को समझ पाना और उसे बता पाना मेरे लिए सम्भव नहीं क्योंकि उसे समझने वाला तो कोई विरला ही होगा | स्वामी जी महाराज हमेशा एक ही बात कह रहे हैं कि तुम लोग साधन भजन में समय दो , आगे बहुत भारी परिवर्तन होने जा रहा है | ये परिवर्तन कोई छोटा मोटा काम नहीं, करोड़ो का सफाया एक साथ होने जा रहा है | बहुमत तियमत बालमत , बिन नरेश को राज सुख सम्पदा की कौन कहे प्राण बचे बड़े भाग || आज की अगर कोई स्थिति देखे तो यही चाहेगा कि सबसे पहले वो और उसका परिवार सुरक्षित रहे | उसके बाद वो उनके खाने पीने और रहने की व्यवस्था के बारे में सोचेगा | तो आज की ये जो स्थिति है वो नयी नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि किसी को इसके बारे में पता नहीं था | श्री राम और कृष्ण के पैदा होने से पूर्व ऋषि मुनियों ने उनके आने के बारे में बता दिया था | इसी प्रकार आने वाले समय के बारे में भी सूरदास जी बहुत समय पूर्व ही बता गए हैं - रे मन धीरज क्यों न धरे संवत दो हज़ार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण , चहुँ दिश काल फिरे उड़ी विमान अम्बर में जावे , गृह गृह युद्ध करे मारुति विष व्याप्त जग माँहि , परजा बहुत मरे स्वर्ण फूल बन धरती फूले , धर्म की बेल चढ़े सहस्त्र वर्ष लग सतयुग व्यापे , सुख की दशा फिरे कार जार से वाही बचे जो सतगुरु ध्यान धरे सूरदास संतन की यह वाणी , टारे नाहि टरे || संतो की वाणी अकाट्य होती है | पहले के समय में भी जो संत कह गए वो सत्य हुआ और अब जो कह रहे हैं वो भी सत्य होगा | संतो को झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं होती और न उन्हें किसी का डर होता है जो वो झूठ बोले , वो तो मानव कल्याण और उनकी सेवा के लिए आते हैं | लेकिन इस बात को जीव समझ नहीं पाता और जाने अनजाने उनका विरोध और अपमान करता है | यही नहीं इतिहास गवाह है कि आज तक जितने भी संत आयें हैं, उन्हें इंसानो ने बहुत सताया है किन्तु न तो उनका आना रुका है और न उनकी दया कम हुई है | क्योंकि उन्हें तो कहते ही दयाल हैं | जितनी दया वो करते हैं हम इंसानो के वश की बात नहीं कि उसे समझ भी सके और यही कारण है कि जीव अपने गुमान में ही रह जाता है और मालिक से मिलने वाली दया को ले नहीं पाता या दया मिल जाने पर भी नासमझी में उसे गिरा देता है | लेकिन संतो की दया फिर भी कम नहीं होती और यदि भूला जीव वापस आ जाये तो उसे क्षमा कर देते हैं| मेरे सतगुरु दयाल भी कुछ ऐसे ही हैं क्योंकि वो तो सब पर दया कर रहे हैं | जो इस दया के लायक है उस पर भी और जो मुझ जैसे नालायक हैं उनपर भी | वो तो कह ही रहे हैं हम आये वही देश से जहाँ तुम्हारो धाम तुमको घर पहुँचावना एक हमारो काम वो कहते हैं मैं तुम सबको लेने आया हूँ , चलो मेरे साथ लेकिन अगर कोई जाना ही न चाहे तो वो कैसे ले जा सकते हैं और इस बार तो वो नानक की तरह अंगूठा बोरने वाला कार्य नहीं करने वाले | जो चल पड़ेंगे उनके साथ वो निजघर चले जायेंगे और बाकि जायेंगे वहाँ, जहाँ से चौरासी से रास्ता पुनः तय करना होगा मनुष्य जन्म के लिए| वो कहते हैं - तो मेरे बच्चों अब हो जाओ तैयार, खड़े हो जाओ और चलो देखो सतयुग सामने खड़ा है और खुश है कि उनके दिन आने वाले हैं | लेकिन वो ऐसे नहीं आएगा | करोड़ो को कलयुग के साथ भेज देगा | देखो बच्चों मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ | मुझे वही देख पायेगा जो दीन होकर मुझे मांगेगा या मेरे साथ पिछले जन्मों से जुड़ा रहा है | दया तो मैं सब पर कर रहा हूँ | वो तुम पर निर्भर करता है कि तुम उसे कैसे लेते हो | पूरी लेते हो या बीच में ही गिरा देते हो | देखो बच्चों घमंड मत करना | गुरु की मौज बहुत ऊँची चीज़ होती है ये तुम अभी नहीं समझ सकते | समझते समझते समझ में आएगा | तुम दया ले लो और सतयुग आने की तैयारी करो | मुझे प्रत्यक्ष होने की जल्दी नहीं, तुम्हारे काम की जल्दी है | जितनी जल्दी तुम अपना काम कर लो उतनी जल्दी मैं सामने आकर सत्संग सुना दूं | मैं भी तो इंतज़ार कर रहा हूँ | अब तुम सबको जो कार्य दिया है अपना अपना कार्य करो और बाकि लगकर साधन करो | मैं तुम सबको मिलूंगा |

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने दिनांक 18 मई २०१२ को एक लीला रची और फिर उन्होंने अपने पुराने मनुष्य रुपी चोले से अपनी रूहानी महान शक्ति को निकाल कर दूसरे मनुष्य रुपी मानव पोल में प्रवेश किया और इस समय परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज नये मनुष्य रुपी मानव पोल पर हाजिर नाजिर हैं और इस बात को गुरु महाराज ने अंतर में गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता को दिनांक - 3 जून 2012 को बताया है|