** सतगुरु जयगुरुदेव नाम प्रभु का **

सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:08-03-2024

हम पहले से ही लोगो से कहते रहे हैं की आगे बहुत तकलीफे आएँगी तुम यही रुक जाओ और भजन कर लो पर उस समय तुम्हारी समझ में नहीं आया क्योकि सब हजार से लाख और लाख से करोड़ो के चक्कर में लगे रहे | सब लोग पछता रहे हैं और देखना अब की कितने लोग आएंगे और पश्चाताप करेंगे की हमने समय बर्बाद कर दिया | तो अब क्या अब तो बुढ़ापा आ गया करोगे क्या ? हमेशा समय से काम करना चाहिए |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
स्थाई पता : सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
मो: 9711862774, 8383997870, 7052705166
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सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:03-01-2024

मेहनत मशक्कत की कमाई से बरक्कत मिलती है | बरक्कत आत्मा का सहयोगी धन है | यह स्वार्थ और परमार्थ दोनों ओर काम करती है | पहले लोग कहा करते थे कि बाबा जी ने गरीबों को इकट्ठा किया है | आप घुमा न लो इन लोगों को ? अब वही लोग जो गरीब कहे जाते थे, मोटर, गाड़ी में घूमते है तो लोग अचम्भित होते हैं |
समझ समझकर ठोंक ठोंककर मन को इधर से हटाओ | इसको समझाते रहो कि तू देख कि जो इकठ्ठा कर रहा है वह तेरे काम आएगा कि नहीं | समझाते रहो मन को और जो छोटी-बड़ी सेवा मिल जाए उसे करते रहो, तो ये मन हटेगा और भजन में लगेगा | जो भी तुम सेवा करते हो वो सब तुम्हारे भजन में जुड़ जाएगा | इतना ही नहीं प्रचार के समय जो लोग तुम्हारी मदद करेंगे वो नामदानी हो न हो सबको उसका फल मिलेगा और अगर इधर आ गए तो वो भी भजन में लग जाएंगे | उन्हें रास्ता बताया जाएगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:28-02-2024

परिवर्तन अवश्य होगा | रात में कुछ और सबेरे जब उठोगे तब कुछ और देखने को मिलेगा | शाकाहारी हो जाओ और अपने गुनाहों की माफी करा लो | जयगुरुदेव मन्दिंर का देवता गुनाहों को माफ़ करेगा और बरक्कत देगा | परीक्षा करके तो देखों | सच्चे दिल से एक बुराई को छोड़ोगे तो एक मनोकामना पूरी होगी | वक्त अच्छा विल्कुल नहीं है | समझने में तो माफ़ी है और वक्त निकल गया तो सजा अवश्य मिलेगी ||
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सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:27-02-2024

चरण कमल जो हैं उस सतपुरुष के हैं उस गुरु के हैं वे मौजूद हैं, अपनी दृष्टि के सामने | वह कब खुलते हैं जब हम पाँचों नामों का स्मरण अर्थात सुमिरन ठीक ठीक से करते हैं | और जब तक हमसे पाँचों नामों का सुमिरन ठीक नहीं होता तब तक वे जो पाँचों स्थानों के धनी उनकी पूर्ण रूप से हमारे ऊपर में सहायता नहीं हो सकती |
तो अंदर से और बाहर से गुरु इस प्रकार ठेल लगाता है , दबाता है जोर देता है कि तुम सुमिरन करो | और उधर से जोर मालिक देता है कि अच्छा ठीक है तुम इधर दया लो | दोनों ओर से आदमी दबाया जाय तो इधर से उधर धकेला जाय और इधर से उधर खींचा जय तब जा करके उसकी जो है बीच में प्रगट हो जाती है | पर जब आप ऐसा नहीं करते तब आप कहते हैं कि हमें नाम नहीं आता है | हमे ध्यान करने की विधि नहीं आती है | अपने अड़ोसी पडोसी अपने सखी सहेली से जिन्होंने उपदेश ले लिया है जिन्होंने याद कर लिया है उनसे पूछ लो | इसके बतलाने में नुक्सान नहीं होगा |
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सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:25-02-2024

जीवात्मा जब प्रकाश को केंद्रित कर लेगी तो आगे चल पड़ेगी:
धयान और भजन के वक्त में आप बाहर से हटोगे तो उसमे कोई तकलीफ नहीं होगी | आपको इतना ही करना है कि मन बुद्धि चित को इधर उधर नहीं भगाना | उसको जीवात्मा के कान या आँख के साथ रोककर रखना है | इसी तरह से आपके सभी लगाव और मोह ममता के तार धीरे धीरे कटते चले जायेंगे | वे जब टूटेंगे तो मन बुद्धि चित सुरत का साथ देंगे | तब प्रकाश का सिमटाव आसानी से हो जायेगा | जब जीवात्मा अपनी आँखों के सामने प्रकाश को केंद्रित कर लेगी तो आगे चल पड़ेगी जब वो अपनी सारी शक्ति को साथ लेकर चलेगी तब मार्ग आसानी से जल्दी तय हो जाएगा |
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सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:5-02-2024

सुमिरन, ध्यान भजन से ही कर्मो की गन्दगी हट सकती है :
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया की - कर्मो की गंदगी से सुरत की आँख बंद हो गई अब यदि हम लोग उनकी कृपा से थोड़ा सा सुमिरन, ध्यान, भजन की युक्ति से गन्दगी को हटा दे तो उसमे स्वयं आँख है उसमे बनाने की जरूरत नहीं | वह तो जब से सतलोक से चली है उसमे स्वयं आँख थी | जब कोई भी पर्दा किसी भी जगह नहीं था तो वह स्वयं ज्ञानवान थी | स्वयं शक्तिमान थी और सरल इसको बोध था | लेकिन धीरे - धीरे जब कर्मो में यह लाकर के बाँध दी गई तब धीरे - धीरे, धीरे - धीरे गन्दगी को इसने जमा कर लिया और आँख जब बंद हो गई तो आदि से अंत तक का ज्ञान और अंत से आदि तक का ज्ञान ख़तम हो गया नहीं तो जब आई थी तो यहां से वहां तक का ज्ञान था और वहां से यहां तक का ज्ञान था ||
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सतगुरु जयगुरुदेव : गुरुमहाराज के वचन:

Date:02-01-2024

मनुष्य शरीर में दोनों आँखों के पीछे दीवार है | उस दीवार के पार से देवलोक शुरू हो जाते हैं | जहां कभीं अन्धकार होता ही नहीं | देवी-देवताओं के रूप इंसानों जैसे हैं, किन्तु यह भौतिक शरीर नहीं है | वहां सदा आनंद बरसता रहता है ||
कुछ ऐसे मनचले भक्त भी होते हैं जो समझते हैं कि मै कुछ जानता ही नहीं और सबको पीछे छोड़कर आगे कूदने की कोशिश करते हैं | मै समझता तो सब हूँ मगर यही सोचकर चुप रहता हूँ कि धीरे धीरे वे संभल जायेंगे, चेत जायेंगे ||
तुम गुरु से कोई पर्दा मत रखो| हमेशा यह सोचते रहो कि वो सब कुछ देखते हैं | सब कुछ जानते हैं | जब ऐसा सोचते रहोगे तो बुराइयों से बचते रहोगे और सोचोगे कि उन्हें कुछ नहीं मालूम तो धोखा खा जाओगे और फिर कुछ नहीं कर सकते और सच्चे रास्ते से गिर जाओगे | इसीलिए कोई कपट मत रखो ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:17-08-2023

परमार्थ के रास्ते पर चलने के लिए जीवन में सादगी का होना जरूरी है | आत्म अनुभव सादगी में जल्दी होता है | एकाग्रता जल्दी आती है |
जब तक सुरत अंतर में पहले मुकाम यानी सहसदल कँवल तक न पहुंच जाए सुमिरन ध्यान भजन पूरब की तरफ मुँह करके करना चाहिए | यदि ऐसे बैठना संभव न हो तो तो उत्तर या पश्चिम की तरफ मुँह करके भजन करें | दक्षिण की तरफ मुँह करके न बैठे |
महात्माओं की दृष्टि अपने शिष्यों पर उसी प्रकार रहती है जैसे पिता की अपने पुत्रों पर होती है | महात्मा शिष्यों को अपना समझते हैं और बराबर उनकी निगरानी और देखभाल करते रहते हैं ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:17-08-2023

प्रेमियों गुरु जन्माष्टमी का ३ दिवसीय कार्यक्रम 5 सितम्बर 2023 से 7 सितम्बर 2023 तक है | हमारी आप सभी से निवेदन है की इस विशेष अवसर पर अपने गुरु की पूजा अवस्य करे | सतगुरु की पूजा तो अपरम्पार है उनके चरणों में बैठकर अपनी जीवात्मा के कल्याण के लिए विनती और प्रार्थना करे |
|| गुरु पूजा में सबकी पूजा, गुरु सामान न कोई दूजा ||
प्रेमियों सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम - बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - अयोध्या, उत्तर प्रदेश में गुरु जन्माष्टमी का ३ दिवसीय कार्यक्रम 5 सितम्बर 2023 से 7 सितम्बर 2023 तक होगा, आप सभी प्रेमी जो गुरु महाराज को मानते है सादर आमंत्रित हैं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29-06-2023

प्रेमियों गुरु पूर्णिमा का महापर्व ३ जुलाई २०२३ को है | हमारी आप सभी से निवेदन है की इस विशेष अवसर पर अपने गुरु की पूजा अवस्य करे | सतगुरु की पूजा तो अपरम्पार है उनके चरणों में बैठकर अपनी जीवात्मा के कल्याण के लिए विनती और प्रार्थना करे | प्रेमियों इस जगत में जो भौतिक गुरु मिले जिन्होंने हम सभी को दुनिया का सच्चा और अच्छा ज्ञान दिया उन्हें भी सत-सत नमन करे |
|| गुरु पूजा में सबकी पूजा, गुरु सामान न कोई दूजा ||
प्रेमियों सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम - बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - अयोध्या, उत्तर प्रदेश में गुरु पूर्णिमा का ३ दिवसीय कार्यक्रम 2 जुलाई 2023 से 4 जुलाई 2023 तक होगा, आप सभी प्रेमी जो गुरु महाराज को मानते है सादर आमंत्रित हैं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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Date:29-06-2023

आप चाहे जिसका भी खा लेते हो उसका असर तो पड़ता ही है | मन खराब, बुद्धि ख़राब, चित खराब पर आप सब माया के सामानों में चिपके रहे जैसे मक्खियां मैले पर गिरती हैं | अब शरीर बूढ़ा हो गया और परेशानियों ने चारों तरफ से घेरा डाल दिया | अब सब लोग परेशान हो, चिल्ला रहे हो | समय रहते जो चेत जाता है वह अपना काम कर लेता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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Date:22-06-2023

शब्द की कमाई नामदान लेने के बाद नहीं करोगे तो जन्म-मरण का चक्कर नहीं छूटेगा | नाम की कमाई करोगे तभी बचोगे | नाम की कमाई नहीं करोगे तो नार्को में चौरासी में जाना पड़ेगा | नाम को पकड़ लोगे तब बच जाओगे | आधार को पकड़ लो और यहां से निकल चालों, ऊपर में सुन्दर - सुन्दर देश है, बाग़ - बगीचे हैं, नदियां-पहाड़ हैं, देवी-देवता हैं सबसे मिलो |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:21-06-2023

प्रेमियों सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम - बड़ेला, अयोध्या, उत्तर प्रदेश का इतिहास निराला है | प्रेमियों गुरु महाराज की विशेष दया कृपा से मेरे यहाँ कच्चे मकान से पक्के मकान बनने की शुभ घड़ी आयी तो हमने हमने अपने परिवार से कहा की पहला कमरा सत्संग ध्यान भजन और सुमिरन के लिए बनाया जायेगा जो की गुरु मालिक और सत्संगियों के लिए समर्पित रहेगा और गुरु महाराज की दया से वर्ष २०११ से प्रारम्भ होकर मार्च २०१२ में बनकर तैयार हो गया | मेरे यहाँ बहुत सत्संग टाटधारी स्वामी जी महराज का आदेश लेकर आते जाते रहते थे और गुरु महाराज का प्रचार प्रसार भी वही से करते थे | गुरु महाराज की विशेष दया से मेरी माता जी साधना बहुत अच्छी बनती थी, पिता जी भी टाटधारी है और मालिक के प्रचार प्रसार में लगे रहते और आज भी ८० वर्ष की अवस्था में मालिक की सेवा का कार्य कर रहे |
प्रेमियों जब गुरु महराज ने १८ मई २०१२ को लीला खेली तब उन्होंने अंतर में बताया की मैं इस "सतगुरु जयगुरुदेव" मंदिर, ग्राम - बड़ेला में अखंड रूप से विराजमान हूँ | प्रेमियों सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम - बड़ेला, अयोध्या, उत्तर प्रदेश केवल गुरु महराज को समर्पित मंदिर है |
प्रेमियों निर्विवाद रूप से जयगुरुदेव आश्रम मथुरा हम सभी प्रेमियों गुरुदवारा है और वहाँ का विरोध किसी को नहीं करना चाहिए न मैं स्वयं कभी करता हूँ, जब भी समय मिले वहाँ जाकर दादा गुरु महाराज के मंदिर में दादा गुरु महराज को प्रणाम अवश्य करे और गुरु महाराज की कुटी में जाकर गुरु मालिक को प्रणाम करे | अभी कुछ समय पहले मैं स्वयं २५ दिसंबर २०२२ को दादा गुरु के मंदिर और गुरु महाराज की कुटी का दर्शन करके आया |
प्रेमियों सच्चा गुरु अंदर से भी बोलता है और बहार से भी, प्रेमियों जब अच्छे से ध्यान भजन सुमिरन करोगे तब तो अंदर से आप को कुछ सुनाई या दिखाई देगा और जो गुरु महाराज कहेंगे वह समझ में आएगा नहीं तो इस दुनिया में वेवकूफ बनाने वाले बहुत है |
प्रेमियों हमारे सतगुरु दयाल जयगुरुदेव जी महाराज का मंदिर विश्व के कोने कोने में हो और हमारे सतगुरु दयाल का काम हो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है |
प्रेमियों गुरु महाराज पर विश्वास रखो और लग कर सुमिरन ध्यान भजन करो जिस विधि से गुरु महाराज ने बताया है उसी विधि से तब निश्चित आप पर दया मालिक की होगी और आप को भी अंतर ज्ञान होने लगेगा |
प्रेमियों गुरु महाराज ने मुझको अंतर तीन बार ये संकेत दिए की मैं पुनः इस धरा मंडल पर आऊंगा तो मैं तो अपने गुरु के आने तक इंतजार करता रहूँगा सबरी माता की तरह, आप मनो न मानो आप की मर्जी |
गुरु शैन बैन में जो भी बताता है वो कभी गलत नहीं होता इसीलिए कहा गया है की 'संत वचन पलते नहीं पलट जाये ब्रह्माण्ड'|
जब गुरु महाराज ने अपने मुखारविंद से कहा है की जब चौथा सतयुग आगमन यज्ञ होगा तो मैं उसकी तारीख को दस महीने पहले आप को बताऊंगा | अब बुद्धि की पहलवानी करने वालो ये बताओ जब गुरु महाराज नहीं आएंगे तो कौन तारीख की घोषड़ा करेगा ?
जब गुरु महाराज ने कहा है की मैं परिवर्तन करके दिखा दूंगा और परिवर्तन ऐसा होगा जो किसी के दिलो दिमाग में नहीं है, तो फिर आप लोग बताओ की परिवर्तन कौन कराएगा, यदि गुरु महराज इस धरा धाम पर नहीं आएंगे |
गुरु महाराज ने खुले मंच से अनेको बार समझाया और बताया की जब 'जयगुरुदेव' नाम बोलोगे तो मैं मिलूंगा | दूसरा कोई माई का लाल आज तक बोल पाया ऐसा |
गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की क़यामत का वक्त अभी आया नहीं आगे आ रहा और उस समय जब चारो तरफ कोहराम मचा होगा कोई किसी की मदद नहीं करेगा, उस समय एक सफ़ेद पोस फ़कीर आसमान से जमीन पर उतरेगा और इंसान जाति को प्रभु का सन्देश सुनाएगा खुदा का पैगाम सुनाएगा |
कोरोना आया तो बहुत से महाराजो ने आदेश जारी कर दिया की अपना पेशाब पी लो| ये कहा की कृपा है की शरीर जिस गन्दगी को निकाल कर बाहर करती है उसे ही पिलाने लगे | कोरोना काल में किसी महाराज ने कोई दया नहीं की , केवल दया की तो परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने और किसी दुसरे ने नहीं की |
जब पलटूदास को कुछ लोगो ने जिन्दा जला दिया, फिर भी उस मालिक की सत्ता बरक़रार रही और लगभग १० वर्ष पश्चात पलटू साहब वापस आये, तो प्रभु की लीला को आप क्या करोगे वो तो समरथ है कुछ भी कर सकता है |
जब भक्त प्रह्लाद की प्रार्थना पर भगवान् तप्त खम्भ से निकल सकते है तो हमारे सतगुरु दयाल जयगुरुदेव जी महाराज इस धरा मंडल पर क्यों नहीं आ सकते है, जरूर आएंगे हमारे सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज |
जब संत जगजीवन दास साहब निर्जीव दीवाल को चला सकते हैं तो हमारे सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी क्या नहीं कर सकते है |
प्रेमियों गुरु महाराज ने बहुत पहले कहा की आप मुझको देखो और मैं आप को देखू नहीं तो आप गिर जागोगे |
प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा की आप १ रुपया देते हो तो मुझे २५ पैसे मिलते हैं तो प्रेमियों ये सोचने वाली बात है की गुरु महाराज के सामने ७५ पैसे आप के हड़प लिए जाते थे तो आज की क्या स्थिति होगी |
प्रेमियों गुरु महाराज ने आप सभी को नाम दान दिया है लगकर सुमिरन ध्यान भजन करो और चढ़ो गगन में आज भी गुरु महाराज अंतर में मिलते हैं सत्संग भी ऊपर में करते है वह भी आप को सुनने को मिलेगा, लेकिन करोगे तभी मिलेगा प्रेमियों |
प्रेमियों किसी की निंदा आलोचना भूल कर भी न करो | यदि कोई सच्ची बात है तो जिससे सम्बंधित है उसके सामने कह दो |
प्रेमियों मैं किसी की निंदा आलोचना नहीं करता न ही ये पोस्ट मैंने किसी की निंदा आलोचना करने के लिए लिखा है लेकिन यदि किसी के हिरदय को ठेस लगे तो अपना छोड़ा बच्चा समझ कर माफ़ कर देना |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
स्थाई पता : सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:20-06-2023

बुद्धि को सब लोग अपने अपने सही काम में लो और मन - इसको संसार की तरफ से, उन लोगों और परेशानियों की ओर से मोड़ कर थोड़ा सा इसको सत्संग में लगाओ तो यह मुलायम हो जायेगा | अपना सख्त रुख बदल देगा | कोमलता आएगी तो यह धीरे धीरे परमार्थ पकड़ने लायक बनेगा | विचारों ! संसार को देखो और अपनी बुद्धि को देखो | क्या हो रहा है उससे पूछो क्या होगा उसका अनुमान बुद्धि से लगाओ | क्या मेरे पल्ले पड़ेगा और अभी तक क्या पड़ा ? यह सब विचार आप करते रहोगे तो धीरे धीरे परमार्थ की जगह पर पहुंच जाओगे | और जो परमार्थ के सब बचन है, कलाम वह तो जीवात्मा के लिए | यह उसी की चीज है और उसी को शब्द मिलना चाहिए | लेकिन तुम जगह नहीं पूछोगे, जगह नहीं बनाओगे, बैठना नहीं आएगा, सुनना नहीं आएगा | महात्मा दे देंगे तो रक्खा नहीं जायेगा, तो आप गिर गए | समय निकल गया | तो ऐसा मत करो अच्छी तरह से समझो |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:30-05-2023

मेहनत मशक्कत की कमाई से बरक्कत मिलती है | बरक्कत आत्मा का सहयोगी धन है | यह स्वार्थ और परमार्थ दोनों ओर काम करती है | पहले लोग कहा करते थे कि बाबा जी ने गरीबों को इक्कठा किया है | आप घुमा न लो इन लोगों को ? अब वही लोग जो गरीब कहे जाते थे, मोटर, गाडी में घुमते हैं तो लोग अचंभित होते हैं |
सत्संग में जब तुम जाओ तो चुपचाप बैठे रहो और ध्यान से बचनों को सुनते रहो | वो महापुरुष सबकी बात कह देगा | सब लोग कुछ न कुछ मन में लेकर बैठते हैं | तुम अपनी बात पकड़ लो | वह इशारे में कहेगा | खुल्लम-खुल्ला कह दे तो उठकर चले जाओगे कि हमारी बेइज्जती कर दी ||
||परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव : मुक्ति दिवस प्रार्थना:

Date:21-03-2023

आओ मुक्ति दिवस मानये, जयगुरुदेव ध्वजा फहराये |
आओ मुक्ति दिवस मानये, जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
इस तिथि गुरु दर्शन पाया, काली रात समूल नशाया |
आओ हम सब दीप जलाएं, जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
आपातकाल की अंधियारी में, गुरु को पकड़ा हत्त्यारी ने |
अब ओ दिन प्रभु कभी ना आये, आओ मुक्ति दिवस मानये ||
जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
बेड़ी और हथकड़ी भी डाला, लालच का फंदा भी डाला |
पर गुरु संकल्प न डिगा न डिगाये, आओ मुक्ति दिवस मानये ||
जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
नाना कष्ट गुरु ने झेला, जीवों के हित लीला खेला |
ऐसे गुरु को धन्य मनाएं, आओ मुक्ति दिवस मानये ||
जयगुरुदेव ध्वजा लहरायें ||
जेल तिहाड़ से निकले स्वामी, दिए दीदार सबन को स्वामी |
प्रेमी फूले नहीं समाये, आओ मुक्ति दिवस मानये |
जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
आने वाले हर शासन से, लिखित निवेदन अभिवादन से |
ऐसा दिन वो कभी न लाये, आओ मुक्ति दिवस मानये |
जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
इस दिन जो भी ध्वज फहराये, सतयुग स्वागत लाभ कमाये |
जनम मरण उसका छूट जाए, आओ मुक्ति दिवस मानये |
जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
पुनि पुनि बंदन गुरु प्यारे की, सुरत बसे हिरदय प्यारे की |
गुरु की दया कृपा हम पाएं, आओ मुक्ति दिवस मानये |
जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
||आओ मुक्ति दिवस मानये,जयगुरुदेव ध्वजा फहराये ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:18-03-2023

प्रेमी गुरु भाई बहनो २३ मार्च मुक्ति दिवस आने वाला है, अपने गुरु महाराज इसी दिन जेल से बाहर आये थे | आप सभी लोग जहा भी हो विश्व में आप सभी से निवेदन हैं की २३ मार्च मुक्ति दिवस को बड़े ही धूम धाम से मनाये और अपने सतगुरु दयाल को याद करे |
प्रेमी भाई बहनो अपने सतगुरु दयाल को कांग्रेस सरकार की तात्कालिक प्रधानमंत्री इंद्रा गाँधी ने २५ जून १९७५ को जेल भेज दिया था क्योकि गुरु महाराज ने इंद्रागाँधी द्वारा नसबंदी योजना (जिसमे पुरुषों को नपुंशक) बनाया जा रहा था का पूर्ण रूप से विरोध किया था | ऐसा निरंकुश शासन जो भगवान् के द्वारा बनाये गए रास्ते को ही बंद कर रहा था जो की निन्दनिये था तब उस समय पर अपने सतगुरु दयाल ने इस योजना का विरोध किया जिसके कारण इंद्रा ने प्रभु को बंदी बनाया जो सभी का इस जग में जन कल्याण के लिए आते हैं |

इंद्रा ने देश में इमर्जेन्सी लगा कर गुरु महाराज को २१ महीने जेल में रक्खा था, गुरु महराज को जेल में वेडी और हथकड़ी लगया था और उस समय की सरकार ने हर तरह से गुरु महाराज और सत्संगी भाई बहनो को बहुत दुःख दिया जो कहने में नहीं आ सकता |

जब सत्संगी भाई बहनो को पता चला की हमारे गुरु महाराज को जेल भेजा गया है तो सभी प्रेमियों ने जेल भरो आंदोलन छेड़ दिया | प्रेमियों उस समय के पुलिस वालो ने माताओ बहनो और सत्संगियों को बहुत मारा, बहुत सी माताओ बहनो का गर्भ गिर गया, माताओं के बच्चे जेल में पैदा हुए, गुरु भाइयों की आँखों में मिर्चा डाल दिया जाता था | उस समय की कांग्रेस ने बहुत अत्याचार किया |

इंद्रा चाहती थी की मेरा ही निष्कंटक राज रहेगा और कोई मेरा विरोधी न रहे, परन्तु उस प्रभु के आगे इंसान की नहीं चलती और वो प्रभु इस अत्याचार को कितने दिन बर्दास्त करता|

इंद्रागाँधी ने अपने चाटुकार अफसरों को गुरु महाराज के पास भेज कर लालच का फंदा डालने की नाकाम कोशिश की| गुरु महाराज ने साफ शब्दों में इंद्रा के चाटुकार अफसरों से कहा की कोई माई लाल मुझे पैसों से नहीं खरीद सकता |

गुरु महाराज ने साफ शब्दों में इंद्रा को कहलाया की महात्माओ को चैलेंज मत करो और कहा की कांग्रेस ख़तम और कहा की यदि हमे बाहर नहीं निकाला तो जो अंदर है सब बाहर होंगे और जो बाहर हैं सब अंदर होंगे, गुरु महाराज की ये चेतावनी जारी होते ही सरकार में खलभली मच गईं और २३ मार्च १९७७ को गुरु महाराज को जेल से रिहा किया गया |

प्रेमियों गुरु महाराज की ही प्रेरणा से उस समय जनता सरकार बनी थी, और कांग्रेस और इंद्रागाँधी की हार हुई थी और इंद्रा की जमानत जब्त हो गईं थी |

काफी समय बाद फिर इंद्रागाँधी मथुरा आश्रम गुरु महाराज के पास आयी और अपनी किये की माफ़ी मांगी |

प्रेमी भाई बहनो हमेशा अपने गुरु महाराज को समर्पित रहो और ध्यान भजन सुमिरन नित्य करते रहो और मुक्ति दिवस के पर्व को हर्षोउल्लास से मनाओ ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:18-03-2023

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
प्रार्थना अंतर घाट पर होती है | मन को साथ रखकर प्रार्थना करोगे तो उसकी सुनवाई होगी | मन साथ न दे, अकेली सुरत चिल्लाती रहे तो कुछ नहीं होगा क्योकि मन ही पर्दा इक्कठा करता है |
ये पराविद्या है आँखों से ऊपर की | इसको पढ़ाने में महात्माओं को बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बहुत परेशानी उठानी पड़ती है क्योकि इस विद्या को पढ़ने के लिए संसार को समेटना पड़ेगा | संसार की तरफ से मुड़ना पड़ेगा | यह मुश्किल है क्योकि तुम टुनियाँ के लिए ही रोते रहते हो |
||परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज|||
नोट2: प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की आप हमको देखो और मै तुमको देखू, बीच वाले को मत देखना नहीं तो गिर जाओगे |

||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:03-03-2023

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
सभी सत्संगी नर नारी समय के अनुसार खुद बुरे रास्ते से बचने का विचार रखें और दूसरों को भी प्रेरणा देते चले | अपनी देवियों को साथ लेकर सत्संग में आएं और वापस ले जाये | कोई भी सत्संगी पराई स्त्री से अपना पैर न छुवाये और न एकांत में बात करे | जिन बच्चियों की अवस्था १२ वर्ष या उससे अधिक है उनकी देखभाल माता - पिता स्वयं करें किसी भी सत्संगी को ये आदेश नहीं दिया जाता है कि वह स्त्रियों और उनकी बच्चियों से मेल जोल करे और घरों में घुसकर आजादी से बात करे | पुरुष-पुरुष से मिले और स्त्री - स्त्री से मिले | मर्यादा में चलने से जीवन सुखी रहेगा और साधन मार्ग से अभ्यासी गिरेगा नहीं | संगत में इन बातों पर ध्यान देना जरुरी है |
||परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज|||
नोट2: प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की आप हमको देखो और मै तुमको देखू, बीच वाले को मत देखना नहीं तो गिर जाओगे |

||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:18-02-2023

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
सतगुरु दयाल परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने समझाया की जिस दिन मनुष्य शरीर में बैठी जीवात्मा की दिव्यदृष्टि खुलेगी उसी दिन उस जीवात्मा के लिए महाशिवरात्रि होगी और ये जीवात्मा आनंद के सागर की तरफ चल पड़ेगी और सुमिरन ध्यान भजन करके पूर्ण रूप से ये जीवात्मा आनंद के सागर में समा जाएगी और अपने पिया अपने मालिक को प्राप्त कर लेगी | प्रत्येक सत्संगी का प्रथम कर्तब्य है की सुमिरन ध्यान और भजन अच्छे से करे की उसकी जीवात्मा की दिव्या आँख खुल जाये और वह अपने प्रभु का सच्चा दर्शन करने लगे | ये मनुष्य शरीर उस प्रभु की प्राप्ति के लिए मिला है और किसी के लिए नहीं |
गुरु महाराज के एक एक बातों को ध्यान से सुनो और अपने अंदर उतरो और जो युक्ति (नामधन ) सतगुरु दयाल ने दिया है उस विधि से सुमिरन ध्यान भजन करो तो एक न एक दिन आप की दिव्या आँख अवश्य खुल जाएगी और आप का जीवन सुफल हो जायेगा ||
प्रेमियों गुरु महाराज ने तृतीये 'सतयुग आगमन महायज्ञ' काशी में किया था और शिव भोले को खुश किया था और शिव भोले ने गुरु महाराज को धर्म की स्थापना में पूर्ण सहयोग प्रदान करने का वचन दिया है | हम सभी प्रेमियों को भी चाहिए की शिव जी को सादर जयगुरुदेव करना चाहिए और साथ ही साथ शिव जी को गुरु महाराज को दिए वचन को याद भी दिलाना चाहिए की आप से निवेदन है की आप हमारे गुरु जी को दिए गए वचन को पूरा कीजिए ||

नोट1: प्रेमियों गुरु महाराज ने आप सभी से बड़े ही साफ शब्दों में कहा है की आप सभी १ घंटा सुबह और १ घंटा शाम को मुझे दे दो सुमिरन, ध्यान और भजन के लिए, आप सभी प्रेमियों ने गुरु महाराज से वादा भी किया है देने को, तो प्रेमियों भजन करो और निकल चलो यहां से, पता नहीं कब स्वांसों की पूजी ख़त्म हो जाये | इस लिए इस नव वर्ष की वेला में प्रण करो की सुमिरन, ध्यान और भजन नित्त्य करेंगे |
नोट2: प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की आप हमको देखो और मै तुमको देखू, बीच वाले को मत देखना नहीं तो गिर जाओगे |

||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:16-02-2023

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
गरज दुखदाई है | गरज में स्वार्थ है | स्वार्थ अंधा होता है | उसमे न घर का भला न बाहर का भला और न परमार्थ बनेगा | जानी दुश्मन बन जाते हैं जहां स्वार्थ पूरा न हुआ | महात्मा समझाते हैं तुम अबूझ हो इसलिए वो बताते हैं, विकारो में फसे हो वो बचाना चाहते हैं | किसी की निंदा नहीं करते | यह रास्ता समर्पण का है | जिसने समझ लिया उनका काम बन गया जो नहीं समझे बूझे वो गिर गए || |
नोट1: प्रेमियों गुरु महाराज ने आप सभी से बड़े ही साफ शब्दों में कहा है की आप सभी १ घंटा सुबह और १ घंटा शाम को मुझे दे दो सुमिरन, ध्यान और भजन के लिए, आप सभी प्रेमियों ने गुरु महाराज से वादा भी किया है देने को, तो प्रेमियों भजन करो और निकल चलो यहां से, पता नहीं कब स्वांसों की पूजी ख़त्म हो जाये | इस लिए इस नव वर्ष की वेला में प्रण करो की सुमिरन, ध्यान और भजन नित्त्य करेंगे |
नोट2: प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की आप हमको देखो और मै तुमको देखू, बीच वाले को मत देखना नहीं तो गिर जाओगे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:14-02-2023

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
नाम रतन धन जब मिल जाए तो उसे गाँठ से बाँध लो | उसे कंगाल की तरह से अपने गाँठ से खोल खोलकर देखते रहो | यह हीरा कही गिर गया तो दुबारा मिलना नहीं | लोग साधन करते हैं जो कुछ देखा सुना उसे पड़ोसी से कह दिया तो सब गायब हो गया | फिर रोने लगते हो | आप को मुफ्त में मिल गया इसलिए कदर नहीं करते हो | जो कुछ भी अंतर में दिखाई दे सुनाई दे उसे किसी से कहना नहीं छुपा कर रखना | |
नोट1: प्रेमियों गुरु महाराज ने आप सभी से बड़े ही साफ शब्दों में कहा है की आप सभी १ घंटा सुबह और १ घंटा शाम को मुझे दे दो सुमिरन, ध्यान और भजन के लिए, आप सभी प्रेमियों ने गुरु महाराज से वादा भी किया है देने को, तो प्रेमियों भजन करो और निकल चलो यहां से, पता नहीं कब स्वांसों की पूजी ख़त्म हो जाये | इस लिए इस नव वर्ष की वेला में प्रण करो की सुमिरन, ध्यान और भजन नित्त्य करेंगे |
नोट2: प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की आप हमको देखो और मै तुमको देखू, बीच वाले को मत देखना नहीं तो गिर जाओगे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
स्थाई पता : सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
मो: 9711862774, 8383997870, 7052705166
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:13-02-2023

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
पूजा और इबादत ख़ामोशी में होती है हरकत में नहीं | हरकत में भजन पूजा हो ही नहीं सकती है | कोई आडम्बर नहीं, कोई दिखावा नहीं | संतमत की साधना सच्ची साधना है और साधक इस तरह से साधना करता है की पास से गुजरने वाली हवा भी उसको नहीं समझ सकती है | |
नोट1: प्रेमियों गुरु महाराज ने आप सभी से बड़े ही साफ शब्दों में कहा है की आप सभी १ घंटा सुबह और १ घंटा शाम को मुझे दे दो सुमिरन, ध्यान और भजन के लिए, आप सभी प्रेमियों ने गुरु महाराज से वादा भी किया है देने को, तो प्रेमियों भजन करो और निकल चलो यहां से, पता नहीं कब स्वांसों की पूजी ख़त्म हो जाये | इस लिए इस नव वर्ष की वेला में प्रण करो की सुमिरन, ध्यान और भजन नित्त्य करेंगे |
नोट2: प्रेमियों गुरु महाराज ने खुले मंच से कहा है की आप हमको देखो और मै तुमको देखू, बीच वाले को मत देखना नहीं तो गिर जाओगे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:01-01-2023

आप सभी गुरु भाइयों, बहनों और प्रभु प्रेमियों को अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नव वर्ष मंगलमय हो | सतगुरु दयाल आप सभी पर दया मेहर बरसाए | समस्त प्रभु प्रेमी अपने सतगुरु से प्राप्त नामदान से सच्चे आत्मिक धन की कमाए करे और अपनी जीवात्मा को सतगुरु की दया से इस नूतन वर्ष में अपने निज घर पहुंचाने का सच्चा जतन करे |
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज की एक - एक भविष्यवाणियों को याद करते रहे, जो सतगुरु दयाल ने अपने मुखारविंद से कहा है वो सब होता चला जायेगा | सतगुरु दयाल ने हमेशा हमको आपको समझाया की आगे का समय अच्छा नहीं है, तो हम सभी को सदा अपने सतगुरु की बातो को याद करने की जरुरत है और उन्ही के बताये रास्ते पर चलने की जरुरत है | किसी भी कठिनाई में केवल और केवल सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ही साथ देंगे दूसरा कोई नहीं |
अपने सतगुरु पर भरोसा रखो वो एक बार पुनः इस धरा मंडल पर औतरित होंगे और अपने सारे कार्य स्वयं पूरा करेंगे | जब सूरज निकलेगा तो वो सभी को उजाला देगा न की किसी एक को, धैर्य रखो अपने सतगुरु के आने की इन्तिजारी करो |
सच्चा सुमिरन ध्यान और भजन करो और गगन मंडल में सतगुरु की दया से चढ़ चलो |
गुरु महाराज ने बहुत पहले कहा था की आगे महामारियां आएँगी | अभी तो भूकंप भी आना बाकी है, अन्न की कमी होना बाकी और विश्वयुद्ध भी होना बाकी है, ये सब कब होगा ये तो वक्त के सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ही जानते है, कोई दूसरा नहीं | गुरु महाराज ने बहुत पहले कहा था की मेरी कमर में बँध कर चौबीसो घंटों के लिए लटक जाओ लेकिन मेरी खोपड़ी में क्या है आप को पता नहीं चलेगा |
जो अपने सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के संग होगा उन सभी की रक्षा और मदद सतगुरु दयाल करेंगे, साथ ही साथ जो प्रभु प्रेमी सत्कर्म कर्म करता होगा और शुद्ध शाकाहारी एवं निरामिष होगा उस पर भी सतगुरु दयाल की दया होगी और उन सभी की रक्षा और मदद होगी बाकी के लिए कुछ नहीं कहा जा सकता | |
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||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:15-12-2022

गुरु महाराज के सत्संग वचन :
ब्रह्म पद जिसे त्रिकुटी कहते हैं और ओंग की आवाज बराबर होती रहती है वहां तक प्रकाश के सहारे साधक जा सकता है उसके आगे नहीं | ब्रह्मा स्थान के ऊपर शब्द के सहारे साधक जाता है |
वेदांत की पहुंच ब्रह्म तक ही है यानि वेदों का अंतिम लक्ष्य स्थान ब्रह्म ही है | संत मत के अनुसार यह दूसरा स्थान है जिसे त्रिकुटी कहते हैं | संतमत हमे पांचवें स्थान सत्तलोक तक ले जाता है |
|| परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:06-12-2022

दादा गुरु महाराज का पावन भंडारा :
गुरु महाराज की असीम दया और कृपा से समस्त प्रेमियों ने दादा गुरु महाराज के पावन भंडारे के अवसर पर दादा गुरु महाराज की अंतर आत्मा से सच्ची पूजा किया | दादा गुरुजी महाराज और गुरु महाराज ने असीम दया का भंडार जीवात्माओ पर लुटाया, अनेको प्रेमियों को दादा गुरु महाराज और गुरु महाराज ने अंतर में दर्शन दिया | बहुत से प्रेमियों को अंतर अनुभव प्राप्त हुआ | प्रेमी जन दादा गुरु महाराज और गुरु महाराज की दया को पाकर गदगद हो गए |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:20-Nov-2022

सतगुरु जयगुरुदेव - साप्ताहिक सतसंग - 20 Nov 2022
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:02-Oct-2022

सतगुरु जयगुरुदेव - साप्ताहिक सतसंग - 02 Oct 2022
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:25-Sep-2022

सतगुरु जयगुरुदेव - साप्ताहिक सतसंग - 25 Sep 2022
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:01-06-2022

अबकी जीवात्मा को जगा लो :
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महराज सत्संग समझाते हुए - कहते है - अबकी बार इस जीवात्मा को मनुष्य मंदिर में जो आँखों के बीचोबीच बैठी है उसे धीरे से महापुरुष की कृपा से दया से, जैसे भी मिन्नत करके, रो करके, गाकर के प्रार्थना से इसको धीरे से जगा लो | जीवात्मा को होश आना चाहिए कि इसे पांच भौतिक शरीर में जो वह वेहोश हो गई है उसे होश आना चाहिए | और होश नहीं आया तो ऐसे ही वेहोश पड़ी रहेगी जैसे आई वैसे ही चली जायेगी | यह मानव शरीर, जो अनमोल है, आपके हाथ से चला जाएगा |
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग - 1990|
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:28-05-2022

सतगुरु ऐसी मौज दिखाई |
मार लिया अब काल कठोरा ||
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महराज सत्संग समझाते हुए - कहते है संत सतगुरु जो दयालु है उन्होंने ऐसी मौज दया की जो काल जाल से अलग कर दिया | नाम के साथ दोनों को जोड़ दिया | यह चढ़ने लगे और अमृत पीने लगे | अपने घर की तरफ प्रस्थान कर दिया चल दिय | शब्द शब्द को उसका रस पीते गए और चढ़ते गए, चढ़ जाते हैं | जहां से शब्द आ रहा है जहां गुरु है उधर जब चढ़ोगे तभी दीदार होगा | वहां दर्शन होगें | साक्षात्कार होंगे | खुल्लम-खुल्ला, मीरा ने साक्षात्कार किया | ईश्वर का भी किया पूरा - पूरा | ब्रह्मा का भी, पारब्रह्मा का भी साक्षात्कार | महाकालपुरुष का भी, सत्पुरुष का भी | सब का दर्शन करती गई | सहजो बाई, चरणदास, रैदास जी, एक दो महात्मा कलियुग में नहीं हुए बहुत से हुए | इन महात्माओ ने दया करके इस मन को और सुरत को, दोनों के दोनों फसे है जो इस तन में, पकड़ करके इनको मोड़ दिया |
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग - 2010||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:26-05-2022

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव दे जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - अगर नहीं जानते हो तो मैं जनाउँगा | मैं वह सख्श और आदमी इस मंच पर आ करके बैठा हुआ हूँ कि जो कहूंगा वही करने का प्रयत्न करूंगा | अगर आपको पढ़ना है तो मुझे पढ़ाना है | अगर आपको शिवनेत्र प्राप्त करना है तो मुझे प्राप्त कराना है | आप अगर शिवनेत्र को खोलना चाहते हैं तो मुझे खोलना है | अगर शिवनेत्र नहीं जानते हैं तो मुझे बताना है | आपने शिवनेत्र की रोशनी को नहीं देखा है तो रोशनी को दिखाना है | शिवनेत्र के द्वारा जो लोक देखे जाते हैं जिनको आपने नहीं देखा है वह लोक आप देखेंगे लेकिन यह कहे कि नहीं है तो यह अज्ञान हो जाएगा और इसका नाम भौतिकवाद और भौतिकवाद इन आँखों के इस निचे हिस्से तक, जब आँख खुली हुई है और जब आँख आपकी बंद हो जाती है तो यह भौतिकवाद समाप्त |
विचार करो जब कोई आदमी मरता है, किसी आदमी कि मृत्यु होती है | जब वह यहां पर जरा सा भी अंदर से थोड़ा सिमट कर इधर आये अंग्रेजी ख़त्म, संस्कृत ख़त्म, मशीनरी ख़त्म , डाक्टरी ख़त्म, मकान ख़त्म, पहचानना ख़त्म, बोलना ख़त्म, सुन्ना ख़त्म क्या वजह है ? कारण क्या है ? आँख भी वही, कान भी वही | नाक भी वही, मुँह भी वही, क्या हो गया ? वह जीवात्मा जिसके आधार पर तमाम इन्द्रियां दसों इन्द्रियां काम करती हैं वह जीवात्मा परमात्मा कि बहुत बड़ी शक्ति जो इसमें आ करके गुम हो गई जो इसमें आकर इस अन्धकार में जब्ज हो गई और वह शक्ति जिसके द्वारा आँख, कान, नाक, जबान, हाथ और पैर जो हरकत करते है इस तरह से चलते और फिरते हैं | जब वह इस केंद्र से इस स्थान से जब वह इस अवस्था से अलग कि जाती है उस समय पर हाथ-पैर, आँख-कान, जबान ये हरकत करना बिलकुल बंद कर देते हैं | अब वह कोई भौतिक ज्ञान नहीं रह गया | और आदमी यह कहता है कि अब यह जा रहा है मरने के लिए, दवा दो, जल्दी पिलाओ, नहीं पियेगा | किसी औजार से दे दो |
उस समय दिव्य विचार करे | वह दशा वह अवस्था आपकी आएगी | इसके पहले उस अवस्था से ऊपर हो | इस अवस्था से ऊपर आँख करो एक वह आँख जो निचे रहे एक वह आँख जो ऊपर हो जाए उसमे इससे भी ज्यादा रोशनी | यह जो रोशनी आपको दिखाई देती है इस रोशनी का उधर कोई पावर हाउस नहीं | उधर कि रोशनी प्राकृतिक रोशनी आटोमेटिक बनी हुई रोशनी है |
लेकिन यह दिव्य दृष्टि और ज्ञान चक्षु जिस समय पर खुल जाएगा, जिस समय पर मिल जायेगा जिस समय पर हिरदय का लोचन, हिरदय का नेत्र, जिस समय पर वह अपनी गंदगी फाड़ देगा टुकटे टुकटे कर देगा, उसके बीच में हो कर एक बहुत रोशनी नजर आवेगी, दिखाई देगी | लेकिन वह किस्से मिलेगी ? महात्माओ के द्वारा ||
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग - 08-04-1966 ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:24-05-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि -बोलो - जयगुरुदेव , जयगुरुदेव, जयगुरुदेव | देखो प्रेमियों ! ये जो नये लोग हैं इनको लिखा देना अपने अंदर की चीज तो बताना नहीं | बाकी बाहर से लिखा देना और इनसे कहना तुम इस तरह से याद कर लो और ध्यान के लिए इनको बता देना कि ऐसे बैठ के ध्यान करो, कपड़ा ओढ़ करके, भजन, सुमिरन करो | ये जब समझ जाएंगे तो करने लगेगें | बाकी यहां तो एक दिन दो दिन, चार दिन, आपको मालूम है | हफ्ते एक हफ्ते रहे तो सत्संग मिला | इससे बहुत कुछ है | यहां से जा करके अपने घर में उसकी कमाई करो, अभ्यास करो, साधन करो, दया हो | ये बाकी जो काम है, ये सब यहीं के हैं | शरीर तो उसका है उसने दिया है वो अपना ले लेगा | सामान भी रखवा लेगा और जीवात्मा को निकाल बाहर करेगा | तुम देखते नहीं हो कि जब निकाल दी जाती है तो लोग मरघट पर ले जाते हैं , शरीर को लकड़ियों पर रखकर जला देते हैं या गाड़ देते हैं | तो भजन कर लो | सही सीधा रास्ता बताया || || परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग - 10-12-2011 ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:20-05-2022

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव दे जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - सुमिरन के समय सामने सीधा दृष्टि को एकाग्र करो | एक जगह रोको तो मन भी रहे, बुद्धि भी रहे और चित्त भी रहे दृस्टि के साथ में -
' सुमति कुदारी , नैन उरगारी '
यह है सुमति कुदारी | जीवात्मा में स्वयं कुदारी है | उस दृस्टि में उस आँख में कुदारी है |
"भाव सहित जो खोदाई प्राणी, पाँव भक्ति मम सब सुखखानी"
भाव के सहित, श्रद्धा के सहित जब दृष्टि रुपी कुदारी से खोदने लगोगे तो परदे कटेंगे| और वे परदे आपको दिखाई देंगे | कितने गझिन है कितने मोठे हैं और कितने काले है और कितने सफ़ेद है यह सब आपको दिव्य नेत्र ज्ञान चक्षु के द्वारा दिखाई देते जायेंगे |
तो सुमिरन का फल, समय न मिले तो सुमिरन करते रहो और पाँचों नामों को लेकर आधे मिनट में और एक एक रूप पर मत्था टेकते जाओ | वे ही अंदर के संत्री है और उठ के खड़े हो जाओ | तो जब भी तुम भजन करोगे , ध्यान करोगे, सुमिरन का किया हुआ फल, भजन और ध्यान में प्रगट होता है | ऐसा नहीं कि अप्प न सुमिरन किया और उठ के खड़े हो गए तो वेकार हो गया | नहीं जब ध्यान करोगे, भजन करोगे तो उसमे वह फल प्रकट हो जायेगा| कान खुलेंगे आँख खुलेगी |
तो सुमिरन विधि विधान से नहीं करोगे तो भजन और ध्यान से भी आपको लाभ नहीं होगा इसलिए जो प्रक्रिया है भजन की, सुमिरन की वह विधि विधान से करो आगे पीछे नहीं कि ऊपर का नाम निचे कर दिया, निचे का नाम ऊपर कर दिया | सिलसिलेवार एक तरफ नामों को लीजिये तो ये पांचो के पांचों अपने अपने मुकाम पर बैठ करके जब वे साधना करने वाले के ऊपर प्रसन्न होंगे | और दया करेंगे तो उनकी दया की किरणे जीवात्मा तक आती है | तो कोई बीच में बाधा नहीं पहुँचता, देवी देवता ये कोई बाधा नही डाल सकते |
और जब भक ने उनका ध्यान नहीं किया उनको माथा नहीं टेका तो देवी देवता बड़े विघ्न पंहुचाने वाले विघ्न कारक हैं | वे विघ्न पंहुचा देंगे तो आपकी चित्त बृत्ति अस्त व्यस्त कर देंगे | तो ध्यान नहीं हो सकता भजन नहीं सो सकता | इसीलिए स्थानीय जो पुरुष है उसका नाम और ध्यान उसके रूप का अनिवार्य और जरुरी से जरुरी हैं | जो साधक इस तरह से नाम और रूप को ध्यान में रख के मत्था टेकते है उनके ऊपर में दया होती है | |
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग - 25-12-1990 ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:19-05-2022

रोज हाजिरी देने पर भगवान बोलने लगेगा:
गुरु महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि घर का काम ईमानदारी के साथ करे | घर पर आये शाम को बच्चों की सेवा करे | उसके बाद समय बचा तो लेटकर बैठकर रात को सुबह दोपहर को अपनी जीवात्मा को, अपने रूह को, खुदा के दरवाजे पर, भगवान् के द्वार पर, रोज हाजिरी, उपस्थिति दो | १० मिनट १५ मिनट आधा घंटा | जैसे ही आप दो चार पांच दस दिन हाजिरी दी की फ़ौरन खुदा बोलने लगा , भगवान् आवाज देने लगा | तुम इधर आओ | इधर चले आओ | वह पूछेगा कि इधर कैसे आयी ? तो आप खुद ही उसको उत्तर दो कि हमको किसी ने दरवाजा बताया है | फ़ौरन कहोगे | जीवात्मा की रूह की उससे बात होने लगेगी | तुरंत जबाब लो और तुरंत जबाब दो | वह इस तरह मशीन क्या काम करती है | कुछ नहीं |
तो हाजिरी दो ताकि वह आपको कुछ पूछ भी सके और जबाब ले और दे भी सके | और ईमान सब लोगो में होना बहुत ही आवश्यक जरुरी है | जो अपने ईमान को बरकरार , मुश्तकीम , हमेशा के लिए इस जिस्म में रखते है वह बहुत बड़े इंसान हैं , मनुष्य कहलाते है |
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग - 1979 ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:19-04-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - अपने को अनजान जानो और दीन हो जाओ | जो दीन होता है उसी के ऊपर में दयालू प्रसन्न होते हैं और जो दीन नहीं हैं उस पर दया हो नहीं पाती तो अपने को छोटे बन जाओ, दीन बन जाओगे बस और समझते रहो की हम कुछ नहीं जानते तब कुछ नहीं होगा | जब तुम यह समझ लोगे की हमने सबकुछ तो समझ लिया अब हमको जानने को क्या रह गया तो घमंड आ जायेगा फिर दीनता आएगी नहीं अपने को अनजान कैसे समझोगे | वह तो अहंकार का दरवाजा खुल गया और बिकार आने में क्या देर लगती है जरा सी उधर से एक चपेट आई और फिर गिरे आप देर नहीं लगती| तो बड़ी होशियारी की बात है तो चीज क्या है की छोटे हो कर दीन हो जाओ |
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:13-04-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - समय निकलता जा रहा है भजन कर लो समय कभी इन्तजार नहीं करेगा कि मैं रुका हूँ तुम भी ठहर जाओ | धीरे धीरे आयु ख़त्म होती जा रही है | देखते देखते अंत आ जाएगा फिर तुम कहोगे कि क्या हो गया | जो होना था वही हुआ | अब तुम रोओ चिल्लाओ कुछ नहीं होने वाला |
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:12-04-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - एक वक्त आएगा जो बड़ा नाजुक है और बड़ा दुखदाई है | तुम सब लोगों को महात्माओ की, फकीरों की जरूरत पड़ेगी | तुम्हे अपने ईमान और इखलाक को वापस लाना पड़ेगा, उन महापुरुषों के क़दमों में झुकना होगा तब तुम्हारी रूह साफ़ होगी, तब रूह का दरवाजा खुलेगा और खुदा का दीदार होगा | तुम खुदा से जुदा हो गए, भगवान् से अलग हो गए | जो लोग काफिर और पापी हो गए न उन्हें भगवान् का पता न खुदा का पता उनके आगे तुम अपना दामन फैलाते हो और जो महात्मा फ़कीर सब कुछ दे सकते हैं उनके पास नहीं जाते हो ||
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:15-02-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - तो असल बात है कि साधू बड़े लगन के होते हैं | अच्छे अच्छों को मोड़ लें | कुल्टी कपटी को सबको मोड़ दे | पापी, दुष्ट आत्मा, दुराचारी उसको मोड़ दें | लग जाय तो सब कर दें | न लगें तो कोई बात नहीं |
कहने का मतलब हैं कि वे तो सिंधु के भरे हैं और वह तो प्रेम देते हैं | आप जाओ उनके पास में सब कुछ देंगे | लेने का तरीका होना चाहिए | तरीका रहेगा तो ले लोगे | जो दे देंगे उसको रख लोगे, वह तुम्हारे काम आयेगा | दे देंगे तुम्हे रखना नहीं आता, तुम दिया हुआ गिरा देते हो कैसे होगा ? उनके पास में तुम जाओ बैठो, वह देंगे ||
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग -1990||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:12-02-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - सबसे महत्वपूर्ण जो चीज है वह सादगी | दीनता | सादगी ले आओगे - दीनता | इससे सब गुण आप में आ जायेंगे | दीनता में मनुष्य गरम नहीं होता है | क्रोध नहीं करता है | घमंड नहीं करता | दीनता सबसे छोटा निम्न स्थान है की हम सबसे छोटे हैं | आप सबके सब बड़े हो |
तो दीनता - सादगी यह मनुष्य की प्रथम यह मानव सीढ़ी उसके हिरदय की है | यह हिरदय दीन बनेगा तो उस दयाल पुरुष की दया होने लगेगी | सबका अनुभव होने लगेगा | और दीनता नहीं रहेगी और गरूर घमंड रहेगा तो यह जो बाहर देख रहे हो वह सब बाहरी अपराविद्या है |
अपराविद्या का मतलब ही यह है की बंधन और स्वार्थ | सब चीजे नाशवान हैं और बनाने वाले का नाश देखते देखते हो जाता है | तो यह अपराविद्या है | इस शरीर का भी नाश होगा और शरीर सम्बन्धी बनी हुई चीजों का | तो गरूर और गुमान किस बात का ? अगर दीनता को आप स्थान दे देते तो आज हिरदय सभी का निर्मल, पवित्र, स्वच्छ रहता |
तो भगवान् का स्मरण आप किसी ऋषि, मुनि, महात्मा, साधू संत के पास जाते तो फिर कुछ न कुछ आपको मिलता | लेकिन आपने तो दीनता को जगह ही नहीं दी | वहां तो क्रोध ही क्रोध, लोभ ही लोभ | मोह ही मोह | अहंकार, गरूर, घमंड - यह दुश्मन जो अड्डा जमाये हुए हैं | यह मनुष्य का विनाश इन्होने कर दिया | और एक क्षण भी इसको कहीं चैन अमन से रहने नहीं देते | चाहे बाजार हो, चाहे घर हो, कहीं कोई भी काम हो, कोई काज हो, कोई जाति हो, सबमें उत्पात मचाये हुए है पूरा |
तो दीनता से दुश्मन निकल जायगे | क्रोध भी, लोभ भी, मोह भी | क्योकि जब आप छोटे रहोगे तो आप क्रोध नहीं करोगे | यह नहीं की घमंड गरूर आया तो ज्वाला की तरह से जल पड़े | सब को जला दे | दीनता इस मानव हिरदय आत्माओ की यह प्रथम सीढ़ी है जो महापुरुष - संत सतगुरु के पास तब पंहुचा देगी, और यह नहीं रहेगी तो फिर नहीं ||
|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग -26 दिसंबर 1990||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:11-02-2022

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - तुम लोगो के समक्ष इतना सतसंग सुनाया हर प्रकार से साधन भजन के सरल तरीके बताया पर अब भी यदि तुम लोग यह कहो कि साधन नहीं होता हैं अंतर में रस नहीं मिलता हैं तो बड़े ताज्जुब की बात है | इसका कारण और निवारण आज तुम्हे बताता हूँ | ध्यान से सुनो और इसे पकड़ लो | इसके बाद भी अगर तुम्हे शिकायत रहे तो फिर हमसे कहना | होता ये है कि हम लोग अपनी बुद्धि से काम नहीं लेते हैं | सतसंग बराबर न मिलने से मन मोटा हो जाता है, साधन भजन में कमी होती है | लोग एक दूसरे कि निंदा तथा शिकवा शिकायत में लग जाते जाते हैं | खुद अपनी बुराइयों को न तो देखते हैं और न दूर करने की कोशिश करते हैं | धीरे धीरे साधन भजन में रस मिलने का कौन कहे अरुचि उत्तपन्न हो जाती है | तो मैं आज तीन बात बताता हूँ ध्यान से सुनो और उसे दृढ़ता से पकड़ो :
१) अपनी बुद्धि से काम लो | अपना विवेक ठीक रख कर अपना हित और लाभ (परमार्थी) समझ कर उसी के अनुसार काम करो | किसी के कहने में हरगिज नहीं चलना चाहिए | तो अपनी बुद्धि से ही काम करो | समझ और सोच कर जिसमे तुम्हारा परमार्थी लाभ हो वही काम करो | अपने संसारी काम में नौकरी चाकरी में या व्यवसाय में भी उतना ही काम करो जिससे तुम्हारे परमार्थ का नुकसान न हो | अपने उन कामों में जरूरत से अधिक फसने में परमार्थ का नुकसान अवश्य होगा | तो परमार्थ का काम का ध्यान रख कर साधन भजन में पूरा समय दो तथा अपनी बुद्धि से काम लो |
२) न दूसरो की निंदा करो न सुनो | कोई किसी की शिकायत करता हो तो वहां न बैठो | अपनी जबान से किसी की शिकायत न करो | शिकायत तो न करना चाहिए न सुन्ना चाहिए | शिकायत ही करते सुनते सारा समय उसी में खर्च हो जाता है | तो साधन भजन कब होगा ? इसीलिए चाहे सत्संगी ही क्यों न हो काम से काम | उसके बाद दूसरी कोई बात नहीं | ज्यादा बात करने का मतलब है शिकवा शिकायत, निंदा आदि करना, सुनना | इसी से मन धीरे - धीरे मोटा होता जाता है | साधन भजन के लिए पूरा समय नहीं दे सकते | फिर अंतर का रस कैसे मिलेगा | यदि कोई शिकायत करे तो आप सुने ही नहीं | अपनी बुद्धि से काम ले | दूसरे के औगुन को न जानने की कोशिश करे न जाने | उसके गुणों को जानकर उसे ग्रहण कर ले उसके अवगुणों को वही छोड़ दें |
३) अपने अवगुणो को मनन कर के छोड़े तथा गुणों को बढ़ावें | अकसर होता है कि दूसरों के अवगुणों को हम बड़ी रूचि से ब्यान करते हैं जिससे उसका सब बोझ अपने ऊपर हम लेते हैं तथा अपने गुणों का डंका चारो ओर पीटते हैं जिससे अपने अवगुण ज्यों के त्यों अंदर रक्खे रहते हैं, तो आप अपने अवगुणो को धीरे धीरे छोड़े उसकी चर्चा करे |
इस प्रकार ये तीन बातें आप अवश्य करें |
अपनी बुद्धि से काम लें | दूसरों के कहने में न चले | न किसी की शिकायत करे न सुने | तथा अपने अवगुणों की चर्चा करके छोड़े |

|| परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग -6 सितम्बर 1961||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:10-02-2022

जपरम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में बताया की - अभी समय है अब से भी चेत जाओ | अपने काम से काम | किसी की निंदा या शिकायत न करेंगे न सुनेगे | खुद जरा सोचो तो जब अभी तुम अपना काम नहीं बना लोगे और काल आकर ले जाने को खड़ा होगा तो क्या करोगे ? उस समय कौन तुम्हारा रक्षक होगा | अरे अपनी फिकर करो | काल सामने खड़ा है | तुम दूसरो की निंदा करने या सुनने में लगे हो | समय को इस प्रकार बर्बाद न करो | यह कुटुम्ब परिवार भी उस अंत समय कुछ काम न देगा ||
इसलिए ये तीन बातें ध्यान देकर मान लो :
१) किसी की निंदा न करना , न सुनना |
२) अपनी बुराई को निकालना तथा अपनी ही बुद्धि से काम लेना | कहने सुनने पर नहीं चलना |
३) सतगुरु के बचनों का पालन करके अपना काम बना लेना |
बाकी के सब काम बेकार हैं | संसार का काम केवल निमित्त मात्र कर लो | जरूरत से ज्यादा उसमे भी नहीं फसना | ठीक से सुमिरन, ध्यान और भजन करो |
||परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज , सत्संग - 1961|
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:13-01-2022

जीवात्मा जब प्रकाश को केंद्रित कर लेगी तो आगे चल पड़ेगी
ध्यान और भजन के वक्त में आप बाहर से हटोगे तो उसमे कोई तकलीफ नहीं होगी | आपको इतना ही करना है कि मन बुद्धि चित को इधर उधर नहीं भगाना | उसको जीवात्मा के कान या आँख के साथ रोककर रखना है | इसी तरह से आपके सभी लगाव और मोह ममता के तार धीरे धीरे कटते चले जायेंगे | वे जब टूटेंगे तो मन बुद्धि चित सुरत का साथ देंगे | तब प्रकाश का सिमटाव आसानी से हो जायेगा | जब जीवात्मा अपनी आँखों के सामने प्रकाश को केंद्रित कर लेगी तो आगे चल पड़ेगी जब वो अपनी सारी शक्ति को साथ लेकर चलेगी तब मार्ग आसानी से जल्दी तय हो जाएगा |
||परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज , सत्संग - 1990|
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:11-01-2022

गुरु की पहचान हम कैसे करे
संतों ने अति दया की है की हमारे लिए ग्रन्थ बनाये है जिनमे मालिक के मिलने का पूरा भेद दिया है | जब हम संतों के सतसंग में जावेंगे तो हमको एक तरह की समझ पैदा होगी जो काबिल परमार्थ समझने के हैं, जिसमे यह समझाया जावेगा की तुम्हारा हकीकी और पूरा मालिक कौन है ? और कहा रहता है और किस रास्ते से अपने हकीकी मालिक के पास पहुंच सकते हो | जब यह समझ आ जावे तो हमारा धर्म कर्तव्य है कि हम उन पुस्तकों को देखे जिनका संत कथन करते हैं | साथ उन पुस्तकों को भी देख ले जिनको हम हमेशा से मानते आये हों | यदि हमारी धर्म पुस्तकों का भी भेद संतों की पुस्तकों में हो और उसके परे का भी भेद हो तो हमको समझ लेना चाहिए कि हमारा हकीकी सच्चा पिता इन सतगुरु के सतसंग से प्राप्त होगा |
||परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज , सत्संग||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:07-12-2021

वास्तविक दर्शन किसे कहते है
कुछ लोग दर्शन के विषय में बहुत धोखा में पड़ जाते हैं इसलिए इसे भी कुछ साफ किये देता हूँ ताकि गलती न हो और वह अपने उधोग से हाथ न खींच ले | यह सम्पूर्ण जगत कल्पना की ही मूर्ती है जिस तरह बर्फ के अंदर जल के और नमक के अंदर नमक के परमाणु ही रहते है उसी तरह वाणी के अंदर कल्पनाओ का भंडार रहता है | इन सारी कल्पनाओ को त्याग के एक कल्पना को पकड़ना ही साधना कहलाती है | ऐसी कल्पना को पकड़कर जब साधक अभ्यास करता है तो आगे उसी कल्पना का रूप बन जाता है | अथवा वहां कल्पना के अंदर समावेश हो जाती है | जैसे महर्षि पतंजलि ने बताया है | ऐसी अवस्था होने पर वही कल्पना साक्षात् मूर्ती बनकर स्वप्न में या ध्यान में समुख आ खड़ी होती है | कभी स्थूल सुरत में और कभी प्रकाश की शक्ल में | उसमे एक विशेष आनंद दर्शन मिल गया परन्तु यह दर्शन नहीं है | ऐसे दर्शन से धोखा खा के संतुष्ट न हो जाओ बल्कि आगे बढ़ो | वास्तविक दर्शन की और निज कल्पना की कुछ पहिचान बताते हैं उसी से अंदाजा लगाओ |
सत्य और कल्पना में अंतर :
वास्तविक दर्शन और कल्पना का सबसे बड़ा अंतर तो यह होता है की कल्पना की मूर्ती के अंदर क्षण क्षण में परिवर्तन होता है और वास्तविक शक्ल चाहे घण्टों सम्मुख रहे वह एक जैसी रहती हैं | उसकी सूरत में कोई तब्दीली नहीं आती है | दूसरा कल्पना की मूर्ति से यद्यपि कुछ ख़ुशी और आनंद मिलता है क्योकि उस समय मन चंचलता त्याग कर एक ही केंद्र पर स्थित हो जाता है और मन की एकाग्रता में ही आनंद रहता है | परन्तु असली दर्शन के समय आनंद के साथ साथ ऐसी एक शांति होती है जिसमे न तो कोई चिंता न घबराहट रहती है न किसी प्रकार का भय रहता है | जैसे सती स्त्री अपने बलवान पति को समीप देख कर निर्भय हो जाती है | जैसे निर्बल बालक अपने माता-पिता की गोद में बैठ के सारी व्यावस्थाओ से अपने को मुक्त देखता है वैसे ही उस समय उपासक की दशा होती है | वह अपूर्व ढांढस और साहस अपने में पाता है | सारी अलौकिक शक्तियां अपने अधिकार में देखता है | उसे ऐसा प्रतीत होता है मानों कामधेनु और कल्पवृक्ष दोनों उसके आश्रम में ही आ गए है और मन चाही वस्तु देने को खड़े हैं | उतनी देर के लिए जीव की अल्पज्ञता जाती रहती है वह सर्वज्ञ हो जाता है |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - परमार्थी बचन संग्रह
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:25-11-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - बच्चे और बच्चियों, यह जो आप अपनी दोनों आखों से देख रहे हो यह सारा का सारा मृत्युलोक है | इसको पिंड लोक कहते हैं | जो पंचभौतिक यह जल, पृथ्वी, अग्नि , वायु, आकाश की रचना है यह है पिंड लोक | ये आँखे जो है इसकी हद तक यह पिंड लोक है | उसने यह पूरा का पूरा नक्शा बना रक्खा है | जीवात्मा दोनों आँखों के पीछे बीचोबीच अंदर में बैठी है | और वह पिंड लोक के नाके पर बैठी है | जो ऊपर जाने का दरवाजा है, उसी दरवारे पर बैठी हुई है | और वह दरवाजा हो गया बंद | यह उसकी हद है | जो आरपार दिखाई देता है यह ऊपर में वह यह है यहां |
जब आप दोनों आँखों को बंद करके और अंदर में जब चलोगे और तीसरी आँख खुलेगी दिव्य नेत्र, तीसरा नेत्र शिवनेत्र तो वह आगे लोक शुरू हो जायगा | अण्ड लोक शुरू हो जायेगा | उस अण्ड लोक में चौदह भवन हैं उसी को मुसलमान कहते है चौदह तबक वह इस मृत्यु लोक से पिंड लोक से बहुत बड़ा है | बहुत ही बड़ा अण्ड लोक है छोटा मोटा नहीं है | इसकी गिनती ख़त्म हो जाएगी जितना बड़ा स्वर्ग और बैकुंठ लोक है |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - 20अप्रैल 1992
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:24-11-2021

शब्द से सुरत की संभाल होती है
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - जब नामदान मिल गया तो अपना काम करने के बाद सुबह शाम कुछ अभ्यास दरवाजे पर बैठकर करो | ये मानव शरीर अनमोल मनुष्य मंदिर है | कितने दिन हो गए यहां बैठे हैं | किस तरह से यहां से कैसे जाएंगे किसके साथ ये सब मालूम हो जाये तो नाम की कमाई सुरत शब्द योग की होनी चाहिए, तो सुरत संभाल शब्द में आकर्षण उसमे खिचाव है | तो बेकली, बेचैनी, मालिक की तड़प ले जाने में पूरी सहायक है | और उदासीनता संसार से उदास, साधक को एक ही इच्छा कि मालिक मिल जाए सुरत का भला तभी होगा |
सुरत को अपनी दौलत मिल जाये महात्माओ की दया कृपा का अनुभव सुरत करती है घाट पर | बाकी दया काम करती है, बाहर से काम करती रहती है वो तो हर जगह | अपना काम तो करती ही रहती है विवेक रहेगा तो काम होगा, विवेक नहीं रहेगा तो दया काम नहीं करेगी | निशाना बनाओ संसार से लगाव कम करो संसार से लगाओ ज्यादा रखोगे तो इसका मतलब मालिक से लगाव नहीं | मालिक से लगाव रखोगे संसार से लगाव धीरे धीरे कम करना होगा | ये जो कल्याणकारी रास्ता मिला है | दूसरे का क्यों लादते हो जितना लेना देना हिसाब किताब है उसको महात्मा दया करके लेना देना हिसाब किताब ख़त्म करा देते है |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - 17 अप्रैल 1992
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:23-11-2021

चरण कमलों का श्रोत उधर है
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - अंतर में जब उलट करके उस धार पर चढ़ो तो कहते है उन चरण कमलो का जो श्रोत और प्रकाश है जैसा सत्तलोक में है वैसा है | इसलिए भी इन चरण कमलो को अरूप वर्णन किया | अरूप करके कहा गया | इसी धार से जीव अपने घर को वापस जायेगे | जब तक चरण कमल नहीं पकड़ेंगे तब तक उनको आधार नहीं मिलेगी | इसी धार पर सत्तलोक से आय हैं और इसी धार से वापस जायेगे |
एक काल की धार है और एक दयाल की धार है :
और यहां से एक दयाल की और एक काल की धार जो नीचे को आ रही है और फेंक रही है निचे की तरफ | जो रचना करके जिसने धकेल दिया वह तो आपको ऊपर फेंक नहीं देगी, वह तो नीचे फेकने का काम करती है | लेकिन एक बार जो ऊपर से आई और आकर्षण बना करके जो नीचे से ऊपर की तरफ खींचती है वह अपना खींचने का काम करेगी | फेकने वाली धार ने फेकने का काम किया | और वापस ले जाने की धार वापस ले जाने का काम करती है | सतपुरुष ने दोनों धारों को अलग किया | एक दयाल धार को एक काल धार को | काल धार ने जीवों को निचे फेंक दिया और बराबर ढकेलने का काम निचे की तरफ करते रहते हैं | और दयाल धार बराबर ऊपर की तरफ खींचने का काम करती है |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन 1992
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:11-11-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - आत्म विद्या तो बस महात्मा की कृपा से प्राप्त कर सकते हैं | इसको जगाने के लिए सतगुरु की आवश्यकता पड़ती है | उनकी आत्मा जगी होती है | हर क्षण वे उस प्रभु के साथ जुड़े होते हैं | परमात्मा की आवाज सुनते रहते हैं | तुम्हे वह आवाज ऊधो गीत या आकाश वाणी क्यों नहीं सुनाई पड़ती ? क्योकि तुम्हारी आत्मा पर कर्मों के काले परदे पड़ गए हैं | कर्म की मोटी तह जम गई है | इस लिए जब तक हम उस महात्मा की शरण में जाकर कर्म की मैल को काटने का तरीका नहीं सीखेंगे तब तक न आकाश वाणी सुनाई पड़ेगी और न शिवनेत्र ही खुलेगा | यह आवाज सुप्त अवस्था में हमारी आत्मा में रहती है | जब मृत्यु होने को होती है तो आत्मा को निकालने वाली आवाज को सुना कर ही इस आत्मा को शरीर से निकालता है | जब तक मोक्ष न मिलेगा तब तक यही क्रम हमारे जीवन में चलता रहता है |
इस मनुष्य शरीर में वह जीवात्मा दोनों आँखों के पीछे मध्य भाग में बैठी है | उसी की रोशनी दोनों आखों में आती है जिससे हमे दिखाई पड़ता है | जब दोनों आँखों को बंद कर के अंदर की एक आँख खोली जाती है तो उसी को शिव नेत्र या दिव्य चक्षु कहते है | यह शिव नेत्र सब में हैं | मगर बिना उसे जाने मनुष्य अज्ञान में इस दुनिया में आता है | भिन्न भिन्न योनियों में भटकता है | तरह तरह के दुःख तकलीफ इस दुनिया में भोगता है और फिर अज्ञान में ही इस दुनिया से मर कर चला जाता है |
जब कभी भाग्य से महात्मा महापुरुष उस परमात्मा के रहस्य को जानने वाले मिलते है तो वे अति दया करके नामदान देते हैं उस परमात्मा के भेद को बताते हैं | परन्तु जब तक ऐसे भेदी महात्मा न मिले तब तक वह सच्चा सुख और आनंद कैसे प्राप्त हो सकता है | हम तो उस सच्चे आनंद को भूल गए हैं | संसार की विषय वासनाओ में इस प्रकार उलझे हुए है की पहुंचे हुए महात्मा को खोजने की कौन कहे यदि वे हमारे पास आ भी जाय तो कहते है कि महराज फुर्सत नहीं हैं | तब बताओ की कैसे शिव नेत्र प्राप्त होगा ?
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन 1991
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29-10-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव दे जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - आपको जो आँखे मिली है उससे आप देखते हो की आसमान ऊपर है और पृथ्वी नीचे है | परन्तु अंदर की आँखों से इसका ठीक उल्टा दिखाई पड़ता है | आसमान भी एक पर्दा ही है | जब शरीर से सुरत अलग हो जाती है तो वह एकरस हो जाती है | साधक को ऐसी तन्मयता से साधना करनी चाहिए कि इसी शरीर के अंदर लिंग शरीर, उसके अंदर सूक्षम शरीर और उसके अंदर कारण शरीर का खोल छोड़ दे | एक के बाद एक करके चारों खोल चढ़े हैं | शब्द से सुरत जब मिलती है तो एक खोल छोड़ देती है फिर जब साधना करोगे तो दूसरा खोल भी छोड़ देगा | इसी तरह जब चारों खोल छूट जाते है तो फिर सुरत किसी कर्म के बंधन में नहीं आ सकती है | इन्हीं चारों खोलों के अंदर सुरत को बंद कर दिया है ऊपर वाले ने | महात्मा मिल जाये तो इस भेद को बता दें | हर जगह शब्द ही शब्द है चाहे वह नाला हो, नदी हो या पहाड़ हो | साधक को ऐसी साधना करनी चाहिए कि वह लय होकर लिंग में पहुंचे | लिंग लोक छोटा नहीं है वह भी बहुत बड़ा है | आगे चलकर ध्यान रूप में भी शब्द है | पर वहां इतना शब्द है कि उसमे से आप छांट नहीं पाओगे | छांट नहीं पाओगे तो फिर आगे नहीं बढ़ पाओगे और फिर उसी में उलझ जाओगे | इस बारे में महात्माओं ने तरह तरह से बताया है | जिसको नामदान मिल गया हो उसको तन्मयता से साधना (ध्यान, भजन , सुमिरन ) करना चाहिए
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - 20-12-1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:28-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि -
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव दे जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - सुमिरन के समय सामने सीधा दृष्टि को एकाग्र करो | एक जगह रोको तो मन भी रहे, बुद्धि भी रहे और चित्त भी रहे दृस्टि के साथ में -
' सुमति कुदारी , नैन उरगारी '
यह है सुमति कुदारी | जीवात्मा में स्वयं कुदारी है | उस दृस्टि में उस आँख में कुदारी है |
"भाव सहित जो खोदाई प्राणी, पाँव भक्ति मम सब सुखखानी"
भाव के सहित, श्रद्धा के सहित जब दृष्टि रुपी कुदारी से खोदने लगोगे तो परदे कटेंगे| और वे परदे आपको दिखाई देंगे | कितने गझिन है कितने मोठे हैं और कितने काले है और कितने सफ़ेद है यह सब आपको दिव्य नेत्र ज्ञान चक्षु के द्वारा दिखाई देते जायेंगे | तो सुमिरन का फल, समय न मिले तो सुमिरन करते रहो और पाँचों नामों को लेकर आधे मिनट में और एक एक रूप पर मत्था टेकते जाओ | वे ही अंदर के संत्री है और उठ के खड़े हो जाओ | तो जब भी तुम भजन करोगे , ध्यान करोगे, सुमिरन का किया हुआ फल, भजन और ध्यान में प्रगट होता है | ऐसा नहीं कि अप्प न सुमिरन किया और उठ के खड़े हो गए तो वेकार हो गया | नहीं जब ध्यान करोगे, भजन करोगे तो उसमे वह फल प्रकट हो जायेगा| कान खुलेंगे आँख खुलेगी | तो सुमिरन विधि विधान से नहीं करोगे तो भजन और ध्यान से भी आपको लाभ नहीं होगा इसलिए जो प्रक्रिया है भजन की, सुमिरन की वह विधि विधान से करो आगे पीछे नहीं कि ऊपर का नाम निचे कर दिया, निचे का नाम ऊपर कर दिया | सिलसिलेवार एक तरफ नामों को लीजिये तो ये पांचो के पांचों अपने अपने मुकाम पर बैठ करके जब वे साधना करने वाले के ऊपर प्रसन्न होंगे | और दया करेंगे तो उनकी दया की किरणे जीवात्मा तक आती है | तो कोई बीच में बाधा नहीं पहुँचता, देवी देवता ये कोई बाधा नही डाल सकते | और जब भक ने उनका ध्यान नहीं किया उनको माथा नहीं टेका तो देवी देवता बड़े विघ्न पंहुचाने वाले विघ्न कारक हैं | वे विघ्न पंहुचा देंगे तो आपकी चित्त बृत्ति अस्त व्यस्त कर देंगे | तो ध्यान नहीं हो सकता भजन नहीं सो सकता | इसीलिए स्थानीय जो पुरुष है उसका नाम और ध्यान उसके रूप का अनिवार्य और जरुरी से जरुरी हैं | जो साधक इस तरह से नाम और रूप को ध्यान में रख के मत्था टेकते है उनके ऊपर में दया होती है |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - 25-12-1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:27-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि -
घाट पर दया होगी | अगर घाट छोड़ दोगे तो आपको दया नहीं मिलेगी | और दया के कई एक परिचय है | संसार से उदास हो | ध्यान में मन लगे | आपको नींद न आये | बहुत हर्ष हो | सत्संग सुनने कि बड़ी तीब्र इक्छा हो | भजन करने की एक दम चाहना पैदा हो जाये कि भजन करने लगे | संसार का कोई काम अच्छा न लगे | तो यह कुछ कुछ समय चन्द समय ही मिंटो में ऐसी विचारधारा प्रकट होती है | तो उस समय पर यह समझना चाहिए कि मालिक की दया हो रही है | और उस समय पर कही भी किसी जगह हो | ५ मिनट, १० मिनट कहीं भी बैठकर भजन कभी ध्यान आप करो तो घाट पर आपको दया मिलेगी | उसका आपको अनुभव होगा | क्योकि वह तो ज्वर भाटा है | जब समुद्र में जीवर भाटा आता है तो स्टीमर भरे खड़े रहते हैं | माल से लगे रहते है कि जब ज्वारा भाटा आएगा तो उसी के साथ यह सब जहाज समुद्र में चले जायगे | जब तक ज्वर भाटा नहीं आता है तब तक कोई जहाज ले ही नहीं जा सकते है |
तो मालिक की दया का घाट पर जब ऊपर से ज्वार भाटा आता है तो आप इंतजारी में बैठे तो रहो | अरे, खड़े तो रहो कि मालिक की दया आएगी | घाट छोड़ दिया तो आपको क्या दया मिलेगी | अगर बैठते रहोगे और किसी समय आ गई दया उसी बैठते समय तो फ़ौरन खींच ले जाएगी | एक दम प्रकाश में जीवात्मा को खड़ी कर देगी | ऐसे मतलब मंडल पर रचना के दिव्य मंडल पर जब खड़ा करेगी तो होश आ जायगा | जुग जुग का होश आ जायेगा | एक जनम का नहीं अनन्तों जन्मों का ||
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन 1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:26-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि -
1) गुरु की दया पर तुम्हे सुरत शब्द का मार्ग मिला| उसके पूर्व तुम्हें क्या मिला था ? बहुत लोग अंतर में सफ़ेद रौशनी या शक्ल या बाग देखते थे और अब कुछ ही दिनों से बंद हो गया | क्या दया दया हटा ली गई ? ऐसा नहीं | तुम्हारे मन में कोई विकार आया होगा और संसार की चाहना प्रगट हुई होगी या कर्म बस चक्कर चल गया होगा | उसकी पहिचान यह होगी की आँख के बंद होने से अँधेरा दिखाई दे या चित्त एक जगह न रुके समझ लो हम में खराबी आ गई है |
२) सुरत के कल्याण का मार्ग केवल सुरत शब्द योग है| लोगो को चाहिए कि सुरत शब्द मार्ग अपने जीव कल्याण के वास्ते अवश्य तलाश करे | जब सुरत शब्द मार्ग गुरु द्वारा प्राप्त हो जावे तो जहां तक अपनी कोशिश हो गुरु कृपा लेकर कमाई में लग जाना चाहिए और दोनी आँखों के ऊपर शब्द कि आवाज आती है उसे सुन्ना और ऊपर कि तरफ उलटना चिहिए | अभ्यास को बहुत पक्का सुदृण बनाना चाहिए |
३) संत सतगुरु की कृपा का जो परिचय मिलेगा वह अंतर में, जब आँख खुलेगी और नियम के साथ हर रोज अभ्यास बन आवेगा | गुरु के दिए हुए कृपा का परिचय अवश्य मिलेंगे | अभ्यासी उन परिचय को पाकर प्रीत प्रतीत कर सकेगा की मार्ग सुरत शब्द का सच्चा सही है और दिन प्रतिदिन प्रेम बढ़ता जावेगा |
४) संत सतगुरु मत में सर्वोपरि प्रेम की माहिम है यदि प्रेम बन गया तो सब कुछ हो गया और यदि गुरु से प्रेम न हुआ तो अभ्यास भी न बन सकेगा पर गुरु सदा प्रेम पर जोर देते है | मछली का प्रेम जल से, और पतंगों का प्रेम दीपक से, हिरन क प्रेम नाद से, हाथी का प्रेम स्पर्श से चकोर का प्रेम चन्द्रमा से, कामी का प्रेम स्त्री से , इसी प्रकार सच्चे सेवक का प्रेम गुरु से |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:23-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि -नर नारी बच्चे बच्चियों ! हिन्दू मुसलमान ईसाईयों | मोहम्मद क्यों आये यह मुसलामानों को सोचना है | राम क्यों आये ये हिन्दुओ को सोचना है | ईसा मसीह क्यों आये यह ईसाइयों को सोचना है | तीनो धर्मों के मजहबों की किताबों में पुस्तकों में, क्या लिखा हुआ है ये हर धर्म के लोग हर जाति के लोग जब अपने अपने मानव इंसानी कामो से दूर हो जाते है, मानव धर्म से दूर चले जाते है या जानवर या पशुओ जैसा मनुष्यों इंसानो का काम होने लगता है तो क्या होता है ? उसको बड़े ध्यान से सुने | धर्म की स्थापना, हकीकत को बताने के लिए कोई न कोई आप के सामने हर समय आया | मुसलमानो की किताबो में लिखा है कि जब मुसलमान भाई अपने मजहब ईमान अपनी हकीकत से दूर हो जायेगे तो चौदहवीं सदी के अंत में एक फकीर खुदा का पैगाम लेकर जमीन पर उतरेगा | और सारी इंसान जाति को इंसानियत का पैगाम सुनाएगा | कुरान में क्या लिखा हुआ है यह वह फकीर सबको पैगाम खुदा का सुनाएगा उन किताबो में लिखा हुआ है हजारों वर्ष पहले और ऐसा मालूम होता है कि फकीर हजारों वर्ष पहले कि चीज को देखते हों जैसे अभी दिखाई देती हो | उन्होंने लिखा है कि जब वह फ़क़ीर खुदा का पैगाम इंसानों को सुनाने का काम शुरू करेगा उस समय हिन्दुस्तान कि गांव गांव की सभी सड़के काली हो जाएगी | हजारो वर्ष पहले जब तार कोल का नाम भी किताबों में नहीं था उस समय उस फकीर ने लिखा की गांव गांव की सड़के काली हो जायेगीं | क्या कभी आप को इस तरह हकीकत का पता था ? ईसाइयों की किताबों में लिखा है की मैं उतर कर आऊंगा जमीन पर अभी तो मुझको सूली पर चढ़ा दिया है मैं जा रहा हूँ | बाप के पास और दुबारा फिर आऊंगा तुम लोग इबादत करते रहना और गरीबों की सेवा करते रहना
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - फूलपुर, आजमगढ़ - 1980
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:21-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - भक्ति करना जैसा की लोग समझ रहे हैं इतना आसान नहीं हैं | जैसे स्त्री अपने पति को अपना सब कुछ समर्पण जीवन भर के लिए कर देती हैं | पति की आज्ञानुसार सेवा करती हैं तो पतिब्रता कहलाती हैं और आज्ञा का पालन नहीं करती तो वह कुचालित कहलाती हैं | इसी तरह सेवक यदि स्वामी की पूरी आज्ञा का पालन करता हैं | तो वही सच्चा सेवक हैं नहीं तो सत्संग पाकर और गुरु के निकट पहुंचकर भी वह कपटी भक्त हैं | ऐसा कपटी भक्त सत्संग में ठहर नहीं सकेगा | किसी भी दिन सत्संग छोड़कर अलग हो सकता हैं | अपने मन को काबू में रखता ही नहीं हैं | गुरु पर आरोप लगाता हैं | अपने दोषो को एक भी याद नहीं करता हैं | संतो ने कहा हैं कि जो लोग परमार्थ में करामात के ग्राहक हैं और गुरु के वचनों पर विश्वास नहीं करते हैं वह सत्संग में जरा भी ठहर नहीं सकते | उनका मन सदा सैलानी हैं और चाहता हैं कि तरह तरह कि फितरतें निकालें और हर प्रकार के इंतजाम करे | वह साधन की सीढ़ी से बहुत दूर हैं | मन साधन करना चाहता ही नहीं हैं | जीवन भर पाप कर्म करते हैं | संतमत में कदम रखते ही कहना प्रारम्भ कर दिया की गुरु जल्दी करे | इसी जल्दी में परमार्थ छूट जाता हैं और गुरु जिस बात को कहते हैं उसको उनका विकारी मन सुनता ही नहीं हैं | होश में आओ और गुरु के बचनों को ध्यान देकर सुनो |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन 1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:20-10-2021

गुरु महाराज का सतसंग- "चरन" सिर्फ चाहिए - सन-1958
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि फकीरों के दरबार में जो भी भिखारी बन कर जाता है वह सब कुछ पाता है | फ़क़ीर ऐसी चीजे नहीं देते कि आज दे कल निकल जाये | वह ऐसी चीजे देते है जो कही न मिले , ऐसी चीज लो जो संसार को बाँटी जा सके | गुरु से ऐसी चीज लो कि सारा संसार भी आ जावे तो उसे बाँटते जावो और घटे नहीं | यह गुरु की दया और मेहरबानी का फल है , जो आपको दे रहा हूँ | यह चीज आप को महात्मा की ख़ुशी पर मिलेगी कब मिलेगी इसका ठिकाना नहीं | मुझे यह वस्तु कैसे मिली सुनिए | एक दिन मैं स्वामी जी महाराज के साथ खुरपी लेकर खेतों में गया और घास खोदने लगा तो बोले भाई मैं गृह्स्त हूँ और तुम विरक्त तुम घास मत खोदो लोग क्या कहेंगे ? मैंने उत्तर दिया - महाराज लोगों से मुझे क्या मतलब मैं तो आपकी आज्ञा ही अपने लिए सब कुछ मानता हूँ | स्वामी जी महाराज मुस्कराये और बोले अच्छा यहां घास कर लो | मैं वहीं घास करने लगा | एक दिन खुश हुए और पूछा क्या चाहते हो ? मैंने कहा - कुछ नहीं "चरन" सिर्फ चाहिए ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:19-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - एक बात आपको अच्छी तरह समझा दें | हमारे पास कोई भी आदमी रहना तो होशियारी से रहना | अच्छी तरह सोच समझ लेना | होशियारी से रहो | किसी के पैसे से , किसी दगाबाजी से, किसी बेईमानी से या बुरे शब्दों से हमारे पास रहकर व्यवहार मत करो | होशियारी से रहो| अगर मेरे पास रह कर दगा किया तो फिर तुम समझ लो | बेईमानी की, झूठ बोले तुम, मतलब कि किसी को चकमा दे दिया तो यह ठीक नहीं है क्योकि महात्मा अपने निशाने पर रहते है | फिर वे किसी को क्षमा नहीं करते | क्षमा का स्थान है उसमे तो खूब क्षमा करेंगे | तुम्हारे पापों को धोयेंगे | लेकिन अगर तुम जानबूझकर गलती करोगे, जानबूझ करके अपराध करोगे तो फिर माफ़ी नहीं है | अनजान में माफ़ी अपने अपने बुरे कर्मों कि मांगो तो क्षमा हो जाएगी | उस पर भी फिर करोगे , फिर करोगे तो फिर मुश्किल हो जायेगा |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन 1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:18-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - मंदिरों में, मस्जिदों और गिरजाघरों में जो बाजे बजते है सभी मजहबों में और धर्मों के स्थानों पर यह चिन्ह रक्खे गए हैं | बहुत से साधकों को आवाज सुनाई दी, भाषा समझ में आयी पर दर्शन नहीं हुए | पूछा जाय कि रूप क्या है तो बता नहीं सकते | कुछ साधकों को एक एक झलक दिखाई दी फिर नहीं दिखाई दिया जो स्थान से बाजे आते है, साधक जितना निर्मल, साफ होगा वह आवाज उतनी ही साफ सुनाई देगी तभी खिचाव होगा | पहले तो मालूम होता है कि एक स्वर में आवाज है पर बाद में आवाजे अलग अलग सुनाई देती है | जब तक बाजे स्पष्ट सुनाई न दे तब तक उसको ध्यान से सुनना चाहिए और परखना चाहिए कि कौन कौन से बाजे हैं ||
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - 18-02-1989
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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Date:16-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - समय सबसे बड़ा पहलवान है | उसकी प्रतीक्षा सब ने की हमें और तुम्हें भी इंतिजार करना पड़ेगा | तुम्हारे जल्दी करने से काम न होगा | जैसे कोई बच्चा आज पैदा हो और तुम आज ही चाहो की वह पैदा होते ही दफ्तर में जा कर काम करने लगे तो ऐसा नहीं हो सकता | ५ साल तो वह खेल कूद में गुजारेगा फिर स्कूल भेजा जायेगा वहां पढ़े लिखे तब कहीं जाकर इस लायक बनेगा कि दफ्तर में जाकर काम करे | वह भी ठीक काम करेगा कि नहीं कोई ठीक नहीं | तो समय की प्रतीक्षा सब को करनी पड़ी और जो काम समय से होता है वही अच्छा होता है | लेकिन जब इतनी भीड़ सड़कों पर आकर मिले तो समझ लो कि अब परिवर्तन बहुत नजदीक है | और महात्मा आये उन्होंने जो पेड़ लगाया उसका फल न उन्होंने खाया न उनके समय के लोगों ने खाया | मैं ऐसा प्रयत्न कर रहा हूँ कि जो पेड़ मैं लगा रहा हूँ उसका फल मैं भी खाऊँ और तुम सब लोग खाओ ||
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन-1982
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:05-10-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए बताया कि - एक बात आपको अच्छी तरह समझा दें | हमारे पास कोई भी आदमी रहना तो होशियारी से रहना | अच्छी तरह सोच समझ लेना | होशियारी से रहो | किसी के पैसे से , किसी दगाबाजी से, किसी बेईमानी से या बुरे शब्दों से हमारे पास रहकर व्यवहार मत करो | होशियारी से रहो| अगर मेरे पास रह कर दगा किया तो फिर तुम समझ लो | बेईमानी की, झूठ बोले तुम, मतलब कि किसी को चकमा दे दिया तो यह ठीक नहीं है क्योकि महात्मा अपने निशाने पर रहते है | फिर वे किसी को क्षमा नहीं करते | क्षमा का स्थान है उसमे तो खूब क्षमा करेंगे | तुम्हारे पापों को धोयेंगे | लेकिन अगर तुम जानबूझकर गलती करोगे, जानबूझ करके अपराध करोगे तो फिर माफ़ी नहीं है | अनजान में माफ़ी अपने अपने बुरे कर्मों कि मांगो तो क्षमा हो जाएगी | उस पर भी फिर करोगे , फिर करोगे तो फिर मुश्किल हो जायेगा |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सन 1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:02-10-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में समझाया की भजन करने में माफ़ी हो जाय तो यह तो नहीं है कि श्राप दे रहा हूँ | अरे भाई, भजन करने के लिए ही तो कह रहा हूँ और भजन से पर्दा अगर फट जाय, हट जाय तो अच्छी बात है | तो भजन करने में, भजन करोगे तो सहयोग अवश्य मिलेगा | नहीं भजन करोगे तो कुछ नहीं | संसारियों से भी निचे चले गए और फिर माफ़ी नहीं होगी | और ऐसी जगह डाल कर ऐसे पेरे जाओगे कि वहां चिल्लाओगे कोई बचाने वाला नहीं है |
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - 25 जुलाई 1990
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:01-10-2021

ज्वार भाटा की तरह से महापुरुष के पास से दया आती है :
सतलोक से एक धारा ज्वार भाटे की चलती है | जो भवरगुफा में , जो दसवें द्वार में, जो त्रिकुटी और सहस दल कमल में है | जो आँखों के सामने तीसरे तिल जहां की चरण कमल है वहां तक वह बराबर आती जाती रहती है | वैसे तो साधारण जो रोज चलता रहता है वह तो बराबर ही चलता रहता है | उसमे तो कोई परिवर्तन होता नहीं है | लेकिन विशेष सतपुरुष के सतलोक से जो दया आती रहती है उसी का इन्तजार लोगों को करना पड़ता है और जो लोग ऐसे भक्ति भाव में जो हमेशा बैठे रहते है और घाट पर बराबर हाजिरी अंदर में देते रहते है वह एक ही दफे उसी ज्वार भाटे से एकदम से निकल कर चले जाते है | लोगो को यह नहीं समझ में आता है की वह क्या हो गया | कोई चमत्कार हो गया कोई करिश्मा हो गया की उसके ऊपर विशेष कोई दया हो गई वह लेकिन यह सब चीजें धीरे धीरे सतसंग में मालूम होती रहती हैं|
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज - सत्संग 1990
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:20-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
सत्संग का महत्तव :
साधको तुमको गुरु का सत्संग जरूर से जरूर करना होगा, जितना भी वक्त मिले , क्योकि सत्संग से यह लाभ होगा की जब तुम साधना में बैठोगे और सुरत अपने निशाने पर आवेगी और नाम के साथ लग कर ऊपर चढ़ना प्रारम्भ करेगी उस वक्त विकारी अंग सुरत को गिरा न सकेगें | जब विकारी अंगों का असर सुरत के ऊपर से दूर हो और नाम नशा सुरत लक्ष्य पर जमा देगा ताकि सुरत की चाल आगे को होगी |
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:19-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
साधक को हिदायत : भाग-2 :
साधन करते वक्त सुरत ने अपने सही निशाने के बिंदु को पकड़ लिया था जब-जब सुरत बिंदु पर ठहरती जावेगी उसी तरह सुरत का प्रकाश बढ़ता जावेगा और सुरत पुष्ट प्रौढ़ होती जावेगी | प्रकाश के पाने से सुरत में ताकत भी आवेगी और एक नशा भी मस्ती का सुरत पर चढ़ेगी | जब सुरत पर प्रकाश का नशा चढ़ना शुरू होता है उसी वक्त से घाट के काम, क्रोध, लोग , मोह और अहंकार कमजोर होने लगते है | जब सुरत बिंदु पर टिकी रही तो कुछ दिन के बाद सुरत तीसरे तिल पर पहुँचती है जहां पर आत्म ज्ञान होता है | जब सुरत को अपना ज्ञान हो गया उसी वक्त प्रलोभन की शक्ति आ जाती है जो कि इस बात का ज्ञान देती है कि तुम राजपाठ धन , जन विद्या मान आदि जो चाहो ले सकते हो | इन शक्तियों का आविष्कार इसलिए होता है कि साधक साधन के द्वारा अपनी सुरत को आगे न ले जा सके |
सुरत की डोरी निरंजन भगवान् के पास मन की डोरी माया के हाथ बुद्धि की डोरी विष्णु के हाथ, चित्त की डोरी ब्रह्मा के हाथ है तथा अहंकार की डोरी शिव के हाथ है | अपने अपने गुण के देवता जिसकी डोरी पकड़े हुए है जब सुरत ऊपर चढ़ना चाहती है उसको उभार देते है ताकि सुरत ऊपर न चढ़ सके और जो सच्चा तत्व नाम है उसको न पा सके | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:17-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
साधक को हिदायत :
सुरत आँखों के पीछे भाग में बैठी है | अपनी दोनों आँखे गुरु की युक्ति अनुसार बंद करो , और अंतर के नूर प्रकाश को एकटक होकर देखो तो तुम्हे प्रकाशवान बिन्दु मिलेगा तुम अपनी सुरत को गुरु के युक्ति अनुसार उस प्रकाश बिंदु पर टिका दो | जब सुरत उस प्रकाश बिंदु पर ठहरने लगे और सुरत तुम्हारी साफ़ होती हुई नजर पड़ने लगे उस वक्त तुम सावधानी के साथ रहो | ऐसी नाजुक पवित्र अवस्था में साधक को समझ कर रहने की विशेष जरुरत है | ज्यों ज्यों प्रकाश उसी बिंदु पर बढ़ता जावे और प्रकाश सा नजर आने लगे उस वक्त साधक आकाश की ओर देखने लगते है और आकाश देखते ही जो आगे ले जाने वाला बिंदु है उसका आधार छूट जाता है और साधक अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है |

साधकों तुम्हे गुरु का सत्संग अति होशियारी अर्थात विवेक से करना होगा ताकि साधन करते वक्त जो तुम्हारी त्रुटियाँ होती रहती है वह साधन करते वक्त न हों | जब साधक ने साधना करते वक्त प्रकाशवान बिंदु का आधार छोड़ दिया और खुले आकाश में केवल प्रकाश देखता है उस वक्त साधक सोचता है की आगे कुछ नहीं या कोई रचना नहीं है | साधक को साधन करने की प्रक्रिया भली भाति गुरु से समझते रहना चाहिए ताकि साधना करते वक्त गलतियां न हो |
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:16-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
सुख और उसकी प्राप्ति :
1) साधक को समझना होगा की सुख अपने कर्म अनुसार ही मिलेगा | गुरु तो अपनी कमाई में से दान करता ही रहता है | पर हम उसका दान लेने के हकदार हों और उस दान का पूरा लाभ उठा सकें, तब गुरु अपनी कमाई में से देता है पर दिया हुआ दान चंद ही दिन रहता है | इस वास्ते साधकों कमाई करो |
2) लोक और परलोक की कमाई करनी होगी तभी लाभ होता है | संत जन अपनी कमाई में से कुछ देते हैं | पापी आदमी को भी विश्वास दिला देते हैं कि भगवान् कि सत्यता है और अंतर में अनुभव कराते है |
3) पर संत सतगुरु के दिय हुए परमार्थी धन में ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए | जो रास्ता गुरु ने दिया है और कमाई के वास्ते आदेश दिया है उसकी कमाई करना चाहिए तब साधक गुरु का दिया हुआ परमार्थी धन रख सकेगा नहीं तो उतना ही अनुभव करके रह जावेगा और जब मलीन पर्दा किसी समय आवेगा उस वक्त साधक गुरु की प्रीति और परतीत से अविश्श्वास लाकर गिर जावेगा और दूसरों से शिकायत करेगा कि मुझे कुछ प्राप्त नहीं हुआ | मालूम होता है कि गुरु पूरा मुझे नहीं मिला |
4) साधक इस अवस्था में किसी दूसरे महात्मा के पास पहुंचेगा और उसी धन को पाने कि भीख मांगेगा | न साधक ने पहिले गुरु से पाया और न दूसरे से पा सकेगा |
5) परमात्मा के रस्ते का अभाव साधक पर आ गया तो साधक परमात्मा कि ओर अग्रसर नहीं हो सकता है |
6) यदि साधक कपटी है और गुरु के पास पहुंचकर कपट करता है तो यह सत्य है कि सारी उमर गुरु के पास रहकर भी कुछ नहीं पा सकता है |
7) गुरु जानकार शक्ति है | क्षण-क्षण पर विश्वास लाकर भी साधक गुरु के प्रति अविश्वास कि स्वास खींचता रहे तो साधक का कल्याण नहीं होगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:14-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
सुरत का अस्तित्व :
1) भूले लोगों को समझाया जाता है कि तुम संत सतगुरु कि तलाश करो | जो गुरु उस भगवन के पास तक पंहुचा हुआ हो वह तुम्हे जरूर उस प्रभु के पास पहुंचा देग1) साधक सुरत अपने अस्तित्व को भूल चुकी है इसे अपने सत्ता की खबर नहीं है | ताकत का जौहर सुरत के अंदर मौजूद है | पर जब तक सतगुरु की प्राप्ति नहीं होगी तब तक सुरत की सूक्षम शक्ति नहीं जागेगी सुरत प्रकाश का भंडार है | पर सुरत क्या करे ? सुरत के प्रकाश से मन रचना करता है और इन्द्रियों के स्वभाव को खींच लेते हैं | भोग अपनी ओर इन्द्रियों को खींच लेते है | इस तरह से सुरत अपने प्रकाश को जड़ पदार्थों के साथ मिला चुकी है |
2) जब सतगुरु पावे और उनके उपदेश को ग्रहण करे तब कहीं यह विचार आवे कि मैं मन तन और भोगों के साथ फंसा हूँ | और कोई सामान हमारे काम नहीं आवेगा | आखिर हम इस संसार से निराश और खाली जाएंगे |
गुरु से मार्ग प्राप्ति:
1) जब गुरु का शब्द सुने तो साधक की बुद्धि अपना विचार त्याग कर गुरु विचार के साथ होकर मजबूत हो जाती है तब बुद्धि में विवेक आता है बुद्धि सत्य असत्य का निरूपण करती है | उस वक्त आत्मवेदना प्रारम्भ हो जाती है | तड़प और विवेक के साथ अपना मंतव्य देता है तब साधक उस साधन की प्रक्रिया में लग जाता है |
2) साधक आराम चाहता है और चाहता है की गुरु हर प्रकार से संसार का सामान दे और हमारी तकलीफें रफा कर दे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:13-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
गुरु की जरुरत :
भूले लोगों को समझाया जाता है कि तुम संत सतगुरु कि तलाश करो | जो गुरु उस भगवन के पास तक पंहुचा हुआ हो वह तुम्हे जरूर उस प्रभु के पास पहुंचा देगा |
जिज्ञासा :
1) खोज करने से लोगों को सतगुरु मिल सकता है | बगैर खोज के तो तुम्हे संसार की चीज बाजार में नहीं मिलती है | अपनी जरुरत की चीज के वास्ते दस दुकानदारों से पूछना होगा और उसके लिए हमे समय खर्च करना होता है |
2) शरीर से बहुत मेहनत करनी पड़ती है तब वह दूकान मिलती है और उसके पास पहुंचकर दीन अवस्था में मांगते हैं | दुकानदार तुम्हारी जिज्ञासा को देखता है और समझता है कि हमारे मांगे पैसा देगा या नहीं | जब समझ लेता है कि रुपया देगा उस वक्त अपनी चीज दिखाता है और तुम ख़ुशी के साथ अपने घर लाकर अपने घर में सजा कर रखते हो |
3) तुमने साधक बनकर कितनी तलाश की गुरु की और उसके पास कितने ख्वाहिशमंद रहे |
ओंछी समझ :
1) साधक की गलतियों का पहाड़ हो और अपनी गलतियां दूसरों पर लादता हो तो वह साधक, साधक नहीं है, नादान है | उसकी समझ ओंछी है |
2) साधक अगर अच्छी समझ लेकर परमार्थ में निकलेगा तब तो महात्मा की तलाश कर सकता है वरना समझ का न होना नादानी है |
3) साधक गुरु के पास आता है तो भगवान् को नहीं मांगता है | वह तो संसारी वस्तुओ को मांगता है , इसीलिए उसे परमार्थी नहीं समझना चाहिए | उसको संसारी कहते है | पर यदि सत्संग में पड़ा रहा तो शायद समझ में आ जावे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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Date:10-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
शब्द की महिमा :
1) शब्द हर भाव से सफाई और सच्चाई चाहता है |
2) शब्द को बनावट पसंद नहीं है | जिसमे बनावट आई की शब्द सुनाई देगा ही नहीं |
3) शब्द की ताकत तमाम ही ब्रह्माण्ड को अपने अधीन होकर चला रही है |
4) शब्द का ही विस्तार सारे जहां में है | जिस वक्त शब्द खींच जावेगा रचना का तमाम खात्मा हो जावेगा |
सुरत का उतार और फ़साव :
1) सुरत इसी शब्द के द्वारा उतरती हुई सत्तलोक से आई है और रास्ते में इसने अपना आपा धारण किया है | अब आँखों के पीछे आकर जड़ मिलौनी में फसी है और आँखों के ऊपर भाग में अंधकार आ गया है |
2) जब सुरत को अंतर में कुछ दिखाई नहीं देता है | इसमें अज्ञान है और अपने सच्चे सत्तलोक के रास्ते को भूल गई |
मार्ग पाने की कठिनाई :
1) यदि कोई मनुष्य दुनिया के रास्ते को भूल जाता है तो उस वक्त उसे हजारों आदमियों से पूछना पड़ता है तब जाकर सही रास्ता मिलता है |
2) मालिक से मिलने का रास्ता तो ऐसा है कि जिससे पूछो वह भी नहीं जानता है | बताओ तुम्हे कैसे परमात्मा का रास्ता मिले और कैसे प्रभु के पास पहुंचोगे ?
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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Date:09-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
साधक के गिरने का मार्ग :
1) साधक को आपस में बहुत होशियारी के साथ बरतना जरुरी होगा | साधन करते समय हर भावों की ओर देखना होगा कारण यह की साधक कहीं गिरने का रास्ता तो तैयार नहीं करता है ?
2) साधक जब कभी गिरता है तो अपनी कमी के आधार पर गिर जाता है तथा रास्ता छोड़कर गिरने के और रास्ते में चला जाता है , और सदा गिरता रहता है | फिर साधक का उत्थान नहीं होता है |
3) साधको को हर वक्त होशियार रहना जरूर होगा | कारण जब तक साधक गुरु की ओर देखता है तब तक गिरने का प्रश्न नहीं और जब साधकों की ओर देखना शुरू करता है तो जरूर गिरेगा |
4) कारण साधकों में कमी है | साधक इन कमियों को दूर करने का प्रयत्न करता है | दुसरे साधक जब उस कमी को देखते है तो एक तरह का अभाव उसके प्रति आता है , और जब वह साधक दूसरे साधक की कमी जाहिर करेगा तो दूसरे साधक को गुस्सा आवेगा इस अवस्था में आप में राग द्वेष पैदा होगा |
5) गुरु के शब्द विसरने पर ही आपस में द्वेष फ़ैल जाता है | साधकों तुम सब गुरु की ओर देखों और गुरु के शब्दों को याद करों |
बचने का उपाय |
सुरत शब्द की कमाई चाहते हो तो आपस के राग द्वेष को दूर करके सुरत को शब्द के साथ जोड़ो शब्द चेतन है वह तुम्हारी कमी को जान रही है | शब्द जभी तुम पर विश्वास करेगा जब तुम सच्चे होकर कमाई में लगोगे | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:07-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
जिज्ञासा नहीं-पार्ट 2:
1) साधक का शरीर हमेशा अकुलाता रहता है | जब तक खून में अकुलाहट है तब तक साधक साधन नहीं कर पायेगा | साधक को चाहिए की खून को सूखा दे और फिर से खून पैदा करे | इसलिए गिजा शुद्ध हो और तामसी भोजन से सदा बचना चाहिए |
2) साधक को ऐसी हालत जो ऊपर बयान की है आएगी | पर गुरु चरणों का आशिक साधक रहेगा तो विघ्न नहीं सतावेंगे |
3) जब साधक में समाधान आ जावे उस समय यह करना चाहिए की जब गुरु के बताये साधन में बैठे उस वक्त अपने शरीर को भुलाने की कोशिश करना चाहिए |
4) ध्यान की प्रक्रिया तभी सिद्ध होगी जब साधक सब वासनाओ से उपराम होगा | वैसे तो साधन में कुछ न कुछ प्राप्त जरूर होगा परन्तु एक रस नहीं रहेगा |
5) उसका कारण अपनी स्थिरता पर निर्भर है | जैसे जैसे साधक अपने भाव के अनुसार आँखों के पीछे भाग पर स्थिर होगा वैसे ही अपने को टिकता जावेगा और अंतर का रस उतरना शुरू होगा | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:06-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
जिज्ञासा नहीं:
1) मालूम होता है की साधक में प्रेम के मिलने की खोज पैदा नहीं हुई इसी कारन महात्मा के पास जीव आये और खाली रह गए |
2) क्या वह साधक बनेगे जिनके अंदर संसारी चाहे भरी पड़ी है और उन्ही चाहों को पूरा करने हेतु वे महात्मा के पास वर्षों तक पड़े रहते है और जब चाहें पूरी नहीं हुई तो अपना रास्ता बंद करके चले जाते है | यदि सत्संग में पड़े रहते तो दोनों आशा पूरी हो जाती | संसारी चाहे तो कुछ दिन में पूरी हो ही जाती और परमार्थ मुफ्त में मिल जाता |
3) साधक को चाहिए की जब गुरु के पास जावे तो संसारी इक्छा लेकर न जाए | इसी वजह से हम महात्मा को नहीं पहचान पाते है |
4) एक तरह से यह देश साधको के लिए मुफीद है पर यदि अमेरिका जैसा यह देश बना दिया जावे तो लोगो को फुर्सत मिलना मुश्किल है फिर और भी नास्तिक पैदा हो जावेंगे |
5) स्त्री पुरुषों को चाहिए की महात्मा से केवल भगवान् से मिलने का रास्ता मांगें और कोई याचना ही न करे पर संसारी स्वभाव से मजबूर है |
6) जब साधन में बैठते है तो वही इक्क्षा की पूर्ती मांगते है | बतावो साधक को अनुभव हो तो कैसे हो ? ||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:04-08-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
गुरु का पथ अपनाना सरल नहीं:
1) साधक की ताकत नहीं है की अपनी करनी से मुड़ जावे साधक को गुरु का सहारा पूरा लेना होगा वरना हर प्रकार के विघन सतावेंगें | हो सकता है कि साधक गिर जावे | गुरु का सहारा है तो साधक नहीं गिरेगा |
2) साधकों ! गुरु का पथ अपनाना सरल बात नहीं है | तुम्हे जब गुरु अपने होगें उसके पूर्व कुर्बानी करनी होगी | कुर्बानी यह है कि इंद्री दमन करना होगा | मन दमन करना होगा | शरीर सुखाना होगा और गुरु चरणों पर अर्पण करना होगा |
3) जिस साधक को इस तरह की कुर्बानी करना है और अपना तन मन गुरु पर चढ़ाना है वही साधक परमार्थ के काबिल है |
4) कुछ महात्माओ की मिसाल मिली है | साधक महात्मा के पास गए और अपने स्त्री बच्चों को साथ ले गए | कुछ दिन महात्मा की संगत में रहे | सत्संग किया | जब दुनिया की आंधी आयी तो भाग कर अलग हो गए |
5) ऐसे साधक नहीं वह तो निपट धोखेबाज हैं महात्मा को भी धोखा देना चाहते है | आये नर्क को चले गए |
6) ऐसे जीवों को न तो यहाँ सुख है और न बाद मरने के | यहां भी दुखी है और बाद मरने के तो निश्च्य नर्क में जावेंगे |
7) जब साधक यहां संसारी सत्संगियों की झड़प को नहीं सह सकता है और यहां आसक्ति का त्याग नहीं कर सकता है तो क्या यह राज्य त्याग देगा ? असंभव है |
8) यदि साधक मालिक के पास पहुंचना चाहता है तो उसे खुलकर नाचना होगा | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
मो: 9711862774, 8383997870, 7052705166
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:31-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
जाती बिरादरी :
1) जब साधक गुरु के पास गया और सत्संग करना शुरू कर दिया और कुछ समझ परमार्थ की आनी शुरू हुई और संसार नाशवान मालूम पड़ने लगा और कुछ काम संसार का कम किया की उसी वक्त घर वाले कुटुम्बी जाति बिरादरी पहुंचने लगे |
2) अनेक प्रकार के वचन सुनना शुरू किया तुमने जाति छोड़ी, अपने बिरादरी से मुख मोड़ा | तुम्हे अब लज्जा समाज की नहीं है | तुमने बेधरम रास्ता अपना लिया और महात्मा अच्छे नहीं है दूसरे गुरु कर लिया | अब अपनी जाति में तुमने कलंक लगा दिया तुम्हे शर्म आनी चाहिए | छोड़ दो वह रास्ता अनेक दबाव देकर बहुत से परमार्थी स्त्री पुरुषों का रास्ता बिरादरी वाले सच्चे रास्ते छुड़ा देते है और उनको सदा के लिए गुमराह कर देते है |
गुरु का त्याग:
साधक बाहर की परेशानी से गुरु को त्याग देता है और यहां तक देखने में आता है कि उसी गुरु का विरोधी बन कर पूरी मुखालफत करता है यहां तक कि बहुत से लोगों ने महात्माओ के प्रति झूठी गवाहियां भी कचहरियों में दी |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:28-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
बाधक माया :
1) साधक के लिए बड़ी कठिनाई है जब कि चेतन माया अपना खेल दिखाकर अपना हाथ गले में डाल देती है | वहां स्त्रियों का हाथ अति मुलायम है | जिस साधक के गले में स्त्रियों का हाथ हो और चारो तरफ साधक उन्ही स्त्रियों को देखता हो बताओ किसका नशा चढ़ेगा |
2) साधक किसी हालत में माया से छुटकारा नहीं पा सकता है | जब माया ने साधक के मन पर अधिकार जमा लिया और माया ने समझ लिया कि गुरु इनके यहां से उठ गया उसी समय माया अनेक फुरना पैदा करके साधक को वहां से भी गिरा देती है |
साधक की अवस्था :
साधक की कैसी अवस्था होती है जैसे कामी कुत्ता कुवार के महीने में पागल होकर चारो तरफ काम के वशीभूत होकर नाचता है |
गुरु की जरुरत :
1) साधक को गुरु की इसलिए जरुरत है | जब सूरत गुरु कृपा से तीसरा तिल फोड़ेगी उस वक्त शक्तियां साधक के पास गिराने हेतु आवेगी | यदि गुरु समरथ है तो साधक को बचा लेगा नहीं तो साधक अपनी साधना से गिर जावेगा |
2) एक तो साधक बगैर गुरु के नाशवान संसार नहीं छोड़ता है | गुरु ने साधक के साथ बहुत जबरदस्त कृपा की और कुछ समय में आकर संसार से बैराग कराकर साधना में लगाना चाहा तो साधक के लिए अनेक विघन अंदर और बहार है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:27-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
दया के निशान :
1) साधक की सुरत जब तिल फोड़ लेती है और स्वर्ग बैकुंठ धाम या शक्ति लोक की तरफ चढ़ना प्रारम्भ करती है उस समय साधक के गिरने के अनेक साधन बनना शुरू हो जाते है |
2) एक तो साधक को सिद्धि प्राप्त होती है जो कि अनेकों प्रलोभन साधक को देती है | अनेक मन मोहनी सुरते नजर आनी शुरू होती है साधक ने इतना मन मोहन रूप नहीं देखा है |
अंतर की रचना :
1) एक सुन्दर स्त्री यहाँ पर यदि किसी साधक की निगाह में आ जावे तो साधक उसकी ओर बहुत देर तक देखता है और जो विकार पैदा हुआ है देखकर वह जल्दी नहीं जाता है | वैसे ऊपर के लिंग लोक में साधक को स्त्रियां भी मिलती है | उनके रूप बड़े अद्भुद है जिन्हें देखकर साधक उनको छोड़ना नहीं चाहता है
2) साधक कहता है कि मै इनको देखता रहूं और यहीं पर रहूं चाहे गुरु मुझसे छूट जावे पर हम इनको नहीं छोड़ेगे |
3) वहां सुन्दर स्त्रियों के लोक है | गुरु को सर्वदा के लिए साधक त्यागना पसंद करता है परन्तु उनके पास से नहीं हटना चाहता है |
4) दिल सदा चाहता है कि यहां से हटू नहीं | इन्हीं की छवि को देखता रहूं | जब वहां की मनमोहिनी महामाया साधक के मन को खींच लेती है उस वक्त मंडल पर बड़े-बड़े दृश्य नजर आने लगते है जो कि माया के बने होते है |
5) ब्रह्मा विष्णु और शिव को हुक्म होता है कि तुम अपनी कला के द्वारा साधक को हमारी ओर मत आने देना |
6) साधक को साधना में बड़े बड़े डांस (नृत्य ) नजर आते है | कभी कभी ऐसा होता है कि आंखों के सामने स्त्रियां आ जाती है और उनके नाच होने शुरू होते है | साधक ऊपर निचे दाएं बाएं देखता है तो उन्ही मोहनी शक्लों को देखता है और उनके साथ विहार करता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:16-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
दया के निशान :
1) जब साधक का साधन में मन लगे प्रेम आवे विरह सतावे , संसार नाशवान दिखाई दे , गुरु के सिवा और कोई हितकारी नजर न आवे , और शब्द लगातार बगैर मुद्रा लगाए सुनाई दे उस वक्त गुरु की महान दया समझना और जानना चाहिए |
2) ऐसी अवस्था में साधक को और तेजी के साथ साधन करना चाहिए ताकि अंतर में शब्द की धारा जारी हो जावे |
3) मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार कुत्तों की गति में चलता रहा है |
4) जो मनुष्य काम के वशीभूत है वह कामी कुत्ता है उसे हड्डी से मोह रहेगा और हड्डी में रस नहीं होगा |
5) जब साधक गुरु कृपा से तीसरे तिल पर पहुंच जाता है और तिल का बिरह अंग लेकर फोड़ देता है तब साधक की सुरत लिंग देश में पहुंचना शुरू करती है |
6) साधक की सुरत गुरु कृपा से तीसरे तिल पर टिकने लगे उस वक्त ऐसा मालूम होता है कि हमने गुरु से प्रश्न किया और तुरंत उत्तर दे दिया |
7) साधक की सुरत जब तिल फोड़ लेती है और स्वर्ग बैकुंठ धाम या शक्ति लोक की तरफ चढ़ना प्रारम्भ करती है उस समय साधक के गिरने के अनेक साधन बनना शुरू हो जाते है |
8) एक तो साधक को सिद्धि प्राप्त होती है जो कि अनेकों प्रलोभन साधक को देती है | अनेक मन मोहनी सुरते नजर आनी शुरू होती है साधक ने इतना मन मोहन रूप नहीं देखा है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:15-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
साधक के कर्तव्य :
8 ) जब तक इन्द्रिय स्वभावों की कमी नहीं होगी तब तक सुरत जागेगी नहीं |
9) आँख कान जबान नाक इन्द्रिय इनका फसाव भोगों के साथ हैं | यह इन्द्रिय भोगों के साथ लग कर गुलाम बन गई है | मन इंद्री द्वारों पर बैठकर द्वार का पहरेदार बन गया और सुरत मन की खितमतदारी करती है | इसी से लोग संसार में फसे हुए हैं |
10) जब इन्द्रियां यानी, आँख कान नाम जबान इन्द्रिय का भोगों से बैराग हो तब मन इन्द्रिय द्वारों पर बैठकर रस लेना बंद कर देगा और बाद में सुरत को नाम के साथ जुड़ने का मौका मिलेगा |
11) गुरु दयाल मिलें और अपनी कृपा से इन्द्रियों को और मन को सम्झौती देकर मोड़ें तब किसी समय में यह मन मानता है |
12) मन भोगों का दास बना हुआ है | दास कभी नहीं चाहता है कि हम राजमहल के सुख को छोड़ दें उसे गुलामी में आनंद आते है |
13) संत कृपाल होते है | मन को समझा कर अंतर का सुख बक्शते हैं | तब सच्चे स्वाद रस कि खबर पड़ती है |
14) फिर भी मन अपने स्वभाव अनुसार सच्चा परख पाकर भी उसे ठुकरा देता है | मन अपनी आदत से मजबूर है |
15) लोग शिकायत करते है कि हमे अंतर में शब्द और प्रकाश मिलता था और अब क्या हो गया जो कि शब्द बंद हो गया |
16) साधको को समझाया जाता है कि हर स्वांस के साथ कर्मों का खजाना चल रहा है | साधन में जब तरक्की होती है उस वक्त स्वांस के साथ मलीन पर्दा नहीं है इसलिए ध्वनि सुनाई देती है अथवा प्रकाश नजर आता है |
17) जिन जिन स्वांसों के साथ पाप किय है जब वह उनके साथ हो जाता है तब साधक शिकायत करता है कि अब गुरु दया नहीं हो रही है |
18) साधक को समझाया जाता है कि गुरु दया का वेग हर वक्त जारी है | उसने अपनी सकल्प शक्ति दी है उसी इक्क्षा शक्ति से साधक कि तरक्की होती है |
19) साधन में लगे रहना चाहिए | स्वांस के साथ वाले कर्म कट जायेंगे और बाद में शब्द सुनाई देगा और प्रकाश भी ज्यादा दिखाई देगा और गुरु की कृपा रही तो अब से आगे बहुत ज्यादा तरक्की होगी |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:14-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
हमारे कर्त्तव्य :
1) तुम यह कोशिश करो कि परमात्मा के साथ जुड़ जाओ | यदि तुम्हे रास्ता नहीं मिल रहा है तो तुम गुरु के पास पहुचों | वह तुम्हे परमात्मा के साथ जुड़ने का भेद देगा |
2) गुरु वही शक्ति है जो परमात्मा के साथ जुडी हुई है | बाहर के आँखों से हम मनुष्य गुरु देखते है |
3) सत्य तो यह है कि जो आत्मा परमात्मा कि सत्ता के साथ जुड़कर उसकी तदरूप हो गई वह उस परमात्मा का रूप है जो कि अपनी सत्यता गुरु में प्रकट करता है अर्थात अपना बोध कराता है |
4) जीवन के लक्ष्य का निशाना मुर्गाबी जानती है पतंगा अपने लक्ष्य को समझता है | हंस अपने को समझता है पक्षियों कि यह हालत है जी कि अपने वसूल को समझ रहे हैं पर अफ़सोस है कि हम मनुष्य नहीं समझ रहे है |
5) स्वार्थ भाव में आकर कर्म करे और अपने विचार से कुछ न समझे यह हमारी भूल है |
साधक के कर्तव्य :
1) हर क्रिया आप को उतनी ही करनी होगी जितना कि हम अपने शरीर के स्वास्थ्य को कायम रख सके |
2) परमार्थ कमाने के साथ साधक को ज्यादा फसाव संसार में नहीं रखना चाहिए |
3) साधक का फसाव ज्यादा संसार में रहा तो जब साधक साधन में बैठेगा उस वक्त उसका मन नहीं लगेगा और अकुलाकर साधन छोड़ देगा |
4) साधन करने वाले में इस बात की बहुत बड़ी कमी रहती है जो दूर नहीं कर पाते है |
5) या तो साधक अपना स्वभाव साधन के वक्त ऐसा डाल ले कि जब साधन में बैठे उस वक्त सब काम छोड़कर साधन में अपना चित, मन, सुरत लगाए रहे |
6) जब तक साधक इस स्वभाव का साधन नहीं करेगा तब तक मन सुरत एकाग्र नहीं होगें |
7) गुरु के साथ साधक का स्वभाव बदल जाता है तब साधक साधन में सफलता प्राप्त कर पाता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:13-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
संसारी लोग :
1) बहुत से लोग गुरु के पास पहुंच जाते है किसी आदमी के जरिये से या उनको दूसरी जगह बैठने या गप्प मारने को न मिली तो चले महात्मा के पास आकर एक प्रश्न कर दिया |
2) यदि उन्हें समझा दिया गया और समझ में भी आ गया पर अपने मूढ़ अज्ञान भाव में उसे ठुकरा कर फिर उसी अनिक्क्षा स्वभाव में बरतने लगे |
3) ऐसे लोग जिज्ञासु नहीं होते है | वह तो अपना समय नष्ट कर चुके हैं दूसरों का समय जाया करते हैं |
4) मैं तो यह कहूंगा कि कीमती वक्त किसी का कोई जाया करता है तो उसे पाप का भी भागी बनना होगा और एक दिन उसके लिए भी आता है जब कि उसे पछताना होगा |
5) यह मत समझो कि किसी को धोखा देता हुँ तो मेरे लिए धोखा नहीं होगा | धोखा तुम्हारे लिए भी अवश्य होगा |
करनी का फल :
1) मनुष्य कि करनी का फल सबके सामने देर अबेर आएगा |
2) यदि हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते है या किसी के साथ बुरा व्यवहार करते है तो इन दोनों का परिणाम हमारे सामने अवश्य आवेगा |
3) परमात्मा हमारे लिए नहीं है पर परमात्मा के लिए हम है | उसे नहीं देखते है पर वह हमको देखता है | हममें वह आँख नहीं हम जो उसे देखे | उसमे वह आँख है जो मुझे देखता है |
4) जो परमात्मा कि सत्ता के साथ जुड़ गए है वह परमात्मा को सब जगह देखते हैं |
5) हम परमात्मा से जुदा हैं इसलिए परमात्मा सब जगह मौजूद नहीं है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:10-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
दुनियां के लोग :
1) दुनियां के लोग लालच के वशीभूत होकर नाच रहे है | उन्हें ज्ञान अज्ञान का पता नहीं है |
2) जड़ वासनाओं से इस चैतन्य शक्ति के अनुभव चाहते है और उसी का दिग्दर्शन चाहते है उन्हें अफ़सोस करना चाहिए |
3) तुम्हारे अंदर ही नाद हो रहे है क्यों नहीं सुनते हो ? रतन जवाहर की खदान तुम्हारे पास है | तुम उससे महरूम हो |
४) गुरु से युक्ति लेकर उन अनमोल जवाहर को प्राप्त करो |
5) जब तुम गुरु के पास जिज्ञासु बन कर पहुंचोगे और अमोलक नाम धन पाने का प्रश्न गुरु से करोगे तो यह सत्य है कि गुरु नाम धन जरूर देगा |
6) तुम्हारी जिज्ञासा गुरु को मालूम है वह जनता है कि तुम नाम धन चाहते हो या तुमने अपने स्वभाव के अनुसार प्रश्न किया है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:09-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
रचना रहस्य :
1) कर्म रहस्य आती सूक्ष्म और बहुत अधिक बारीक है | इसे समझना असंभव है | हाँ महा पुरुषों की यदि कृपा रही तो समझ सकता है |
2) कर्मों के बस होकर जीव अनादि काल से नट की तरह नाच रहा है |
कर्म और अकर्म:
1) कर्म वासनाओं के आधार पर होते है | जैसी जिसकी वासनाएं वैसा ही कर्म अपनी इन्द्रिय द्वारा करेगा और फिर उसका भोक्ता बनेगा |
2) अकर्म आँखों के ऊपर है | यदि शरीर कर्म से छुटकारा पाना चाहते हो तो गुरु के पास पहुंच कर आँखों के ऊपर जो रास्ता सुरत के जगाने का है , जहां पर सुरत को होश दिलाया जाता है , उस अवस्था में पहुंच कर कर्म कट जाते है और सुरत अकर्म गति प्राप्त कर लेती है |
3) ऐसी अकर्म गति बगैर महान आत्माओं के प्राप्त नहीं होती है |
4) शरीर कर्म का बंधन सदा से चला आता है और हम इतने ज्यादा अभ्यस्त शरीर मोह के हो गए है कि इसे छोड़ना भी पसंद नहीं करते है | मुझे तो इसका बहुत दुःख है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:07-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
चेतावनी :
1) सत्संगियों, यह दुनिया है इसे अपने कर्म अनुसार इन्ही भोग योनियों में रहना है | उन्ही नीच योनियों में जाने का कर्म करते हैं | अभी कहने से मान नहीं रहे हैं आगे उन्हें पछताना होगा |
2) साधन करने वाले प्रेमी जनों को आदेश दिया जाता है कि सदा सुरत के जगाने वाले साधन में लगे रहे और दुनियां की करवाई कम कर दें ताकि ज्यादा फ़साव न होने पावे |
3) अपना अमूल्य वक्त साधन में लगाकर शब्द मार्ग के साधन में लगे रहो जीवन के अंत समय तक तुम अपना सच्चा मित्र शब्द को पकड़ लो |
4) जीव अपनी सफलता से अपने आपको भूल चुका है जब तक इसे गुरु सहारा न देगा तब तक जागना नहीं हो सकता है |
5) अपने कर्म पर विश्वास नहीं करना चाहिए | कारण भी हो सकता है कि हम कर्म अपनी भूल से बुरे करते हो और हमारी सुरत बजाय पवित्र होने के गन्दी होती चली जाती है |
6) गुरु हिदायत से प्रेमी को कर्म करना चाहिए | गुरु समझाता है कि किस भाव से जीव कर्म करेगा तो इसका यहां फसना यानी कर्म में बंधन नहीं होगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:02-07-2021

गुरु महाराज ने - परमार्थी बचन संग्रह में बताया:
गुरु की महिमा :
1) गुरु में एक चैतन्य शक्ति अग्नि के समान होती है | गुरु की आँखों से चैतन्यता की धारे निकलती रहती है जो कि तलवार भी मुकाबला नहीं कर सकती है | उन्ही आँखों के तेज प्रकाश से सेवक के ऊपर अपनी निगाह डालकर उसकी सुरत को साफ़ करते है |
2) गुरु की दया के दो स्थान है एक तो उनकी आँखे दूसरा उनके चरण | चरणों के स्पर्श से अभिमान का त्याग होता है और सेवक के अंदर यह भाव पैदा होता है कि गुरु की आँखों के सामने ठहर कर उनकी दया ले सके |
3) गुरु के पास पहुंचकर भी कुछ क़ानून उनकी दया के होते हैं जिनके द्वारा दया प्राप्त की जाती है |
4) यदि सेवक ने गुरु के नियमों का पालन भली भाँति कर लिया तो यह सत्य है दया सेवक अवश्य प्राप्त कर लेगा |
5) सेवक को गुरु के पास पहुंचकर सदा चुस्त चालाक रहना चाहिए सेवक जरा भी गुरु के पास रहकर ग़ाफ़िली करता है तो यह सत्य है कि गुरु की दया से खाली रहेगा |
6) सत्संगी जनों को आदेश है कि जहां तक बने बचनों का पालन करे |
7) सत्संगी की हालतें कभी कभी नाजुक गुजरने लगती है | ऐसी नाजुक परिस्थिति में सेवक घबरा जाता है और परमार्थ में कमी शुरू हो जाती है |
8 ) यह जरूर है कि कर्म अनुसार गुरु कुछ हालतों को पैदा इसलिए कर रहा है कि उसके कर्म कट जावें |
9) पर सत्संगी जनों को को यह सुनाया जाता है कि तुमने इतने दिन जो सत्संग सुना है उसका तुम्हे क्या असर हुआ और तुमने परमार्थ के रास्ते में क्या करनी की |
10 ) कभी कभी सतसंगीजनों की परीक्षा संसारियों के द्वारा करायी जाती है और उन्ही के द्वारा उन्ही के द्वारा कर्म काटने का प्रबंध किया जाता है |
11) सत्संगी जनों को तभी समझ में आ सकता है जब कि अपने कर्म पर विचार किया जायेगा |
12) गुरु कि महानता सदा से रही है और रहेगी | गुरु ने सत्संगी जनों को नेक पाक और पवित्र बनाया है और जो उनकी शरण में आवेगा उन्हें भी बनाता रहेगा |
13) गुरु कभी नहीं चाहता कि सत्संगी जनों को कोई कष्ट हो |
14 ) गुरु जैसा पवित्र है उसी तरह पवित्र सत्संगी जनों को करना चाहता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:01-07-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने परमार्थी बचन संग्रह में बताया - साधक बिघन निरूपण :
आकाश मिलने पर :
1) कभी कभी साधक के सामने आकाश सा मालूम होता है | और फिर ऐसा मालूम होता है जैसे की धुवां होता है | धुएं के वक्त साधक को कुछ दिखाई नहीं देता है |
2) साधक को चाहिए की अपनी दृष्टि उसी धुएं के सामने रक्खे | कुछ देर बाद धुएं जैसा आकाश साफ होगा और निर्मल आकाश नजर आवेगा |
3) साधक को उसी निर्मल आकाश को देखना चाहिए |
4) आकाश में जब साधक देखेगा तो उसे एक अद्भुद आकाश बंध हुआ नजर आवेगा इसके देखने से साधक को सरूर मालूम होता है |
आत्म सुख ::
1) ऐसा साधक को प्रतीत होता है जैसे कि क्लोरोफार्म का नशा होता है | इसी तरह सूरत में एक नशा प्रारम्भ होता है |
2) यह वही नशा है जिसे गोस्वामी जी ने आत्मानंद कहा है | क्या कहूं आत्मसुख की महिमा परापत सोइ जाना |
3) साधक भी इस आत्म सुख को पा सकता है |
4) साधक बगैर गुरु की कृपा के आत्म सुख प्राप्त नहीं कर सकता है |
5) इसी आत्म सुख को पाने के हेतु मनुष्य राजगद्दी पहले से त्याग देता है और उसी आत्म सुख की खोज में लग जाता है |
6) साधक के ऊपर गुरु की बहुत बड़ी कृपा है कि सब सामानों के बीच रहते हुए आत्म सुख प्राप्त हो जाता है |
7) इसी आत्म सुख को चित आनंद स्वरुप कहा है , और इसी को गोस्वामी जी ने जड़ चेतन ग्रंथि करके वर्णन किया है | इसी आत्म सुख को कहा है --
परम प्रकाश रूप दिन रति |
नहीं कुछ चाहिए दिया घृत बाती||
8) साधक जब अपने अंतर में यह परम प्रकाश प्रकट कर लेता है तो बहुत बड़ी ख़ुशी होती है |
9) यही आत्म सुख का वह स्थान है जहां आत्म साक्षात्कार होता है | इसी को संतों ने तीसरा तिल बयान किया है | यही प्रथम स्थान सुरत के जगाने का है | इन्ही को चरण कमल कहते है | इन्ही चरणों का ध्यान करने के ध्यान अथवा साक्षात्कार से सुरत को अपने निज रूप का अनुभव होता है | यहीं चरण कवल हैं जिनके प्राप्त करने से सुरत को अलौकिक शक्ति प्राप्त हो जाती है |
10) इन्ही चरण कमलों में ऋद्धियाँ सिद्धियां प्रगट हो जाती है |
11) यही चरण कवल हैं जिनको सीता जी ने पाया था इन्ही चरण कवलों का साक्षात्कार राजा जनक को हुआ था इसी वास्ते राजा जनक बिदेहि कहलाये थे |
12) इन्ही चरण कवल को पाकर सीता जी बिनय करती हैं कि :
सुनों विनय मम बिटप अशोका |
सत्य नाम कर हर मम शोका ||
13) यही चरण हैं जो कि सत्यलोक से आकर चिदाकाश में ठहरे हैं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29-06-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने परमार्थी बचन संग्रह में बताया - साधक बिघन निरूपण :
प्रकाश मिलने पर :
1) साधक को प्रकाश का आभास प्रतीत होने लगे और बार-बार प्रकाश सामने आने लगे तो उस वक्त साधक के विचार बहुत प्रफुल्ल्ता के होने चाहिए | विचारों को दृढ़ करना चाहिए कि इस वक्त गुरु कि दया का श्रोत आरम्भ हो गया है |
2) जब प्रकाश सामने आने लगे तो उसी प्रकाश में अपना बिंदु तलाश करना चाहिए |
बिंदु मिलने पर :
1) जब बिंदु सामने आ जावे तो साधक को अपनी सुरत की दृष्टि जिसको निरत कहते है उसे बिंदु पर टिका देना चाहिए |
2) जब सुरत की दृष्टि उस बिंदु पर टिकना शुरू कर दे तो साधक बहुत सावधानी के साथ उसी बिंदु में यह कोशिश करे कि लय होने लगे |
3) जब सुरत की दृष्टि उस बिंदु में जिसमे प्रकाश निकल रहा है लय होने लगे उसी लय होने में कुछ परदे आने प्रारम्भ होने लगे उसी वक्त साधक सावधानी से एक जगह पर अपनी निगाह रखे |
4) कोशिश साधक इस बात की करे कि जब उस बिंदु में होकर परदे दिखाई दें तो साधक सदा पर्दा के साथ न घूम जावे |
5) यदि साधक दृष्टि टिकते वक्त उन परदों के साथ घूम गया तो सत्य है कि जो विन्दु मिल गया था वह भी गायब हो गया और जो प्रकाश पाया था वह भी गायब हो जावेगा |
6) साधक अपनी साधना ही से निराश होता है |
7) साधक को गुरु शब्द याद न रहने से साधना का जो तरीका है उसमे साधक ने गलती की है इसी कारण साधन नहीं हो पायेगा |
8) जब कभी ऐसी अवस्था साधक की आवे उस वक्त साधक को चाहिए की गुरु से पूछे | गुरु निकट न हो तो अपने से जो अधिक साधना करता हो और जिसका अनुभव हो उससे अपनी गलती का तरीका पूछे फिर साधक निराश नहीं होगा |
9) साधक की दृष्टि उस परदे के सामने टिकने लगे और प्रकाश बढ़ता हुआ नजर आवे तो साधक अपने निगाह को उसी प्रकाश पर रक्खे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:02-06-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने परमार्थी बचन संग्रह में बताया - गुरु मिलने पर :
१) इस प्रकार तुम्हारे अंतर से शक्ति काम करती है जब गुरु तुम्हे मिलते हैं तो अपनी कृपा से जो तुम्हारे ऊपर रबड़ की तरह खोल चढ़ा हुआ है जिसके कारण अपने आप की शक्ति को नहीं पहिचान पाते हैं गुरु रबड़ की खोल को हटाकर यानी कर्म आवरण को हटा कर इस सुरत को नाम पावर के साथ जोड़ देते है |
२) जब सुरत नाम पावर के साथ जुड़ती है उस वक्त अपनी निजी शक्ति का विकाश होना शुरू हो जाता है |
सेवक के कर्त्तव्य :
१) साधक गुरु कृपा का सहारा स्वाभिमान को त्याग कर लेता है क्योकि जब तक स्वाभिमान रहेगा तब तक शक्ति का विकास नहीं हो सकता | कारण जड़ खोल में जड़ता का स्वाभिमान रहता है जिसके कारण सूक्ष्म शक्तियां प्रगट नहीं होती हैं |
२) अपने पन का त्याग करता हुआ जीव काम करता है वह तो साधक बनकर कुछ प्राप्त कर सकता है | पर अपने कर्म का अभिमान है तो साधक कही भी गिर सकता है |
३) सरलता साधक की इसी में है कि जो कर्म करे वह आज्ञा के अनुसार गुरु को अर्पण कर दे उससे साधक का बंधन नहीं |
४) कुछ लोग साधन करते है परन्तु उन्हें तरक्की क्यों नहीं होती ? इसका मुख्य कारण यह होता है कि जब साधन में बैठते है उसी वक्त उन्हें गुरु शब्दों का ध्यान नहीं रहता है |
५) साधन करने वालों के इरादे पहले से होने चाहिए इरादों के अनुसार साधक का साधन चलता है इसी अनुसार गुरु दया करता है|
६) गुरु की दया का दरवाजा साधक जब पा सकता है, जबकि साधक साधन के द्वारा अपनी दोनों आँखों को उलट कर ऊपर की ओर करे और अपनी शूक्ष्म दृष्टि टिक जावे और सुरत प्रकाश पाने लगे तो साधक को समझ लेना चाहिए कि गुरु की कृपा का दरवाजा खुलना प्रारम्भ हो गया है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:01-06-2021

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने परमार्थी बचन संग्रह में बताया - गुरु के चरणों का कौन आशिक होगा ? :
१) गुरु के चरणों का कौन आशिक होगा ? जिसमे यह बातें पाई जावें | एक तो जिसमे मान नहीं है | दूसरा निर्लोभी है | गुरु और संगत में अपना तन लगाता हो | चौथा जिसमे क्रोध न हो | पांचवां संतों साधूओ की जिसके चित्त में कदर हो और इनका आदर करता हो | छठा जिसमे हर वक्त चिंता हो कि नर शरीर भजन के वास्ते पाया है और हर वक्त भजन में लगा रहता हो | ऐसा जीव गुरु के चरणों का आशिक होता है |
२) कौन गुरु के चरणों का आशिक नहीं होता ? जिसमे मान है , जिसमे क्रोध है जो तन सेवा नहीं करता | जिसके चित्त में गुरु के शब्द असर न करते हो | ऐसा जीव गुरु के चरणों का आशिक नहीं हो सकता है |
३) गुरु एक परमात्मा पावर है जिस मनुष्य पोल पर बैठकर परमात्मा के गुण अथवा शक्ति का इज़हार करता है |
४) गुरु देखने में मनुष्य मालुम होते है, परन्तु अन्तर की शक्ति परमात्मा के साथ मिली रहती है | जैसे एक बिजली का तार ऊपर से रबड़ चढ़ी होती है परन्तु अंतर में पूर्ण पावर काम करती है | उसी रबर को हटाकर मनुष्य तार के साथ जोड़ देता है तब उसकी शक्ति का इजहार होता है और देखने में पूर्ण रूप से मालुम होता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग-नाम की कमाई कर लो - सन -1979
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सतसंग सुनाते कहा कि यह कमाई, धीरे से, हित समझकर | जो महात्मा कहते है की बच्चा यह दरवाजा है इस पर अब बैठ जाओ | अपने मन को, बुद्धि को, चित को और उस जीवात्मा के कानों से यह कमाई तुम कर लो नाम की कमाई और नाम के साथ जुड़ कर के चढ़ चलो | बस जैसे ही चढ़ना शुरू हुए वैसे ही एक दम अन्धकार दूर हो जायेगा प्रकाश की दुनियां में जब खड़े हो जाओगे तो ऊंचे स्थान पर खड़े हो तो नीचा सब कुछ दिखाई देगा | इस अन्धकार दुनिया की एक एक चीज सब की सब नजर आती है, कोई चीज छुपने वाली नहीं | ऐसा जलवा , ऐसा रहस्य , ऐसा दृश्य तुम्हारे अंदर उस परम पिता परमात्मा ने जन्म जात भर रक्खा | लेकिन ये संपत्ति, दौलत जभी आपको मिलेगी जब आप महात्मा के पास जायेंगे |
महात्मा किसी भेष का नाम नहीं महात्मा वह है जिसकी आत्मा जगी हो :
महात्मा कोई दाढ़ी बाल का नाम नहीं | कोई यहां गेरू और सफ़ेद कपड़ो का नाम नहीं | संस्कृत और अंग्रेजी का नाम नहीं | महान आत्मा उसी को कहते है जिसकी जीवात्मा जाग गई उसको प्रभु का दर्शन हो गया | रोज प्रभु के पास आते और जाते हैं उसको कहते हैं महात्मा | उसको आप विदेह कह लो या उनको आप ज्ञानी कह लो | उनको आप तत्वदर्शी कह लो, जो आप की तबियत आवे कह लो | लेकिन इंसान वे भी होते हैं जो जीवात्मा को जगा लेते हैं | इंसान आप भी | बहार से न आप में कोई भेद हैं न उनमे कोई भेद हैं | अंदर का उनका खुल गया और आपका बंद हैं | आप भी खोल लीजिये काम बन जायेगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग-नाम की कमाई कर लो - सन -1979
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सतसंग सुनाते कहा कि यह कमाई, धीरे से, हित समझकर | जो महात्मा कहते है की बच्चा यह दरवाजा है इस पर अब बैठ जाओ | अपने मन को, बुद्धि को, चित को और उस जीवात्मा के कानों से यह कमाई तुम कर लो नाम की कमाई और नाम के साथ जुड़ कर के चढ़ चलो | बस जैसे ही चढ़ना शुरू हुए वैसे ही एक दम अन्धकार दूर हो जायेगा प्रकाश की दुनियां में जब खड़े हो जाओगे तो ऊंचे स्थान पर खड़े हो तो नीचा सब कुछ दिखाई देगा | इस अन्धकार दुनिया की एक एक चीज सब की सब नजर आती है, कोई चीज छुपने वाली नहीं | ऐसा जलवा , ऐसा रहस्य , ऐसा दृश्य तुम्हारे अंदर उस परम पिता परमात्मा ने जन्म जात भर रक्खा | लेकिन ये संपत्ति, दौलत जभी आपको मिलेगी जब आप महात्मा के पास जायेंगे |
महात्मा किसी भेष का नाम नहीं महात्मा वह है जिसकी आत्मा जगी हो :
महात्मा कोई दाढ़ी बाल का नाम नहीं | कोई यहां गेरू और सफ़ेद कपड़ो का नाम नहीं | संस्कृत और अंग्रेजी का नाम नहीं | महान आत्मा उसी को कहते है जिसकी जीवात्मा जाग गई उसको प्रभु का दर्शन हो गया | रोज प्रभु के पास आते और जाते हैं उसको कहते हैं महात्मा | उसको आप विदेह कह लो या उनको आप ज्ञानी कह लो | उनको आप तत्वदर्शी कह लो, जो आप की तबियत आवे कह लो | लेकिन इंसान वे भी होते हैं जो जीवात्मा को जगा लेते हैं | इंसान आप भी | बहार से न आप में कोई भेद हैं न उनमे कोई भेद हैं | अंदर का उनका खुल गया और आपका बंद हैं | आप भी खोल लीजिये काम बन जायेगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:27-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग-सन -1979
परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सतसंग सुनाते कहा कि आदेश हुआ की आयोध्या सरजू जी के किनारे आओ और एक आवाज लगाओ | और कई लाख आदमियों को ले आओ सबके सामने सात दिन में उस फरिस्ते , उस देवता को खुश करो | जब वो खुश हो जायेगा, तो यह चिल्लाते हैं चीनी के लिए , गुड़ के लिए चावल के लिए | देवता खुश हो गया तो इतना किसान के खेत में गन्ना पैदा होगा और चावल जो ३० साल में नहीं हुआ |
वहां खींच कर आप के पास अयोध्या, सरयू के किनारे ले आया कई लाख आदमियों को | जंगल में एक ऐसी रौनक बस्ती बनाई जितना की फैज़ाबाद में आदमी नहीं , उससे ज्यादा | और वहां सात दिनों में एक देवता फरिस्ते को प्रसन्न, भोजन कराकर के किया |
जब प्रसन्न हो गए तो उन्होंने अपना हुकुम आदेश दिया कि बालू को उठाओ और जाकर अपने अपने खेतों में डाल दो जाकर | इस खेत की डाली हुई बालू का असर १० मील तक बराबर जायेगा |
लोगो ने किनते कुंतल बालू को उठाया और दौड़ कर अपने अपने प्रांतो में जहां से आये थे वहां बालू को डाल दिया | उन्होंने कहा की उनको बता दो की ये बालू डाली हुई अबकी बार जो फसल आ रही है सन ७७ में बोकर वह इतना गन्ना और चावल होगा जो ३० साल में नहीं हुआ |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:26-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग-दरवाजो पर लिखना होगा -Date: 18-Jun-1979
गुरु महाराज ने सतसंग सुनाते कहा कि सभी प्रेमी भारतीय भेष भूषा अपननाये | २० साल पहले बाजार में शादी विवाह में रिश्तेदारी में लोग पगड़ी लगाकर जाया करते थे | जब से पगड़ी आप ने उतार दिया सब कुछ चला गया | भारतीय भेष भूषा में धर्म था , विज्ञानं था, ईश्वर का अस्तित्वा था, न्याय चरित्र था | इन सबको छिपा आप पगड़ी में बड़े गुण छिपाये हुए थे | एक छोटा सा दृश्य कुछ दिन पहले अभी इकौना (बहराइच ) में देखने को मिला | सभी सत्संगियों के सिर पर गुलाबी पगड़ी थी | देख कर बड़ा अच्छा लगा इसीलिए सभी सतसंगी सवा दो मीटर गुलाबी कपड़े की पगड़ी बना ले और उसको सिर पर धारण करे | यह शुभ सूचक चिन्ह है युग के परिवर्तन का | यह देवताओं का , भगवान का और अपना काम है | हम इधर और उधर दोनों तरफ का काम चाहते है | तुम्हारा लोक भी बन जाय और परलोक भी बने | जो कहा जाय वह करो | वही भक्त होते है वही शहीद होते है , उन्ही का नाम होता है |
कभी मत सोचो की हम गरीब है | शबरी और हनुमान के पास कुछ भी नहीं था | वह भी गरीब थे | पर आज उनका नाम है | जिसके पास भगवान् है उसके पास सब कुछ है | जो हुकुम हो वही आपके लिए हितकारी है, श्रेष्ठ लाभकारी है | मैं शादी विवाह में नहीं आया | बहुत दिनों से इधर आया नहीं था , सोचा उधर हो आऊं | आप लोगो के दर्शन कर लू | पंजाब में लोग कार्यकर्मों की मांग कर रहे थे पर छोड़कर इधर चला आया | सब लोग अपने अपने दरवाजे पर "जयगुरुदेव सतयुग आएगा" लिख दो | हमको आपको यह काम करना है की कोई बाकी न रह जाय जिसको यह न मालूम हो जाय कि सतयुग आयेगा | तुम मेहनत करो, मजदूरी तो वह देगा | यहाँ किसी के पास कुछ नहीं है जो दे सके | मिहनत करिये मजदूरी उसके ऊपर छोड़ दीजिये |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:25-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - एक रुपये की दवा हजार रुपये में - Date: 31-Oct-1996
गुरु महाराज ने सतसंग सुनाते हुए कहा कि आगे बड़ी तकलीफ आ रही है | कोई भगवान् और महात्मा आप को श्राप नहीं देते हैं | महात्मा तो कभी श्राप देते नहीं सवाल ही नहीं भगवान् भी नहीं देता | लेकिन जो जो आपने कर्म किये है उसका तो दंड आप को मिलेगा तो बताइये आपने कोई बचाव के लिए सोचा है तो आगे बहुत तकलीफ आने वाली है ४७ सालो में इतनी तकलीफ नहीं आयी ऐसी बीमारियां आप ने नहीं देखी ऐसे झगड़े नहीं देखे समझ गए ऐसी महगाई नहीं देखी आप ने अर्थ की ऐसी कमी नहीं देखी रुपये पैसे की कमी नहीं देखी ये सब आगे आने वाली है | उसका मैं संकेत दे रहा हूँ की तुम लोग इसको सुनलेव और सुनकर के कोई बचाव का सोचो | समझ लो इस बात को | तुम मेरी बात सुनो एक चंडी देवता है देवता यतो उसे देवता कहो या देवी कहो लेकिन उनको बाहर की चर्म आँखे, ये शरीर की जो दो आँखे बाहर से इससे वो नहीं दिखाई देता | इससे उसको नहीं देख सकते हो | अंदर की जब दिव्य आँख ज्ञान चछु खुल जाये तो उससे वो दिखाई देता है | तो चंडी यानि देवता एक मसाल लेकरके चार बरस से अब दो तीन दिन ज्यादा हो गए चार वर्षों से मैं बोल रहा हूँ , देखो होसियार हो जाओ चंडी एक हाथ में मसाल लेकर और एक हाथ में तलवार लेकर वो विश्व के देशों का दौरा कर रही है | बात को समझ लीजियेगा विश्व के देशों का दौरा कर रही , तो क्या करेगी वह के धन को गायब कर देगी, छुपा देगी | जो नाम होगा वहाँ के धन का यानी रुपये पैसे डॉलर या कुछ और है जो उस देश का वो उस धन को गायब कर देगी | तो वहाँ की जनता चिलायेगी की पैसे धन किधर चला गया, वहाँ के सेठ साहूकार चिलायेंगे की ये किधर गया, तो शासक भी चिलायेंगे की ये बात समझ में नहीं आयी की रुपया पैसा किधर चला गया | ये कमी कैसे हो गई , क्योकिं हमारा देश तो भरपूर था, सम्प्पन था ये कमी कैसे हो गयी | तो उस देश में जाएगी उसको गायब करेगी , उस देश में जाएगी उसको गायब करेगी | जितने विश्व में देश है वहाँ जाकरके गायब कर देगी | भारत में भी आएगी और भारत में भी आकरके यहाँ के धन को गायब कर देगी | तो यहाँ की जितनी जनता है वो चिल्लायेगी की भाई धन किधर गया और सेठ साहूकार चिलायेंगे ये फैक्ट्री कारखाने वाले दूकान वाले भाई धन किधर चला गया तो शासक भी चिल्लायेंगे की भाई धन किधर चला गया ये चिल्लायेंगे बड़े जोर के साथ , तो क्या करेगी वो चंडी की प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के मन को ख़राब कर देगी , पहले तो आपस में मन को ख़राब करेगी और फिर जब मन ख़राब हो जायेगा , तो वो कहेगी राष्ट्रपतियों को की वो उनपर हमला कर दो, वो कहेगा की उसपर हमला करो , वो कहेगा की उसपर हमला करो | तो ये बच्चो जब एक दुसरे मुल्क पर हमला होने लगेगा और उधर चंडी धन गायब कर देगी तो ये बताओ की लड़ाई में ये धन नहीं लगता , ये नहीं लगता , लगेगा | ये किधर से आएगा लड़ाई में तो यानी आकूत धन खर्च होता है | फिर वो चिल्लायेंगे की हमारे देश में आनाज नहीं है यानी जनता भूखो मरने लगी , तो वो भी चिलायेगा की मेरे यहाँ भी आनाज की कमी है और जनता भूखो मरने लगी | तो किसी के पास हो तो मेरे पास आनाज भेज दो | तो जब अनाज नहीं होगा तब क्या होगा कोहराम मचेगा कोहराम पहले सोच लो तुम्हारे हित की बात है मेरा इसमें कुछ नहीं तुम अपना सोचो मैं तो तुमको संकेत दे दूंगा, जो तुमने कर्म किये है उसका यानी आगे कष्ट दुःख तकलीफ भयंकर आने वाली है उसके लिए बचाव करो तो बचाव के लिए सोचना चाहिए , किसी से पूछो तो भाई हमको तो नहीं मालूम लेकिन आप बता दीजिये तो वो बता देगा भई इस तरह से बचाव करो | ये तकलीफ तुमको नहीं मालूम ऐसी बीमारी यानी फैलेगी की तुम बम्बई कलकत्ते दिल्ली जाओ और वहाँ सब डॉक्टरों के यहाँ दवा खोजो तो सब के सब यही जबाब देंगे की न तो इसकी कोई फैक्टरी है न ही इसकी कोई दवा है और एक रुपये की दवा हजार रुपये में | तो ये बच्चा ये कहा से दोगे| यानी क्या बीतेगी तो ये तुम्हारे भले की लिए | तो तुम बुरा काम न करो अच्छा करो | यानी क्या करो सत्य बोलो , दया करो , सेवा करो , आदर करो , पहले समझ लो अच्छा करो , एक दूसरे के काम आयो | अच्छा करो | झूठ मत बोलो , बेईमानी न करो , चोरी मत करो , डकैती मत करो ये बुरा काम है , चलो आज से ही अच्छा करो |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:24-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - शिव रात्रि किसको कहते हैं ? - सन: 1979
गुरु महाराज ने सतसंग सुनाते हुए कहा कि तो आज पूर्ण आहुति का दिन है और शिवरात्रि भी | शिवरात्रि क्या है ? शिव जी ने तीसरी आँख खोली थी | इसको कहते है शिव की रात्रि | रात्रि तो रोज होती है | दिन और रात तो रोज होते है लेकिन शिवरात्रि क्यों कही गयी , कि वह तपस्या कर रहे थे | तपस्या करते करते, ध्यान करते करते जो उनके अंदर मलिनता थी वह रगड़ते रगड़ते धुल गई | साफ हो गई और तीसरा नेत्र ज्ञान चक्षु खुल गया और जब वह प्रकाश , वह रोशनी और लाइट, जब शिव जी को मिली तब वह काम भस्म कर दिया | काम का मतलब कामना | इक्छाये वह सबकी सब भस्म हो गई, भस्म का मतलब ये नहीं कि शिव जी या कोई और शिव नेत्र खोलने पर मर जायेगा | ऐसी कोई बात नहीं | जो सांसारिक कामनाये इच्छाये है वे भस्म हो गई | कोई इच्छा नहीं | यह शिव कि रात्रि भारत वर्ष भर में लोग मनाते है | लेकिन करते क्या है कि नदियों के किनारे स्नान करते है | कई मंदिर में जाकर के बेल पत्र या धतूरे का या कुछ और बेल या गन्ना कुछ चढ़ाते है | इत्यादि |
सही तो बात ये है कि जिस रामेश्वरम में जब उन्होंने जगाया था शिव जी को तो रामेश्वरम में जल चढ़ाया था और रामेश्वरम इतना निर्मल और पवित्र और प्रकाशमान है कि वहां पर न कभी सूरज निकलता है और न डूबता है | ऐसा रामेश्वरम है | वहां उन्होंने पूजा कि थी | और हम लोग शिव की रात्रि को जानते ही नहीं | जब तीसरा नेत्र खुल जाये और हम उस सृस्टि में जब चले जाएँ जिसमे शिव रहते है तो हमने शिव रात्रि को मना ली | ब्रत कर लिया, कितने शाल और कितने महीने गुजर गए शिवरात्रि करते करते लेकिन एक भी शिवरात्रि का भेद भाव अर्थ मालुम नहीं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:22-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - धर्म के जगने पर क्या होगा ? - सन: 1979
गुरु महाराज ने सतसंग सुनाते हुए कहा कि जब शिव जी के धर्म जगाने पर जाग गया तो कोल भीलों ने जो बिलकुल निपढ थे | पढ़े लिखे नहीं थे उनके अंदर प्रवेश हो गया | उनमें एक ज्ञान, एक शक्ति , एक बल और एक साहस जगा उनको अपने गुरु और आचार्य का उनको विश्वास हुआ और इतना बड़ा काम करके दिखा दिया कि रामायण का पन्ना पन्ना आपका साक्षी है | लेकिन आपने फिर भी इसको नहीं समझा और अब आप उसकी कल्पना करते हो |
उसके बाद में जब द्वापर के अंत समय आया तब उस समय पर भी कहा गया कि द्वापर ख़त्म होगा और कलयुग आएगा | उस समय पर कृष्ण भगवान् के आने के पहले क्या - क्या उपद्रव हुए | क्या क्या अहंकारियों ने क्या क्या काम किय | उस समय पर भी बड़ा विज्ञान भारत में उत्त्पन्न हो गया था | और फिर उसके बाद उनके माता पिता को बंद कर दिया और फिर उनकी संतान जेल के अंदर हुई उसके बाद में वह बड़ी हुई और बड़े हिम्मत के साथ में उस संतान ने क्या किया है यह भारत का इतिहास आपके सामने साक्षी है |
इतने बड़े भौतिक साधन पांच पांच मिनट के अंदर विदेशों से आकर कुरुक्षेत्र के मैदान में तबाही मचा दिया | उस समय पर भी कृष्ण भगवान ने बम भोले शंकर जी को जाकर जगाया कि आपकी जरुरत है और धर्म को आप जगाइए |
जब धर्म को जगा लिया शंकर जी ने तो फिर कहा क्या किया जाय कि ग्वाल वालों में प्रवेश कर दो | ग्वाल बालों में , अनपढो में , गाय चराने वालों में , जब यह प्रवेश हो गया तो उस समय पर क्या इतिहास बदला | पलटा खाया यह तो आप उन किताबों में देखे |
वर्तमान में आपके सामने कहा जा रहा कि आप होशियार हो जाओ | हर तरह से हम आपकी भलाई चाहते है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:21-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - बम भोले बाबा ने काशी छोड़ दी और धर्म जगाने गए - सन: 1979
काशी में विश्वनाथ बम भोले शंकर जी ने दो वर्ष के लिए काशी छोड़ दी | और वह किस के लिए छोड़ दी आप के लिए | अब वह उन प्रेमियों के साथ चल दिए उन्हें देखें | जो दो करोड़ से ऊपर नर नारी आय थे उनके साथ प्रदेशों में रवाना हो गए | जब काशी छोड़कर दो वर्ष के लिए बम भोले शंकर जी काशी से भक्तों के साथ रवाना हो गये तो क्यों रवाना हो गए ? जिस धर्म को आपने शहरों से जंगल में भगा दिया उसको कौन जगा सकेगा | वह जब समाधी टूटेगी तो शंकर जी ही उसको जगायेंगे | और जब धर्म जाग जाएगा, शंकर जी और प्रेमी लोग जगायेंगे कि मैं तुम्हे जगाने के लिए आया हूँ और मेरे इस जगाने पर प्रार्थना पर तुम जाग जाओ और शीघ्र ही भारत की भूमि पर पवित्र महान आत्माये सहयोग देंगी तो धर्म खड़ा हो जायेगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:19-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - रोज हाजिरी देने पर भगवान बोलने लगेगा - सन: 1979
गुरु महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि घर का काम ईमानदारी के साथ करे | घर पर आये शाम को बच्चों की सेवा करे | उसके बाद समय बचा तो लेटकर बैठकर रात को सुबह दोपहर को अपनी जीवात्मा को, अपने रूह को, खुदा के दरवाजे पर, भगवान् के द्वार पर, रोज हाजिरी, उपस्थिति दो | १० मिनट १५ मिनट आधा घंटा | जैसे ही आप दो चार पांच दस दिन हाजिरी दी की फ़ौरन खुदा बोलने लगा , भगवान् आवाज देने लगा | तुम इधर आओ | इधर चले आओ | वह पूछेगा कि इधर कैसे आयी ? तो आप खुद ही उसको उत्तर दो कि हमको किसी ने दरवाजा बताया है | फ़ौरन कहोगे | जीवात्मा की रूह की उससे बात होने लगेगी | तुरंत जबाब लो और तुरंत जबाब दो | वह इस तरह मशीन क्या काम करती है | कुछ नहीं |
तो हाजिरी दो ताकि वह आपको कुछ पूछ भी सके और जबाब ले और दे भी सके | और ईमान सब लोगो में होना बहुत ही आवश्यक जरुरी है | जो अपने ईमान को बरकरार , मुश्तकीम , हमेशा के लिए इस जिस्म में रखते है वह बहुत बड़े इंसान हैं , मनुष्य कहलाते है |
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Date:18-05-2021

परम पूज्य स्वामीजी महाराज के द्वारा कराये गए तृतीय साकेत महायज्ञ काशी में उपस्थित - यज्ञशाला में विचित्र पक्षी- सन : 1979
परम पूज्य स्वामीजी महाराज के द्वारा कराये गए तृतीये सतयुग आगमन साकेत महायज्ञ काशी में यज्ञशाला में प्रथम दिन ही जब वेद मंत्रो के बीच यज्ञ की अग्नि प्रकट की जा रही थी उसी समय एक विचित्र पक्षी कहीं से उड़कर मध्य यज्ञ शाला में आये जिसका पूरा रूप तो एक महापुरुष का था और शरीर पक्षी का | स्वामी जी ने भी कहा की उन्होंने ऐसा पक्षी पहले कभी नहीं देखा था | वह पक्षी ११ दिन तक यज्ञ के मंडपों में ही रहा | वह कोई वस्तु खाया न पिया | लोगों ने बराबर प्रयास किया परन्तु उन्होंने कुछ भी ग्रहण नहीं किया | बस यज्ञ की धुप लेते रहे |
यज्ञ समाप्त होने पर जयगुरुदेव बाबा ने एक प्रेमी से संदेशा कहलाया की उन्हें मेरे पास आने को कहो | तो प्रेमी एक डंडा लेकर गया | सन्देश सुनते ही वे डंडे पर बैठ गए और स्वामी जी के पास आ गए | स्वामी जी ने कुछ देर तक उस पक्षी से बात किया और तब स्वामी जी ने कहा की अब मैं और काम करूँगा तो वह छप्पर पर बैठ गए | उस दिन लाखों लोगों ने नजदीक से उन्हें देखा | कुछ ने तो सहलाया भी | मगर खिलने का प्रयत्न विकार गया |
अंतिम दिन स्वामी जी ने कहा की अब महाराज आप जाये हम भी जायेंगे | तो प्रातः काल वह पक्षी पूर्व दिशा की ओर उड़ गए |
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Date:13-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - भगवान चमत्कार और करिश्में सबको दिखता है- दिनाक : 15-03-1984
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने दिनाक १५ मार्च १९८४ को सत्संग सुनते हुए कहा की वास्तव में मालिक की दया हो रही है | पर जब हम दया के घाट से दूर रहेंगें तो देर लगेगी | पर अब धीरे धीरे हमारे मन , बिचार , हाव् भाव उठना बैठना देखना सुनना इनमें सब जगह परिवर्तन हो रहा है और उसका धीरे धीरे अनुभव करते चलो | कुदरत है प्रकृति है भगवान है , ईश्वर है | वह तो अपना चमत्कार और करिश्मा पापियों को भी दिखाता है पुण्यात्माओं को भी दिखाता है | ऐसी बात नहीं है कि पापियों और पुण्यात्माओं में कोई अलग अलग बटवारा होता है , एक समझ जाता है एक नहीं समझता है | लेकिन चमत्कार तो वह दोनों को दिखायेगा , बिना चमत्कार और करिश्में के परिवर्तन नही होता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:12-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - गुरु के अनमोल वचन - सन- 1991
१) गुरु की दया से तुम्हे सुरत शब्द का मार्ग मिला | उसके पूर्व तुम्हे क्या मिला था ? बहुत लोग अंतर में सफ़ेद रोशनी या शक्ल या बाग़ देखते थे और अब कुछ दिनों से बंद हो गया | क्या दया हटा ली गई ? ऐसा नहीं | तुम्हारे मन में कोई विकार आया होगा और संसार की चाहना प्रकट हुई होगी या कर्म बस चक्कर चल गया | उसकी पहिचान यह होगी कि आँख के बंद होने से अंधेरा दिखाई दे या चित एक जगह न रुके तो समझ लो हममें खराबी आ गई |
२) सुरत के कल्याण का मार्ग केवल सुरत शब्द योग है | लोगो को चाहिए कि सुरत शब्द मार्ग अपने जीव कल्याण के वास्ते अवश्य तलाश करे | जब सुरत शब्द मार्ग गुरु द्वारा प्राप्त हो जावे तो जहां तक अपनी कोसिस हो गुरु कृपा लेकर कमाई में लग जाना चाहिए और दोनों आँखों के ऊपर शब्द कि आवाज आती है उसे सुन्ना और ऊपर की तरफ उलटना चाहिए | अभ्यास को बहुत पक्का और सुदृण बनना चाहिए |
३) संत गुरु की कृपा का जो परिचय मिलेगा वह अंतर् में , जब आँख खुलेगी और नियम के साथ हर रोज अभ्यास बन जावेगा | गुरु के दिए हुए कृपा का परिचय अवश्य मिलेगा | अभ्यासी उस परिचय को पाकर प्रीत परतीत कर सकेगा कि मार्ग सुरत शब्द का सच्चा है और दिन दिन प्रेम बढ़ता जावेगा |
४) संत सतगुरु मत में सर्वोपरि प्रेम की महिमा है यदि प्रेम बन गया तो सब कुछ हो गया और यदि गुरु से प्रेम न हुआ तो अभ्यास भी न कर सकेगा | गुरु सदा प्रेम पर जोर देते है | मछली का प्रेम जल से , और पतिंगों का प्रेम दीपक से , हिरन का प्रेम नाद से , हाथी का प्रेम स्पर्श से , चकोर का प्रेम चन्द्रमा से , कामी का प्रेम स्त्री से | इसी प्रकार सच्चे सेवक या शिष्य का प्रेम गुरु से |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:11-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - "इक्कीसवे" दिन परमात्मा का दर्शन होगा - दिनांक-11-02-1962
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि तीन बातें बहुत आवश्यक है जिसे प्रत्येक को ध्यान में बराबर रखना चाहिए | सब कोई इसे नोट कर ले | जब आप ने परमार्थ में कदम रखा है तो यह आवश्यक है कि इन बातों को अपने जीवन में नित्य प्रति आप घटाते चले | पहली बात यह है कि आपने खोया हुआ विश्वास वापस लाओ | अपने पर विश्वास रक्खो - यह पहली बात | जो कुछ तुम्हारे प्रारब्धद में है तुम्हे अवश्य मिलेगा | केवल तुम्हे हाथ पैर थोड़ा हिलाने की आवश्यकता है | चीजें तुम्हे वही प्राप्त होगीं जो तुम्हारे भाग्य में है | यह बिलकुल निश्चित है | उसमे जरा भी कमी नहीं हो सकती है | जिस दिन से तुम पैदा हुए तुम्हारा वाउचर कट गया | उस परमात्मा ने , उस ईश्वर ने तुम्हारा सारा हिसाब लिख दिया उसमे कोई परिवर्तन नहीं हो सकता |
किसी की हस्ती नहीं कि उसे एक इंच इधर या उधर कर दे | फिर तुम क्यों परेशान होते हो भाई |
मेरी बात ध्यान से सुनों | तुम्हारे कर्मानुसार तुम्हारी एक एक स्वांसों का हिसाब है | जो भी दुःख या सुख तुम्हारे जीवन में आते है उसे तुम्हे अवश्य भोगने पड़ेगे | तुम उनसे बच नहीं सकते | यह कर्मों का देश है | कर्म के अनुसार फल तुम्हे भोगने पड़ेगे | किसी के पास लाखों रूपये है , बगलें है , नौकर चाकर है , मोटर है , मान प्राप्त है | और दूसरी तरफ एक के पास इतना है कि किसी प्रकार दोनों वक्त कि रोटी मिल जाती है | सत्संग में ही बहुत से ऐसे है जो ८५ रुपये पाते है , बहुत १०० पाते है या सवा सो या डेढ़ सो | मगर खर्च सबका चल जाता है , बच्चे भी हैं, परिवार भी बड़ा है फिर भी इतनी कम तनख्वाह में काम चल जाता है | भूखा कोई नहीं मरता | जरा सोचो तो यह सब कैसे हो जाता है | तुम्हारा प्रारब्धद निश्चित है | महात्मा तुम्हारी जरुरत को देखते है और अगर तुम्हारे प्रारब्धद में नहीं है तो वे अपनी दया से उसमे थोड़ा जोड़ देते है | महात्मा या समर्थ हस्तियां ही इस कार्य को कर सकती है और कोई नहीं | तो यह पहली बात कि आप अपने पर विश्वास रखो |
दूसरी बात यह है कि महात्मा में विश्वास रखों | आप को एक घटना बताऊँ | एक महात्मा जी थे | एक जंगल में रहते थे | लोगों में बड़ा सोर था कि वे बड़े अनुभवी महात्मा है और परमात्मा का दर्शन भी कराते है| एक आदमी को मालूम हुआ और वह महात्मा जी के पास पंहुचा | पूछा कि "महात्मा" जी सुना है कि आप परमात्मा का दर्शन कराते है | क्या ये सच है | महात्मा जी बोले कि हाँ बात तो सही है | फिर वह आदमी बोला कि मुझे भी परमात्मा का दर्शन कराइये | महात्मा जी ने कहा कि ऐसे नहीं - पहले गुरु दक्षिणा देनी होगी | फिर वह आदमी बोला कि मैं तैयार हूँ | आप क्या मांगते हैं | महात्मा जी उसके शरीर की तरफ इशारा करते हुए कहा की तुम इस तन को और मन को मुझे दे दो | तन और मन से सम्बंधित तो सभी चीजे है | अगर किसी ने तन और मन दे दिया तो उसने सब कुछ दे दिया | महात्मा जी ने कहा कि २४ घंटों में से दो घंटे के लिए तुम्हारे तन और मन को चाहता हूँ | शिष्य तैयार हो गया और बोला कि मैं तैयार हूँ | मुझे परमात्मा का दर्शन कराइये | महात्मा जी अपनी कुटिया में गए और एक बहुत ही पुराना जंग लगा चिमटा उठा लाये और शिष्य को देते हुए बोले कि बेटे इस चिमटे को रोज दो घंटे साफ किया करों | आज से ठीक इक्कीसवे दिन तुम्हे परमात्मा के दर्शन होगा |
दुसरे दिन शिष्य महात्मा जी से बोला कि महात्मा जी अभी तो परमात्मा के दर्शन मुझे नहीं हुए | महात्मा जी ने कहा कि अरे भाई अभी आज तो दूसरा दिन है | मैंने तो इक्कीसवे दिन के लिए कहा है | तीन दिन और बीत गए और वह शिष्य फिर अधीर हो उठा , बोला कि महात्मा जी अभी तक दर्शन नहीं हुए | महात्मा जी बोले कि अरे बेटे अभी तो आज पांचवां दिन है | चिमटा साफ करते रहो इक्कीसवे दिन परमात्मा के दर्शन होंगे | वह आदमी बराबर ३-४ दिनों बाद महात्मा जी से कहता रहा कि अभी दर्शन नहीं हुए और महात्मा जी उसको इक्कीसवे दिन की याद दिलाते रहे और बराबर कहते थे की चिमटा साफ करते रहो | आखिर इक्कीसवे दिन उसने फिर कहा की महात्मा की - आज भी दर्शन नहीं हुए | महात्मा जी ने जबाब दिया की आज दर्शन अवश्य होगा , चिमटा कहा है ले आओ | चिमटा चमाचम चमक रहा था | महात्मा जी ने चिमटा उसे देते हुए कहा की इसको अपने सामने कर के देखो | शिष्य ने देखा तो उसकी शक्ल साफ साफ नजर आ रही थी उस चिमटे में | महात्मा जी फिर बोले की बैठ जाओ और आँखें बंद करो | शिष्य ने जब दोनों आँखे बंद की तो देखा की सामने परमात्मा खड़ा है | उसे विश्वास हो गया | उसकी दिव्य दृष्टि हो गई |
महापुरुष बाहर से सेवा लेते रहते है और अपनी दया से अंतर के मैल को धोते रहते है | उसने २४ घंटों में से सिर्फ तो घंटे महात्मा को दिए और फिर थोड़ा थोड़ा विश्वास रहा | उसकी आँख खुल गई | वह प्रभु को देखने वाला बन गया | तो महात्मा पर विश्वास रक्खों यह दूसरी बात | फिर थोड़ी रगड़ करो यह तीसरी बात | उनकी आज्ञा का पालन करो और थोड़ी मेहनत करों |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:10-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग - "चरन" सिर्फ चाहिए - सन-1958
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि फकीरों के दरबार में जो भी भिखारी बन कर जाता है वह सब कुछ पाता है | फ़क़ीर ऐसी चीजे नहीं देते कि आज दे कल निकल जाये | वह ऐसी चीजे देते है जो कही न मिले , ऐसी चीज लो जो संसार को बाँटी जा सके | गुरु से ऐसी चीज लो कि सारा संसार भी आ जावे तो उसे बाँटते जावो और घटे नहीं | यह गुरु की दया और मेहरबानी का फल है , जो आपको दे रहा हूँ | यह चीज आप को महात्मा की ख़ुशी पर मिलेगी कब मिलेगी इसका ठिकाना नहीं | मुझे यह वस्तु कैसे मिली सुनिए |
एक दिन मैं स्वामी जी महाराज के साथ खुरपी लेकर खेतों में गया और घास खोदने लगा तो बोले भाई मैं गृह्स्त हूँ और तुम विरक्त तुम घास मत खोदो लोग क्या कहेंगे ? मैंने उत्तर दिया - महाराज लोगों से मुझे क्या मतलब मैं तो आपकी आज्ञा ही अपने लिए सब कुछ मानता हूँ | स्वामी जी महाराज मुस्कराये और बोले अच्छा यहां घास कर लो | मैं वहीं घास करने लगा | एक दिन खुश हुए और पूछा क्या चाहते हो ? मैंने कहा - कुछ नहीं "चरन" सिर्फ चाहिए ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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Date:09-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग-परमात्मा के चरण कमल हैं - सन-1981
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि उस परम पिता परमात्मा ने आकाश में एक शीशा एक दर्पण के रूप में लगा रक्खा है | उसी को कहते है चरण कमल | प्रकाशित यानी चरण कमल है , चरण कमलो में इतना प्रकाश है इतना तेज है कि जिसकी महिमा नहीं | दर्पण में जब साक्षात्कार होता है | तब इसको आत्म बोध हो जाता है | आत्मज्ञान हो जाता है |
उस दर्पण में और भी चीजें दिखाई देती है :
इसी दर्पण में और भी बहुत सी भिन्न भिन्न चीजे दिखाई देती है | पीछे की भी अब की भी और आगे की भी | पीछे क्या हुआ था अब क्या हो रहा है और आगे क्या होगा | उसी दर्पण में अपना रूप , जगत का भी रूप दिखाई देता है , उसके ऊपर जब यह जीवात्मा दर्पण में अपना निजी रूप देखती है तब समझती है कि इनमे से कोई चीज अपनी नहीं है | न इन चीजों में अपना कोई मेल हो सकता है | हम तो इसमें फसे हुए थे अज्ञान में , हम तो इस जड़ता में फंस गए थे | लेकिन महापुरुषों की दया दृष्टि हो गई तो यह विश्वास हुआ | तब वह महापुरुषों की महिमा को थोड़ा थोड़ा समझना प्रारम्भ करती है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:08-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग-बर्दाश्त में भी बड़ा अंतर है - सन-1991
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि बर्दाश्त में भी बड़ा अंतर है | जो आदमी बुरा कार्य करते है उसका असर जब बुरा आता है तब वह बर्दाश्त करते है | तजुर्बेकार भी तकलीफ को बर्दास्त करता है बड़ी से बड़ी तकलीफ को दांत पीस कर बर्दास्त कर लेता है | मगर ये हेकड़ी है | इसी तरह से जानवर भी अपनी तकलीफ को बर्दास्त करता है और कुत्ता अपनी तकलीफ किसी से कहता भी नहीं है | जब बिल्ली चूहे के पीछे दौड़ती है उस वक्त अपनी जान तक लड़ा देती है | इसी तरह सब माया के पीछे जान लड़ा रहे है , और कूदते भागते है | क्या भारी असर अंदर प्रकट है जिसका कहना ठीक नहीं | तुम अपनी तकलीफ गुरु के पास रह कर काटो | परमार्थ क्या है ?
साधकों पहले यह समझ लेना जरुरी होगा कि परमार्थ किसको कहते है ? परमार्थ का क्या मतलब है ? जहाँ से आदि जीवात्मा आती है वहां उसको पहुँचाना ही सत्य परमार्थ है और वहां पहुंचकर स्वतंत्र स्वाधीन, परमानन्द और परम सुख प्राप्त करना सत्य परमार्थ का तात्पर्य है और यही संतमत है | जिस मजहब, मार्ग धर्म और पंथ का यह मतलब नहीं है वह संत मत नहीं है और संत मत के अनुसार वह परमार्थ से खारिज है | इस आरसे में जितने साधु संत और महात्मा आये उन्होंने इस बात का सबूत दिया कि तुम्हारा मालिक है तुम उसको पा सकते हो गुरु के द्वारा | गुरु वही है जो उसको पा चुका है |
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:06-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग- गुरु की महिमा बिना प्रेमी के पास बैठे नहीं जान सकते - दिनांक : 21-06-1958
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि गुरु की महिमा बिना प्रेमी के पास बैठे जान नहीं सकते , और बिना उसकी याद के तुम जाग नहीं सकते | दृष्टि खुले आकाशवाणी सुनाई पड़े और सुरत जाग जाये | अँधेरे में सोइ सुरत किसी प्रेमी आशिक और भक्तजन के पास बैठे तो वही याद दिलाएगा और प्रभु तक पहुचायेगा | हमको अंतर से प्रेम होना चाहिए | बहरी शरीर का प्रेम क्षणिक है | कुटुंब परिवार इसीलिए छूट जाते है , उनका प्रेम इसीलिए छूट जाता है की वह क्षणिक और अस्थाई होता है | जब उसके प्रेम में पहुंच जाओगे तो चलते फिरते वही प्रेम मिलेगा और जब तक हर समय महात्मा की याद नहीं करते परमात्मा की याद नहीं आ सकती | यह सोच लो की हम मार्ग भूल गए | मार्ग छूट गया | हम भटक गए | महात्मा कहते है की तुम मेरे पास आओ उस प्रेमी के पीछे आओ | मैं तुमको निश्चित स्थान पर पंहुचा दूंगा | जिस ओर से आये हो उसी ओर चला दूंगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:05-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग- शब्द में तंमन्य होने से खोल उतरते हैं - दिनांक : 20-12-1990
परम पूज्य स्वामीजी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा जो आँखें मिली है उससे आप देखते हो कि आसमान ऊपर है और पृथ्वी निचे है | परन्तु अंदर की आँखों से इसका ठीक उल्टा दिखाई पड़ता है | आसमान भी एक पर्दा ही है |
जब शरीर से सुरत अलग हो जाती है तो वह एकरस हो जाती है | साधक को ऐसी तन्मयता से साधना करनी चाहिए की इसी शरीर के अंदर लिंग शरीर , उसके अंदर शूक्ष्म शरीर और उसके अंदर कारण शरीर का खोल छोड़ दे | शब्द से सुरत जब मिलती है तो एक खोल छोड़ देती है फिर जब साधना करोगे तो दूसरा खोल भी छोड़ देगी | इसी तरह जब चारो खोल छूट जाते है तो फिर सुरत किसी कर्म के बंधन में नहीं आ सकती है |
इन्ही चारो खोलो के अंदर सुरत को बंद कर दिया है ऊपर वाले ने | महात्मा मिल जाये तो इस भेद को बता दे | हर जगह शब्द ही शब्द है चाहे वह नाला हो , नदी हो या पहाड़ हो | साधक को ऐसी साधना करनी चाहिए की शब्द में लय होकर लिंग में पहुंचे | लिंग लोक छोटा नहीं है वह भी बहुत बड़ा है | आगे चलकर ध्यान रूप में भी शब्द है | पर वहां इतना शब्द है की उसमे से आप छाँट नहीं पाओगे | छाँट नहीं पाओगे तो फिर आगे नहीं बढ़ पाओगे और फिर उसी में उलझ जाओगे |
इस बारे में महात्माओं ने तरह तरह से बताया है | जिसको नामदान मिल गया हो उसको तन्मयता से साधन (सुमिरन, ध्यान, भजन ) करना चाहिए |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:04-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग- जाड़े में भजन बहुत अच्छा बनता है - दिनांक : 19-12-1991
परम पूज्य स्वामीजी जी महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा की जाड़े में १४ घंटे की रात्रि होती है | जिसमे से ६ घंटे सोना चाहिए और बाकि समय में रजाई या कम्बल ओढ़कर भजन करना चाहिए जाड़े में भजन अच्छा बनता है | आलस्य करोगे तो सूरत शब्द योग की साधना नहीं हो सकती | कलयुग में मनुष्यों को अवसर दिया गया है | और महात्माओ ने सुरत शब्द योग की साधना करने का तरीका बताया | महात्माओं ने ही बताया की अंदर में प्रार्थना होती रहती है |
महात्माओं ने यह भेद बताया की बैकुंठ की रचना कैसी है | स्वर्ग की रचना कैसी है और जहाँ तुम रहते हो वहां की रचना कैसी है | इसी तरह के अन्य अंदर के भेद महात्माओं ने बताये | गुरु महराज ने कहा की जितना भजन तुम 8 महीने में करते हो उतना केवल जाड़े में कर सकते हो क्योंकि जाड़े में भजन बहुत ही अच्छा बनता है |
गावों में साधना अच्छी होती है क्योकि वहां के घरों में खिड़कियां नहीं होती और शांति रहती है | जब अंदर आवाज सुनोगे तो पहचानोगे | जिसमे लगन है वह साधना अच्छी कर लेते है और जिसके अंदर लगन नहीं है वे वैसे ही रह जाते है | दिन में तो व्यस्थता रहती है परन्तु रात्रि में भजन कर सकते हो , अंदर में जब आवाज सुनाई पड़े तो उसमे से छाटना| अंदर में कई आवाज आती है तो पहचानना उसमे से जो आवाज छाट में आ जाये तो उसी में लय हो जाना |
कोई आवाज अंदर में सुनो तो यह मत समझो कि हमारा साधन बन रहा है | उसमे से आवाज पहचानो और उसमे लय हो जाओ, सत्संग का मतलब ही यही है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:03-05-2021

गुरु महाराज का सतसंग- यह जीवन की अज्ञान यात्रा है - दिनांक : 28-02-1991
यह जीवन की अज्ञान यात्रा है | इसी अज्ञान यात्रा को बताने के लिए और ज्ञान यात्रा में प्रवेश करने के लिए आप सब यहां आये हुए हो |
संत जिस भूमि पर निवास करते है वह बहुत पवित्र होती है :
योगियों और ऋषि मुनियों और साधों और संतों की भूमि अपनी अपनी आध्यात्मिक सम्पति के अनुसार पवित्र तो होती ही है | और लाभदायक भी होती है | लेकिन जहां साध और संत जिस भूमि पर निवास करते है वह अवर्चनीय है | उसे बचनों से नहीं कहा जा सकता | कितनी पवित्र भूमि होती है | तत्वदर्शी योगी, ज्ञानी , ईश्वरदर्शी ब्रह्मदर्शी | लेकिन जो उच्चकोटि की पवित्रता इन सबसे साधु और सबसे अपार महान पवित्रता जहां संत निवास करते है |
संतों का पद सबसे ऊँचा है :
संतों का पद ही सबसे परे है | न वहां योगी जा सकते है न योगेश्वर जा सकते हैं | न ऋषि जा सकते है न मुनि जा सकते है | स्थान सबके है ज्ञान अलग अलग है सबका | उसमे अपनी सब चीज लेकिन जहां संत है वहां कोई नहीं है | इसलिए संतों का जिक्र तुम्हारी इन किताबों में नहीं आया है| यह जो जिक्र संतो का किया गया है इधर ७००, ८०० बरस के अंदर |
संत का एक ही काम रहता है पहुँचाना :
तो सबसे पवित्र स्थान जहां संत निवास करते है जो कि जीवों के काम के लिए आते है | उनका एक ही काम रहता है जोवों को जगाकर, साफ कर , पवित्र कर , निर्मल कर , संसार की तरफ से मोड़कर संसार को बताकर परमार्थ के रास्ते में इनको लगाना और नाम के साथ इसको जोड़ना | और यहाँ से ले चलना | इसमें पूरी पूरी मदद सहायता जीव के साथ करनी पड़ती है | और अपनी शक्ति अपना बल ज्ञान देकर उसको धीरे से इस काल जाल से निकाल ले जाते हैं |
स्थान का लाभ वही ले सकते है जो नाम के अभ्यासी है :
इसीलिए वह स्थान बहुत ही पवित्र होता है | और पवित्र स्थान का लाभ वही लोग ले सकते है जो नाम के अभ्यासी है | जो नाम की साधना करते है | यानी सुरत के साथ जोड़ते है | वह उनको लाभ उस स्थान का मिलता है | बाकी लोगों को लाभ मिलता है उसका उन्हें बोध नहीं होता है | वे वैसे ही चले जाते है | लाभ भी जो जायेगा तो वह नहीं समझेंगे कि उस जगह का उस स्थान का लाभ हुआ क्योंकि वह अज्ञान में सफर कर रहे है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:30-04-2021

गुरु महाराज का सतसंग- युग परिवर्तन महात्मा कराते है - सन - 1991
गुरु महाराज ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि यहां सत्संग में आकर कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता कुछ न कुछ लाभ तो होता ही है | यह बात अलग है कि तुम न समझ सको | वह भी इसलिए कि तुम्हे पीड़ाये बहुत ज्यादा हैं और दो चार में लाभ होता हैं तो वह पता नहीं लगता और तुम रोते ही रहते हो |
सब तकलीफे दूर हो जाये तो भाग जाओगे :
लेकिन यह भी हैं कि तुम्हारी सब तकलीफों को दूर कर दिया जाय तो तुम कभी लौटकर इधर आओगे ही नहीं | इसीलिए सब तकलीफे तो दूर नहीं कि जाएँगी | तुम लगे रहोगे आते जाते रहोगे तो धीरे धीरे तुम्हारी तकलीफे भी दूर होंगी, सत्संग में तुम्हारी रूचि बढ़ेगी | महात्मा समझदारी से काम करते हैं , वह धीरे धीरे तुम से प्रेम करा लेंगे और तुमको यहां से निकाल ले जायेंगे ताकि तुमको हमेशा का सुख मिल जाये |
एक जमाना आएगा :
प्रेम एक तरफ रहता हैं , कानून एक तरफ रहता हैं | अगर तुम सच्चा प्रेम कर लो तो तुम धीरे से सब बंधनो से मुक्त होकर निकाल जाओगे | काल भगवान का कानून एक तरफ धरा रह जायेगा | घाट जगाती क्या करे जो सिर बोझ न होय | तुम सत्संग में लगोगे, गुरु पर विश्वास आएगा , ध्यान भजन करोगे गुरु कि कृपा होगी , कर्मो के बड़े बड़े पहाड़ जल जायेंगे , जन्म - मरण से आजाद हो जाओगे | जब कर्म ही नहीं रहेंगे तो दुःख सुख भी नहीं रहेगा | तुम अपनी दो चार तकलीफे दूर कराना चाहते हो महात्मा चाहते हैं कि तुम हमेशा के लिए सब तकलीफों से छूट जाओ |
महात्मा युग को बदलते हैं :
अभी तो वक्त बहुत ही ख़राब हैं | अभी तो ऐसा दुखी समय आएगा , ऐसी भयंकर और विकराल स्थिति हो जाएगी कि जब माँ बच्चे को और बच्चा माँ को कुछ नहीं समझेगा , चारो तरफ कोहराम मच जायेगा उस समय ऐसे लोग खड़े हो जाते हैं जो त्रिकालदर्शी होते हैं | फिर उनके द्वारा बुराइयां ख़त्म हो जाती हैं और नए और अच्छे युग का सूत्रपात होता हैं | फिर लोग धर्म कि तरफ ईश्वर कि तरफ लग जाते हैं |
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Date:29-04-2021

गुरु महाराज का सतसंग- सुमिरन बिलकुल ठीक से करो - 1991
लोग सुमिरन ठीक से नहीं करते जो पांचों नामो का भेद दिया गया है उसका सुमिरन करते समय लोग माला फेरते है परन्तु मन संसार में रमता रहता है | दो चार दस दाने तो नाम के सुमिरन में निकले फिर १०-१५ दाने और निकल गए पर मन कहाँ चला गया यह पता नहीं यह मन तो संसार के कामों के चिंतन में लग गया | कुछ लोग सुमिरन करते समय तरह तरह की मन की गुनावानो में लगे रहते हैं | कुछ लोग झपकी लेते रहते है | यह भी नहीं पता चलता की क्या सुमिर रहे है | कुछ को जब ख्याल आता है तो यह भी नहीं याद रहता ही सुमिरन किस नाम का कर रहे थे |
इस प्रकार के सुमिरन से तो कोई लाभ नहीं हो सकता | और जो सुमिरन नहीं ठीक कर सकता वह ध्यान नहीं कर सकेगा और जो सुमिरन तथा ध्यान नहीं कर सकते वह भजन कैसे करेंगे |
सुमिरन ही परमार्थ की कुंजी है | बिना इसकी सहायता के कोई भी उस ओर नहीं चल सकता | सभी महात्माओ ने इसकी प्रधानता रक्खी है | सुमिरन ही से हर स्थान के धनी प्रसन्न होकर अपने द्वार खोल देते है तब यह जीव आगे जा सकता है |
पूर्ण महात्माओ ने भी अंत समय तक सुमिरन किया :
हर महात्माओ ने यधपि वे पूर्ण गति को प्राप्त थे तथा पुरे संत थे , बराबर सुमिरन किया है | सुमिरन अंतिम स्वांस तक करना पड़ेगा | एक बार मैंने अपने स्वामीजी महाराज से पुछा की स्वामी जी आप क्यों सुमिरन करते हैं ? कहने लगे 'बेटे' सुमिरन तो अंत समय तक करना है क्योंकि सुमिरन तो स्थान के धनियों का होता है | उनके इस काल देश में जब तक यह शरीर है तब तक उनका सुमिरन करने से वे प्रशन्न रहते है | वैसे तो पूर्ण पुरुष हर प्रकार से सर्व समरथ होते है परन्तु फिर भी सुमिरन कभी नहीं छोड़ते | अब यह तो वे जाने की उसका फल वे किसको देते है |
सही सुमिरन की विधि :
तो सुमिरन बिलकुल ठीक से करो | यही परमार्थ प्राप्ति की कुंजी है | सुमिरन करते समय जिस धनी के नाम का सुमिरन करते हो उसी के रूप का ध्यान हो | मन को वही पर लगाए रहो | जब रूप का चिंतन होगा तो उस रूप से प्यार होगा | रूप से प्यार होगा तो हर स्थान के धनी के रूप में ही मध्य में गुरु का स्वरुप विद्यमान है | स्वरुप का ध्यान करते हुए सुमिरन करने पर वह प्रकट हो जाता है | उस रूप से खूब प्यार हो तब ध्यान बनेगा | ध्यान के बनने पर भजन भी बनेगा | जो लोग सुमिरन ठीक से नहीं करते उनका साधन बन ही नहीं सकता है | सुमिरन बिना नागा हमेशा करना चाहिए |
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Date:28-04-2021

गुरु महाराज का सतसंग- मांगो की सदा प्रभु की गोद में रहे - 1958
जब कभी महात्मा के पास जाओ तब हमेशा विचार इस बात का रक्खो कि वहां संसारी स्वार्थी भावना न आने पावे | यदि सत्संग में स्वार्थ प्रकट हुआ तो महात्मा के पास का अनमोल धन न ले सकोगे | एक महात्मा की कहानी है कि उनके पास बहुत से शिष्य आया करते थे | उनमे से एक शिष्य बहुत दिन तक महात्मा की सेवा भाव से सेवा करता रहा, उपदेश सुनता रहा और गुरु कि आज्ञाओं का पालन बड़ी शृद्धा से करता रहा | एक दिन गुरु प्रसन्न हुए और परमार्थी धन अथवा परमात्मा की प्राप्ती करा दी और गद्दी का मालिक भी उसे ही बना दिया | शिष्य गृहस्थ थे | उनके स्त्री भी थी | जब उसने ऐसा समझ लिया की पति ने भगवान को प्राप्त कर लिया तो वह उन्हें भगवान समझ कर ही उनकी सेवा करती रही |
एक दिन महात्मा स्नान कर रहे थे जिस चौकी पर बैठकर उसका एक पावा टूटा था और चौकी डगमगाती थी | स्त्री ने विचार किया की कहीं ऐसा न हो की चौकी हिल जाय और उसके पतिदेव गिर पड़े इससे उसने अपना जंघा चौकी के टूटे पावे के पास लगा दिया की चौकी गिरने न पावे | चौकी के पास ही एक कील निकली हुई थी वह स्त्री की जांघ में घुस गई | खून निकलने लगा | महात्मा उसी चौकी पर पूजा करने लगे मगर वह पैर लगा कर बैठी ही रही और मालूम न होने दिया की तकलीफ है | वह महात्मा की सेवा में रत थी उनको कष्ट न हो ऐसा शुद्ध भाव उसमे सेवा का था | महात्मा जब पूजा से उठे तो देखा की उनकी स्त्री का कपडा खून से तर है | पुछा की यह क्या हुआ ? स्त्री ने उत्तर दिया - कुछ नहीं , चौकी का पावा हिल रहा था इसलिए पैर लगा दिया था की चौकी गिरने न पावे |
महात्मा ने कहा तुमको बड़ा कष्ट हुआ तुमने बतलाया क्यों नहीं ?
उत्तर मिला - आप को कष्ट न हो उसमे ही मुझे आनंद है |
महात्मा बहुत खुश हुए और कहा जो चाहो मांग लो | यह सौदा ख़ुशी का है | जब महात्मा प्रसन्न हुए उस समय जो चाहो उनसे मांगलो |
स्त्री ने सोचा की इस समय बहुत खुश है और कह रहे है की जो चाहो मांगलो इसलिए इनसे कुछ मांग लू | उसने कहा - इस गद्दी के मालिक सदा हमारे खानदान वाले होते रहे |
महात्मा ने कहा तुमने यह नाकिस चीज मांगी - गद्दी क्या चीज है ? महात्मा ने बहुत समझाया फिर भी स्त्री ने कहा यही बर दीजिये की मेरे खानदान वाले ही गद्दी के पीढ़ी दर पीढ़ी मालिक हो | महात्मा ने कहा - ऐसा ही होगा मगर इस तरह नहीं रहेगा वंशावली गद्दी पर हमेशा झगड़ा होता रहेगा | महत्मा के बाद उस गद्दी के लिए भी झगड़ा शुरू हो गया |
जहां जहां गद्दी का रिवाज है और उस पर खानदानी गुरु ही होते है , आज भी वहां हमेशा लड़ाई झगड़ा होता रहता है | बुद्धिमान ऐसा नाकिस धन नहीं लेगा | ऐसा धन नहीं लेना चाहिए की आगे लड़ाई झगड़ा हो |
सेवा में तन्मय हो जाओ , गुरु का रूप हो जाओ की किसी कष्ट का भान ही न हो | महात्मा जब खुश होते है तब उनसे जो चाहो मांग लो | परन्तु उनसे मांगो तो यह मांगो कि सदा प्रभु की गोद में रहे उनके साथ खेले | संसारी वस्तुए तो न मांगने पर भी मिलेंगी और त्याग करने पर भी मिलेगी | इसलिए महात्मा से तुम ऐसी चीज क्यों मांगते हो जो तुरंत ही ख़त्म हो जाये | उनसे अगोचर और वह अमोलक वस्तु मांगो जिसके मिलने पर सदा के लिए प्रसन्न हो जाओ |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:19-04-2021

गुरु महाराज का सतसंग - जागकर भजन करो [Date: 02-03-1991]
तो जाग करके सुमिरन करो, जागकर ध्यान करो , जागकर भजन करो | सोते रहोगे तो काम नहीं होगा | दूसरी एक तन्द्रा अवस्था भी होती है, आप सुमिरन पर ध्यान पर भजन पर बैठ गए, तो न तो मालूम होता है की सो गए और न मालूम होता है की जाग रहे हो | तो बीच की तन्द्रा अवस्था है उसमे भी भजन नहीं होगा | उस समय क्या करो की मुँह हाथ धो लो मुँह धो डालो तो जो कुछ खुमारी होगी सोने की वह दूर हो जाएगी और फिर फिर बैठोगे, तो फिर ठीक होने लगेगा मालूम फिर कुछ हो तो फिर मुँह धो लो | उसके बाद फिर बैठ जाओ |
तो बहुत से लोगों ने इस मन को यानी रोकने के लिए बहुत सहज-सहज प्रयत्न किये फिर जा करके मन दया और कृपा ले करके रूक गया तो चीज ये है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:10-04-2021

आवश्यक सूचना
जयगुरुदेव संगत के सभी गुरु भाइयो और बहनो से मेरा सादर सतगुरु जयगुरुदेव | प्रेमियों कुछ लोग अपने व्यक्तिगत विचार जयगुरुदेव संगत के जिम्मेदारों के नाम या फिर सम्मानीय टाटधारियो के लिए गलत शब्दों का प्रयोग करते है या उन्हें कुछ गलत कहते है तो ऐसे "व्यक्तिगत विचार" लिखने वालों को "सतगुरु जयगुरुदेव आध्यात्मिक धर्म प्रचारक संस्था" कभी भी किसी को भी गलत विचार प्रकट करने की या गलत बात कहने की इजाजत नहीं देती है न ही "सतगुरु जयगुरुदेव आध्यात्मिक धर्म प्रचारक संस्था" का नाम "व्यक्तिगत विचार" प्रकट करने वालो को संस्था का नाम उपयोग करने की इजाजत देती है |
यदि कोई भी व्यक्ति किसी भी सत्संगी को उल्टा पुल्टा या गलत विचार या अपशब्द लिखता है या भड़काऊ लेख को लिखता है तो उस व्यक्ति से "सतगुरु जयगुरुदेव आध्यात्मिक धर्म प्रचारक संस्था", ग्राम - बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील : रुदौली, जिला - अयोध्या, प्रान्त- उत्तर प्रदेश, भारत से कोई लेना देना नहीं है |
यदि कोई भी व्यक्ति जयगुरुदेव संगत और सम्मानीय टाटधारियों के सम्मान को ठेस पहुँचता है तो ऐसे व्यक्ति से सदा सावधान रहे |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:01-04-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा - सुनाया गया सत्संग
महात्माओं के पास से योग रुपी अग्नी मिलेगी वो अच्छे बुरे कर्मों के ढेर को अपनी योग रुपी अग्नी से जला देंगे | दोनों कर्मो से छुटकारा पा जाओगे तो तुम्हारी जीवात्मा निर्मल होगी | तब इस जीवात्मा को जीवन दान मिलेगा नहीं तो इसी तरह से जन्मेगी मरेगी और इसके लिए कोई कुछ नहीं कर सकता | तो असली चीज ये है की हमको जानने की जरुरत है | कर्म करने का अधिकार सबको मिला हिन्दू हो मुस्लमान हो सिक्ख हो ईसाई हो छोटा हो बड़ा हो पढ़ा लिखा हो अनपढ़ हो सबको समान रूप से भगवन की तरफ से अधिकार मिल गया उसने अपनी तरफ से छोटे बड़े के लिए कुछ नहीं रखा और अधिकार दे दिया अब उससे जो कुछ भी तुम जमा करो बुरे काम करके बुरा जमा करलो अच्छे काम करके अच्छा जमा करलो | उसका आपको फल मिल जायेगा | लेकिन उसने अधिकार तो समान रूप से बराबर दे दिया कोई भी आदमी अच्छा से अच्छा काम कर सकता है कोई भी आदमी बुरा से बुरा काम कर सकता है और उसका वो खुद का होगा | तो भगवान ने छोटे बड़े की बात नहीं रखी उसने सिर्फ अधिकार की बात की और उसने कह दिया है कि ब्राह्मण हो छत्रिय हो ये हो वो हो कोई हो जो ये काम करेगा उसको ये सजा मिलेगी और ये काम छोड़ करके सच्चा भजन करेगी तो जीवात्मा जागेगी और उसको मुक्ति मोक्ष मिलेगी | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:16-03-2021

गुरु बहन पर गुरु महाराज की दया
एक गुरु बहन पर गुरु महाराज की आज बहुत दया मेहर हुयी | परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने गुरु बहन को स्वपन में दर्शन दिया | गुरु बहन ने देखा की गुरु महाराज आये हुए और सत्संग दे रहे है और भंडारा भी चल रहा है | गुरु महाराज ने आदेश दिया है की चन्दन को घिसो और सभी प्रेमियों के मस्तक पर चन्दन का टिका लगाओ | गुरु बहन ने देखा की बड़ेला धाम के आदरणीय टाटधारी जी गुरु महाराज के सत्संग में वहाँ पर उपस्थित है और सत्संगियों को कुछ दिशा निर्देश दे रहे हैं | गुरु महाराज की अशीम दया गुरु बहन को मिली और वो गुरु बहन आज बहुत ही खुश है अपने सतगुरु का दर्शन पाकर | सतगुरु दयाल से विनती और निवेदन हैं की ऐसी दया उस गुरु बहन पर सदा बनी रहे || ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:08-03-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के मुखारविंद से - शब्द स्पष्ट सुनाई दे तभी खिचाव होता है - Date: 18-02-1989
आवाज स्पष्ट सुनाई देगी तो खिचाव शुरू होगा | शब्द में सुरत को खींचने की शक्ति है जब तक अलग अलग बजे सुनाई न दे तब तक खिचाव नहीं होगा | परदों की वजह से आवाज सुनाई नहीं देती | आवाज स्पष्ट होगी वही वाणी बन जाएगी | पहले लोगो को देव वाणी, ब्रह्म वाणी सुनाई दी पर दर्शन नहीं हुए | वाणी सुनाई दे सकती है पर जरुरी नहीं की दर्शन भी हो | बाजों की शक्ल है, गन्दगी की वजह से वह समझ में नहीं आती | गन्दगी हटे तो वह वाणी हो जाती है | देव वाणी , ब्रह्म वाणी, घमासान आवाज | बिना तरकीब व तरतीब के कोई चीज समझ में आने वाली नहीं है | वहाँ की चीज पूरी पूरी वर्णन हो ही नहीं सकती | जिसने देखा उसने संकेत दिया | यहाँ का खेल जड़ता का है वहां चेतनता का | इसलिए यहाँ उसका वर्णन हो ही नहीं सकता | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
मो: 9711862774, 8383997870
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:07-03-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के मुखारविंद से - साधक जितना निर्मल होगा उतना ही शब्द सुनाई देगा - Date: 18-02-1989
मंदिरों में, मस्जिदों और गिरजाघरों में जो बाजे बजते है सभी मजहबों में और धर्मों के स्थानों पर यह चिन्ह रक्खे गए हैं | बहुत से साधकों को आवाज सुनाई दी, भाषा समझ में आयी पर दर्शन नहीं हुए | पूछा जाय कि रूप क्या है तो बता नहीं सकते | कुछ साधकों को एक एक झलक दिखाई दी फिर नहीं दिखाई दिया जो स्थान से बाजे आते है, साधक जितना निर्मल, साफ होगा वह आवाज उतनी ही साफ सुनाई देगी तभी खिचाव होगा | पहले तो मालूम होता है कि एक स्वर में आवाज है पर बाद में आवाजे अलग अलग सुनाई देती है | जब तक बाजे स्पष्ट सुनाई न दे तब तक उसको ध्यान से सुनना चाहिए और परखना चाहिए कि कौन कौन से बाजे हैं | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:18-02-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के मुखारविंद से - बुद्धि से विचार करो - Date: 25-07-1990
बुद्धि को सब लोग अपने अपने सही काम में लो और मन - इसको संसार की तरफ से, उन लोगों और परेशानियों की ओर से मोड़ कर थोड़ा सा इसको सत्संग में लगाओ तो यह मुलायम हो जायेगा | अपना सख्त रुख बदल देगा | कोमलता आएगी तो यह धीरे धीरे परमार्थ पकड़ने लायक बनेगा | विचारों ! संसार को देखो और अपनी बुद्धि को देखो | क्या हो रहा है उससे पूछो क्या होगा उसका अनुमान बुद्धि से लगाओ | क्या मेरे पल्ले पड़ेगा और अभी तक क्या पड़ा ? यह सब विचार आप करते रहोगे तो धीरे धीरे परमार्थ की जगह पर पहुंच जाओगे | और जो परमार्थ के सब बचन है, कलाम वह तो जीवात्मा के लिए | यह उसी की चीज है और उसी को शब्द मिलना चाहिए | लेकिन तुम जगह नहीं पूछोगे, जगह नहीं बनाओगे, बैठना नहीं आएगा, सुनना नहीं आएगा | महात्मा दे देंगे तो रक्खा नहीं जायेगा, तो आप गिर गए | समय निकल गया | तो ऐसा मत करो अच्छी तरह से समझो | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:17-02-2021

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के मुखारविंद से - बचन को पकड़े रहोगे तो लगे रहोगे - Date: सितम्बर 1990
बुद्धि को सब लोग अपने अपने सही काम में लो और मन - इसको संसार की तरफ से, उन लोगों और परेशानियों की ओर से मोड़ कर थोड़ा सा इसको सत्संग में लगाओ तो यह मुलायम हो जायेगा | अपना सख्त रुख बदल देगा | कोमलता आएगी तो यह धीरे धीरे परमार्थ पकड़ने लायक बनेगा | विचारों ! संसार को देखो और अपनी बुद्धि को देखो | क्या हो रहा है उससे पूछो क्या होगा उसका अनुमान बुद्धि से लगाओ | क्या मेरे पल्ले पड़ेगा और अभी तक क्या पड़ा ? यह सब विचार आप करते रहोगे तो धीरे धीरे परमार्थ की जगह पर पहुंच जाओगे | और जो परमार्थ के सब बचन है, कलाम वह तो जीवात्मा के लिए | यह उसी की चीज है और उसी को शब्द मिलना चाहिए | लेकिन तुम जगह नहीं पूछोगे, जगह नहीं बनाओगे, बैठना नहीं आएगा, सुनना नहीं आएगा | महात्मा दे देंगे तो रक्खा नहीं जायेगा, तो आप गिर गए | समय निकल गया | तो ऐसा मत करो अच्छी तरह से समझो | ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:25-01-2021

मथुरा चिरौली संत आश्रम पर एक वर्ष भंडारे में रोटी काफी बच गयी | सुबह स्वामी जी की ऐसी मौज हुई की उठे और कण्डाल की रोटी निकाल कर बाटने लगे | देखते ही सत्संगी भाई बहन दौड़ पड़े और स्वामी के हाथ से प्रसाद लेकर बहुत खुश होते थे | स्वामी जी ने अपने हाथ से एक आदमी को रोटी दिया तो उसने नहीं लिया | कहा की स्वामी जी, आज मैं ब्रत हूँ | अन्न नहीं खाता हूँ | स्वामी जी रोटी बाटते हुए आगे बढ़ गए | सत्संग में स्वामी जी ने सुनाया कि जो लोग महात्माओ के सत्संग में किसी तरह खिंचकर आ जाते है और उन्हें नामदान मिल जाये तो बड़ा भाग्य समझना चाहिए | उनको चाहिए कि जितनी भी पुरानी लकीर की फकीर थी उसको तुरंत छोड़कर जो महात्मा उपदेश देते है उसी पर चले |
सुमिरन भजन ध्यान ही एक रास्ता है | जो लोग नामदान लेकर भी जो उनको बताया गया उस साधन को नहीं करते है और अपनी बुद्धि की पहलवानी में अथवा लकीर के फ़क़ीर होकर पुरानी क्रियाओ को नाना तरह के पूजा पाठ तीर्थ ब्रत हवन जाप को ही करते रहते है उनको कुछ भी नहीं मिलता है , वे महात्माओ और सत्संग को नहीं समझ सकते है | ऐसे लोग महात्माओ के दान को फेंक देते है |
इसी क्रम में स्वामी जी ने कहा कि सुराही के ऊपर एक कटोरी राखी थी | काफी दिनों बाद कटोरी ने कहा कि भाई सुराही मैं इतने दिनों से तुम्हारे ऊपर हूँ लेकिन एक बूँद पानी तुमने मुझे नहीं दिया | सुराही ने कहा कि ये कटोरी क्या बताऊ मैं तो लबालब भरी हूँ तू मेरे ऊपर उलटी पड़ी है , अगर तू सीधी होकर निचे आ जाओ तो तुमको लबालब भर दूँ | इसीलिए महात्माओ के दरबार में बड़ी होशियारी और सतर्कता से भाव से रहना चाहिए और जो भी मिल जाये और जब भी मिल जाये लेने के लिए चौकन्ने रहो क्यों कि पता नहीं कि वह मालिक कब और किस समय पर किस भाव पर खुश हो जाये और क्या दे दे , अगर कटोरी का मुँह सीधा होगा तो भर जायेगा और नहीं तो कुछ भी पल्ले पड़ने वाला नहीं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:31-12-2020

सतगुरु जयगुरुदेव **नव वर्ष मंगलमय हो** : 31-12-2020
आप सभी गुरु भाइयों, बहनों और प्रभु प्रेमियों को अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नव वर्ष मंगलमाय हो | सतगुरु दयाल आप सभी पर दया मेहर बरसाए | समस्त प्रभु प्रेमी अपने सतगुरु से प्राप्त नामदान से सच्चे आत्मिक धन की कमाए करे और अपनी जीवात्मा को सतगुरु की दया से इस नूतन वर्ष में अपने निज घर पहुंचाने का सच्चा जतन करे |
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज की एक - एक भविष्यवाणियों को याद करते रहे, जो सतगुरु दयाल ने अपने मुखारविंद से कहा है वो सब होता चला जायेगा | सतगुरु दयाल ने हमेशा हमको आपको समझाया की आगे का समय अच्छा नहीं है, तो हम सभी को सदा अपने सतगुरु की बातो को याद करने की जरुरत है और उन्ही के बताये रास्ते पर चलने की जरुरत है | किसी भी कठिनाई में केवल और केवल सतगुरु दयाल ही साथ देंगे दूसरा कोई नहीं |
अपने सतगुरु पर भरोसा रखो वो एक बार पुनः इस धरा मंडल पर औतरित होंगे और अपने सारे कार्य स्वयं पूरा करेंगे | जब सूरज निकलेगा तो वो सभी को उजाला देगा न की किसी एक को, धैर्य रखो अपने सतगुरु के आने की इन्तिजारी करो |
सच्चा सुमिरन ध्यान और भजन करो और गगन मंडल में सतगुरु की दया से चढ़ चलो |
गुरु महाराज ने बहुत पहले कहा था की आगे महामारियां आएँगी | अभी तो एक आयी है इसी एक में हालत ख़राब है तो आगे क्या होगा | अभी तो भूकंप भी आना बाकी है, अन्न की कमी होना बाकी और विश्वयुद्ध भी होना बाकी है, ये सब कब होगा ये तो वक्त के सतगुरु जयगुरुदेव ही जानते है, कोई दूसरा नहीं | गुरु महाराज ने बहुत पहले कहा था की मेरी कमर में बँध कर चौबीसो घंटों के लिए लटक जाओ लेकिन मेरी खोपड़ी में क्या है आप को पता नहीं चलेगा |
जो अपने सतगुरु जयगुरुदेव के संग होगा उन सभी की रक्षा और मदद सतगुरु दयाल करेंगे, साथ ही साथ जो प्रभु प्रेमी सत्कर्म कर्म करता होगा और शुद्ध शाकाहारी एवं निरामिष होगा उस पर भी सतगुरु दयाल की दया होगी और उन सभी की रक्षा और मदद होगी बाकी के लिए कुछ नहीं कहा जा सकता | |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:22-11-2020

गुरु महाराज का सतसंग-बम भोले बाबा ने काशी छोड़ दी और धर्म जगाने गए : - 08-07-1979
काशी में विश्वनाथ बम भोले शंकर जी ने दो वर्ष के लिए काशी छोड़ दी | और वह किस के लिए छोड़ दी आप के लिए | अब वह उन प्रेमियों के साथ चल दिए उन्हें देखे | जो दो करोड़ से ऊपर नर नारी नर नारी आये थे उनके साथ प्रदेशो में रवाना हो गए | जब काशी छोड़कर दो वर्ष के लिए बम भोले शंकर जी काशी से भक्तो के साथ रवाना हो गए तो क्यों रवाना हो गए ? जिस धर्म को आपने शहरों से जंगल में भगा दिया उसको कौन जगा सकेगा वह जब समाधि टूटेगी तो शंकर जी ही उसको जगायेंगे | और जब धर्म जाग जाएगा , शंकर जी और प्रेमी लोग जगायेंगे कि मैं तुम्हे जगाने के लिए आया हूँ और मेरे इस जगाने पर प्रार्थना पर तुम जाग जाओ और शीघ्र ही भारत की भूमि पर पवित्र महान आत्माये सहयोग देंगी तो धर्म खड़ा हो जायेगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:06-11-2020

गुरु महाराज का सतसंग-गुरु की पहचान हम कैसे करे - 1990
संतों ने अति दया की है हमारे लिए ग्रन्थ बनाये है जिनमे मालिक के मिलने का पूरा भेद दिया है | जब हम संतों के सत्संग में जावेंगे तो हमको एक तरह की समझ पैदा होगी जो काबिल परमार्थ समझ के हैं, जिसमे यह समझाया जावेगा कि तुम्हारा हकीकी और पूरा मालिक कौन है | और कहाँ रहता है और किस रस्ते से अपने हकीकी मालिक के पास पहुँच सकते हो | जब यह समझ आ जावे तो हमारा धर्म कर्तव्य है कि हम उन पुस्तकों को देखे जिनका संत कथन करते है | साथ उन पुस्तकों को भी देख ले जिनको हम हमेशा से मानते आये हो यदि हमारी धर्म पुस्तकों का भेद संतों की पुस्तकों में हो और उसके परे का भी भेद हो तो हमको समझ लेना चाहिए कि हमारा हकीकी सच्चा पिता इन सतगुरु के सत्संग से प्राप्त होगा | अब तुम्हे चाहिए कि तुम उन्ही संत सतगुरु से भाव सहित भेद पूछने की प्रार्थना करो | और साथ इस बात का विचार करते रहो कि हमारी प्रार्थना पर कुछ ध्यान देते है या कुछ देर का भाव प्रकट करते हैं | यदि देर उनके भाव से प्रकट हो तो समझना चाहिए कि मुझ में अभी कुछ कमी है | हम अपनी कमी को देखे और दूर करने का प्रयास करे और वक्त मौका देख कर प्रार्थना करते रहे | प्रार्थना करना गुनाह नहीं है |
दूसरी गुरु की पहिचान यह है कि उनके वचनों से संसार भाव ख़त्म होगा और परमार्थ भाव जागेगा |
गुरु के हर एक शब्द को जोर देकर समझना चाहिए और यह ध्यान रखे कि यह वचन बुद्धि के परे है | जिनका समझना असंभव है |
गुरु के दरबार की हाजिरी रोज देना जरुरी है | बगैर हाजिरी के हमारा कार्य नहीं होगा||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:04-11-2020

गुरु महाराज का सतसंग-ब्रह्मचर्य का महत्तव - 1990
मैं बताऊँ न एक गृहस्थ आश्रम में स्त्री और पुरुष सब बैठे है | दो महीने अगर तुम ब्रह्मचर्य का पालन करो तो सिर्फ दो महीने का | दो महीने का ज्यादा नहीं | स्त्री और पुरुष दो महीने का अगर ब्रह्मचर्य का पालन करे तो यह शरीर में से तुम्हारी बीमारी दूर हो जाये | दो महीने में से तुम एक दिन भी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते हो अफ़सोस है | यह इस शरीर की शक्ति को बिलकुल पानी की तरह से पतन कर दिया है | अरे भाई, बीमारी और कहाँ जाएगी ? कहते है वह कहती है ऐसे के घरो में तो मेरा घर ही है | मैं वही पर अपना बासा किया करता हूँ | ऐसे लोगो के यहाँ जो शारीरिक शक्ति को क्षीण कर देते है | मेरा वही तो घर और अड्डा रहता है |
इसीलिए महात्मा मना करते है | और जो वह कहते है कि जो ब्रह्मचर्य का पालन करते है, सदाचारी जीवन रखते है , नियमानुसार गृहस्थ आश्रम में रहते है, भाई वहाँ तो मेरा अड्डा ही नहीं है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:30-10-2020

गुरु महाराज का सतसंग-निःस्वार्थ किया गया कार्य भी भक्ति में माना जाता है - अगस्त 1990
लोगो की सेवा करते हो निःस्वार्थ होकर के वह भी भक्ति में अंत में जुड़ जाती है | तो हम लोगो को छोटी से छोटी क्रिया की समझ जो शारीरिक कर्म रहता है उसका रखना चाहिए | आखें हमारी क्या देखती है | कान हमारे क्या सुनते है ? वाणी हमारी क्या बोलती है ? हाथ पैरों की क्रिया क्या है ? मन का संकल्प क्या है ? जब हम युक्ति से विचार करते रहेंगे तो विवेक बुद्धि में आ जायेगा |
सारा संसार तो यह भ्रम का है ही | यह तो हमेशा ही आपको बताया जाता है | यह संसार भ्रम है | और यह चलायमान है | परिवर्तनशील है | क्षण भंगूर है | मनुष्य शरीर किराये का मकान है | इसी में रह कर लो | जब रास्ते पर लग जाओगे | थोड़ा बहुत भी चल पड़ोगे तो फिर इस काम को करने के लिए फिर भी आपको यह मानव जन्म मिल जायेगा | उस में लग जाओगे और उसी तरह से बताने वाले आचार्य गुरु आपको मिल जायेंगे और फिर काम आगे चल पड़ेगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:15-10-2020

गुरु महाराज का सतसंग-आगे आने वाले बढ़ जायेंगे और तुम बहुत पीछे रह जाओगे - जनवरी १९७०
गुरु महाराज से प्रार्थना करता हूँ : हम आप को हमेशा सावधान करते रहेंगे | आप को सुमिरन ध्यान में लगाते रहेंगे | हम गुरु महाराज से प्रार्थना करते हैं की इनकी आत्मा का कल्याण हो जाये | तुम्हारे में प्रेम भाव बढ़ता जाये | दुर्भाव न आने पावे | जब तुम शुद्ध और प्रेम मय न रहोगे तो आने वाले आगे के समय से लाभ न उठा सकोगे | अगर तुम अच्छे विचार वाले न रहोगे और रगड़े झगडे में पड़े रहोगे तो आगे आने वाले बढ़ जायेंगे और तुम बहुत पीछे रह जाओगे | नए से भी बहुत पीछे रह जाओगे ||
सबसे आगे रहो : भविष्य ऐसा आ रहा है की अपने को सदा तैयार और हर काम में आगे रहो | आगे आने वाले समय में यह कहने के अधिकारी रहो कि हम सब कदम से आगे थे | साधन में , भजन में , सेवा में | तो हम तो वह आदमीं हैं कि आप का नाम रोशन कर देंगे | आप पढ़े हों या न पढ़े हों ये ऐसी विद्या है कि सबसे सर्बोपरी | सबसे श्रेष्ठ ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:13-10-2020

गुरु महाराज का सतसंग-आँखों के ऊपर पांच स्थान है और नीचे भी पांच स्थान है - 26-जुलाई -2020
आँखों के ऊपर में पांच स्थान हैं पहला सहसदल कंवल, दूसरा उसके ऊपर त्रिकुटी , तीसरा उसके ऊपर दसवां द्वार, चौथा उसके ऊपर भॅवर गुफा और पांचवां सतलोक | जैसे नीचे पांच पिंड के स्थान है | वैसे ही ऊपर में, आगे नहीं जा सकते हो | तो राम को भी गुरु करना पड़ा | कृष्ण को भी गुरु करना पड़ा | जितने भी लोग आये हर धर्मो में उन्होंने गुरु को आगे रखा गुरु के बगैर कोई भी सिद्धि शक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है | इसमें मुख्य स्थूल शरीर में गुरु की इसीलिए विशेषता महिमा है| अब इतने स्थानों को ऊपर पार करके तब अपने घर में पहुंचोगे | बगैर पार किये हुए घर में नहीं जा सकते | अब ऊपर जाने के लिए उलटने के लिए पूरा पूरा गुरु का सहयोग, उसकी कृपा और उसकी शक्ति हर तरह की चाहिए | नहीं तो यह उलटेगा नहीं |
इसीलिए बिशेष कर के पहले के इतिहासों में और आज यह लिखा हुआ है की गुरु कृपा लो , गुरु दया लो, गुरु आज्ञा पर चलो , हमेशा ध्यान में रखो कि हम उसके खिलाफ तो नहीं जा रहे है | कोई ऐसी इन्द्रियों की शारीरिक क्रिया तो नहीं कर रहे जिससे की आवरण जमा हो रहा हो | इसी के लिए सत्संग रखा गया कि समय बेसमय जब भी वह कहीं भी मिले सत्संग तो सतसंग में ध्यान रखो | वह जो जन्म जन्मांतरों की, युगों युगों की काई को , जमा की हुई है कर्मों की , उसको साफ करता है | जब तक सतसंग जल नहीं मिलेगा उन महापुरुषों का तब तक यह सफाई नहीं होगी |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:08-10-2020

गुरु महाराज का सतसंग-मन में दृढ़ प्रतिज्ञा करो की भजन जरूर करेंगे - 1991
तो एक घंटे हमको समय दो २४ घंटे में | उसमे अलग अलग | एक घंटा पूरा (एक बार में ) मत दो | कभी 10 मिनट , कभी 5 मिनट , कभी 15 मिनट | जब यह अपना दृढ़ आप प्रतिज्ञा मन में बैठा लोगे कि भजन के लिए हम जरूर समय देंगे तब भजन आप का बनना शुरू हो जायेगा और दया मिलेगी आपको घाट पर |
यह जीवात्मा का हिरदय है दोनों आखों के मध्य भाग में | यह जीवात्मा यहां बैठी हुई है | जब यह सिमट कर आएगी तब जागेगी और दिव्या नेत्र ज्ञान चक्षु जब खुलने लगेगा कान खुलने लगेगें तो यहाँ पर दया मिलने लगेगी | अगर आप इसको खोलोगे नहीं आँख को , कान को तो आपको महापुरुषों की दया का परिचय आपको नहीं मिलेगा | वह तो स्थल पर, हिरदय पर दया का परिचय होता है | इधर देखोगे, आप करोगे तो मालिक की दया तब आपको पता चलेगी कि हम यहाँ पर किस तरह से आदान प्रदान में मेहनत करते है | और मालिक किस तरह से दयालू दया करता है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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Date:06-10-2020

गुरु महाराज का सतसंग-साधन में लाभ मिले तो गुरु की दया समझो - 1991
१) जब भी साधन भजन में लाभ पता चले तो उस मालिक की और गुरु की दया समझो |
२) संसार की ओर मन जाय, गुरु की ओर से मन में प्रेम घटने लगे , संसारियों की ओर से लगाव बढ़े तो समझो कि दया से दूर जा रहे हो |
३) दुखमय सुखमय दिन बीतता जाये और उस परमात्मा का नाम मिल जाये तो यह अपना अहो भाग्य समझो | यह परम सौभाग्य है | ४) दुनिया के लोग तरह तरह से त्यौहार मनाते है पर इनको कोई उसमे लाभ नहीं मिलता | उलटे धन और समय नष्ट करके अंत में खाली हाथ चले जाते है |
५) यह सत्संग ही सब त्योहारों का त्यौहार है क्योकि इसमें लगाया हुआ धन और श्रम अंत में सुख देने वाला है |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:03-10-2020

गुरु महाराज का सतसंग- देश में धर्म का निर्माण होगा - 1961
हम जो कुछ कहेंगे वही भविष्य में होगा। अभी तो बहुमत है इनके साथ। फिर इनका बहुमत काम नहीं करेगा तो फिर किसी का बहुमत आयेगा। उनका बहुमत भी स्थगित हो जायेगा। फिर नौजवानों का बहुमत होगा। यह बहुमत जल्दी जल्दी खतम होगा। इन सबके बाद आने वालों का बहुमत होगा जिन्हें आप महात्मा कहें, अवतार कहें, राम, कृष्ण, मोहम्मद, ईसा कुछ भी कहें। उनका बहुमत जब आयेगा तो उनके बहुमत से इस देश में धर्म का निर्माण होगा, न्याय सुरक्षा आयेगी, सारी व्यवस्थायें अपनी-अपनी जगह पर ठीक हो जायेंगी।
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
नोट : प्रेमियों, सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने खुले मंच से अनेको बार हिदायत दी की आप सभी मेरी तरफ देखो और मैं आप को देखू , बीच वाले को मत देखना नहीं तो तुम गिर जाओगे | इसलिए सदा अपने सतगुरु की तरफ ही देखना चाहिए और किसी की तरफ नहीं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
ग्राम - बड़ेला , पोस्ट - तालगावं, तहसील : रुदौली, स्टेशन- रुदौली (RDL)
जिला - अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत
मो: 9711862774, 8383997870

सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:30-09-2020

गुरु महाराज का सतसंग- भजन करने का तरीका महात्मा बतायेंगे - 19-05-2008
भजन में शक्ति है, ज्ञान है, आनन्द है। यह भारतवर्ष है। यहां की संस्कृति में धार्मिकता है। तुम्हारी बीमारी भजन से दूर होगी। भजन करोगे, विकार साफ करोगे तो बीमारी दूर होगी। भजन करने का तरीका महात्मा बतायेंगे कि कैसे सुरत (जीवात्मा) को घाट पर बैठा कर नाम यानी शब्द से जोड़ा जाय। महापुरुष जब ऊपर चढ़ते हैं तब देखते हैं कि जमपुरी क्या चीज है, कितने लोक हैं, कितने नर्ककुण्ड हैं। वो वहां जाकर देखते हैं कि जीवों की क्या दुर्दशा हो रही है। यहां महापुरुषों का कहना माना नहीं तो वहां अब कौन सुने। यमदूत ऐसा दण्ड देते हैं, ऐसी मार पड़ती है कि मीलों तक तुम्हारे चिल्लाने की आवाज जाती है पर कोई सुनने वाला नहीं। तुमने उनका कहना मान लिया, घाट पर बैठ गये तो पकड़ लेंगे और बचा लेंगे। ||सतगुरु जयगुरुदेव ||
नोट : प्रेमियों, सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने खुले मंच से अनेको बार हिदायत दी की आप सभी मेरी तरफ देखो और मैं आप को देखू , बीच वाले को मत देखना नहीं तो तुम गिर जाओगे | इसलिए सदा अपने सतगुरु की तरफ ही देखना चाहिए और किसी की तरफ नहीं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29-09-2020

गुरु महाराज का सतसंग- महात्मा जीवों को पकड़ते हैं तो छोड़ते नहीं - सन : 2006
मैंने देश में बड़ा जागरण किया है, बड़ी मेहनत की है और अपने काम में अब भी लगा हुआ हूं। यह संसार एक गांव है इसमें होशियार हो जाओ। जागते रहोगे तो बच जाओगे वर्ना काल और माया ऐसा दांव मारेंगे कि चित्त हो जाओगे और भारी नुक्सान हो जायेगा। इशारे में बात कही जाती है उसे समझना चाहिये। महात्मा जीवों को पकड़ते हैं तो छोड़ते नहीं, बराबर सम्हाल करते रहते हैं। कबीर, नानक आदि जितने भी महात्मा पहले आये उन्होंने बहुत से जीवों को नामदान दिया, प्रभु प्राप्ति का रास्ता बताया। उनके अपनाये बहुत से जीव अभी तक पड़े हुये हैं और अभी तक अपने सच्चे देश सत्तलोक सचखण्ड नहीं पहुंच पाये। उन्हें बराबर मनुष्य शरीर मिलता जा रहा है और महात्मा भी उन सबसे भजन कराने में लगे हैं क्योंकि बिना भजन किये जीव का कल्याण नहीं हो सकता। महात्मा इतनी ऊंची मंजिल पर बैठे होते हैं कि वहां से उन्हें सबकुछ दिखाई देता रहता है जैसे सब कुछ सामने ही है। आपके लिये अमेरिका दूर है लेकिन उनके लिये बिल्कुल सामने है और सब कुछ बराबर हर क्षण देखते रहते हैं कि कौन क्या कर रहा है। इसलिये भजन कर लो और चलो यहां से। यह मृत्युलोक परदेश है और परदेश में कभी सुख और आराम नहीं मिलेगा।
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
नोट : प्रेमियों, सतगुरु दयाल परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने खुले मंच से अनेको बार हिदायत दी की आप सभी मेरी तरफ देखो और मैं आप को देखू , बीच वाले को मत देखना नहीं तो तुम गिर जाओगे | इसलिए सदा अपने सतगुरु की तरफ ही देखना चाहिए और किसी की तरफ नहीं |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:27-09-2020

गुरु महाराज का सतसंग- केवल तीन बातें: - सन :06-09 -1961
तुम लोगो के समक्ष इतना सत्संग सुनाया हर प्रकार से साधन भजन के सरल तरीके बताया पर अब भी यदि तुम लोग यह कहो कि साधन नहीं होता है अंतर में रस नहीं मिलता है तो बड़े ताज्जुब की बात है | इसका कारण और निवारण आज तुम्हे बताता हूँ | ध्यान से सुनो और इसे पकड़ लो | इसके बाद भी अगर तुम्हे शिकायत रहे तो फिर हमसे कहना |
होता यह है कि हम लोग अपनी बुद्धि से काम नहीं लेते है | सत्संग बराबर न मिलने से मन मोटा हो जाता है, साधन भजन में कमी होती है | लोग एक दुसरे की निंदा तथा शिकवा शिकायत में लग जाते हैं | खुद अपनी बुराइयों को न तो देखते हैं और न दूर करने की कोशिश करते है | धीरे धीरे साधन भजन में रस मिलने का कौन कहे अरुचि उत्त्पन्न हो जाती है |
तो मैं आज तीन बात बताता हूँ ध्यान से सुनो और इसे दृणह्ता से पकड़ो :
१. अपनी बुद्धि से काम लो | अपना विवेक ठीक रख कर अपना हित और लाभ (परमार्थी) समझ कर उसी के अनुसार काम करो | किसी के कहने में हरगिज नहीं चलना चाहिए | तो अपनी बुद्धि से ही काम करो | समझ और सोच कर जिसमे तुम्हारा परमार्थी लाभ हो वही काम करो | अपने संसारी काम में नौकरी चाकरी में या ब्यवसाय में भी उतना ही काम करो जिससे तुम्हारे परमार्थ का नुकसान न हो | अपने उन कामो में जरुरत से अधिक फसने में परमार्थ का नुकसान अवश्य होगा | तो परमार्थ के काम का ध्यान रख कर साधन भजन में पूरा समय दो तथा अपनी बुद्धि से काम लो |
२. न दुसरो की निंदा करो न सुनो | कोई किसी की शिकायत करता हो तो वहां न बैठो | अपनी जबान से किसी की शिकायत न करो | शिकायत तो न करना चाहिए न सुनना चाहिए | शिकायत ही करते सुनते सारा समय उसी में खर्च हो जाता है | तो साधन भजन कब होगा ? इसिलए चाहे सत्संगी ही क्यों न हो काम से काम | उसके बाद दूसरी कोई बात नहीं | ज्यादा बात करने का मतलब है शिकवा शिकायत निंदा आदि करना , सुनना | साधन भजन के लिए पूरा समय नहीं दे सकते | फिर अंतर का रस कैसे मिलेगा | अरुचि तो आ ही जाएगी | तो न आप किसी की शिकायत करे न सुने | यदि कोई शिकायत करे तो आप सुने ही नहीं | अपनी बुद्धि से काम ले | दुसरे के औगुनो को न जानने की कोशिश करे न जाने | उसके गुणों को जानकर उसे ग्रहण कर ले और उसके औगुनो को वही छोड़ दे |
३. अपने अवगुणो को मनन कर छोड़े तथा गुणों को बढ़ावें | अक्सर होता ये है कि दूसरो के अवगुणो को हम बड़ी रूचि से बयान करते है जिससे उसका सब बोझ अपने ऊपर हम लेते है तथा अपने गुणों का डंका चारो ओर पीटते है जिससे अपने औगुन ज्यों के त्यों अंदर रक्खे रहते है तो आप अपने अवगुणो को धीरे धीरे छोड़े |
इस प्रकार ये तीन बाते आप अवश्य करे |
अपनी बुद्धि से काम ले | दूसरों के कहने में न चले | न किसी कि शिकायत करे न सुने | तथा अपने अवगुणो कि चर्चा करके छोड़े |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:25-09-2020

गुरु महाराज का सतसंग- संत ही गूढ़ भेद देते है : - सन : 1990
संतो को जीवो को उठाना पड़ता है | बहुत मेहनत करनी पड़ती है | संस्कार डालने पड़ते हैं | सिखाना पड़ता है | मुहब्बत प्यार तड़प पैदा करनी पड़ती है | लगन जगाना पड़ता है तब जा कर के उस प्रभु की पूजा होती है |
पढ़ने से यह भेद नहीं जाना जाता :
यह आत्मा की पूजा है | इससे आत्म बोध आत्म ज्ञान आत्म आनंद की पूजा होती है | बहार की पूजा से यह सब नहीं होता | सूरत से शब्द की पूजा होगी तब उस प्रभु का बोध होगा | तब आनंद मिलेगा, शक्ति मिलेगी और ज्ञान मिलेगा | तो यह भेद कोई जनता नहीं है | किताबो में तो सब लिखा है पर किताबें किसको समझ में आवें | महापुरुषों की जो किताबे हैं , उनका राज और भेद जो लिखा है वह तो समझ में आवेगा नहीं | उसके लिए तो अनुभवी पुरुष चाहिए | इसीलिए शब्द को, आवाज को पकड़ो | नाम को पकड़ो | वह जम्बूरा है , शिकंजा है | क्योंकि जब वह उसको पकड़ लेगा तो फिर नहीं छोड़ेगा | तो नाम से पकड़ा देना चाहिए | मेरा हाथ पकड़ लो मेरी भुजा पकड़ लो | जब शब्द इस सूरत यानि जीवात्मा को पकड़ लेगा तो फिर छोड़ना नहीं चाहता जैसे भौरा | तो जब पकड़ लेगा तो छोड़ेगा नहीं | चाहे हड्ड़ी टूट जाय| चाहे हाथ पैर टूट जाय | इसी तरह से शब्द है | शब्द चेतन है , शब्द ज्ञानी है , शब्द जाग्रत है | शब्द बोलता है , शब्द सुनता है , कोई ऐरा-गैरा शब्द नहीं है | वह जाग्रत इस मनुष्य शरीर में अनमोल है | इससे सब कुछ होगा |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:24-09-2020

गुरु महाराज का सतसंग - सन : 1990
चिट्ठियां क्या लिखते हो ? अंतर और बाहर का गुरु यही कहता है कि ३ घंटा साधन में बैठो और कम खाओ कम सोओ कम बात करो | इंद्री विकारों को रोको और दो महीना ब्रह्मचर्य का पालन करो | ताकि शरीर में सुस्ती न आवे और मन लगाकर भजन कर सको ताकि तुमको अंतर का रस मिल जावे | अफ़सोस ! लेकिन एक भी बात नहीं सुनना | हजार दफा अनुभव किया होगा और रस नहीं पाया | पर आदत से लाचार हैं | ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करना , शरीर में सुस्ती रहती है काम रहेगा , क्रोध रहेगा , लोभ रहेगा , मोह जरूर आएगा और साधन में १५ मिनट भी नहीं बैठ सकेगा | गुरु से प्यार करना चाहते हो तो इतनी बातें जरूर माननी होगी | सेवा करनी होगी | जितना हम अपने बच्चों कि करते हैं | ब्रह्मचर्य का पालन २ माह तक करना होगा | ३ घंटा साधन जरूर करना है २४ घंटे में से | इसके बाद आप अपने पत्र में अपनी भूल लिखें और दया मांगे |
दया काम करती है और पहुंचाई भी जा रही हो और उस पर भी कहा जाता हो कि दया दीजिए | कितनी बड़ी भूल और भ्रान्ति है | गुरु अपने वचनो में कहता है कि दया के लिए आया हुआ हूँ | अंतरात्मा और परमात्मा कि रौशनी हो रही है उसे तुम पालो ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:20-09-2020

गुरु महाराज का सतसंग - सन : 1973
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने सन १९७३ में सत्संग सुनाते हुए बताया की बहुत से बड़े बड़े फ़क़ीर महात्मा अपने अपने समय में आये और जब तक उनका काम पूरा नहीं हुआ तब तक लोग उनको समझ नहीं पाये मुहमद के वक्त में उमर नाम का एक कातिल जाहिर और जब ओ कहता है की ओ मुहमद जो मजहब के खिलाफ काम करता है और ये मेरी तलवार है और ये जब मुहमद को खत्म कर देगी तब म्यान में जाएगी | नंगी तलवार लेकर चला जा रहा | रस्ते में किसी ने पूछा कहा जा रहे हो उमर ? कहने लगा की उस काफिर और जाहिल को मरने जा रहा हूँ | कहने लगे उनको क्यों मरते हो पहले अपने बहन और बहनोई को मर डालो तब उसको मारना | फ़ौरन उधर से घूमकर बहन की ओर चल पड़ा | जहाँ पर बहन की शादी हुई थी वही पर अंदर में मुहमद साहब बैठे हुए थे | जब ओ गया और बहन सामने आई तो बाल को पकड़ कर जमीं पर पटकना चाहा | बहन ने कहा अरे क्या कर रहे हो | अगर तुम उसको काफिर समझते हो तो मुझे मार डालना लेकिन पहले तो उससे दो कलाम तो उसके सुन लो | उसके बाद जो चाहना सो करना | उसने दो आयते उसको सुनाई उसमे इतना प्रेम भरा हुआ था की उमर की तलवार जमीं पर गिर गई | मुहमद साहब दरवाजे से आये दरवाजा खोल दिया | तब उसने कहा की चरणो में गिरता हूँ और ये कहा की ये तुम क्या कर रहे हो अपनी शक्ति का द्रुप्योग करते हो | उसने कहा मैंने आप को पहचाना नहीं तब उसने कहा की अब ये तलवार म्यान में जब जाएगी जब इस्लाम का प्रचार करेगी | उद्धव का प्रेमियों का ऐसा सच्चा प्रेम होता है की ओ परमात्मा उन प्रेमियों के पीछे पीछे घूमता रहता है | ये हमारी धार्मिक पुस्तकें महात्माओ की हमको पूरा विश्वास दिल चुकी है और ये सत्य है की परमात्मा भक्तो के साथ साथ रहता है | जब जरुरत पड़ती है तो भक्त वत्सल बनकर और दुनिया को दिखा दिया करता है की देखो भक्तो की इस प्रकार से रक्षा किया करता हूँ | चाहे वह खम्भ से निकल आये | या ओट में खड़े होकर दो पत्ती के फूल से बचा ले या और किसी तरह से | ओ गज की जब लड़ाई हुयी थी तो कैसे बचाया ये तो है | लेकिन समय के इंतिजार में हम लोगो को उसका खेल देखना है |
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज , सत्संग , 1973
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:19-08-2020

गुरु महाराज का सतसंग - Date:03-Aug-1986
तीसरे तिल पर मन, चित, बुद्धि, को टिकाओ |
आप यहां जिस काम के लिए आये हो, उसका पूरा लाभ उठाओ |
तीसरे तिल पर सतपुरुष की धार आती है | जब तुम मन बुद्धि चित से सूरत को वहां टिकावोगे तब मन का घाट बदलेगा |
मन की निरख परख तुमको ही करनी है कि उसमें कितना विवेक आया, कितना ज्ञान आया, कितनी दुनिया से उदासीनता हुई | गुरु इधर मिलते है , ये है पंचभौतिक शरीर | उधर भी मिलते है, तीसरे तिल से लेकर सतलोक तक | कहीं पर यदा - कदा मिलते है , कहीं थोड़ी देर के लिए मिलते है और कहीं निरंतर साथ रहते हैं | ऊपर अनेक मंडल है जीवों को फ़साने के लिए | जीव सोचता है कि बस यहीं सब कुछ है | अगर गुरु उसका साथ न दे तो वह आगे नहीं जा सकता | यहां पर इन्द्रियों के आनंद में फसकर तुम सब कुछ भूल जाते हो , इसको छोड़ना नहीं चाहते तो ऊपर के मंडलों के सुख का कहना ही क्या है | साधना तो तुम्हे करनी ही होगी | जिन्होंने साधना कि उनमे कोई एक जन्म में , कोई दो जन्म में या तीन चार जनम में पहुंच गए | जिसने नहीं की वे आज तक नहीं पंहुचा | शब्द चेतन और ज्ञानमय है | वह सुरत को तौलता है की उसमे कितना विश्वास है, कितनी बर्दास्त है , कितना खिचाव यह बर्दास्त कर सकती है | बर्दास्त के अनुसार ही शब्द सुरत को खींचती है | तुम्हारे आँख कान और नाक में गन्दगी जम गयी है | इसलिए न तुम देख सकते हो , न सुन सकते हो और न उधर की खुशबू ले पाते हो ||
तुम्हे साधन भजन करना ही पड़ेगा ||
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
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सतगुरु जयगुरुदेव :

Date:29/07/2020

सतगुरु जयगुरुदेव : गुरु महाराज के शब्द - कलयुग में सतयुग अवश्य आएगा :
सतगुरु जयगुरुदेव :परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने आजमगढ़ में १९८० में सत्संग सुनाते हुए कहा की अब मैं कुछ कहना चाहता हूँ उसको सुनो | कलयुग में लिखा है महात्माओ ने कि कलयुग के कुछ हजार वर्ष जब बीत जायेंगे तो ऐसी कलयुग में सतयुग कुछ हजार वर्षों के लिए आएगा | मैं आपके सामने जो बैठकर बोलता हूँ खड़े होकर बोलता हूँ वह बाबा जी की बात झूठ होने वाली नहीं | जो कुछ इस मंच पर तुम्हारे सामने बोलूंगा वह झूठ होने वाला नहीं | क्योंकि बाबा जी को कोई स्वार्थ नहीं किसी तरह का कृष्ण भगवान को राम को ईसा को , मुहम्मद को कबीर को रैदास को कोई स्वार्थ नहीं था | स्वार्थ केवल इतना ही था इसमे की मनुष्य तन अनमोल है इतना जानकर इसे भगवान तक पहुचाये "जीवात्मा " को जिससे आराम पा जाएँ | यह तो स्वार्थ हैं || यह ध्यान आप रक्खे "कलयुग में सतयुग " लगेगा इसीलिए आप के सामने एक ढिंढोरा आया | एक बिगुल बजाया २५ दिसंबर १९७७ से अहमदाबाद से प्रारम्भ हुआ | सतयुग की स्वागत तैयारियों के लिए आप तैयार हो जाये और कलयुग में सतयुग आएगा | और बड़ी सामग्री को लेकर भारत भूमि पर उतरेगा | बड़े ध्यान से आप लोग सुने | जब मैंने सतयुग आगमन साकेत यज्ञ अहमदाबाद में किया , विद्वानों द्वारा वेद मन्त्रों से तो मैंने देखा की मुस्लमान भाइयों की देवियाँ भी आती थी बुरका पहन कर | बुर्के को ऐसा कर दिया और आहुति देती थीं | इस तरह | मैंने खड़े होकर खुद सामने देखा | मैंने कहा कभी की तुम मुस्लमान हो ? या तुम ईसाई हो ? या तुम छोटे हो ? या तुम बड़े हो ? यह मैं कभी पूछता हूँ ? तुम सब खुदा के बनाये एक आदमीं हो इसमें "रूह " जीवात्मा है | परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज , सत्संग, आजमगढ़ , 1980
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का शिष्य : सुनील कुमार गुप्ता,
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर
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सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु जयगुरुदेव : गुरु महाराज के शब्द - परमार्थी वचन संग्रह से :
**साधन क्यों नहीं बनता**
बहुत से सत्संगी शिकायत करते है की हमारा भजन नहीं बनता है , उनको हर दफा समझाया जाता है सचेत होकर साधन पर बैठा करें और समय साधन के अनेक प्रकार की लड़ाई धन बीमारी मुकदमें की वासना अनर्गल न उड़ाया करें | ऐसे समय में जीव उन्ही तरंगों में बह जाता है और समझता है की हम तो साधन पर बैठे थे हमको क्यों सुनाई दिखाई नहीं दिया |
चश्म बन्दों गोश बन्दे लव विवंद |
आँख कान और मुँह बंदकरके अगर हक (मालिक ) का भेद न देखो तो मुझपर हंसो |
आँख कान मुँह बंदकर, नाम निरंजन ले |
अंतर के पट जब खुले, बाहर के पट जब दे ||
सुरत शब्द अभ्यास के लिए घर बार छोड़ने की आवश्यकता नहीं है और गुरु से भेद लेकर एकांत में बैठकर दोनों भौहों के मध्य भाग में यानी बीच में दृष्टि को रोक क्र ध्यान जमाना चाहिए | ध्यान के वक्त स्वरुप सामने हो और किसी प्रकार की वासना न उठे | ऐसा जो सावधानी से करते हैं ,वह एक न एक दिन मालिक को पा जाते हैं | इस भृकुटि के मध्य भाग में कृष्ण ने अर्जुन को संकेत करते हुए कहा की मध्य भाग में ध्यान जमाकर और अपनी सुरत को ऊपर चढ़ाकर मोक्ष प्राप्त करने के हेतु योग करो | केवल सेवा और प्रेम, मोक्ष के लिए काफी नहीं है | जब अर्जुन के लिए सेवा और प्रेम, मोक्ष के लिए सब कुछ नहीं है , ऐसा कृष्ण ने कहा तो भक्त जो केवल तस्वीर पूजते है उनके लिए मोक्ष क्या सब कुछ होगा ? ऐसा विचार करने और कराने वालो का मिथ्या भरम है | इंजील में पूर्ण रूप से ईसा ने संकेत करते हुए कहा और इशारा किया की ईश्वर का राज्य चाहते हो तो उनका राज्य पाने वालो से मिलो उनकी खोज करो | साफ़ ये भी लिखा की पंछी और परिंदो को देखो की न वह कुछ बोते है और न काटते हैं | फिर भी आशमानी पिता उनको खिलता है , क्या तुम उनसे ज्यादा अच्छे नहीं हो | मैंने देखा की दरवाजा आसमान में खुला है और पहला शब्द घंटे के समान था और उसने मुख से कहा यहां आओ और मैं तुम्हे भविष्य की बाते दिखलाऊंगा | मैं फ़ौरन गया उसी का रूप बन गया | आसमान में डोरी पकड़ कर उठा और देखा की सिंघासन आसमान में बिछा है और उस पर एक दिव्या पुरुष बैठा है | स्थल पत्थर के सामने बैठा नजर आया उस पत्थर में से विजली की चमक और गरज की आवाजे आती थी सिंघासन के सामने सात दिए जल रहे थे जो खुदा की सात रूहें थीं |
संपर्क सूत्र : 09711862774

सतगुरु जयगुरुदेव :

26 Sep 2019

सतगुरु जयगुरुदेव : गुरु महाराज के शब्द - परमार्थी वचन संग्रह से :
**साधना नित्य ही करना चाहिए**
जो रास्ता सुरत शब्द योग का मिल गया है उसको प्रीति और विश्वास के साथ, हर रोज कमाई करना चाहिए क्योकि तुम्हारी साधना से तरक्की होगी | किसी कारण यदि तुमने साधना में कमी कर दी तो अभ्यास में जो तुमने पाया है, उसमे कमी अवश्य होगी जिससे मालूम होगा की गुरु की दया अब काम नहीं करती है | सुरत शब्द के साधकों को साधन करते समय घबराना नहीं चाहिए | क्योकि शब्द तुम्हारी सफाई चाहता है तुम साफ हो जाओगे |
तुम्हारे अंदर झीनी माया व्याप रही है जिसकी तुम्हे खबर नहीं है| वही झीनी माया तुम्हारे अंदर एक तरह की फुरना पैदा करती रहती है | हर प्रकार साधको की गलती रहती है | साधन खुद नहीं करते है और इसी से सत्संग में रूखे फीके बैठते है | गुरु उसी वक्त तुम्हारा जिम्मा लेगा जब तुम साधन करोगे | बहुत लोग सुरत शब्द के मार्ग को ले लेते है और समाया अभाव में साधन करते है बाकी और साधन मन इंद्रियों के होते है इस वजह से साधन में तरक्की नहीं होती है | जो साधक गुरु का उपदेश लेकर डावाडोल रहते है वह वेचारे जीव संतो की कोई वस्तु नहीं पा सकते है | संत देने के लिए आते है और जीव उन्हें नहीं लेता है | जीवो की प्रीति संतो के चरणों में होगी तब कुछ उनसे नामदान मिलेगा और किसी जतन से संतो का धन नहीं पा सकते है | जब संत दीन देखते है तब नाम देकर बंधन से मुक्त कर डालते है |
संपर्क सूत्र : 09711862774

सतगुरु जयगुरुदेव :

साप्ताहिक सतसंग 2 Jun 2019, नोयडा

सतगुरु जयगुरुदेव : परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा स्वयं अपने मुखारविंद से 2010 में सतसंग सुनाया | यह गुरु महाराज का सतसंग अमरसंदेश पत्रिका, 2010 में छापा गया है, यह गुरु महाराज का सतसंग, साप्ताहिक सतसंग 2 Jun 2019 को अमरसंदेश पत्रिका से पढ़कर सभी प्रेमियों को सुनाया गया | सतगुरु के द्वारा कहे गए अमरवाणी एवं अखंडवाणी के सुनने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करके पूरा सतसंग सुने|
संपर्क सूत्र : 09711862774
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 2010
सत्संग सुनने के लिए तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

9 नवम्बर 2018

(गुरू भाई अनिल कुमार गुप्ता को परम संत सतगुरू जयगुरूदेव जी महाराज का अंतर आदेश (दिनाँक: 9 नवम्बर 2018 को ) समस्त गुरू प्रेमियों के लिए )
समस्त सतगुरू प्रेमियों को सूचित किया जाता है कि 22/11/2018 5:17 pm से 23/11/2018 6:17 pm तक "सतगुरू जयगुरूदेव" नाम की नाम ध्वनि होगी, तत्पश्चात सूर्य मुख हवन पूजन यवम सूर्य मुख आरती होगी |
हवन पूजन की तिथि यवम समय:
23/11/2018 को 6:17 pm से 7:17 pm के बीच |
हवन सामग्री : दूध, घी, चावल, 7 सफेद जायफल, सातों मेवा, हवन सामाग्री, सेंट सुगन्धी |
हवन की विधि :
1) सतगुरू जयगुरूदेव अर्पण
2) ऊँ शम्भू श्वाराय महाकाल पुर्शाय अर्पण
3) रामेश्वराय राम रामाय अर्पण
4) त्रिलोक अजय विजय सतगुरु सतयुग ब्रह्माय अर्पण
5) सतगुरू जयगुरूदेव अर्पण
नोट : ऊपर के लिखे मंत्रों को मन में बोलकर अग्नि में अर्पण करना है |
तत्पश्चात सुमिरन ध्यान भजन होगा |
समस्त भारत यवम विश्व के प्रेमियों को इससे आध्यात्मिक यवम भौतिक लाभ होगा साथ ही साथ सतगुरू का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त होगा मानव जाति के कल्याण हेतु ll समस्त प्रेमी सतगुरू का अंतर आदेश का पालन करे यवम इसे किसी व्यक्ती विशेष से जोड़कर न देखे |
Note : सभी प्रेमी सामूहिक सुमिरन ध्यान भजन आँख पर पट्टी बाँधकर घट में घाट बिंदु पर ही ध्यान देंगे l भजन में उँगली स्क्रू टाइप लगायेगे जिससे बाहर की आवाज न सुनायी दे और अंदर की आवाज स्पष्ट सुनाई दे |
नोट : सभी संत महात्माओं ऋषि मुनियों ने हवन पूजन कर प्रभु को प्रश्न्न किया ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 07052705166, 09711862774, 08004021975, 079 8565 7934
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 1984

सतगुरु जयगुरुदेव :

गुरु महाराज का सतसंग, 1977

परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा 1977 में सुनाया गया सत्संग | गुरु महाराज ने इस सत्संग में प्रथम "सतयुग आगमन साकेत महायज्ञ", अयोध्या , 1977 एवं द्वतीये "सतयुग आगमन साकेत महायज्ञ", साबरमती, अहमदाबाद, 1977 के बारे में स्वयं अपने मुखारविंद से बताते हुए |
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 1977
सत्संग सुनने के लिए स्वामी जी की तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

साप्ताहिक सतसंग 21 अक्टूबर 2018, नोयडा

सतगुरु जयगुरुदेव : परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा स्वयं अपने मुखारविंद से 1984 में सतसंग सुनाया और बताया की लोग "पंद्रह मिनट भी लोग साधन में नहीं बैठते है " | यह गुरु महाराज का सतसंग अमरसंदेश पत्रिका, 1984 में छापा गया है, यह गुरु महाराज का सतसंग, साप्ताहिक सतसंग 21 अक्टूबर 2018 को अमरसंदेश पत्रिका से पढ़कर सभी प्रेमियों को सुनाया गया | सतगुरु के द्वारा कहे गए अमरवाणी एवं अखंडवाणी के सुनने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करके पूरा सतसंग सुने|
संपर्क सूत्र : 09711862774
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 1984
सत्संग सुनने के लिए तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

साप्ताहिक सतसंग 07 अक्टूबर 2018, नोयडा

सतगुरु जयगुरुदेव : परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा स्वयं अपने मुखारविंद से 1986 में सतसंग सुनाया और बताया की "सतसंगी की रहनी एवं गुरु की पहचान हम कैसे करे " | यह गुरु महाराज का सतसंग अमरसंदेश पत्रिका, नवम्बर 1986 में छापा गया है, यह गुरु महाराज का सतसंग, साप्ताहिक सतसंग 07 अक्टूबर 2018 को अमरसंदेश पत्रिका से पढ़कर सभी प्रेमियों को सुनाया गया | सतगुरु के द्वारा कहे गए अमरवाणी एवं अखंडवाणी के सुनने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करके पूरा सतसंग सुने|
संपर्क सूत्र : 09711862774
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 1986
सत्संग सुनने के लिए तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

साप्ताहिक सतसंग 23 सितम्बर 2018, नोयडा

सतगुरु जयगुरुदेव : परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा स्वयं अपने मुखारविंद से 7 नवम्बर 1967 को देवरिया, उत्तर प्रदेश में सतसंग सुनाया और बताया की "आत्मा का द्वार , प्रा विद्या -----" | यह गुरु महाराज का सतसंग अमरसंदेश पत्रिका में छापा गया है, यह गुरु महाराज का सतसंग, साप्ताहिक सतसंग 23 सितम्बर 2018 को अमरसंदेश पत्रिका से पढ़कर सभी प्रेमियों को सुनाया गया | सतगुरु के द्वारा कहे गए अमरवाणी एवं अखंडवाणी के सुनने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करके पूरा सतसंग सुने|
संपर्क सूत्र : 09711862774
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 1967
सत्संग सुनने के लिए तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 04 दिसंबर 2005
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 4-12-2005
सत्संग सुनने के लिए स्वामी जी की तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 26 नवंबर 2018
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया सत्संग, 26 nov 1998
सत्संग सुनने के लिए स्वामी जी की तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया गुरुपूर्णिमा पर सत्संग, नैमिसारन, सीतापुर, उत्तर प्रदेश, भारत
सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सुनाया गया गुरुपूर्णिमा पर सत्संग, नैमिसारन, सीतापुर, उत्तर प्रदेश, भारत
सत्संग सुनने के लिए स्वामी जी की तस्वीर पर किलिक करे |

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22 August 2018

महाराष्ट्र सत्संग: 22 August 2018: गुरुमालिक का सेवादार-श्री अनिल कुमार गुप्ता जी द्वारा
Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21 August 2018

महाराष्ट्र सत्संग: 21 August 2018 : गुरुमालिक का सेवादार-श्री अनिल कुमार गुप्ता जी द्वारा
Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 23/07/2018

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गुरु मालिक ने गुरु बहन एकता श्रीवास्तव को अंतर में लिखवाया
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मालिक की दया से आज दिनांक 23 -7 -18 को प्रातः 10 :01 am पर जब मैं साधन में बैठी तो मालिक ने आध्यात्मिक रूप से सत्संग सुनाया| मालिक के वचन:
"सतगुरु जयगुरुदेव नाम किसका -प्रभु का| सतगुरु जयगुरुदेव नाम किसका - प्रभु का| सतगुरु जयगुरुदेव नाम किसका -प्रभु का| प्रभु का पवन नाम - सतगुरु जयगुरुदेव|
देखो बच्चे और बच्चियॉ!ये जो तुम लोग यहाँ जमावड़ा लगा लेते हो और जो असली काम है वो नहीं करते, तो उससे कुछ होने वाला नहीं है| जो आपको नामधन दिया गया जब तक उसकी कमाई नहीं करोगे तब तक कोई फायदा नहीं|
ये धन-दौलत, मान-सम्मान ये सब उस अमोलक धन के आगे कुछ नहीं जो आपको दिया गया है|
अब आपको अपनी सम्हाल स्वयं करनी होगी|ऐसा नहीं कि नामदान ले लिए और लेकर के बैठ गए कि अब तो कुछ करना नहीं है| नाम की रगड़ तो आपको ही करनी है कोई और करने नहीं आएगा|
नाम कि कमाई कर लोगे तो जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाओगे नहीं तो फिर से आते रहो|
कितने दिनों से समझाया और बताया गया ,संदेशे पे संदेशे भिजवाए गए पर आपको समझ में नहीं आया|आप ये मत समझो की यहाँ चले गए, वहाँ चले गए तो आपका काम हो गया|
मेरे बच्चे तो अपनी-अपनी जगह बैठ कर ही अपना काम कर रहे हैं| उनको कही जाने की जरुरत नहीं है|और कोई उनके साथ अगर 50 साल भी रह ले तो उनको कोई जान नहीं सकता की वो कौन हैं|
उनके अंदर इतना खजाना भरा हुआ है इतने हीरे मोती जवाहरात भरे हुए हैं कि कहा नहीं जा सकता|
संत महात्मा इतनी मेहनत से एक-एक जीव को जोड़ते हैं| संगत बनाते हैं| एक-एक जीव की सम्हाल करते हैं|और फिर एक ही झटके में वो संगत बिखर गयी सब इधर से उधर भागने लगे |हाहाकार मचा दी आपस में ही बैर-भाव रखने लग गए तो ये तो उन कुलमालिक को पसंद नहीं आया| तो उन्होंने मौज की कि अब सीधे अनाम देश से पावर उतार दी और सकल समाज के लिए रास्ता खोल दिया कि जो भी शाकाहारी सदाचारी हो वो "सतगुरु जयगुरुदेव" नाम कि शरण में आ जाये| पर उसमे भी आप अपनी बुद्धि लगाने लग गए| तो फिर कुलमालिक ने कहा कि जो समझ जाए तो ठीक है नहीं तो वो जाने उसका काम जाने|
तो अब आप समझ लीजिये कि आपको क्या करना है|अब जब काल का डंडा पड़ेगा तो समझ में आएगा| जो नाम की शरण नहीं गहेगा नहीं मानेगा तो वो जाने|
सतगुरु शरण परम हितकारी
लिओ नाम हर स्वांस जपा री
नूतन दृश्य दिखावें तुमको
घट घट सतगुरु स्वयं निवासी
रहो सतगुरु चरनन वासी
मिटे कर्म के बंधन फांसी
जन्म लियो तुमने प्रभु पाना
नाम लियो तुमको रगडाना
सतगुरु स्वयं सम्हाले उसको
जो जन शरण में जाये स्वामी
शीश नवाओ गुरु चरनन में
मिले वो तुमको धाम अनामी
सतगुरु जयगुरुदेव |"
मालिक के ये अनमोल वचन सुनकर मैं धन्य हो गयी| मालिक अपनी दया मेहर ऐसे ही बनाये रखना|

सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड भारत संगत गुरु की से गुरु बहन,
एकता श्रीवास्तव
(मुंबई - महाराष्ट्र)

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 30/05/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

साधो मनवा सब अन्तर में, गुरु की कृपा को पाओ |
नाम भजन असली है दौलत, उसमें लगन लगाओ |
नाम भजन होवे मालिक का, मुक्ति मोक्ष पद पाओ |
परम दयाल सतगुरु नामी, उनके गुण को गाओ |
घट के बिचे घाट बसा है, वहीं पर सब जन आओ |
दरश परस होवे सतगुरु का, अन्तर विद्या पाओ |
नाम रसाई गुरु किरपा से, ध्यान भजन मन लाओ |
शब्द अमोलक सतगुरु दीन्हा, नाम भजन को गाओ |
राम नाम का दर्शन पर्सन, अन्तर में कर आओ |
शब्द सिरोही सतगुरु नामी, नाम भजन मन गाओ |
घट पट खोलो सब अन्तर का, गुरु में लगन लगाओ |
हरी भजन बिन कटे ना कलेशा, ऐसा यतन बनाओ |
सतगुरु नामी तोहें मिल जावें, नाम भजन मन गाओ |
परमारथ का काम करो सब, आध्यातम शुख पाओ |
नाम भजन सबसे उत्तम है, कलयुग महिमा गाओ |
नाम राम आधार यहीं है, सतगुरु से मन लाओ |
सत के स्वामी पुरुष अनामी, मंगलमय हो जाओ |
करो बन्दना गुरु चरणन की, उनही को शीश झुकाओ |

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 20/05/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

परमानन्द सतगुरु स्वामी, हरी नाम बतलायो |
करो मिलन सब घाट के ऊपर, अध पट घट का खायो |
राम नाम की मणि मिली है, उसको नहीं चमकायो |
नाम रतन धन दियो अमोलक, बिरथा जीवन गवायो |
इस पाखण्ड का कौन भरोसा, सतगुरु गुण नहीं गायो |
नाम भजन साँचा है रस्ता, सतगुरु जी समझायो |
बिन अनुभव के तू जान न पयीहो, अन्तर ज्ञान फरमायो |
अध्यातम विद्या सब दिन्ही, सतगुरु भेद लखायो |
नाम भजन करो घट के बिचे, यही भेद समझायो |

सतगुरु जयगुरुदेव
परम पुरुष गुरु हैं मेरे स्वामी, जीव काज भर आये |
नर तन तन का भेद बताये, अमर लोक समझाये |
पाँच नाम स्थान बखाना, नाम भी तो भेद दहाये |
उसी नाम से भव सागर में, शब्द जहाज लगाये |
करो बन्दना उन चरणन की, नाम शब्द बिन जाये |

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19/05/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

………………….…….घट पट खोल दिखावें |
इस मानव का कौन भरोसा, राम नाम समझावें |
महा मंत्र सतगुरु जी देते, राम नाम समझावें |
अन्तर घट में दरश परश हो, प्रभु का धाम लखावें |
नाम भजन हो अन्तर मन में, प्रभु तुम्हें मिली जावें |
साँचे सतगुरु प्रीतम स्वामी, राम प्रभु कहलावें |
राम नाम की लूट मची है, संतन के भिक जावें |
करो बन्दना और प्रार्थना, सतगुरु जो मिली जावें |
साँचे राम नाम की किरपा, सतगुरु खोली बतावें |
यहीं बन्दना करो परभू से,राम नाम मिली जावें |
जन्म हमारो सुफल बनावें, मुक्ति मोक्ष मिली जावें |
मानव तन का पथ हो भारी, राम नाम गुण गावें |
सतगुरु चरणन करें बन्दना, मुक्ति पद मिली जावें |

सतगुरु जयगुरुदेव
यहाँ सत्संग स्थल पे उपस्थित सारे गुरु भाई बहन, मानव जाती के किसी भी धर्म के हों, सब उसी प्रभु की संतान हैं और प्रभु का भजन करने के लिए तो सच्चे संत सतगुरु की खोज करनी पड़ेगी | जब आप सच्चे संत सतगुरु की खोज करेंगे तो वो नाम बताएँगे | बिना सतगुरु के बिना गुरु के कुछ नहीं होता है और वो नाम बताएँगे साथ ही साथ नाम भजन करना भी सिखाएँगे | ये जो हमारा मनुष्य मानव पोल है ये अमोलक है, सबसे बड़ी दौलत है, बार बार ये नहीं मिलती है | कितने पुण्य जन्मों के बाद ये मनुष्य रूपी मानव पोल हमको आपको मिला है | हम आप हर प्रकार से सक्षम हैं, कोई भी काम अच्छा हो या बुरा कर सकते हैं |

जैसे गोस्वामी जी ने रामायण को लिखा | रामायण के सारे भेद को गोस्वामी ने समझाया | तो गोस्वामी जी ने समझाया और बताया है की जब हम और आप एक छोटे से नन्हें से जीव के रूप में, माँ के गर्भ में थे तब हमने प्रभु से कौल और करार किया था | जब माँ के गर्भ में थे तब हमको बड़ी दिक्कत और परेशानी हो रही थी तो वहाँ पर प्रभु के रोज नित्य दर्शन होते थे तो प्रभु से प्रार्थना करते थे कि “प्रभु दया करो यहीं बाकी, सब सज भजन करब दिन राती” | तो वहाँ पर प्रार्थना इसलिए करते थे कि माँ के जब गर्भ में थे तो उल्टे टंगे हुये थे | माल मूत्र कि जो थैली थी उसकी बदबू नाक में जाती थी और ऊपर को जाना चाहते तो जठराग्नि वो बहुत हीं गर्मी मतलब दुःख दायी था | तो प्रभू बन्दना प्रार्थना किया कि हमें बाहर कर दो और हम चौबीसों घण्टे आपका भजन पुजा आराधना करेंगे | उस समय प्रभु राम का पूरा का पूरा दर्शन होता रहता था | अब जब जन्म हो गया, जन्म के बाद बच्चा रोने लगता है तो कहते हैं कि थाली बजाओ, टार्च दिखाओ, दिया दिखाओ, कुछ जलाओ कुछ करो जिससे ये चुप हो जाय | तो वहाँ को जो अनहद वाणी थी, प्रभु राम कि जो वाणी थी, जो वहाँ कि आवाज थी, उसको वो सुनता था और वहाँ के प्रकाश को वो देखता था | इसीलिए वो रोता है | भूख कितनी बार लगेगी, एक बार दो बार चार बार छह बार, खा पी लिया उसके बाद में फिर सोना चाहिए था | मगर उसकी दौलत खो गयी है | वो तो राम नाम कि मणि लेकर के आया था पर वो उसको दिखाई नहीं पड़ती इसीलिए वो बच्चा रोता है | धीरे धीरे करके वो बढ़ने लगता है और धीरे धीरे बोलने भी लगता है की क्या हम देखते थे और क्या हम नहीं देखते थे | यहाँ माता पिता के संस्कार के अनुसार पढ़ाई लिखाई शिक्षा दीक्षा और नौकरी पेशा में लग जाते हैं | पर अब तो राम नाम छुट गया, अगर सतगुरु मिलें तो सारा सच्चा भेद समझावें और बतावें की देखो तुमने जो गर्भवास में जो कौल करार किया है कि “अब प्रभु भजन करब दिन राती”, तो सुबह शाम तुमने भजन नहीं किया | तुमने राम नाम का भजन नहीं किया है, तो जो तुमने कौल करार किया है, वो भजन करो |


सतगुरु जयगुरुदेव ||
सुमिरन कर लो राम नाम का, जीवन है दुःख दायी |
करो कामना प्रभु मिलन की, मुक्ति मोक्ष मिली जायी |
सतगुरु साँचे नाम बतावें, अवश्य मिलें रघुरायी |
हरी भजन हो मन के अन्दर, कटे कोटि मैलायी |
सतगुरु नाम अलौकिक साँचा,राम नाम हो जायी |
करो बन्दना उस परभू की, जो सतगुरु रघुरायी |
मुक्ति मोक्ष निज धाम के दाता, सारी लेत बलायी |
मन बुद्धि चित्त अर्पण करते, नाम राम धुन गायी |
मुक्ति मोक्ष का साधन साँचा, किजो काज बनायी |
शीश धरो सतगुरु शरणन में, मुक्ति मोक्ष मिली जायी |
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17/05/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

नर तन पायो महा अमोलक, नाम भजन नहीं गायो |
संतन की नहीं सेवा किन्हो, बिरथा जनम गवायो |
मान लोभ अपमान बटोरयो, लख चौरासी जायो |
संत सनातन सबके स्वामी, सतगुरु ने समझायो |
राम नाम का साँचा बाँचा, खुल्ला भेद बतायो |
सब संतो ने किया प्रार्थना, शाकाहार अपनायो |
लगन मगन हो प्रभु भजन कर, नर तन सफल बनायो |
घट पट खुले गुरु किरपा से, सतगुरु मेंहर बनायो |
नाम भजन कर तू सतगुरु का, समरथ संत है पायो |
घाट के ऊपर सतगुरु बैठे, उनमें मन को लागयो |
नाम भजन नर तन की पूंजी, बिरथा जीवन गवायो |
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, अपने अन्दर लगायो |
रंग महल के दस दरवाजे, सतगुरु खोली बतायो |
नाम भजन का साँचा रसता, ससते में समझायो |
करो मंजूरी घाट के ऊपर, उत्तम फल को पायो |
नाम भजन हीं सार भेद है, बृथा को जीवन गवयो |
नाम अमोलक दियो सतगुरु ने, क्यों नहीं मन को लायो |
घण्टा संख मृदंग सारंगी, बनसी बीन सुनायो |
पार देश का साँचा रसता, ससते में समझायो |
मन बुद्धि चित्त अर्पण करके, दर्पण में मन लगायो |
राम नाम की ज्योति निराली, दरस परस करि आयो |
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, चरणन शीश झुकायो |
सतगुरु जयगुरुदेव
सिद्ध पुरुष सतगुरु सतनामी, नाम भेद के दाता स्वामी |
नाम रसाई गुरु किरपा से, ओ हैं सर्व व्यापी नामी |
राम नाम को गुरु जगावें, सतगुरु खोली खोली समझावें |
संत सनातन सबके स्वामी, कृपा सिन्धु सतगुरु हैं नामी |
उनके चरणन शीश झुकाओ, नाम भजन अन्तर मन गाओ |

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14/05/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

परम पियारो साँचो सतगुरु, नाम निधि के दाता |
सब जीवों की रक्षा करते, सतगुरु जगत बिधाता |
नाम सिन्धु और अमर मुरारी, जिनकी दया कृपा बनी आयी |
सागर सुन्दर लहरें भारी, सतगुरु पार लगावन हारी |
शब्द भेद सतगुरु मेरे दाता, जो सच खण्ड से जोड़ें नाता |
सुने शब्द और होये निहोरा, छूटे बारंबार लफ़ेड़ा |
ऐसा नाम भजन है प्यारा, सतगुरु जी की उसमें सहारा |
सतगुरु के चरणन मन लाओ, नाम भजन को तुम भी पाओ |
नाम के नामी अद्भुत स्वामी, श्वैत पुरुष हैं सुन्दर नामी |
शकल पसारे का भेद बतावें, सतगुरु खोली खोली समझावें |
ऐसे सच भेदी का नाता, सतगुरु खोलै सबका खाता |
उत्तम पुरुष निराले नामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी |
मेरे मालिक मेरे स्वामी |

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 05/05/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम ( gram - badela) Date: 05:05:2018( Audio Only)

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 08/04/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम ( gram - badela) Date: 08:04:2018( Audio Only)

Guru PurnimaGuru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 25/03/2018

मुक़्ती दिवस का पावन पर्व बड़े धूम-धाम से 22 मार्च 2018 से 24 मार्च 2018 तक ग्राम बड़ेला में मनाया गया। 23 मार्च को सर्व प्रथम प्रात: 08:40 बजे अखण्डेश्वर मंदिर के प्रांगण में सतयुगी धर्म ध्वजा को प्रेमियों द्वारा फहराया गया।सभी प्रेमियों ने मुक़्ती दिवस गीत को गाया गया। इस समय का दृश्य बड़ा ही मनोहारी था। जो प्रेमीं उपस्थित थे,वही उस समय के गवाह हैं।तद् उपरान्त सत्संग के माध्यम से साधक गुरु भाइयों ने गौरवमयी दर्दीले इतिहास के विषय में बताया कि किस प्रकार कांग्रेस शासन ने स्वामी जी के साथ-साथ प्रेमियों को भी नाना प्रकार के कष्ट दियें। साधक गुरु भाइयों ने प्रेमियों को सुमिरन, ध्यान और भजन पर बैठाया। परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी ने सभी आये हुए पुराने और नए प्रेमियों पर घनाघोर दया की बरसात की। इस समय नव-निर्मित अखंडेश्वर मंदिर की छटा देखते ही बनती है,यही से मालिक अपना सतयुगी कार्य कर रहे है।
सतगुरु जयगुरुदेव
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
रेलवे स्टेशन : रुदौली (Rudauli) (Code: RDL)
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 25/03/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : मुक़्ती दिवस - बड़ेला धाम ( gram - badela) Date: 23/03/2018 सतगुरु जयगुरुदेव: मुक़्ती दिवस - बड़ेला धाम (Click here)

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 18/03/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम ( gram - badela) Date: 18:03:2018( Audio Only)

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 17/03/2018

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम ( gram - badela) Date: 17:03:2018( Audio Only)

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 16/03/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 15/03/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 14/03/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 13/03/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 02/03/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 01/03/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 25/02/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 24/02/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 23/02/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 07/02/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 06/02/2018

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 05/02/2018

सतगुरु जयगुरुदेव: बड़ेला धाम ( BADELA ) 05/02/2018 प्रार्थना पाठ एवं सत्संग ( Audio Only) सतगुरु जयगुरुदेव: बड़ेला धाम - प्रार्थना पाठ एवं सत्संग (Click here)

सतगुरु राधास्वामी सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 23/02/2018

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गुरु मालिक ने गुरु बहन बिन्दु सिंह को अंतर में लिखवाया
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सतगुरु जयगुरुदेव नाम में इतनी पावर भरी है, कोई नामी पावर भरके देखले | सतगुरु जयगुरुदेव नाम में इतनी गहन योग विद्या भरी है , कोई विरला अवगाहन करके देख ले | सतगुरु जयगुरुदेव नाम में इतनी रहस्यमयी आध्यात्मिक विधा भरी है कोई रहस्य्मय अति आध्यात्मिक पथ पर चलकर देख ले | सतगुरु जयगुरुदेव नाम अनामी कुल प्रभु का |

सबको सादर सतगुरु जयगुरुदेव : २२/०२/२०18
बच्चो ये अपाच्य औषधी है आसानी से हजम नहीं होगा | नाम की बारीकी को समझो, नाम की बारीकी समझने से अपाच्य से अपाच्य आसानी से हजम होता जायेगा |
सेली टोपी से नाम नहीं बरसता | नाम चरण आता है , नाम चरणों से रहमत बरसती है | नाम चरण पाने के बाद दुनिया ख़ाक दिखती है | शब्द देश से धार आकर चरणों में समायी है |
"|| बंद चरण सतगुरु के आये , शब्द सौभाग्य अखंड जगाये "||

सतगुरु जयगुरुदेव : 08/02/2018
ये नाम कैसा अदभुद है इसमें नामी ही बैठा न्यारा है | ये धाम कैसा जागृत है जिसमे सतनाम की धारा |

सतगुरु जयगुरुदेव : 09/02/2018
सतगुरु सतनाम से जोड़ने वाली डोर की पकड़ मजबूत होनी चाहिए | हवा चारो तरफ चलती है , हवा बही थर्रा गए | हवा क्या तूफानी आँधी चलेगी, तब भाग कर कहा छिपोगे | समय बिना बताये आता है | शब्द नाम के रास्ते बुहारो | शब्द नामी रहमत मिलेगी | शब्द नाम रहनुमा बनकर सामने हर वक्त हाजिर नाजिर मिलेगा | इनकी उनकी चाकरी में क्योंकर उलझते हो |
"एक अधार जगत जग जाना, शब्द नाम सतगुरु भगवाना |
शब्द गुरु की करिहों पूजा , शब्द से बड़ा कोई और न दूजा |
शब्द पदार्थ जगमें खोजो , आमिल कामिल नाम को ले लो |"

बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव : 28/02/2015, 6:36 ऍम
बच्चे कर्मो का विधान अटल है लेकिन सतगुरु में वो ताकत है | सतगुरु दिव्य अत्यंत फूल पावर आजाद रौशनी है , इसमें सब कुछ करने की , बदले की छमता है | सतगुरु कर्म की रेख पर मेख मार देते हैं | सारे कर्मो को जलाकर भष्म कर देते हैं | अब बोलो बच्चे सतगुरु से और क्या चाहते हो ? बच्चे जैसे तुम सतगुरु के लिए रोते हो अकहते हो, वैसे सतगुरु तुम्हे देखने के लिए बेचैन है | जब से यहां लाये गए हो धाम धाम सुना पड़ा है | हर धाम में तुम्हारा कोलाहल तुम्हारी किलकारी गुंजायमान रहती थी , लेकिन इस समाय सूना हो गया | अब सतगुरु को तुम्हारा यहाँ एक एक दिन क्या एक घडी एक पल भी रहना अखर रहा है | वो अपने बच्चों के लिए बच्चों से मिलने के लिए बेताब है | इन अपने बच्चों के शिवा अपना है ही कौन , उनको बहुत जल्दी है | जल्दी से सतयुग की स्थापना करके अपने निज पिता अपने कुल स्वामी के घर पहुंचकर, फिर विश्राम क्या अपने स्वामी में लय हो जाओ | जहां मिलौनी का नामो निशान नहीं | लेकिन जीव जागरण सतयुग की पुनः स्थापना और भी यहां के समस्त धर्म कार्यों का संपादन पूर्ण संपन्न कराकर ही , क्योकि इसी के लिए लाये गए हो | इसीलिए ही आये हो |
||अब नीव धर्म की रखनी है , ओ नूरानी हस्ती खुदा से उतरी है |
कोई गैर नहीं सब अपने है , सबसे ओ मुहब्बत करती है |
सतगुरु को सतगुरु जयगुरुदेव को रहनुमा बना , सतगुरु के सतयुगी आदेशों में चलती है |
सतगुरु जयगुरुदेव उन्हें सब कहते हैं , ओ राहें सतगुरु जयगुरुदेव की लखती हैं ||
अब दो युग सामने खड़े हैं , जिसको जो पसंद हो अनुकरण करे , वरण करे मेरी तरफ से कोई जोर जबरदस्ती नहीं | जो सत पथ पर चलेगा उनके साथ मैं चलूँगा , उनके साथ मैं रहूंगा | तुम्हारा अमर सतगुरु जयगुरुदेव साथ - साथ चलेगा और क्या चाहिए | सब कुछ तो अपना सर्वस्व अपने बच्चों को लुटाने के लिए आया बैठा हूँ | बाकी जो जहां चाहे जाये मेरी तरफ से छूट हैं | अब मेरे बच्चों आरत भाव से दिन रात प्रार्थना करते रहो | मैं तुम्हारे साथ साथ हूँ और साथ ही चलूँगा चिंता क्यों करते हो | तुम्हारा कोई बाल बाका नहीं कर पायेगा |
सतगुरु जयगुरुदेव
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
रेलवे स्टेशन : रुदौली (Rudauli) (Code: RDL)
प्रेषक : सुनील कुमार
संपर्क सूत्र : 09711862774

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 12/03/2017

पावन मंगल पुरुष अनामी, रूप धरो मानव सतनामी ||
शब्द भेद की राह बतायी, सत पथ मारग दिया दरशायी ||
नाम भजन सुमिरन एक माला, मैलाई को कटि कटि जाना ||
नाम अनाम बृहद सतनामा, पावन मंगल सतगुरु नामा ||
सत भाव से करो बन्दना, सतगुरु चरणन नमन अरधना ||
शब्द भेद का मारग दीन्हा, लख चौरासी से तुमको है छिना ||
नाम भेद है दिया बतायी, क्यों करते हो अब चतुरायी ||
सतगुरु नाम अनाम की पावर, सत देश की यह न्योछावर ||
सत दया और धरम बिराजे, अन्तर मंगल सतगुरु साजे ||
नाम ध्वनि को दिया सुनायी, शब्द भेद भी दिया लखायी ||
नाम अनूप बृहद सतनामा, सच्चा सतगुरु मोल मुकामा ||
सत के स्वामी पुरुष अनामी, मंगल शब्द भेद सतनामी ||
एक एक मण्डल शकल पसारा, सब दिखलायो रूप तिहारा ||
भेद खोल कर सब समझायो, कुल बृतंत और कथा सुनायो ||
तब भी पापी मन ना माने, लख चौरासी को जाना ठाने ||
एक अनिय और एक अनामा, सतगुरु तेरे मूल मुकामा ||
दृढ़ इच्छा शक्ति को रखो, सतगुरु चरण धरो एक वारा ||
मालिक दया मेंहर के स्वामी, स्वैत पुरुष मंगल सतनामी ||
ज्ञान ध्यान सतगुरु की किरपा, सत सत भाव सत सतनामी ||
सतगुरु मेंहर होये एक वारा, देखो सब जन शकल पसारा ||
नाम रूप की सड़क बनायी, उस पर सब जन करो चढ़ायी ||
दिव्य अलौकिक प्रकटै अन्तर, जपो जो तुम सतगुरु का मन्तर ||
मन्त्र अनाम देश की चाभी, लो तुम लाभ बनो सतलाभी ||
सत सत सतगुरु चरणन जाओ, सतगुरु जी की महिमा गाओ ||
सतगुरु चरणन हो अनुरागु, बंदो सतगुरु परम परागु ||
सत धाम सतगुरु सतनामा, ये सतगुरु का मूल मुकामा ||
श्रद्धा भाव से करो बन्दना, सतगुरु सत नाम की अरधना ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 30/नवम्बर /2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
नाम भजन साँचे सतगुरु का, प्रेमियों का आधार ||
सुमिरसुमिर कर नाम गुरु का, होवे बेड़ा पार ||
नामी अपने पुरुष अनामी,सत पुरुष करतार ||
शब्द भेद का मार्ग बतायो, ये सच्चा आधार ||
सतगुरु स्वामी पुरुष अनामी, करेंगे बेड़ा पार ||
शब्द सुहावन अति मन भावन, अन्तर में झनकार ||
शब्द सिरोही सतगुरु नामी, नाम का है ब्यापार||
नाम देत और जीव खरीदत, करते नईया पार ||
शब्द सुहावन मंगल देशा, सत पुरुष करतार ||
शब्द भेद के साँचे मालिक, सतगुरु हीं आधार ||
जिन सतगुरु ने नाम बतायो, वो हीं करेंगे उद्धार ||
सतगुरु मेरे पुरुष अनामी, सत नाम आधार ||
सूरत सुहावन अति मन पावन, सतगुरु नाम आधार ||
सत नाम का बाँचा बाँचे, सतगुरु हीं आधार ||
परम दयालु और किरपालु, करते हैं उद्धार ||
पुरुष अनामी नामी सबके, शब्द भेद करतार ||
घड़ी सुहावन अति मन भावन, जब ये मिलो है नाम ||
पुण्य उदित हुये जनम जनम के, मिला सच्चा आधार ||
ज्ञान वैराग्य हुआ सतगुरु संग, गुरु से किया है प्यार ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, तुम हीं तो हो आधार ||
शब्द सत में सत के मालिक, शब्द रूप झनकार ||
शब्द की सीढ़ी गगन मंझारी, नईया करती पार ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, कर दिजे उद्धार ||
हे सतगुरु सतनाम सिरोही, शब्द रूप सतगुरु नर देही||
त्रिभुवन आयो आप ||
मृत्यु लोक में अलख जगायो, तुमने दीन्ही दात ||
दात है प्यारी अति है दुलारी, जिससे बनेगी बात ||
सूरत हमारी शब्द देश में, अब तो करेगी वास||
पावन घड़ी सुहावन सुन्दर, शब्द भेद अविनास||
पहुँचे सुरतिया सत धाम में, बन जावे हर काम ||
नाम भजे साँचे सतगुरु का,पावेगी आराम ||
कुटुम्ब पड़ोसी गाँव के लोगवा, निर्जन करते वास||
अलख जागावो सत नाम का, सत्य नाम सत पार ||
सत सत नामी पुरुष अनामी, सत पुरुष करतार ||
सत चरणन में शीश झुकाऊँ, हो जाये उद्धार ||
सतगुरु जयगुरुदेव :

आरती सतगुरु सत अनामी, शब्द भेद सतगुरु सतनामी ||
सत सतकोटी तुम्हें परणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29/नवम्बर /2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

शब्द भेद साँचे सतगुरु का, बोलें बम बम नाथ ||
निर्गुण निराकार शिव भोले, दया मेंहर उनकी साथ ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, शब्द भेद रघुनाथ ||
साँचे सतगुरु शब्द सुनावें, देते नाम की दात ||
हे मेरे सतगुरु हे सतनामी, सत सत मेंहर सत नाम ||
सत नाम में लग जाये मनवा, हे मेरे करतार ||
शब्द शब्द की बनी है सीढ़ी, शब्द रूप झनकार ||
शब्दन भेद बतायो मालिक का, दया मेंहर तेरी साथ ||
मनवा लग जाये नाम भजन में, करूँ मैं आपका नाम ||
नाम जपन मैं सतगुरु चाहूँ, हे मेरे प्रभु रघुनाथ ||
दीन दयालु हे किरपालु, सतगुरु दीना नाथ ||
सत भेद अन्तर समझायो, घट में दीन्ही दात ||
घाट पार सब देश तुम्हारे, दया मेंहर में आप ||
सच्चे स्वामी पुरुष अनामी, हे सतगुरु हो आप ||
नाम भजन तुमने समझायो, तुमने दीन्ही दात ||
हे मेरे सतगुरु पुरुष अनामी, शब्द भेद रघुनाथ ||
सत सत नमन करूँ मैं तुमको, तुम हीं नवाऊँ माथ ||
दीन दयालु हे किरपालु, करुणा निधि मेरे साथ ||
संत शिरोमणि सतगुरु नामी, दया मेंहर की दात ||
पुरुष जो देखे अन्तर अद्भुत, लीला तेरे साथ ||
हे मेरे नामी सतगुरु स्वामी, दया करो रघुनाथ ||
साँचे सुन्दर पुरुष दयाला, शब्द की सीढ़ी घट में डाल||
घट घट वासी आप ||
दात दियो और भेद बतायो, सत मेंहर के साथ ||
रूप लखायो अलख अगम का, हे मेरे सरकार ||
नामी नामी पुरुष अनामी, दया मेंहर किया नाथ ||
जीव कल्याण हेतु तन धारा, सत्संग की बहे निर्मल धारा ||
नैन रहे अनुराग ||
शब्द भेद सतगुरु मेरे मालिक, हे मेरे दीन दयाल ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, हे मेरे दातार ||
नाम भजन में लगे ये मनवा, सत पुरुष करतार ||
शब्द भेद सतगुरु मेरे मालिक, आप हो दीना नाथ ||
चरण बन्दना तेरी करते, हे सतगुरु मेरे नाथ ||
नामी नामी पुरुष अनामी, शब्द भेद के नाथ ||
शब्द की सीढ़ी शकल पसारा, हे मेरे सतगुरु आप ||
सत अनामी पुरुष सतनामी, तुमही नवाऊँ माथ ||
हे मेरे सतगुरु पुरुष अनामी, प्रकट होवो हे नाथ ||
नर तन धारा बहे निर्मल अब, सत्संग ज्योति साथ ||
सत के स्वामी पुरुष अनामी, हे सतगुरु हो आप ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी ||
शब्द के तुम हो दाता, आप हीं खोलो अन्तर खाता ||
हे सतगुरु मेरे जगत बिधाता||
आपके चरणन शीश झुकाऊँ,मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ||
हे दयाल सतगुरु मेरे दाता,दया मेंहर कर खोलो खाता||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी,कोटि कोटि तुमको परणामी||
मेरे नामी मेरे स्वामी,सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 12/नवम्बर /2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

अनुपम छटा निराली अन्तर, शब्द भेद के नामी ||
दया मेंहर बरसे स्वामी की, बोलो राधा स्वामी ||
चरण बन्दना कर सतगुरु की, चरणन कोटि नमामि ||
शिव शम्भू तिरलोक पति को, कोटि कोटि परणामी ||
दया मेंहर आवे नामी की, सतगुरु हैं सतनामी ||
शब्द भेद अन्तर में समझो, सत सत नमन हे स्वामी ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, शब्द भेद सतनामी ||
दया मेंहर कर नर तन धारो, प्रभु सतगुरु मोरे स्वामी ||
दीन दयालु हे किरपालु, हे मेरे दाता नामी ||
शब्द भेद संचार तुम्हारा, दया मेंहर के नामी ||
दीन दयाल प्रभु संग मेरे, सतगुरु पुरुष अनामी ||
दया कियो और नाम बतायो, सतगुरु मेरे स्वामी ||
शब्द शब्द पर बना पसारा, सत की है रजधानी ||
सुंदर निर्मल कंचन मालिक, अकथ अकह है कहानी ||
नाम नामनी मोरे मालिक की, गावें संत जबानी ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, शब्द भेदसतनामी ||
मारग बतलायो निज घर का, सतगुरु मोरे स्वामी ||
दया मेंहर से सब हो जावे, दया मेंहर है नामी ||
हे मेरे संत सतगुरु प्यारे, होवे दया तुम्हारी ||
पंथ सनातन की रंगरलियाँ, सत धाम हो नामी ||
अपने जीवों को आयी उबारो, बन कर राधा स्वामी ||
दया मेंहर जब से है बरसी, स्वर्ग बैकुंठ में नामी ||
दीन दयालु हे किरपालु, हे मेरे सतगुरु स्वामी ||
शब्द भेद साँचा है तेरो, सुन्दर मधुर कहानी ||
सत पथ पंथ नहीं है हेरे, पंथ नरक है गामी ||
मेरे स्वामी का रूप अलौकिक, शब्द भेद हैं नामी ||
सुन्दर सुन्दर मूरत प्यारी, शब्द भेद सतनामी ||
धरा पे है अवतार लिया, सतगुरु मेरे नामी ||
पुरुष अनामी सतगुरु मेरे स्वामी, मेंहर करो हे नामी ||
दीन दयालु सतगुरु किरपालु, शब्द भेद के नामी ||
मेरे सवरिया सतगुरु साहेब, समझो बात पुरानी ||
दया दया में दया सिन्धु हैं, हे मेरे पुरुष अनामी ||
सत धाम में मेरी सुरतिया, बसै हे मेरे नामी ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, तुम्ही हो राधा स्वामी ||
शब्द भेद सतगुरु हमारे, सच्ची अकथ कहानी ||
सत नाम का भेद बतायो, सतगुरु मेरे नामी ||
हे मेरे पुरुष अनामी दाता, तुमको कोटि प्रणामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव आरती है अनाम श्रुति नामी, शब्द पुरुष मंगल सतनामी ||
सत सत कोटि तुम्हें परणामी, मेरे नामी मेरे स्वामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, कोटि कोटि तुमको परणामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 06/नवम्बर /2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

परम दयाल सतगुरु प्यारे, परम दया करके हैं पधारे ||
नर तन रूप पुनः हैं धारे, हर जीवों को करेंगे उद्धारे ||
समरथ संत हमारे ||
दया मेंहर आवे नामी की, पग पग घूमूँ द्वारे ||
नाम सिन्धु किरपाल सतगुरु, दया मेंहर के अधारे ||
साँचे नामी पुरुष अनामी, नर तन रूप हैं धारे ||
दया मेंहर किन्हा अति भारी, जीवों को आये उबारे ||
नाम जागृत पुनः है किन्हा, सतगुरु नाम हैं धारे ||
सत नाम धुन अन्तर बाजे, खुले घट के दरवाजे ||
नाम रूप आधार है सुन्दर, सतगुरु शरण तिहारे ||
मंगल बाजा अन्तर बाजे, शब्द रूप सत धारे ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, हम हैं तेरे द्वारे ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारूँ, रहूँ तुम्हारे अधारे ||
सत प्रेम की वर्षा करते, सतगुरु मेंहर तिहारे ||
नाम भेद है अलौकिक प्यार, सुन्दर मेंहर हे भारे ||
सतगुरु नाम जो साँचा लागे, रहो सतगुरु के अधारे ||
सत सवरिया प्रीतम नामी, हे गुरुदेव तुम्हारे ||
गुरु चरणन में शीश झुकाऊँ, रहूँ गुरु के हीं सहारे ||
सतगुरु जयगुरुदेव
जनम जनम का है ये नाता, सतगुरु खोल्यो है ये खाता ||
शब्द भेद आधारे ||
सतगुरु नाम सुधा रस बरसे, रहो सतगुरु के अधारे ||
परम दयालु सतगुरु मेरे स्वामी, नाम आपके द्वारे ||
संत शिरोमणि सतगुरु नामी,सत सत के द्वारे ||
मंगल नामी पुरुष अनामी, चंचल चितवन प्यारे ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, चले जाओगे उस पारे||
दिव्य सुहावन पावन झांकी, रहो सतगुरु के अधारे ||
नाम भजन तेरा बन जावे, सत सत नमन हो प्यारे ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, सत गुरुदेव हमारे ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, सतगुरु हैं सतनामी ||
सत मेंहर आवे मेरे मालिक, सतगुरु जी के द्वारे ||
हे मेरे नामी पुरुष अनामी, करूँ परणाम तिहारे ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु अलख फकीरा, शब्द भेद सतगुरु सतविरा ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, कोटि कोटि तुमको परणामी ||
मेरे मालिक मेरे नामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भजो मन सतगुरु जी का नाम ||
दीन दयाल बृहद मेरे शाहेब, पूरे हैं दातार ||
नाम भेद के सच्चे दाता, कुल मालिक सरकार ||
दया मेंहर आवे नामी की,होवेनईया पार ||
दीन गरीबी और बीमारी, सब में करें उद्धार ||
सतगुरु मेरे परम दयालु, परम पुरुष करतार||
शब्द भेद सतगुरु मेरे नामी, सत पुरुष सतगुरु सतनामी ||
साँचे पिता हमार||
मुक्ति मोक्ष के दाता सतगुरु, साँचे हैं सरकार ||
सतगुरु नाम पुकारो अन्तर, दया मेंहर की धार ||
सत धाम के सुन्दर मालिक, सतगुरु पिया हमार||
सतगुरु दया मेंहर कर दीन्हा,नईयाभव के पार ||
दीन गरीबी से है उबारा, दया किया बारम्बार||
सुमिरन ध्यान भजन मन लागे, सतगुरु जी का नाम ||
नाम भजन जपो सतगुरु का, साँचे सत का नाम ||
सत अनामी पुरुष सतनामी, सतगुरु हैं सज्ञान ||
दीन दयाल सतगुरु दाता, मेरे हैं सरकार ||
चंचल चितवन नाम भजन में,होवेगा उद्धार ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो,होवे बेड़ा पार ||
सतगुरु नाम धरो अन्तर में, अद्भुत दिखे संसार ||
दिव्य देश देखो धनियों के, सतगुरु सत हमार||
स्वर्ग बैकुंठ रचित तिरलोका, ब्रह्म पार के पार ||
महाकाल की करे बन्दना, हो जावे उस पार ||
दीन दयाल गुरु मोरे स्वामी, सच्चे नामी पुरुष अनामी ||
परम पुरुष करतार||
दया मेंहर के सच्चे नामी,नईया करेंगे पार ||
सतगुरु नाम अधर की कुंजी, नाम भजन अन्तर की पूँजी||
करो भजन मन ठान ||
सतगुरु मेंहर सब भारी, सतगुरु सच्चा जान ||
नाम अनाम बृहद हो पावन, शकल पसारे में है सावन ||
दया करें करतार||
सतगुरु स्वामी नामी अपने, नाम भजन आधार ||
सतगुरु जयगुरुदेव

नाम बेल एक सच्चा बगिया, सतगुरु नाम धारावें||
शब्द की सीढ़ी पकड़ के बंदे, हरी के लोक को जावें||
दया मेंहर हो नामी की, अन्तर में सुख पावें||
नामी अनामी जगत बिधाता, सतगुरु संत लखावें||
नाम भजन सच्चे मालिक का, रास्ता खोली बतावें||
अधर सेन की करी तैयारी, मंगल दृष्यदिखावें||
अद्भुत स्वामी मंगल नामी, नाम रूप बतलावें||
साँचे सतगुरु की करते बन्दना, सत धाम जावें||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, परम सूखा को पाओ ||
दरश परश हो अन्तर में, सतगुरु के गुण गाओ ||
सत के दाता सतगुरु मेरे, चरणन शीश झुकाओ ||
चरण बन्दना है मालिक की, आरती उनकी गाओ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी ||
कोटि कोटितीनकोपरणामी, मेरे सतगुरु मेरे नामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 07/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु परम दयाल मोरे स्वामी, सत पुरुष हैं पुरुष अनामी ||
नाम दान दीन्हा सतनामी, अन्तर भजन करो सब प्राणी ||
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु पावन मंगल नामी, सत पुरुष मालिक सतनामी ||
दया मेंहर करो सब पर स्वामी, दरश परश कर प्यास बुझानि ||
अन्तर दर्शन देओ नामी ||
सतगुरु प्रीतम मोरे सवरिया, हे सतगुरु मोरे हो स्वामी ||
मोरे धाम को देओ पहुँचायी, लख चौरासी से लेओ बचाई ||
दया मेंहर तेरी है नामी, सतगुरु मेरे पुरुष अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 06/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

सत भेद हैं पुरुष अनामी, सतगुरु मेरे स्वामी ||
दया निधि मालिक रघुवर ये, ये हीं पुरुष अनामी ||
नाम भेद के सच्चे दाता, सतगुरु संत अनामी ||
सत पुरुष सतगुरु मेरे मालिक, संत शिरोमणि नामी ||
दया मेंहर बरसे सतगुरु की, ये हीं हैं राधा स्वामी ||
सत नारायण स्वामी सतगुरु, प्यारे रघुवर नामी ||
रामायण के दाता स्वामी, आप हीं बने गोस्वामी ||
राधा स्वामी रैदास कहाये, गुरु गोविन्द गुरु नामी ||
गुरु चरणन की सत बन्दना, सच्चे सतगुरु नामी ||
शब्द भेद का भेदी पावन, अगम अलख हैं नामी ||
सत लोक से है सुन्दर क्या, पावन है रजधानी ||
सतगुरु प्रीतम नामी मेरे, आप हैं पुरुष अनामी ||
सत मेंहर के दाता रघुवर, आप हीं हो सतनामी ||
बड़े बड़े खूब यज्ञ रचाये, दीना दात हे नामी ||
सतगुरु संत हमारे प्यारे, सच्चे हैं सतनामी ||
शब्द भेद मालिक मेरे प्रीतम, जो हैं पुरुष अनामी ||
सतगुरु सत नारायण नामी, ये हीं हैं राधा स्वामी ||
तान बसुरिया की वे सुनावें, गरजे बादल पानी ||
घण्ट घारियाल बजे अन्तर घट, किंगरी सारंगी लासानी ||
बीन बांसुरी मेरे मालिक की, सच्ची है रजधानी ||
सतगुरु नाम अलौकिक प्यारा, शब्द भेद की कहानी ||
शब्द के ऊपर बना पसारा, स्वर्ग बैकुंठ लासानी ||
शिव पूरी आद्या का देश जो देखो, प्रभु राम दर्शन होना ||
दया मेंहर होवे स्वामी की, नाही पड़े कहीं सोना ||
हे दयाल समरथ मेरे नामी, सतगुरु प्रीतम पुरुष अनामी ||
ओंकार का गाना ||
लाल देश सुन्दर जहाँ लाली, फटक शीला का खजाना ||
सतगुरु संत बिराजे उन पर, सुन सत्संग का बाना ||
सतनाम सतगुरु मेरे मालिक, है जाना पहिचाना ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, शब्द भेद का खजाना ||
सतगुरु जयगुरुदेव
नाम भेद सतगुरु का साँचा, नाम भजन कर खोलो बाँचा ||
अन्तर घट की महिमा न्यारि, अन्तर में फैली हरियाली ||
श्वेत नरंगी लाल सतरंगी, अद्भुत दिव्य देश बड़ा प्यारा ||
दया मेंहर हुयी स्वामी की, देखा हमने शकल पसारा ||
आदि अन्त के मालिक सतगुरु, सतनाम सतगुरु की धारा ||
इस सत्संग में जो नर नहावे, मुक्ति मोक्ष परम पद पावे ||
सतगुरु जी का मंगल गावे, श्री चरणन में शीश झुकावे ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 05/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु नाम अलौकिक अनुपम, पार ब्रह्म की साया || चढ़ चढ़ जीव जायी वह देशा, कट फल मल की फाया || सतगुरु रूप निरन्तर अद्भुत, करते हैं वो दाया || नाम सहारे चढ़े सुरतिया, दिव्य देश जहाँ माया || चरण बन्दना करे सतगुरु की, आगे कदम बढ़ाया || देश अलौकिक अनुपम देखा, ईश्वर को जहाँ पाया || खुश होयी मन में बहुत समानी, सतगुरु दया कियो लासानी ||| देखा अद्भुत छाया || पार ब्रह्म की करी तैयारी, ब्रह्म में जायी दिखाया || ब्रह्म देश में लाल चुंदरीया, लाल की पूरी माया || उन चरणन में बहे तिरवेणी, सतगुरु जी ने दिखाया || कर स्नान हुयी बलवती जो, फटक शीला पर आया || सतगुरु जी के दर्शन किन्हो, सत्संग को भी पाया || संत सतगुरु मेरे न्यारे, उनही में सबको दिखाया ||| पार ब्रह्म अद्भुत एक बंगला, सूरत वहीं से समाया || कर स्नान सरोवर माही, हंस रूप को पाया || सतगुरु मेंहर हुयी है भारी, झूला खूब झुलाया || सतगुरु मेंहर देख रही अद्भुत, मणि माणिक्यों की साया || अद्भुत अजब निराले देश हैं, सतगुरु संत समाया || सत सत नमन गुरु चरणन में, सत को उसने पाया || सत धाम की महिमा न्यारि, खुल कर सबने गाया || सतगुरु प्रीतम मेरे सवरिया, सारा भेद बताया || पुरुष अनामी गुरु सतनामी, दया मेंहर बरसाया || सतगुरु रूप अद्भुत अलौकिक, दर्शन मैंने पाया || दरश परश कर सूरत जुड़ानी, अन्तर में सुख आया || दीन बन्धु सतगुरु मेरे दाता, दया मेंहर खूब फरमाया || बजे किंगरिया पार ब्रह्म में, सतगुरु दया बरसाया || अद्भुत लोक बना है सारा, सच्चा देखो शकल पसारा || कर्म को सारे कटाया || दीन बन्धु सतगुरु सुख रासी, सत मेंहर जहाँ बसे हैं काशी || धाम आपने बताया || करके मेंहर दया सतगुरु ने, चौथो धाम दिखाया || मालिक से की चरण बन्दना, भाव झरोखे आया || सतगुरु दया सूरत लासानी, श्वेत पुरुष को उसने जानी || गुफा बीच दर्शाया || पार देश सतनाम बिराजी, गुरु की दया समाया || अद्भुत दया हुयी है उस पर, जो है सत को पाया || शीश झुकाया गुरु चरणन में, दया मेंहर को पाया || सतगुरु जयगुरुदेव आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी || तिनके चरण कोटि परणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी || कोटि कोटि तुमको परणामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 04/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भेद बतायो अन्तर घट का, सतगुरु मेरे स्वामी ||
पाँच रंग की बनी चुनरिया, जिसमें रंग है धानी ||
शब्द रूप झनकार अलौकिक, सतगुरु मेरे ज्ञानी ||
सत्य सत में सत नारायण, सत नारायण स्वामी ||
सत लोक के सच्चे दाता, रघुपति पुरुष अनामी ||
नाम भेद घट का बतलायो, तब अन्तर का खेल बतायो ||
सतगुरु मेरे नामी ||
पुरुष अलौकिक शब्द देश के, सच्चे मेरे स्वामी || सतगुरु दाता मेरे सवरिया, कुल मालिक कुल नामी ||
शब्द भेद का रंग अलौकिक, सतगुरु संत अनामी ||
भेद बतायो चार जनम तक, फिर क्यों करो मनमानी ||
रूप अलौकिक मेरे नामी का, वो हीं हैं राधा स्वामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव कहाये, सत नाम के नामी ||
सतगुरु दाता मेरे सवरिया, सत नारायण स्वामी ||
आदि अनाम निर्गुणा रूपा, श्री राम पुरुष रजधानी ||
अलख अगम सतधाम बसायो, सत सत सतनामी ||
मंगल नाम अनामी केरो, भजन करो सब नामी ||
रूप लखो तुम अन्तर घट में, पाँच धनी हैं नामी ||
पाँच रूप स्थान बतावें, पाँचो में हैं स्वामी ||
पाँच रंग की चुनरिया, पाँच की है रजधानी ||
पाँच नाम का माला फेरो, सच्ची सरल कहानी ||
सतगुरु नाम बतायो साँचा, हमने बोला वहीं तो बाँचा ||
स्वर्ग बैकुंठ क्या खानी ||
तीन लोक के राजा ईश्वर, ऊपर ब्रह्म लखानी ||
पार ब्रह्म का अजब है बंगला, सत सत सत धानी ||
सून्य महा सून्य तुम सून्य को देखो, श्वेत पुरुष रजधानी ||
पार देश सत धाम बिराजे, जहाँ पे राधा स्वामी ||
सूरत चढ़े सतधाम में जाकर, सतगुरु चरण लासानी ||
शब्द भेद के मेरे सवरिया, सतगुरु मेरे नामी ||
दाता पुरुष अनामी सतगुरु, सत नाम सतनामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव कहाये, ये हीं तो राधा स्वामी ||
सत सत में सत बिराजे, सत की कठिन कहानी ||
सत के चरणन शीश झुकाओ, सत सत रजधानी ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी ||
श्री चरणन की चरण बन्दना, आरती और है कोटि नमामि ||
सत सत कोटि करूँ परणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 02/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भाव चाव से करो बन्दना, मिली जायें सतगुरु नामी ||
अमर लोक के सच्चे प्रीतम, सच्ची सत्य कहानी ||
सतगुरु मालिक मेरे सवरिया, मेरे दाता नामी ||
सतगुरु जी में प्रेम करो सब, सत्य सत सात वानी||
स्वर्ग बैकुंठ देखना चाहो, अन्तर करो पयानी||
सतगुरु जी ने भेद बताया, नाम जड़ी मन ठानी ||
करो रगड़ाई अन्तर घट में, चमके शीशा पानी ||
अमर लोक तक दिख जाये सारा, सारी सत्य जबानी ||
दया मेंहर को नामी करते, नामी नाम के नामी ||
अन्तर घट की करें सफाई, नाम ध्वनि की जबानी ||
घण्ट घड़ियाल बजे जब घट में, चढ़े सूरत लासानी ||
देखै देश आपनो न्यारा, श्वैत पसारे में नामी ||
नाम देश को सतगुरु बोलें, अन्तर भजन मन ठानी ||
गुरु आज्ञा का पालन करना, यहीं हमारी कहानी ||
नाम भजन मन अन्तर गावे, अन्तर की है जबानी ||
नाम भेद सच्चे सतगुरु का, सतगुरु संत लासानी ||
नाम भजन सतगुरु का गाओ, एक एक कड़ी सुहानी ||
दया मेंहर सतगुरु की होवे, बोलें सत की जबानी ||
दिव्य देश तुम देखो अद्भुत, स्वर्ग बैकुंठ लासानी ||
नाम भेद सच्चा मालिक का, सच्ची अमर कहानी ||
अमर लोक को चलना चाहो, जपो गुरु नाम जबानी ||
घट के भीतर घाट है सुन्दर, बैठक गुरु की लासानी ||
घाट खोल तुम घट के भीतर, दरश परश करो नामी ||
नामी तुमको भेद बतावें, दया करें सतनामी ||
सत भेद के दाता सतगुरु, उनही की है मेहरबानी ||
सतगुरु चरणन शीश धरो सब, नाम संत जग जानी ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत गोसाईं, परम संत सतगुरु सतनाई||
सत के चरणन शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सदा जो पूर्ण को तेरे गाऊँ, सतगुरु जयगूरदेव मनाऊँ ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 01/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

नमन करो सतगुरु चरणन को, दिखे करो बन्दना ||
देश अनामी मोरे मालिक का, इनकी करो आराधना ||
देश देश के सब जीवों पर, करते रहो आराधना ||
दया मेंहर आवे मालिक की,सुनतसुनावत तान ||
सैन बैन का ये अनुभव है, इसको सच्चा मान ||
दया मेंहर होगी नामी की, अन्तर मन ले ठान ||
सतगुरु जी का नाम पुकारो, और सब सच्चा जान ||
गुरु कृपा आवे ऊपर से, सतगुरु हो मेहरबान ||
नाम की चाभी सतगुरु संग में, ध्यान भजन कर जान ||
सुन्न शिखर की करो चढ़ाई, सतगुरु अपना मान ||
सत देश की साँची बन्दना, अन्तर घट में ठान ||
विषय विकार निकल जब जावे, तब सतगुरु का ज्ञान || सच्चे नामी पुरुष अनामी,तेन को करो परणाम ||
शब्द के नामी हैं सतनामी, सतगुरु अपने जान ||
नाम दान मालिक ने दीन्हा, सच्चा है परमाण||
दया मेंहर उसकी जब होवे, तब तू सच्चा मान ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, सच्चा दियो है नाम ||
पाँच देश की करो चढ़ाई, सतगुरु संग में ठान ||
प्रभु राम के दर्शन कीजे, अन्तर घट के जान ||
ब्रह्म पार ब्रह्म को मिली आवो, सतगुरु चतुर सुजान ||
दया मेंहर होवे नामी, सुन्न शहर को ठान ||
महा सुन्न के दर्शन करके, पहुँचो तुम सतधाम||
नामी अपने पुरुष अनामी, उनको सच्चा मान ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, अन्तर घट दरम्यान ||
दया मेंहर आवे साईं की, सच्चे चतुर सुजान ||
दया करें जब सतगुरु अपने, उसको लिजै मान ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, नाम भजन की ठान ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी ||
कोटि कोटितीनकोपरणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 07/8/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
करो विचार अपने मन माही, सूरत होये उद्धार मेरे साईं ||
दया मेंहर ऐसी फरमावें, सतगुरु साँचा नाम लखावें ||
विप्र रूप सतगुरु मेरे दाता, सत पथ से है मेरो नाता ||
संत अनामी पुरुष सतनामी, शब्द भेद का खोलो खाता ||
निराकार मेरे गुरु मोरे साईं, सचर जो दीन बन्धु की नाई ||
सतगुरु परम दयाल दयालु, दीन दयाल महा किरपालु ||
संत हमारे सबके दाता, घट घट बसे हैं सबसे नाता ||
सतगुरु परम दयाल मोरे नामी, कोटि कोटि तीनको परणामी ||
सतगुरु संत हमारे नामी ||
चमके बिजुरिया बादल गरजे, अन्तर घट में होये घमासानी ||
सतगुरु संत हमारे नामी ||
शब्द भेद सतगुरु मोरे दाता, शब्द शब्द कर तेरो नाता ||
हे मेरो मालिक संत गोसाईं, दया मेंहर हो स्वामी मेरे ||
दीन दयालु और किरपालु, दया सिन्धु हे मालिक मेरे ||
देश अलौकिक अनुपम देखा, ज्योति शिखा सम करस बिलेसा ||
सहस कमल दल सुन्दर भारी, ज्योति ज्योति की है उजियारी ||
लाल देश की महिमा न्यारि, सतगुरु दया मेंहर की क्यारी ||
बाजे शब्द घनाघोर भाई, दया मेंहर सतगुरु फरमायी ||
सत नाम सतनाम अनामा, प्रभु दरश परश हो सतनामा ||
सत अलौकिक नामी मेरे, दया मेंहर के स्वामी मेरे ||
शब्द रूप हैं संत गोसाईं, शब्द शब्द की बनी हैं खाई ||
सतगुरु जयगुरुदेव बिधाता, तुमसे मेरा सच्चा नाता ||
सत सत के सत हो सिन्धु, दया मेंहर के आप हो बिन्दु ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, मेरे मालिक मेरे स्वामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव :

तुमको कोटि कोटि परणामी ||
आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष सतगुरु सतनामी ||
सत के चरण कोटि परणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 03/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

अधारे सतगुरु जी के द्वारे ||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, यहीं साँचे गुरु द्वारे ||
सच्चे मन से भजन करो तुम, खुल जायें अन्तर सारे ||
नाम भजनिया हो सतगुरु की, दया मेंहर के अधारे||
सतगुरु नाम सुनत अन्तर में,भव के तारण हारे ||
श्वैत पुरुष नाविक रहा न्यारा, जल की बहे सुगन्धित धारा ||
सतगुरु मेंहर है न्यारा ||
दया मेंहर की खान भरी है, अन्तर घट उजियारा ||
सतगुरु नाम जपो जब अन्तर,होवे आरा पारा ||
दया मेंहर नामी की आवे, दिखे शकल पसारा ||
शब्द भेद के साँचे मालिक, करते हैं उजियारा ||
नाम दान सच्चे सतगुरु का, वहीं लगावें पारा ||
सतगुरु दया मेंहर से बन्दो, दया मेंहर वारा ||
नाम भजन साँचे मालिक का, खोलें घट पट द्वारा ||
सतगुरु नाम सत की वाणी, मोहीं उतारें पारा ||
दया मेंहर होवे नामी की, नाम ध्वनि झनकारा||
सतगुरु परम अलौकिक दिखे,आनत वहीं न दुबारा ||
जीव उबार जो चौरासी से, नाम दियो है दुबारा ||
नाम गुरु साँचा सतगुरु है, सत देश है प्यारा ||
सतगुरु रूप अलौकिक निको, कहे न सुन्न आर पारा ||
दिव्य लोक सतगुरु जी दिखावें, और बतावें वारा ||
दया मेंहर होवे नामी की,तातिरलोक उस पारा ||
ब्रह्म में देखे अद्भुत रचना, पार ब्रह्म का न्यारा ||
मणि मणियों से सजे बगीचे,नाही वारा पारा ||
अद्भुत दृश्य दिखे सतगुरु में, दया करें यहीं वारा ||
नाम अलौकिक है मालिक का, दया मेंहर के द्वारा ||
शब्द का सारा शब्द लोक से, है अनाम का तारा ||
हरी अनन्त हरी कथा अनन्ता, शब्द रूप व्यापक भगवन्ता||
साँचा शकल पसारा ||
शीश धरो सतगुरु चरणन में,होवे वारा न्यारा ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी ||
इनके चरण कोटीपरणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 02/अक्टूबर/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भाव चाव से करो बन्दना, मिली जायें सतगुरु नामी ||
अमर लोक के सच्चे प्रीतम, सच्ची सत्य कहानी ||
सतगुरु मालिक मेरे सवरिया, मेरे दाता नामी ||
सतगुरु जी में प्रेम करो सब, सत्य सत सात वानी||
स्वर्ग बैकुंठ देखना चाहो, अन्तर करो पयानी||
सतगुरु जी ने भेद बताया, नाम जड़ी मन ठानी ||
करो रगड़ाई अन्तर घट में, चमके शीशा पानी ||
अमर लोक तक दिख जाये साया, सारी सत्य जबानी ||
दया मेंहर को नामी करते, नामी नाम के नामी ||
अन्तर घट की करें सफाई, नाम ध्वनि की जबानी ||
घण्ट घड़ियाल बजे जब घट में, चढ़े सूरत लासानी ||
देखै देश आपनो न्यारा,श्वैत पसारे में नामी ||
नाम देश को सतगुरु बोलें, अन्तर भजन मन ठानी ||
गुरु आज्ञा का पालन करना, यहीं हमारी कहानी ||
नाम भजन मन अन्तर गावे, अन्तर की है जबानी ||
नाम भेद सच्चे सतगुरु का, सतगुरु संत लासानी ||
नाम भजन सतगुरु का गाओ, एक एक कड़ी सुहानी ||
दया मेंहर सतगुरु की होवे, बोलें सत की जबानी ||
दिव्य देश तुम देखो अद्भुत, स्वर्ग बैकुंठ लासानी ||
नाम भेद सच्चा मालिक का, सच्ची अमर कहानी ||
अमर लोक को चलना चाहो, जपो गुरु नाम जबानी ||
घट के भीतर घाट है सुन्दर, बैठक गुरु की लासानी ||
घाट खोल तुम घट के भीतर,दरश परश करो नामी ||
नामी तुमको भेद बतावें, दया करें सतनामी ||
सत भेद के दाता सतगुरु,उनही की है मेहरबानी ||
सतगुरु चरणन शीश धरो सब, नाम संत जग जानी ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||
आरती सतगुरु सत गोसाईं, परम संत सतगुरु सतनाई||
सत के चरणन शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सदा जो पूर्ण को तेरे गाऊँ, सतगुरु जयगूरदेव मनाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 01/Sep/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

नमन करो सतगुरु चरणन को, दिखे करो बन्दना ||
देश अनामी मोरे मालिक का, इनकी करो आराधना ||
देश देश के सब जीवों पर, करते रहो आराधना ||
दया मेंहर आवे मालिक की,सुनतसुनावत तान ||
सैन बैन का ये अनुभव है, इसको सच्चा मान ||
दया मेंहर होगी नामी की, अन्तर मन ले ठान ||
सतगुरु जी का नाम पुकारो, और सब सच्चा जान ||
गुरु कृपा आवे ऊपर से, सतगुरु हो मेहरबान ||
नाम की चाभी सतगुरु संग में, ध्यान भजन कर जान ||
सुन्न शिखर की करो चढ़ाई, सतगुरु अपना मान ||
सत देश की साँची बन्दना, अन्तर घट में ठान ||
विषय विकार निकल जब जावे, तब सतगुरु का ज्ञान ||
सच्चे नामी पुरुष अनामी,तेन को करो परणाम ||
शब्द के नामी हैं सतनामी, सतगुरु अपने जान ||
नाम दान मालिक ने दीन्हा, सच्चा है परमाण||
दया मेंहर उसकी जब होवे, तब तू सच्चा मान ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, सच्चा दियो है नाम ||
पाँच देश की करो चढ़ाई, सतगुरु संग में ठान ||
प्रभु राम के दर्शन कीजे, अन्तर घट के जान ||
ब्रह्म पार ब्रह्म को मिली आवो, सतगुरु चतुर सुजान ||
दया मेंहर होवे नामी, सुन्न शहर को ठान ||
महा सुन्न के दर्शन करके, पहुँचो तुम सतधाम||
नामी अपने पुरुष अनामी, उनको सच्चा मान ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, अन्तर घट दरम्यान ||
दया मेंहर आवे साईं की, सच्चे चतुर सुजान ||
दया करें जब सतगुरु अपने, उसको लिजै मान ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, नाम भजन की ठान ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, सत पुरुष मंगल सतनामी ||
कोटि कोटितीनकोपरणामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13/08/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

मधुबन उपवन सजे बजाये, अन्तर ऐसा दृश्य दिखाये ||
सतगुरु नाम की माला तेरी, सूरत बने सतगुरु की चेरी ||
नाम भजन मन लायो ||
काव्य ग्रन्थ खूब पढ़ी पढ़ी देख्यो, सच कहूँ न कुछ है पायो ||
सतगुरु मिले अलौकिक नामी, नाम धना को पायो ||
नाम निराला सत देश का, सतगुरु ने फरमायो ||
दिव्य कुंजी अन्तर घट की, ताला खोल गिरायो ||
अन्तर चलो देश अद्भुत हैं, स्वर्ग बैकुण्ठ को गायो ||
नाम की महिमा तुमने जानी, नाम भजन मन गायो ||
नाम अलौकिक उत्तम प्यारा, सतगुरु नाम बतायो ||
नाम दिव्य एक नाम अलौकिक, नाम धना को पायो ||
सचर रूप सतगुरु हैं साईं, नाम भजन मन गायो ||
करो बन्दना तुम सतगुरु की, मुक्ति मोक्ष बनायो ||
रूप अलौकिक अद्भुत देख्यो, समझ एक ना आवे ||
पार की महिमा सुन्दर न्यारी, फैली अद्भुत है अद्भुत उजियारी ||
नाम नाम धुन गायो ||
ब्रम्ह पार ब्रम्ह देख्यो लीला, महा काल पुरुष गायों ||
चितवन कीन्हा बंसी धुन को, सत नाम भीग जायो ||
चंचल अद्भुत चम चम चमके, है स्वरुप का गायो ||
सत अनामी पुरुष सतनामी, उनकी महिमा पायो ||
अद्भुत देश अलौकिक देख्यों, सूरत खूब हीं हर्षायो ||
हर्षित पुलकित भयी सयानी, सतगुरु कै गुन गायो ||
सच्चे नामी पुरुष अनामी, जिनके द्वारे आयो ||
पद पंकज में करि बन्दना, चरणन शीश झुकायो ||
सत अनाम नाम के स्वामी, तेरी दया को पायो ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22/07/2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भाव चाव से करि बन्दना,रीझ जायें सतगुरु नामी ||
नाम दया बरसे हम सब पर,मिल जायें सतगुरु नामी ||
पुरुष अनामी सतगुरु सतनामी, सच्चे प्रीतम स्वामी ||
दीन दयाल सतगुरु स्वामी, भेद देत हैं अनामी ||
एक एक दया बिराजे उनकी, मिलें घट अन्तर नामी ||
नामी सच्चे पुरुष अनामी, सतगुरु हैं सतनामी ||
भेद लखायो नाम बतायो, सच्चे सतगुरु स्वामी ||
निज चरणन की करि बन्दना, मिल जायें पुरुष अनामी ||
भेद सबै समझायो घट का, माने न मन खलकामी ||
सच्ची खिलकत है सतगुरु की, शब्द भेद सतनामी ||
पुरुष अनामी गुरु सतनामी, सच्चे हैं वो स्वामी ||
नाम अनाम से लागे सुन्दर, हैं अनाम की जबानी ||
हरी हरी कथा बिराजै सब पर, शब्द भेद सतनामी ||
सुन्दर पुरुष अलौकिक नामी, नाम भेद की खानी ||
मेरे मालिक की अनुपम लीला, अनुपम अकह कहानी ||
सुन्दर वर्णन करूँ सतगुरु का, शब्द भेद लासानी ||
सुन्दर नामी पुरुष अनामी, भेद देत सतनामी ||
सत मेंहर सतगुरु की साँची, शब्द भेद की जबानी ||
चंचल चितवन होये अन्तर मे,आगम निगम बखानी ||
मेरे अलौकिक सतगुरु साईं, भेद दियो तुम नामी ||
हे दयाल मेरे शम्भू सागर, पावन नाम अनामी ||
सतगुरु नाम पुकारूँ तुमको, तुम हो सच्चे नामी ||
नाम अनाम से आयो नामी, भेद देत हैं जबानी ||
नीस अगम और अलख पसारा, अलख फकीरा नामी ||
दाता रघुवर संत हमारे, पुरुष हैं सतनामी ||
शब्द भेद सत रचना किन्ही, शब्द शब्द की खानी ||
नामी सुन्दर पुरुष हमारे, सतगुरु सत हमारे ||
सत चरणन में शीश झुका कर, मैं में बन्दना ठानी ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, शब्द भेद सतगुरु सतनामी ||
सत चरणन में शीश में झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सतगुरु हे मेरे सत अनामी, शब्द भेद के सुन्दर स्वामी ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 मई 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

अनामी सुन्दर सतगुरु स्वामी ||
सत मेंहर के दाता नामी, सतगुरु पुरुष अनामी ||
भेद छिपे एक एक क्षण क्षण में, सतगुरु अंतरयामी ||
सत भेद सतगुरु संगनी को, सच्चे मालिक नामी ||
मधुर बंसुरिया घाट में बाजे, जो हैं पुरुष अनामी ||
नाम तार घट बीच पड़ा है, अदभुद है झनकारी ||
रुद्र अलौकिक रूप सुहावन, है अनाम कियो नामी ||
महाकाल के देश दिला दें, सतगुरु मंगल नामी ||
रूप अलौकिक है सतगुरु का, शब्द भेद के स्वामी ||
शब्द भेद जो रास बतायो, अंतरघट के नामी ||
नामी ऐसे सुन्दर पावन, अदभुद अमिट कहानी ||
ऐसे सत शीश झुकाओ, जो सबके हैं स्वामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अलौकिक देश सतगुरु का, पार उस देश जाना है ||
रास्ता है बड़ा सच्चा, इन्हीं में मन को लगाना है ||
साँवरिया सतगुरु प्यारे, याद इनहि दिलाना है ||
लगे जब मन गुरु चरणन में, काम सब हीं बन जाना है ||
भजन हो नाम सतगुरु का, नाम अंतर ध्वनि गाना है ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मंगल पावन रूप सुहावन, घट घट ब्यापी सतगुरु ||
सतनाम से करी बन्दना, सत के साँचे सतगुरु ||
सत में सत भेद बतलावे, सत अनामी सतगुरु ||
नामी पुरुष अनामी मालिक, भेद देत हैं सतगुरु ||
भेद अलौकिक पार देश तक, सब बतलावे सतगुरु ||
नाम भजन कर अंतरघट में, देखो मेंहर सब सतगुरु ||
अनतर्घट के माही विस्तारा, अंतर दिखे शकल पसारा ||
शब्द भेद से खोला द्वारा, दया मेंहर किया सतगुरु ||
उन सतगुरु की करो बन्दना, नाम दिया बिना सतगुरु ||
धुर के मालिक नामि साँचे, नाम भेद के दाता ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मेंहर कर दीन्हा सतगुरु नाम ||
ऐसा नाम जड़ित अति पावन, ले जाये सिंधु के पार ||
सिंधु आधार गुरु बतलायो, खोले घट के द्वार ||
अंतर की सब महिमा गुरु की, देखो अंतर जाय ||
अंतर घट के बीच मंझारी, सर्वस्व लगाकर बड़े गुरु प्यारे ||
सत संग होत बहार, सत मेंहर की दया बिराजे ||
प्रेमी जावे उस पार, देख के मोहन मूरत गुरु की, उधर समरसे द्वार ||
सुन्दर अति पावन मन भावन, साँचा गुरु का द्वार ||
सत प्रेम से शीश झुकाओ, यहीं सत आधार ||
घट पट खोला है सतगुरु ने, दया कियो बारम्बार ||
ऐसे नामी की चरण बन्दना, करते रहो सत बार ||
सत चरणों में शीश नवाँ कर, सच्ची करो पुकार ||
हे मेरे मालिक दया हो जावे, सूरत जाये उस पार ||

सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु ने मोहे दीन्हा नाम रतनवा ||
रखना सम्हाल के बड़े जतनवा, गुरु ने दीन्हा नाम रतनवा ||
राम रतन से राम मिली जावें, ब्रह्म के दर्शन गुरु करवावें ||
पार ब्रह्म सत्संग को सुनावें ||
महाकाल पुरुष गये बलिहारी, सत धाम में सूरत सँवारी ||
ऐसे सतगुरु सत दयाला, दया सिंधु सतगुरु किरपाला ||
सत सत नमन और कोटि बन्दना, सच्चे सतगुरु की है अराधना ||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, नाम भेद के सच्चे स्वामी ||
नाम जड़ित है हरित अति पावन, अंतर घट सब दिखे सुहावन ||
सतगुरु मंगल रूप, उन चरणन की करी आरती ||
सतगुरु सबके भूप ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 मई 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

दीन दयाल सतगुरु नामी, दया किया मेहरबानी ||
नाम भेद सब कुछ बतलायो, गायी सुनायो जबानी||
प्रीतम ऐसे साँचे सतगुरु, जिनकी सुना जबानी||
भाव भाव पर सतगुरु रीझें, सत मेंहर महिदानी||
क्या सतगुरु साँचे मेरे साथियों, फिर क्यों बात न मानी ||
नाम भजन में लगा प्रेमियों, नाम भजन है सानी ||
संत स्वभाव सरल सब दीपो, संत की सत जबानी||
सत संगत सतगुरु की बैठी, सत मेंहर लासानी||
सतगुरु प्रीतम मेरे बुलावें, सतगुरु हैं लासानी||

सतगुरु जयगुरुदेव
भवर बीच नैया करते पार ||
सतगुरु साँचे मालिक नामी, यहीं करते उद्धार ||
बीच डगर में फसी जो नैया, खेयी लगावें पार ||
सतगुरु साँची दाता मेरे, नाव फसीमजधार||
खेवनहार खेयी लगायी,नैया अब उस पार ||
उस सतगुरु की चरण बन्दना, करते हैं बारम्बार||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु दीन दयाला,संत सिंधु सतगुरु किरपाला||
साँचे चरणन शीश झुकाऊँ, सतगुरु की बन्दना मैं गाऊँ ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊँ ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 मई 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

विनय मैं करूँ सतगुरु तेरे द्वार ||
घट का ताला बन्द पड़ा है, खोलो द्वार किवाड़ ||
विनय मैं करता बारम्बार||
निज घट घट के स्वामी नामी, हे मेरे करतार||
विनय मैं करता बारम्बार||
सहस्त्र कमाल दल रूप दिखाओ, त्रिकुटी धाम हमें भी लखाओ||
देखूँ दशवा द्वार ||
भवर गुफा के मैं भी जाऊँ, चढ़ूँ सतनाम में धाये ||
सत स मारग सतगुरु जी नव, सत का भेद बताय||
सत अनामी नामी प्रीतम, विनय करूँ बारम्बार||
श्री चरणन में शीश नवाऊँ, हे सतगुरु रघुनाथ ||
हे रघुपति राघव हे स्वामी, हे मेरे दीनानाथ ||
सत भेद सतगुरु समझायों, भेद तुम्हारे साथ ||
हे मेरे मालिक परम दयालु, हम हैं तुम्हारे नाथ ||
सतगुरु चरणनकरिहै बन्दना, और झुकायोमाथ||
सतगुरु जयगुरुदेव
दया की सच्ची सतगुरु खान ||
आन बान सब सतगुरु नामी, चाहे सच्ची शान ||
है सच्चाई समरथ तेरी, साँच में कैसी आँच ||
बाँचा सब घट के भीतर का, घट घट में हों आप ||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, सच्चे दीनानाथ ||
पुरुष अनामी सतगुरु नामी, हे मेरे सतगुरु प्याम||
सतगुरु संत हमारोंसाँचो, बाँचो तेरो नाम ||
युगनयुगन की लगन युगन की, प्यास बुझाओ नाथ ||
श्री चरणन की करी बन्दना, हे सतगुरु दीनानाथ ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत के साईं, मंगल पुरुष अनामी नामी ||
सत नाम सतगुरु सतनामी, सत मेंहर के सतगुरु स्वामी ||
शब्द भेद सतगुरु हे नामी, श्री चरणन में कोटीपरनामी||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13 मई 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

नमन करो गुरु चरण को प्यारे,जिनने नाम धरायों||
लाख चौरासी का फन्दा काटो, सत मार्ग बतलायो||
ऐसे सुन्दर शीतल नामी, को सब शीश झुकायो||
नूतन अजब रंग है बँगला, सतगुरु का गुण गायो||
शब्द भेद के सतगुरु मालिक, दया मेंहर को पायो||
सुन्दर नामी पुरुष अनामी, भेद इन्हीं का गायो||
अनुपम छटा निराली बरसे, मूरत देख हर्षायो||
क्या है रंग रोगन सतगुरु की, अजब लाल रीछायो||
लाल लगाम लाल लरदेशा, लार तार गुन गयो||
सुमग अलौकिक गाथा, सतगुरु जी ने सुनायो||
सत देश के सतगुरु मालिक, सत में शीश झुकायो||
शब्द भेद की करी बन्दना, शब्द हीं सतगुरु पायो||
सतगुरु दया मेंहर है अनुपम,देश देश में गायो||
देश निराला प्रीतम जी का, देश में मन को लगायो||
सुन्दर सुमग अलौकिक अद्भुत, नाम भजन को गायो||
चरण बन्दना की नामी की, नामी को शीश झुकायो||

सतगुरु जयगुरुदेव
मधुर वाणी अलौकिक है, गुरु किरपा निराली है ||
भेद जो दीन्हा अन्तर का, होती हर क्षण दीवाली है ||
मधुर सूरत मधुर मूरत,सुमग सुन्दर निराली है ||
महा मंगल महा मन में, मंत्र काया सजाई है ||
भेद और मान सतगुरु का, कोई घट तो न खाली है ||
दीवाली हर घड़ी होती, अजब अद्भुत हरियाली है ||
दया कर घाट पर सतगुरु, दिया दर्शन निराला है ||
खुला है घाट अब तो तुम, घाट सतगुरु का आला है ||
घाट पीछे अजब रंग हों, अजब ढंग के निवाले हों ||
निराले अद्भुतमयी सत्संग, सत संगत भी न्यारि हों ||
हमे सब भाव से लगकर, कोई जन न दुखारी हों ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अद्भुत अनुपम सुंदर देशु, नाम भजन कर कटतकलेशु||
सतगुरु अनुपम छटा निराली, अद्भुत अलौकिक हो हरियाली ||
राग रगनी छत्तीस बाजे, अद्भुत मंगल शोभा राजे||
मेंहर होये ऐसी नामी की,दरश परश karसब दुःख भागे ||
सतगुरु शीतल परम सुहावन, चरणामृत अद्भुत अति पावन ||
सतगुरु चरणन शीश झुकावन||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, नाम भेद के तुम हे स्वामी ||
सतगुरु संत हमारे नामी, तुमको कोटीकोटीपरानामी||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत कृपाला, शब्द भेद के दीन दयाला||
हर घट घट के तुम हो वासी, शब्द रूप सतगुरु अविनासी||
सत दया और मेंहर बसे काशी, आरती सतगुरु जय अविनासी||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ, आरती चरण बन्दना गाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, मेरे मालिक मेरे नामी ||
सहस्त्रकोटी तुमको परणामी||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 09 अप्रैल 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

ध्यान मगन हो करो प्रार्थना, याद करो सतगुरु नामी ||
भव को पारण हार हैं स्वामी, सच्चे पुरुष अनामी ||
नाम भेद के दाता सतगुरु, सच्चे पुरुष अनामी ||
भाव झरोखे करो बन्दना, बोलो मीठी वाणी ||
रूप अलौकिक अनुपम छटा है, अद्भुत है हरियाली ||
रूप निरालो मेरे स्वामी का, जो हैं अन्तर यामि||
भेद भाव को दूर हटा कर, जपो सब सच्चे नामी ||
नाम भजन सच्चा अधार है, बोले राधा स्वामी ||
सूरत सुहागन होवे जिस दिन, सारी प्यासी बुझानि||
दिव्य लोक की दिव्य कहानी, सतगुरु बतायो जबानी||
संत शिरोमणि नामी सच्चे, अपने दाता स्वामी ||
नाम भेद रस चखो निरन्तर, बन कर अन्तर यामि||
घट में घाट पर घाट पर सतगुरु, ये हीं तो हैं सच्चे नामी ||
पार देश सतगुरु ले जावें, यही उनकी है खानी ||
संत शिरोमणि सबके दाता, सतगुरु संग अनामी ||
नाम नामनि सब मालिक की, चलो धुर धाम अनामी ||
सतगुरु नाम अलौकिक पावर, नाम भजन दो ध्यानी ||
सतगुरु चरण बन्दना साँची, सत सत नमन जबानी||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, मालिक की असीम दया-अनुकम्पा और नाना प्रकार के भेद मालिक ने बताये, निज घर जाने का रास्ता दिया | और भेद समझाया कि किस तरह हम सबको ऊपर में चलना है |

सतगुरु भेद बतायो साँचा, अन्तर महिबोलो सब बाँचा ||
गुरु महाराज ने सच्चा नाम भेद बताने के बाद अच्छी तरह से समझाया कि अन्तर में आपकी जबान नहीं चलेगी, मुह में जीभ नहीं हिलेगी और स्वासों पे नाम लेवोगे, बाचा बोलोगे | जिस का बताया है उस नाम का उच्चारण करोगे, जब नाम भजन करोगे तो तुम्हें अद्भुत अलौकिक दिखाई पड़ेगा, सुनाई पड़ेगा, आगे को चलोगे, सूरत जीवात्मा आगे को बढ़ेगी, घाट के पार जायेगी, पूरी की पूरी दया-कृपा होगी | स्वर्ग-वैकुंठ और बहिष्यत और नाना प्रकार की चीजें जो कुछ हैं, ऊपरी मण्डलों की वो देखेगी, प्रभु राम के दर्शन करेगी | सूरत जीवात्मा दूसरे धाम पर जायेगी, पार ब्रह्म, ब्रह्म के दर्शन करेगी | सब ये गुरु महाराज की दया कृपा से होगा | जब अन्तर में बाँचा बोलोगे, साँचा नाम ध्वनि तुम्हारे स्वासों पर होगी, आपके मुह में जबान जो है वो नहीं हिलेगी | आप अन्तर मन से साधना करोगे तब आपकी साधना बनेगी |

साँची सुघर साधना गुरु की, दिव्य देश ले जावे ||
जब तुम सच्चे मन से सुमिरन ध्यान भजन करोगे, अन्तर आत्मा में गुहार लगाओगे, पुकार लगाओगे, अपने सतगुरु की जयजय कार करोगे, तब तुमको अन्तर में अद्भुत दिखायी पड़ेगा | आगे को चलोगे, नाना प्रकार की चीजें आपको दिखेंगी | हर जगह हरियालियों के बाग़-बगीचे, सुगंधित फूल, नदी-झरने, पहाड़, बाग़-बगीचे हर चीजें आपको दिखाई-सुनाई पड़ेंगी और मालिक के बताये हुये अनुसार, अद्भुत रंग रंगीले, रसीले, चिड़ियों की चहचहाहट और हर प्रकार की धन सम्पदा देखने को आपको मिलेगी | आप सब उसमे मन लगा करके देखोगे और मालिक का भजन करोगे |

करो बन्दना सतगुरु नामी, जो हैं सबके सच्चे स्वामी ||
सबसे पहले गुरु महाराज की चरण बन्दना करोगे और गुरु महाराज की अराधना करोगे, गुरु महाराज को मनाओगे, गुरु महाराज से प्रेम करोगे, गुरु महाराज से पूरी दया कृपा मांगोगे | गुरु महाराज पूरी दया-कृपा करेंगे आप पर, तो आप का सारा काम बनता चला जायेगा | आपको अद्भुत अलौकिक दिखने लगेगा, आप उस मण्डल की सैर करने लगेंगे, जिस मण्डल के लिए गुरु महाराज ने बता रखा है | नाना भाँति के, नाना प्रकार के चीजें आपको दिखेंगी | आपको दिखाई-सुनाई सब कुछ पड़ने लगेगा, मालिक से बातें होने लगेंगी |

अन्तर मुख जन सब कुछ पावा, बाही मुखी बस गाल बजावा||
जो अंतर्मुखी होते हैं, अन्तर में चलते हैं, साधना करते हैं, साधक होते हैं, उनको सब कुछ दिखाई सुनाई तो पड़ता है | और जो बाहर से केवल बाँचा बाँचते हैं, ये बताते हैं कि यहाँ पर ये है, वहाँ पर वो है उन्हें कुछ दिखाई-सुनाई नहीं पड़ता | वो तो केवल बताते हैं सुना सुनाया, सुनाते हैं और आँकी समझ में क्या आये, वो तो बस बताते रहते हैं | उनको रुपये पैसे से जरूरत होती है | बस जो सुना-सुनाया सुना देते हैं और उतने में हीं काम उनका चल जाता है | आगे क्या करने कि जरूरत है उनको, उनको तो उसी से जरूरत है, पैसा आये अपने काम बन जाये |

सतगुरु शब्द भेद अविनासी, अन्तर घट में बसती काशी ||
सतगुरु गुरु महाराज, अपने सच्चे सरकार अविनासी हैं, इनका जीवन मरण नहीं होता | ये एक रस, एक आन रहते हैं, तभी इनको किसी प्रकार की जरूरत नही पड़ती | इनके पास खाली चीजें परिपूर्ण हैं | और अन्तर में जहाँ आदि अनाम निर्गुण निराकार शिव रहते हैं, उसको काशी जी कहते हैं | ये सब आपको अन्तर में देखने को, सुनने को मिलेगा | सच्चे दर्शन, अद्भुत दर्शन अन्तर में होंगे | आप प्रफुल्लित हो जायेंगे, मन मगन हो जायेंगे | आप पर पूरी की पूरी गुरु महाराज की दया कृपा हो जायेगी | आपको सच्चा अनुभव होने लगेगा, आपको दिखाई-सुनाई पड़ने लगेगा | आप उस अद्भुत चीजों को देखोगे और मन्त्रमुग्ध हो जाओगे |

सतगुरु दया मेंहर सब पावा, सतगुरु जी का वर्णन गावा ||
साधक प्रेमी, सूरत-जीवात्मा, जो जो कुछ उसको मिलता जाता है, वो जो जो कुछ देखती जाती है, अपने गुरु महाराज का गुणगान करते नहीं थकती | और बताती है की हमने अपने गुरु की कृपा से ये सब कुछ प्राप्त किया है | गुरु महाराज की दया कृपा से हमको मिला है | हममें कोई शक्ति नहीं थी, हममें कोई ताकत नहीं थी, हममें कोई चीज नहीं थी | हमको जो कुछ भी मिला है गुरु महाराज की कृपा से ही सारा कुछ मिला है और गुरु दयाल ने ही हमको सब कुछ दिया है |

गुरु मेंहर ये दया है आयी, शैल शिखर में सूरत समायी ||
कहा मालिक की दया कृपा हो गयी | हमारी सूरत जीवात्मा ऊपर चढ़ गयी और नाना प्रकार की चीजों को देखा | अद्भुत चीजें देखी, ये सतगुरु महाराज की दया-कृपा से हमने देखा, गुरु महाराज की दया कृपा हुयी | तब हमारी चढ़ाई हुयी और हमने ऊपर जा करके प्रभु राम के दर्शन किये, कृष्ण भगवान के दर्शन किये, शंकर भगवान के दर्शन किये, ब्रम्हा बिष्णु महेश के दर्शन किये, गणेश-दिनेश के दर्शन किये| ये सब दर्शन गुरु महाराज की दया कृपा से हुये| अपने आप से कुछ नहीं हुआ | जब गुरु महाराज की दया-कृपा हो गयी तो बहुत कुछ हमने देखा |

रंग रंगीले और रसीले, लाल गुलाबी नीले पीले ||
बड़े रंग रंगीले और रसीले फलों को देखा और रंग-बिरंगे पुष्पों को देखा, रंग बिरंगे फूलों को देखा और झरनों को देखा, नदियों को देखा, पहाड़ को देखा | सूरत जीवात्मा एक रास्ते पर एक निशाने पर चलती चली जा रही है और दोनों तरफ जो कुछ दिखाई पड़ता है उसको देखती हुयी, जैसे प्लेन में बैठा हो सामने कोई कुछ जो कुछ नजर आ रहा हो उसको देख रहा | इस तरह से या आप मान लो कि अगर आप मोटर कार में बैठे जा रहे हो सामने में जो कुछ दिखाई पड़ रहा हो उसको देख रहे हो | इसी तरह से सूरत जीवात्मा अन्तर में चल रही और सब कुछ देखती हुयी सामने चली जा रही है अपने गुरु महाराज के साथ मन मस्त मगन हो करके |
सतगुरु संत हमारे, सच्चे हैं सतगुरु दाता ||
सतगुरु की दया मेंहर से हीं, खुला हमारा खाता ||
सब दया मेंहर सतगुरु की, गुणगान गुरु का गाऊँ ||
जब अन्तिम समय ये आये, तो मुक्ति पद को पाऊँ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु दीन दयाला, दीन बन्धु सतगुरु किरपाला||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ, आरती चरण बन्दना गाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, मेरे मालिक मेरे स्वामी ||
श्री चरणन में कोटि परणामी||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 08 अप्रैल 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भाव झरोखे करो बन्दना, मिलेंगे सतगुरु स्वामी ||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, ऐ सर्वज्ञ अन्तर्यामी ||
नामी अपने पुरुष अनामी, सच्चे सतगुरु स्वामी ||
भेद दियो सारे मुकाम का, माने न माने खलकामी||
काम क्रोध मद लोभ सतावे, बढ़ के करत मनमानी ||
सतगुरु सच्ची राह बतायो, भेद दीन्ह है अनामी ||
नाम अलौकिक दीन्हा सतगुरु, भाये देश की नामी ||
पार देश एक सिन्धु है गहरा, जहाँ सतगुरु का हरदम पहरा, सूरत वहीं है समानी ||
सतगुरु के संग में खेले होली, नाहीं करत मनमानी ||
नाम भेद दाता ने दीन्हा, अन्तर भजन कीन्ह सही चीन्हा, सतगुरु की है जबानी ||
सत भेद सतगुरु संग रहकर, भजन करो सब प्रानी||
नामी पुरुष अलौकिक सतगुरु, सतगुरु संग है जानी ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, सतगुरु मेंहर है पानी ||

सतगुरु जयगुरुदेव
करो गुनावन गुरु की वाणी, साथ रहे हो सब जन प्राणी ||
उन पल क्षिन को याद दिलाओ, अपने मन को तुम समझाओ ||
सतगुरु मेंहर हुयी अति न्यारि, सत्संग गंगा शकल पसारी ||
सत के वचन सुने एक वारा, खुल गए घट के सारे ताला ||
घट घट के सतगुरु अविनासी, हर घट के हैं सतगुरु वासी ||
शब्द सुरेख बसे जहाँ काशी ||
नैन ज्योति सम चमके अन्तर, चमके सूरज चन्दा वासी ||
सतगुरु मेंहर अद्भुत आवे, दया मेंहर सतगुरु दिखलावें||
घाट पार सतगुरु की बैठक, सत दया सब सतगुरु गावे ||
सतगुरु मेंहर होवे सब संगी, सारी सूरतें हो सतरंगी||
सत देश की बजे सरंगी||
अना वक्त सत देश बिराजे, बीन बसुरिया बाजा बाजे ||
ज्ञान ध्यान सब गुरु चरणन में, नाम भेद सब गुरु के आगे ||
सच्चे सतगुरु प्रीतम दाता, यहीं चरणन शिर नाता ||
असली ये हीं हैं माता-पिता ||
सतगुरु परम दयाल हैं स्वामी, शब्द भेद ये पुरुष अनामी ||
सच्चे प्रीतम रघुवर स्वामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मन चित्त भजन करे सतगुरु का, सच्चे भाव बनावे||
मैलाई सब कटि कटि जावे, नाम मेंहर को पावे||
रूप अलौकिक अद्भुत अनुपम, नाम शिखा मन गावे ||
भेद भेद के दाता नामी, सच्चे शुख को पावे||
सतगुरु ने सत धाम बतायो, सत की गाथा गावे ||
शब्द भेद सत केश सवरिया, सत का चेतन आवे||
सत धाम सत लोक बिराजो, सच्चे सुख को पावे ||
नाम भजन कर गुरु चरणन में, हरी हरी हरी को मनावे ||
हरी शरणागत सतगुरु संग में, जीव सदा हो जावे ||
जीव की मेंहर बिराजे उस पे, जो सतगुरु गुण गावे ||
सत के संगी सतगुरु नामी, सत भेद बतलावें ||
सत सवरिया पुरुष अनामी, सत देश बतलावें||
शीश झुकाओ सत के चरणन में, नाम भजन को गावे ||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत कृपाला, हे अनाम श्रुति दीन दयाला ||
हे परभू मेरे मंगल नामी, आरती सहस्त्र कोटि परणामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 07 अप्रैल 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

ध्यान धर सतगुरु देखो, छवि प्रभु राम जैसी है ||
निरन्तर देश बढ़ते चल, गुरु का ध्यान वैसा है ||
ज्ञान गंगा गुरु चरणों, ध्यान में मगन होना है ||
ज्ञान साँचा सतगुरु का, ध्यान मन लगन होना है ||
मान को छोड़ दो सब जन, ज्ञान का पान होना है ||
लगन श्री चरणों में लाओ, देश अपना सदा पाओ ||
सतनामी सतगुरु जो, ज्ञान अपने मालिक का गाओ ||
ध्यान धर बात सतगुरु की, अधर में मन लगाओ सब ||
सिन्धु के पार देखोगे, खड़े सिन्धु के दाता हैं ||
नाम और ध्यान को लाओ, ज्ञान गंगा में बह जाओ ||
चरण सतगुरु का पा जाओ, धन्य तेरा सुफल जीवन ||

सतगुरु जयगुरुदेव
भजन करो साँचा भजो सतगुरु नाम ||
धूर के धाम के सच्चे मालिक, सतगुरु प्रीतम राम ||
सतगुरु जी ने भेद बताया,वोहींआवे काम ||
ध्यान भजन मन लगन जो होवे, गगन में घूमे जाय ||
गगन मंझारी अद्भुत बंगले, रौनक देखि जाय ||
गीत सुहागन प्रीत लगन की, मिलते हैं बड़े भाग ||
सतगुरु शरण चरण गहि देखो, बन जायेंगे भाग ||
सच्चे मालिक ये सतगुरु हैं, इन संग खेलो खाग||
रंग रोगन की नहीं जरुरत, सच्चे रंगत साज ||
सतगुरु प्यारे राज दुलारे, बजते हैं हर साज ||
दिव्य ध्वनि और रूप अलौकिक, बाजे बाजें आज ||
सतगुरु मेरे मेंहर कर दीन्हा, बन गये सारे काज ||

सतगुरु जयगुरुदेव
धरो धूर धाम का रस्ता, मार्ग सस्ता मिला सच्चा ||
बड़े ज्ञानी प्रबल सतगुरु,जिन्होने भेद दीन्हा है ||
गृला कुछ ऐसे पंक्षी हैं,जिन्होने गुरु को चीन्हा है ||
नाम और भेद के दाता, गुरु में होवेलिन्हा है ||
सतगुरु ध्यान धर मन में, सत की दया चीन्हा है ||
अलौकिक राग बजते हैं, दीप ध्यानियाँ भी सजती हैं ||
नाम सतगुरु का लेते चल, तेरा नर तन सुफल होगा ||
प्रीत परतीत सतगुरु की, तुझे साँचा मिलन होगा ||

सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु मेंहर हुयी अति भारी, नाम दान दियो उच्च मंझारी||
पाँच ध्वनि और रूप बतलाये, अलग अलग बाजे सुनवाये||
सत देश का भेद बताये ||
ऐसे सच्चे सतगुरु दाता, हैं सबकेवो जगत बिधाता||
दीन भाव से करो बन्दना, जोड़ो सतगुरु संग नाता ||
सच्ची प्रीत प्रतीत निभाओ, गुरु चरणन बलिहारी जाओ ||
धन्य भाग्य ऐसा गुरु पाया,जिनने सारा जगत बनाया ||
सच्चे रघुवर सच्चे नामी, सतगुरु चरण कोटि परणामी||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत कृपाला, आनन्द छन्द जगत विकराला||
भाव सागर से पार लगावें,डुबत जीव को सदा बचावें||
सतगुरु संत मेरे नन्द लाला, आरती सतगुरु जय किरपाला||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 06 अप्रैल 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

भजन मन सतगुरु जी का ध्यान ||
नाम भजन साँचे सतगुरु का, अन्तर घट कल्याण ||
नाम नमनी है सतगुरु की, सच्चा अन्तर ज्ञान ||
भाव झरोखे करो बन्दना, होवै सच्चा ज्ञान ||
नाम भजनिया हो सतगुरु की, अन्तर घट कल्याण ||
मान लोभ को मार भगाओ, सतगुरु से करो ज्ञान ||
ज्ञान ध्यान सच्चे साई का, सतगुरु का परमाण ||
सच्चे सतगुरु पुरुष अनामी, नाम भेद दियो ज्ञान ||
हे सतगुरु मेरे दाता समरथ, मेरा हो कल्याण ||
नाव फसीमजधारे सतगुरु, खेयी लगाओ पार ||
हे मेरे मालिक पुरुष सवरिया, तुम सच्चे अधार ||
नाम सुधा रस हर क्षण बरसे, सच्चा होवै ज्ञान ||
रूप अलौकिक मेरे स्वामी का, ध्यान ज्ञान अभिमान ||
साँचे सतगुरु की चरण बन्दना, साँचा होवै ज्ञान ||
सतगुरु जयगुरुदेव

धरो धूरधाम का रस्ता, नाम तुमको मिला सस्ता ||
दया के निज दया सागर, दीन बन्धु उनके आगर ||
नाम दीन्हा भेद दीन्हा, चरण इनहीं के पर आगर ||
भरी जो शरपे बिष गागर ||
भजन मन ध्यान दे तू कर, ज्ञान आवे तुझे अन्तर ||
नाम निधि मालिक ने दीन्हा, दया के ज्ञान सागर हैं ||
भेद को चिन्ह तू साँचा, मेंहर सतगुरु की है बाँचा ||
धरे जो धाम का रास्ता, दुखो का बेद कट जावे ||
वेग सच्चा मधुर अन्तर, ज्ञान सबहीं सुघर गावे ||
ध्यान सतगुरु वाणी, बने क्यों तू यहाँ अनाड़ी ||
शीश सतगुरु चरण में रख, ज्ञान को तू सही से परख ||
नाम और भेद के मालिक, गुरु साँचे मेरे नामी ||
सत्य के सिन्धु दाता हैं, सतगुरु सत्य के नामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव

धुन और ज्ञान भजन मन सतगुरु, सच्चा शब्द सुनावे ||
अधर सेन में शैल शिखर की, तुझे यात्रा करवावें ||
बिन्दु पुर तुझे सिन्धु मिलावें, सतगुरु ज्ञान बतावें ||
ज्ञान ध्यान मेरे सच्चे नामी, जो नर लगन लगावे ||
लाभ कमावे अन्तरघट में, सच्चा ज्ञान हो जावे ||
ज्ञान ध्यान सतगुरु चरणन में, मन चित्त जो प्रेमी मिलावे ||
नाम भजन हो सतगुरु जी का, मीठे फल को पावे ||
सच्चे सतगुरु मालिक प्यारे, नाम भजन जो गावे ||
ज्ञान ध्यान धर सतगुरु जी का, सच्ची नेंह लगावे||
पार देश मालिक पहुंचावै, दया मेंहर जो पावे ||
ज्ञान के दाता सतगुरु मालिक, जो नर लगन लगावे||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, दरश परश को पावे ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत अनामी, सच्चे नामी सच्चे स्वामी ||
सतगुरु दाता पुरुष अनामी, जिनके चरणों में कोटि परणामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 05 अप्रैल 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
आत्म बोध और आत्म ज्ञान का, सच्चा हो कल्याण ||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
नाम अलौकिक सतगुरु दीन्हा, नाम भजन कर उसको चीन्हा,होवै सच्चा ज्ञान ||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
सत्य सहारे सत्य अधारे, सतगुरु नाम अधार||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
रूप अलौकिक अद्भुत दिखे, हो सच्ची पहिचान||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
नाम सहारे नाम अधारे, पावन सतगुरु नाम ||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
सच्चे साई अद्भुत दाता,सबके खोलें सतगुरु खाता, सच्चा करियो ध्यान ||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
नाम अधारे पावन द्वारे, सतगुरु हो सतनाम ||
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान ||
सतगुरु जयगुरुदेव

सत अनामीपुरुष सतनामी, सतगुरु मेंहर की खान ||
ध्यान ज्ञान हो गुरु चरणन में, ना आवे अभिमान ||
रूप अलौकिक अद्भुत गुरु का, प्रेम शिखा हो ज्ञान ||
मान लोभ को मार भगावो, बन जावो सज्ञान ||
नामा भजन सतगुरु का साँचा,ता में आवे ज्ञान ||
रूप अलौकिक है साई का, साँचे सर्वज्ञ सज्ञान ||
सतगुरु नामी पुरुष अनामी, सच्चा देते ज्ञान ||
ज्ञान ध्यान हो गुरु चरणन में, ना आवे अभिमान ||
मान लोभ को छोड़ कर भागो, सच्चा करियो ध्यान ||
ज्ञान अलौकिक मेरे मालिक का, सच्चा रहे अभिमान ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ,आवे सच्चा ज्ञान ||
भेद भाव सब सतगुरु जाने, दिव्य अलौकिक काम ||
नाम धाम मेरे साई का, सच्चा है स्थान ||
साँचे सतगुरु प्रीतम प्यारे,ता में लगाओ ध्यान ||
ज्ञान ध्यान सब गुरु चरणन का, ना आवे अभिमान ||
सतगुरु सत्य अलौकिक दाता, सच्चा होवे ज्ञान ||
ज्ञान ध्यान सब गुरु चरणन में, ना हींआवेगा मान ||
सतगुरु संत अनामी प्यारे,चलियो सतगुरु धाम ||

सतगुरु जयगुरुदेव

ध्यान गुरु का हमेशा लगाते चलो, नाम सतगुरु का अपने गुनगुनाते चलो ||
मन ध्यान और भजना में लगाते चलो, ज्ञान सतगुरु का सच्चा पाते चलो ||
मान का पान सच्चा कराते चलो, शीश सतगुरु चरण में झुकाते चलो ||
बन्दना सतगुरु की सब गाते चलो, नाम सतगुरु का अपने गुनगुनाते चलो ||
ध्यान धर गुरु चरण को सवरते चलो, देश सच्चे का गुणगान गाते चलो ||
नाम सतगुरु का अपने गुनगुनाते चलो ||
सत के साईसच्चे गुरु दाता हैं, नाम सतगुरु भजन में लगाते चलो ||
दाता साई के गुण गान गाते चलो ||

अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, सब पर गुरु महाराज की असीम दया-कृपा,अनुकम्पा बरसे | सब लोग लग करके सुमिरन ध्यान भजन कराते चलो | मालिक के नाम को यादगार बनाते चलो | हाजिर-नाजिर मालिक को मानते हुये, घट है, घट में घाट है, घाट पर गुरु की बैठक | जब हम तुम जिन्दा हैं तो गुरु महाराज अन्तर में बैठे हुये अन्तर में जीवित हैं | हर प्रकार से हाजिर-नाजिर हैं, सर्वज्ञ हैं, इसी धरा पर हैं | गुरु महाराज ने नए मानव पोल पर,नये चेहरे में, जो अपना स्थान ग्रहण किया, उस नये मानव पोल,नये चेहरे के साथ हम सब को प्यार करना है | अपने गुरु महाराज से बिनती प्रार्थना करते रहना है | अपने गुरु महाराज के साथ हीं रहना है | अपने गुरु महाराज की बन्दना करना है | गुरु हीं सर्वज्ञ है, गुरु हीं दाता है, गुरु हीं दयाल है, गुरु हींकिरपाल है, गुरु हीं सबकी मुरादें पूरी करेगा और गुरु के साथ हीं हम सबको रहना है |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत कृपाला, हे सतगुरु जयगुरुदेव दयाला||
नाम भजन मन तेरा आवे, सतगुरु तुममेंनेहलगावे||
आरती सतगुरु जी की गावे, श्री चरणन में शीश झुकावे||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 मार्च 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

ध्यान धर प्रेम से देखो, ज्ञान अन्तर की वाणी है ||
ज्ञान गंगा है घट बिचे, खोलते सतगुरु प्यारे है ||
चमक अद्भुत अलौकिक हो, दिव्य दर्शन सुहानी ||
ज्ञान और ध्यान सतगुरु का, संत जो सत नामी हो ||
सतगुरु की सांची, सत सतगुरु की वाणी हो ||
पुरुष सतगुरु अनामी जब, सत्य और प्रेम उनमें है ||
लगा धुन तू गुरु जी से, ज्ञान की गंगा सच्ची हो ||
ज्ञान और ध्यान सतगुरु का, सत्य का संग सच्चा हो ||
सतगुरु नाम सच्चा है, सत्य का संग सच्चा हो ||

सतगुरु जयगुरुदेव
गगन के बीच मण्डल है, सतगुरु धाम साँचा है ||
सत्य का नाम बजता है, सत का साँचा ढाचा है ||
धरो सतगुरु शरण में सब, यहीं तो बात साँचा है ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मिलन होवे स्वामी मेंहर होवे तेरी ||
अन्तर घट में बाजती घड़ियाँ, चलती रहती हैं जो चौघड़ियाँ||
शब्द की छूटती हैं फुलझड़ियाँ, रंग रंगी हैं सारी लड़ियाँ ||
सतगुरु मेंहर से जुड़ती हैं कड़ियाँ||
नाम प्रेम सतगुरु मालिक से, सच्ची मेंहर की जुड़ जाये लड़ियाँ ||
सतगुरु संत हमारे प्यारे, रहो सब जन तो इन्हीं के आधारे||
नाम प्रेम सतगुरु संग करना, सच्चा भजन ध्यान मन भजना ||
सतगुरु चरणन में मन लाना, सत में सत की लौ को जगाना ||
सत मेंहर में है घुल जाना,मिलैसतपुरूष सतनाम का खजाना ||
सतगुरु संगी सच्चे स्वामी, नाम भजन के सच्चे नामी ||
सतगुरु संग है लगन लगाना, सतगुरु संग में समय बिताना ||
मिल जाये सच्चा नाम खजाना, सतगुरु चरणननेह लगाना ||
सतगुरु चरणन शीश झुकना ||

अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त ‘प्रेमी जन, मालिक की असीम दया कृपा अनुकम्पा आप सबके ऊपर बरसती है और हमेशा सदा सर्वदा बरसती रहेगी | हर प्रकार से गुरु महाराज दया कृपा कर रहे हैं | दया के सागर हमारे मालिक, सतगुरु,सतपुरूष, अनामी पुरुष करतार, स्वामी जयगुरुदेव, सतगुरु जयगुरुदेव की दया कृपा बरस रही है | आप सब उसमें ओत्र-पोत्र हो रहे हैं | गुरु महाराज ने हमेशा से चेताया और बताया, समझाया कि हमारा तुम्हारा जन्म यहाँ सुमिरन भजन ध्यान के लिये हुआ है और सुमिरन भजन ध्यान करके अपने देश को चलना है, निज धाम चलना है |

धरो धूर धाम का रस्ता, नाम सतगुरु ने दिया सस्ता ||
मेंहर कर भेद दीन्हा सब, नहीं सतगुरु को चीन्हा सब ||
मंगन हो लौ लगाते चल, गुरु का ज्ञान गाते चल ||
नाम महिमा अलौकिक है, प्रभु ध्यान करते चल ||
सुहावन सत घड़ी सुन्दर, ज्ञान का पान करते चल ||
गुरु में मन लगाये जा, धाम अपना जो पायेगा ||
भाव सतगुरु में लाते चल, गीत सतगुरु के गाते चल ||
नाम गुरु का गुनगुनाते चल, गुरु में मन को लगाते चल ||
ध्यान धर देख सतगुरु को,सिन्धु पर सिन्धु प्यारा ||
देश सच्चा गुरु का है, मिलन होवै एक वारा है ||
प्रभु से लौ लगाते चल, ध्यान सतगुरु में लाते चल ||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत सवरिया,सुरति गावे हो के बवरिया||
निज चरणन में करे बन्दना, सतगुरु संत हमारे सवरिया||
आरती करती सूरत बवरिया||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :


मुक़्ती दिवस का पावन पर्व बड़े धूम-धाम से 22 मार्च से 24 मार्च तक ग्राम बड़ेला में मनाया गया। 23 मार्च को सर्व प्रथम प्रात: 08:00 बजे अखण्डेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर के प्रांगण में सतयुगी धर्म ध्वजा को प्रेमियों द्वारा फहराया गया। सभी प्रेमियों ने मुक़्ती दिवस गीत गाया गया। इस समय का दृश्य बड़ा ही मनोहारी था। जो प्रेमीं उपस्थित थे, वही उस समय के गवाह हैं। तद् उपरान्त सत्संग के माध्यम से साधक गुरु भाइयों ने गौरवमयी दर्दीले इतिहास के विषय में बताया कि किस प्रकार कांग्रेस शासन ने स्वामी जी के साथ-साथ प्रेमियों को भी नाना प्रकार के कष्ट दियें। साधक गुरु भाइयों ने प्रेमियों को सुमिरन, ध्यान और भजन पर बैठाया। परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी ने सभी आये हुए पुराने और नए प्रेमियों पर घनाघोर दया की बरसात की। रात के समय मंदिर की छटा देखते ही बनती थी।
सतगुरु जयगुरुदेव

सत्संग स्थल का पता :
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975
नोट : सभी प्रेमी अपनी कुल व्यवस्था के साथ आएंगे |

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 05 मार्च 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

नाम धन सतगुरु जी ने दीन्ह||
नाम भजन कर सब जन प्रेमियों,लो अन्तर में चिन्ह ||
शब्द अलौकिक दृश्य दिखावें, वहीं बीच होवो लीन ||
नाम भजन की है महिमा न्यारि, ज्ञान रसा के अधीन ||
नाम भेद सतगुरु बतलायो, सत देश की चिन्ह ||
मधुर मधुर जब बाजे बंसुरिया, उसहीं में होवो लीन ||
सतगुरु दया बीराजै तुम पर,मीठी बाजे बीन ||
शीश धरो सतगुरु चरणन में, दया मेंहर से तरलीन||

सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों, शिव रात्रि के महा पावन पर्व के अवसर पर, ये तीन दिवसीय कार्यक्रम अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला में रखा गया है | गुरु के आदेशानुसार शिव भोले नाथ का सम्मान करना है और लग करके सुमिरन भजन ध्यान करना है |

आदि अनाम नाम शिव जाना, हरी अनन्त ये रूप बखाना ||

आदि अनाम निर्गुण निराकार शिव अनाम पुरुष को कहते हैं | वो अनाम देश में बैठते हैं | उन्हीं का परारूप हर मण्डलों में है और हर मण्डलों से होते हुये यहाँ धरा पर भी बिराजमान हैं | शिव भोलेनाथ बड़े हीं दयालु किरपालु हैं | बड़ी हीं दया कृपा करते हैं | गुरु महाराज को वरदान दिया कि जब तक धर्म की स्थापना नहीं हो जायेगी तब तक हम काशी लौट के नहीं जायेंगे, हम आपके साथ रहेंगे | गुरु महाराज यहाँ अखण्ड रूप से बिराजमान हैं और गुरु महाराज के साथ शिव भोलेनाथ शंकर जी भी बिराजमान हैं | इसमे कोई शंका नहीं | जैसे आप चाहोगे, अन्तर में प्रार्थना करोगे तो गुरु महाराज के साथ शिव भोलेनाथ का भी दर्शन आप सब को होगा |

प्रेम भाव शिव करी बन्दना, दया मेंहर हो नामी ||
प्रेम भाव बस तुम्हें रिझाऊँ, सतगुरु शिव जी स्वामी ||
आदि अनन्त का भेद बतावें,मेंरे सतगुरु नामी ||
गुरु महाराज ने सब कुछ बता चेता रखा है, आदि से अनन्त तक सारा भेद आप सब को बता दिया है | हर प्रकार से आप सबको सत्संग सुनाया, समझाया बताया कि लग करके सुमिरन भजन ध्यान करो, आगे का समय खराब है | तो समय तो दिन प्रतिदिन खराब हीं होता चला जा रहा है | जहाँ पर देखो वहाँ पर महामारी, कहीं पर ओलावृष्टि, कहीं पर दैविक आपदायें आ रही हैं | जब सुमिरन भजन ध्यान नहीं होगा, प्रभु कि आराधना नही होगी, तो प्रभु जब नाराज हो जायेगा तो कुछ न कुछ दण्ड भोगना पड़ेगा | तो प्रेमियों, चाहे जहाँ सारे देश में कहीं के भी प्रेमी हों, कहीं पर भी रहें, पर उस प्रभु, उस मालिक कि बन्दना किसी भी तरह से करें, करते रहें |

सतगुरु सत अनाम मेंरे स्वामी, उनकी दया मेंहर उपजानी||

जो अनाम पुरुष करतार हैं, उन्हीं का सारा विस्तार है, उन्हीं का सारा पसारा है, उनहीं की दया मेंहर उपजी है | जो हर-हर घट में, हर प्रकार से जो है अनुभव-अनुभूति हो रही है, हर प्रकार से दया मेंहर गुरु महाराज की बरस रही है | तभी तो अनुभव अनुभूति हो रही, दिखायी-सुनायी पड़ रहा है | एक यही ऐसा स्थल है अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला, जहाँ से बताया जाता है कि पूरा का पूरा अनुभव होगा | आपको दिखायी-सुनाई पड़ेगा | दिखायी-सुनायी पड़े तो मानो और ना अगर दिखायी-सुनाई पड़े तो मत मानो | जब पूरा अनुभव की बात की जाती है, पूरा आत्मबोध-आत्मज्ञान की बात बताई जाती है, सुमिरन ध्यान भजन की बात बताई जाती है | तो सुमिरन ध्यान भजन अगर नहीं करना चाहते हो, मेला देखना चाहते हो तो अलग की बात है | अगर तुम मुक्ति मोक्ष और सुमिरन ध्यान भजन करना चाहते हो, मुक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहते हो तो एक बार यहाँ आना हीं पड़ेगा | यहाँ आ करके उस गुरु को जानना पड़ेगा, समझना पड़ेगा कि हमें किस तरह से सुमिरन भजन ध्यान करना है | अपने अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु के आगे नतमस्तक होना पड़ेगा, नतमस्तक होने के बाद जब उनकी दया मेंहर बरसेगी तो आपको दिखाई और सुनाई दोनों पड़ेगा | पूरा का पूरा अनुभव होगा, उसमें कोई शंका कि बात नहीं है | शंका तो वहाँ पर होती है, जहाँ कुछ ना हो | जहाँ सब कुछ हो, वहाँ किस बात की शंका | जब आप तंत्र मंत्र से तो तुमको कुछ दिखायी-सुनायी पड़ने वाला नहीं न तंत्र मंत्र से कुछ दिखता-सुनता है | न आज तक किसी ने दिखाया न सुनाया | तंत्र मंत्र तो अलग विद्या है, ये तो अध्यात्मवाद है | सच्ची नाम की कमाई, प्रभु का दर्शन, राम कर दर्शन, शिव का दर्शन, विष्णु का दर्शन,ब्रम्हा का दर्शन अन्तर में होता है | अन्तर में घट है, घट में घाट है, घाट में गुरु की बैठक, अगर गुरु के दर्शन नहीं हुये तो किसी के दर्शन आपको नहीं होंगे | सर्वप्रथम आपको गुरु से हीं प्रेम करना पड़ेगा | अगर गुरु से प्रेम करोगे, गुरु की दया मेंहर होगी तभी आप सबको दिखायी-सुनाई पड़ेगा |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 02 मार्च 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :

सतगुरु संत हमारे नामी, सच्चे हैं सतनामी ||
सत की दया मेंहर बरसत है, सत के सुन्दर नामी ||
सत्य भाव मन करिहै बन्दना, सत के सच्चे नामी ||
रूप अलौकिक मेंरे मालिक का, सच्चे सुगम हैं नामी ||
मधुर मधुर बरसे जहाँ बदरी, दया मेंहर लासानी ||
सतगुरु संग में होली खेलो, रंग रोगन रंग जानी ||
नाम सुधा रस अन्तर बरसे, छक छक पियो सब पानी ||
सतगुरु संत हमारे प्रीतम, बात बड़ी लासानी ||
भेद गगन का सार बतायो, तबहु करहु मनमानी ||
अमन चित्त रखो तुम साई में, तबहीं बात बन जानी ||

सतगुरु जयगुरुदेव
धरम ध्वज सतगुरु संग असिन ||
नाम भेद को खूब समझायो, सच्चे नाम को दीन्ह ||
सच्चे सतगुरु सत अनामी, सत की बाजे बिन ||
सत सत नमन गुरु चरणन में, सत में सत हो लीन ||
दया धरम सबको अपनाओ, तब तो बाजे बीन ||
हरे रघुराई सच्चे स्वामी, यहीं तो सतगुरु तीन ||
दीन गरीबी में रह करके, सब जन सुनियों बीन ||
गगन से भेद आवे आवजिया, वो हीं मे होवो लीन ||
नाम सुधा रस अन्तर बरसे, सतगुरु ली जो चिन्ह ||
सत अनामी पुरन नामी, सतगुरु संग बनो दीन ||
सतगुरु संत हमारे साँचे, वो हीं में होवो लीन ||
सतगुरु जयगुरुदेव

अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण मे बैठे हुये समस्त नर-नारी जन, मालिक की असीम दया अनुकम्पा बराबर हम सब पर बरस रही है | हमको जो भेद बताया है मालिक ने वो सच्चा है | कुशल पूर्वक लग करके, मालिक के बताये हुये नाम का जाप करना हमारा तुम्हारा कर्तब्य है | मालिक के बताये हुये रास्ते पर चलना, मालिक का अनुसरण करना, मालिक के दिये हुये वचनों को याद करना और नित्य प्रति मालिक की याद गारी बनाये रखना, मालिक मे मन को लगाना और मालिक से हर दम प्रार्थना करते रहना कि हे मालिक, हमारा सुमिरन भजन ध्यान बन जाय, हमारी नैया को उबार लो, हमको बचा लो, हमें सम्हाल लो, हमे अपने सत देश का संगी बना लो, हमे अपने चरणों मे बैठा लो, हम पर अद्भुत दया कृपा कर दो | हे प्रभु, हम दीन गरीब पर आपकी दया मेंहर हो जाय और हमारा भाग्य जग जाय, हमारा नर तन सुफल हो जाय | आपकी कि भग्ति मे और आपके साथ रहते हुये, हर प्रकार से आपकी दया मेंहर हो और सदा सर्वदा के लिए आपके हीं हो जाय |

सतगुरु जयगुरुदेव

सत सत नमन सत के नामी, सच्चे साई सतगुरु सतनामी ||
सतगुरु नाम अलौकिक प्यारा, चहुंदिश मे होवै उजियारा ||
सतगुरु जी का शकल पसारा ||
शब्द भेद को खूब समझायो, भाव झरोखे मिल कर गायो ||
सतगुरु संत हमारे नामी, दया मेंहर बरसी है अनामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव मेंरे नामी, समझ बुझ के करो परणामी||
सत सत नमन सतगुरु नामी, कोटी बन्दना मेंरे स्वामी ||
गुरु का सच्चा भेद बतायो, पार देश मारग दिखलायो ||
हे सत भेद संत हे नामी, तेरे चरणों में कोटी नमानी ||
गुरु के धाम में बसो निरंतर, अन्तर बाहर ना कोई अन्तर ||
मन चित्त लायी भजे जो निरन्तर||
सतगुरु चरणन नेह लगावे, मुक्ति मोक्ष परम पद पावे ||
गुरु कि जो बन्दना बजावे ||
सतगुरु संत निरन्तर अन्तर, खोजो घाट पे नहीं कोई अन्तर ||
सच्चे मन से जपो तुम मन्तर ||
सतगुरु संग में रोज सुहावन, सत संग होवे अति मन भावन ||
सत सनेही सतगुरु नामी। तुमको कोटी कोटी परणामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ||

सतगुरु जयगुरुदेव

धरो धूर धाम का रास्ता, मार्ग सच्चा गुरु सस्ता ||
दया कर भेद दे दीन्हा, भजन कर क्यों नहीं चीन्हा ||
ध्यान धार सतगुरु में तू, बीन बंसी सुनाएगी ||
कान एक क्षण में तुमको तो, सत के देश लायेगी ||
करो सुमिरन सतगुरु का, भाग्य तेरे जग जायेंगे ||
भजन मन ध्यान दे तू जरा, काम सारे बन जायेंगे ||
नाम सच्चा नामी सच्चा, मंगन मन नाम को गाओ ||
लगी सीढ़ी गगन में हैं, नाम संग ऊपर चली जाओ ||
सतगुरु को करो बन्दन, कटेंगे कोटी जो बन्धन ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु संत कृपाला, सतगुरु मेंरे दीन दयाला ||
निज चरणन में करी बन्दना, हे मालिक मेंरे किरपाला ||
मेंहर कियो और नाम बतायो, दया मेंहर सब है ताला ||
तेरे चरणन में शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
हे सतगुरु मेंरे दीन दयाला, कोटी बन्दना है किरपाला ||
कोटी कोटी करूँ बन्दना, अरब खराब परणामी ||
चरण कमाल बिसरो, सतगुरु जयगुरुदेव अनाम ||
बार बार कर जोर के, सविनय करूँ पुकार ||
साध संग मोहीं देव नित, परम गुरु दातार ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 01 मार्च 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
संत सहारे रहियो सब जन, संत हैं कृपा निधान ||
दया मेंहर बरसे उन चरणन, सच्चा होवे ज्ञान ||
सतगुरु नाम सुधा रस बरसे, अमृत को करो पान ||
नाम भेद के सच्चे दाता, सतगुरु दीन दयाल ||
सत सनेही सतगुरु साँचे, सत देश में मुकाम ||
गुरु की और बढ़ो सब प्रेमी, मेंहर होये कल्याण ||
सतगुरु चरणनकरीहे बन्दना, सच्चा होवे ज्ञान ||
नाम दान दिया सतगुरु जी ने, नाम हींकरत निदान ||
नाम प्रभु ने जा देश किन्हा, जो भजन कीन्हस्वयी ने चीन्हा ||
सच्ची दया निदान ||
शीश धरो सतगुरु चरणन में, पूरा हो कल्याण ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मन चित्त लागे गुरु चरणन में, ऐसी करो बन्दना ||
रीझ जाये जब सतगुरु मालिक, सच्ची बने अरधना||
दया मेंहर बरसै नामी की, सुख बरसै घर अंगना||
होये मेंहर और मिलैबरक्कत, चढ़े नाम रंग रोगना||
भाव झरोखे सतगुरु प्रीतम, यहीं सबके सजना ||
भेद बतयोसतदेश सत, नाम का पालन करना ||
नाम सुधा रस अन्तर बरसे, यहीं दया है अंगना||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, दया मेंहर को पाना ||
शीश झुकाना सतगुरु चरणन में, नाम भजन मन गाना ||

सतगुरु जयगुरुदेव
देश अनुपम निराला है, गुरु ने खोला ताला है ||
घाट के पार चल देखो,वो बैठा मुरली वाला है ||
शब्द और भेद को समझो, सुनो झंकार प्रीतम की ||
भेद में भेद को समझो, नाम की रीति प्रीतम की ||
सुगम सुन्दर आदित मण्डल, करो किरतार्थ अन्तर मन ||
चढ़ो सब गगन के बिचे, होये झंकार अन्तर मन ||
शब्द की झोंक को समझो, शब्द झंकार अन्तर मन ||
शब्द की चोट जब लागे, सुधर जायेगा अन्तर मन ||
गुरु चरणों में हो तेरा, ध्यान तन मन ये अन्तर मन ||
ज्ञान होगा अलौकिक सब, ध्यान होगा जो अन्तर मन ||

सतगुरु जयगुरुदेव
पावन मंगल नाम सुहावन, घटा अति मंगल मन भवन ||
छबिन्यारि है मंगल पावन, सूरत जाग गयी अति मन भावन||
सतदेश की करी तैयारी, सूरत सजी हुयी वारी न्यारि||
सतगुरु चरणन बन्दना किन्हा, घट पट खोल गुरु ने दीन्हा||
घाट पार खूब दिव्य दिखावे ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्डरूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, लग करके सुमिरन भजन ध्यान करो | वक्त नाजुक है, कब क्या हो जाय कुछ पता नहीं | इसलिए मालिक में मन लगाते रहो, मालिक के बताये हुये निशाने पर चलते रहो | सुमिरन भजन ध्यान करते रहो, किसी की निन्दा आलोचना मत करो और गुरु में मन लगाओ, लग करके सुमिरन भजन ध्यान करो |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत्य अनामी ||
सत सत संत हमारे नामी, सत चरणन में करू परणामी||
सत के चरणन शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी,मेंरे मालिक मेंरे नामी ||
तुमको कोटी कोटी परणामी ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन सतगुरु जी का ध्यान ||
आत्मबोध अन्तर का होवे,सन्धि सतगुरु सुजान ||
नाम दियो और भेद लखायो, अन्तर का सब ज्ञान ||
चरण बन्दना सतगुरु जी की, सच्चे मन कल्याण ||
भाव झरोखे दीप जलाओ, बन कर चतुर सुजान ||
अद्भुत रूप अलौकिक देखो, जैसे सुन्दर काम ||
सतगुरु काम होत अन्तर में, अन्तर का सब ज्ञान ||
ज्ञान ध्यान हो गुरु चरणों में, सच्चा हो कल्याण ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा लागे नाम भजन में, ऐसी करो बन्दना ||
चरणन शीश झुकाओ सतगुरु के, सच्ची यहीं अरधना ||
सतगुरु भजन होये जब साँचा, अन्तर मन सतगुरु का बाँचा ||
सतगुरु रहे सनेही प्रीतम, जैसे चलत देश में जाता ||
कील सहारे सब बच जावें, बाकी सब को काल चबाता ||
सतगुरु संत हमारे प्रीतम, ये हींखोलैसबका खाता ||
सतगुरु नाम भजन मन लागे, भाग्य जगै जन जाता ||
मंगल मंगल मोल सुहावन, रूप बिधित जग जाना ||
सतगुरु नाम परम है सुहावन, सतगुरु सत के दाता ||
सतगुरु जयगुरुदेव

ध्यान मन मंगन हो करके, गुरु का ज्ञान गाना है ||
लगे मन सतगुरु में जब,मिलै अन्तर ठिकाना है ||
देश सच्चा गुरु जी का, गुरु में मन लगाना है ||
करम और धर्म सब सच्चा, शब्द भेदी गुरु सच्चा ||
सत के दीन दाता से, लगन सच्ची लगाना है ||
झुकाओ शीश चरणों में,मिलै सच्ची दया खातिर ||

सतगुरु जयगुरुदेव
रिमझिम रिमझिम बरसे बदरिया, सतगुरु दया मेंहरिया ||
दया मेंहर की चादर ओढ़े, चले प्यारी सूरत गुजरिया ||
शब्द सनेही सतगुरु प्रीतम, सच्चे हैं ये संवरिया ||
सतगुरु सतगुरु नाम भजन में, बन कर डोलो रे बवरिया ||
सतगुरु चरणन करो जो बन्दना, बन जाये सारे संवरिया ||
सतगुरु नाम पुकारो साँचा, अन्तर बोलो सच्चा बाँचा ||
सतगुरु भजन को गाना ||
नाम दियो सतगुरु स्वामी ने, सतगुरु में मन को लगाना ||
शीश झुकाना सतगुरु चरणन में, परम फला को गाना ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण के बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, गुरु महाराज की असीम दया-कृपा-अनुकम्पा आप सब लोगों के ऊपर बरस रही है, लग करके आप सब सुमिरन ध्यान भजन करो, मालिक की यादगारी करते रहो और मालिक में मन लगाते रहो | दिव्य-अलौकिक जो चीजें गुरु महाराज ने बतायी हैं, उन चीजों को प्राप्त करते रहो | गुरु महाराज को हाजिर-नजीर मानते हुये, सुमिरन ध्यान भजन करते हुयेअपने मार्ग पर अग्रसर रहो | आगे बढ़ते हुये कार्य करते चलो, गुरु में मन लगाते चलो और गुरु भाइयों से प्रेम करते रहो | किसी की निन्दा-आलोचना न करो, ना हीं किसी को कुछ कटु बोलो | जो भी बोलो मीठा बोलो और मीठी भाषा का प्रयोग करो |मीठी भाषा का प्रयोग करने का हीं आदेश गुरु महाराज का है | किसी की निन्दा आलोचना करने का आदेश कभी भी गुरु महाराज ने नहीं दिया | तो प्रेमियों आगे के समय नाजुक हैं | गुरु महाराज के आने की भी घड़ी धीरे-धीरे निकट आ रही है |वो प्रकट होंगे, प्रत्यक्ष होंगे,सबको दर्शन देंगे अन्तर बाहर हर प्रकार से और सबसे गुरु महाराज का मिलन होगा | अभी तो अन्तर में मिलन हो रहा है | आगे ६, ७, ८ शिवरात्रि के महा पावन पर्व पर कार्यक्रम है, यहाँ अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला में आप सब सादर सत्संगी भाई आमंत्रित हैं | यहाँ पर आप सबको अनुभव-अनुभूति होगी, दिखाई भी पड़ेगा, सुनाई भी पड़ेगा | अनुभव हो तो मानो, अनुभव न हो तो मत मानो | यहाँ तो सच्ची चीज है, सच्ची चीज लेने के लिये, एक बार सब लोग आओ और गुरु महाराज का अन्तर का दर्शन करो | अपने घट का ताला खोलो, अपने-अपने वतन वापस जाओ| बैठ करके सुमिरन भजन ध्यान करो और सच्चा फल पाओ |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, हे सतगुरु मालिक मेंरे नामी ||
चरण बन्दना कोटीपरणामी,मेंरे मालिक मेंरे नामी ||
श्री चरणन शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी,कोटीकोटी तुमको परणामी ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 26 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मंगन मन नाम भजन गुरु ज्ञान ||
गुरु का ज्ञान अमोलक पूँजी, धरो अन्तर में ध्यान ||
नाम भेद के सतगुरु मालिक, सच्चे हैं सज्ञान ||
दिव्य अलौकिक भेद बतावें, मिलै अन्तर का ज्ञान ||
नाम सुधा रस अन्तर बरसे, सतगुरु मेंहर निदान ||
सत्य भाव से करी बन्दना, सच्चा सतगुरु मान ||
दीन दयाल सतगुरु स्वामी, सतगुरु हैं किरपाल||
नाम दियो और भेद लखायो, सतगुरु सन्त निदान ||
सन्त हमारे सबके नामी, सच्चे हैं सज्ञान ||
परम दयालु और किरपालु, सतगुरु दीन दयाल ||
सत के चरणन शीश झुकाओ, हैं सच्चे किरपाल ||

सतगुरु जयगुरुदेव
भेद दियो नामी पुरुष अनामी ||
ज्ञान मेंहर सतगुरु के संग में, सतगुरु दया निधान ||
नाम भजन का रास्ता दीन्हा, हो जाओ सज्ञान ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो,आवे तुमको ज्ञान ||
दया मेंहर बरसै नामी की, सत्य प्रभु सतनाम ||
गुरु का भेद गुरु के संग समझो, गुरु कर सर्वज्ञ सुजान ||
दया मेंहर बरसी है सतगुरु की, सतगुरु कृपा निधान ||
शब्द के साई सतगुरु गोसाई, सच्चे दीनानाथ ||
सतगुरु सतगुरुसन्त हमारे, परम दयालु नाथ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, मालिक की असीम दया कृपा अनुकम्पा बराबर बरस रही है | हर तरफ घनाघोर अनुभव मालिक करा रहे हैं, सच्चाई के रास्ते पर चला रहे हैं, सच्चा भेद बता रहे हैं | अपने सच्चे बंदों से, अपने बच्चों को सच्चा संदेश भिजवा रहे हैं कि सब लोग सुमिरन ध्यान भजन करो, अनुभूति-अनुभव और अनुभव ज्ञान प्राप्त करो | अगर अनुभव नहीं हुआ, दिखाई नहीं सुनाई पड़ा तो किस बात का नाम दान ? प्रेमियों जब नाम दान मिला है तो अनुभव होना जरूरी है, दिखाई सुनाई पड़ना जरूरी है | मेला देखना आना-जाना, ये सब निरर्थक है | अगर तुम्हें सार्थक बनाना है तो सुमिरन ध्यान भजन, अनुभव-अनुभूति, अन्तर का ज्ञान होना परम आवश्यक है | अन्दर में परमानन्द है, अन्तर में आनन्द हीं आनन्द है | अन्तर में सतगुरु बैठा है, बिराजमान हैं |

सत का सिंधु अपार है भाई ||
मन चित्त लावो तुम गुरु चरणन, सच्चा सिंधु सुहायी ||
सतगुरु नाम भजन को कर लो, कटी जावे मैलायी||
नाम भेद के सच्चे दाता, दया मेंहर बतलायी ||
दीन दयाल सतगुरु साई, इनकी मेंहर की छाहीं||
इन चरणों में करो बन्दना, सब जन शीश झुकायी||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सन्त अनामी ||
सत देश के सच्चे स्वामी, सतगुरु तुम्हें कोटी परानामी ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
ध्यान धार गुरु चरण प्यारे, सहारे इसी के जाना है ||
नाम और भेद का सतगुरु,दियो सच्चा खजाना है ||
मनन मन ध्यान कर सतगुरु, गुरु में मना लगाना है ||
नाम मगिया सतगुरु की, नाम से हीं सजाना है ||
भाव भक्ति गुरु किये संत, दृढ़ इच्छा शक्ति जगाना है ||
अलौकिक कार्य जो तुमको, दिया प्यारे गुरु जी ने ||
भेद सब जान कर अन्तर, चरण में ध्यान लाना है ||
गुरु का ज्ञान सच्चा हो,मनन मन में खजाना है ||
धरो तुम चरण सतगुरु के,नेंहइनहीं में लगाना है ||

सतगुरु जयगुरुदेव
भेद देत सतगुरु सतनामी, अन्तर घट की अमिटकहानी||
एक एक भेद खोल बतलावें, शब्द का मारग भी समझावें||
शब्द की सुन्दर लड़ियाँ, एक साथ सति रोयी कड़ियाँ ||
मन चित्त भाव भजन में होवे, तब सतगुरु की मेंहर को सेवे||
नाम भजन मन चित्त को लाना, सच्ची मेंहर गुरु की पाना ||
नाम दिखायो भेद बतायो, सतगुरु हैं सतनाम खजाना ||
सगुण बंसियाँबाजै कर में, ऐसे हैं सतनाम महाना||
सत की बृथा अपार सुहायी, सतगुरु सत देश बतलाई ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मंगन मन भजना सतगुरु नाम||
सतगुरु नाम भजन से बंदौ, कटे मैलाइ की चाम||
सत्संग के सत वचन सुनोगे, सच्चे सतगुरु राम ||
सतगुरुनेंह लगाओ बंदौ, बने तुम्हारे काम ||
सत का हरी हर भजन सुहाये, देखो सतगुरु राम ||
नन्दगोपाला दीन दयाला, शिव शम्भू का धाम ||
देश शारदा करें बन्दना, गुरु को कोटी प्रणाम ||
नाम नमामि सतगुरु स्वामी,मेंरेपरभू हैं राम ||
दया मेंहरिया गुरु की बरसे, सतगुरु हैं सतनाम ||

सत बलिहारी सतगुरु जाऊँ ||
सतगुरु चरणनकरिहै बन्दना, सतगुरु तोहें मनाऊँ ||
नाम नमनी है सतगुरु की, सतगुरु संग हीं जाऊँ ||
सतगुरु सत्संग निकोलागे, नाम भजन को गाऊँ ||
सतगुरु संग में प्रीत प्रतीति, ये हीं रीत निभाऊँ ||
मधुवान उपवन सब है महके, नाम भजन मन गाऊँ ||
सत नारायण सतगुरु स्वामी, तुमको शीश झुकाऊँ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, मालिक की असीम दया-अनुकम्पा बराबर सब पर बरस रही है | दया दुआ की धार मालिक की सबको मिल रही है | जैसा जिसका कर्म है, वैसा फल तो भोगना हीं है | संसार में चाहे हम हों चाहे आप, कोई भी हो मालिक की बनायी हुयीखिलकत में हमको तुमको चलना है, रहना है| मालिक के बताये हुये रास्ते पर चलना है और मालिक का गुण गान करते रहना है | मालिक ने हम सबको तुमको चेताया बताया समझाया, नाम दिया, भेद बताया भजन करने का रास्ता, नीचे से ऊपर तक सत्संग सुनाया | सत्संग में गुरु महाराज ने त्रिलोक का वर्णन किया,ब्रम्हलोक का वर्णन किया,पार ब्रह्म का वर्णन किया, महाकाल पुरुष का वर्णन किया, त्रिलोक धाम, अलख-अगम सब कुछ बताया और समझाया |दात दिया सतगुरु ने और कहा निशाना मुझसे रखना किसी दूसरे से नहीं | पार करने वाला मैं हूँ, कोई दूसरा तुमको पार नहीं करेगा | तो प्रेमियों मन चित्त गुरु में लगाना और गुरु महाराज के हीं साथ रहना | मालिक के वचनों को बराबर याद करते रहना, उलट-पलट करके उनकी वाणियों को पढ़ते रहना | पत्रिकाओं में, अमर सन्देश पत्रिका में बहुत कुछ गुरु महाराज की वाणियाँ हैं, उन वाणियों को पढ़ोगे तो गुरु की सारी भविष्य वाणियाँ और गुरु महाराज के बताये हुये सारे वचन आपको सुनने को, याद करने को,जानने को मिल जायेंगे | सच्ची कहानी, सच्ची घटना आप सबको सतगुरु के, जो साधक हैं शिष्य हैं, उनकी जबानी आप को सुनने को मिलेगा | आप जब गुरु महाराज में मन लगाओगे, चीख़ोगे-पुकारोगे, अन्तर में चिल्लाओगे, गुरु महाराज दयाल हैं, दया कृपा करेंगे और सब पर दया दुआ देते हुयेसबकी झोली भर देंगे |

सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु संग रहना करो विश्वास ||
सतगुरु सच्चे सत के मालिक, शब्द भेद गुरु राम ||
राम राम सतगुरु को पुकारो, बनी जावेगा काम ||
काल महाकाल होवें सहाईं, सतगुरु मेंहर निदान ||
सत की रीत प्रीत हो सच्ची, मन में सुमिरन ध्यान ||
नाम भजन में मन चित्त राहियों,नाहीआवे मान ||
नाम मान को छोड़ दो भाई, बनी जावेगा काम ||

सतगुरु जयगुरुदेव
ध्यान धर ज्ञान के पीछे, गुरु में मन लगाते चल ||
नाम और वचन को तू समझ,उसि को अन्तर गाते चल ||
भेद एक एक बताया है, खोल सब कुछ समझाया है ||
वचन को मान सतगुरु के,नेंह उनसे लगाते चल ||

सतगुरु जयगुरुदेव
नाम का भजन करना सतगुरु में मन लगाना, सतगुरु की सच्ची वाणियों को याद करना | जैसे आपको कुछ नहीं आ जाता तो यहीं याद करो कि गुरु महाराज का सत्संग अयोध्या में था, हम अयोध्या में गये थे | गुरु महाराज का दर्शन किया था | गुरु महराज ने हमको बहुत कुछ बताया, दर्शन दिया | इलाहाबाद गये त्रिवेणी संगम पर स्नान किया, गुरु महाराज के दर्शन किये, गुरु महराज का सत्संग सुना | गुरु महाराज ने सत्संग उच्च कोटी का सुनाया, राजापुर का और गुरु महाराज ने बहुत सी चीजों को बताया समझाया | मथुरा आश्रम जाते आते रहे, गुरु महाराज का सत्संग सुनते रहे उच्च कोटी का | गुरु महाराज ने नीचे से ऊपर तक सत्संग सुनाया और समझाया यहीं |

प्रथम सतगुरु के दर्शन हों, प्रीत परतीत सांची हो ||

प्रथम गुरु महाराज के दर्शन करो, और उन्हीं से प्रेम प्रतीत करो, उन्हीं में मन लगाओ, उन्हीं को सब कुछ मान कर पूजना-अर्चना, भजन-ध्यान और उन्हीं के चरणों में मन लगाने का काम करो | सच्चाई और कड़ाई के साथ तत्पश्चात प्रभु राम के दर्शन होंगे | प्रभु राम के दर्शन होंगे, स्वर्ग बैकुंठ और ब्रह्मपूरी,शिवपूरी,आद्यामहाशक्ति, प्रभु राम के देश को देखोगे | अन्तर में चलोगे, तुम्हें दिखाई पड़ेगा, सुनाई पड़ेगा, प्रभु राम के दर्शन होंगे, ब्रम्हा-विष्णु-महेश के दर्शन होंगे, सबके दर्शन आप को होंगे | जब गुरु कि बात मान जाओगे, गुरु के निशाने पर चलने लगोगे और गुरु कि वाणी याद करने लगोगे तब तुम्हें ऐसा सब कुछ होने लगेगा, गुरु कि मेंहर आने लगेगी | गुरु कि दया मेंहर से सारा काम बनने लगेगा, आपको सब कुछ अद्भुत-अलौकिक दिखाई पड़ने लगेगा | जब किसी से आप कुछ कहोगे तो वो कहेगा कि ये क्या बक रहा है, क्या बोल रहा है | हमने तो कभी नहीं देखा पर तुम अपने गुरु कि कृपा से सब कुछ देखोगे और समझोगे | आगे ऐसा सुगम वक्त आयेगा कि गुरु महाराज ने कुछ बताया है, उस हिसाब से सारा काम होगा और सारा का सारा परिवर्तन हो जायेगा | गुरु महाराज चौथा महान यज्ञ रचायेंगे, उसमें दस करोड़ नर-नारी होंगे | वो चाहें जमीन से आवें या आसमान से आवें, वहीं पर सतयुग का राज तिलक होगा | वहाँ पर शंकर भगवान भी मौजूद रहेंगे, हर प्रकार के लोग रहेंगे, महाकाल पुरुष और पांचों धनी, सब कुछ सब सारी शक्तियाँ, सारे देवी-देवता गण वहाँ उपस्थित होंगे | और वहीं पर गुरु महाराज सतयुग जी का राज तिलक करेंगे | देखो ये परिवर्तन का सेहरा जो है महाकाल पुरुष के सिर पर है, उन्हीं के मत्थे पर ताज लगा है, उन्हीं के द्वारा ये सब कुछ होगा | गुरु महाराज के कहने के अनुसार सारा काम होगा | आप सब लग करके सुमिरन भजन ध्यान करते रहो और गुरु का गुण गान करते रहो |

सतगुरु जयगुरुदेव
पावन मंगल सतगुरु नामु, नाम भजन मीलै तुम्हें परमानु ||
कोटी कोटी तुम करो बन्दना, सतगुरु चरणन कोटी नमामि||
हे दयाल सतगुरु मेंरे दाता, अन्तर घट में खोलो खाता ||
घाट पार तेरे दर्शन पाऊँ, हे सतगुरु तोहीं एहीं को रिझाऊँ ||
हे मालिक हे संत हमारे, दया मेंहर करो अब एक वारे ||
सतगुरु जयगुरुदेव हमारे ||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु दीन दयाला, दीन बंधु सतगुरु किरपाला ||
श्री चरणन कि करूँ बन्दना, हे सतगुरु मालिक नन्दलाला ||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
श्री चरणन बलिहारी जाऊँ, नाम कि महिमा आप कि गाऊँ ||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु संत हमारे नाथ ||
दया मेंहर बरसै सतगुरु की, ध्यान भजन मन साथ ||
ज्ञान की कुंजी सतगुरु देते, नाम की पूंजी साथ ||
सतगुरु परम अलौकिक न्यारे, दिव्य अस्त्र के साथ ||
सतगुरु मानव पोल पधारे, हरी अनाम के नाथ ||
शिव भोले बम भोले जी भी, हैं सतगुरु के साथ ||
सतगुरू के संग सब जन लग जाओ, पार देश की बात ||
करो तैयारी सत देश की, सत्संग सतगुरु साथ ||
सत नाम की बरसा होवे, नाम भजन गुरु हाथ ||
मेंहर होये जिस दिन सतगुरु की, खुल जायें सारे घाट ||
पुलकित मनवा सतगुरू देखै, शब्द भेद के नाथ ||
हे सतगुरु के सच्चे बंदौ, सतगुरु दीना नाथ ||
दीन दयाल बृहद सम भारी, हरहु नाथ मम संकट भारी ||
मन अन्तर कुछ लेव बिचारी, ज्ञान ध्यान की कुंजी प्यारी ||
सतगुरु संग में साथ ||
पग मग देर करो नहीं ठग में, ठग है ठगोरी हाथ ||
नाम भजन में मन चित्त लाओ, चंचल चितवन नाथ ||

सतगुरु संग चलो गगन बिचे ||
मण्डल देखो तारा गण के, क्या देखोगे नीचे ||
उधर देश सच्चा प्रीतम का, क्यों हो आँख को मीचे ||
सच्ची करो बन्दना गुरु की, दया मेंहर सब पी के ||
अमृत नाम सुधा बरसेगी, नाम रसा रस नीचे ||
सतगुरु संग रंग चढ़ी जावे, नाम भजन मन पी के ||

सतगुरु जयगुरुदेव
धरो धूरधाम का रस्ता, मार्ग सतगुरु ने दीना है ||
ध्यान और भजन कर ले तू, नाम मन में हो लीना तू ||
सतगुरु की मेंहर आयी, बनो तुम सब जो दीना जी ||
भजन एक एक कड़ी सच्ची, ज्ञान और ध्यान बन जाये ||
चलो सतगुरु के संग में सब, ज्ञान गंगा भी बह जाये ||
करो पर प्रभु से मिन्नत तुम, गुरु के साथ में लग कर ||
मेंहर हो जाये सतगुरु की, दया की धार आ जावे ||
दया की धार सच्ची है, मिलन का सार हो जावे ||

सतगुरु जयगुरुदेव
कुछ ध्यान भजन मन गाओ, सतगुरु जी को तो रिझाओ ||
ये नाम भजन है सच्चा, बाकी का सब जग काचा ||
ये हीं में को लगाओ, कुछ ध्यान भजन को गाओ ||
चरणन गुरु के तुम जाओ, कुछ प्रेम भाव दर्शाओ ||
सतगुरु से लौ को लगाओ, कुछ ध्यान भजन को गाओ ||
ये प्रभु सतगुरु हैं राजा, ये शब्द का बाजे बाजा ||
वोहीं रंग में रंग जाओ, सतगुरु में मन को लगाओ ||
सत धाम के वासी सतगुरु, हैं शब्द भेद अविनासी, इनहीं के गुण को गाओ ||
करो चरण बन्दना इनकी, इनहीं को शीश झुकाओ, कुछ नाम भजना को गाओ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
झील मिल रिल मिल रिलै सुरतिया ||
मेंहर सतगुरु धंसि सुरतिया||
अन्तर देखै सतगुरु मूरति, चम चम चमके सतगुरु सुरति ||
दिव्य प्रकाश हो चहुंउजियारी, देखो घटपट घाट उघारी||
घाट पार क्या अद्भुत लीला, सतगुरु दया मेंहर का किला ||
सतगुरु शब्द भेद के मालिक, दया मेंहर हैं किन ये सालिक||
मेंहर हुयी ऐसी अनाम की, जीव जगावन नाम दान की ||
नाम की महिमा खुद हीं सुनाते, अपने भेद सबै बतलाते ||
ऐसे सतगुरु को तुम पाओ, तो श्री चरणन शीश झुकाओ ||
मुक्ति मोक्ष परम पद पाओ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अविनासी, संग शिव शम्भू हैं जहां काशी ||
हैं शिव शम्भू जहां बने काशी ||
घाट पार येह काशी देशा, शिव शम्भू का यहीं है देशा||
बम बमबम महादेव कहाये, हरी हर गुन सबहीं ने गाये ||
बिन इनकी पूजा नहीं दुजी, संत काज में ये हीं पूजे ||
मन चित्त लायी करो सब भजना, सतगुरु नाम करो सब रटना ||

सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु अंगना में आये सजाओ थरिया||
आरती उतारो करो गुरु बन्दना, चौकी सजाओ सजाओ दुवरिया ||
गुरु अंगना में आये सजाओ थलिया||
गुरु की मेंहर हुयी अति भारी, है सतगुरु की दया सब सारी ||
सतगुरु नाम भजो रे रसिया, अन्तर घटवा में बोले सबके बसिया ||
सतगुरु सतगुरु नाम है साचा, नाम भजन कुछ नाहीं आचा||
सतगुरु नाम भजो रसिया, अन्तर घटवा में बाजे तो बसिया ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, सबको गुरु महाराज की असीम दया कृपा अनुकम्पा से जो अन्तर्घट में गुरु की वाणी उतर रही है, जो कुछ अन्तर आ रहा है, वो आप सबको प्रार्थनायें उच्च कोटी की ऊपर की सुनने को मिल रहीं है | दया मेंहर सतगुरु की है, हमारे पास कुछ नहीं, न हम कुछ लिख कर रखते हैं, कुछ पढ़ करके रखते हैं | जो कुछ गुरु महाराज की दया धार उतरे, वो आप सबको सुनने को मिलता है | प्रेमियों आगे समय नाजुक है, नाजुक समय में सुमिरन भजन ध्यान हीं काम आयेगा, गुरु की दया मेंहर हीं काम आयेगी, वरना कोई बचाने वाला नहीं है | दुनिया में भागा-दौड़ी, हर तरफ चित्कार-पुकार मचेगी, हाहाकार मचेगा, तो कौन बचायेगा | हर जगह दैविक मार पड़ेगी, तो उस दैविक मार से सतगुरु हीं बचायेंगे | तो प्रेमियों लग करके हमको, तुमको, सबको सतगुरु का भजन करना है, सतगुरु की यादगारी करना है, सतगुरु सहारे रहना है, उन्हीं के साथ हीं चलना है | गुरु महाराज ने अब तक नाना प्रकार के सत्संग सुनाये, हर प्रकार से सबको बताया और समझाया कि देखो सुधार जाओ, अपने रास्ते पर चलो, मार्ग सब सच्चा है | सच्चे रास्ते पर चलोगे सुमिरन ध्यान भजन बनेगा | दिखाई भी पड़ेगा, सुनाई भी पड़ेगा, अपने निज घर पहुँच जाओगे | जब अपने निज घर पहुँच जाओगे, तो जीवन मरण से मुक्ति प्राप्त हो जायेगी | किसी को कुछ बोलने कि जरूरत नहीं पड़ेगी, संत सतगुरु हीं सारी चीजों को पार कर देंगे | गुरु महाराज हीं सब पर दया कृपा कर उस पार ले जायेंगे | और अपने देश में सच्चे जब पहुँच जाओगे, तो कोई दुःख पीड़ा तकलीफ नहीं होगी | जीवन-मरण, चौरासी-नरकों से तुमको मुक्ति मिल जायेगी | अपने हीं घर में रहोगे, अपने सतगुरु के संग रहोगे, अपने महल में बिचरण करोगे, सच्चे नाम भजन को गाओगे, सच्ची सतगुरु कि सेवा करोगे और सच्चे सतगुरु के साथ रहोगे | प्रेमियों कहने और सुनने में और करने में बड़ा फरक है | कहने के लिए तो सभी सुना देते हैं, कह देते हैं, बता देते है पर करते कितना हैं, इसको तो गुरु महाराज हीं जानते हैं | गुरु महाराज जिससे जितना करवा लें, वो उतना सुमिरन कर सकता है, उतना भजन कर सकता है, उतना हीं ध्यान कर सकता है | गुरु के सामने एकाग्रचित्त हो करके बैठना, गुरु में ध्यान लगाना, गुरु कि वाणी को याद करना, गुरु से हर प्रकार की दया मेंहर की भीख मांगना हीं हमारा तुम्हारा कर्तव्य है | भीख मांगते रहो गुरु से |

मेंहरिया सतगुरु दीना नाथ ||
मेंहर करो सतगुरु मेंरे नामी, भजन बनै मेंरा सतनामी ||
सत में लगै मन चार ||
अनाचार अन्तर ना आवे, सच्चा सोंच बिचार||

प्रेमियों सच्चा सोंच विचार आवे और इस सतगुरु के भजन में हमारा मन लग जावे | घट में घाट है, घाट में सतगुरु की बैठक, सतगुरु के दर्शन हों | ऐ प्रेमियों, सतगुरु में मन चित्त लग जाय, सतगुरु का नाम भजन हो जाय, सतगुरु में मन रम जाय, सतगुरु की वाणी याद आवे| सतगुरु के साथ बिताये हुये पल चौबीसों घण्टे हमें याद आते रहें, गुरु की दया मेंहर बरसती रहे | ये मन पापी है, चौबीसों घण्टे धमा-चौकड़ी, इधर-उधर भागता रहता है | फिर भी तुम गुरु के चरणों में मन लगाते रहो, गुरु की अराधना-प्रार्थना करते रहो, गुरु का गुणगान करते रहो, गुरु में मन लगाते रहो, गुरु के साथ रहो | गुरु के साथ मन के साथ चलोगे, गुरु की दया मेंहर होगी |

मेंहरिया सतगुरु दीनानाथ ||
दीन बन्धु तुम दया के सागर, कृपा सिन्धु रघुनाथ ||
मेंहरिया सतगुरु दीनानाथ ||
मेंहर कियो कौतुक दिखलायो, दीन्हों नाम का दान ||
नाम भेद बतलाकर सतगुरु, मेंहर कियो हर बार ||
मेंहरिया सतगुरु दीनानाथ ||
हे सतगुरु हम तेरे साथी, दया मेंहर करो नाथ ||
मेंहरिया सतगुरु दीनानाथ ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, सत अलौकिक सतगुरु नामी ||
श्री चरणन में कोटीप्रणामी, सतगुरु मेंरे मेंरे स्वामी ||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ, हे सतगुरु बलिहारी जाऊँ ||
मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ, श्री चरणन की आरती गाऊँ ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम ||
नाम अनामी पुरुष का सच्चा, सच्चा है सतधाम||
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम ||
दीन दयालु और किरपालु, ये हीं हैं परभू राम ||
श्री चरणन की करो बन्दना, बैठ के चरणन ठान ||
शब्द शब्द पर सतगुरु प्यारे, सतगुरु जी का नाम ||
संत हमारे सच्चे मालिक, शब्द की भेद की खान ||
सच्चे पिया को करो दण्डवत, मन चित्त सतगुरु लाय||
भाव भरोसे तुम रह जाओ, बन जाये तेरो काम ||
नाम भजन मे समय बिताओ, यह सच्चा है काम ||
परम पुनीत सतगुरु साई, सत के बीच मँझार||
सत सत के हैं सतसंगी, सत में है परमाण||
सत के चरणन चरण बन्दना, सतगुरु मे मन लाय||
भजन करो प्रेमियों सतगुरु का नाम ||
नाम भजन सच्चे स्वामी का, जन्म जन्मान्तर का काम ||
मैलाइ सब कटी कटीजावे,तोहीं मिले आराम ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, यह पावन है काम||

सतगुरु जयगुरुदेव

भेद कुछ समझ कर देखो, संत सतगुरु निराले हैं ||
दया और मेंहर के नामी,यहीं सच्चे रखवाले हैं ||
दया के सिंधु दाता जी, दया और मेंहर करते हैं ||
पार उस देश चलाने को, शब्द का सतगुरु देते हैं ||

सतगुरु जयगुरुदेव

भेद समझो नाम समझो, भजन और ध्यान को समझो ||

हे प्रेमी, प्यारे प्रेमियों हर प्रकार के भेदों को समझो, हर प्रकार की चीजों को समझते हुये, नाम भजन सुमिरन ध्यान को भी समझो कि किस तरह हमको सुमिरन ध्यान भजन करना है, और किस तरह गुरु में मन लगाना है | किस तरह गुरु के भजन को गुनगुनाना है, किस तरह नाम भजन गाना है, किस तरह मालिक को रिझाना है |

दया कि धार आवे जब,पयल हो गगन मंझारी की ||

जब दया की धार सतगुरु की आ जावे और वो तुमको खिच करके उस प्यारे गगन में, उन मंडलों में ले जाये जहां की ये सूरत है | जहां से आयी है, वहाँ का वर्णन देखे, वहाँ का रास्ता समझे, वहाँ के गुरु का दर्शन करे, वहीं पर खिल-मिल जाये, गुरु मे मिल जाये, गुरु के दर्शन करे,दरश परश करते हुये आगे जाती रहे |

दरश परश करे सतगुरु जी का,अमृत रसको पावे||
ज्ञान होये सच्चे साई का, नाम भजन मन गावे ||

गुरु महाराज के सच्चे दर्शन हों, सच्चा ज्ञान हो, सब हर प्रकार का भान हो और सच्चे रस को प्राप्त करे| और गुरु महाराज के चरणों में वो जाये, घुल-मिल जाये और उस गगन मंझारी का की सैर करे| जिस गगन में वो कभी नहीं गयी है, जब से आयी गुरु की दया मेंहर से गयी और गुरु महाराज की दया कृपा से आना जाना फिर से बना और गुरु की दया से उसने कुछ अद्भुत चीजों को देखा |

अद्भुत देखै शैल शिखर में,धँसै जहां वो सुन्न शहर में ||

अद्भुत देखती है, अद्भुत नजारे, अद्भुत महा अद्भुत ऐसा कभी नहीं देखा और सुन्न शहर में तीसरे धाम पर वो जाती है, वहाँ मंडराती है | मान सरोवर में स्नान करती है, वहाँ सूरतों से बात-चित करती है,मेंल-मिलाप करती है, गुरु के दर्शन पर्शन करती है और आती जाती रहती है |

आवत जात कई दिन बीते, सतगुरु प्रेम प्रतीत के रिते ||

सतगुरु की दया मेंहर से आती है जाती है, सतगुरु की दया मेंहर को लेती है | सतगुरु से मिलती है, जुलती है | सतगुरु से प्रार्थना करती है, हे मालिक, हे दयाल, हे किरपाल, कभी मेंरा दामन मत छोड़ देना, हमारा हाथ कभी मत छोड़ना | हम पापी जीव हैं, हम नालायक हैं | हमसे रोज पाप हो सकता है, हम कहीं भी गिर सकते हैं | लेकिन आप हमको छोड़ना मत| क्योंकि गुरु नानक का एक जीव जब भटक गया,वो चौरासी में चला गया | वहाँ नरकों पीपों में “नानक जाय अंगूठा बोरा, सब जीवों का किया निबेरा” | सो हे मालिक, ऐसी दया मेंहर करना कि हम चौरासी न जाने पायें | हमारे ऊपर दया मेंहर करो | कोई ऐसी प्रकार की हाड़ी-बीमारी ना देना, जिससे हमारा सुमिरन भजन ध्यान न हो पाये | न हीं ऐसी कोई बिडम्बना हो कि हम आप से छूट जायें, आप से दूर हों जायें | हे प्रभु धीरे से काम निकाल लेना और हमको अपने निज घर, निज धाम पहुंचा देना |

पहुंचावो निज घर हे स्वामी, आरती बिनती प्रार्थना नामी ||

सूरत जीवात्मा प्रभु सतगुरु से प्रार्थना करती है कि हम आपकी आरती करते हैं,अराधना करते हैं, प्रार्थना करते हैं आपसे मिन्नत करते हैं | आपके श्री चरणों में गिड़गिड़ाते हैं, हे प्रभु हमको अपने धाम, निज घर जरूर ले जाना, कहीं नरकों चौरासी में न जाना पड़े | हे प्रभु, जो हमसे वहाँ गलती हो गयी हो, हजार गायों का काटने का पाप लगा हो तो माफ कर दीजिये | हे सतगुरु हम पर दया कर दीजिये, हे गुरु महाराज हम पर कृपा कर दीजिये | आगे ऐसा महापाप या गलती होगी | हम कुछ ऐसा करते नहीं हैं, ये मन बुद्धि चित्त हमको गिरा देता है | हमारे मन बुद्धि चित्त को निर्मल पवित्र कर दीजिये | हे सतगुरु हम पर दया कर दीजिये कि कभी हमारा मन इस तरह का दाव न लगा पावे| चूंकि मन का हीं खेल है, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत |हे सतगुरु, मन जीत जाय, आपके नाम की विजय प्राप्त करे| ऐसे कोई राज में ना फसे जिससे हम कूड़े-कचरे में फस जावे और हमसे गलती हो जावे | हे नाथ एक बार हुआ, दो बार हुआ, तीन बार हुआ, क्या बार-बार गलती होगी तो कोई माफ नहीं करता | हे सतगुरु आप हजारों गलतियों को माफ करने वाले हैं | हम पर दाता दयाल दया करके माफ कर दो हमारे गुनाहों को और अपने देश को ले चलो | हे प्रभु एक कोने में बिठा करके अपने धाम को ले चलो |

हे दयाल श्रुति मंगल स्वामी, हे नामी हे पुरुष अनामी ||

हे दाता दयालु, दया के सागर, हे पवित्र पुनीत वत्सल, हे प्रभु, हे सतगुरु, हे दाता दयाल तुम तो नामी हो, सतनामी हो, पुरुष अनामी हो | हे दयाल मेंरे प्रभु, हे सतगुरु, हे सत्यनारायण स्वामी, हे जनपातकहरणा हम पर दया मेंहर करो, हे प्रभु हम पर दया मेंहर करो, हे सतगुरु हम पर दया मेंहर करो, हे मालिक मुझ पर दया मेंहर करो | तो इस तरह सूरत जीवात्मा सतगुरु से दया मेंहर की भीख मांगती है |

मांगतमांगत हो वरदानु, मुक्ति दाम निज होये निदानु||
हे सतगुरु साईमेंरे दाता, निज खोलो अब मेंरा खाता ||
कर्म बीज अब देव जलायी, ऊपर को दो सूरत चढ़ायी ||

प्रेमी सत्संगी जन, साधक और सधिकायें, बहनें-गुरु भाई और गुरु बहनें प्रार्थना करें बच्ची और बच्चे कि हे मालिक हमारे कर्म बीज को जला दीजिये | हमारे कर्मों को, इस गंदगी को,कलमल को साफ कर दीजिये और हे प्रभु, हे दाता दयाल, हे सतगुरु हमको निज धाम, निज मुक्ति मोक्ष के मार्ग पर ले चलिये | हमसे भक्त वत्सल काम बने, सत्य वत्सल काम बने, सत का काम बने, सच्चा काम बने, सच्ची अराधना-प्रार्थना हो | सच्चे मन से,मेंरे मन में कोई मिलौनी न हो, किसी के प्रति यह मन लालायित न हो, काम, क्रोध, मद, लोभ न आवे| हे मालिक हर प्रकार से दया कर दो, हर प्रकार से ये सचेत हो जाये कि ये पाप है, ये महा पुण्य है, ये ऐसा है, ये वैसा है, ये निष्कर्म है, ये सत्कर्म है, ये धर्म है, ये सत धर्म है | हे प्रभु, हे दयालु, हे कृपालु हम पर दया करो |

प्रथम धाम कर करीदयायी, सतगुरु दया मेंहर से विचारी ||

सतगुरु कि दया मेंहर से सूरत जीवात्मा पहले स्टेज कि तरफ, पहले धाम कि तरफ अग्रसर होती है | धीरे-धीरे उठती है गिरती है, चलती है, जाती है, आती है और प्रभु कि दया मेंहर से उन चीजों को देखती है | हे प्रभु, हे दयालु, हे कृपालु की वजह से सारा काम बनता है |

हे दयाल श्रुति मंगल स्वामी, तुम तो प्रभु मेंरे हो सतनामी ||

हे सतनामी, प्रभु, हे सतगुरु, हे सच्चे मालिक, हे सच्चे दाता दयाल, हे सत्य के स्वामी, हे पुरुष अनामी मेंरा सुमिरन ध्यान भजन बन जाय | हे प्रभु आप में हमारा मन लग जाय | हे प्रभु आपके प्रति हम हो जायें, एकाग्रचित्त रहें, आपके साथ-साथ चलें, आपके पास आवें-जावें | हे प्रभु हमारा काम हर प्रकार से बन जावे | हे दाता दयाल हम पर मेंहर हो, हम पर दया हो, हम पर कृपा हो | हे कृपालु हे दयालु, हे दाता दयाल हर प्रकार से दया मेंहर हो, हर प्रकार से कृपा हो, हर प्रकार से आपकी मेंहर बरसे | हे मालिक मुझसे जाने अंजाने जो भी गुनाह हुआ हो, उसको माफ कर दो | हे दयालु हमसे गुनाह न हो, हमारे मन को बदल दो, हमारी बुद्धि को बदल दो, हमारे चित्त को बदल दो और अपने चरणों में लगा लो |

चरणामृत का प्याला पिजै, दया मेंहर सतगुरु जी कीजै ||
हे सतगुरु जी मैं करूँ बन्दना, शोक संताप को अब हर दीजै ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भेद सतगुरु में अपने लगाओ सभी ||
नाम सतगुरु का सच्चा है गाओ सभी ||
मान और लोभ को ताक पर छोड़ दो ||
ध्यान और तुम भजन में जरा मन को दो ||
नाम भजना गुरु का सही काम है ||
समझो बन जायेगा तेरा हर काम है ||
हर हरी का भजन कल महा का भजन ||
काल सब सारी ध्वनियाँ भी बज जायेंगी ||
रंग रोगन से सब सेज सज जायेगी ||
भेद सच्चा गुरु का समझ आयेगी ||
सतगुरु ध्यान मन में लगाते चलो ||
ध्यान मन चित्त में अपने बसाते चलो ||
नाम सच्चा है इसको सम्हाले चलो ||
खुल गये सबके घट के हैं ताले सुनो ||
प्यार सतगुरु से सच्चा जताते चलो ||
नाम मन में भजन गुरु का गाते चलो ||

सतगुरु जयगुरुदेव

मनवा लागे गुरु चरणनमें, ऐसी करो यतनियाँ||
राग रागनि घट में बज जायें, सतगुरु ध्यान भजनियाँ||
सतगुरु मेंहरबिराजै सच्ची,लग जाये लगन लगनियाँ||
संत हमारे सच्चे साई,कर लो नाम भजनियाँ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो,भवपारण की कड़ियाँ||
दीन दयालासतगुरुकिरपाला, सच्ची बनाई हैं लड़ियाँ ||
शब्द भेद सतगुरु सतसंगी,सत की मिली गयीं लड़ियाँ ||
सत अनामी और सतनामी, चौंसठ होती घड़ियाँ ||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, क्यों नहीं पइयाँपड़ियाँ||
शीश झुकाओ सतगुरु चरणन में,मिली जायें सारी लड़ियाँ ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २३.१२.२०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : विेशेष सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजनिया सतगुरु जी का नाम||
नाम भजन सच्चे साईं का, अन्तर मन कल्याण ||
वेग अलौकिक होये अन्तर में, अनुभव का परमाण||
नाम सुहानदियो सतगुरु ने, भजो सभी सतनाम ||
चंचल चितवन रूप मनोहर, नाम भजन कल्याण ||
नाम नमनी हो साईं की,रघुवरसीताराम||
सतगुरु सूरत के सच्चे साथी, सच्चा है परमाण||
मन चित्त धरो गुरु चरणन में, हो पूरा कल्याण ||
रूप अलौकिक अद्भुत देखे,अन्तर्घटपरमाण||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला के बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, गुरु महाराज की असीम दया कृपा अनुकम्पा बराबर हम सब पर बनी हुयी है | पूरा गुरु महाराज के आदेशानुसार हम सबको जो भी नाम मिला है, वो सच्चा मिला है | आदेश यहीं है कि लग करके सुबह और शाम सुमिरन ध्यान भजना किया जाय | सुमिरन एक ऐसी चीज है कि जिससे सभी धनी प्रसन्न होते हैं, पांचों धनियों को खुश करना और रोज जो कूड़ा कचरा गंदगी हमारे ऊपर, तुम्हारे ऊपर आती है, उसको साफ सफाई करना | रोज रोज अपने अन्तर्घट में झाड़ू मारना, इसको कहते हैं सुमिरन | जिससे रोज की इकठ्ठा गंदगी खतम हो जाय और मन बुद्धि, सूरत जीवात्मा निर्मल पवित्र हो, इसके लिये सुमिरन किया जाता है | ध्यान का मतलब है कि समस्त धनियों के दर्शन करना, मन बुद्धि एकाग्रचित्त हो और लग करके जब साधना में बैठोगे तो जिसका नाम लोगे, उस धनी के स्वरूप का दर्शन होगा | भजन का मतलब ये है कि शब्द भेदी बाण शब्द उतरने लगेगा | शब्द से सूरत, जिस मण्डल का आप भजन कर रहें हैं, जिस मण्डल में आप ध्यान कर रहें हैं जिसधनी का आप ध्यान कर रहे हैं, उस धनी के देश में वो सूरत जीवात्मा प्रवेश करेगी | और सीधे सीधे आपके आँख खुलते हीं आपको स्वर्ग बैकुण्ठ,बहिष्यत,यमपूरी और बैकुण्ठपुरी ,शिवमुकाम ,आद्या महाशक्ति का देश, प्रभु राम का देश, सब कुछ देखने को मिलेगा | धीरे-धीरे आप जब आगे बढ़ते जाओगे तो ओंकार पुरुष, रारंकार पुरुष, सोहं सरकार और सतनाम पुरुष के दर्शन धीरे धीरे से होंगे | पर आपको लगन के साथ आगे को बढ़ना है |

प्रथम गुरु की कर लो सेवा, जिनने नाम बतायो||
सतगुरु अन्तर हैं परमात्मा, जिनने भेद लखायो||
प्रेमियों, जब आप सच्चे मालिक, अपने सतगुरु, अपने गुरु महाराज को देखोगे कि यहीं परमात्मा हैं, इन्हीं के अन्दर परमात्मा बिराजमान हैं, इन्हीं के साथ जाने पर परमात्मा के दर्शन होंगे, तब तो तुम्हें दर्शन होंगे | अगर आप बाबा समझोगे और कहोगे कि बाबा जी तो बाबा जी हैं, परमात्मा कहीं अलग मिलेगा, तो परमात्मा से बाबा जी मिले हुये हैं | पर बाबा जी के साथ जाओगे उँगली पकड़ करके, तो बाबा जी आपको परमात्मा के दर्शन करा देंगे | अगर आप समझोगे कि नहीं परमात्मा अकेले में मिलेगा, तो अकेले में तो मिलेगा, अन्तर में मिलेगा पर गुरु के संग | जब तुम गुरु के संग जाओगे तो तुम्हें परमात्मा जरूर प्राप्त होगा | और प्रथम गुरु चरणो की सेवा करोगे, गुरु की बन्दना अराधना करोगे, उसके बाद में अन्तर में तुमको गुरु के दर्शन होने लगेंगे | तत्पश्चात जब तुमको गुरु के दर्शन होने लगेंगे, उसके बाद में तुम्हें पहले धाम की झलक आयेगी | पहले देश की अद्भुत लीला दिखाई पड़ेगी और सुनाई पड़ेगा घण्टा शंख | आप बड़े मंत्रमुग्ध हो करके सुनोगे | धीरे-धीरे से उसमे भारी कोलाहल होगा और शंख और घण्टा बजेगा | शब्द सुनाई पड़ेगा, अलौकिक धुन आने लगेगी | तुम मंत्रमुग्ध हो जाओगे, स्वर्ग का भी बाजा सुनोगे,बैकुण्ठ का भी, शिवपुरी का भी, ब्रम्हपुरी का भी | धीरे-धीरे शिवपुरी को देखोगे, स्वर्ग को देखोगे, बैकुण्ठ को देखोगे तत्पश्चात आद्या महाशक्ति का देश देखोगे और उसके बाद में प्रभु राम का देश देखोगे | सर्वप्रथम गुरु के दर्शन बाद आपको प्रभु राम के दर्शन होंगे | उसके बाद में कोई चीज आपको दिखाई पड़ेगा | जो मालिक की दया होगी, वही आपको दर्शन हो जायेगा |

प्रथम सतगुरु कर सतसंगा, होये विवेक अनुराग की गंगा ||
सबसे पहले गुरु महाराज का सत्संग सुनो, उसको कथो गुनो, उसी में रत होवो, उसी में मन लगाओ, अपने बिकारों को छोड़ो, तब तुमको निर्मलता आएगी, पवित्रता आयेगी | फिर तुम आगे को चलते चलोगे | तुम्हें गुरु महाराज ने नामदान दिया और तुम सब ने नामदान लिया कि हमारा मुक्ति मोक्ष हो, हमें अनुभव प्राप्त हो, हमें दिखाई सुनाई पड़े | पर प्रेमियों, तुम्हें सोचना चाहिये कि इतने दिन हो गये हुमेनामदान लिये, न कुछ दिखाई पड़ता है, न कुछ सुनाई पड़ता है, फिर किस प्रकार का नाम है | अगर जो नाम भजते तो सुबह शाम जब समय देते हो, तो क्यों नहीं दिखाई पड़ता | इसको आपको सोंचना चाहिये कि हमारे अन्दर क्या कमी है कि हमें दिखाई सुनाई नहीं पड़ता, और दूसरे लोग कहते हैं कि हमारा भजन बनाता है | तो प्रेमियों, जो कुछ गलती हो, उस गलती को दूर करो, अपने रास्ते को सही करो और मालिक के रास्ते पर चलने लगो | तुम्हें भी अनुभव हो, तुम्हें भी दिखाई सुनाई पड़े, केवल दिखाई सुनाई की हीं सच्ची बात है कि तुम्हें गुरु के दर्शन हो, अन्तर में सभी धनियों के दर्शन हों, प्राप्त हों और तुम्हारा भी काम बन जाये | धीरे-धीरे से आप भी आगे को चलने लगो, तो आगे को तभी चलोगो जब तुम गुरु से प्रेम करोगे, अपने मालिक से लगन लगाओगे | और अगर लगन नहीं लगाओगे तो काम कैसे बनेगा | जैसे रूखे फीके थे वैसे रूखे फीके रह जाओगे | तो गुरु महाराज ने प्रथम देश और प्रथम प्रभु राम के दर्शन कराएंगे, उसके बाद ब्रम्ह्पुरी आपको ले जायेंगे |

ब्रम्हपुरी एक लाल मुकामा, फटक शीला सतगुरु का धामा||
ब्रम्हपुरी जो है वहाँ पर लाल मुकाम है, वहाँ दूसरे धाम का ये वर्णन है | वहाँ पर पहुँच करके सूरत जीवात्मा, जीतने भी सतसंगी प्रेमी गुरु भाई बहन सुमिरन ध्यान भजन करते हैं, जिनकी साधना बनती है वो दूसरे धाम पर जाते हैं | वहाँ गुरु महाराज रोज सत्संग सुनाते हैं, सत्संग को सुनते हैं, गुनते हैं, मन को लगाते हैं, प्रभु के दर्शन करते हैं और उस देश की अद्भुत लीला को देखते हैं, नदी नाले, पहाड़ झरने, बाग़ बगीचे, सरोवर स्नान करते हैं हैं त्रिवेणी में और गुरु महाराज को देखते हैं, अपने को भी देखते हैं | ये प्रतीत होता है कि जैसे हम आज होली खेल करके आए हैं | चूंकि वहाँ का रंग लालो लाल है, वहाँ लाल रंग के देश में जाते हैं तो खुद भी लाल हो जाते हैं | जिस तरह मिराबाई गयी तो कहा “लाली देखन मै गयी, तो मै भी हो गयी लाल” | तो गुरु महराज ने जो कुछ तुमको दिया है सच्चा धन, उस सच्चे धन के साथ मन बुद्धि चित्त लगा करके करते चले चलो, आगे को बढ़ते चलो | और गुरु में मन नहीं लगाओगे तो कोई काम बनने वाला नहीं | गुरु महाराज ने कहा था कि ऐसा गियर फसाऊंगा टूट जायेगा छूटेगा नहीं | तो गियर तो फस गया है, कारण तो बन गया है | गुरु महाराज ने जो लीला मौज खेली है, उस लीला मौज में सभी विस्मित हैं, जो कोई निशाना गुरु महाराज से रखता है, सीधे गुरु महाराज को देखता है कि गुरु महाराज हीं हमारे गुरु महाराज, और वहीं जो कुछ करेंगे, हम उनको जानते हैं | मन चित्त लगा करके सुमिरन ध्यान भजन करता है और गुरु महाराज को हाजिर नाजिर जीवित मानता है वहीं सच्चा शिष्य है | जीवित हाजिर नजीर मनाने की दो पद्धतियाँ हैं, जैसे हम आप जीवित हैं, हमारा घट है, घट में घाट है, घाट पर गुरु की बैठक तो हम तुम जिंदा हैं| तो गुरु महाराज जो हमारे अन्तर में बैठे हुये हैं वो जीवित हैं की नहीं हैं ? तो जब वो जीवित, तुम जीवित हो, तो तुम्हारे अन्दर बैठे गुरु महाराज हैं तो तुम कैसे कहते हो कि गुरु महाराज कहीं चले गये | तुम अपने घट के ताले को खोल करके गुरु महाराज के दर्शन करो और गुरु महाराज से पूछो कि हे मालिक क्या मौज है, क्या मेंहर है क्या दया है, क्या है आपका आदेश निर्देश, जैसे की प्रचार प्रसार करें, कैसे सुमिरन भजन ध्यान करें | हे प्रभु, कैसे हमारा काम बने, आप बताओ, हमें रास्ता दो, हमें भी आगे चलना आये, हम भी उठ करके खड़े हों, हमे भी आपका महा प्रसाद मिल जाये |

सतगुरु दया मेंहर से प्रेमियों, पारब्रह्म के दर्शन ||
गुरु महाराज की दया मेंहर हो गयी तो लाल मुकाम से मालिक ने उठा करके पार ब्रह्म पर भेजा, वहाँ मान सरोवर में स्नान करवाया और समस्त प्रेमियों को स्नान कराने के बाद जीवात्मा का कर्म कर्जा खत्म हो गया, सूरत जीवात्मा बलवती हो गयी, निर्मल पवित्र हो गयी | वहाँ के गगन में बड़े बड़े झूले पड़े हैं, उन झूलों में झूलती है, वहाँ के जो प्रेमी हैं हंस और हंसनिया, उनके साथ घूमती टहलती है | हंसो के साथ यारी करती है, हंसो के साथ किलकारी मारती है | वहाँ की क्यारी बाग़ बगीचे मणि माणिक्यों से जड़ित और पूरे प्रफुल्लित हैं, उनको देखती हुयी मंत्रमुग्ध होती है और वहाँ चन्द्रमुखी चंदा तारा है | उस चंदे तारे का दर्शन करती है, तत्पश्चात वो शैल शिखर, नील गिरि में प्रवेश करती है, उधर चढ़ाई करती है आगे को जाने के लिये, किंगरी सारंगी बाजा सुनती है और बड़ा हीं मंत्रमुग्ध होती है, बड़ा खुश होती है कि गुरु महाराज की विशेष दया कृपा रही, जो हमको इस देश तक भेजा और यहाँ तक लाये, हमारे कर्म कर्जे खत्म हुये, वहीं असली प्रभु राम का देश है, सच्चा सतगुरु का देश जहां पर कर्म कर्जा खत्म हुआ | अब सूरत जीवात्मा आगे को चलती है, शिष्य, प्रेमी, सतगुरु के जीव आगे को बढ़ते हैं गुरु महाराज की दया कृपा से| उनमें कोई बल नहीं होता, न कोई दया कृपा होती है, सारी दया कृपा सतगुरु की होती है | उसी की देन होती है, कब आपकी बुद्धि बदल जाय, इसके लिये कोई कुछ नहीं कह सकता पर गुरु कि दया रहेगी तो न आपकी बुद्धि पागल होगी, न आपकी बुद्धि बदलेगी | आप सदा सर्वदा एक रस रहेंगे | गुरु महाराज के वचनों का पालन करेंगे, आगे को आप बढ़ते रहेंगे, गुरु महाराज की सेवा में रत रहेंगे, गुरु महाराज में लगन लगायेंगे और गुरु महाराज का बताया हुआ नाम भेद आप जाप करेंगे | बताओ आप जाप करेंगे कि नहीं करेंगे ? मालिक ने जो समझाया है, बताया है | तो प्रेमियों, हम आप सबको यहीं बताने के लिए चाहते हैं कि जैसे मालिक ने कहा कि सुमिरन ध्यान भजन करो | तो आप सबका सुमिरन ध्यान भजन बन जाय| आप सबको भी दिखाई सुनाई पड़े सबकी तरह और आप को भी लगन लग जाय| मालिक के रोज रोज दर्शन हों, आप को अनुभव हो, आप को दिखाई सुनाई पड़े सच्चे मालिक के दर्शन हों, यहीं सच्ची सबसे बड़ी बात है | किसी से पूछना न पड़े कि मालिक का क्या आदेश है और जब तुम्हें दिखाई सुनाई पड़ेगा तो तुम्हें क्या किसी से पूछना मालिक के आदेश को |

लगन मन धारो सतगुरु नाम, अन्तर घट में अनुभव पाओ ||
मीरा बन तुम भी तो गाओ, भजो सतगुरु का सच्चा नाम ||
सतगुरु नाम मेंहर है सच्ची, सच्चा सतगुरु धाम ||
सतगुरु दया मेंहर जब आवे, खुल जाये घट के तार ||
दया मेंहर आवे मालिक की, होवे सूरत उस पार ||
सच्चे प्रीतम का घर मिल जावे, सच्चे द्वार मोहार||
मेंहर हुयी दाता साई की, पहुँच गयी उस पार ||

तो प्रेमियों, जब गुरु महाराज की विशेष दया कृपा हो गयी तो ये सूरत जीवात्मा इस देश से निकल करके उस देश की तरफ चली गयी और गुरु महाराज के वर्णन किये हुये नाना प्रकार के दृश्यों को देखती हुयी, अपने बिशेष धाम, अपने सतधाम की ओर अग्रसर रहती है | धीरे-धीरे ये बढ़ती चली जा रही है और बलवती होती चली जा रही है | मालिक की दया कृपा बरसती चली जा रही है और ये सूरत धीरे-धीरे आगे को बढ़ती चली जा रही है | मालिक की दया कृपा से उसने तीन धामों को देखा |

चौथा धाम है गगन मंझारी, महा सुन्न मैदान ||
महा सुन्न की रचना भारी, भँवर गुफा को मुकाम ||
सूरत जीवात्मा प्रेमियों, चौथे धाम के लिए चलती है | रास्ते में बहुत बड़ा मैदान मिलता है, उस मैदान में ये चलती चली जाती है और बड़ा हीं प्रसन्न होती है शब्द को पकड़ करके, गुरु महाराज के बताये हुये रास्ते पर उँगली को पकड़ करके |वो धीरे-धीरे उस देश में पहुँचती है और अद्भुत अनुपम और चमकदार, सारी चीजों को देख करके बड़ा प्रसन्न और खुश होती है | वहाँ का बाजा सुन करके बिलकुल मंत्रमुग्ध हो जाती है, एक रस-रस हो जाती है | इतना खुश होती है कि जिसको पूंछों मत, वहाँ महाकाल पुरुष के दर्शन करती है | दर्शन करने के बाद, वहाँ से फिर धीरे वो गुरु के चरणों में बैठ करके सतधाम की तरफ बढ़ती है | और अपने सतपुरुष के साथ सतधाम पहुँच जाती है |सतधाम की वर्णन और लीला को देख करके बहुत मंत्रमुग्ध होती है | यहाँ को आना नहीं चाहती | पर जब जीवात्मा का समय अभी पूरा नहीं हुआ तो मालिक उसको यहाँ मानव रूपी पोल में भेजते हैं | और कहते हैं की अपना समय पूरा करने के बाद, अपने धाम को चली आना, यहाँ अपने धाम में रहना | यहाँ तुम्हारा असली घर है, न जीवन है न मरण है | यहाँ हर चीजों से मुक्ति है | हमेशा स्वछन्द हो, हर प्रकार से गुरु की दया कृपा है और यहाँ पर तुम्हारा मकान है | ये तुमहारा सच्चा घर है | तुम अपने सच्चे घर, सच्चे प्रभु के घर पर रहो | यहाँ तुम्हारे महल अटारी बंगले, तुम उसमे अपना बिचरण करो और यहीं पर बैठ करके प्रभु का, हरी का, सतगुरु का भजन करो |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत अनामी, बिमल रंज रंजन के स्वामी ||
गुरु चरणन पर भाव जो पट से, तो सतगुरु के सत अनामी||
सत देश सच खण्ड के नामी, चरण बन्दना आरती स्वामी ||
श्रीचरणन में शीश झुकाऊँ, आरती सतगुरु तेरी गाऊँ ||
भाव बन्दनाकोटीअराधना, निर्मल मन जन जो तुम्हें पाऊँ ||
आरती सतगुरु तेरी गाऊँ,चरणन तेरे शीश झुकाऊँ ||
मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, कोटी कोटी तुमको परनामी||
सतगुरु सतगुरुसतगुरु नामी ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 11 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भेद निज नाम का सतगुरु, जयगुरुदेव प्रभु ने दीन्हा है ||
काल चकरी से हम सबको, बचा सतगुरु ने लिन्हा है ||
दया और मेंहर भारी है, सतगुरु ने उबारी है ||
भजन और ध्यान का रस्ता, गुरु की मेंहर से सस्ता ||
भेद एक एक बतायो है, ज्ञान सारे गिनायो है ||
नाम के भजन में लग जा, पार नइया तुम्हारी हो ||
गुरु साकार सच्चे हैं, परम समरथ मेंरे स्वामी ||
दया की दात मिलती है, सतगुरु जी मेंरे नामी ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 10 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भेद दियो और नाम लखायो, सच्चे सतगुरु ज्ञानी ||
नाम भेद के सतगुरु मालिक, सतगुरु कहत जबानी||
इस खिलकत को ढंग से देखो, रंग रोगन क्या पानी ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, नाहीं करो मनमानी ||
नाम नामनि होये सतगुरु की, सच्ची सुघर कहानी||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, समरथ संत जग जानी ||
सतगुरु जयगुरुदेव
भेद दियो है अलौकिक न्यारा ||
जिसमें भजन का शकल पसारा, बिनती करो एक वारा ||
कटी कटी जाये सभी मैलाइ, स्थिर हो घट द्वारा ||
घट में घाट घाट पर सतगुरु, दरश परश हो सारा ||
सतगुरु सतगुरु सतगुरु नामी, सत का भजन एक वारा ||
संत हमारे सच्चे मालिक, सतगुरु चरण निहारा ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 09 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भजन कर प्यारे, यहीं सच्चा भजन प्यारे ||
सार और मूल को देखो, चलो तुम अब गगन प्यारे ||
अन्त अन्तर का अन्तर में, पाठ सतगुरु पढ़ाया है ||
खेल सब घट के भीतर है, मार्ग सतगुरु बताया है ||
भजन और ध्यान हो सच्चा, यहीं सतगुरु ने फरमाया है ||
करो सब लग करके भजना, कटे मैलाई सुरतिया की ||
झुकाओ शीश सतगुरु को, बन्दना गुरु की न्यारी हो ||
प्रेम और भाव के बस में, रिझते सतगुरु प्यारे ||
गुरु से लौ लगाओ सब, काम बन जायेंगे सारे ||
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु ध्यान भजन मन लाओ, सतगुरु में मन को लगाओ ||
सच्चे ध्यान भजन को गाओ, सतगुरु में मन को लगाओ ||
अन्तर के घट में जाओ, कुछ ज्ञान गुरु का पाओ ||
मिले शब्द भेद का तोहें सारा, फिर संगत को बतलाओ ||
सच्ची खिलकत को देखो, सतगुरु का शकल पसारा ||
अन्तर में हो उजियारा, घट घट में यहीं पसारा ||
घट के घट के वासी सतगुरु, हैं शब्द भेद अविनासी||
सतगुरु में मन को लगाओ, सब नाम भेद को पाओ ||
सतगुरु नाम भजन मन गाओ, सतगुरु में मन को लगाओ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर के प्रांगण में बैठे समस्त प्रेमी जन, आप सब बड़े हीं भाग्यशाली हो कि गुरु की अनुकम्पा दया है, जो गुरु की वाणी छोटी मोटी, गुरु की प्रार्थनायें और गुरु का सत्संग सुनने को मिलता है | गुरु महाराज की असीम कृपा अनुकम्पा बरसती है, सबको अनुभव अनुभूति होती है, दिखाई सुनाई पड़ता है | जो लोग कहते हैं की हमारा सुनिरान ध्यान भजन गुरु के रहते नहीं बना तो अब क्या बनेगा | तो उन्होंने गुरु के रहते भजन किया हीं नहीं तो अब भी नहीं करेंगे | जब करेंगे नहीं तो बनेगा कहाँ से | तो प्रेमियों गुरु महाराज के रहते और ना रहते, जैसे तब सुमिरन भजन ध्यान बनता था, वैसे अब भी सुमिरन भजन ध्यान बन रहा है | वो करने वालों के लिए है जो करता है, और जो करता नहीं उसका क्या सुमिरन भजन ध्यान बनेगा | यहां तो ऐसे ऐसे प्रेमी हैं परेसान हैं कि हमको थोड़ी सी झलक मिल जाय, मालिक का थोड़ा सा दीदार हो जाय, थोड़ा सा दर्शन हो जाय, कुछ अन्तर में चूँचा बोल जाय, कुछ दिखाई सुनाई पड़ जाय| और लोग ये कहते हैं बस ये करो, वो करो, ऐसा करो वैसा करो | गुरु महाराज ने कहा है कि जब तक सुमिरन भजन ध्यान नहीं करोगे, आत्मबोध आत्मज्ञान नहीं होगा, अन्तर में दिखाई सुनाई नहीं पड़ेगा, फिर आपको मुक्ति मोक्ष किस प्रकार से मिलेगा | जब मैल की धुलाई नहीं होगी, आपकी सूरत जिवात्मा निर्मल पवित्र नहीं होगी तो आपको कैसे दिखाई सुनाई पड़ेगा | गुरु महाराज ने कहा बच्चू तुमने जीते जी ये मन्दिर बनवाया है मेंरा , मैं इसमें अखण्ड रूप से बिराजमान हूँ | यहां पर जो प्रेमी आयेगा, तीन बार सच्चे मन से ध्यान भजन करेगा, उसकी आँख खुल जायेगी | तो प्रेमियों कुछ न कुछ अनुभव, कोई भी प्रेमी आये उसको होता है, गुरु महाराज के आदेशानुसार| और बहुतों को तो बहुत कुछ दिखाई सुनाई पड़ता है | और जो कहते हैं सुमिरन भजन ध्यान होता हीं नहीं और बनेगा नहीं, तो करते नहीं तो बनेगा कहाँ से | अगर खेत में बीज डालोगे निकाई गुड़ाई सिंचाई करोगे, तो कुछ पैदा होगा | अगर बीज पड़ेगा हीं नहीं खेत में तो क्या जमेगा | तो प्रेमियों लगकरके सतगुरु का भजन करना जो बन पड़े, जो नाम दान मिला है, उस नाम दान की नाम जड़ी की रगड़ाई करना | जब जड़ी रगड़ी जायेगी तो चमक आयेगी | चाहे लकड़ी किसी भी प्रकार की हो, उसको रगड़ो तो चिकनी हो जाती है | वैसे जब अन्तरमें रगड़ाई होगी तो चमक आयेगी | दिखाई सुनाई सब कुछ पड़ेगा | सब कुछ पड़ रहा और पड़ेगा | आगे भी दिखाई सुनाई पड़ेगा और पड़ रहा अब भी है | तो प्रेमियों, लगाना है मन सतगुरु में और सतगुरु को हीं अपना गुरु मानना है | सतगुरु कोई दूसरे नहीं, स्वामी महाराज को हीं सतगुरु कहा जाता है | 'सतगुरु जयगुरुदेव', जयगुरुदेव अनामीमहाप्रभु का नाम है, सतगुरु अनामी महाप्रभु का नाम है, सतगुरु उन्हीं को कहा जाता है, अनामी महाप्रभु सतगुरु जयगुरुदेव| तो जिस गुरु ने नाम को बताया, जिस गुरु ने नाम को जगाया, जिस गुरु ने नाम को दिया, उसी गुरु को जानते और मानते हैं | किसी दूसरे को बीच में बैठा लेंगे, निशाने पर कर लेंगे, तो गुरु के बीच में अड़ंगा आ जायेगा | इसलिए सीधा निशाना गुरु महाराज से रखो | बात चित सबसे करो, जाओ आओ कहीं भी, कोई दिक्कत नहीं, पर निशाना सीधे गुरु महाराज से हीं रखना | चूंकि हमारा लोगों का उद्धार, जिन प्रेमियों को नामदान गुरु महाराज ने दिया है, उन प्रेमियों का उद्धार गुरु महाराज करेंगे, बेडा वहीं पार करेंगे, वहीं मजधार से नाव उतारेंगे और वहीं उस पार उस देश तक पहुंचायेंगे | कोई दूसरा माई का लाल पहुंचाने वाला नहीं है | तो प्रेमियों, अपने गुरु पर पूरा बिश्वास रखो, अन्तर बाहर से हर प्रकार दया कृपा मेंहर कर रहें हैं | हर प्रकार से दिखाई सुनाई पड़ रहा है | तो जब आप लग करके करोगो, तो आपका का भी सारा काम बन जायेगा, अनुभव अनुभूति होगी | मालिक ने कहा कि मानव पोल अमोलक है, उसमे जो स्वासों कि पूंजी दी गयी हैं, कुछ दिन के लिए है | ये सराय है डेरा है, इस सराय में रह करके अपना काम बना लो और धीरे से निकल चलो | तो प्रेमियों अपना काम बना लो, सतगुरु का भजन गा लो |

मन सतगुरु में लग जाये, कुछ ऐसे यतन बनाओ ||
रीझ जायें सच्चे स्वामी, कुछ ऐसे यतन बनाओ ||
प्रेमियों, ऐसा जतन करो, ऐसी क्रिया करो, जिससे गुरु महाराज खुश हो जाय| हसने लगें, मुस्कुराने लगें, दया मेंहर की बरसात करने लगें | और गुरु के सामने जब बच्चा रोता है, गिड़गिड़ाता है, दो बून्द आंसू के गिराता है, तो गुरु किरपाल हैं, दयाल हैं, दया के सागर हैं | उनसे बर्दाश्त नहीं होता, चट वो दया मेंहर कर देते हैं | तो प्रेमियों, तुम भी इस तरह कर लो | थोड़ा जैसे रोते हो दुनियादारी के लिये, तो थोड़ा अपने जीवात्मा के लिये उद्धार के लिये, अपने उद्धार के लिये, गुरु महाराज से थोड़ी प्रार्थना कर लो | रो लो गा लो, बिनती प्रार्थना कर लो |

मैं तो बिनती करूँ सतबार, गुरु जी तुम्हरेचरणन की ||
सतगुरु खोल दो बन्द केवाड़, लगन लागिदरशन की ||
टूटी फूटी नइया मेरी, गहरा जग संसार ||
चहुँदिश घूम घूम के हारे, मिलता नहीं पतवार ||
सतगुरु सम्हारो न मेंरी पतवार, अरज मेंरे तन मन की ||
मैं तो बिनती करूँ सतबार, गिुरुजी तुम्हरे चरणन की ||
हे सतगुरु सतलोक के वासी, सुन लो मेंरी पुकार ||
जनम जनम की प्यासी सूरत, आई तुम्हरे द्वार |||
सतगुरु कर दो दया की बरसात, प्यास बुझे जनमन की ||
मैं तो बिनती करूँ सतबार, गुरु जी तुम्हरे चरणन की ||
हे करुणा करुणा के सागर, विनय मेंरी सुन लीजे||
और कछु की इच्छा नाही, नाम रतन धन दीजे||
सतगुरु छूटे जगत जंजाल, लगन लागे सुमिरन की ||
मैं तो बिनती करूँ सतबार, गुरूजीतुम्हरेचरणन की ||

ऐ प्रेमियों सूरत जीवात्मा प्रेमी साधक साधिकायें, अपने सतगुरु से प्रार्थना और बिनती करती हैं कि हे मालिक ये गहरा जग संसार है इसमें हमारी नाव मजधार में फस जायेगी | आप हमारी नाव को निकाल कर पार कर दो और हे दाता दयाल, हे सतगुरु, हम पर ऐसी दया मेंहर करो कि ये जन्मों कि प्यासी सूरत है, जो अभागिन भटका खा रही थी, उसको डोरी से लगा करके, उस पर दया मेंहर कर दो कि पूरी प्यास जन्मों जन्मों कि बुझ जाय| हे प्रभु, हे सतगुरु, हे स्वामी महाराज हम पर ऐसी दया कृपा करो कि हमको नाम रतन धन चाहिये, नाम हीं मिल जाय, नाम का अलौकिक धन प्राप्त हो जाय, बाकी किसी चीज की जरुरत नहीं है | मुक्ति मोक्ष, निज घर, परम धाम की प्राप्ति हो | हे सतगुरु हे दाता दयाल, ऐसी दया मेंहर करो |

दया की नजर करो मेंरी ओर ||
कृपा की नजर करो मेंरी ओर ||
हे सतगुरु सतनामी मालिक, संत सनातन छोड़ ||
सरणा गत सतगुरु मैं तेरे, और ना जानू ठौर ||
दया की नजर करो मेंरी ओर ||
संत कृपालु दयालु सतगुरु, तुम बिन कहीं नहीं ठौर ||
दया की नजर करो मेंरी ओर ||
सतगुरु तुमको शीश झुकाऊं, श्री चरणन बलिहारी जाऊं ||
मेंहर करो एक ठौर, दया की नजर करो यहीं ओर ||
शब्द भेद के मालिक सतगुरु, शब्द भेद के मालिक ||
सत में सत का छोर, मेंहर की नजर करो मेंरी ओर ||
सतगुरु जयगुरुदेव

आरती सतगुरु दीन दयाला, हे दीन बन्धु सतगुरु किरपाल||
श्री चरणन में करूँ बन्दना, कोटि अराधना कोटि प्रार्थना ||
श्री चरणन में शीश झुकाऊं, आरती सतगुरु तेरी गाऊं ||
संत सनातन हे किरपाला, सतगुरु तुम हो दीन दयाला||
सहस्त्रअराधना कोटि प्रार्थना, सतगुरु नामी दीन दयाला||
दया सिन्धु सतगुरु किरपाला||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 08 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन सतगुरु जी का ध्यान ||
सच्चा नाम भजन अन्तर में, पहुँचावे सतधाम ||
निष्कंटक निर्विघ्न नाम है, सतगुरु जी का काम ||
सत नारायण सच्चे स्वामी, प्रभु रघुवर श्रीराम ||
ज्ञान ध्यान सब हो सतगुरू का, सच्चा हो कल्याण ||
नाम नामनी लगे सतगुरु के, ले जावे घाट के पार ||
ध्वनियाँ अजब अलौकिक बजती, अन्तरघट झंकार ||
निर्मोही जन इनको पाते, स्वारथ काल चबात ||
विनय भजन सतगुरु का साचा, सच्ची होवै बात ||
होयी चढ़ायी अगम देश में, निष्कंटक निष्काम ||
निशदिन के चर्या होवै, सतगुरु बिन ना राम ||
सतगुरु चरणन शीश झुका कर, विनय बन्दना शाम ||
सतगुरु जयगुरुदेव

अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, मालिक की असीम दया और अनुकम्पा से आप लोगो को अन्तर वाणी मालिक की सुनने को मिल रही है| जो कुछ अन्तर में मालिक बताते हैं, वही आपको बताया सुनाया जाता है | जैसे हीं कोई सत्संगी प्रेमी गुरु मालिक का तीन बार नाम लेता है, उसके बाद उसका तार सतगुरु से जुड़ जाता है | और जो अधर से अन्तर में गुरु की वाणी आती है, वहीं चीजे बाहर सुनाई जाती हैं | सच्चा तार संचार साधक की साधना सतगुरु के द्वारे और गुरु के अधारे होती है | सब लोग सच्चाई और कड़ाई से लग करके साधना करो | अच्छी उन्नति होगी, पूरा का पूरा अनुभव अनुभूति होगी, दिखाई भी पड़ेगा सुनाई भी पडेग़ा, पूरा ज्ञान होगा, गुरु मालिक की दया कृपा बरसेगी | दया सतगुरु की....

दया कर दान भगति का, हमें परमात्मा देना ||
निगुर इस गूढ़ रहश्य को, अन्तरभेद कर देना ||
दया और मेंहर की खातिर, तेरी चौखट पे आया हूँ ||
सुना है मुक्ति के दाता, दया कर दान देते हैं ||
बधिर मुख काल चाकरी से, बाहर निकाल लेते हैं ||
हे स्वामी मैं अंजाना हूँ, नाम का भेद दे दीजै ||
कृपा के शिन्धु मालिक हे, खोल घट घाट को दीजै ||
मेंहर होवै सतगुरु जी, नाम ध्वनियाँ भी बज जायें ||
आपके श्री चरणो की, दया की मेंहर हो जाये ||
नाम के भेद के दाता, यहीं बिनती हमारी है ||
ज्ञान और ध्यान सच्चा हो, यहीं आरजू हमारी है ||
दया के दान के दाता, सुनो बिनती हमारी है ||

सतगुरु जयगुरुदेव
उधर उस देश में जाना, जहां मालिक की बैठक हो ||
निरर्थक धाम वो होगा, जहाँ न गुरु के दर्शन हो ||
मान और लोभ को रखना, भजन से दूर होना है ||
सजन की बात जो माने, सत के देश चलना है ||
सुगम सुन्दर अनामी हैं, अलौकिक अपने नामी हैं ||
नयन में सतगुरु बसते, नहीं कोई खलकामी है ||
महा के राज महाराजा, महा काशी के दानी हैं ||
सुघर सुन्दर अलौकिक ये, परम सुन्दर कहानी है ||
सुरत और शब्द का मारग, सतगुरु की जबानी है ||

सतगुरु जयगुरुदेव
निर्मल कंचन होइहै सयानी, शैल शिखर की राह चलानी ||
धसी पार दुई मुख दरवाजा, किंगरी सरंगी बाजे बाजा ||
राग अलौकिक छत्तीस प्यारे, रागिनियों को कौन पुकारे ||
अद्भुत देखो चन्दा तारा, जिसका कोई ना वार पारा ||
अद्भुत देश सुगम है सुन्दर, मण माणिक्य का बाग़ पसारा ||
मान सरोवर फुलकित हर्षित, चपला चंचल बीच मंझारा ||
डाल डालियां सूरतें झूलें, सतगुरु देख बहुत हैं फूलें ||
चमचम चमके देश ये सारा, कर्म कटे सतगुरु एक वारा ||
कर्म बीज यह बतिया जलायी, ऊपर को अब सुरत चढ़ाई ||
मान सरोवर की गति न्यारी, अद्भुत बसती हैं जहाँ क्यारी ||
सतगुरु देख बहुत मन हर्षा, हंस रूप जहाँ सुरतै करसा ||
शब्द भेद अब हुयी सयानी, भवर कलि के बीच बिद्यमानी ||
भवर कलि के पार सुहानी, सतगुरु बैठे हैं लासानी ||
श्री चरणन में शीश झुकावत, चरण बन्दना गुरु की गावत ||
सतगुरु जयगुरुदेव मेंरे प्यारे, दया मेंहर मैं तेरे सहारे ||
पार कियो मेंरे हे दाता, सुन्दर उज्वल जगत बिधाता ||
हे सतगुरु मालिक रघुनाथा, मैं हूँ श्री चारणान केरे दासा ||
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु महाराज की अलौकिक अनुपम दया सुरत पर हुयी, तो सुरत को पारब्रम्ह देश का पूरा पसारा दिखाया, वहाँ का भेद बताया समझाया, तत्पश्चात भवर कलि चौथे धाम के लिए सुरत को गुरु महाराज ऊपर ले गये | चौथे धाम पर कुछ दिन रहने के बाद, गुरु महाराज ने पांचवे धाम पर सुरत को पंहुचा दिया | प्रार्थन बन्दना में पूरा संस्करण तीसरे से पांचवे धाम के बीच आप लोगों को सुनाया गया | और सत्संगी प्रेमी जब भी प्रार्थना आराधना करें आँख बंद करके और उन देशो की महिमा और गाना जब की जाय, बखान तो वो वहीं की बात कोसोचें और समझें और उसी देश को देखें | गुरु महाराज ने बताया है की जहाँ का सत्संग सुनाया जायेगा आपकी सुरत जीवात्मा उसी देश में सैर करेगी | तो जब आप मनन करोगे और गुरु वाणी को सुनोगे सच्चाई से और ध्यान दोगे कि किस देश का कहाँ का क्या सुनाया जा रहा है, वहाँ कैसा वातावरण है, किस तरह के वहाँ धनि बैठे हैं, कैसा पसारा है, किस तरह कि अद्भुत चीजें हैं, कैसा नजारा है,गुरु महाराजकिस तरह के बिद्यमान हैं | प्रकाशवान स्वरुप में बैठे हमारे सतगुरु कैसे सुन्दर और अद्भुत लग रहे हैं, कितनी दया मेंहर बरसा रहे हैं | इन सब चीजों को देखना सुनना हीं हमारा तुम्हारा काम है | गुरु महिमा का गुणगान कोई नहीं कर सकता | गुरु से बड़ा कोई होता नहीं, गुरु से बड़ा कोई दयावान नहीं, कृपावान नहीं, दयालु नहीं, कृपालु नहीं | गुरु सबसे बड़ा दयालु और कृपालु है, वहीं माता है, वहीं पिता है, वहीं सर्वज्ञ है, वहीं सबका दाता हैं | तो प्रेमियों सच्चाई से मन सतगुरु में लगाओ |

सतगुरु जयगुरुदेव

विमल रंज रंजन के स्वामी ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, आरती चरण बन्दना स्वामी ||
श्री चरनन में शीश झुकाऊं, आरती सतगुरु तेरी गाऊं ||
अलख अगम हे अनाम फकीरा, काटो सब भव पार की पीड़ा ||
श्री चरनन में आसन दीजै, बच्चे की यहीं जतरथ लीजै ||
सतगुरु आरती हो सतनामी, श्री चरनन में सहस्त्र नमामि ||
कोटि कोटि करूँ बन्दना, अरब खरब परनामी ||
श्री चरनन बिसरो नहीं, सतगुरु जयगुरुदेव ||
बार बार कर जोरि करै, सविनय करूँ पुकार ||
साध संग मोहिं देव नित, परम गुरु दातार ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 07 फ़रवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम भेद सतगुरु बतलायो, मानो सन्त की वाणी ||
गूढ़ रहश्य अन्तर में समझो, न बनो मूढ़ अनाड़ी ||
नाम भेद सतगुरु ने दीन्हा, लगन से करो भजन प्राणी ||
नाम नमनी है सतगुरु की,बोलत तेरी जबानी||
शैल शिखर अद्भुत है नजारा, सत की नगरियालासानी||
कूड़े कचरे की गगरी फेंको, शुद्ध सूरत हो जानी ||
नाम सहारे भजन करो सब,तब मेरी प्यास बुझनी ||
भाव झरोखे सतगुरु देखो,अमिट छाप बन जानी ||
अमृत मंगल बरसे अन्तर, छक छकपियो तुम प्राणी ||
लगन युगनकी प्यास बुझाओ,बोलतसन्तजबानी||
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, सत की मेंहर है पानी ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त नर नारी गुरु महाराज की असीम दया कृपा-अनुकम्पा आप सब पर है | आपको घना घोर अनुभव हो रहा है | आगे जो जो बाते मालिक ने कही हैं वो सब पूरी होंगी, मालिक प्रत्यक्ष प्रकट भी होंगे और सबको नाम भी देंगे, आगे चलने का रास्ता भी बतायेंगे | मालिक की हर बातें अकाट्य हैं, कोई भी बात काटने वाली नहीं | मालिक की वाणी सर्वपर्य है, सबसे ऊंची है | मालिक में मन लगाते, सुमिरन भजन गाते चलते रहो | और आगे का समय नाजुक है, इस नाजुक जीर्ण शीर्ण घड़ी में गुरु महाराज हीं मदद करेंगे, कोई दूसरा मदद करने वाला नहीं | इसलिये सब लोग लग करके सुमिरन ध्यान भजन करते चलो |

करो मन भजना सतगुरु नन्द लाल||
सत देश के सच्चे प्रीतम, यही हैं प्रभु राम ||
नाम भजन की लगन की लगा लो, बन जावेगा काम ||
नीर जो छलके तेरी गगरी से, उपवन महा सुहान||
क्यारी क्यारी दमक रही है, सच्चा है सत धाम ||
शब्द भेद के सतगुरु मालिक, जिन्होंने दियो है नाम ||
नाम दियो और भेद समझायो, पहुंचायेंगे निज धाम ||
प्रेम करो सच्चे सतगुरु से, बन जाये तेरो काम ||
डूबी तेरी कलमल में सुरतिया, शुद्ध पावन अभिराम ||
नाम सहारे भजन करोगे, मिलेंगे सतगुरु राम ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, बन जाये सब काम ||
सतगुरु चरणन शीश झुका लो, सच्चा पावन काम ||

सतगुरु जयगुरुदेव
तन मन गुरु को अर्पण कर के सब लोग सच्चे भावना के साथ सुमिरन भाजन ध्यान में लग जाओ| कोई कोताही मत करो, चुका चाकी हिला हवाली करने से समय दुखदायी में आपका काम बनने वाला नहीं है | आपका काम तभी बनेगा जब आप सच्चाई के साथ के, कड़ाई के साथ अपने गुरु का नाम जपते रहोगे | खाली स्वांसे निकल रही हैं तो सतगुरु सतगुरु बोलते रहो | अपने सतगुरु को याद करते रहो | सतगुरु को याद करते रहोगे तो सतगुरु तुमको भी याद करते रहेंगे |
याद करो नाम सतगुरु नाम ||

करो फरियाद अपने मालिक से, याद रहे हमें नाम ||
मन चित्त आपके चरणनलागे, हे समरथ गुरु राम ||
सतगुरु मेंरे प्यारे प्रीतम, बिन तेरे क्या काम ||
मधुवन उपवन चमके चमचम, जहाँ पर बैठे प्रभु राम ||
सतगुरु देश अलौकिक अनुपम, सुन्दर छटा निदान ||
भेद भाव का काम नहीं है, सब एक रस है जाम ||
सतगुरु नाम पुकारो बन्दौ, बन जाये सब काम ||
सन्त हमारे सच्चे नामी, शरणागत अभिराम ||
भाव झरोखे करो बन्दना, मिलेंगे सतगुरु राम ||
सतगुरु जयगुरुदेव

ऐ प्रेमियों, ये मानव पोल बड़ा हींअमोलक है | मालिक ने बड़ी हीं दया कृपा करके इस मानव पोल को दिया है |इसमे जो स्वांसो की पूंजी भरी हुयी है,वो आपको भजन करने के लिये दी गयी है | आपकी समझ में कुछ आता नहीं, आप कुछ समझते नहीं कि किसलिये हमे दे दिया गया है | तो आपको समझना चाहिये कि ये स्वांसों कि पूंजी हमें नाम भजन के लिये, प्रभु भजन के लिये मिला है | यह मनुष्य शरीर अमोलक है, अनमोल है बार बार नहीं मिलता | और सबसे बड़ी चीज यह है कि सन्त सतगुरु हर बार नहीं मिलते,सबको बार बार नहीं मिलते | जिसको सतगुरु मिल जाये, उसका सारा काम बन जायेगा,नरको-चौरासी का चक्कर छुट जायेगा और परम धाम कि प्राप्ति होगी | सतगुरु के मिलने पर, सतगुरु में मन लगाना और सतगुरु के भाव भजन को गाना, सतगुरु के साथ रहना, सतगुरु के संग चलना, उनके बतायेहुये मार्ग का मार्गदर्शन करना, प्रभु के वाणियों का अनुशरण करना हीं हमारा तुम्हारा कर्तब्य है | मानव पोल अमोलक है, ऐसा अमोलक तन बार बार नहीं मिलता |अबकी बार मिला है, तो इससे अपने घर चलने का काम करो | और इस मानव अमोलक पोल को सार्थक कर दो, स्वार्थ कर दो, सत्य कर दो | सद्भाव और गुरु की वाणी से, इसको भर दो | पूरा तुम्हारा मानव तन मालिक की वाणियों से भरा होना चाहिये | जब तुम्हारी वाणी निकले तब गुरु कि चर्चा गुरु की बात निकले |

गुरु में ध्यान लाओ सब,हमे तो पार जाना है ||
नाम भजना करेंगे हम, गुरु का नाम लाना है ||
प्रेम और भाव के बस हो, गुरु को हीं रिझाना है ||
बात सच्ची यहीं पक्की, इसी में मन लगना है ||
जो भटके हैं पथिक सारे, रास्ते पर उन्हें लाना है ||
गुरु की बात संगत में, सभी जन को बताना है ||
ध्यान सतगुरु में धरना है, नाम सतगुरु का गाना है ||
सतगुरु जयगुरुदेव

मिलन होयेसतगुरु मेंहरतुम्हार||
नाम नमनी तेरी सतगुरु,पहुंचावे सत धाम ||
सुन्दर और अलौकिक देखै, सच्चा देश तुम्हार||
सदा सर्वदा उसी में खेलै, गंगा बीच मझार||
नाम दियो और भेद लखायो, पहुंचाओ वोहीं पार ||
हे दाता समरथमेंरेसाईं, बिनती सुनो हमार||

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु दीन दयाला, दीन बन्द्धू सतगुरु किरपाला||
भाव झरोखे नामी आओ, सूरत हमारी को ले जाओ ||
यहीं दक्षिणा सतगुरु स्वामी, आरती जयगुरुदेवनमामि||
कोटीकोटी तुमको परानामी,मेंरे मालिक मेंरे स्वामी ||
सतगुरुजयगुरुदेवअनामी

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 जनवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय कर जोर प्रार्थना तेरी ||
हे सतगुरु दयाल मेंरे मालिक, चरण बन्दना फेरी ||
मन चित्त लग जाये श्रीचरणन में, नाहीं होवै देरी ||
सतगुरु मालिक मेंरे ठाकुर, नाम भजन की वेरी ||
खिलकत खिले तेरे अंगना की, नाहीं लागे देरी ||
चंचल चितवन अन्तर माहि, नाम भजन कीढेरी ||
हे सतगुरु दयाल मेंरे स्वामी, हर प्रकार मेंहररी ||
प्रीतम सतगुरु मालिक नामी, नाम भजन नहो देरी ||
सतगुरु जयगुरुदेव

चंचल चितवन अन्तर धुर को, नाम भजन गुरु नाम ||
मेंहर अलौकिक ऐसी बरसी, घट बीच राधेश्याम||
श्याम रंग जब रंगी सुरतिया, निर्मल कंचन जान||
भाग्य अलौकिक खेलै होली, चले हंसन की चाल ||
सत गुरु मूरति देख हर्षाये, कितने परम दयाल ||
रघुपति राघव पति अनामी, सतगुरु सीता राम ||
सत्य विनय की करी प्रार्थना, मन चित्त सतगुरु ठान ||
सतगुरु जयगुरुदेव
समस्त प्रेमी जन गुरु की महिमा का गुणगान करते हुये, अपने गुरु महाराज की चर्चा करते हुये, रोज रोज नित्य जब साधन भजन ध्यान में बैठे तो गुरु की बन्दना, गुरु की आराधना करते हुये गुरु का भजन करें | जब आप रोज गुरु की आराधना करोगे, गुरु मालिक हर प्रकार से दया कृपा करेंगे | पहला सुमिरन, दूसरा ध्यान, तीसरा भजन ये तीनो चीजें हैं, अन्त में जब शब्द रूप से दयाल की दया हो जाती है | सूरत जीवात्मा की आँख खुल जाती है | सुमिरन भजन ध्यान तीनो एक रस हो जाता है | हर प्रकार से दया मेंहर गुरु की बरसती है, सब कुछ एक रस दिखाई पड़ता है | समरथ संत दयाला, सतगुरु कृपाला की मेंहर जब जिस पर बरस जाये, समझो उसी दिन उसका सबेरा हो गया, उसी दिन नया जनम उसको मिल गया | हर प्रकार की कृपा गुरु शाहब करते हैं और अपने जीवों को उठाते हैं, सबका उद्धार करते हैं, सबका बेड़ा पार करते हैं, सब पर दया मेंहर करते हैं | तो सबको चाहिये गुरु नाम भजन करते हुये, गुरु की महिमा सुनते गाते हुये, गुरु में मन लगाते हुये सारे कार्य को करे | गुरु वाणी मालिक का अमृत भरा वचन है, गुरु की महिमा का गुणगान करना कोई छोटी मोटी बात नहीं, बहुत बड़ी बात है | गुरु का एक शब्द समझ में आ जाय तो सारा काम बन जाएगा | प्रेमियों, सब लोग मन चित्त लगते चलो और गुरु का गुण गान गाते चलो | गुरु क गुण गान गाते रहोगर तो सारा काम निष्कंटक निर्विघ्न हो जायेगा |

सतगुरु नाम भजन को गाओ, सतगुरु में मन को लगाओ || अन्तर्घट की है चाभी, गुरु दीन्ह दयाल निधि ने ||
सतगुरु जी में हीं मन को लगाओ, कुछ नाम भजन को गाओ ||
प्रेमियों, एक एक शब्द गुरु के याद करोगे गुरु के सत्संग को याद करोगे, गुरु के दर्शन पर्शन को याद करोगे, गुरु की वाणी को याद करोगे तो तुम्हारी याद ताजा रहेगी | हर समय मन प्रफुल्लित रहेगा कि हमने इन्हे गोहा में इस तरह देखा गुरु महाराज ने ये ये सुनाया | कानपूर में ये सुना, गुरु महाराज की इस तरह दया कृपा बरसी, कि मथुरा में इस तरह दया कृपा बरसी, बस्ती में इस तरह दया कृपा बरसी, इलाहबाद में इस तरह गये तो वहाँ पर गुरु महाराज ने इस तरह सुनाया | तो इस तरह तुम रोज रोज याद करगे तो तुम्हारी यादें ताजा होती चली जायेंगी | गुरु की वाणी ताज़ी होती चली जायेगी | हर प्रकार से आपमें दया मेंहर बरसती चली जायेगी | आपकी यादें ताजा हो जायेंगी, गुरु महाराज भी आपकी नज़रों के सामने तत्काल हाजिर हो जायेंगे | जैसे तुम याद करोगे गुरु महाराज उसी तरह तुमको दिखने लगेंगे | गुरु में मन लगाना हीं सबसे बड़ा काम है | गुरु में मन लग जाय, आपकी यादास्त ताजा होने लगे, आपको दिखाई सुनाई पड़ने लगे | सबसे बड़ी बात है नाम दान जो मिला है, गुरु महाराज ने हीं कहा कि जो नाम दान दिया है इसमें कुछ कमाई करना | तो प्रेमियों नाम दान तो मिल गया, अगर दिखाई सुनाई नहीं पड़ा, आँख नहीं खुली, अन्दर बाहर नहीं जाने आने लगे तो किस काम का, फिर मनुष्य शरीर मिलेगा, फिर जनमना फिर मरना, फिर सुमिरन भजन ध्यान और नाम दान, ये सब काम होगा | तो इससे अच्छा है इसी बार में गुरु महाराज से कृपा मिल जाय, प्रार्थन बिनती कर लिया जाय, गुरु कि मेंहर हो जाय और इसी बार में सब पास हो जाय, सब पार चले चलें, दुबारा नौबत न आये | तो इस तरह से गुरु में मन लगाते हुये, गुरु कि चर्चा करते हुये, गुरु महाराज को याद करते हुये, अपने धुरधाम, अपने देश की तरफ बढ़ाते हुये चलते चलते हैं |

सतगुरु संत अधीन हैं सारे, नाम भजन में चमके तारे ||

हम सब गुरु महाराज के सहारे हो करके, गुरु महाराज के द्वारे, गुरु के सहारे, गुरु के कृपा के साथ साथ जब अंतर में सुमिरन ध्यान भजन करेंगे, गुरु की महिमा को याद करेंगे तो गुरु महाराज की अपार अप्रबल दया कृपा बरसेगी | हर प्रकार से दया कृपा बरसेगी, पूरी की पूरी मेंहर आयेगी और उस मेंहर के साथ अपने घर की तरफ, धुर की तरफ बढ़ने लगेंगे |

प्रथम अलौकिक अदभुत दर्शन, सतगुरु जी का जान ||
सतपथ सत प्रभु जी मिलेंगे, हो पूरा सम्मान ||

सबसे पहले गुरु महाराज के दर्शन पर्शन होंगे, रोज रोज गुरु महाराज के दर्शन होने लगेंगे | गुरु महाराज से आप मिलने लगोगे | गुरु की चर्चा करने लगोगे | गुरु की दया बरसाने लगेगी | तत्पश्चात आपको उस प्रभु मालिक के दर्शन होंगे | गुरु की दया से गुरु महाराज हीं ले जाएंगे दर्शन करवायेंगे | हर प्रकार से दया मेंहर करेंगे और आपका दर्शन पर्शन वहाँ पर प्रभु से होने लगेगा | जब प्रभु के दर्शन होने लगेंगे तो आप रोज स्वर्ग बैकुण्ठ और ऊपरी मण्डलों में आप जाने आने लगेंगे | गुरु की महिमा बरसने लगेगी | गुरु की कृपा आने लगेगी | गुरु कृपा से हीं सारा काम बनता है | गुरु की मौज में हीं हम सब रहते हैं, आते और जाते हैं, रोज नित प्रति जब गुरु के अधारे हैं, गुरु के द्वारे हैं तो गुरु महाराज हीं दया कृपा करेंगे | गुरु महाराज की दया कृपा से हीं हमको सबको आगे बढ़ने को मिलेगा | गुरु की दया से हम आगे चलेंगे | बिना दया कृपा के गुरु के एक पत्ता भी हिलता नहीं है | अगर हम चाहें कि ये हो जाय वो जाय, नहीं होगा | गुरु महाराज चाहेंगे तत्छण होगा और उनकी दया मेंहर से सब कुछ छूट जायेगा | जो चाहोगे कि ये छूट जाय तो वो छूट जायेगा, पर इच्छा शक्ति होनी चाहिए | अगर तुममे विकार है तो अपने गुनाहों की माफ़ी माँगते रहो कि हे मालिक, मुझसे ऐसा नहीं हो रहा, मुझ पे दया कृपा कर दो | आप दयाल हो, हम तो पापी जीव हैं, हम पर दया करो |हे मालिक, हे मेंरे खुदा, हे मेंरे दाता, हे मेंरे सतगुरु हर प्रकार से दया कृपा करो, हर दम दया कृपा करो |

दया निधि सतगुरु दीना नाथ ||
दया मेंहर सतगुरु जी की, निधि हम सबके साथ ||
नाम बताओ भेद बतायो, रख्यो शिर पर हाथ ||
निरमल निरमल भई सुरतिया, चले गुरु के साथ ||
सतगुरु आगे सूरत है पीछे, मंगल देश को जात ||
प्रभु प्रार्थना गाती जाती, रोज होत प्रभात ||
सतगुरु दया बिराजै सब पर, सब पर रक्खै हाथ ||
सतगुरु मालिक परम दयाल, हैं कृपाल रघुनाथ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु महाराज की असीम अनुकम्पा और दया कृपा चौबीसो घण्टे हर प्राणी के ऊपर बरसती है, जो गुरु महाराज को याद करते हैं | उनके शरणागत रहते हैं | उनका चितवन करते हैं, उनका नाम भजन गाते हैं | इन सब चीजों से गुरु महाराज प्रशन्न होते हैं, दया मेंहर करते हैं और उस प्राणी को दर्शन देते हैं | बहुत से प्राणी ऐसे हैं, बहुत से ऐसे जीव हैं, बहुत से गुरु भाई बहन हैं, जिनको नित प्रति गुरु महाराज के दर्शन पर्शन होते रहते हैं | बताते रहते हैं कि आज गुरु महाराज ने ये कहा, कल गुरु महाराज ने ये कहा, परसों गुरु महाराज ने वो कहा | सब कुछ सूचनायें मिलती रहती हैं गुरु महाराज की और गुरु महाराज की दया कृपा बरसती रहती है | सच्ची बात तो ये है हम सब का मन कायदे से नहीं लगता |अगर मन गुरु में लग जय, गुरु शरणागत हो जाय, तो हमारा काम मिनटों में बन जाय | ज्यादा देर की बात नहीं है, मिनटों में काम बनता है |जैसे, एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध | गोस्वामी संगत साध की, कटे कोटि अपराध | तो प्रेमियों, हमारे अपराध, हमारी गलतियों को क्षमा करने के लिये, हमारे गुनाहों को माफ़ करने के लिये, हमारे दाता दयाल सतगुरु प्रकट हुये | आज भी हैं, हर प्रकार से दया मेंहर कर रहे हैं |हमको तुमको चाहिये कि इन्हीं के शरणागत रहें और इनके साथ चलें | इनकी बताई हुयी, गुरु की बताई हुयी वाणी को याद करते रहें | हर भाईयों को कुछ न कुछ बताते चेताते चलें और खुद भी चेतते चलें | कहीं गिरने की जरुरत नहीं, गुरु ने जो रास्ता दिया है उसी रास्ते पर चलने की जरुरत है | हर प्रकार से गुरु निधि को लेने की जरुरत है |

नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह ||
नाम निधि सच्ची है पावन, ध्यान भजन मन लीन ||
चंचल चंचल तेरो स्वभाव, उसको मृदुवल चिन्ह ||
मृदु भाषा उपजी सतगुरु से, नाम भजन मन कीन्ह ||
दया कीन्ह सतगुरु साईं ने, मन चित्त सब हर लीन्ह ||
दिव्य अलौकिक देश दिखायो, सतगुरु मेंहर है कीन्ह ||

सतगुरु की मेंहर से दिव्य अलौकिक सब कुछ दिखाई सुनाई पड़ने लगा, स्वर्ग बैकुण्ठ बहिष्यत और जो भी मण्डल हैं ऊपर के, सब दिखाई सुनाई पड़ने लगे | मालिक की दया कृपा बरसने लगी और ये सूरत जीवात्मा आने जाने लगी | गुरु कि कृपा होने लगी, गुरु की मेंहर होने लगी | जब गुरु की मेंहर होने लगी, गुरु आदेश हुआ कि तुम सबको बताओ कि हमे अनुभव होता है, गुरु महराज इस तरह इस तरह दर्शन देते हैं | जब हम खोल करके बतायेंगे, तभी हमारे गुरु महाराज समरथ होंगे कि उनकी दया मेंहर से हमे इस तरह दिखायो पड़ता है सत्संगी प्रेमियों को चेतना के लिये | जिस तरह सुनाई पड़ता है गुरु की दया बरस रही है, तब तुम्हारे गुरु की समरथता सच्ची होती है | वरना कहेंगे, गुरु महाराज असमरथ थे| तो समरथता के लिये हीं अनुभव कराते हैं और अनुभव की दया मेंहर बताने के लिये हीं गुरु महाराज ने बताया कि तुम्हे अनुभव जो हो वो बताओ खोल करके, उससे तुम्हारा बढ़ेगा, घटेगा नहीं | तो अनुभव यहाँ पर आने पर, सुमिरन भजन ध्यान करने पर, सबको लगभग होता है |जिसका मन ख़राब होता है, जो नहीं चाहता कि हमे भी अनुभव हो तो उसके लिये क्या कहा जाय | और जिसके मन सही होते हैं कि हमे अनुभव करना है, गुरु के सामने रोता है गिड़गिड़ाता है, दो बून्द आंसू के गिरता है, उस पर गुरु महाराज की दया कृपा हो जाती है |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु नामी, की सतगुरु सतनामी की ||
बन्दना सतगुरु नामी की, गुरु मालिक और अनामी की ||
नाम धुन सतगुरु मालिक की, सत्त के दाता स्वामी की ||
सत्त के सतगुरु हैं मालिक, सत्त प्रभात सतगुरु की ||
सतगुरु के संग है जाना, सतगुरु की आरती गाना |
सतगुरू चरणन शीश झुकना, चरण बन्दना सतगुरु की गाना ||
आरती सतगुरु सत्त अनामी की, प्रभु सतगुरु सतनामी ||
सत्त के दाता नामी की, अनामी सतगुरु नामी की ||
मेंहर सतगुरु सतनामी की, आरती सतगुरु नामी की ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13 जनवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु नाम आधारे रहो प्रेमियों ||
दया मेंहर पावन सतगुरु की,मेंहर जो बरसे आम ||
आठोयाम ये पावे सुखवा, सुरतिस्त्रोत गुरु धाम ||
सतगुरु जी में लग जाये नेहियाँ, सतगुरु हीं प्रभु राम ||
सतगुरु जी की महिमा न्यारि, सूरत चढ़त है अखण्ड अटारी ||
सतगुरु की देखै लीला भरी,अजब है जहाँ बहार||
सतगुरु प्रीतम बैठे मालिक,अखण्ड देश के मंजार||
सतगुरु चरणनकरीबन्दना,हो गयो घट उजियार||

सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु नाम पुकारो सभी भईया, सतगुरु है अपने नईया के खेवईया||
नाम बतायो भेद समझायो, हर दुःख सुख में होंवे सहईया||
सतगुरु प्रीतम प्यारे हैं भईया||
लगन लगाकर करो सब भजनियाँ,कटी कटीजावें मैलईया||
सतगुरु नाम भजन को करो भईया||

सतगुरु जयगुरुदेव

अखण्ड अनाम बृहदसतनामा, सच्चा सतगुरु का प्रभु धामा||

अखण्ड अनामी सतगुरु, जो महा प्रभु अपने मानव पोल पर बिराजमान हो करके जिन्होने सत्यनारायण, सत्य के नारायण जन पातक हरणा| जन के कल्याण करने के लिये नर रूप रख करके स्वामी महाराज पधारे | अखण्ड अनामी, सतगुरु सतनामी, आदर्श पुरुष कि उन्होनेसतपथ चलाया, सत मार्ग का काम किया,अध्यात्मवाद जगाया, वो अपने गुरु महाराज, सतगुरु को कोटि कोटि नमन करते हैं | चरण बन्दना और अपने गुरु पर बलिहारी जाते हैं कि हे अनाम पुरुष, हे सतनाम प्रभु, हे अलख अगम अनाम प्रभु, आपने बहुत बड़ी दया मेंहर की जो हमको नाम दिया और नाम के सहारे हमको लगा दिया |

लगो निज चरण सतगुरु के, पार उस घाट पर जाना ||
जहाँ चन्दा न चुटकी है, लगेगा नाम का खजाना ||
सच्चे सतगुरु मालिक प्रीतम, वहीं उस पार ले जायेंगे ||
मेंहर सच्ची गुरु की हो, दया की धार आयेंगी ||

सच्चे सतगुरु, सच्चे मालिक की दया की धार चौबीसो घण्टे बरसती रहती है | हम सब प्राणियों पर, हम सब प्रेमियों पर मालिक की अखण्ड दया कृपा रहती है | मालिक हर प्रकार से दया कृपा करते हैं, अपने बच्चो की देखभाल हर तरह से करते हैं | जिस तरह कुम्हार बर्तन बनाता है और बरतन बनाते समय ऊपर से ठुकाई करता है,निचे से हाथ लगायेरहता है | उसी तरह गुरु महाराज दया मेंहर कल मल साफ करते हुये सूरत जीवात्मा में जान डालते हैं, हर प्रकार से उसको पकाते हैं और सुसज्जित करते हैं अपने देश चलने के लिये| बताते हैं कि तेरा देश, उस देश की तरफ है, सच्चा देश सच खण्ड है | अपने निज धाम चलने की तैयारी कर | लग करके सुमिरन भजन ध्यान में मन लगा करके पूरा भजन करके, अपने कर्म कर्जों को छुट्टी सारा करके, अपने देश को चले चलो | यहाँ का जो लेन देन का कर्जा है उसको निपटाते हुये, अपने देश की तरफ अग्रसर हो | अग्रसर होते हुये अपने निजधाम की तरफ पधारो |निजधाम की तरफ जब चलोगे तो कोई मिलौनी नहीं, कोई दुःख तकलीफ नहीं, कोई हारी बीमारी नहीं, कोई तड़प परेशानी नहीं | वहाँ हर प्रकार से शुखहींशुख है, किसी प्रकार का कोई दुःख नहीं | ऐसा गुरु महाराज बताते हैं और सबका मन अपनी तरफ एकाग्रचित्त करते हुये समझाते हैं कि मन सतगुरु में लगाना और किसी चीज नहीं देखना | सतगुरु को देखोगे, सतगुरु को प्रभु रूप, सतगुरु को गुरु रूप, सतगुरु को बाबा रूप, सतगुरु को जिस रूप में देखोगे तुम्हें उसी रूप में प्राप्ति होगी | अगर सतगुरु को हीं सब कुछ मानोगे प्रभु, भगवान, खुदा, मालिक, ईश्वर, प्रभु तो तुम्हें ईश्वर,प्रभु, मालिक, खुदा, राम, कृष्ण मिल जायेंगे |अगर तुम बाबा को बाबा समझते हो तो बाबा तो बाबा हीं तुमको बाबा हीं समझ आएगा | तो समझने की जरुरत है, लग करके सुमिरन भजन ध्यान करने की ज़रुरत है, गुरु की वाणियों को याद करने की जरुरत है | अपने गुरु पर बलिहारी जाने की जरुरत है कि धन्य हैं दाता दयाल जिन्होंने सच्चा नाम दिया और हर प्रकार से भेद बताया, अपने घर चलने का रास्ता समझाया | तो जब रास्ता समझा दिया, बता दिया तो उस रास्ते पर चलने का हमारा तुम्हारा परम कर्तब्य बनता है कि नाम लिया है तो अपने घर की तरफ चलें |

चलो धुर धाम को भाई, बुलावा आया सतगुरु का ||
भजो अपने नयन नक्श पर, सूरत के साज को देखो ||
पकड़ कर गगन के शब्दा, उधर धुर धाम को देखो ||
महा महिम बैठे हैं सतगुरु, दरशपरष निज धाम को देखो ||
सच्चे मालिक अपने दाता, दाता के धाम को देखो ||


सतगुरु जयगुरुदेव
मिलन करे मनवा सतगुरु नाम ||
साचा नाम बतायो सतगुरु ने, सच्चा है हर काम ||
ध्यान भजन अन्तर की पूंजी, शब्द है अन्तर जान ||
घण्टा शंख बजे गगन मंझारी, किंगरी सारंगी करे किलकलरी||
बंसी बीन की तान ||
चढ़ी सुरतिया सत्त देश में, सच्चा हो गयो ज्ञान ||
पुरे सतगुरु मालिक पायो, हरषानी पद मान ||
सतगुरुचरणनकरीबन्दना, सच्चा सतगुरु जान ||

सूरत जीवात्मा, साधक और साधिकाएँ, प्रेमी सत्संगी गुरु भाई बहन, जिन जिन को गुरु महाराज की दास प्राप्त हो गयी और उन्होंने सुमिरन भजन ध्यान को अपना रास्ता चुन लिया, उसी में मन लगाया | गुरु महाराज ने दया मेंहर की और उनको रास्ता देते गये और नित्य प्रति उनकी चढ़ाई होती चली गयी | धीरे-धीरे वो सत्त धाम को पहुँच गये और अपने सतगुरु को पूरा पाया और सब खोल करके गाना शुरु किया कि हमारा गुरु समरथ है | जिस तरह मीराबाईने गया "पायो जी पायो मैंने नाम रतन धन पायों" | और उस धन के बारे में कहा, कोई न लूटता है और न कोई घटा सकता है | दिन प्रतिदिन ये दूना सवाया होता चला जाता है, घटता नहीं है | हमारे गुरु की देन है, हमारे गुरु की दया कृपा है | गुरु महाराज ने जो कुछ दिया है दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जाता है, घटता नहीं है | तो ऐ प्रेमियों, जो गुरु महाराज ने हमको तुमको दिया है, वो नाम भजन करने पर घटता नहीं है, बढ़ता हीं जाता है | सब लोग दिन प्रतिदिन मन लगा करके, अपने नाम भजन को बढ़ाते रहो, गुरु की कृपा पाते रहो, गुरु महाराज दयाल हैं |हर प्रकार से कृपाल हैं, सबको दर्शन देते हैं | सब लोग दर्शन-पर्शन करते रहो अन्तर्घट में और गुरु की महिमा का गुणगान करते हुये, सुमिरन भजन ध्यान करते हुये, निज घाट में अपने धाम की तरफ बढ़ते रहो | जब तक ये स्वासों की पूंजी है, तब तक इस देश में रहते हुये, सांसारिक काम काज निपटाते हुये और गुरु के साथ रहते हुये, सुमिरन भजन ध्यान करते हुये, अपने निज घर की तरफ को हमेशा उन्मुख रहो कि हमे अपने घर जाना है, ये घर बेगाना है | यहां कोई नहीं, वहाँ अपना सच्चा प्रभु, अपना सच्चा मालिक,अपना सच्चा सतगुरु बैठा है | वहीं हमारा घर है, वहीं हमारा मालिक है, वहीं हमारा सतगुरु है | वहीं हमारे दाता दयाल हम पर दया करेंगे और हमे अपने घर ले जायेंगे, पार करवायेंगे, दया मेंहर करेंगे |

दया मेंहर सतगुरु जी की सच्ची, सच्चा बिन्दु अधार||
भज भजवचना मृत के प्याले, नाम लेत उस पार ||
सच्चे सतगुरु मिलै ठिकाना, पहुँच जाओ उस पार ||

सतगुरु जयगुरुदेव

कहने का मतलब हर तरफ से एक हीं बात आती है कि भजन करना हीं है, चाहे इधर से करो, चाहे उधर से करो | गुरु महाराज का नाम लेना है, उस प्रभु का नाम लेना है, सत्य का नाम लेना है, सत्यता को अपनाना है, सत्यता के साथ हीं रहना है, सत्यता के साथ चलना है, सत्यता में हमेमिलना है | ये सराय है, यहाँ सराय में दो दिन का बसेरा है | दो दिन के बसेरे के अन्दर, यहाँ का काम और अपने घर जाने का काम दो दिन में कर लेना है | जैसे गुरु महाराज ने कहानी सुनायी कि एक राज था | उस राज में बादशाह कोई भी मिल जाये नदी के किनारे, उसको पकड़ के लाते थे और उसको बादशाह बना देते थे | जब राजा बुढ्ढा हो जाता था तो, नदी के उस पार छोड़ देते थे | नदी के उस पार घनाघोर जंगल, वहाँ पर जानवर हिंसक रहते थे | उसको मार डालते थे, खा जाते थे | तो धीरे से एक दिन समय आया | राजा बुढ्ढा हो गया तो उस पार नदी के छोड़ दिया | तो दूसरे दिन खोज हुयी कि जो कोई सुबह सुबह मिल जाये उसको पकड़ के लाओ, उसको राजा बनाया जायेगा | तो एक बन्दा नदी के किनारे मिला तो उसको पकड़ करके ले गये | कहा भाई, हमको कहाँ ले जा रहे हो, कहा तुमको राजा बनायेंगे हमारे देश का ये नियम है | तो कहा तुम्हारा पुराना राजा कहाँ गया, कहा भाई वोबुढ्ढा हो गया, नदी के उस पार जंगल में छोड़ दिया गया | तो कहा, जंगल में क्या करेगा | कहा, हिंसक जानवर उसको खा जायेंगे और क्या करेगा | जब राजा वहाँ बन गया तो उसने क्या किया | राज राजाओं से फ़ौज फाटा भेज करके, लेबर, नौकर चाकर भेज करके जंगल के उस पार गया | कहा, इस जंगल को काटो | उसने जंगल को कटवाया और वहाँ बस्ती बसा दी | और वहाँ पर बड़ा राज महल बनवा लिया | जब उसका समय पूरा हुआ तो उसे भी छोड़ने नदी के उस पार गये, तो उसका तो सब कुछ बना था | तो अपने घर में वो चला गया और मौज से रहने लगा | इधर अपना दूसरा राजा बन गया | तो प्रेमियों, अगर तुम्हारा यहाँ शरीर छूटता है और शरीर छूटने के बाद तुम कहाँ जाओगे, किस देश में जाओगे, कहाँ तुम्हार घर है कि कहाँ के रहने वाले हो | इन चीज को तुम सोचोगे नहीं, समझोगे नहीं तो तुम्हार काम कैसे बनेगा | जब ये सूरत जीवात्मा निकलेगी तो कहाँ जायेगी, किसको किस चीज की जरूरत है | तो सबसे बड़ी चीज है भजन की जरुरत है | इसका घर है, इसका स्वरुप है, इसका रूप है | तो ये रूप स्वरुप और जिस स्वरुप में सूरत जीवात्मा निकलेगी, तो अपने घर सत्तधाम, सत्तधाम जायेगी | सत्तधाम तभी जायेगी जब सतगुरु से नाम मिलेगा | भजन करोगे गुरु की दया कृपा होगी, गुरु महाराज तुमको पार करेंगे तुम अपने घर जाओगे| यहाँ रहोगे, करते-करते काम शरीर बूढ़ा हो जायेगा फिर धीरे-धीरे मोह माया में फसते चले जाओगे और एक दिन ऐसा आयेगा कि शरीर छूट जायेगा, यमराज पकड़ करके ले जायेंगे | वहाँ फैसला करेंगे, फैसला सुनायेंगे, जो तुम्हारे भाग्य में, जो तुमने किया होगा, उसी के अनुसार, या तो पाप किया या पुण्य किया | पाप किया है तो नरकों में चौरासी में, पुण्य किया है तो स्वर्ग बैकुण्ठ में भोग करो, उसके बाद मृत्यु लोक में जनम लो | फिर मरो जनमो और मरो | जनम मरण से छुटकारा सिर्फ समरथसन्त सतगुरु, दाता दयाल अपने सतगुरु स्वामी जयगुरुदेव दिलाते हैं | ऐसे तमाम सन्त आये, जिन्होंने जनम-मरण से छुटकारा दिलाया | आगे भी सन्तों का सिलसिला आने का बन्द नहीं होगा | गुरु महाराज आ करके बैठे हुये हैं, जिस दिन उनकी मौज हो गयीवो प्रकट होंगे | हम सब उनके साथ होंगे और गुरु महाराज हमसब पर दया करेंगे, हम सब का उद्धार करेंगे |
सतगुरु जयगुरुदेव

मंगल पावन सतगुरु नामी, चरण बन्दना आरती स्वामी ||
हे सतगुरु सतनाम अनामी, कोटि कोटि तुमको परनामी||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ, आरती बन्दना सतगुरु गाऊँ ||
दया मेंहर मैं आपकी पाऊँ, आपके चरणन घुल मिल जाऊँ ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊँ ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 12 जनवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भेद तो सतगुरु जी ने दीन्ह||
सच्चे साईंसमरथ दाता, रघुपति सतगुरु जिन्ह||
दया मेंहर बरसी है उनकी, नाम रतन धन दीन्ह||
एक एक वेद खोल समझायो, शब्द में बाजे बीन ||
शब्द की लड़ियाँ शब्द की झाड़ियाँ, शब्द शिखर लेव चिन्ह ||
सतगुरु जी के नाम भजन में, तुम सब होवो लीन ||
नाम भरोसे रहियो सतगुरु के, बन करके सब दीन ||
नाम भजन के अमृत मोती, बरसे बदरियाझीन||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारूँ, सतगुरु में हो तल्लीन ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मनन मन सतगुरु नाम भजनिया||
नाम भजनियाअन्तर्घट की, अन्तर चमके चदनियाँ||
लगन मगन हो नाम पुकारो, सतगुरु नाम भजनिया||
समरथसन्त की बात को जोहो, अन्तर चमके चदनियाँ||
सच्चे मालिक सतगुरु जी से, मिला है नाम भजनिया||
नाम अधारे गुरु के प्यारे, चमके जहाँ पेचदनियाँ||
सतगुरु जी से नेह लगाओ, बन जाये नाम भजनिया||

सतगुरु जयगुरुदेव

उधर का रास्ता देखो, देश सच्चा वो पवन है ||
गगन के बीच एक तारा, घाट कितना लुभावन है ||

गुरु महाराज के कहने के अनुसार, उस तरफ देखो, अपने घर की तरफ, धुर की तरफ देखो | उस तरफ को चलना सुरु करो, अपना घर बड़ा हीं पावन है, अपना देश बड़ा हींलुभावन है, मन मोहक है, अति दया कृपा वहाँ बरसती है | आठोयाम वहाँ से सूरतें अठखेलियां करती रहती हैं | हर प्रकार की दया मेंहर सतगुरु की बरसती रहती है | ऐसे सच्चे धाम को चलने के लिये तैयारी करो | उधर उस धाम में सब कुछ है, कोई चीज की कमी नहीं, हर प्रकार से सुसज्जित तुम्हारा घर तुम्हारा देश है | तुम अपने देश अपने सतगुरु साईं के साथ अपने सत्य धाम की तरफ चलो | अपने सत्य धाम में सब कुछ प्रफुल्लित होते हुये हर प्रकार से साज सज्जा से सजा हुआ देश जो मन मोहक मन्त्र मुग्ध कर देने वाला है | प्रभु की दया कृपा, सतगुरु की दया कृपा उधर हीं ले जाने के लिये है |

प्रथम राम के दरश परश हों, ओंकार की चढ़ाई || अण्ड लोक की महिमा न्यारी, ब्रम्ह पदा है भारी ||

इधर सूरत जीवात्मा स्वर्ग-बैकुण्ठ देखते हुये, प्रभु राम के दर्शन करती, पर्शन करती हुयी धीरे-धीरे से वहाँ राम के यहाँ जाती है | राम प्रभु के देश को खूब देखती है | इस त्रिलोक की महिमा को जानती समझती हुयी सूरत जीवात्मा, साधक साधिकायें वहाँ गुरु महाराज के बताये हुये नियम के अनुसार उनकी दया मेंहर से प्रभु राम के देश पहुँचते हैं | प्रभु राम का दर्शन करते हैं, प्रभु राम बड़े खुश होते हैं | बड़ी हीं दयाल प्रबृत्ति है प्रभु राम की, बड़ी हीं दया मेंहर करते हैं | सतगुरु के साथ में सूरत जीवात्मा वहाँ जाती है | इधर यहाँ से स्वर्ग देखती है, बैकुण्ठ देखती है, शिवपुरी बम बमभोलेनाथ की नगरी को और बम बमभोलेनाथ की दया दुआ लेते हुये आगे को बढती चली जाती है | हर प्रकार से सूरत जीवात्मा साधक साधिकाओं पर गुरु महाराज की दया मेंहर और सभी देवी देवताओं की दया मेंहर बरसती रहती है | गुरु महाराज दया मेंहर करते चले जाते हैं और वोबलवती होती चली जाती है | धीरे-धीरे चलते-चलते वो ओंकार के देश में पहुंचती है जहां सतगुरु ने उसको अण्ड लोक बतलाया है कि अण्ड लोक है | वहाँ सब सूरतें लालो लाल हो जाती हैं | ऊँची नीची घाटियों से होती हुयीबंकनाल से पार हो करके, दरवाजे को फोड़ करके वो ओंकार देश में सतगुरु के साथ पहुँचती है | सतगुरु का दर्शन करती है | फटक शीला पर गुरु महाराज की बैठक है और उस तक पश्चात वहाँ सत्संग सुनती है | गुरु महाराज के सत्संग सुनते-गुनते काफी दिन बितते हैं तब वो त्रिवेणी संगम पर पहुँचती है और वहाँ त्रिवेणी संगम जो है फक्क सफ़ेद, बिलकुल साफ़ निर्मल पवित्र, उसमे स्नान करती हुयीपारब्रम्ह के दर्शन को करती है | ब्रम्ह के दर्शन को करके बड़ा हीं खुश होती है | ब्रम्ह ऋषि कि पावर आ जाती है | दाता दयाल की कृपा हो जाती है | दाता दयाल की कृपा हमेशा बनी रहती है | सूरत जीवात्मा धीरे-धीरे आती जाती रहती है और बलवती होती चली जाती है, और अपने गुरु का गुणगान करती है |

चरण रज पायो सतगुरु दयाल ||
दया मेंहर से देश दिखायो, देशवा रहो लालो लाल ||
भर त्रिवेणी की हो स्नान, कल मल कीन्हो नाथ ||
खूब सत्संग सत गुरु जी ने दीन्हो, दया कीन्हदीना नाथ ||
सतगुरु संत हमारे पुरे, निर्मल धार की दात||
मन चित्त रंग रोगनजावे, नाम रंज के साथ ||
नाम नामनी लगी सतगुरु की, दया मेंहर गुरु हाथ ||

सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों, जितना गुरु महाराज प्रेम हमको तुमको करते हैंउतना नहीं कोई करता | गुरु महाराज की दया कृपा के बिना कोई भी हमको कुछ देने वाला नहीं है | सब गुरु महाराज की दया कृपा से मिलता है | गुरु महाराज हीं दया कृपा करते हैं तो हमारे सारे काम बनते जाते हैं | हर प्रकार से गुरु महाराज सर्वज्ञ, हर प्रकार से दया मेंहर करते हैं | सत्य नारायण स्वामी, जन पातक हरणा| सत्य के नारायण हैं, सत्य के स्वामी हैं, सत्य के स्वामी सतगुरु हैं | देखो यहाँ से स्वर्ग ले जाते हैं,बैकुंठ में विष्णु भगवान के दर्शन करवाते हैं | चर अचर में जो कुछ है सब कुछ की गणना महिमा को सतगुरु दिखलवाते हैं | साथ साथ रहते हुये स्वर्ग की गणना,बैकुंठ की गणना,बैकुंठ के दर्शन, स्वर्ग के दर्शन,शिवपुरी के दर्शन, बम बममहादेव के दर्शन, माता पार्वती के दर्शन,आद्या महाशक्ति के दर्शन,सबके दर्शन गुरु महाराज हीं करवाते हैं कोई दूसरा नहीं करवाता | गुरु की दया मेंहर से सारे काम बनते चले जाते हैं | गुरु महाराज हींसबको ले जाते हैं इस पार से उस पार, पार देश में | मालिक की दया मेंहरहीं पार करवाती है | मालिक हीं सर्वज्ञ साथ रह करके, उँगली पकड़ करके इस पार से उस पार करवाते हैं और दया मेंहर करते जाते हैं | प्रेमी साधक धीरे-धीरे गुरु महाराज की मोहन मूरत को देखते हुये, खुश होते हुये आगे को बढ़ता चला जाता है | आगे गुरु महाराज की फटकार लगे तो समझो मीठे वचन हैं | मीठे वचन को सुनते हुये सूरत जीवात्मा बड़ी हीं रसीली और झूमती |

झूमती चली सुरतिया आगे, नाम जहाज जहाँ पर लागे||

सूरत जीवात्मा उस स्थान पर पहुँचती है जहाँ पर नाम जहाज लगा हुआ है | नाम जहाज के मालिक सतगुरु स्वामी जयगुरुदेव हैं | वहीं उस पर बैठने को बताते हैं | नाम जहाज के में बैठने वाले साधक साधिकाये, प्रेमी जीवात्मायें, सतगुरु के बंदे सतसंगी जन होते हैं | और देश दुनिया वाले तो उनकी नकल करके भी असल काम कर लेंगे, पर तुम असल करोगे तो तुम्हारा नकल कर के पास हो सकते हैं | तो प्रेमियों सच्चाई यहीं है, कड़ाई यहीं है कि गुरु महाराज के बताये हुये नियम के अनुसार सारी की सारी बातों का पालन किया जाय| गुरु महाराज के बताये हुये रास्ते पर चला जाय| शाकाहारी शदाचारी का प्रचार प्रसार करते हुये, गुरु महाराज का सत्संग भजन, सुनते सुनाते, भजन करते कराते अपने सूरत जीवात्मा का उद्धार, के उद्धार हेतु सारा काम करें |

विनय मन लागो सतगुरु नाम ||
विनय प्रार्थना कर सतगुरु की, पहुँचो सतगुरु धाम ||
सच्चे मालिक मिल जायें स्वामी,जिननेदियो है नाम ||
नाम के दाता सतगुरु स्वामी, संत हमारे साथ ||
सतगुरु दया मेंहर होये तेरी, खोलो आन करो ना देरी ||
दर्शन हो दीनानाथ ||
दरश परश कर मन हर्षावे,चरणन शीश झुकावे||

सतगुरजयगुरुदेव
अधर की है बतिया सतगुरु दयाल ||
ना संसार जगत में फ़साना, चलना सतगुरु के द्वार ||
ऐसी जतन करो हे भाई, बन जाये सतगुरु काज ||
मंगल चितवन हो अन्तर में, सच्चे बाजै साज ||
सतगुरु मेंहरबिराजैहरदम, दया मेंहर के साथ ||


सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत्त गोसाई, सतगुरु समरथ संत हे नामी ||
दीन दयाला तुम किरपाला, सतगुरु दीनानाथ ||
आरती चरण बन्दना नामी, हे सतगुरु जी नाथ ||
सतगुरु सतगुरु चरण बन्दना, सतगुरु सत्य अनाम ||
सत्त के चरणन शीश झुकाऊ, सतगुरु संत हमार||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 11 जनवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजनिया सतगुरु जी का ध्यान ||
भाव भजन सतगुरु का साँचो, अन्तर में कल्याण ||
सतगुरु सतगुरु नाम जुहारो, सत्त प्रेम और भाव ||
लगन युगन की प्यास बुझावे, सतगुरु जी मिल जाय ||
भाव झरोखे करी बन्दना, अंतर्घट के ठाँव ||
सतगुरु स्वामी अपने मालिक, सच्चे सतगुरु राम ||
नाम भजन सच्चा सतगुरु का, शीतल मिलती छाँव ||
कोमल कोमल शब्द की कल कल, अन्तर्घट दरम्यान |
भाव झरोखे साधक सुनियो, सादर चतुर सुजान ||
सच्चे मालिक के भीग जावे, नहीं रक्खें कोई मान ||
मान बड़ाई छोड़ के बंदौ, जपे सतगुरु का नाम ||

सतगुरु जयगुरुदेव
अधारे सतगुरु जी के सहारे ||
सच्चे सतगुरु प्रीतम साईं, मिलन होय घट गुरु द्वारे ||
मालिक जी की मीठी वाणी, सुनियोसचर सहारे ||
नाम को पाओ अन्तर्घट में, नाम जड़ित सब मानो ||
जानो महिमा अपने नामी की, नाम भजन मन ठानो ||
गुरुवर साँचे शब्द सनेही, गुरु का कहना मानो ||
नाम नामनी लगे नामी की, सच्ची बात ये जानो ||
सतगुरु जयगुरुदेव

भाव से सिंधु में जाना, बिंदु प्रमाण सच्चा है ||
भाव से, शीतलता से, अन्तर्घट में बैठ करके, उस बिंदु को निरखते परखते रहते हैं | बिंदु के अधारे और बिंदु से उस पार जाते हैं, गुरु की महिमा को देखने के लिए | गुरु महराज ने जो कुछ बताया है, उस पसारे को उस सच्ची चीज को पाने के लिए | बिंदु आधार पर एकाग्रचित्त होते हैं और बिंदु पर निशाना साधते हैं | फिर बिंदु में निशाना साध करके उस पर निशाना लगा करके, उसी निशान से सूरत-जीवात्मा उस पार जायेगी | वैसा काम करते हैं जैसा सतगुरु बताते हैं |
गुरु का भाव कर भजना, सूरत को चढ़ा दे गगना ||

सच्चे भाव भजन से, सच्ची लगन से, लगन लगा करके, भजन करके इस तरफ जीवात्मा को उस तरफ गगन के बीच में चढ़ा देने का तुम्हारा काम है | गुरु महाराज का पूरा का पूरा कर्तब्य जो बनता है, उस कर्तब्य का निर्वाह गुरु महाराज करते हैं, पूरी दया कृपा करते हैं | पूरी दया कृपा के साथ किस तरह जीवात्मा को आगे बढ़ाते हैं, इस पर विशेष दया कृपा करते हैं | अगर आप मन चित्त लगा करके गुरु का ध्यान करते हो तो गुरु महाराज तुम्हारा ध्यान करते हैं, इसमें कोई शंका की बात नहीं है | और गुरु महाराज की दया कृपा हर प्राणी हो मात्र को मिलता है | हर प्रेमी चाहे वो स्त्री हो या पुरुष हो, सब पर गुरु महाराज की बराबर विशेष दया कृपा बरसती रहती है | जो भाव भजन करता है गुरुमहाराज को हाजिर नजीर मान करके, हर प्रकार से गुरु महाराज में मन लगाता है और गुरु महाराज के चरणो में अर्पित रहत है |

सोच रक्खो समझ करके, चलोगे धाम न्यारे को ||

सोच समझ ऐसी रखो कि हम अपने देश को जायेंगे, अपने गुरु महाराज के साथ जायेंगे, गुरु का हीं भजन गाएंगे और उस धाम को जायेंगे जहाँ पर गुरु महाराज ने बताया है | जो हमारा सच्चा घर है, अपने हीं घर और धुर को चलेंगे गुरु महाराज के साथ | गुरु महाराज पूरी की पूरी दया कृपा करेंगे हर प्रकार से | तो हर प्रकार से गुरु महाराज जब दया करेंगे तो हम गुरु के संग अपने धाम को अपने घर को जायेंगे | ऐसा मन में भाव बना लो, ऐसी अन्तर में तड़प बिरह वेदना पैदा करो कि हमे उस मालिक के साथ हीं जाना है, अपने सतगुरु के संग हीं जाना है |
गुरु संग नेह लगाओ तुम, पार उस देश जाना है ||
मिलेगा नाम का मोती, सतगुरु का खजाना है ||
नाम के असली मोती को, चुन चुन करके लाना है ||
शब्द सुनना गंगन बीचे, और झनकार आना है ||
सनेही सतगुरु सच्चे, देश उनहीं के जाना है ||
प्रेमियों, मन चित्त लगा करके सच्चाई कड़ाई के साथ, भजन करने के सथो साथ उस देश को जाना है सतगुरु के और सतगुरु में मन लगाना है, सतगुरु के हीं भजन करना है | सतगुरु हीं सच्चे हैं | गुरु महाराज ने जो कुछ बताया, वहीं सच्चा जो समझाया | हमारा तुम्हारा मानव पोल का मानव रुपीमन्दिर में बैठ करके सुमिरन भजन ध्यान करने का कर्तब्य है | जो मालिक ने समझाया है, इस मानव पोल पर रहने में, जब गुरु महाराज ने दया कर दिया तो तुमको सबको सुमिरन ध्यान भजन के लिये एकाग्रचित्त हो करके बैठना चाहिये | मालिक ने जो कुछ बताया, उस बताये हुयेकर्तब्य को पालन करना चाहिये सच्चई और कड़ाई के साथ |
सतगुरु जयगुरुदेव
भाव झरोखे लागो मन चित्त से, मन चित्त लागे सतगुरु चरण में ||
काम बने सच्चा इस जग में, सतगुरु जी के नाम भजना में ||
सत्त प्रेम सतगुरु के मिलन में, सतगुरु चरणन शीश झुकाना ||
सतगुरु जी की बन्दना गाना, मुक्ति मोक्ष परम पद पाना ||
प्रेमियों, परम पद तभी मिलेगा जब सतगुरु की दया होगी और हम सब लग करके सुमिरन ध्यान भजन करेंगे | ये सूरत जीवात्मा उस गगन के बीच जायेगी, घट से उस पार होगी, घाट के पार | जब घाट के पार सतगुरु के साथ ये चली जायेगी, ऊपर शरण करेगी, स्वर्ग और बैकुण्ठ को देखेगी, शिवपुरी और ब्रम्हपुरी को देखेगी, आद्यामहाशक्ति देश, प्रभु राम के देश को देखेगी | प्रभु राम के दर्शन पर्शन करने के बाद ओंकार प्रभु के दर्शन करेगी | ओंकार प्रभु के दर्शन पर्शन करने के बाद रारंकार के दर्शन पर्शन करेगी | सतगुरु के साथ चलती चलाती हुयी महाकाल पुरुष के देश में पहुँचेगी | वहाँ महाकाल पुरुष के दर्शन करेगी | तत्पश्चात सत्तलोक धाम सतगुरु के धाम अपने निजधाम जायेगी | निजधाम जाती आती रहेगी जब तक स्वासों कि पूंजी यहाँ पर रहेगी तब तक सूरत जीवात्मा इस पोल में बिराजमान रहेगी | जैसे स्वासों की पूंजी ख़त्म हुयी अपने सतगुरु के साथ अपने निज घर, अपने निज धाम पहुँच जायेगी |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु नामी की, की सच्चे सन्तअनामी की ||
पुरुष सतगुरु सच्चे नामी, सतगुरु सत्त अनामी की ||
सतगुरु परम दयालु की, धरम ध्वज हे किरपालु की ||
श्री चरणन में शीश झुकाओ, आरती सतगुरु जी की गाओ ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 10 जनवरी 2016

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नयन बीच देखो बिंदु अखण्ड ||
नैनन में सतगुरु मेंरे प्रीतम, दया कृपा के सिन्धु ||
दीन दयाल नन्द गोपाला, रघुवर हैं गोविन्द ||
सतगुरु संत हमारे प्यारे, निज चरणन लग लेव ||
दया भावना मेंहर कृपा में, मन तन चित्त को देव ||
नाम भजन में मन रम जाये, मेंहर मालिक की लेव ||
सतगुरु प्रीतम जगे हैं सवरिया, चरणन शीर धर लेव ||
सतगुरु जयगुरुदेव
मंगन मन गाओ सतगुरु नाम ||
सतगुरु दीन दयाल मेंरे प्रभु, हैं वो तो कृपाल ||
नाव लगावें पार में सतगुरु, सच्चे हैं कर्णधार ||
ऐसे सतगुरु नाहीं मिलेंगे, जो कर दें बेड़ा पार ||
सब जन लग जाओ नाम भजन में, होवेगा उद्धार ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, होवे बेड़ा पार ||
नाम नामनी हैं सतगुरु की, हो जावै उद्धार ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारो, चल देव पार पार||
सतगुरु नाम अलौकिक अदभुत, हो जावे उद्धार ||
सतगुरु जयगुरुदेव
चरनिया सतगुरु तेरी पखारुं ||
सतगुरु चरन पखारो बन्दौ, नाम दया की पाओ धार ||
कल-मल कटें तुम्हारे सारे, पहुँच चलो वहीं पार ||
अपने सच्चे सांईं सतगुरु, हो जायेगा उद्धार ||
मन चित्त रंग जाए नाम मंगन में, नाम भजन आधार |
| सतगुरु जैसे संत नहीं है, सत्त देश की धार ||

सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों, गुरु में मन लगाना और ध्यान भजन करना, मन चित्त लगा करके मालिक की प्रार्थना-आराधना करना, हम सब दीन बंधुओं का कर्तब्य है | मालिक की दया कृपा चौबीसो घण्टे बरस रही है, उस दया कृपा के अंतर्गत हमको तुमको ओत-पोत होना है | मालिक के बताये हुये रास्ते पार चलना है, मालिक की बतायी हुयी एक एक वाणी को याद करना है | मालिक समरथ हैं, हर प्रकार से दया मेंहर करते हैं | देखो, ये घट है, घट में घाट है, घट पार गुरु की बैठक | गुरु के दर्शन-पर्शन करते रहो अन्तर में चलते रहो, कुछ गुनगुनाते रहो, गुरु महाराज का भजन गाते रहो | जब भजन गाते रहोगे, गुरु में मन लगाते रहोगे तो गुरु की दया कृपा अपार उतरेगी | तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा, तुम्हारे सारे काम बन जाएंगे और मालिक की मेंहर को आप शीश धरते चले जाओगे, मालिक हर प्रकार से दया करते चले जाएंगे | चिंतामत करो कि हमारा काम नहीं होगा, सारे काम बनेंगे | मालिक की दया मेंहर होगी और मालिक सबको पार करेंगे, सबका उद्धार करेंगे |
उध्दारो मेंरे सतगुरु नईया मजधार ||
तुमहिं दाता दीन दयाला, हम हैं जीव दीन तुम्हार ||
दीन दयाला प्रभु मेंरे सतगुरु, बेड़ा करो उस पार ||
सतगुरु नाम भजन मैं करिहो, आवे दया की धार ||
सन्त हमारे सच्चे समरथ, बरसेगी दया की धार ||
सतगुरु सतगुरु नाम भजनिया, नाम की महिमा बड़ी भाग्य ||
सतगुरु नाम पुकारतरहियो, हो जायेंगे पार ||

सतगुरु जयगुरुदेव
मालिक की असीम दया अनुकम्पा आप सब पार है | आप सब रोज-रोज एकत्र हो करके जो भी दस पाँच मिनट का सुमिरन ध्यान भजन करते हैं बैठ करके, गुरु महाराज की बन्दना करते हैं अखण्ड रुप से बिराजमान मन्दिर के सामने, वो मालिक के यहाँ जोड़ा जाता है | उससे आप लोगों को विशेष दया कृपा मिलती है | हर प्रकार से दया गुरु महाराज कर रहें है, आप लोग भी हर प्रकार से मेहनत करते हुये, सुमिरन भजन ध्यान में मन लगाते हुये, मालिक को हाजीर नाजिर मानते हुये, हर प्रकार से आप काम करते हुये, मालिक के चरणों में रत हुआ करिये और गुरु महाराज की यादगारी सुबह-शाम आठोयाम करते रहो |

सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु सन्त हमारे नामी, आरती चरण बन्दना स्वामी ||
कोटि कोटि तुम्हे करुँ नमामि, कोटि बार चरणन परनामी ||
आरती सतगुरु सन्त सतनामी ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मनवा लागे नाम भजन में, सच्चा सुख है फकीरी ||
सतगुरु नाम ध्यान धर देखो, फिर हीं कुछ मिलै जगीरि में ||
मालिक प्रीतम मेंरे सवरिया, मिलिहै तोहै सबुरी में ||
सतगुरु चरणन शीश झुकाकर, करो भजन तुम जरुरी में ||
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमी जन, मालिक की असीम दया कृपा और बड़ी अनुकम्पा रही कि निर्विघ्न सारा कार्यक्रम गुरु दादा महाराज के पावन भण्डारे के अवसर पर गुरु पूजा संपन्न हो गई और मालिक ने सबको ख़ुशी सौहार्द के साथ रक्खा और अपने अपने स्थानों को प्रेमी प्रस्थान कर गये | मालिक की ऐसे हीं दया कृपा हमेशा बनी रहे और सब लोग सुमिरन भजन ध्यान करते रहें, सबको घनाघोर अनुभव हो | मालिक की दया कृपा बरसे, यहीं हम मालिक से कामना करते हैं | समस्त प्रेमियों को अनुभव हो दिखाई सुनाई पड़े, यहीं मालिक से बन्दना करते हुये और सबसे प्रार्थना करते हैं, सब लोग लग करके सुमिरन भजन ध्यान करते रहो |
सतगुरु जयगुरुदेव
पावन सतगुरु पिया हमारे, इनहीं के संग में रहना ||
नाम दियो और भेद बतायो, पहने हो नाम का कंगना ||
चंचल चितवन हो अन्तर में, नाम भजन को करना ||
सतगुरु स्वामी मेंरे सवरिया, इनहीं के रंग में रंगना ||
ध्यान भजन मन लग जाये सतगुरु, यहीं मांगन मंगना ||
सतगुरु चरण बन्दना तेरी, तेरे संग हीं रहना ||
पद पंकज की करूँ बन्दना, चंचल चितवन रहना ||
शीश झुकाऊँ विनय करूँ ये, मन तेरे में रंगना ||
भाव भाव से भाव उजागर, भाव के साथ में रहना || सतगुरु जयगुरुदेव
विनय मम करते स्वामी तेरी ||
विनय प्रार्थन चरण बन्दना, आरती पद पंकज केरी ||
श्री चरणन में शीश झुकाऊँ, दया मेंहर में न हो देरी ||
सतगुरु सतगुरु नाम पुकारूँ, सूरत तुम्हारी केरी ||
चरण बन्दना और अराधना, हे सतगुरु जी तेरी ||
शीश झुकाऊँ करूँ परनामी, सुन लिजो बिनती मेंरी ||
भूल चूंक मेंरी बिसरा कर, दया की कर दो ढेरी ||
पद पंकज में शीश झुकाऊँ, चरण बन्दना तेरी ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अखण्ड रूप से बिराजमान जयगुरुदेवमन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में गुरु दादा महाराज के पवन भण्डारे के अवसर पर, जो गुरु महाराज के पूर्व हुकुम के अनुसार गुरु की पूजा होगी | इसमें पधारे हमारे दूर दराज से भारतवर्ष के कोने कोने से समस्त गुरु भाई बहन, प्रेमी जन, सर्वप्रथम जो आप सबका गुरु भाई हूँ, मैं किसी का गुरु नहीं हूँ | गुरु महाराज हींसबके गुरु हैं और गुरु महाराज हर प्रकार से सर्वज्ञ हैं और हर प्रकार से सचर हैं | कोई ये मत समझ ले की गुरु महाराज कहीं चले गये हैं | गुर महाराज जब अनुभव करा रहे हैं तो आपके साथ हैं | जब आपको सोचना चाहिए कि, ये हमारा घट है, घट में घाट है, घाट पर गुरु की बैठक | जब अंतर में गुरु महाराज मिल रहे हैं तो उनसे पूंछो कि हे मालिक क्या मौज है, क्या दया है, क्या आपका आदेश है, तो गुरु महाराज बतायेंगे, समझायेंगे आपको, तो आप सबको समझना चाहिये | ऐसे कोई कह दे, मैं हीं कह दूँ कि ये नहीं ये है, उस बात को ऐसे मत मान लेना | जब आपको अनुभव हो दिखाई सुनाई पड़े तब उस बात को मानो | यहाँ तो प्रमाण है, अनुभव हो तो मानो, अनुभव न हो तो मत मानो | इतने कड़े शब्दों में कोई भी मठाधीश या कोई भी जगदीश, या कोई भी जो भी संगत बना रखे हैं अपने गुरु महाराज की, कोई भी ये नहीं कहता की तुम्हे ये होगा, और होगा तो मानना और नही होगा तो मत मानना | ऐसा कोई कहता नहीं है | केवल जो खानापूर्ति है वो की जाती है और सर्वप्रथम काम, हरु महाराज का आदेश लग करके सत्संग सुनना और लग करके सुमिरन ध्यान भजन करना | सुमिरन ध्यान भजन कि कमायी है उसको धीरे धीरेइकठ्ठा करते हुये, अपने गुरु महाराज के चरणों में लगते हुये, आपको काम करना है | खुद जगना है और जगत को जगा देना है | सतगुरु का नियम दिन और गरीबी में रहो, हारी बीमारी आवे तो गुरु महाराज से प्रार्थना करते रहो, ये कर्मों के बिधान से होता है | ये कर्म कर्जे हैं, धीरे धीरेचुक्ता होगा और इस देश से धीरे से निकल चलोगे | गुरु महाराज के साथ रहे हो तो हमेशा गुरु महाराज के साथ रहो, गुरु महाराज को हीं गुरु मानो, किसी दूसरे को गुरु मत बना लो और गुरु महाराज का हीं भजन करो | गुरु महाराज तुमको पूरा पूरा अनुभव करायेंगे, ये मेंरा सच्चा दृढविश्वाश है, क्योकि जितने भी सारे बन्दे यहाँ आये, उनको सबको अनुभव हुआ, आपको सबको भी अनुभव होगा, दिखाई भी पड़ेगा और सुनाई भी पड़ेगा | मालिक कि असीम दया कृपा से सारा कार्यक्रम निपटता आया है, आगे भी निपटता चला जाएगा | आपकी संगत धीरे-धीरे बढाती चली जायेगी, अनुभवयियों कि जनसंख्या काफी हो जायेगी | गुरु महाराज ने बताया कि जिनको दिखाई-सुनाई पड़ेगा वोहीं आगे रक्खे जाएंगे | २० महात्मा तहसील में तो ३० महात्मा जिले पर | मालिक ने सब कुछ बता रक्खा है, तो जब तुम अनुभव करोगे हींनही, तुम्हे दिखाई सुनाई हींनही पड़ेगा तो तुम किसी का फैसला किस तरह करोगे | इसलिए यहाँ पर एक हीं काम होता है, लग करके सुमिरन भजन ध्यान, अनुभव अनुभूति ज्ञान | इसके अलावा दूसरा कोई काम नहीं |
सतगुरु जयगुरुदेव
ध्यान धार आधार में देखो, गुरु का ज्ञान आवेगा ||
खुले जब ज्ञान चछु है, सारा पसरा दिखायेगा ||

आप लोग जब लग करके सुमिरन भजन ध्यान करोगे और ज्ञान चछु दिव्य दृष्टि आपकी जब खुलेगी तो आपको सारा पसारा दिखाई पड़ेगा, अण्ड लोक, पिण्ड लोक, ब्रह्माण्ड लोक, स्वर्ग बैकुण्ठ, बहिष्यत सब कुछ आपको नजर आयेगा, सब कुछ दिखाई पड़ेगा, सुनाई पड़ेगा और मालिक के दर्शन तुमको घट में रोज होंगे | इस समय हम भी कहते हैं, सब कहते हैं | लेकिन सबसे पक्का सच्चा ज्ञान अंतर का है | अंतर्घट में दिखयी पड़ेगा तो आपकी गुरु महाराज से बात होगी | गुरु महारज अंतर में मिलेंगे तो तुमसे बात हो जायेगी | गुरु महाराज तुमको बता देंगे | बहार से हम चिल्ला कर के बता दें की गुरु महाराज वहाँ बैठे हैं तो आप मान थोड़ी लोगे जब तक आँख से देखोगे हीं नहीं | इस तरह सब लोग कहते हैं कि गुरु महाराज यहाँ हैं, गुरु महाराज वहाँ हैं, गुरु महाराज अब मैं तो सीधे-सीधे कहता हूँ, गुरु महाराज आपको अंतर में मिलेंगे, आपको घाट पर मिलेंगे | और जब बताएँगे, जब वो दर्शन देंगे बाहर से तो पूरी दुनिया को देंगे, सबको देंगे, किसी एक को नहीं देंगे | चोरी से कि एक को दर्शन देकर के अकेले चले गये | गुरु महाराज सबको दर्शन देंगे, जब वो आएंगे तो वहाँ जितनी जमात होगी, जितना भी वहाँ जन सैलाब होगा, जितने भी गुरु के बन्दे होंगे, वो हजार पाँच सौ, दस, बीस, पचास, सौ वोसबको दर्शन देंगे | एक अकेले को अगर बता दिया तो बुलायेंगे, बुला करके ढिंढोरा पिटवा देंगे उससे कि बच्चू मैं फला जगह हूँ, यहाँ चले आओ, यहाँ दर्शन कर लो | गुरु महाराज ने कोई काम चोरी से नहीं किया, सब काम डंके की चोट पे हुआ है, और ये भी डंके की चोट पे होगा | तो प्रेमियों अपने गुरु के साथ लगे रहना और गुरु कि वाणी को याद करना | अपने गुरु महाराज के साथ रहने से हीं हमारी तुम्हारी भलाई है | किसी दूसरे को या किसी गुरु भाई को हम गुरु बना लेंगे तो भी अच्छी बात नहीं है | जो नए प्रेमी हों उनको कहीं कुछ मिल रहा हो तो वो ले लें | जो नये हैं तो उनकी कोई नयी बात नहीं, पुरानों को अपनी जगह पे रहना चाहिये, अपने गुरु महाराज का भजन करें, किसी की निंदा आलोचना न करें | कोई जो भी कर रहा है, जैसा भी कर रहा है, जो करेगा तो भरेगा | तो प्रेमियों, आप लोग थके हो इसलिए अब सब लोग आरती प्रार्थना बोलो, और उसके बाद में आराम से अन्तर में गुरु महराज का नाम लेते हुये धीरे से सो जाना और गुरु महराज का नाम जब बोलते बोलते सोओगे तो गुरु महाराज कि दयामेंहर बरसती रहेगी और वोतुम्हारे भजन में जुड़ जायेगा | तुम्हे भी सब कुछ भजन के हीं बराबर मिल जायेगा |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु सत्त दयाला, सतगुरु शब्द महा किरपाला ||
दया मेंहरकियो नाम धरयो, अन्तर अदभुत दिव्य दिखायो ||
हे सतगुरु मालिक किरपाला, नाम दियो तुम दीन दयाला ||
सब जीवन के तुम हितकारी, डूबतनैयालेव उबरी ||
सच्चे सन्त सनातन धारी, आरती सतगुरु होती तुम्हारी ||
भाव चाव से अंतर्घट में, आरती कोटि बन्दना तुम्हारी ||
सहस्त्रबन्दना कोटि परनामी, सतगुरु जयगुरुदेवअनामी ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
पायो नाम सतगुरु जी से, ध्यान लखो धर अन्तर ||
नाम का जन्तर सतगुरु दीन्हा, फूंको अन्तर मन्तर ||
चमक जो अन्तर आवे अदभुत, समझो सच्चा जन्तर ||
गुरु का ज्ञान बिराजे सब पर, नाम भजन का मन्तर ||
प्रभु सनेही सतगुरु दिख जायें, नाम भजन मन जन्तर ||
सतगुरु सतगुरु अन्तर आवे, सतगुरु दया का मन्तर ||

सतगुरु जयगुरुदेव
भजो मन सतगुरु नन्द गोपाल ||
सतगुरु प्यारे राज दुलारे, दियो लखाये सब जन्तर ||
अदभुत नाम नामनी दीन्हा, सच्चा दियो है मन्तर ||
करो जतनीया नाम मिलन की, अदभुत मिल गयो मन्तर ||
सतगुरु जी को लागे देशवा, छोड़ चलो तुम विदेशवा ||
चढ़ै सुरतिया जो गगन मझारी, देख पड़ै सतगुरु अन्तर ||
महल अटारी बाग़ बगीचे, सब घट बिसैमन्तर ||
उपजै ज्ञान गुरु का अदभुत, कुछ ना दिखै अब अंतर ||

सतगुरु जयगुरुदेव
नाम से लौह लगाओगे, पार उस देश जाओगे ||
शब्द सच्चा साईं सच्चा, लगन सतगुरु में लाओगे ||
भेद नामी ने दीन्हा है, पार उस देश जाओगे ||
दया सतगुरु की सच्ची है, पार सब सब समाओगे ||
समागम संत का सच्चा, जो सच्चा भेद पाओगे ||
मंगन और ध्यान चित्त धरके, देश सतगुरु के जाओगे ||

सच्चा मन बना करके जब सुमिरन ध्यान भजन करोगे तो गुरु महाराज की असीम दया कृपा-अनुकम्पा होगी तुम पर, मालिक की मेंहर बरसेगी और तुम सच्चे देश में चले जाओगे | मालिक में कोई मिलौनी नहीं, ना कोई नाम में मिलौनी है, मिलौनी हमारे तुम्हारे अन्तर में है | उसको देखना है, उसी को छाँट करके बाहर करना है | दया गुरु महाराज कर रहे हैं, हमको तुमको किस प्रकार उस दया मेंहर को लेना है, ये सब हमको तुमको देखना है |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती मंगल पावन नामी, हे सतगुरु पावन सतनामी || नाम बिराजे अन्तर राजे, दया मेंहर सब बाजे बाजे|| सतगुरु दया मेंहर को पायो, सतगुरु चरणन शीश झुकाओ || सतगुरु जयगुरुदेवअनामी, कोटि कोटि तुमको परनामी|| कोटि बन्दनासहस्त्रअराधना, मेंरे प्रभु मेंरेसाईं|| सतगुरु चरण शीश झुकाऊँ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊँ || सतगुरु जी की आरती गाऊँ, उन चरणन बलिहारी जाऊँ || सतगुरु जी को शीश झुकाऊँ ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भरोसो पद पंकज का तेरे ||
नाम भजन का मार्ग दियो है, नाम भजन मन हेरे ||
भरोसो पद पंकज का तेरे ||
मेंरे सतगुरु मेंरेमेंरे नामी, हे साईं सतगुरु सतनामी||
नाम भजन मन तेरे, भरोसो पद पंकज का तेरे ||
दया मेंहर स्वामी हो तेरी, ये है सुरतिया तुम्हारी केरी||
दया करो बारम्बार, भरोसो पद पंकज का तेरे ||

सतगुरु जयगुरुदेव

लखा संसार में अदभुत, अध्यात्म धन हीं सच्चा है ||
मार्ग डोरी विवितनी है, कच्चे धागे सम कच्चा है ||
धरो तुम ध्यान चितवन मन, सतगुरु धाम चलने की ||
दया कर स्वामी आयें हैं, मान तू बात इनहीं की ||
सतगुरु की वाणी, सतगुरु की बात मान करके हम सब प्रेमी सुमिरन ध्यान भजन, जो भी बन पटे, मालिक का ध्यान करते हुये, मालिक के चरणों में चले चलें | मालिक से लौ लगते रहें, मालिक से बिनती प्रार्थना करते रहें | हे मालिक, दाता दयाल हर प्रकार से दया करते हुये, मुझ पापी को उबार लो और अपने चरणों में लगा लो | धीरे-धीरे स्वासों की पूंजी खतम हो रही है तो हमारे ऊपर दया कृपा करके, हे प्रभु, हे दाता दयाल, जो भी जिस तरह दीन गरीबी में बन पड़ता है उसी को सुमिरन भजन ध्यान समझ लो, उसी पर दया कर दो और पास कर दो | जिस तरह से सुमिरन भजन ध्यान तो मन लगता नहीं, जीवात्मा सूरत प्यासी है और ये मन पापी है, इधर उधर भागता रहता है | कुछ काम बनने नहीं देता | तो हे प्रभु, जो भी टूटी फूटी आराधना हो, जो भी टूटी फूटी प्रार्थना हो, एक मिनट, दो मिनट, एक घडी दो घडी, उसी में हमारी साधना को सिद्ध किया जाय, उसी में दया मेंहर कर दिया जाय| हे प्रभु, हे दाता दयाल, हे दयालु हर प्रकार से कृपा करके, दया करके, हमको अपना लिया जाय, अपने बच्चे के समान अपने साथ रखा जाय| किसी प्रकार से किसी प्रकार की ढिलाई ना हो, हम पर दया मेंहर की बरसात होती रहे |

गुरु चरणो में मन लागे, ध्यान चितवन तुम्हारा हो ||
हो अंतर नाम सतगुरु का, ध्यान भी सच्चा सारा हो ||
सार सब भेद नामी के, नाम का हीं सहारा हो ||
बड़े दाता दयालु जी, कृपा के सिंधु सागर हो ||
दया सतगुरु बरस जाये, ख़ाक मिल जाए चरणो की ||
सूरत निर्मल हो जायेगी, चरण तुम्हारी जब आयेगी ||
दयालु सतगुरु मेंरे, सत्य के दाता साईं जी ||
मेंहर हम पर करो नामी, द्वारे तेरे सतगुरु जी ||
हे सतगुरु, हे दाता दयाल, हम तुम्हारे दरवाजे पर पड़े हैं, तुम्हारे सहारे पड़े हैं | कैसे भी रोयें ये दुनिया है, दुनिया में कोई बच नहीं सकता | पापों की गठरी बंध रही है, सच्चई के मार्ग पर चलना कठिन हो रहा है | हर प्रकार से दया मेंहर करोगे तो किंचित मात्र, ये सेवक, ये प्रेमी, ये टुटा फूटा जीव आपके चरणों की तरफ बढ़ सकता है | आपकी दया मेंहर के बिना एक पग भी आगे नहीं चल सकता | तो हे सतगुरु, हे दाता दयाल आप दया करो, आप कृपा करो, हमारा सुमिरन ध्यान भजन बन जाय| जो भी टूटी फूटी आराधना हो मिनट दो मिनट, घण्टे आधे घण्टे, दस मिनट पन्द्रह मिनट की हो बन जाय| इस तरह से गुरु महाराज से प्रार्थना करते हुये, गुरु महाराज की आराधना करते हुये, हम सब प्रेमी गुरु महाराज की तरफ उन्मुख होते हैं और गुरु महाराज से मेंहर की भीख माँगते रहते रहते हैं |
मेंहर करो स्वामी, दाता दयालु मेंहर करो स्वामी ||
दया मेंहर बरसे जब तुम्हारी, रंग जावे ये चुनर हमारी ||
भाव भीनी प्रार्थना करते हैं आज ||
मेंहर करो स्वामी, दाता दयालु मेंहर करो स्वामी ||
स्वांसस्वांस पर लगन लग जाये, जीव तुम्हारे सरणागत हो जाये ||
कृपा सिंधु हे सतगुरु रघुनाथ, दया करो सतगुरु दाता दयाल || सतगुरु से इसी तरह दया की भीख हुये, आगे को बढ़ाते चलते चलते हैं | मालिक से प्रेम लगते रहते हैं, मालिक से हर प्रकार से बिनती प्रार्थना करते रहते हैं | हे मालिक हम पर दया करो, हे सतगुरु हम पर दया करो, हे दाता दयाल हम पर दया करो, हमारे गलतियों को माफ़ करो, हर प्रकार से क्षमा कर दो | हे प्रभु हम तुम्हारे जीव हैं, हमको माफ़ कर दो |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु पुरुष अनामी दाता, सतगुरु मंगल जगत बिधाता||
आरती चरण बन्दना साईं, बार बार चरणन तीरन आयी ||
मेंहर करो सतगुरु मेंरे दाता, सच्चा तेरा जीव ये जाता ||
श्री चरणन शीश झुकाऊं, हे मालिक तेरो पद पाऊँ ||
सतगुरु जयगुरुदेव अनामी, मेंरे सतगुरु मेंरे नामी ||
सहस्त्र कोटि तुमको परनामी, सतगुरु जयगुरुदेव अनामी||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 12 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन सतगुरु सतगुरु ध्यान ||
नाम भजन सच्चा मालिक का, मिलने का यह धाम ||
भाव झरोखे जब बैठोगे, भजोगे मालिक का नाम ||
दया मेंहर बरसे सतगुरु की, बन जाए तेरो काम ||
सतगुरु प्रीतम तुझे पुकारें, नाम लक्ष्य का ठान ||
सतगुरु रहें पुकार तुझे जो, अपना सच्चा नाम ||
सतगुरु सतगुरु नाम भजनिया, कर ले हो आराम ||
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु दरबार में देखो, भाव के मोती सच्चे हैं ||
मिलेगा भाव से सब कुछ, तुझे जो कुछ भी चाहत है ||
ध्यान दे तू गुरु वाणी, भजन मन ज्ञान तू ठाने ||
हो अंतर में सबेरा जब, ज्ञान प्रकाश को जाने ||
मिलो मालिक से जा भीतर, दया निधि धाम को जाने ||
सतगुरु जयगुरुदेव
मालिक के वचनों को याद करते हुए हम सब प्रेमी लग कर के जो कुछ बन पड़े सुमिरन ध्यान भजन करते रहें | मालिक का नाम चौबीसो घण्टे याद करते रहें और समय की सुई धीरे-धीरे घूम रही है | मालिक भी किसी भी टाइम प्रत्यक्ष प्रकट होंगें| प्रकट होंगें और अपनी सांगत को संभालेंगे | दया मेहर करेंगे और आवाज लगाएंगे तो करोड़ो की भीड़ चली आएगी | गुरु महाराज ने कहा था, मैं आवाज लगाउँगा तो देखना कैसे भगदड़ मचेगी, कैसे लोग एकत्रित होंगेंइकठ्ठा होंगे | तो प्रभु ने जो कुछ भी कहा है वो अपनी वाणी को पूरा करेंगे | हम सब भी गुरु से लग करके, गुरु के साथ रह करके अपना काम करते रहें, मालिक पर निशाना रक्खें, मालिक से प्रेम करते रहें, मालिक में मन को लगातें रहें और गुनगुनातें चलें और नाम भजन को गातें चलें | प्रेम प्रतीत की बात करें, किसी की निन्दा आलोचना न करें, जिससे उसको ठेस लग जाय और तुम्हे भी बुरा भला कहे | इसलिए किसी को कुछ मत कहना और ना हैं किसी को समझाना उस तरह का कि तुम इधर मत जाओ, उधर मत जाओ | जिसकी जो मर्जी करेवोकरे| तुम अपने निशाने पे रहो, अपनी बात रक्खो, अपनी बात को बताओ | दूसरे कि बात कोई पूछता है तो कहो कि उसी से पूछो तो ज्यादा अच्छा रहेगा | हम उसके बारे में क्या कहें, जब हम उसके साथ रहतें नहीं तो हमे क्या जानकारी कि वहाँ क्या होता है, क्या नहीं होता है | यहाँ आये हो तो यहाँ देखो जो कुछ होता है और उसको अनुशरण करो | जो अच्छा लगे अपने पास रक्खो, जो बुरा हो उसको निकाल फेंको | मालिक में मन लगाओ, सुमिरन भजन ध्यान करो, सच्चाई से आगे बढ़ते चलो | गुरु महाराज का नाम लेते चलो |

भजो नाम सतगुरु सत्संगा, आठोयाम अमिट अखण्डा||

ऐसे भजो ऐसे दर्शन करो, यहाँ तो अमिट है अखण्ड है, ये अखण्ड हैं, यहाँ से खण्डन नहीं होने वाला | हर प्रकार से दया मेहर आप पर बरसेगी | अब ये तुम समझो कि ये छोटा सा मंदिर है | इसमें पता नहीं क्या है, क्या नहीं है, तब तुममे दुर्भावना आ जायेगी | अगर सद्भावना के साथ छोटे से जगह तुम बैठोगे, पहले गुरु महाराज ने पाँच को, एक को, दो को, पांच को नामदान दिया फिर सौ हजार, पाँच सौ, लाख, करोंड़ हुए | तो धीरे-धीरे सब कुछ हुआ, तो इसी तरह तुम्हारे सब के लिए है ये चीज अखण्ड, सबके लिए है | कोई भी प्राणी हो, किधर का भी हो, गुरु महाराज का जीव हो, सत्संगी प्रेमी है, वो कोई भी आ सकता है | जिसको नाम मिला है, वो बैठ करके सुमिरन भजन ध्यान करे, उसे प्राप्ति हो, दिखाई-सुनाई पड़े, अनुभव अनुभूति हो और मालिक कि दया कृपा जो भी उसको मिले, वो बांध करके ले जाए | उसमे कोई रोक-टोक की बात नहीं है | न कोई रोकने वाला है, न कोई टोकने वाला है | जो तुम्हारे हिस्से का है, तुम अपने हिस्से का सामान ले जाओ |

सतगुरु नाम भजन सत्संगा, होए विवेक आन्तरिक गंगा ||

गुरु महाराज कि चर्चा करोगे, गुरु महाराज का गुणगान करोगे, गुरु महाराज के बारे में बात करोगे, गुरु महाराज कि दया निधि कि बात करोगे तो आठोयाम अमृत गंगा सत्संग कि सत्संगमय सूत्र, ब्रह्म सूत्र गंगा बह रही है | उसमे से शब्द आते रहेंगे, सत्संग कि धार निकलती रहेगी, आप सबको मिलती रहेगी | आप सब उसको पढ़ पढ़ करके, आप सब छक छक पी करके आगे को बढ़ते रहोगे, मालिक में मन लगते रहोगे तो मालिक दया मेंहर करते रहेंगे | दयालु दाता का काम हीं है दया बरसाना | दयालु दाता का काम हीं है सबको एक साथ लगाना, एक धागे में पिरोना और एक साथ ले चलना | यही कहा था, पर अब तो जो है परीक्षा कि घड़ी है, कौन पास होता है और कौन फ़ैल, ये तो मालिक और वक्त हीं बताएगा | तो इसलिए सब लोग सावधान रहो और सुमिरन ध्यान भजन में लगे रहो | जो भी बन पटे, जिस तरह हो सके करते रहो | कोई जरुरी नहीं कि दस घण्टे बैठ जाओ, पर दस मिनट तो बैठो ही | और एक घण्टे का समय नियुक्त कीया है गुरु महाराज ने तो किसी तरह नाम भजन करके सतगुरु जयगुरुदेवजयगुरुदेव बोल करके एक घंटा पास तो करो | दिखाई सुनाई पड़े अथवा ना पड़े, फिर भी उसको पास करो | गुरु के हिसाब में जोड़ा जाएगा | जितनी देर तुम सत्संग में बैठते हो, सुमिरन ध्यान भजन करते हो उतनी देर मालिक में जोड़ा जाता है | मालिक कि दया मेहर मिलती है | मालिक के उस प्रभु के भजन में जोड़ा जाता है |

प्रभु भजन एक सच्चा कामा, सतगुरु मेंहर से रीझें रामा ||

ये सच्चा काम सतगुर कि दया मेहर से होता है | इससे प्रभु राम भी रीझ जातें हैं और सारी दया मेहर बरस जाती है | तो इससे सारा काम हो जाता है, बहुत बड़ी दया मेंहर बरसती है, तो इससे प्रभु रीझ जाते हैं, बड़े-बड़े देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं | जो आप पर दया मेंहर कर देते हैं, आपको बहुत कुछ देते हैं, आपका कल्याण करते हैं और सतगुरु साथ में रहते हैं महा कल्याण हो जाता है | तो प्रभु में मन लगाओगे, सतगुरु में मन लगाओगे तो पूरी कि पूरी दया मेंहर आप पर होगी |

मन चित्त लागे सतगुरु चरणा,बन्दौ नाम भजन अनुसरणा||

ये मन और चित्त, बुद्धि विवेक को गुर के चरणो में लगा देने के बाद, आप उसकी बन्दना करो और पाँचोधनियों कि बन्दना करो सतगुरु कि बन्दना करो | ऐसा अनुसरण करो, ऐसा काम करो जिससे सारा काम तुम्हारा बन जाय और वो धनी खुश हो जाय, तुम पर दया कि बरसात कर दें, ओत-पोत हो जाओ, चलने लगो निशाने पर और आने जाने लगो, दिखाई भी पड़ने लगे, सिनाई भी पड़ने | पूरी दया मेंहर आने लगे तो गुरु महाराज कि बात बने | गुरु महाराज से आप रोज-रोज जाओ-आओ, रोज-रोज बात करो | रोज दया मेंहर का जो है पावनप्याला आपको मिलता रहे, उसे आप पीते रहो और खुद जगो, दुनिया को जगाते रहो, अपने प्रेमी साथियों को भी जागते रहो कि मालिक की दया हो रही है | मालिक की दया बरसात हो रही है |

सतगुरु बन्दौ मन अनुसरणा, मार्ग है सबका जानो चरणा||

मालिक की दया मेंहरहुयी और सस्ते में तुमको सामान मिल गया | बड़े हीं चाव से आपको मिला, बड़े हीं भाव से आपको मिला | मालिक ने बड़ी हीं दया कृपा करके आपको दे दिया और समझा बता दिया तो आपको भी चाहिए कि जिस तरह बड़े भाव से मिला उससे बड़े आदर और सम्मान भाव के साथ रखना है | मालिक के साथ मन लगाना है, मालिक में हीं घुल मिल जाना है, मालिक के साथ हीं चले चलना है मालिक का हीं गुण गान करना है, मालिक के हीं बताये रास्ते पर चलना है | सारी विद्या मालिक की दी हुयी है तो मालिक के साथ हीं रहना है | मालिक में मन लगाना है और सतगुरु की दया मेंहर को प्राप्त करना है | प्रेमियों हर जगह से यही है कि सत्संग हर जगह सुनाया जाता है, सुमिरन ध्यान भजन के लिए क्या बताया जाता है, क्या नहीं उसको तो हम नहीं कह सकते पर सत्संग सुनाया जाता है, साथ हीं साथ सुमिरन भजन ध्यान हो और सुमिरन ध्यान भजन के अंतर्गत अनुभव हो, दिखाई और सुनाई पड़े तब तो मन लगेगा | जब दिखाई सुनाई नहीं पड़ेगा तो क्या मन लगेगा और क्या आप बैठोगे, रूखे फीके बैठे और रूखे फीके उठ गए | पर अगर तुमको किंचित मात्र तुमको दिखाई पड़ा, कुछ सुनाई पड़ा तो तुम अवश्य हीं उसमें मन लगाओगे और थोड़ा समय उसमें दोगे, ज्यादा करते करते धीरे-धीरे अभ्यास सारा काम तुम्हारा हो जाएगा और सारी बात बन जायेगी | देखो प्रेमियों, कोई भी प्रेमी इतना बड़ा साधक नहीं, कोई भी इतना बड़ा वो नहीं है, कहीं पर कोई गिर सकता है | गिरने के बाद धीरे-धीरे सम्भलता है | जिस स्थान पर था, उस स्थान से गिर गया तो धीरे-धीरे उस चोटी पर पहुचता है | बड़ी मेहनत करके पहले तो सतगुरु की दया मेंहर से अखण्डअनामा भी जा सकता है, पर अगर गिर गया तो बहुत हीं देर लगाती है उसको जाने में | तो प्रेमियों गिरने का काम मत करो, चलने का काम करो, जो गुरु महाराज का हुकुम हो उतना करो, उससे अधिक मत करो और ना कम करो, बस उतना करो जितना गुरु का हुकुम हो |

धरो मन धीर अन्तर में, मिलन साईं से होना है ||

बात बन जायेगी सब हीं, दरश सतगुरु का पाओ जब ||

धीरज धरो धीरज धर करके अपने काम को धीरे-धीरे करते रहो | मालिक दयालु हैं, तुमको दर्शन देंगे, तुमको अपने साथ लगाएंगे, तुमको ऊपर उठाएंगे तुममें दया बरसाएंगे, तुममें पूरी पावर भरेंगे, तुम्हे उदित करेंगे, मुदित करंगे, तुम्हे उठा करके बैठा देंगे | सारी रील दिखा देंगे आगे पीछे की | सबको दिखाते आये हैं, यहाँ हारी में बीमारी में हर चीज में बताते रहते हैं | इस तरह करो उस तरह करो, अगर तुम नहीं करते हो फिर भी दया करते हैं गुरु महाराज | कितने बड़े दयालु हमारे सतगुरु, ऐसा सतगुरु किसी को नहीं मिलेगा, ऐसा दयाल पुरुष किसी को भूल से नहीं मिलेगा | जिसने ऐसे गुरु के पास नहीं गए जो गए और गुरु नहीं माना, वो उनका भाग्य अभागा था | जिन्होंने अपने सतगुरु को सतगुरु मान लिया, अपने गुरु के सहारे हो गए तो सारी दया मेंहर कि बरसात हो गयी |

सतगुरु चरणन लगो सब भाई, अल्प काल तुम्हेमिलै कमाई ||

तुम पर दया मेंहर होये जाई, साधो साधोसाधो भाई ||

देखो साधना करो तुम पर दया मेंहर गुरु महाराज कि होगी और बड़ी जल्दी होगी, बहुत हीं छोटे समय में तुमको प्राप्त हो जाएगा | सतगुरु दयालु है दाता हैं, करतार हैं और अपने मालिक हैं, हर प्रकार से दया मेंहर करेंगे | हमको तुमको लग करके अपने सतगुरु में ध्यान लगा करके नाम भजन को करते रहना है, अपने गुरु में मिले रहना है, अपने गुरु महाराज से प्रार्थना करते रहना है |

सतगुरु जयगुरुदेव
पावन भजन सतगुरु नामु, सत संगत का एक हींकामु||
विरह विवेक भाव उर आवे, मैलाई सब कटी कटीजावे||
सतगुरु चरण गहो एक बारा, हो जाओ इस पार से उस पारा ||
परम दयाल गुरु कि कृपा, अन्तर्घटहोवै उजियारा ||
सतगुरु जयगुरुदेव दयालु, मालिक मेरे हैं कृपालु ||
सतगुरु चरणन मन को लाओ, मुक्ति मोक्ष परम पद पाओ ||
सतगुरु पर बलिहारी जाओ ||
सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु नामी की, कि सतगुरु पुरुष अनामी की ||
छाँव में सतगुरु के रहना, बन्दना सतगुरु नामी की ||
मेंहर की धार जो आवेगी, सूरत की प्यास बुझ जावेगी||
करो बन्दना सब नामी की, कि सतगुरु पुरुष अनामी की ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 11 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
दया निधि सतगुरु संत हमारे ||
सब जन रहो इनही के अधारे, जीव काज निज सतगुरु पधारे ||
नाम भेद के गुरु अधारे||
दया की होली इन्हों अपनायी, सबसे बड़ी दया यह भाई ||
नाम दीन्ह और भेद बताओ, चरणन में अपने लिपटायो||
अद्भुत अंतर दिखे बाजे, राग रागनी सब कुछ साजे||
नाम भजन की बात बताई, सच्चे सतगुरु प्रीतम भाई |
|
इनके शरणागत हो जाई, सगरी कट जावै मैलाई|| चंचल चितवन नाम भजन में, नाम भजन को देत लखाई||
शीश धरो सतगुरु चरनन में, सच्ची समझो है प्रभुताई||
सतगुरु जयगुरुदेव
भाग्य अपना अलौकिक बना लो सभी, ध्यान धार के भजन को तो गा लो सभी ||
नाम सच्चा है सतगुरु का प्यारा सही, देने वाला सही दाता रघुवर सही ||
कर लो अंतर भजन काम बन जायेगा, फांस फंदे चौरासी का कट जायेगा ||
तेरा जीवन अब तो सुफल हो जायेगा, सच्चा नर तन सफल तेरा हो जायेगा ||
गुरु की आज्ञा की शर पर धरो गांठ को, मन में शंका किसी भी तरह की ना हो ||
नाव तेरी उस पार हो जाएगी, सदा के लिए सूरत मुक्ति पा जाएगी ||
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु के चरणों में मन लगते रहोगे और मालिक की बताई हुई वाणी को याद करते हुए सुमिरन ध्यान भजन में मन लाते रहोगे, मालिक के वचनों को याद करोगे, सुमिरन ध्यान भजन एक मात्र तुम्हारा काम होगा तो तुम्हारा जीवन सफल हो जायेगा | खेती दुकान दफ्तर के काम करते हुए, सुबह एक घण्टे, एक घण्टे शाम निकालते हुए गुरु के चरणो में दोगे, गुरु में मन लगाओगे तो गुरु महाराज असीम दया कृपा करेंगे |


पावन संगत सतगुरु केरी, सारी सूरतें सतगुरु केरी ||
नाम की किन्ही गुरु बड़ाई, नाम हीं अंतर में उपजाई||
मारग सच्चा सतगुरु दीन्हा, नाम भजन चितवन को कीन्हा||
नाम की कँहा तक करूँ बड़ाई, नाम हीं पार देश ले जाई||
नाम नामनि सतगुरु जी की, ध्यान भजन सतगुरु के नीकी||
जन कल्याण हेतु तन धारा, सत्संग की बहे निरमल धारा ||
सतगुरु की जो करे प्रभुताई, दया मेहर देते बरसाई ||
सच्चे सतगुरु दीन दयाला, इनके शरणागत किरपाला||

हमारे संत सतगुरु सच्चे हैं इन्हीं के शरणागत होने पर तुमको पूरी की पूरी दया मेहर मिलेगी, पूरी की पूरी की दया बरसेगी, दिखाई भी पड़ेगा, सुनाई भी पड़ेगा | अंतर में चलोगे मालिक की दया बरसेगी, मालिक हर प्रकार से समरथ हैं | किसी भी प्रकार से कमी नहीं है | जब तुम गुरु महाराज को सर्वज्ञ सचर हाजिर नाजिर मानोगे तो गुरुमहाराज पूरी की पूरी दया कृपा करते हुए आपको नित प्रति दर्शन देते रहेंगे | अंतर्घट में आपसे मिलेंगे, आपसे बात होगी, सत्संग भी सुनाएंगे, आप पर दया मेहर भी होगी मालिक की पूरी की पूरी और आगे चलने की बात बताएँगे| कल सबेरा होगा कैसे होगा, क्या होगा, क्या नही होगा, सारी बातों की जानकारी आपको होगी | जब आप मन लगा के सुमिरन ध्यान भजन को करेंगे, गुरु के बताये हुए रास्ते पर चलेंगे, सतगुरु ने जिस तरह आपको लगाया, बताया, चलाया उस तरह आप चलते जाएंगे तो मालिक की पूरी की पूरी दया कृपा होती जायेगी |

प्रथम गुरु के संग सत्संगा, नाम भजन दूजे है गंगा ||

पहले पहले आप सतगुरु के साथ सत्संग करोगे, सत्संग को सुनोगे, सतगुरु सत्संग करेंगे, उसको सुनोगे, गुनोगे फिर उसके बाद में आगे नाम भजन जब तुम करोगे तो उसमेंअमृतमयी सतगुरु की दया की गंगा आपको प्राप्त हो जायेगी | उस गंगा में आप स्नान करोगे, आगे को चलोगे, तुम्हे दिखाई पड़ेगा | अद्भुत नज़ारे आएंगे, नदी, नाले, झरने, पहाड़, पर्वत, विपिन और हर प्रकार की चीजें आपको देखने को मिलेंगी | महल, अटारी, सब बाग़-बगीचे दिखाई पड़ेंगे, हर देवी देवताओ के दर्शन होंगें|

सतगुरु मेंहर होवै अति भारी, स्वर्ग बैकुण्ठ दिखावैं क्यारी ||

सतगुरु की दया मेहर जब हो जाती है तो मालिक स्वर्ग और बैकुण्ठ सब कुछ दिखाते हैं | एक एक चीजों को बतातें हैं | वहाँ पर जब आप स्वर्ग बैकुण्ठ जाते हो तो वहां के अधिपतियों से पूरी की पूरी मुलाकात बात होती है | उनकी भी दया मेहर तुम पर बरसती है | गुरु महाराज भी अंग संग होते हैं और सारी चींजेंतुम्हे दिखाई पड़ती हैं | जहाँ पर तुम सतगुरु जयगुरुदेव बोलते हो तो वो सब खुश हो जाते हैं, जाने का रास्ता दे देते हैं | बताते हैं आगे बढ़ जाओ आगे हीं सब कुछ मिलेगा | धीरे-धीरे करते-करते आगे तुम बढ़ते रहते हो और रास्ता मिलता चला जाता है | स्वर्ग को देखते हो, बैकुण्ठ को देखते हो, सारी संरचनाएँ देखते हुए आगे को बढ़ते जाते हो और गुरु की दया मेहर बरसती जाती है | गुरु दयाल है कृपाल है, हर प्रकार से कृपा करते हैं |

कृपा सिंधु सतगुरु रघुनाथा, इनके संग हीं जगत बिधाता||

बड़े कृपालु बड़े दयालु सतगुरु संत सनातन अपने मालिक हैं और इन्हीं केसाथ जगत बिधाता ईश्वर प्रभु भी इन्हीं के साथ मिले हुए हैं | इनकी बातों में, इनकी कथनी में, अगर करनी करोगे तो पूरी सच्चाई और पूरा का पूरा फल तुमको मिलेगा पुरे विवेक और बुद्धि के साथ जब तुम सुनोगेइन्ही में ईश्वर को देखोगे तो ईश्वर दिखाई पड़ेगा, प्रभु दिखाई पड़ेगा, सच्चा सचर दिखाई पड़ेगा, सतगुरु दिखाई पड़ेंगे ज्ञान और विराग हो जाएगा |

ज्ञान विराग सतगुरु गहना, सच्चाई से कुछ में पहना ||

ज्ञान और विराग, वैराग्य का जो रास्ता गुरु महाराज ने बताया है, ब्रह्मचर्य का पालन करना अपने गृहस्थ आश्रम में रहना |उसमे बड़े हीं नियम हैं, नियम के साथ रहने पर गुरु महाराज ने बताया है कि एक महीने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तुम सुमिरन ध्यान भजन करोगे तो तुम्हें ज्ञान और वैराग्य दोनों चीज प्राप्त हो जाएगा, सारी की सारी दया कृपा तुमको मिल जाएगी, आगे को चलोगे प्रभु के दर्शन होंगे, ईश्वर के दर्शन होंगे, सबसे तुम्हारी मुलाक़ात होगी |

कुल कुलपतियों के हों दर्शन, दया मेहर सतगुरु के परछन||

पूरे धनियों के दर्शन होंगे हर प्रकार से तुम वहाँ मिलोगे साज सज्जा के साथ और आगे बढ़ोगे | तुम्हें कोई रोकेगा नहीं तुम्हारी मदद हर कोई करेगा और हर जगह पर तुम जाओगे | कोई तुम्हें रोकने वाला नहि मिलेगा | सब गुरु महाराज कि दया मेहर से सारा का सारा काम तुम्हारा होता जाएगा| तुम धीरे धीरे आगे बढ़ते जाओगे | मालिक कि दया मेहर तुम पर बरसती जाएगी | मालिक के हर स्थान पर पहुँचोगे | जहाँ जहाँ बताया है गुरु महाराज ने सब स्थानों पर धीरे धीरे पहुँच जाओगे और हर जागे कि जानकारी हो जाएगी | तुम्हें जो चीज चाहिए, तुम्हें उस चीज कि प्राप्ति होगी | मालिक के अंग संग रहोगे अंतर में और बाहर से भी तुम्हें ज्ञान वैराग्य हो जाएगा | तो इस तरह धीरे धीरे चलते-चलते उस मालिक के सच खंड पर पहुँच जाओगे सच्चे मन से |

सत्य सत्यता सतगुरु साईं, सतगुरु मेंहरकटी ये खाई ||

सत्य का नाम मिला, सत्य की सब कुछ मिली तो कूड़ा कचरा साफ हो गया | गुरु महाराज कि मेहर से जो मैलाई थी वो कट गयी | सारी दया मेहर हो गयी, रास्ता मिल गया नाम भजन का, आप आगे जाने लगे, और आगे को जब चलाने लगे तो गुरु महाराज पूरी कि पूरी दया मेहर करने लगे कि बच्चे ने थोरी मेहनत की है, अब थोरी मेहनत हम भी कर दें, ये भी आगे बढ़ जाय| तो मालिक पूरी दया मेहर करते हैं | आगे को बढ़ाते हैं और आगे जहाँ जहाँ तुम जाते हो अद्भुत नजारे को देखते हो, अद्भुत चीजें मिलती हैं | और सबसे बड़ी सच्ची चीज है कि गुरु महाराज ने तुमको नामदान दिया तो केवल एक हीं चीज कही कि बच्चा नाम भजन करना, भजन करना | अब आप लोग कितने लोग भजन करते हो कितना करते हो | इसके बारे में तुम अच्छी तरह से समझ सकते हो | अगर सच्चाई से भजन करते तो अनुभव होता दिखाई सुनाई पड़ता | पर अब नहीं करते हो तो उसके लिए अनुभव केन्द्र “बनाया अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला” |यहाँ पर जो प्रेमी आएंगे सच्चे मन से ध्यान भजन करेंगे उन्हें अनुभव होगा दिखाई पड़ेगा, सुनाई पड़ेगा | दिखाई सुनाई पड़े तो मानो, अनुभव हो तो मानो, अनुभव न हो तो मत मानो | सच्चे मन से अगर तुम करोगे तो तुम्हें दिखाई पड़ेगा, सुनाई पड़ेगा, अनुभव भी होगा, सारी दया मेहर बरसेगी | यहाँ सेवादार हैं, सेवादार आपको अनुभव कराएंगे, बताएंगे| अनुभव तो गुरु महाराज करवाएंगे पर वो सारी बात आपको समझा देंगे कि किस तरह क्या करना है, किस तरह सुमिरन करना है , किस तरह ध्यान करना है, किस तरह भजन करना है, किस तरह बैठना है| उसी तरह आप बैठने लगोगे, उसके बाद में जब तुम्हारा सुमिरन ध्यान भजन बनने लगे, चाहे घर बैठ करके करो और मर्जी तुम जहाँ आओ जाओ, कहीं आने जाने के लिए कोई रोक टोक नहीं है | जब सुमिरन भजन ध्यान कि जरूरत समझो कि अब हमको दया मेहर कम आ रही है तो फिर एक बार बड़ेला चले आओ | वहाँ गुरु महाराज के अखण्डस्वरूप का दर्शन करो | जब-जब तुमको दया मेहर कि जरूरत पड़े, कमी महसूस हो तब-तब तुम यहाँ आ करके दर्शन करो और घर जा करके सुमिरन भजन ध्यान करो और यहाँ पर भी करो |

मेंहरिया करते सतगुरु दयाल ||
दीन दयाल सतगुरु मेंरे प्यारे, संगत रहे इनही के अधारे||
बन जाए पुरो काम ||
दया मेंहरआवै मालिक कि, जब तुम भेजोगे नाम ||
यह भाव झरोखे करो यादगारी, हे सतगुरु मेंरे श्याम ||
दीन दयाला सतगुरु कृपाला, सतगुरु मेंरे राम ||
दया मेंहर पाऊँ हे मालिक, बन जायोमेंरो काम ||
दीन दयाला सतगुरु स्वामी, हे मेंरे मालिक राम ||
शीश झुकाऊँ तुम्हरेचरनन, दया मेंहर हो आठोयाम||
सतगुरु जयगुरुदेव

कृपा सिन्धु सतगुरु रघुराई, आरती इनकी सुगम सुहाई ||
कंचन थाल कपूर कि बाती, आरती करे जो संगत साथी ||
नाम भजन उत्तम फल पावे, कटे चौरासी के फंद भी जावे||
सत्य धाम सतगुरु का पावे, सतगुरु चरणन शीश झुकावे||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 30 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
संत हमारे सबसे न्यारे, जिन्होंने दियो है नाम |
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
अंतर का सब भेद बतायो, कलमल कटे यही समझायो|
सच्चा दियो है नाम, भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
दया मेहर आवे नामी की, अंतर घट दरम्यान |
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
सतगुरु प्रीतम अपने मालिक, इन्ही चरणो में कल्याण |
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
सतगुरु संत हमारे प्यारे, रहियो सब जन इन्ही के अधारे|
नाम भजन मन ठान, भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
मिलन नामी से सच्चा हो, यही आधार पक्का हो |
बनाओ भाव अंतर में, मिलन घट घाट सच्चा हो |
गुरु की मेहर को पावो, भजन में नाम सच्चा हो |
मेहर नामी की आवे जब, दया की धार की सच्चा हो |
भजन मन ध्यान दे तू जो, गगन का काज सच्चा हो |
अगम अलौकिक पुरुष सतगुरु, अनामी नाम सच्चा हो |
झुको सतगुरु के चरनन में, दया की धार सच्चा हो |
सतगुरु जयगुरुदेव

गुरु वाणी में अमृत भरा है, जो ज़माने मिलता नहीं है |
कर लो सिजदा गुरु प्यारे सतगुरु को, भाव तुम बिन बनता नहीं है |
सतगुरु जयगुरुदेव

गुरु मालिक की असीम दया कृपा से सत्संग के जो भी समय हैं, निर्धारित होते हैं, जितना समय गुरु महाराज चाहते हैं, गुरु महाराज की मौज होती है उतने समय का सत्संग हमको तुमको आप सबको मिलता है | गुरु महाराज की वाणी जो भी उतरे, कोई भी साधक प्रेमी या सत्संग का वक्ता जब सुनाने बैठता है तो गुरु महाराज की पूरी दया कृपा उसपे लागू होती है | जब वो गुरु महाराज को सच्चा हाजिर नाजीर, हर प्रकार से सर्वज्ञ मनाता है तो सच्चे गुरु की दया की धार उस पे उतरती है और वो जो कुछ कहता है उस समय गुरु की वाणी होती है | गुरु की वाणी अकाट्य होती है, कटने वाली नहीं होती है, ना मिथ्या वाणी होती है | गुरु महाराज सबको समझाते बुझाते सबको साथ में रहने की बात बताते आगे को चलने के लिए कहते हैं कि सब लोग उस मण्डल की तरफ चलो जहां तुम्हारा घर है | अपने घर की तरफ चलो यहां कूड़े कचरे से धीरे से अपने को अलग करके, थोड़ा सा लग करके ध्यान भजन करके अपने गुरु महाराज की तरफ चलो | गुरु में ध्यान लगाओगे, गुरु में मन लगाओगे सारी दया कृपा उतरेगी और गुरु की वाणी आपको याद रह जायेगी | गुरु की वाणी बड़ी हीं परम पुनीत है और सच्ची है | गुरु के द्वारा बताया हुआ सारा काज सफल होता चला जाता है | अगर अपने मन तुम अनर्गल करते हो तो उसके जिम्मेदार आप होंगे, गुरु महाराज नहीं, गुरुमहाराज तो हर दम आदेश निर्देश करते रहते हैं, समझते बताते रहते हैं, हर प्रकार से दया कृपा रहते हैं, फिर भी प्रेमी कहते हैं हमारे ऊपर दया मेहर नहीं हुयी| तो प्रेमियों गुरु की हर प्रकार से दया मेहर है, तो आप सब गुरु के साथ रहो, गुरु में मन लगाओ और आगे की चलने की सोचो |

समरथ संत सतगुरु प्यारे, जिनने नामधरायो|

सच्चे सतगुरु, समरथ संत हमारे दाता दयाल स्वामी महाराज परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज, सतगुरु जी महाराज ने हमको तुमको सबको नाम दिया और नाम धरवा दिया, नाम हम लोगों को मिल गया | बड़ी हीं भाग्य थी, बड़ी हीं दया कृपा थी उस दाता दयाल की जिन्होंने अपने पास बुला करके हमको तुमको सबकोनामदान दिया, रास्ता बताया, भेद बताया कि अपने घर की तरफ चलो सच्चाई और कड़ाई से मेहनत करके निकल चलो अपने घर की तरफ, उस तरफ चलते चलो जिधर तुम्हारा देश है |

चलो धुरधाम का रास्ता, बड़ा सच्चा बड़ा सस्ता |

उस अधर बेल की तरफ, उस अधर सेन की तरफ, उस अपने मण्डल घर की तरफ, उस अनाम पुरुष प्रभु की तरफ चलते चलो | बड़ा ही सस्ता है और बड़ा हीं अच्छा देश है, तुम्हारा हीं घर है किसी दूसरे का नही| नामी बिराजमान हैं नामी के साथ आगे को बढ़ो और उस मालिक में मिल जाओ, उस प्रभु की गाथा गाओ, उस प्रभु की दया कृपा से सारे भेद को जानो समझो और उस मालिक में मन को लगाओ, आगे को बढ़ते चलो भजन ध्यान करते हुए | एक मात्र काम हीं स्वामी महाराज ने बताया सुमिरन-ध्यान-भजन और दूसरा शाकाहारी सदाचारी का प्रचार |सुमिरन ध्यान भजन नही करोगे तो कैसे काम बनेगा, कैसे दूसरों को बताओगे समझाओगे, कैसे अपने कर्जों को जलाओगे | उस प्रभु मालिक में मन नहीं लगाओगे तो कैसे काम बनेगा |

सुरतिया सतगुरु संग में लाओ |
नाम मनन करो अंतर मंतर, तुम जंतर को जगाओ |
सुरतिया गुरु चरणन में लाओ |

प्रेमियों अपनी सूरत जीवत्मा को जागा लो, ऊपर उठा लो, गुरु के पास चलो |उन्होने जो जंतर मंतर तुम्हें दिया है उस मंत्र से सारा काम बना लो, आगे को बढ्ने लगो, आगे को चलने लगो तो मालिक की पूरी दया कृपा मिलने लगेगी | देखो गुरु महाराज ने हमको तुमको सबकोअच्छा पाठ पढ़ाय, सत्संग सुनाया ऊँचा से ऊंचा, सब प्रकार के भेद बताये और ये बताया कि बच्चू आगे को चलते चलो | निशाना मुजसे रखो किसी दूसरे से नहीं | यदि किसी दूसरे से निशानारखोगे तो तुम्हारा निशाना चूक जाएगा | तुम्हें कुछ मिलने वाला नहीं|वो जो फसावे में रखे है तुमको फंसा करके परेशान कर देगा बरबाद कर देगा| इसलिए गुरु महाराज में मन लगाओ और निशाना मुझसे रखते हुए सारे काम करते चलो |

भेद दो बात को समझो, निशाना धुर की तरफ रखना |

दो बातें एक तो गुरु महाराज को याद करते हुए, दूसरी बात धुरधाम की तरफ, अपने घर की तरफ सतधाम की तरफ को निशाना रखोगे, मालिक में मन लगा करके उस तरफ चलते चलोगे तो पूरी की पूरी दया कृपा होगी कोई कठिनाई नहीं होगी| हर प्रकार से आप उस तरफ बढ़ने लगोगे पूरी दया मेहर गुरु महाराज की आएगी और गुरु सर्वज्ञ है तुम्हे पार जरूर कर देगा | ऐसा बिस्वास अपने अंतर में रखो कि मालिक हमें पार करेंगे उस पार ले जाएंगे |

पार उस देश जाएंगे, सतगुरु की कृपा होगी |

उस देश कि तरफ चले,जाएंगे पार हो जाएंगे, हमारे सतगुरु कि दया कृपा होगी, हमारे सतगुरु कि मेंहर होगी,उन्ही कि दया कृपा से हम जरूर पार हो जाएंगे | ऐसा दृढ़ विश्वास दृढ़ निश्चय अपने अंतर में रखो और गुरु मालिक के बताए हुए रास्ते पर आगे को धीरे धीरेधीरेधीरे बढ़ते चलो |

बढ़ो धुरधाम कि ओरि, पड़ी सतगुरु कि सच्ची डोरी |

मालिक कि डोरी पकड़ करके नाम की धीरे धीरे उस तरफ बढ़ना शुरू करो आगे को चलते चलो | किसी प्रकार कि तुमको दिक्कत परेशानी नहीं होगी | हर तरफ मंगल हीं मंगल होगा अमंगल कहीं नहीं होगा | हर प्रकार से दया मेहर बरसेगी और हर धामों को देखते हुए, सुनते हुए चलते चलो | देखो मीराबाई ने कितनी कुशलता से और कितनी परिश्रम वादी बन करके उन्होने काम किया | सारे भारत में उनका नाम है और विदेशों में भी उनका नाम है कि उन्होने गया “पायो जी मैंने पायो नाम रतन धन पायो” उसी तरह तुम्हारा भी नाम हो जाय, तुम्हारा भी काम बन जाये | हृदय अहीर काशी में रहते थे और उनके गुरु महाराज गोस्वामी जी जिन्होने उनको नामदान दिया था, काशी में उनके साथ बहुत वाद विवाद हुआ, बहुत परेशान किया लोगो ने कि ये गंगा जमुना को नही, मानता राम को नही मानता, कृष्ण को नहीं मानता | नाना प्रकार के लोग प्रलोभन लगाए नाना प्रकार कि परेशानियाँ पैदा की, जबकि गोस्वामी जी ने राम नाम हीं जगाया था और राम नाम से हींनामदान देते थे | हर प्रकार से फिर भी लोगों ने उनको बहुत परेशान किया और संत महात्माओं को परेशान करने की तो इस दुनिया की आदत है | तो प्रेमियों तुम भी साधक हो तुम भी गुरु के बन्दे हो तुम्हारेमुह भी लोग लगते होंगे, पर उनको मत देखो अपने निशाने पर लगे रहो |

चलो सतगुरु के संग में सब, भेद को छोड़ कर सारे |

अपने गुरु महाराज के संग सब लोग चलो | किसी प्रकार का भेद भाव मत रक्खो, ना किसी प्रकार की विविधा को पालो | अपने साथ आगे को बढ़ते रहो, जो सामने मिल जाय उससे श्रद्धा से भाव से सतगुरु जयगुरुदेवजयगुरुदेव बोलो | और वो जवाब दे तो दे न दे तो कोई बात नहीं | तुम्हारा कुछ घट नहीं जाएगा और वो जवाब नहीं देगा तो उसका परिणाम उसके साथ होगा | तुमसे उससे क्या लेना देना, तुमको तो अपने गुरु महाराज से लेना देना है | गुरु महाराज ने बहुत कुछ सिखाया बताया है | उस बताने के अनुसार एक आदर्श बन करके आगे की तरफ बढ़ो और चलो |

चलो धुर की सबरिया, जगवा से नाता तोड़ कर |
चलो गुरु की डगरिया, जगवा से नाता तोड़ कर |
सतगुरु तुम्हे बुलाने आये, सच्चे सतधाम से |
जल्दी जल्दी करो तैयारी, अपने गुरु के काम से |
सतगुरु में लगाओ तुम लगनिया, जगवा से नाता तोड़ कर |

सतगुरु जयगुरुदेव

गुरु के वचन को मनन तुम करो, सतगुरु नाम का भजन सब तुम करो |
सच्चे मन से गुरु में मंगन तुम चलो |

प्रेमियों देखो, जब गुरु में मन मंगन हो करके चलोगे, गुरु में मन लगाओगे और गुरु को हीं सब कुछ मान करके आगे बढ़ोगे तो तुम्हारा बड़ा कल्याण होगा, तुम्हारा बड़ा लाम बन जाएगा और तुम्हारा मन बुद्धि चित्त सब कुछ निर्मल पवित्र हो जाएगा | हर प्रकार से तुम पर दया मेहर हो जाएगी | तुममे कोई त्रुटि नहीं रह जाएगी | लोग तुमको आदर्श मानेंगे और तुम्हारी बातों को सुनेंगे और उस प्रभु को सतगुरु को सिजदा करेंगे | तो ऐसा काम करो, ऐसा आदर्श बनो, जिससे गुरु का सर ऊँचा हो, उनकी पगड़ी ऊँची हो | उनकी बात को सब कोई सुने और आपके मुख से सुनाई जाए तो अच्छी लगे, ऐसा काम करो |

प्रीत प्रतीत सतगुरु की, रीत की बात यह सच्ची |

प्रेम अपने मालिक से प्रभु से करो किसी और से नहीं | यहीं प्रेम प्रतीति है यहीं रीति है कि जिससे नाम लिया है उसी के गुण गाओ, उसी में मन लगाओ |

सतगुरु नाम भजन मन गाओ, सतगुरु में मन को लगाओ |

बारम्बार सतगुरु में मन लगाओ और सतगुरु का भजन करो | देखो प्रेमियों हम सब ने गुरु महाराज से नाम दान लिया | नाम दान लेने के वक्त वक्त गुरु महाराज ने बहुत कुछ सुनाया और समझाया | और नामदान लिया हमने तुमने मुक्ति मोक्ष के लिए कि मुक्ति मोक्ष मिलेगा, परम पद मिलेगा, पिया का घर मिलेगा | पर हमको आपको देखना है कि हमारा आपका सुमिरन ध्यान भजन कितना बनता है | किस प्रकार हम सुमिरन ध्यान भजन करते हैं, बनता है अथवा नहीं बनता है | तो जब बन रहा है तो कोई बात नहीं, अगर नहीं बनता है तो किसी साधक प्रेमी से मिल जाते हैं और पूछते हैं | लिखा हुआ है "साथ संग मोहिं देव निधि परम गुरु दातार " | किसी साधक से किसी गुरु भाई प्रेमी से पूछते "भईया हमारा भजन नहीं बन रहा है, किस तरह क्या करें", अगर उसका बनता है तो समझ करके बताएगा इस तरह इस तरह से करो तुम्हारा भी बनने लगेगा | तो प्रेमियों जब तक भजन नहीं बनेगा तो कोई काम बनने वाला नहीं | इसलिए भजन हीं सबसे जरुरी काम है, भजन बनना चाहिए | हमने तुमने नामदान लिया है भजन बनने के लिए | भजन सबसे बड़ी कुंजी है, सबसे बड़ा गुरु का मंत्र है और इस भजन को जरूर करना |

सतगुरु जयगुरुदेव
आरती सतगुरु परम दयाला, सतगुरु जय अनाम कृपाला|
सत विनय मम कर को जोरि, विनय प्रार्थना सतगुरु तोरी|
श्री चरनन में शीश झुकाऊँ, दया मेहर नामी तेरी पाऊँ |
हे सर्वज्ञ हो जगत बिधाता, हे अनाम श्रुति सबके दाता |
चरण बन्दना कोटि नमामि, कोटि कोटि तुमको परनामी|
मेरे मालिक मेरे नामी, सतगुरुजयगुरुदेवअनामी|

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन करो सब जन पाओ कल्याण |
नाम भजन होवै सच्चे स्वामी का, सतगुरु नाम अधार |
जुड़े तार से तार अलौकिक, अंतर घट संचार |
भाव से भूंखे सतगुरु प्यारे, भाव करो तैयार |
भाव झरोखे रीझैं प्रितम, नाव न फंसे मजधार |
नाम नामनी मोरे साईं की, कर देंवै उद्धार
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
सच्चे सतगुरु अपने समरथ, सच्चा स्वामी का नाम |
नाम भजन में लगो प्रेमियों, हो जावे कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव

ध्यान मन गुरु चरणन में, ज्ञान की गंगा आएगी |

अगर आप सब लोग ध्यान गुरु महाराज के चरणो में दोगे, गुरू महाराज से मन लगाओगे, गुरु महाराज को हीं सब कुछ मानगो और अंतर के तार को जोड़ोगे, गुरु महाराज से अरदास करोगे की हे मालिक हमारी भी दिव्य दृष्टि खुल जाय, हमे भी दिखाई सुनाई दे, हमे भी अनुभव हो तो उसके लिए आप यत्न करोगे, मालिक से प्रार्थना करोगे, दो बून्द आंसू के गिराओगे और मालिक से भाव से लग कर के प्रार्थना करोगे तो पूरी ज्ञान की गंगा आपके अंतर में उतर आएगी | मालिक की पूरी की पूरी दया कृपा होगी, हर प्रकार से जागृत हो जाओगे आगे को चलने लगोगे |

उधर देश सच्चा साईं का, मिलन होवे संत सार |

उस तरफ जब चलोगे तो गुरु महाराज की बैठक मिलेगी | बैठक पर गुरु महाराज की बैठक है, गुरु महाराज वही रहते हैं | आप को सत्संग सुनने को मिलेगा | संत का सार भेद भी जानने को मिलेगा | गुरु की पूरी की पूरी दया कृपा होगी | आप निर्मल पवित्र हो जाओगे, गुरु की चर्चा करोगे, गुरु का सत्संग सुनोगे | फटकशिला पर गुरु महाराज की बैठक है | उधर अंतर में जब तुम जाओगे तो सब कुछ देखोगे और सुनोगे, आओगे-जाओगे और मालिक की दया कृपा रहेगी |

कृपा सिंधु सतगुरु जी नामी, नाव चलायी उस पार |

दया मेहर के सागर कृपा सिंधु रघुनाथ सतगुरु प्रितम ने अपने नाव में धक्का लगाया, उस नाव को उस पार में ले जा करके खड़ा कर दिया | जहाँ सब सूरतें खड़ी है, हर प्रकार से हर्षित हो रही हैं, प्रफुल्लित हो रही हैं | तुम भी पुलकित प्रफुल्लित होवोगे, तुम भी हर्षित हो जाओगे, तुम गुरु के चमत्कार को देखोगे | गुरु महारज की दया कृपा आपको मिलेगी, पर दया कृपा आपको तभी मिलेगी जब सच्चे मन से गुरु की साधना करोगे, गुरु की आराधना करोगे गुरु की चरण बन्दना करोगे, गुर में मन लगाओगे, गुरु चरणो में रत हो जाओगे और गुरु को ही सब कुछ मानोगे, गुरु को हीं सर्वप्रथम सब कुछ अर्पण करोगे और गुरू से हीं नेह तुम्हारी लगी रहेगी तो तुमको सब कुछ मिलता रहेगा |

मिलै तुम्हे सच्चा शब्द आवाज || अधर बेल की अधर सेन से, हो शब्दन बरसात ||

उधर ऊँचे ऊँचे ब्रम्हाण्डो से उधर के मण्डलों से तुमको आवाज आएगी | तुम्हे सुनाई पड़ेगा, अद्भुत बाजे बजेंगे, तुम्हारा मन मन्त्र मुग्ध हो जायेगा, सूरत जीवात्मा जाग जाएगी | ब्रह्माण्ड से जब तुमको आवाज सुनाई पड़ेगा उधर गुरु महाराज आवाज देंगे, तुम्हे बुलाएँगे, अपने पास बैठाएंगे, हर प्रकार के शब्दों को आपको सुनाएंगे | आपकी जीवात्मा सूरत उसको सुन करके बड़ा हीं मंगन होगी ||

मगन मन गावे सतगुरु नाम || मेहर कियो मेरे सतगुरु साईं, पायो शब्द का नाम| |

सूरत जीवात्मा वहाँ पर झूम झूम कर के नाचती है और अपने गुरु महाराज की चरण बन्दना करती है, सिजदा करती है, शुकराना अदा करती है | गुरु महाराज से कहै है आपने जिस प्रकार से दया कृपा की है कोई नहीं कर सकता | आपने जिस प्रकार हमको उठाया है कोई नहीं उठा सकता | हमको जिस स्थान पर खड़ा किया है कोई नहीं ला सकता | हे प्रभु आप धन्य हो, आप हीं दाता दयाल हो, आप ही सच्चे समरथ साथी हो, आप हीं सच्चे मालिक हो, आप की मेहर हो गयी तो हम इस पार इधर आ गए ||

स्वर्ग बैकुण्ठ ब्रम्हपुरी देखा, माता आद्या का देश | प्रभु राम से मिलन हो गयो, काट गयो सारे कलेश ||

इधर गुरु महाराज की दया कृपा हो गयी तो अंतर में घाट खुल गया | घाट पर गुरु महाराज मिले, गुरु की बैठक को, गुरु के दर्शन को सूरत जीवात्मा ने, साधक प्रेमियों ने किया | तत्पश्चात प्रभु राम के दर्शन हुए, प्रभु राम के दर्शन करने के बाद पलट करके सूरत जीवात्मा देखती है प्रभु राम के देश को, स्वर्ग और बैकुण्ठ शिवपुरी और ब्रम्हपुरी आद्यामहाशक्ति के देश को, सब कुछ धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा करके जितनी इच्छा होती है हर प्रांतो को हर देशों को देखती है और हर्षित होती है और गुरु महाराज को देख करके उनके पद चुम चुम करके हर्षाती है ||

पद पंकज चूमै हर्षावे, गुरु बन्दना करती जावे ||

साधक प्रेमी सूरत जीवात्मा गुरु महाराज के चरणों को चूमती है और खूब हर्षित होती है, प्रफुल्लित होती है और गुरु महाराज को धन्यवाद देती हुयी बड़ा खुश होती है, बड़ा आनंदित होती है, बड़ा मंगलमय दृश्य होता है | ऐसा अद्भुत नजारा तो कभी देखा नहीं था, जो उसने देखा है | अपने गुरु महाराज के साथ गुरु महाराज को हर स्वरूपों में देखती है और खुश होती है और गुरु महाराज से कहती है ||

हे प्रितम सतगुरु रघुनाथा, तुमने खोलो मेरा खाता ||

कहती है सूरत जीवात्मा, हे प्रभु हम इस लायक नहीं थे, हम तो पापी नीच कीच जीव थे | हमारे पास तो कुछ भी नहीं था | हम बड़े पापी अधम नर जीव थे | आपने दया मेहर करके हमारा खाता खोला, हमको ऊपर उठाया और इस देश तक लाये, आपकी बड़ी बड़ी दया कृपा है | आपको बड़ा बड़ा धन्य, कोटि कोटि बन्दना है, कोटि कोटि प्रणाम है| आपको सब कुछ आप पर न्योछावर है | हे प्रभु दयाल, आपने कितनी बड़ी दया मेहर कर दी और आपने किस तरह से हमको ऊपर उठा दिया, इसके बारे में तो कभी सोचा हीं नहीं था की हमारे साथ भी ऐसा होगा | हमे भी अद्भुत दृश्य दिखेंगे, हमे भी प्रभु के दर्शन होंगे, हमे भी रघुनाथ के दर्शन होंगे | ऐसा कभी नहीं नहीं सोचा था, पर आपके दया मेहर से हे प्रभु, हे सतगुरु, हमने सब कुछ देखा | आपके देश को देखा, आपके बनाये हुए संरचना को देखा, प्रभु राम के देश को देखा, अब आगे आपकी जहाँ मरजी होगी आप ले चलोगे ||

ब्रम्हपुरी की कीन्ह तैयारी, लाल देश की महिमा न्यारी ||

उधर ब्रम्हपुरी है, अण्डलोक है | गुरु महाराज उधर को सूरत जीवात्मा को ले जाते हैं | वो देश पूरा लाल है, पुरे लाल देश को देख करके खुद भी लाल हो जाती है और सूरत जीवात्मा गुरु महाराज भी लाल लाल दिखाई पड़ते है | खुद भी लाल लाल रहती है | वहाँ फटक शीला है, गुरु महाराज की बैठक है, वहाँ पर बैठती है, सत्संग को सुनती है, गुरु महाराज के वचनो को पूरा सुनती है, हर्षित होती है, देखती है, त्रिवेणी में स्नान करती है | वहाँ ओंकार प्रभु महाराज के दर्शन करती है | वहाँ पर विचरण करती है, वहाँ के मणि-मणिक्यों वाली क्यारियां, बाग़-बगीचे, पहाङ, नदी-नाले, झरने हर चीजो को देखती है और बड़ा हीं अपने आपको आनंदित महसूस करती है | अपने गुरु महाराज पर बार बार बलिहारी जाती है की धन्य हैं दाता दयाल जो ब्रम्हपुरी दिखाया और ब्रम्ह का पद दिलाया | ब्रम्ह की ताकत जो सूरत जीवात्मा में आई पर कुंजी तो गुरु महाराज के पास है | सारा का सारा खजाना तुम्हारे पास जमा रहेगा बैंक में, कुंजी ताला गुरु महाराज के पास रहेगा | कहीं तुम लूटा न दो, इधर इधर उधर न फेंक दो, गुरु महाराज धीरे धीरे सबको ऊपर उठाते चढ़ाते हुए आगे को चलते हैं ||

सतगुरु दया मेहर हुई भारी, पारब्रम्ह की कीन्ह तैयारी ||

सतगुरु की दया मेहर हो गयी | सारी सूरतों को जीवात्माओं को, साधक साधिकाओं को, साधक प्रेमियों को, जो भी सत्संगी गुरु भाई-बहन, जिनकी जीवात्माएं आने जाने लगी, उसमे बहुत से लोग आने जाने लगे तो उन आने जाने वालो को, उन सूरतो को, जीवात्माओं को, ब्रम्हपुरी की तरफ ले गए | फिर पारब्रम्ह के देश को ले जाने के लिए तैयार करवाया और पारब्रम्ह के देश में जब गुरु महाराज ले करके गए तो वहाँ मान सरोवर पर खड़ा कर दिया और कहा, सब लोग इसमें स्नान करो तो बड़ा खुश हो करके हर्षित हो करके सूरत जीवात्माएं स्नान करने लगीं | स्नान करते हीं उनके कर्म कर्जे सारे जो कुछ थे वो सब ख़त्म हो गए | सूरत जीवात्मा निर्मल पवित्र हो गयी और बड़ी बलवती हो गयी | अब गुरु महाराज के चरणों में बन्दना करती है | वहाँ पर की सूरतो से प्रेम मुहब्बत से बात करती है | वहाँ झूला झूलती है और हर सखियों से सत्संग करती है ||

सखींन साख करती सत्संगा, बरनै सतगुरु रूप अखण्डा ||

सूरत जीवात्माएं वहाँ की सूरत जीवात्माओं से कहती हैं, हे सखी, हे भाई, हे बहन, मैं तो बड़ी पापी जीव थी | मैं बड़ा पापी जीव था और गुरु महाराज की दया कृपा से, अपने संत सतगुरु की दया कृपा से, हम यहाँ आएं हैं | वहीं हमको ले करके आएं हैं | हमारे में कोई बल नहीं था, हम तो कुछ जानते नहीं थे | गुरु महाराज हीं इस चमचम चूमचूम देश में आये हैं और हमने इसको कभी देख नहीं, न सुना न समझा, पर गुरु महाराज बताया भेद तब हमको जानकारी हुई | गुरु महाराज हीं यहाँ ले करके आये और इस सर सरोवर में स्नान कराया, हमारे कर्जों को मुक्त कराया | अब हम बिलकुल सफ़ेद फक्क हो गए हैं, एकदम निर्मल पवित्र | अब गुरु महाराज ही जहा चाहेंगे वहां ले जायेंगे और गुरु महारज के साथ हीं रहेंगे और यहाँ के प्रभु राम के दर्शन करंगे | मालिक की जब मेहर होगी तो सारा काम हमारा बनता चला जायेगा और मालिक ने हीं सारा काम बनाया है | यहाँ की जो मणि मणिक्यों वाली क्यारियाँ हैं, हमने कभी नहीं देखि थी, आज पहली बार हम देख रहे हैं | ये सब गुरु की महिमा से, अपने गुरु महाराज की दया कृपा से, हम ये सब देख रहे हैं ||

परम दयाल सतगुरु प्यारे, इनकी मेहर से खेल हैं सारे ||

हमने अपने गुरु महाराज की दया कृपा से इन खेलों को देखा है और इन्ही की मेहर से ये सारा खेल है | इन्ही का बताया हुआ ये सब कुछ है | गुरु महाराज ने हीं सब कुछ बताया है | उन्होंने हीं कहा था ऐसा गियर फसाऊँगा टूट जाएगा पर छूटेगा नहीं तो गियर फास चूका है प्रेमियों, टूट भी गया है, छूटने वाला नहीं | जब तक गुरु महाराज नहीं आएंगे तब तक गियर कोई छुड़ा भी नहीं सकता | चूँकि फ़साने वाला हीं गियर को छुड़ा सकता है | गुरु महाराज ने बताया था की ऐसी लीला मौज करूँगा, ऐसी जगह चला जाऊंगा, जहाँ चाह कर भी हमें नहीं खोज पाओगे, तो प्रभु सतगुरु को सबके बस की बात नहीं, उस्ताद को कोई नहीं खोज सकता, गुरु को कोई नहीं खोज सकता | पर गुरु महाराज ने एक रास्ता बताया था कि हमसे तुमसे मिलन रोज नित्य प्रत्य होगा | वो मिलन होगा अंतरघट में, घट में घाट है प्रेमियों, घाट पर गुरु कि बैठक | जब अंतर में तुम चलोगे तो गुरु महाराज वहाँ हर चौबीसो घण्टे हाजिर नजीर हैं और चौबीसो घण्टे वहाँ मिलेंगे | जब हम-आप जीवित है तो अंतर में जो बैठे गुरु जीवित हैं कि नहीं हैं ? जब वो जीवित हैं तो उन जीवित गुरु से हम बात चित करेंगे अन्तर में और गुरु महाराज से पूछेंगे कि क्या आपकी मौज मेहर है, आप कहा हो | हे प्रभु, जल्दी करो हमको सम्हाल लो, सत्संग को सम्हाल लो, अपनी दया मेहर करो | यहाँ ग्राम बड़ेला में अखण्ड रूप से बिराजमान सतगुरु स्वामी जयगुरुदेव सतगुरु जयगुरुदेव सबको अनुभव कराते हैं, सबपर दया मेहर देते हैं, सबको अनुभव अनुभूति होती है, सबको दिखाई सुनाई पड़ता है | सारे बिस्व के लोग आ जाएँ तो सबको अनुभव हो जायेगा | कोई खाली नहीं रह जाएगा | सारी संगत कहीं भी जाती आती हो, कहीं का भी प्रेमी हो, किसी भी प्रान्त में रहता हो, जो जब चाहे जब आ सकता है | गुरु महाराज कि पूरी दया कृपा होगी उसको, दिखाई और सुनाई दोनों पड़ेगा | जैसे वो दर्शन करेगा और यहाँ गुरु महाराज का भजन करेगा, पौ फ़ौरन उस पे पूरी की पूरी की दया हो जाएगी | उसकी आँख और कान को खोल देंगे | उसे दिखाई और सुनाई पड़ेगा, पूरा का पूरा अनुभव होगा | ऐसा कुछ नहीं है कि अनुभव ना हो | जब तुम्हारा मन सच्चा है और सच्चे मन से तुम चाहोगे की सुमिरन ध्यान भजन करेंगे, हमें भी अनुभव अनुभूति हो, हमें दिखाई सुनाई पड़े तो आपको पूरा का पूरा पसारा दिखेगा और पूरा का पूरा अद्भुत नजारा अंतर में दिखेगा | स्वर्ग-बैकुंठ, प्रभु राम, ब्रम्ह, पारब्रम्ह, महाकाल पुरुष, सतधाम सब कुछ दिखाई पड़ेगा | सब पर दया गुरु महाराज की होगी, हर प्रकार से दया की बरसात होगी | पर अगर तुम समझते हो की हमारा काम ऐसे में बन जाएगा, बाहर से हीं करते रहेंगे तो बाहर से कोई काम न किसी का बना है ना आपका बनने वाला है | भजन तो अंतर का करना हीं पड़ेगा, भजन किये बिना कोई काम नहीं बनेगा, न किसी का बना है न आपका बन सकता है | तो प्रेमियों सब लोग लग करके सुमिरन ध्यान भजन करो ||

भजन करो सब जन होए उद्धार ||
नाम दियो सच्चे साईं ने, नाम पकड़ चलियो उस पार | |
भजन करो प्रेमियों होवै उद्धार ||
नाम भजन सच्चे साईं का, समरथ करेंगे पार ||
भजन करो प्रेमीयों होवै उद्धार ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २५/१२/२०१५ समय: ७:५४ am

गुरूमालिक ने गुरूबहन बिन्दू सिंह को अन्तर में सभी प्रेमियों के लिये संदेश लिखवाया
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरू अपनी सेवा से नही संगत की सेवा से खुश होता है| सतसंगत ही सतगुरू है| प्रचार करो प्रचार, प्रचार में तेजी लाओ, मेरे पास वक्त बहुत गिनती का है| सबको बार- बार, दो बार, दस बार अनगिनत बार बुलावा भेजकर सत दरबार में हाजीर कराओ| जिसके पास भाड़े के पैसे न हो मदद करो सब लिखा जा रहा है|
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All together talk to me, u can go new bounce no money
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पल पल का, वो इंसाफ करता बड़ा न्यायी है| न्याय की सच्ची अदालत पर सबको आना है| इधर उधर भागम भागी करने का वक्त गुजर गया| अब तो वो होगा जो सबको हिला के रख देगा| संदेश पर संदेश दे रहा हुँ, दिलवा रहा हुँ| अब भी न चेते तो जाने भाग्य तुम्हारा| प्रचार प्रसार करते रहो जो भी जिसके पास सुविधा हो मेरे मन्दिर अखण्ड मन्दिर का प्रचार करे कराये| जीवों की सेवा करने के लिये ही साथ लाया हुँ सच्ची सेवकायी करो कराओ|मेरा जीवन बीते सारा अखण्ड अर्न्तघट मन्दिर का प्रचार करते करते| सुहानी सतयुगी घड़ी निकट आ गयी है| अनुभव करो कराओ| अनुभव बाटने की चीज है| अनुग्रह बढ़ता ही जायेगा|

सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरू बहन : बिन्दू सिंह
सोहावल , फैजाबाद

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 10 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु नाम भजन में लागो, बन जावे सब काज |
लोक परलोक को गरु संवारे, ना होये कोई अकाज |
काज सफल सगरी हो जावें, अंतर मन सतगुरु राज |
दया मेहर अंतर की बरसे, बाजे सारे साज |
मधुर-मधुर जब शब्द सुनावे, रंगत सतगुरु हाथ |
नाम भजन सच्चा मोती है, भजन में ना करो अकाज |
नाम भजन सच्चे सतगुरु का, सच्चा सुख मन राज |
सतगुरु जयगुरुदेव |
ध्यान दे बात को सुन लो, अधर से शब्द आता है |
घाट पर बैठ कर देखो, तुझे सतगुरु बुलाता है |
नाम की सिख दो बातें, ध्यान और भजन में लगाना |
नाम की पायेगा पूंजी, सदा तो तुम्हे रचे रहना |
गुरु का योग सच्चा है, मेहर की खान सतगुरु हैं |
ध्यान दे भजन मन में ला, काम बन जायेगा तेरा |
यही सच्ची प्रीत तेरी, मिलन सतगुरु से होना है |
ध्यान जब देगा तू बच्चा, भजन बन जाये अंतर में |
भजन ही सार मुल्ला है, पार तुझको ले जायेगा |
सतगुरु जयगुरुदेव
नैन नैन में बात करो सब, बैन भजन मन लाओ |
सैन ध्यान की चाभी सच्ची, जिसमे लगन लगाओ |
पार देश एक अद्भुत बंगला, पहुँचो वहां तुम जाओ |
सतगुरु दया विराजे तुमपर, नाम भजन को गाओ |
सतगुरु जयगुरुदेव
सुमिरते चलो तुम सुमिरते चलो, सतगुरु नाम तुम सब सुमिरते चलो |
दुनिया के तुम झकोलो में जाना नही, छोड़ अपना ना देना खजाना कही |
नाम मन को भजन में लगा दे जरा , पार उस पार नैया हो तेरी सदा |
सतगुरु हैं विराजते उसी नांव पर, पार उसे वही ले जायेंगे |
तेरा नर तन सफल जब हो जायेगा, जीवात्मा चैन तेरी पा जायेगी |
दुःख और सुखदा सभी सतगुरु हाथ में, है दया और मेहर सतगुरु साथ में |
नाम का तु वचना अमृत प्याला पिये |
ध्यान धर कर सतगुरु तुम सदा, देश अपने चलन की तैयारी करे |
सतगुरु की सुधि तुमको लग जायेगी, नाम की भी निधि तुम्हे मिल जायेगी
| काम सच्चा सही सतगुरु का यही, कर ले अंतर मन में भजन जरा |
मान दे बात सतगुरु सच्ची सही, काम तेरा भी जल्दी से बन जायेगा |
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरुमहाराज ने हमसब प्रेमियों को बहुत कुछ चेताया बताया समझाया, उठना बैठना सिखाया और बोलने कि तार्विज दी | गुरुमहाराज ने सारी बाते बताई सुमिरन भजन ध्यान का रास्ता बताया और संसार में प्रचार प्रसार की भी व्यस्था बनाई और तुम्हारी पहचान गुरुमहाराज ने बनाई तुम्हारी पहचान गुरु से है, ना की गुरु की पहचान तुमसे है | रास्ते में जब तुम निकलते हो तो तुमसे लोग “जयगुरुदेव” “सतगुरु जयगुरुदेव” कहते हैं प्रेम से “सतगुरु जयगुरुदेव” वो भी बोलते हैं आप भी बोलते हैं प्रभु परमात्मा का नाम वो भी लेते हैं आप भी लेते हो और कहते हैं भाई ये बाबा जी के वन्दे हैं सच्चे वन्दे हैं | ऐसा कोई भी काम मत करो जिससे गुरु को हमारे, तुम्हारे गुरु को आंच आये गुरु का काम ऐसा करो जिससे तुम्हे देखकर के दुनियां बदल जाये और सतगुरु का नाम लें गुरुमहाराज का नाम लें की भाई बाबाजी के शिष्य जिस तरह हैं हम भी उसी तरह रहेंगे और हम भी सदाचारी शाकाहारी बनेंगे गुरुमहाराज के चरणों में हम भी मन लगायेंगे | जो लोग कहते हैं बाबाजी की दया नही बरसती वो गलत कह रहे हैं | सच्चे मन से “सतगुरु जयगुरुदेव” बोलने वाले को पूरा का पूरा अनुभव होता है उसे गुरुमहाराज अपने दर्शन देते हैं दिखाई भी पड़ता है सुनाई भी पड़ता है अरे नामदान तो गुरुमहाराज ने दिया ही है आगे बहुत बड़ा नामदान मिलेगा | एक अनामा का एक नाम, एक ही नामदान होगा पूरा का पूरा सच्चा नाम सच्चे नाम से जैसे वो सुमिरन करेगा उसको परमात्मा प्रभु के दर्शन होंगे सतगुरु के दर्शन होंगे दिव्य अलौकिक चीजें दिखाई पड़ेगी सुनाई पड़ेगी | उसको कौन रोक सकता है गुरुमहाराज की जब दया कृपा है तो उनके दया कृपा के आगे कोई नही टिक सकता | गुरु से बड़ा कोई होता नही जिस पर गुरु की दया उस पर प्रभु की दया राम की दया, कृष्ण की दया सबकी दया होती है ब्रह्मा बिष्णु महेश की दया सभी देवी देवतओं की दया, इस दया में आप भी शामिल हो जाओ | लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करते रहो गुरुमहाराज को याद करते जाओ यादगारी सुमिरन भजन ध्यान गुरु की |
यादगारी करो सतगुरु की सदा, काम बिगड़े तुम्हारे जो बन जायेंगे |
संसार में तुम चलोगे जिस भी तरह, नाम पहचान तेरी भी बन जायेगी |
मान सम्मान सबकुछ मिलेगा तुम्हे, जरा अंतर भजन ध्यान देना जरा |
दुनिया के झकोले जो आते यहां, सतगुरु की मेहर से हट जायेंगे |
होगी पूरी दया मालिक जाने जहां, काम तेरा सफल हो जायेगा |
नाम सच्चा भजन कर ले सतगुरु की, मान कर बात गुरु की यही काम कर |
तेरा नर तन भी सुन लो सुधर जायेगा, काम बिगड़े हैं जितने वो बन जायेगे |
मन लगाते रहो सतगुरु सदा, सत्य की मेहर भी तुम पर हो जायेगी |
अंतर्घट का खुले तेरे ताल्ला सदा, काम बिगड़े जो तेरे सारे बन जायेंगे |
शिव और शम्भु अराध्य नाग नाथ जी, काम सारे सफल तेरे करवायेंगे |
जो दिया है वचन उन्होंने, वो अपना वचन तो निभायेंगे |
मान बात सतगुरु की तू लग जा जरा, काम अद्भुत अलौकिक भी हो जायेंगे |
इस धरा पर तेरी जय भी हो जायेगी, नाम सतगुरु का सदा अमर हो जायेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 09 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भाव भरोसे सतगुरु मिलेंगे, रूखे फीके मन काम |
लगन लगाओ गुरुचरनन में, बन जाये सारे काम |
सच्ची मालिक जगत विधाता, मिलन होये आराम |
भाव सहित नित घाट में बैठो, दरश परश सतगुरु राम |
नैन झरोखे देखो सतगुरु, लेकर हरदम ध्यान |
भाव बहुत ही है ये जरुरी, विना इसके नही काम |
भाव लगाओ सतगुरु चरनन में, होयेगा कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
देखो तुम अंतर सतगुरु को, मेहर सच्ची अनामी है |
खुलेंगे नैन जब तेरे, दृश्य अद्भुत लखानी है |
बड़े ही भाव संग में, मिलना सच्चा हो नामी का |
ध्यान दो तुम गुरुचरनन, पार भवपार स्वामी हो |
घाट पर बैठे सतगुरु हैं, मिलन में तो असानी हो |
चाह और भाव से भजना, नही मन की लगानी हो |
लगेगा मन तभी तेरा, भाव की जब खानी हो |
सतगुरु जयगुरुदेव
भजन मन सतगुरु भज सतनाम |
नाम भजन करो सतगुरु जी का, अंतर चितवन ध्यान |
वेग अलौकिक आवे साईं कि, अंतर धारियों ध्यान |
सतगुरु प्रीतम सुरत में रीझे, भाव झरोखे होये ध्यान |
मेहर से उनके ज्ञान जो उपजे, जगत बिधि को कल्याण |
सतगुरु प्यारे प्रीतम सांवरिया, सच्ची मीठी छांव |
नाम भजन में मन को लाओ, तब सच्चा कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
कल्याण हमारा तुम्हारा तभी होगा जब गुरु के चरणों में मन होगा गुरु से प्रेम प्रतीत लगाओगे गुरु का नाम भजन करोगे गुरु की महिमा सुनाओगे खुद सुनोगे और दुसरे को सुनाओगे मालिक के रास्ते पर चलोगे कोई निंदा आलोचना कपट गद्दारी नही करोगे तो मालिक की पूरी दया कृपा अंतर में बरसेगी | यह देश है मिलौनी का, यहाँ छीन छीन पग पग पर मन भटकता है लालसा करता है और हरकते करता है गिरी से गिरी हरकते करता रहता है तो मन को बस में करो मन को रोको और मालिक से प्रार्थना करते रहो की हम कहीं कूड़े कचड़े में न गिरें कहीं गढ्ढे में न गिर जायें मालिक हमेशा दयालू हैं दया के सागर हैं दया करते रहते हैं हमसब पापी जिव हैं जो इस बात को नही समझ पाते | मालिक में मन लगाते चलो और सदा गुनगुनाते चलो गुरु की गीत को गाते चलो गुरु की वाणी को याद करते चलो गुरु में मन लगाओगे तो सच्चा फल आपको प्राप्त होगा गुरु की वाणी को याद रखोगे तो तुम्हारा काम बनता चला जायेगा तुमसे कोई गलती नही होगी अगर तुम गुरु की वाणी को भूल गये तो तुमसे गलती होगी गलती में अपराध बनेगा अपराध बनेगा तो इसकी सजा मिलेगी इसलिए प्रेमियों हमेशा अपने मालिक के वचनों को याद रखो और ये सोचते रहो गुरु अंग संग है २४ घंटे हर प्रकार से दया मेहर कर रहे हैं | हमारे नामी हमारे गुरु सतगुरु हमारे साथ हैं सच्चे प्रीतम हैं सच्चे साईं हैं वो हमारा साथ कभी नही छोड़ते, हम और वो एक अंग संग हैं | जबसे नामदान मिला तब से हमारी संभाल पूरी की पूरी गुरुमहाराज के हाथ में है गुरुमहाराज हमारी पूरी संभाल कर रहे हैं अपने गुरु को याद करते रहें अपने गुरु को गुनगुनाते रहें अपने गुरु को मनाते रहें अपने गुरु में लय लगाते रहें और गुरु का भजन करते रहें आगे आगे चलते जायें और मालिक का नाम भजते जायें मालिक के वचन को याद करते जायें मालिक में मन लगाते रहें मालिक की बात को याद करते रहें मालिक की वाणी को सर माथे रखते हुये अपना भजन सुमिरन ध्यान का कार्य करते रहें और मालिक के वचनों को उलट पलट कर के पत्रिकाओं को देखते रहें | सत्संग मालिक का अद्भुत अलौकिक अनोखा है उसको पढ़ते रहें और सुनते समझते रहें जहाँ पर सत्संग हो, मालिक का गुरु का सत्संग सुनाई जाये वातावरण बना कर के गुरुमहाराज का चर्चा हो गुरु महाराज का ध्यान भजन हो गुरुमहाराज का नाम गुंजायमान हो वहां पर सत्संग सुन लेना चाहिये गरुमहाराज में मन लगा लेना चाहिये और सदा गुरुमहाराज से प्रेम प्रतीत करते रहना चाहिये |
प्रेम सतगुरु से सच्चा हो, यही अनमोल मोती है |
अंतर मन ध्यान सतगुरु का, जले तन मन में ज्योति है |
गुरु कृपा मिले हरदम, यही तो सच्ची मोती है |
लगन और ध्यान सतगुरु का, सांवरियां प्रीतम प्यारे का |
भजन मन ध्यान रखकर के, गुरु में मन लगाने का |
गीत जब भी कोई गाओ, गुरु चरणों की बातें हों |
याद सतगुरु मेरे साईं, यहीं पर सच्ची राते हों |
करो चंचल जरा चितवन, दरश सतगुरु का अंतर हो |
ध्यान देकर जरा देखो, बात अंतर में सतगुरु हो |
सतगुरु जयगुरुदेव सच्चे मालिक सच्चे सतगुरु से मिलने के लिये हमे भावपूर्ण प्रार्थनायें बोलनी हैं दो बूंद आँसू के गिराने हैं गुरुमहाराज से प्रार्थना करनी है हे मालिक हे दाता दयाल हम पर दया करो हे प्रभु हम पर दया करो हम पापी जिव तुम्हारे हैं हमारा कल्याण करो हमारा उध्दार करो दया करो की हमारा स्वास्थ निरोगी और स्वस्थ रहे और हमारा मन तुम्हारे सुमिरन भजन ध्यान में लगे | सांसे निकल रही है जब जब आपकी याद आये तब तब पूरा मन भाव विभोर हो जाये आपके श्रीचरणों में हमारा मन लग जाये | हे मालिक हमसे मिनट २ मिनट ५ मिनट जो भी आपकी अराधना प्रार्थना हो सच्चे मन से हो आपकी यादगारी हो आपसे मिलन हो आपका दीदार हो आपका दर्शन हो हे मालिक आप हममे मिल जायें और हम आपमें मिल जायें हम पर पूरी मेहर हो हम कहीं जगत में भटके ना हम आपके साथ चलें |
मालिक ने जब नामदान दिया तब हमको तुमको सबको समझाया की देखो ये अमोलक रतन धन हम आपको दे रहे हैं इससे तुम कमाई करना सुमिरन भजन ध्यान कर के कमा कर के लेकर आना पर हमने आपने कुछ सच्चाई से किया नही कड़ाई से किया नही यही समझते थे गुरुमहाराज के पास जायेंगे चरण छू लेंगे बस वही सब कुछ दे देंगे पर गुरुमहाराज ने मेहनत करने के लिए कहा की कुछ कमा कर के ले आना पर हमलोगों ने नाम भजन नही किया अब भी मौका है गुरुमहाराज का आदेश है की लगकर के सुमिरन भजन ध्यान करो जब बैठकर के “सतगुरु जयगुरुदेव” बोलोगे मैं आत्मबोध आत्मज्ञान कराऊंगा अंतर में तुमको दिखाई सुनाई पड़ेगा तुम अब भी चेत जाओ और लगकर के ध्यान साधना करो और सतगुरु को याद करो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 03 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
पावन भजन नाम सतगुरु का , सच्ची गुड़ की खान |
सतगुरु दया विराजे तुम पर , खुल जाये घट के आँख |
भजो मन सतगुरु जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव अनामी |
नामी प्रीतम मेरे स्वामी , नाम भजन कल्याण |
भजो मन सतगुरु जी को नाम , नाम भजन ये सनातन रास्ता |
दूजो न काम , भजो मन सतगुरु जी का नाम |
नाम दियो और भेद बतायो , मिले पुरुष सतनाम |
भजो मन सतगुरु जी को नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव |
मालिक की अशीम दया अनुकम्पा से हम सभी को मालिक दे वचन सुनने को मिलते हैं और मालिक के सत्संग में बड़ी ही दया कृपा गुरु की होती है , तब एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनियाद , गोस्वामी संगत साध की कटे कोटि अपराध , तो ये जो संगत है तो जो ये सत्संग है मिल जाता है तो ये बड़ी ही गुरु महाराज की दया कृपा है और उन्ही की दया मेहर से ये चीजे मिलती हैं , अगर हम आप सतगुरु के साथ नही होते गुरु के साथ नही होते, गुरु से नामदान नही मिला होता , तो हम भी सांसारिक काम में लगे होते और भजन सत्संग से बड़ी दूर रहते |

सत्संग सतगुरु संत गोसाई , दया मेहर किन्ही अपनाई |

सत्संग जो हमको आप को मिलता हैं ओ सतगुरु गोसाई की दया कृपा से मिलता है | उन्होंने बहुत बड़ी दया कर दिया तो हमको आप को अपना लिया | और गुरु महराज की दया कृपा से ही हम सबको सत्संग मिलता हैं | सत्संग सतगुरु की दया मेहर से मिला, सतगुरु ने बड़ी ही दया कृपा करके एक एक चीजे जो को समझाया और बुझाया |

सत्य गोसाई सतगुरु नामी , सत्य वचन अंतर में जानी |

सतगुरु सत्य के गोसाई है सत्य के गुरुदेव है , सत्य को बताने वाले , सतपथ पर चलने वाले सतगुरु हैं उनकी दया मेहर से हमको सबकुछ मिला है उन्ही की दया मेहर से हमने सारे भेद को जाना और समझा है |

सतगुरु मेहर हुई यह भारी , अंतर बाहर सोच विचारी |

सतगुरु की बहुत बड़ी दया कृपा हो गई उन्होंने हमको लगा लिया और हमने आपने सोच विचार करते हुए आगे पीछे आज करेंगे कल करेंगे ये करेंगे ओ करेंगे ये करेंगे ओ करेंगे इसी में दिन गुजारते चले गए और गुरु महाराज ने अपनी दया मेहर करके जोड़ दिया |

दया कीन्ह घट माहि सतगुरु , घट के फाटक खोले |

दया मेहर कर दिया सतगुरु ने और घट में जो घाट है उसका फाटक खोल दिया | जब फाटक खुल गया तो गुरु महाराज के दर्शन होने लगे |

खोलेव् नयन पसारे को देखो , सकल पसरा सब तुम पेखो |

गुरु महाराज ने दया मेहर करके घट का फाटक खोल दिया और बोले बच्चू अंतर अब चले चलो धीरे धीरे अंतर अब सबकुछ देखो और अंतर में जो कुछ मिल रहा है उसको जानो और समझो और मालिक की विशेष दया होती चली गई और सुरत जीवात्मा धीरे धीरे आगे बढती चली गई |

प्रथम भयो दर्शन गुरु जी का , ता सतगुरु प्रभु राम लखाई |

सब से पहले अपने सतगुरु अपने गुरु महाराज का दर्शन हुआ , दर्शन करके जीवात्मा बड़ी खुश हुई तब गुरु महाराज ने प्रभु राम को लखाया और उस तरफ जाने का भेद और रास्ता बताया और प्रभु राम के दर्शन किये |

धन्य हुई वह सूरत वेचारी , चढ़कर पहुची महल अटारी |

वह अपने को धन्यभाग, वह अपने को बड़ा सफल मानती हैं और अपने गुरु महाराज को कोटि कोटि बार धन्यवाद् देती है कि हे मालिक आपने दया कर दिया तो हमें पहले धाम के दर्शन हो गये और आप के दर्शन हो गए तो गुरु महाराज दया करते है और वहां बड़े बड़े महल और बंगले और अटारी हैं उनको सुरत ने देखा और मालिक से प्रार्थना विनती करती रही की हे मालिक आप की दया मेहर से हमने सब कुछ देखा है |

दर्शन भयो भाई प्रफुलित , मन्त्रमुग्ध होय जहा सुसलित |

सतगुरु की दया मेहर से सुरत बड़ी खुश हो गई बड़ी प्रफुलित हो गई और गुरु महाराज के साथ हो गई अंतर में देखने लगी की कितना अद्भुद है कितनी सुगंधी है कितना अच्छा हैं | और वहां का वातावरण बहुत की अच्छा है येसा देखकर ये सूरत बहुत ही प्रफुलित हो जाती है की मालिक ने दया कर के मेरे घट का घाट खोल दिया |

घट घट वासी सतगुरु अभिनासी , खोलेव घट का केवड़ |

दया मेहर आई सतगुरु की , पहुचेव उनके द्वार |
घट पार सब महल अटारी , देखेव उनके द्वार |
अद्भुद सज्जा है वह पारा , अरे लखानी धाम |
सतगुरु दया मेहर से पायों , प्रभु दर्शन करी राम |
दिव्या अलौकि चमके ज्योति ,पुष्पकमल हैं ज्यां राम |
नाम नयन तर सतगुरु वाणीं , सत के हैं सतधाम |
सतगुरु प्यारे निकोलागे , खोले द्वार कवर |
सतगुरु चरनन शीश झुकयों , पायों हैं निज धाम |
सतगुरु जयगुरुदेव |
सतगुरु की दया मेहर से सुरत को बहुत कुछ मिलता हैं , उसको सारे पसारे की जानकारी होती हैं | उसको ब्रम्हा , विष्णु , गणेश , दिनेश सभी के दर्शन होते हैं , शिव पुरी, ब्रह्म पूरी , विष्णु पुरी देखती हैं तत पश्चात् अध्यामहाशाक्ति के दर्शन करती हैं , तत पश्चात् प्रभु राम के देश में जाती है , प्रभु राम के दर्शन करके प्रफुल्लित हो जाती है अपने गुरु के दर्शन करके प्रफुल्लित होती हैं | सारे प्रकार से ओ सुसजित होकर वह आगे जाने लगती है और गुरु महाराज से दया मेहर की भीख मागती रहती हैं की हे मालिक हम पर बराबर दया मेहर बनाये रखो , हम पर यदि दया मेहर नाही करोगे तो हम कैसे जायंगे , सुरत बराबर दया की भीख मांगती रहती हैं |
मांगत दया दुआ सतगुरु से , हे मालिक वही पार करो |
अब यह देसवा वेगाना लागे , अपने घर उधात |
करदो मेहरिया सतगुरु मेरे , बेड़ा मेरा पार करो |
हे सतगुरु प्रीतम मेरे दाता , मुझको तुम उधार करो |
सतगुरु मेरे हे मेरे साईं , इस घट में उस पार करो |
सुरत जीवात्मा बहुत ही विनती प्रार्थना करती हैं सतगुरु दयाल सुरत जीवात्मा को उस पार करते हैं |
और प्रेमी को साधक को जो भी सत्संगी प्रेमी हैं जिस तरह से दया मेहर की सतगुरु से दया की विनती प्रार्थना करते है और निशाना गुरु महाराज से रखते हैं तो गुरु महाराज दया करके उसको उस पार कर देते हैं |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 02 दिसंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजो मन सतगुरु जी का नाम |
दया मेहर सतगुरु की बरसी, जो पायो है नाम |
दीन दयाला सतगुरु साईं, भेद दियो और नाम |
ध्यान भजन में मन चित लाओ, पहुंचो अपने धाम |
दीन गरीबी में भजन बनत है, सतगुरु जी को नाम |
दया मेहर से मिले तुझे नर तन, जो घमण्ड यही मान |
सतगुरु प्रीतम मिले सांवरियां, नाविक सच्चा जान |
मनवा लागे गुरुचरनन में, बन जावे सब काम |
शीश धरो सतगुरु चरनन में, काहे का अभिमान |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुए समस्त प्रेमीजन, मालिक की अशीम दया कृपा आप सब पर बरस रही है आप सब लग कर के सुमिरन भजन ध्यान को करो अपने अंतर आत्मा में रोज टटोलते चलो की मुझमे क्या कमी है किस प्रकार की दिक्कत हममे आ रही है क्या परेशानी है उसको अपने परेशानी को दूर करते चलो जो भजन में अरचन डालती हो उसको निकाल कर फेकते चलो गुरुमहाराज में मन को लगाते चलो और गुनगुनाते चलो गुरु महाराज के नाम को गुरुमहाराज के वाणी को याद करते रहो, गुरुमहाराज में रत हो जाओ ध्यान भजन के लिए हीं प्रार्थना करो की हे मालिक दया करो की हमारा सुमिरन भजन ध्यान बन जाये हमारी लगन लग जाये और जब लगन लग जाये तो मालिक से विनती प्रार्थना करते हुए अपने निज घर की ओर चलो | निजधाम और निजघर बहुत दूर है यहाँ से, जब आप अंतर में साधना करोगे मालिक जब दया करेंगे तो अपने घर की तरफ चलोगे जब तक आपका मन भाव नही लगेगा नही बनेगा तब तक तुम्हारा सुमिरन भजन ध्यान नही बनेगा और धीरे धीरे आप गुरु की तरफ उन्मुख होयिये गुरु के तरफ बढ़ते चलिये गुरु से प्रेम और सौहाद्र की भिक्षा मांगते चलिये गुरुमहाराज दयालू हैं हर प्रकार से दया मेहर करते जायेंगे और आपका सुमिरन भजन ध्यान बनता चला जायेगा गुरुमहाराज ने अनेको बार हमको आपको सबको समझाया बताया तरह तरह से भेद का रास्ता दिया रामायण सुनाई और सार भेद सत्संग सुनाया हर चीज सुनाते हुये समझाते हुए बताते हुये और ये भी कहा की भजन के बिना कोई काम बनने वाला नही है तो सबलोग लग कर के भजन करो और गुरुमहाराज का ध्यान करो |
चरण मन लाओ भजन गुरु का नाम |
सतगुरु चरणन जब मन आये, भाग्य तुम्हारा तब जग जाये |
बन जाये अंतर काम |
घट में घाट घाट पर सतगुरु, बाट निहारत आठो याम |
नाम भजन में लगो प्रेमियों, भजन करो आठोयाम |
शब्द सुनावत मन चित धारो, ध्यान भजन अधार |
सैन बैन में सतगुरु पुकारो, बन जाये सब काम |
सत्य सनेही प्रीतम प्यारे, यही सतगुरु यही राम |
सतगुरु प्रीतम मिले सांवरियां, ऐसो विधि क्या काम |
सतगुरु प्रीतम प्यारे मालिक, भेद दियो और नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु में मन लगाना गुरु को याद करना गुरु से निशाना रखना हीं हमारा काम है हमको आपको जो कुछ समझाया बताया निशाने पर चलने के लिये उस निशाने पर चलते रहें गुरु का भजन करते रहें गुरु की ध्यान करते रहें और आगे की दिनों के बारे में सोचते रहें की मालिक ने बताया है कि सांसो की पूंजी हमारी घट रही है और मालिक ने बताया चेताया है की समय बड़ा नाजूक खराब आने वाला है तो उस खराब समय में भजन हीं काम करेगा तो सबलोग साधन भजन की तरफ बढो मालिक की रास्ते पे ध्यान दो और बढ़ो, की मालिक ने किस किस तरह से समझाया किस किस तरह से मुसीबतों से बचाया और किस किस मुसीबतों से आगे बचायेंगे मालिक हर मुसीबतों से बचाते हैं और हर प्रकार से रक्षा सुरक्षा गुरुमहाराज ने की है जिस तरह उन्होंने अपने बच्चे की तरह तुमको पाला है तुम भी अपने पिता की सेवा ठीक से करो मन लगा कर करो गुरु में मन लगाओ और गुरु में मन लगाने से हीं तुमको मिठ्ठा फल मिलेगा तुमको उतम साधना में प्राप्ति होगी गुरुमहाराज की विशेष मौज होगी तुम सदा गुरु के और गुरु तुम्हारे होंगे इसलिए मनवा लगाओ गुरु में...
मनवा लागे सतगुरु चरनन में |
सतगुरु सतगुरु गाओ |
आठो याम पुकारो सतगुरु, भाग कही मत जाओ |
सतगुरु दीन्ही नाम जड़ी को, इसी से मड़ी चमकाओ |
देखो चमक अलौकिक अद्भुत, उसी रंग में रंग जाओ |
ध्यान रखो अपने साईं की, कभी भूल मत जाओ |
सतगुरु नामी प्रीतम ठाकुर, श्रीचरनन में जाओ |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21 नवम्बर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
पावन निर्मल सतगुरु प्यारे , सब जन रहो सतगुरु के अधरे |
दया मेहर सतगुरु की पाओ , मन चित सतगुरु जी में लगाओ |
भाव भजन और गुरु की सेवा , मिले तुम्हे तो नाम की मेवा|
सतगुरु के तुम रहो अधरे , जानो गुरुवर के हो द्वारे |
मन चित तुममे लगाऊं गुरुवर , तुमको मालिक रिझावाऊ सतगुरु |
तुम्हरे चरनन कोटि बन्दना , नाम भजन गाऊं सतगुरु |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों मालिक के वचन अमूल्य है और हम सभी को उन बचनो पर चलना है उसकी विवेचना करते हुए , एक एक वाणी को समझते हुए , आगे को बढते रहना है | गुरु महाराज ने हमारे कितनी मेहनत से कितनी बड़ी संगत तैयार की ये कोई छोटी-मोटी बात नही हैं | हम सब को लग करके एक एक तार को जोड़ करके रखना है | इस समय संगत में हर जगह तोड़ना मरोड़ना लगा हुआ हैं | पर हम लोग एकछ्त्र बैठकर सुमिरन ध्यान और भजन करते रहे, मालिक का आदेश जिधर हो वहां सब लोग बैठे | अभी तक मालिक का आदेश यही है की अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला में जो अंतर आदेश है की अंतर में बैठकर सुमिरन ध्यान और भजन करो और जो भी प्रेमी आएगा उसे दिखाई सुनाई पड़ेगा उसका भी भजन यहाँ पर बन जायेगा | यहाँ से किसी को कहीं जाने की कोई रोक या मनाही नाही है | गुरु के आधारे गुरु के द्वारे आते जाते रहो कहीं आओ कहीं जाओ कोई रोक टोंक नही हैं | पर सुमिरन ध्यान और भजन के लिए एक बार यहाँ भी आओ और आप का सुमिरन ध्यान और भजन बन जाये तब अपने घर बैठकर करो और गुरु द्वारे आओ और कहीं भी जाओ | प्रेमियों शाकाहारी और सदाचारी बने रहो और बनाते रहो | सुमिरन ध्यान और भजन करते रहो और कराते रहो , दुसरो को भी बता दिया करो की किस तरह से सुमिरन ध्यान और भजन किया जाता है और किस तरह सुमिरन ध्यान बनता हैं |
मन बन जाये ध्यान भजन में , तो ये सच्चा काम |
निर्मल काया ध्यान भजन की , अंतर मिलिहै राम |
गुरु गोसाई समरथ अपने , पहुचावे निज धाम |
मनवा लगाओ ध्यान भजन में , बन जावें सब काम |
सतगुरु प्यारे रहो अधारे, मेहर जो वरसे आठोयाम |
सतगुरु के दरवाजे जाओ , मिले दया का जाम |
नाम भजन में मन चित लाओ , मिलेंगे पुरुष अनाम |
शीश झुकाव सतगुरु चरनन में , बन जाएँ सब काम |
सतगुरु जयगुरुदेव |
प्रेमियों ध्यान भजन करना और कराना हमारा आप का कर्त्यव है गुरु महाराज ने यही बताया है की एक एक बन्दे को जोड़ते चलो तो बहुत संगत हो जाएगी | एक प्रेमी एक को जोड़ेगा तो दो हो जायेंगे दो से चार चार से छः इसी तरह जोड़ते चलो , धीरे धीरे बताते चलो और जो नया प्रेमी है और उसको नामदान नही मिला है तो उसको बोल दो की आप सतगुरु जयगुरुदेव सतगुरु जयगुरुदेव नाम की माला भजो तो परम संत सतगुरु गुरु महाराज जी महाराज दर्शन देंगे और अंतर में ही नामदान दे देंगे और वो हमारा गुरु भाई हो जायेगा और संगत में एक नया प्रेमी जुड़ जायेगा तो जब आप लोग इस काम पूर्ण समरथ्ता से करोगे तो गुरु महाराज भी पूर्ण समरथ्ता के साथ अनुभव और अपना परिचय उसको करा देंगे और उसका भी ध्यान और भजन बनेगा | उसे भी दिखाई सुनाई पड़ेगा और आप के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर आप के साथ चलेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 06 नवम्बर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
मन चित लागे नाम भजन में , ऐसी करो मंजूरी |
चंचल चितवन नाम भजन की , हो सुधि तेरी पूरी |
कंचन निर्मल नामी प्यारो , नहीं नाम में दुरी |
चमक अलौकिक अंतर आवे ,नाम भजन सिंदूरी |
मन चित रखियो नाम भजन में , सतगुरु दिए मंजूरी |
सतगुरु जयगुरुदेव |
आप सब पर गुरु महाराज की विशेष दया कृपा बरसे , आप सभी पर मालिक की दया बरसे , साथ ही साथ मालिक ने जो बताया शाकाहारी सदाचारी प्रचार करते रहो और लग करके सुमिरन ध्यान भजन करो वक्त नाजुक घड़ियों से गुजरने जा रहा है , आप सब ज्यादा से ज्यादा समय निकल कर सतगुरु जयगुरुदेव नाम का जाप करो भजन करो , अपने सतगुरु तो वही है जिन्होंने नामदान दिया उन्ही को नाम दान दिया उन्ही को सतगुरु कहा जाता है और जयगुरुदेव प्रभु ही वही हैं सब कुछ मालिक में ही जाकरके देखो तो एक मिलेगा | अपने सतगुरु जो अपने मालिक को तुम प्रभु मानोगे या जिस तरह से तुम्हारी मान्यता होगी, अनाम मानोगे सतनाम मानोगे जिस तरह तुम्हारी चाहत होगी उस तरह से प्रभु तुमको पार लगाएंगे | अगर तुम गुरु महाराज को बाबा समझते हो की ये बाबा है तो बाबा तो बाबा है , अगर भगवान मानते हो गुरु मानते हो प्रभु मानते हो तो सब कुछ आप को मिल जायेगा | अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बदला के प्रांगड़ में आगे गुरु दादा महाराज के पावन भंडारे के शुभ अवसर पर १८ दिसंबर २०१५ से २२ दिसंबर २०१५ के बीच ऐतिहासिक कार्यक्रम ग्राम बड़ेला में होगा | यहां पर विशेष अलौकिक दया कृपा गुरु महाराज की बरसेगी , जिसमे विशेष अनुभव अनुभूति , बरक्कत और गुरु महाराज हारी बीमारी , भूत प्रेत बाधा हर चीजो में पूरी की पूरी दया मेहर करेंगे ऐसी गुरु महाराज की मौज हैं | यहां पर जो प्रेमी पधारे गें उनको पूरा पूरा भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का लाभ होगा | गुरु महाराज ने कहा है की जो यहां पर आएगा तीन बार और सच्चे मन से ध्यान और भजन करेगा उसकी दिव्य नेत्र खुल जायेंगे और उसे दिखाई सुनाई देने लगेगा | अनुभव हो तो मानो और अनुभव न हो तो न मनो | जो प्रेमी कहते हैं की मई भटक गई वहां गए और भटक गए , तो जो यहाँ आने के बाद यदि भटक जाते हो तो कही और जाने पर सुधर नहीं जाओगे वहां जाने पर कोई अनुभव तो होगा नहीं | न कोई अनुभव की बात करेगा , न तुम्हे कोई सुमिरन ध्यान भजन का सही तरीका बताएगा , यहाँ तो आप को सब कुछ खोल खोल के बताया और समझाया जाता हैं | यहां पर केवल गुरु महाराज का गुरुगान होता है | यहाँ पर सतगुरु के हाजिर नाजिर का ही प्रोग्राम होता हैं | सतगुरु का अंत नहीं होता गुरु महाराज ने की कहा की संतों का आने का शिलशिला बंद नहीं होगा और संतों का अंत नहीं होता इसलिए सतगुरु चौबीसों घंटे हाजिर और नाजिर होता हैं | गुरु महाराज इसी धरा पर मानव शरीर में हाजिर नाजिर हैं और हर प्रकार से हाजिर और नाजिर का प्रमाण ओ दे रहे हैं पर ओ प्रमाण आप को अंतर में मिलेगा | बाहर से जब उनकी मौज होगी तो बहार से भी आप को साडी चीजे बहार से भी मिल जाएँगी लेकिन अभी तो सबकुछ अंतर की बात हैं , अंतर की विद्या पड़े जा रही है और अंतर से मिल रहा है | जयगुरुदेव नाम का प्रचार बहुत से लोग भारत में करते हैं जो की अच्छा हैं और जो शाकाहारी सदार्चारी का प्रचार करते हैं ओ भी बहुत उचित हैं | हम में उनमे कोई फर्क नहीं है, फर्क केवल इतना ही है की हम सुमिरन ध्यान और भजन और गुरु महाराज को हाजिर नाजिर मान करके काम करते हैं | आगे उनका मत ओ जैसे काम करते हैं पर गुरु धाम का प्रचार करते हैं | हम में और उनमे कोई ईर्षा द्वेष और जलन नहीं होनी चाहिए , कोई भी मिले तो उससे गुरु की बंदना सतगुरु जयगुरुदेव , जयगुरुदेव बोलना चाहिए | अगर ओ नहीं बोलता है तो आप के मुह से तो निकले| अगर ओ नहीं बोलेगा तो कोई बात नहीं हमारे कहते में तो जुड़ जायेगा की हमने एक बार गुरु का नाम लिया | प्रेम और सौहार्द से सुमिरन ध्यान और भजन करना और गुरु की एक एक वाणी को याद करना और गुरु महाराज के वचनो पर नेवछावर होना, गुरु की वंदना करना , गुरु के काम को आगे बढ़ाना , गुरु की शेवा करना | गुरु की वाणी अकाट्य है जो ओ कहेंगे सो होगा | आप सब संभल कर लगे रहो और गुरु महाराज का चितवन करते रहो |
सतगुरु जयगुरुदेव :

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 03 नवम्बर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
ध्यान करो सतगुरु जी के चरना ,उन चरणन बलिहारी जाओ |
दियो नाम का कंगना , नाम रतन अति निको लगे |
दियो है मिठो गहना , अंतर घाट का नाम भजन हो |
मिलो सूरत क्या कहना , मन चिट धरो नाम भजन में |
नाम का पहनो गहना , नाम रतन धन मिले सतगुरु का |
दियो बड़े गहना , पूर्ण प्रताप हुए तेरे |
सतगुरु गुरु चरणन में प्रेमियों , सबको हमको रहना |
चरण बंदना गुरु प्यारे की , बाद में बादक कहना |
बंदौ सतगुरु परम परगो , जो चरणन हो अनुरागो |
शीश झुकाओ सतगुरु चरणन में |
सतगुरु जयगुरुदेव |
प्रेमियों बड़े ही भाग्य से सतगुरु मिलते हैं और नामदान मिलता हैं | नाम का दान सतगुरु समरथ संत अशीम दया कृपा करके दे देते हैं , की जिससे जीव नाम भजन करके इस पार से उस पार निकल जाये और उस सतगुरु के सरनागत हो जाये जिसने उसे नाम दिया | संतों की महिमा निराली हैं , हर छन हर पल अंतर्घट में दिवाली होती रहती हैं | दिवाली से काम मनोरम नहीं होता है और इससे कही अधिक अद्भुद अलौकिक चीज होती हैं | मालिक की दया कृपा चौबीसो घंटे अनावरत बरसती रहती हैं , जिसको प्रेमी जन समझ नहीं पाते | सुमिरन भजन ध्यान लगन से करना ही हम सभी का कर्तव्य हैं | गुरु महाराज ने हमेशा बताया की बच्चों सदा शाकाहारी सदाचारी रहते हुए नाम भजन को करना | यह मनुष्य शरीर साधना का द्वार हैं साध करके निशाने पर बैठकर के अपने निज घर अपने निज धाम चलने का रास्ता ऐसी मनुष्य रुपी मंदिर में हैं | प्रेमियों लगन सतगुरु से लगाना , गुरु की वाणी पर अटल रहना , गुरु की वाणी पर विश्वास करना ही हमारा आप का परम कर्त्तव्य हैं | मनचित लागे नाम भजन में , मिल जाये नाम खजाना |
सतगुरु मेहर जो बरसे बदरिया , सतगुरु में मन लगाना |
घाट के ऊपर चले सुरतिया , अद्भुद दृश्य दिखाना |
नाम का रोगन सतगुरु का हैं , दियो सतगुरु ने खजाना |
अंतर बहार करो जटनिया , सतगुरु मन को लगाना |
चरणन में बलिहारी जाना , चरणन शीश झुकना |
नाम बंदना मेरे मालिक की , इन्ही में मन को लगानां|
तित प्रतीत सतगुरु से , मिल जाये नाम खजाना |
दया मेहरिया बरसे सतगुरु की , इन्ही में मन को लगानां |
सतगुरु प्रीतम मेरे मालिक , मिल जाये दिव्या खजाना|
शीश झुकाऊ तुम्हरे चरण में , नाम भजन गाना |
सतगुरु जयगुरुदेव |
साधना करके अपने देश को चलना ही , हम सब का एक आधार हैं , और अपने घर चलने का आधार गुरु महाराज हैं , गुरु महाराज के चरणो से बंधे रहने से हम अपने घर जा सकते हैं , इसके शिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं की उस ओर ले जाये | गुरु महाराज ने जो बताया समझाया उसी के मुताबिक हम लोग जा सकते हैं , गुरु महाराज एक अद्भुद प्रा विद्या के दाता नामी हमारे सतगुरु हैं | हमसबको अपने सतगुरु में सदैव के लिए लीन रहना हैं | निशाना गुरु महाराज से रखना है , दुनिया से नहीं | देखना अपने गुरु की वाणी को है और गुरु में ही विश्वास करना हैं | सतगुरु कोई नया पुराना नहीं होता हैं सतगुरु वही होता है जो सत्य का नाम दान देता है जो सत्य पथ पर चलता है वही सतगुरु होता हैं | सतगुरु उसी को कहते है जिससे प्रेमी को नाम दान मिला होता है, उस प्रेमी का सतगुरु उसके गुरु होते हैं , फिर आगे जो नाम जागृत होता हैं उस नाम का उच्चारण होता है , अगर सतगुरु नाम नहीं लिया जाता तो सतगुरु की जगह पर कौन आएगा, सादा जयगुरुदेव कहने से काम नहीं चलता, इसलिए अपने सतगुरु को याद करना , जिसने सत्य पथ पर चलाया सत्य पथ बताया सत्य का नामदान दिया वही हमारे सतगुरु है |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 27 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मंगल पवन सतगुरु नामू, नाम भजन में मिले प्रमानु ,
चंचल चितवन अंतर मन में , अंतर नाम भजन कर नामु ,
सतगुरु शब्द स्नेही प्यारे , ध्यान भजन मन करो दुलारे ,
अंतर घट में होय उजियारे , मन चित दो सतगुरु को डारे ,
तन मन अर्पण सतगुरु जी को , ध्यान भजन करो सब जन प्यारे ,
सतगुरु चरनन शीश झुकना , नाम भजन सतगुरु का गाना,
सतगुरु जयगुरुदेव |
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम - बड़ेला के प्रांगड़ में बैठे हुए दूर दूर से आये हुए हमारे गुरु भाई - बहन सब को सादर सतगुरु जयगुरुदेव, मालिक की अशीम दया अनुकम्पा से प्रत्येक पूनम पर गुरु महाराज की दया से सत्संग का कार्यक्रम चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा | प्रेमी कोई भी हो सत्संग सुनाने वाला, गुरु की दया की धार जो से अंतर से उतरेगी वही सत्संग सुनाया जायेगा | अंतर का जो भी आत्म बोध है आत्म ज्ञान है | वही सच्चा आत्म बोध आत्म ज्ञान हैं | अगर कोई कहता है की उसको अनुभव होता है और उसको अनुभव नहीं, इसको इसतरह होता और उसको उस तरह होता हैं, तो जो कुछ अनुभव होता है ओ मालिक की दया कृपा से होता हैं , किसी के कहने और सुनने से कुछ नहीं होता | कोई भी साधक प्रेमी किसी भी प्रेमी को मार्ग दर्शक हो सकता है और बता सकता है की इस तरह सुमिरन ध्यान और भजन करो और इस तरह अनुभव अनुभिति होती है | लेकिन अनुभव तो गुरु महाराज ही कराते हैं , दया मेहरा तो गुरु महाराज ही देते हैं | गुरु महाराज ही सब चीजों को बताते हैं और समझाते हैं और वही बताएँगे और समझायेंगे | आगे भी बताते रहेंगे और हम लोगो को चाहिए की गुरु के अधारे गुरु के द्वारे रहकर जो कुछ गुरु महाराज ने बताया है उसे करना और सच्चा नाम भजन करना| साथ ही साथ शाकाहारी सदाचारी का प्रचार करते रहना है | खुद भी जगो और जगत को जगाते चलो यही गुरु महाराज का आदेश है | मालिक के चरणो में अपनी आस्था को बनाये रखना ही मुख्य है | किसी भी प्रेमी को निचा न दिखाए, चाहे ओ छोटा हो या बड़ा हो | मान सम्मान सबका करो और सबका मान रखो | आप यदि किसी को सम्मान दोगे तो आप को भी सम्मान मिलेगा | मीठी वाणी का सभी लोग उपयोग करेंगे जिससे सभी लोग प्रेम से रहे | तुम अपना काम करो और दुसरो को भी काम करने दो और कोई किसी के लिए अड़ंगा न बने यदि कोई आप के लिए अड़ंगा बनता है तो आप को अपने सामने के अड़ंगे को साफ करने का कर्तव्य बनता हैं | मालिक के चरणो में मन लगाना और मालिक का चिंतन करना और मालिक की आराधना करना हमारा आप का परम कर्तव्य हैं , साथ ही साथ दूसरों को भी बताते रहे की मै भी नाम भजन करता रहू और आप भी करते रहो | गुरु महाराज ने नाम की दात दी है और ये नाम की दात बड़ी ही अमोलक है |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु में मन को लगते चलो , गुन गुनाते चलो गुनगुनाते चलो |
नाम अंतर के सतगुरु का गाते चलो , भाव भक्ति में खुद को लुटाते चलो |
नाम धन का खजाना जो तुमको दिया , उसको थोड़ा थोड़ा लुटाते चलो |
शीश चरणो में सतगुरु के झुकाते चलो|
सतगुरु जयगुरुदेव ||
मंगल नमवा नाम प्रभु का , धर कर नाम जो गावे |
अंतर्घट में गुरु की कृपा , नित प्रति समझो पावे |
नाम भजन में मन चित लग जाये , शब्द भेद सुन पावे |
सतगुरु प्रीतम मालिक मिल जाये , नाम भजन को गावे |
चढ़े सुरतिया अम्बर दिखे , सच्चे सुख को पावे |
मंगल मनवा करे वंदना , चरण शीश झुकावे |
सतगुरु जयगुरुदेव|
प्रेमियों, अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम - बड़ेला के प्रांगड़ में बैठे हुए समस्त प्रेमी जन, मालिक की बताई हुई वाणिया बड़ी अनमोल और अमोलक हैं | हर वाणी गूढ़ रहस्यों से परिपूर्ण हैं | एक एक वाणी का रहस्य अभेद हैं जिसको जानना समझना कठिन हैं | जो गुरु महाराज अंतर में बताएं वही सत्य है | जो लोग कहते है की अनुभव नहीं होता और दिखाई सुनाई नहीं पड़ता उनसे वास्तव में भजन से मतलब है ही नहीं और जब भजन करते ही नहीं तो उन्हें दिखाई सुनाई कहा से पड़ेगा | मालिक के बताये हुए रास्ते पर जब चलेंगे लग कर सुमिरन ध्यान और भजन करेंगे | गुरु ने कहा की बच्चू लग करके करो तो १५ दिन में दिखाई सुनाई पड़ने लगेगा , फिर गुरु महाराज ने १५ दिन से घटा कर ७ दिन कर दिया और कहा की बच्चू मन चित को रोक कर ठीक से सुमिरन ध्यान और भजन करो आप को दिखाई सुनाई पड़ने लगेगा | तो जब गुरु महाराज ने ये बता दिया की इतने दिन में ये होने लगेगा तो ओ ओ होने लगेगा | गुरु महाराज ने यहाँ एक बैठक बनाई और बताया की जो भी प्रेमी यहाँ आएगा और सच्चे मन से ध्यान और भजन करेगा उसकी आँख खुल जाएगी | तो जो प्रेमी आते हैं सच्चे मन से ध्यान और भजन करते हैं तो उनकी आँख गुरु महाराज खोलते है न की अनिल कुमार गुप्ता खोलते हैं | जब उसकी आँख खुल जाती है दिखाई सुनाई पड़ने लगता है तो कही भी सुमिरन ध्यान और भजन करे , उसे हर जगह सुनाई दिखाई पड़ेगा | और जब कर्मो का आवरण आ जाये तो गुरु महाराज के पास चला आवे , अखंड रूप से विराजमान मालिक के दर्शन करे और अपने आवरण को साफ करे और लग कर सुमिरन ध्यान और भजन करे तो जैसे पहले सुनाई दिखाई पड़ता था वैसे ही उसे फिर से दिखाई सुनाई पड़ने लगेगा | जैसे जैसे मन गुरु चरणो में लगता जायेगा , वैसे वैसे अनुभव होता चला जायेगा | मालिक ने एक बार खेतौरा आश्रम पर कहा बच्चू ये कर्मो का देश है यहां कर्मो का लेन देन चुकता करना पड़ता है | तो जो लिया है किसी से उसे देना पड़ेगा | और जो कुछ है हारी में वीमारी में इधर उधर करके सब ख़त्म करवाया जाता है | उसके बाद जब जीवात्मा सूरत निर्मल पवित्र हो जाती है , और कोई कर्म कर्ज नहीं बचता तो अपने निज घर को प्राप्त कर लेती हैं और गुरु के साथ अपने देश चली जाती है | गुरु महाराज हमेशा जीव के अंग संग रहते हैं और हर प्रकार से दया मेहर करते हुए | अपने निज घर अपने निज धाम पंहुचा देते हैं | किसी प्रकार की शंका नहीं होनी चाहिए , अपने गुरु पर , गुरु पुरे होते है उनमे किसी पारकर की कमी और मिलौनी नहीं होती है | ओ सर्वज्ञ और मालिक है और हर प्रकार से समरथ मालिक हैं ओ जो चाहे सो कर सकते हैं | आप को पाने सतगुरु में पूर्ण विश्वास होना चाहिए |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजो मन सतगुरु जी का नाम |
नाम भजन में मुक्ति मोक्ष है, दूजो न कोई काम |
नर तन पायो बड़े भाग्य से, सतगुरु का गुणगान |
प्रीतम तुमको मिले सांवरियां, समझो सतगुरु राम |
मनवा राखो नाम भजन में, येही कियो कल्याण |
सतगुरु सतगुरु रोज पुकारो, भजो सतगुरु का नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
देश निर्मल पवित्र नामी, नाम को तुमको भजना है
देश बड़ा ही निर्मल और पवित्र है जिस देश के नामी हैं और नामी भी उतना ही निर्मल हैं जितना वो देश निर्मल है उज्जवल फक्क सफ़ेद चमचम देश है उसी तरह के नामी भी उज्जवल सफ़ेद हैं कोई मिलौनी नही दया की बरसात २४ घंटे होती रहती है शीतलता की छांव हमेशा बरसती रहती है हमसब को लगकर के अपने सतगुरु के वचनों को ध्यान देना परम आवश्यक है और उन्ही की वाणी को याद रखना है
चलो सब देश को अपने, सतगुरु लेने आये हैं
काम चुकता करो तुम तो, नाम धन देने आये हैं
सबलोग अपने देश को चले चलो अपने संत सतगुरु के अपने परम पिता के साथ में जो कुछ तुमने यहा पर ले रखा है कर्म कर्जा उसको देते हुये अपने प्रभु के साथ चले चलो नाम भजन करते हुये उस देश में निर्मल और पवित्र देश में चले चलोगे वहां कोई दुःख तकलीफ कोई पीड़ा कोई परेशानी नही, न कोई कुछ कहने वाला है न कोई तुमको दबाने वाला है वहां ख़ुशी ही ख़ुशी है सौहाद्र ही सौहाद्र है अपने सुन्दर पवित्र देश में जब तुम पहुँच जाओगे तो तुम्हारा पूरा का पूरा काम बन जायेगा इसीलिए सतगुरु तुम्हे लेने आये हैं तुम अपने देश को चले चलो
नाम निर्मल मिला तुमको, नाम को तुम भजन कर ले
ध्यान दे घट के भीतर तु, और कुछ तो जतन कर ले
तुमको परम अलौकिक नाम मिल गया है रास्ता मिल गया है तो ये तुम्हारा कर्तव्य है की तुम नाम भजन तो कर लो कुछ ऐसा जतन करो जिससे घट के भीतर अंतर में तुम्हे दिखाई सुनाई पड़ने लगे घट का दरवाजा खुल जाये घाट खुल जाये और तुम्हे तुम्हारा प्रीतम मिल जाये तुम अपने सतगुरु से मिल जाओ तुम अपने प्रीतम से मिल जाओ तुम्हे राम दिखाई पड़ने लगे तुम्हे सब प्रभु दिखाई पड़ने लगे प्रभु को देखोगे तो तुम्हारा मन कितना खुश होगा कितना तुम गदगद हो जाओगे की हमने प्रभु के दर्शन पाये हमने गुरु के दर्शन पाये हमने सतगुरु के दर्शन पाये जब तुमको सतगुरु के दर्शन होंगे तो तुम्हे परम अलौकिक अनुभूति अंतर में प्राप्त होंगी गुरु के दर्शन मिलते हीं सारी मैलाई कट कट जायेगी
निर्मल पावन सतगुरु नामी, नाम भजन अंतर प्रमाणु
निर्मल पवित्र नाम जो तुमको मिला है उसका जब तुम भजन करोगे तो अंतर में तुमको प्रमाण मिलेगा अंतर में ज्ञान मिलेगा अंतर में दिखेगा अद्भुत अलौकिक दिखाई पड़ेगा अद्भुत अलौकिक सुनाई पड़ेगा
शब्द सुहाना अंतर आवे, शब्द वेग अंतर में सुनावे
कितना प्यारा कितना मोहक कितना सुहाना नाम अंतर में सुनाई पड़ेगा शब्द अंतर में सुनाई पड़ेगा बाजे अंतर में सुनाई पड़ेंगे जिससे तुमको बड़ी ही प्रेम और प्रतीती होगी बड़ी ही अलौकिक उसमे रीत होगी ऐसा अद्भुत लगेगा ऐसा लगेगा की तुम्हरी इक्षा नही होगी की तुम उससे उठ जाओ तुम्हारी इक्षा होगी की १० मिनट और कर ले, १५ मिनट और कर ले, जितना अधिक समय मिल जाये, उतने अधिक से अधिक कर लें, ऐसा तुम काम करोगे अपने भजन के लिए अपने सतगुरु के लिए यही उचित और अलौकिक प्रमाण अंतर में मिलता है
गुरु ज्ञान कृपा बर्षा दीजिये, मुझे चरणों में अपने लगा लिजिये
मै दुखियारी इस जगत में भटका, डग डग कहाँ कहाँ नही मै अटका
चरणों में अपनी बिठा लिजिये, सतगुरु दया मेहर बर्षा दीजिये
नाम दिया है अलौकिक नामी, दया मेहर किया तुमने हे स्वामी
अंतर दरश दिखा दीजिये, गुरु चरणों में अपने बैठा लिजिये
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नैन बिच देखो सतगुरु मालिक |
अंतर विंदु बतायो सतगुरु, चहु दिश है हरियाली |
नाम भजन सतगुरु की कृपा से, निति सब हैं मटियारी |
सतगुरु सब जन पर हैं मालिक, दया करत अधिकारी |
नाम भजन और नाम दिया है, ये समझो अविकारी |
मन चित धारो गुरुचरनन में, नाही रहे विकारी |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये इस नवरात्री के पावन पर्व पर समस्त प्रेमीजन दूर दूर से आये हुये हमारे गुरुभाई बहन | सब लोग बड़े ही विनम्र भाव से बड़े ही ध्यान से बड़े ही चाव से गुरुमहाराज की वंदना प्रार्थना अराधना करेंगे और गुरुमहाराज से अपनी गुनाहों की माफ़ी मांगते हुये लगकर के सुमिरन भजन ध्यान करेंगे गुरुमहाराज ने कहा है जो सच्चे मन से सुमिरन भजन ध्यान करेगा उसे पूरी की पूरी अनुभव अनुभूति होगी उसे दिखाई भी पड़ेगा और सुनाई भी पड़ेगा तो प्रेमियों हमारा आपका कर्तव्य है जब गुरुमहाराज ने कह दिया है दिखाई सुनाई दोनों पड़ेगा तो दिखाई सुनाई तो पड़ रहा है और जो नये आये है जिन्हें दिखाई सुनाई नही पड़ रहा तो वो भी लगकर के करें उन्हें भी दिखाई सुनाई पड़ेगा गुरुमहाराज की पूरी की पूरी दया कृपा होगी और साथ ही साथ आपको अपने आचार विचार को बदल लेना है सतगुरु के मत के हिसाब से बदल लेना है सतगुरु मत के हिसाब से करना है सतगुरु के हिसाब से चलना है

भजन मन सतगुरु नीम अटार |
चरण वंदना प्रथम नमामी , अपने सतगुरु प्रीतम स्वामी |
पांचो धनी हैं अराध्य |
सतगुरु माला ऐसी फेरो, रह जायें राधेश्याम |
श्याम व राधा की अमिट बजरिया, सत्य धाम अविराम |
मन चित खिलके फुल्के कलियाँ, दिखे सतगुरु राम |
शीश धरो सतगुरु चरनन में, सत्य का मिले प्रभाव |
सतगुरु जयगुरुदेव

प्रथम सतगुरु वंदना हो, बाद अंतर करो चारी |
नाम का मनका जो फेरो, मनन में नाम के धारी |
सर्वप्रथम गुरु का ध्यान करके जब सुमिरन करने बैठे तो जो मनका फेरो तो अपने नामधारी को, नाम जिससे धारण किया है उसे याद रखो और जिसका नाम लो उसका स्वरुप याद रखो और उसका भजन करो तो नाम स्वरुप याद कर के जब काम करोगे तो जल्दी से तुम्हारा सुमिरन भजन ध्यान बनेगा

गुरु के साथ में चलना, परम दिश होये मंगलाचार्य
गुरु के साथ जब चलोगे तो सब मंगलाचार्य हीं मंगलाचार्य, अंतर में कहीं अमंगल नही है बाहर की ये दुनिया नही है की यहाँ वहां अमंगल हो, अंतर की दुनिया में कोई अमंगल नही है हम सब को गुरुमहाराज साथ लेकर चलते हैं तो मंगल हीं मंगल होता है
देश सुन्दर पुरुष सुन्दर , सुरत सुन्दर संवारी है |

अधर की तरफ बढ़ देखो, उजारी हीं उजारी है
गुरुमहाराज का ध्यान भजन करते हुये सुरत जीवात्मा धीरे धीरे गगन मंडल में अंतर में आगे की ओर बढती है जहां उसको उजियारी ही उजियारी दिखाई पड़ता है बड़ा अद्भुत बड़ा चमचम बड़ा हीं सुन्दर उसको मिलता है वो यहाँ से पहुंचती है स्वर्ग को देखती है मंत्रमुग्ध हो जाती है फिर स्वर्ग के देवता और शक्तियों को “सतगुरु जयगुरुदेव” “जयगुरुदेव” बोलकर प्रणाम करती है इसी तरह धीरे धीरे सुरत जीवात्मा दर्शन करते हुये फिर आगे विष्णु पूरी को जाती है वहां जाकर के वह विष्णु भगवान को “सतगुरु जयगुरुदेव”, “जयगुरुदेव” कह कर प्रणाम करती है वहां की खिलकत को देखती है समझती है सत्य नारायण स्वामी से मिलती है , सत्यनारायण स्वामी जनपातक और देवी लक्ष्मी को प्रणाम करती है माता सरस्वति को प्रणाम करती है जब ब्रह्म लोक में जाती है तो ब्रह्माजी को देखती है वहां प्रणाम करती है “सतगुरु जयगुरुदेव” बोलती है और जब वहां, जब पूछते हैं तो बताती है की हमे अपने गुरु के यहाँ जाना है धीरे धीरे शिव पूरी पहुँचती है शिव भोले नाथ भोले भंडारी दया के भंडार अथाह सागर माता अनपूर्णा पार्वती उन्ही के साथ विराजमान महामाई दयावान कृपावान वो भी दया करती है और मार्ग बता देती हैं की इधर चले जाओ धीरे धीरे सुरत जीवात्मा आगे गुरु के संग गुरु के बल से देवी अध्यामहाशक्ति महामाई के दरबार जिनको दुर्गा जी कहते है अध्या महाशक्ति जिन्हें कहते हैं इस समय उनका पर्व चल रहा है उनके उधर पहुंचती है उनकी दया कृपा लेकर के उनके साथ उनको प्रणाम कर के उनसे चरण वंदना कर के गुरुमहाराज की दया कृपा से आगे को बढती है आगे जब रास्ता मिल जाता है गुरु के साथ निकल जाती है तब वो फिर छोटा बनाकर के गुरुमहाराज ले जाते हैं फिर सुरत जीवात्मा प्रभु राम अपने राम राजा राम के दरबार में पहुंचती है और बड़ा ही खुश होती है और प्रभु राम भी खुश होते हैं प्रभु राम खुश होते हैं और बड़ी ही दया कृपा करके रास्ता दे देते हैं की आगे की चले जाओ और आगे भी देख आओ की क्या है क्या नही है तो सुरत और प्रभु राम के बिच क्या बात चित होती है क्या क्या होता है वो सुरत और जीवात्मा, जीवात्मा और राम , आत्मा और परमात्मा हीं जानता है या तो सतगुरु जो शब्द संग में रहता है गुरुमहाराज जानते हैं

सतगुरु मेहर होये सब भांति, मिले प्रभुजी निर्मल हुई छाती
सुरत जीवात्मा कहती है की गुरु की कृपा से हमको प्रभु परमात्मा मिल गये हमारी हृदय में हमारे जो है छाती हमारे अंतर में ठंडक आ गई हमको बड़ा ही शीतलता और बड़ा ही अद्भुत अविरलता हमारे अंदर आई और ततपश्चात गुरुमहाराज की कृपा से हम आगे बढ़े |

लाल देश एक लाल है मुकामा,देख्यों देश लाल प्रमाणा गुरु महाराज की दया से आगे गये तो अंड की जो रचना है लाल देश को देखा लाल मुकाम को देखा गुरुमहाराज को देखा गुरुमहाराज भी लाल और सारा देश लाल हम भी लाल

“लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल “
तो मीराबाई जब वहां गई थी तो वो भी लालो लाल हो गई तो उन्होंने लिखा वैसे जो भी जायेगा वहां वो भी लालो लाल हो जायेगा वो भी लिखेगा और रास्ता तो एक ही हैं पहले से और आगे भी एक हीं रहेगा कोई २-4 रास्ता नही हो जायेगा बस समरथ संत होने की जरूरत है संत सच्चा हो तो रास्ते पर तुमको पहुंचा देगा और संत अगर कच्चा है तो तुमको कहाँ से पहुँचायेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम धन अधर सेन की देन, नाम मिले कोई प्रेमी को,
नाव में जावे खेय , अद्भुद सुनावे जब इस धरा पर ,
लागे मेलो की रेल , नाम धनी सतगुरु प्रीतम हैं,
आधार देश के सेन , भेष भूषा सतगुरु की अलौकिक ,
नाम रतन की देन , मन चिट खोजो नाम रतन धन,
अंतर बजे बीन , बजन बजे अद्भुद सुन्दर ,
उसी में होवो लीन , सतगुरु प्रीतम मेरे श्वरिया ,
जिन ने नाम को दिन , श्री चरण में शीश झुकाओ
दया मैहर को कीन्ह

सतगुरु जयगुरुदेव
जब जब महान आत्माओ और संत सतगुरुवाओ की दया मेहर होती है और उनके गुरु जब अंतर में दात बक्श देते है तब दात बख़्शने के बाद अंतर हुक्म कर देते है की बच्चू हमारे इस धन को तुम्हे इस संसार में बांटना है तब वह येणी से चोटी तक जोर लगा करके वह उस कार्य को करना प्रारम्भ करते हैं, जीवो पर दया करते हुए सबको नाम रतन धन देते हैं , नाम को बाटते हैं शिष्यों को बनाते हैं , स्वयं को गुरु न कहते हुए अपने को सेवक कहते हैं और सब को नाम रतन धन देते हुए सांगत को जोड़ते हुए काम सुरु करते हैं , ऐसे ही हमारे गुरु महाराज ने सं १९५२ से ये काम सुरु किया और धीरे धीरे संगत को जोड़ने का , बड़ी ही कठिनाई के साथ पैदल चल कर , लाल टेन लेकर , रातो में बुलाकर लोगो को , साईकिल चला करके , फिर दो पहिये से चल करके , फिर चार पहिये से चल करके धीरे धीरे मालिक की संगत बढ़करके अथाह सागर की तरह हुयी| गुरु महाराज ने हमारे सन १९५२, १९५४, १९५६ , १९६० तक बहुत बड़ी मेहनत की, तब धीरे धीरे संगत बढ़ी | गुरु महाराज ने अथक प्रयास करके दादा गुरुमहाराज के आदेश का पालन किया | इस तरह का आदेश का पालन आज तक कोई प्रेमी हमारे गुरु महाराज परदे के पीछे है कोई नहीं कर पाया | गुरु महाराज एक एक प्रेमियों के पास जा जा करके उसकी बात को सुन सुन करके सब को दया देकरके और सब प्रेमियों को जोड़ करके एक साथ रक्खा | गुरु महाराज अब भी सबको पूरी की पूरी दया कृपा दे रहे हैं , और एक तरफ से जोड़ रहे हैं | नाम भजन का जो रास्ता बताया ओ सच्चा हैं , सच्चा रास्ता हमारे सतगुरु ने बताया और गुरु महाराज ने बताया की कलयुग में कलयुग जायेगा और कलयुग में सतयुग आएगा और सतयुग आने पर 1 बीघे में 100 मन गल्ला होगा | उससे पहले सफाई होगी , शाकाहारी सदाचारी बचेंगे और पापाचारी यो की सफाई हो जाएगी तो प्रेमियों इस तरह से हमारे गुरु महाराज ने बड़े बड़े जलसे रचाये बड़े बड़े काफिले निकले बड़े बड़े कर्यक्रम किये , त्रिवेणी संगम , नैमिसरण , अयोध्या , काशी , मथुरा में बड़े बड़े प्रोग्राम किया और वहां पर करोड़ो का जन सैलाब उमड़ा , मालिक ने हमारे अथक प्रयास करके सब को जोड़ा और एक दिशा, एक निर्देश दिया और सबको सुमिरन ध्यान और भजन का रास्ता बताया , प्रभु प्राप्ति का रास्ता बताया और कहा मेरे सामने लगकरके सुमिरन ध्यान और भजन करलो तो तुमको उच्ची कोटि की प्राप्ति होगी, तुम शाकाहारी रहते हुए प्रभु को प्राप्त कर लोगे , प्रभु मय हो जाओगे और गुरु मय तब हो जाओगे जब गुरु के चरणो में लग जाओगे , गुरु को देखते हुए सतगुरु को देखते हुए जब प्रभु को देखोगे तो प्रभु जरूर मिलेगा , प्रभु जीता जगता है और पूर्ण रूप से सचर है, प्रभु दया वैन है | प्रभु हाजिर नजीर एक पराविद्या एक शक्ति है , प्रभु को पुकारोगे तो प्रभु अवश्य मिलेगा | प्रभु तो वही होता है नर रूप में हरी, नर रूप में सतगुरु हरी होते हैं , नर रूप में नारायण होते है , वही परमात्मा होते हैं,उन्ही में परमात्मा संलिप्त रहते है , उन्ही में परमात्मा समाहित रहते है और उन्ही की जबानी परमात्मा बोलते रहते हैं , उन्ही को परम आत्मा कहा जाता हैं | परमात्मा के दर्शन संत सतगुरु ही करवाते हैं , संत सतगुरु के द्वारा ही परमात्मा का दर्शन होता हैं | हे प्रेमियों आअप जब जब लगकरके सुमिरन ध्यान और भजन करोगे और जयगुरुदेव सतगुरु जयगुरुदेव बोलोगे तो तुम्हे प्रभु के दर्शन होगे मालिक के दर्शन होगे , और हरप्रकार की गुरु महाराज आप पर दया करेंगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 8 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन नाम गुरु का ध्यान , ध्यान मनन हो गुरु चरण की ,
जिन्होंने दियो है नाम, हाजिर नजीर मान के प्रेमियों,
करो सब सुमिरन ध्यान , अंतर रूप अलौकिक गुरु का ,
सब को मिलेगा प्रमाण , नाम भजन मन धारो प्रेमियों ,
यही सतगुरु का काम , नाम अलौकिक है मालिक का ,
नाम भजन मन ध्यान , शीश झुकाओ सतगुरु चरण में ,
मिले दया का प्रमाण||
सतगुरु जयगुरुदेव |
भाव झरोखे सतगुरु देखो , करो ध्यान मन ज्ञान ,
दिव्या अलौकिक देश दिखाए , सतगुरु का प्रमाण,
विनय प्राथना गुरु चरण की , सब बन जाये काम ,
सतगुरु संग हमेशा रहियो , एहि अंतर का काज ,
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में , बन जाये सरे काम ,
सतगुरु जयगुरुदेव |
भजन मन ध्यान कर देखो , गुरु की मेहर आएगी ,
दिव्य देशों की गड़ना जो , सूरत उस पार जाएगी |
जब आप सब लोग सुमिरन ध्यान भजन करोगे और मन चित लगाओ गे और गुरु महाराज के बताये हुए रास्ते पर चलोगे तो तो तुम्हारी साधना बनेगी और तुम्हे दिव्य अलौकिक रचना दिखेगी जिसको गुरु महराज ने बताया है , तुम्हारी सूरत उस पार देश में जाएगी जहां के बारे में गुरु महाराज ने समझाया है और अंग संग गुरु महाराज होगे और तुम्हे वहां की चीजे देखने को मिलेंगी, जो हमारे गुरु मालिक ने बताया है |

देश अद्भुद बना न्यारा , चमक का सकल पसारा है,
श्वेत नामी श्वेत धारा, श्वेत ही सब उजियारा है |
वहां पर सबकुछ निर्मल पवित्र एकदम साफ़ सफ़ेद है , वहां का मालिक रूहानियत से लबरेज बिलकुल सफ़ेद है , वहां पर कोई दूसरा नहीं दीखता अपने सतगुरु अपने दाता दयाल अपने मालिक का देश हैं , सच्चा अविरल देश , जिस देश के लिए गुरु महाराज बताते हैं और साधक प्रेमी वही को चलने के लिए तयारी करते है और वही चलने के लिए इक्क्षा रखते हैं |

सुनो पवन बचन मेरा , ध्यान धर इसको देखो |
गुरु का देश निर्मल है , ज्ञान ध्यान कर इसे देखो |
गुरु का देश इतना पावन पवित्र है की उसको ध्यान करके देखोगे और ज्ञान करके चलोगे तो मालिक की अलौकिक दया कृपा बरषेगी और आप को ऐसा मंत्रमुग्ध कर देगी की तुम्हे कोई और दूसरी चीज याद नहीं रहेगी , आप को केवल गुरु महाराज की वाणी याद रहेगी और गुरु महाराज दिखेंगे और गुरु महाराज ही आप को सबकुछ बताएँगे और समझायेंगे |
गुरु महाराज कोई हांड़मांस का पुतला नहीं है गुरु महाराज ने कहा की जहां भी आप जयगुरुदेव या सतगुरु जयगुरुदेव बोलोगे मई आप को वहीँ मिलूंगा | गुरु महाराज हर तरह से हाजिर नजीर है और सर्वव्यापी है | गुरु महाराज जहां के लिए कुछ भी कहेंगे वह सिद्ध करके दिखाएंगे , गुरु महाराज समरथ संत हैं | गुरु महाराज ने बहुत बड़ी संगत खड़ी कर दिया और सभी पर बहुत बड़ी दया कर दिया और सब को नाम दान दे दिया और अब सब का काम है की लग कर सुमिरन ध्यान और भजन करें |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 7 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन अंतर होवे ज्ञान |
नाम भजन सच्चे सतगुरु का, अंतर मन में ठान |
दिव्य अलौकिक देश दिखेगा, धनियों का प्रमाण |
सतदेश के सतगुरु मालिक, गुरु से रखो आश |
कर विश्वास ध्यान मन जोड़ो, मन नही करो उदास |
नाम भजन सच्चा साथी है, सच्चा सतगुरु साथ |
प्रेम सहित सब शीश झुकाओ, इन्ही से राखो आश |
सतगुरु जयगुरुदेव
नाम मन चितवन अंतरयामी |
अंतर के स्वामी हैं नामी, येही अन्तर्यामी |
तन मन जोड़ोगे स्वामी से, मिलेंगे तुमको नामी |
नाम भजन सच्चे सतगुरु का, येही है सच्चे स्वामी |
नामी मालिक सतदेश के, सतगुरु येही हैं नामी |
करो अराधना मन चित लाई, येही हैं अपने नामी |
नाम भजन सतगुरु से जोड़ो, आदि अंत के स्वामी |
चरणन इनके शीश झुका लो, येही हैं अपने नामी |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों, अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये प्रेमियो, प्रेमियों जब तुम्हे लगन लगती है सुमिरन भजन ध्यान की तो उसी छण तुम्हे लगन लग जाये तुम्हारी मन आ जाये तुम कही भी हो वहीं पर बैठ जाओ और सुमिरन भजन ध्यान में जो भी समय देना है दे दो वो सच्चे मालिक की परमार्थ में जुड़ेगा और आपका नाम भजन बन जायेगा और जिनकी जिनकी साधना नही बनती वो पहले भावपूर्ण प्रार्थना बोले गुरुमहाराज की प्रार्थना अराधना बोलने के बाद सुमिरन भजन ध्यान के लिए बैठे जब गुरुमहाराज की प्रार्थना अराधना बोलेंगे जब सुमिरन ध्यान भजन के लिए बैठेंगे तो मालिक की विशेष दया कृपा होगी और उनकी अनुभूति होगी मालिक ने बहुत कुछ बताया और समझाया की मेरी एक एक वाणी अकाट्य है कोई काट नही सकता कोई माई का लाल इधर का उधर नही कर सकता जो काम मै करने आया हूँ कर के ही जाऊंगा चाहे मुझे ४०० साल रहना पड़े अब हमको आपको सोचना पड़ेगा गुरु मत के हिसाब से यहाँ तो जीवन १०० वर्ष १२० वर्ष का आयु तो ४०० साल कैसे रहेंगे तो इसलिए वो ४०० साल रहेंगे इन कपड़ो को बदल बदल कर के और अपना प्रमाण दे देकर के बतायेंगे और सारा काम करते जायेंगे पर गुरुमहाराज ने कहा है की मैं इसी तरह सारा काम कर दूंगा तो उस तरह का कोई ना कोई भी अधार निराधार होगा, देखो पूरे देश में इस समयजगह जगह कार्यकरम हो रहे हैं इधर भी उधर भी उधर भी उधर भी सब जगह हो रहे हैं कोई कह रहा है इधर आओ कोई कह रहा है उधर आओ सच्ची बात तो ये है अनुभव अनुभूति आत्मबोध आत्मज्ञान, आत्मबोध आत्मज्ञान नही, तुम्हे दिखाई सुनाई नही पड़ा तुम्हारा भजन नही बना तुमको अनुभव नही हुआ तो मुक्ति मोक्ष किस प्रकार से प्राप्त होगा अगर कान पे अंगुली रखते हो अंतर में जाते हो शब्द सुनाई नही पड़ता तो फिर तुमको कैसे शब्द पकड़ के अंतर ले जायेगा और अगर तुम्हारे शब्द अंदर उतर रहा है तो नामी से तो वैसे लगन लगी है नामी की दया मेहर से शब्द आता है और शब्द नामी की हीं दया मेहर से उतरता है जब मन चित प्रेमियों का लगता है तब शब्द उतरता है और जब मालिक की दया मेहर होती है तो दिव्य आँख खुल जाती है अंतर दिखाई भी पड़ता है और सुनाई भी पड़ता है सतगुरु पूरी तरह दया मेहर करते हैं और सारी चीजे दे देते हैं दया की बरसात करते हैं दुखों का निवाड़ करते हैं हारी बिमारी का नाश करते हैं सब पर दया करते हैं ऐसे दाता दयाल ऐसे सतपुरुष धन्य हैं जो की खुद सर्वसत्ता के मालिक है सनातन धर्म के प्रतिक हैं और उसके पथ पालक हैं उस पथ पर चलाने वाले हमारे संत सतगुरु हमारे मसीहा परम संत स्वामीजी महाराज सतगुरु जयगुरुदेव जिन्होंने इतनी बड़ी संगत तैयार कर दी और निष्कंटक निष्कलंक सारा काम होता आया है आगे भी होता रहेगा आप सबलोगों को ध्यान देना चाहिये की जब मालिक ने बता दिया की बच्चू तुमने ये मेरे जीते जी मंदिर बनवाया है मंदिर में मै अखण्ड रूप से विराजमान हूँ यहाँ पर जो प्रेमी आयेगा सच्चे मन से ध्यान भजन करेगा उसकी आँख खुल जायेगी तो अखण्ड रूप से विराजमान का खण्डन नही होता अखण्ड तो अखण्ड है वो २४ घंटे यहाँ मिलेंगे कोई कहता है की क्या खूंटे से बंधे हैं तो गुरुमहाराज तो २४ घंटे शब्द रूप से अंतर में रहते हैं तो क्या उसके अंदर कोई खूंटा है, खूंटा है नाम का अगर तुम सतगुरु जयगुरुदेव बोलोगे तो वही खूंटा है वही नाम का खूंटा और उसी के अंतर्गत गुरुमहाराज बंधे हुये हैं और जब गुरुमहाराज का नाम तुम लोगे और, जब अपने मुख से सतगुरु ये कहे की मैं इस तरह से हूँ उसमे उस तरह से हूँ उसमे उस तरह से हूँ तो उसका प्रमाण लो वहां पर जाकर के सुमिरन भजन ध्यान करो अपना आत्म कल्याण करो अपना आत्मबोध करो सदा सर्वदा के लिए जब कहा मै इसमें अखण्ड रूप से विराजमान हूँ तो अखण्ड रूप का तो खण्डन होगा नही जो भी रहेगा हमेशा हमेशा के लिए सन्देश बना रहेगा मंदिर में कोई टूट फुट होगी तो उसका जीर्णोधार होगा पर स्थान पर कहा गुरुमहाराज ने तो हमेशा हमेशा के लिए तो रहेंगे ही भूते ना भविष्यते कभी इसका खंडन नही होने वाला | गुरुमहाराज के साथ रहोगे लगे रहोगे सुमिरन भजन ध्यान बनता रहेगा आप लोगो की आँखे खुल जायेगी आप लोगो को दिखाई सुनाई पड़ने लगेगा और जितने लोग आते हो सबको अनुभव होता है और तुम्हारे साथ साथ तुम्हारे बच्चे बच्चियों को भी अनुभव होता है जिनकी जिनकी शादीयाँ हो होकर के यहाँ से चली गईं उन्हें भी गुरुमहाराज ने जा जाकर के बताया है की देखो ये काम कर लो तुम सही हो जाओगे वो काम कर लो तुमको ऐसा हो जायेगा तो तुमलोग गुरु के निशाने पर रहो सुमिरन भजन ध्यान करते रहो आगे कार्यकरम आ रहा है १३ से २२ तारीख तक कार्यकरम है साधना शिविर का सुमिरन भजन ध्यान का नवरात्र में नव दीन का कार्यकरम है और जिसको जितना समय हो उतने समय के लिए आये और हवन पूंजन करे सुमिरन भजन ध्यान करे और यहाँ पर कुछ अनुष्ठान कर दिया जायेगा मालिक के बताये अनुशार कुछ संकल्प के अनुशार एकाद दो मूर्तियाँ बना दी जायेगीं जैसे काशी में गुरुमहाराज ने बिष्णु जी की बनाई थी वैसे हीं किसी देवी देवता की जो बतायेंगे गुरुमहाराज तो मिट्टी की बना दी जायेगी और हवन पूजन होता रहेगा बाद में कल्याणी में उसका विसर्जन कर दिया जायेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 6 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम धन सतगुरु जी ने दी |
बड़ी मेहर और बड़ी कृपा कर, लिन्हा तुमको चीन्ह |
भेद बतायो नाम भजन का, उसमे होवो लीन |
मन चित धारो नाम भजन में, अंतर बाजे जो बीन |
मनवा लागे गुरुचरणन में, बने काम तब धीन |
सतगुरु मेहर विराजे तुम पर, तुम भी सतगुरु संग लीन |
पद पंकज में शीश झुकाकर, बन जाओ तुम दीन |
सतगुरु जयगुरुदेव
धरम और करम की रेखा, संत हीं सार भेदी हैं |
भेद बतलाते हैं सतगुरु, वही तो सच्चे भेदी हैं |
भाग्य के करम के बारे में सबकुछ संत सतगुरु समझाते हैं सकल पसारे की बात बताते हैं वही असली भेदी हैं वही असली नेमी हैं वही असली संत हैं संत हीं सब चीजों के गड़ना करते हैं गड़ना कर के सारे बातों को समझा देते हैं और सब कुछ समझा देते हैं की तुम्हे किस तरह से रहना है किस तरह से करना है कैसे तुम्हे चलना है कहाँ पर तुम्हे जाना है क्या तुम्हे देखना है क्या नही देखना है किसमें लगन लगाना है किसमें नही लगाना है ये सारी चीजें संत सतगुरु हीं बताते हैं
शब्द भेदी सचर साईं, सखी के संग संता हैं
संत बिन संसारा सुनी, कोई भी काज ना बनता
संत की हीं साख है संत के बतायी हुई शाखाएँ हैं सारे रास्ते है सखी सुरत को कोई ज्ञान नही है संत ही सबकुछ समझाते बताते हैं संत ही सबको ले चलते हैं संत ही सारे भेद को बता देते है उनके बिना कोई भी रास्ता हम लोग नही चल सकते हैं सुरत जिवात्मा उधर नही जा सकती संतों के द्वारा ही सारा निर्माण और कार्य है संत के बताये हुये रास्ते और भेद से ही हमको उस देश की तरफ जाना है प्रभु से मिलना है हरी से मिलना है
हरी गुणगान संत सत्संगा, आठों अमित नाम जहाँ गंगा |
प्रभु राम ओंकार रारंगा, सोहंग सतनाम सत्यधारा |
सतगुरु जी का सकल पसारा |
सत का भजन करो एक वारा, हो जाये सारा विस्तारा |
सगुण निर्गुण का ज्ञान सतगुरु, ध्यान अराधना की ज्ञान सतगुरु
| निर्मल मन कंचन जो होवे, सतगुरु चरनन नित सो सेवे |
सतगुरु चरनन शीश झुकावे, मुक्ति मोक्ष परमपद पावे |
प्रेमियों सबसे बड़ा गुरु है, गुरु से बड़ा कोई नही कर्ता कुछ ना कर सके, गुरु करे सो होये तो सतगुरु ही सबकुछ करते हैं सतगुरु ही सबकुछ बताते हैं सतगुरु हीं सबकुछ लगाते हैं और अभी धीरे धीरे महान पर्व नवरात्र का आ रहा है तो नवरात्र में क्या करते हैं तीन तीन दीन व्रत रहते हैं तो रजो गुण तमो गुण सतो गुण एक एक गुण को मार देते हैं और जो सत्य चीज है उसको प्राप्त कर लेते हैं और नवरात्रों में सुमिरन भजन ध्यान का विशेष समय होता है विशेष मुहुर्त होता है तो नवरात्रों में विशेष सुमिरन भजन ध्यान होगा और समस्त भारत के प्रेमियों को आमंत्रित किया जाता है सुमिरन भजन ध्यान करने के लिए अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में आप सब आइये जिनका जिनका सुमिरन भजन ध्यान नही बनता यहा बनेगा मालिक ने ऐसा हुक्म फरमा रखा है आप सब को दिखाई भी पड़ेगा सुनाई भी पड़ेगा आप का सुमिरन भजन ध्यान बनेगा आपका सुमिरन भजन ध्यान बन जाये यही हमारी सेवा होगी मालिक ने जो चीज बताई है वो चीज आपको बताई जायेगी समझाई जायेगी और सबलोग समझ कर के उस तरह से करो की तुम्हे भी पूरा का पूरा प्रताप पूरा का पूरा फल प्राप्त हो जाये |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 5 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम को भजते चलते चलो वंदो, पार उस देश जाओगे |
दया बरसेगी नामी की, नाँव उस पार जायेगी |
बड़ा सच्चा बड़ा प्रीतम, तुम्हारा सतगुरु प्यारा |
सत्य कामी सतगुरु से, सत्य का है यही सारा |
सतगुरु नाम को भजना, होये भाव पार को जाना |
भजन मन ध्यान चिंतन कर, ज्ञान सतगुरु मेहर लाना |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु संग नेहियाँ लगाते चलो, अपने दिल की वृध्दा सारी गाते चले |
नाम मजधार में है निकालो इसे, पार ले जाने की विनती गाते चलो |
नाम सतगुरु सब गुनगुनाते चलो, सतगुरु प्रीतम से बड़ा है कुछ नही |
नाम सतगुरु का हर छण में गाते चलो |
सतगुरु नाम सत से लगाते चलो , सतगुरु को दया से रिझाते चलो |
है दया सतगुरु की तुम्हारी नही, करम कुछ ऐसे तुम तो बनाते चलो |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा लाओ नाम भजन में, है दुःख यहाँ की जागीरी
मन चित लग जाये गुरु चरनन में , खुल जाये द्वार फकीरी |
दया मेहर बरसे मालिक की, आलम सतगुरु जंजीरी |
प्रीतम जी का लगा आईना, कर गुजरान गरीबी |
नर तन सफल भजन बिन नाही, सतगुरु संग सबुरी |
सतगुरु जयगुरुदेव
जान कर भजन ना करना, गुरु का द्रोह सच्चा है |
नही मन साथ देवे जो, भजन तो तेरा कच्चा है |
नाम मुख से उच्चारे तो, नाम तो सबसे सच्चा है |
ऐ प्रेमियों अगर मन साथ नही देता सुमिरन भजन ध्यान करने को मन नही करता तो वो धोखा है इसलिए सुमिरन भजन ध्यान करो नही मन मानता तब भी नाम बोलते रहो मुख से मालिक का नाम बोलो
भजन की तान अंतर में, शब्द की तान अंतर में |
जरा तुम ध्यान से देखो, भजन की तान अंतर में |
जब तुम बुध्दि लगाकर के सुमिरन भजन ध्यान के लिए अंतर में बैठोगे और सुनोगे तो तम्हे शब्द जरुर सुनाई पड़ेगा और जब शब्द सुनाई पड़ेगा तो बड़ा ही मिठ्ठा मनमोहक शब्द आपको सुनाई पड़ेगा जिससे आपकी जिवात्मा सुरत ठंडी हो जायेगी निर्मल हो जायेगी पवित्र हो जायेगी आप पर दया मेहर होगी उस मालिक की तो आपलोग लग कर के करो सुमिरन ध्यान भजन |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 4 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
ध्यान कर नामी को देखो, नाम की मेहर आयेगी |
करम जो हैं टूटे फूटे, भाग में चमक आयेगी |
दयालू सिन्धु सतगुरु की, सत्य के संग चलना है |
नाम सतगुरु का जपते चल, काम एक एक करना है |
विनय कर सतगुरु से अपने, नाम की चमक आवेगी |
अंतर्घट में चमक जाये, ज्ञान ताली खुल जावेगी |
दया के सिन्धु सतगुरु जी, अनामी हैं महाप्रभु |
नाम सतगुरु का भजते चल, चरण में आस लगाते चल |
दया प्रभु तुम्हें देंगे, नाम की मेहर की गठरी |
धरो सब शीश चरनन में, सिख लो तुम भजन करना |
गुरु आदेश ये सच्चा, नाम है तार अंतर में |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला अखण्ड रूप से विराजमान मालिक के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन देखो प्रेमियों गुरुमहाराज की बताई हुई एक एक वाणी अकाट्य है वह कट नही सकती सारी बातें सच्ची होती चली जा रही हैं चाहे वो राजनितिक मामले में बोला हो, समाज के हित में बोला हो, किसी चीज के लिये कहा हो वो सब एक एक वाणी अकाट्य है कटनेवाली नही सब सत्यता के तरफ बढ़ रही हैं हमको तुमको बताया है नाम भजन करना तो हम सब तुम सब भी नाम भजन करते हुये सत्यता के तरफ बढ़ें अपने गुरु की तरफ बढ़ें अपने गुरु में मन लगावें शाकाहारी सदाचारी का जो पाठ पढाया है उसकी भी चर्चा करते चलें अगर उसकी चर्चा नही करेंगे तो गुरुमहाराज कहेंगे की हमने जो बताया उसका एक अध्याय छोड़ दिया तो इसकी भी चर्चा करते चलो सबलोग तन मन धन से गुरु की सेवा करो नाम भजन करो गुरु सर्वग्य है गुरु में मन नही लगाओगे तो तुम्हारा काम नही बनेगा गुरु ही सबसे बड़ा मालिक है गुरु ही सबसे बड़ा नामी है गुरु हीं अनामी है गुरु के साथ चलने में कोई दिक्कत परेशानी नही होती गुरु का नाम भजोगे सारा काम हो जायेगा |
“सतगुरु नाम भजन मन गाओ, सतगुरु में मन लगाओ |
इस सुरत के लिए अपने, कुछ धर्म काज कर जाओ |
खुल जायेगी जब सुरतिया, तब चमके अंदर तारा |
सतगुरु ने जो बतलाया, दिखे तुमको सकल पसारा |
सतगुरु में मन को लगाओ, सतगुरु में मन को लगाओ |”
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 2 अक्टूबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अनुभव मनन ध्यान सतगुरु का, अंतर मन हो ज्ञान |
ध्यान भजन जो बन जावे, प्रथम सतगुरु को मान |
काल जाल से भरम मिटा कर, ले जाते निज धाम |
सतगुरु प्यारे प्रीतम नामी, उन्ही के आज्ञा मान |
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में, ध्यान भजन मन ठान |
ध्यान की कुंजी अंतर पट की, खोले मोरे सतगुरु सुजान |
दया मेहर आवे प्रीतम की, शब्द को सच्चा मान |
सतगुरु चरनन शीश झुका कर, धरो शब्द प्रमाण |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु के निर्मल वचन पावन पवित्र वाणी अपने आत्मा में उतारना मालिक के बताये हुये रास्ते पर चलना हीं प्रेमियों का सर्वप्रथम काम है शाकाहारी सदाचारी रहते हुये शाकाहारी सदाचारी बनने की दूसरों को सकल समाज में प्रेरणा देना यही तुम्हारा हमारा कर्तव्य है गुरु के आदर्शों पर चलना गुरु की वाणी का पालन करना यह हमारा तुम्हारा परम कर्तव्य है सब कुछ गुरु अधीने गुरु अधारे गुरु द्वारे रह कर हीं होता है मन चित में लगन लगा कर गुरु महाराज से प्रार्थना कर के हम सब, जब मालिक में रत रहेंगे तो हममे कोई विकार नही आयेगा मालिक की प्रार्थना करते रहेंगे मालिक की अराधना करते रहेंगे मालिक का ध्यान भजन करते रहेंगे तो हम पर कोई दुःख तकलीफ नही आयेगी मालिक के चरणों में लगे रहेंगे तो कोई दिक्कत नही होगी मालिक से वंदना करते रहेंगे तो मालिक की विशेष मेहर आती रहेगी मालिक को हाजिर नाजिर मानकर हीं वंदना और साधना होती है गुरु हाड़ मांस का पुतला नही होता वह सर्वग्य सचर विदित दाता होता है इसलिए अपने सतगुरु पर हरदम फक्र और नाज होना चाहिये की हमारे गुरुमहाराज समरथ हैं हमपर विशेष दया कृपा करेंगे पूरी कृपा के साथ हमारा साथ देंगे तो प्रेमियों लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करते हुये अपने गुरु की मान मर्यादा के साथ अपने गुरु के आन बान के साथ उनमें में लव लगाते हुये आगे को बढ़ते रहते हैं और अपने गुरु के मान सम्मान को रखते हैं मालिक में लगन लगाते है सुमिरन भजन ध्यान में विशेष मन लाते हैं दुनियादारी को कम करते हुये अपने गुरु के बताये हुये आदेशो का पालन विशेष रूप से करते हैं
सतगुरु जयगुरुदेव
“मंगल पवन सतगुरु नामु, नाम भजन अंतर प्रमाणु |”
महामंगल महापवित्र सतगुरु का नाम है और जो नाम दिया है उसका भजन करोगे तो अंतर में प्रमाण मिलेगा अंतर में ज्ञान होगा अंतर का पट खुलेगा तब तुम्हे पता चलेगा की सतगुरु ने हमे क्या अलौकिक जड़ी दिया है गुरु ने हमको बताया है
“दिव्य देश सुमिरत्नन ज्योति, सुन्दर सतगुरु मूरत होती |”
दिव्य प्रकाशमयी सतगुरु अंतर में मिलते हैं उनकी दया मेहर अंतर में बरसती है ऐसा सतगुरु का सुहावना रूप मिलता है उसे देख कर के सतगुरु का दर्शन कर कर के प्रेमी साधक गदगद हो जाते हैं और उनकी दया मेहर में ओत पोत हो जाते हैं मालिक से वंदना और प्रार्थना करते रहते हैं हे मालिक दया करो हमको इसी प्रकार से आपके दर्शन होते रहे आपके निज चरणों में लगे रहें और आपकी गाथा को गाते रहें गुनगुनाते रहें “सतगुरु नाम भजन जो करई, सो तो जिव भव पार करई |”
जो जिव सतगुरु का नाम भजन करता है सतगुरु में लव लगता है गुरु में मन लगता है सतगुरु में मिल जाता है उसका त्रंतार आवश्यक है परम आवश्यक है उसके जिम्मेदार गुरुमहाराज होते हैं उसको पार करते हैं उध्दार करते है उस पार ले जाते हैं उसकी नैयाँ को पार कर देते है उसपर गुरु विशेष दया करते हैं और उसको चरणों में लगाये रहते हैं |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम ( https://youtu.be/dHtwlP0gOq4 )
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन अंतर सतगुरु ध्यान |
अंतर ध्यान गुरु का जो रखियो, पूरा हो कल्याण |
नाम भजन मन चित लग जावे, अंतर सतगुरु ध्यान |
नाम भजन में लगोगे सब जन, हर पल कर कल्याण |
नामी की तुम्हें दया मिलेगी, नामी नाम अधार |
कोटी जन्म की रही तपश्या, भजो सतगुरु का नाम |
सतगुरु मेहर विराजे अंतर, अंतर मन कल्याण |
दिव्य देश सतगुरु का प्रेमियों, नामी नाम अधार |
मन चित रखियो नाम भजन में, होवे वेड़ा पार |
सतगुरु जयगुरुदेव
भजन मन सतगुरु में तुम लाओ |
नाम भजन सतगुरु का करियो, पुरे सुख को पावो |
दिव्य अलौकिक परम देश को, सब जन अंतर जाओ |
नाम प्रभु का गाओ मिलकर, नही तुम भेद छुपाओ |
उत्तम फल हो सतगुरु नामा, धूर की रास्ता पाओ |
चंचल चितवन नाम भजन की, नाम भजन मन लाओ |
सतगुरु जयगुरुदेव
देखो प्रेमियों, अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये, गुरुमहाराज ने बहुत पहले ही बता रखा था की बाढ़ अकाल सुखा भुखमरी महामारी बिमारी, अभी तुमने कहा देखा आगे आ रही है तो जो जो कुछ गुरुमहाराज ने बताया है वो सब हमको तुमको देखने को मिलेगा झेलना तो पड़ेगा दुनिया को ज्यादा आग लगेगी तो हमको तुमको भी उसकी आंच लगेगी उसको सहना पड़ेगा और अगर तुम नाम भजन करते रहोगे तो हमको तुमको कम तकलीफ होगी नही करोगे तो तकलीफ तो होगी ही होगी, मानव जात एक ही तरह के है फर्क इतने ही होता है आप शाकाहारी सदाचारी और दूसरी तरफ हैं मांसाहारी, तो शाकाहारी सदाचारी बने रहोगे नाम भजन जपते रहोगे गुरु के निशाने पर रहोगे तो पूरा कल्याण होगा पूरी की पूरी दया मेहर रहेगी कर्म कर्जे तो निपटने ही पड़ेंगे हर प्रकार से दया मेहर गुरु महाराज करते रहेंगे पर हमको तुमको बस अपने निशाने से रहना है अपने गुरु का भजन करना है गुरु की वाणियों को याद करना है गुरु महाराज ने जो जो कुछ बताया है उसे बराबर याद करते चलना है गुरु के अंतर हुक्म से सारा काम होता जा रहा है धीरे धीरे नये नये प्रेमी उठ कर के, अंतर में मालिक बहुतो को करोड़ो को बताते सुनाते हैं समझाते हैं बच्चू ये करना है बच्चू ये करना है तो वो काम हो रहे हैं हर प्रकार से सतगुरु अपना काम कर रहे हैं ये उनकी लीला मौज खेल है इस खेल को देखते चलो और गुरु चरणों में लगे रहो सुमिरन भजन ध्यान करते रहो और उनकी वाणियो को याद करते रहो कभी भी जो उन्होंने वाणी बोली है भुलना मत वो मिथ्या नही होगी “कलयूग में कलयूग जायेगा, कलयूग में सतयूग आयेगा” ये पक्का है कड़वा सच्च है इस सच्चाई को याद करो सतयूग जी महाराज तो यहीं धरा पर हैं गुरुमहाराज के हुक्म होते हीं अपना सारा काम शुरु कर देंगे और धीरे से कलयूग जी महाराज अपना सारा समान लेकर चले जायेंगे सतयूग जी महाराज अपना पूरा विस्तार करेंगे तो उसमे काफी सफाई होगी तो उस सफाई में सबकी सफाई होगी तो उस सफाई में बचने का रास्ता भजन है भजन हीं करना पड़ेगा तो आपलोग लगकर के सुमिरन भजन ध्यान करते रहो और गुरुमहाराज के अपने निशाने पर रहो और गुरुमहाराज को २४ घंटे याद करते रहो कभी उनकी पुराणी वाणियों को और नये वाणियों को नही भुलोगे अपने गुरुमहाराज का भजन करोगे, निशाना गुरुमहाराज से रखोगे किसी दूसरे से नही | कहते हैं “नामी से लगन लगाना और नामी से हीं मिला है नाम खजाना ” तो जो नाम खजाना मिला है उसको आराम से रखो और नामी से लगन लगाये रखो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 28 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजो सब सतगुरु सतगुरु नाम |
नाम भजन सतगुरु का प्यारो, अंत ले आवे काम |
भजो मन सतगुरु सतगुरु नाम |
दया मेहर सतगुरु की बरसे, भजन बने आठों याम |
भजो मन सतगुरु जी का नाम |
ध्यान भजन सच्चे साईं का, सतगुरु जाको नाम |
ध्यान भजन अंतर मन व्यापे, नर तन यही काम |
भजो मन सतगुरु जी का नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
दीन दुखियों के दुःख को मिटाते गुरु, अपने चरणों में सबको लगाते गुरु |
वंदना गुरु की सब जन बजाते चलो, नाम सतगुरु का सब जन तो गाते चलो |
भाव भक्ति में मन को लगाते चलो, सतगुरु नाम सब गुनगुनाते चलो |
सत्य का नाम डंका बजाते चलो, सतगुरु नाम को गुनगुनाते चलो |
राह में कोई रोड़ा नही आयेगा, काम सब तेरा देखो तो बन जायेगा |
आओ भक्ति में खुद को लुटाते चलो, सतगुरु नाम सब गुनगुनाते चलो |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन इस समय आप लोग आप सब जिधर निकला करो दुनियादार से कह दिया करो की “बाबाजी का कहना है शाकाहारी रहना है” शाकाहारी का प्रचार करते रहो ये अपने गुरुमहाराज का आदेश है शाकाहारी सदाचारी की बात हमेशा करते रहो सुमिरन भजन ध्यान करते रहो सतगुरु की निशाने पर रहो निशाना गुरु से लगाओ और गुरु में तल्लीन रहो गुरु में लवल्लिन रहो गुरु में मन लगाओगे तो सारा काम बनेगा गुरु ही सर्वग्य सत्यता है गुरु ही समरथ संत, सतगुरु सत्यता की डोर है इसलिए गुरु से निशाना रखो और भजन ध्यान सतगुरु के चरणों में रह कर करते रहो और शाकाहारी सदाचारी का प्रचार थोड़ा मोड़ा जो बन पटे रोज रोज, ये नही की आज किया कल नही जो मिल जाये, भैया हमारे गुरुमहाराज का आदेश है शाकाहारी सदाचारी रहो सुखी रहोगे बस इतना, रोज कहोगे अब एक दिन गये दस दीन गये नही, तो इस तरह जो मिलते जाये कहते जाओगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 26 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन भजन गुरु का नाम |
नाम भजन सतगुरु को भाये, शब्द अलौकिक ज्ञान |
विनय मन नाम भजन का ज्ञान |
रूप अलौकिक अंतर दिखे, सतगुरु जी की शान |
करो अराधना ज्ञान ध्यान से, मालिक सतगुरु राम |
नाम भजन सतगुरु का करते, पहुँचो जी निजधाम |
श्रध्दा भाव से करो भजनिया. सतगुरु मेहर आठों याम |
दया बरसती है मालिक की, मौज रहे हर शाम |
ध्यान भजन एक सच्चा साथी, यही अंतर का ज्ञान |
सतगुरु जयगुरुदेव
ध्यान धर सतगुरु नाम विचारो |
नाम भजनियाँ में मन को लगाओ, जीव अपना उध्दारो |
नये वाण अंतर में चलते, तरकस अंतर धारो |
नाम का वाण मन की कुंजी, सतदेश को पधारो |
करो भजनियाँ लगन से भाई, गुरु के देश सिध्दारो |
दया मेहर आवे नामी की, नाम देश में पध्दारो |
नाम अलौकिक नामी प्यारा, सन्मुख हो उध्दारो |
सतगुरु जयगुरुदेव तेरे साईं, इन्हीं का नाम पुकारो |
सतगुरु जयगुरुदेव
सारे प्रेमियों निज सतगुरु के चरणों में शीश झुकाते हुये रोज रोज गुरुमहाराज की चरण वंदना करते हुये नाम भजन में लगे रहो समय का कोई पता नही किस करवट कहाँ पर बैठता है कब क्या हो जाये इसके बारे में किसी को कुछ नही पता | संत महात्माओं को पूरा ज्ञान होता है भुत भविष्य की सारी बाते गुरु ही बताता है जो अंतर में मिला है और उस देश को रोज आता जाता है जो रोज आता जाता नही, अनुभव होता है, बैठता है साधना करता है जाता है आता है कुछ दूर ओ चलता है ऊपर कभी चला जाता है तो कभी नीचे तो उसे साधक कहते हैं साधक सतगुरु से मिलता है सतगुरु से हीं पूरी प्रार्थना करता है और साधना में गुरु पूरी मदद करते हैं तभी कहते हैं कि “साध संग मोहे नित परम सतगुरु दातार” जब रोज साध का संग मिलेगा जिसका सधा होगा साधना बनती होगी तो मेरी भी बनेगी मैं भी साथ बैठूंगा तो मेरा भी कुछ कल्याण हो जायेगा क्योकि वो बतायेगा की इस तरह से नही भाई साहब इस तरह से करो सुमिरन करो भजन करो ध्यान करो तो काम बन जायेगा जहाँ पर बरसात हो रही हो तो वहां पर जितने भी वन्दे होंगे सब भींगेंगे सब के ऊपर छींटे पड़ेगे और गुरुमालिक के निमित होकर के हमे नाम भजन करना है गुरु सहारे हीं रहना है गुरु ही सर्वोपरी है गुरु ही हमे पार करेगा गुरुमहाराज ने हमे नामदान के बाद ये बताया था की चेहरे को याद करना मै तुम्हे पार कर दूंगा, ठीक से लगकर के भजन करो इसी जन्म में पार कर दूंगा ये नही कहा था की किसी दुसरे का हाथ पकड़ लेना वो तुमको पार कर देगा गुरुमहाराज ने तो यही बताया की हम हीं तुमको पार कर देंगे शंका करने का काम नही है शंका करोगे तो फंस जाओगे ये शंका का देश है फसावे का देश है यहाँ तो दुःख तकलीफों का देश है, वहां सुन्दर सुगंधी सो वहां न कोई दुःख है न तकलीफ है न अशांति है वहां तो पूर्ण सुख हीं सुख है अपने सतदेश में अपने देश चले चलो और अपने देश में विश्राम करो
“देश सतगुरु का निकों है, परम अद्भुत परम प्यारा
जहाँ सूरतें विचरती हैं, हैं अद्भुत वहां को उजियारा”
परम सुखमई मंगलमई देश है सतदेश और खुब उजाला वहां प्रकाश है जहाँ सुरते विचरण करती है चलती है घुमती है टहलती हैं अद्भुत नजारे को देखती हैं और अद्भुत नज़ारे बनाती हैं बिगाड़ती हैं खुद उनमे काफी शक्ति हो जाती है गुरु की दया मेहर हो जाती है तो गुरु की दया मेहर से सारा काम करने लगती हैं वो बलवती हो जाती हैं और अपने गुरु पर बलिहारी हो जाती हैं गुरु का पूरा सम्मान करती हैं इसलिए तुमलोगों को भी चाहिये की अपने गुरु का पूरा सम्मान करो गुरु का आदेश का पालन करो किसी भी प्रकार की त्रुटी आप न करो और गुरु आदेश के बताये हुये मार्ग पर चलो जो गुरुमहाराज ने कहा है उस वाणी को याद रखो अगर कोई दूसरा तुम्हे कहता है की भाई हम तुम्हारे गुरु हैं हम तुमको पार कर देंगे तो ये धोखा है उस बात को तुम मत मानना गुरुमहाराज ही हमको तुमको पार करेंगे शब्द स्वरूपी सत्य स्वरूपी वे हमेशा हमारे अंग संग हैं और हर प्रकार से गुरु हाजिर नाजिर होता है गुरु हाड़ मांस का पुतला नही गुरु सर्वग्य सर्वविदित एक परम पराविद्या शक्ति है वो हर समय रहा है और हर समय रहेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 25 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अंतर मनन ध्यान सतगुरु का, दिव्य लोक संचार |
सतगुरु चरनन शीश झुकाकर, चलो देश वही पार |
दिव्य अलौकिक ध्वनियां बाजे, अंतर घट के मझार |
घट पट खोलो खुदा को देखो, अपना नूर हजार |
नूरानी हस्ती सतगुरु की, नूर हो जाये प्यार |
मान घमण्ड गुरुर को तोड़ो, नही राखो सम्मान |
दीन भावना श्रध्दा को जोड़ो, भाव झरोखों होवो पार |
सतगुरु प्रीतम तुम्हें पुकारें, नाव खाड़ी है मजधार |
सतगुरु खेवैयाँ खेवट न्यारो, ले जायेंगे उस पार |
सतगुरु चरनन शीश झुकाओ, धन्य भाग्य गये पार |
सतगुरु जयगुरुदेव
दिल में खिले नाम सतगुरु का, ऐसी मिठ्ठी बोली हो |
बनियों दीन गरीब दयाल, गुरु की छोटी खोली हो |
खबर घट घट की रखते हैं, हैं भारतें सबकी झोली हो |
दयालू दीनबन्धु जी, दया के सागर सिन्धु |
भाव बस दे घट पर तू ध्यान, होवे तत्क्षण तेरा कल्याण |
गुरु की मेहर विराजेगी, अंतर घट ध्वनियाँ बाजेगी |
चरण पर श्रध्दा सुमन राखो, सुरत सतदेश विराजेगी |
सतगुरु जयगुरुदेव
बड़े ध्यान पूर्वक समस्त प्रेमी गुरु की अंतर वाणी को सुनेंगे गुरुमहाराज का हुक्म है समय अजीबो गरीब नाटकीय ढंग का बदलाव लेकर खड़ा हो गया है आप सबो को भी हवा लगेगी तोड़ने मोड़ने वाला वक़्त है इसलिए लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करो निशाना गुरु से रखो कोई दूसरा माई का लाल पार करने वाला नही पार तो गुरु हीं करेगा सतगुरु ही करेगा “जयगुरुदेव” “सतगुरु जयगुरुदेव” जो भी बोलोगे पर निशाना गुरु से रखोगे तभी काम बनेगा | सतगुरु तुम्हारा गुरु है, कोई दूसरा नही है “जयगुरुदेव” उस प्रभु उस मालिक का नाम है तो जब तुम सतगुरु को याद कर के “जयगुरुदेव” बोलोगे तो सतगुरु तुम्ह्रारा प्रभु और गुरु दोनों मिल जायेंगे, प्रभु स्वरूपी सतगुरु, प्रभु स्वरूपी गुरु और प्रभु दोनों की मुलाकात होगी | दया मेहर तुम्हारे गुरु की होगी चुकी नामदान तुम्हारे गुरु ने दिया है तो रास्ता गुरु हीं दिखायेगा कोई दूसरा नही दिखायेगा कभी भी ऐसा मत सोचो की गुरुमहाराज कहीं चले गये गुरुमहाराज शब्द स्वरूपी सत्य स्वरूपी अंग संग निज घट में बैठे हुये हैं बाहर से हर प्रकार से विध्द्मान हैं कहीं भी जाओगे जैसे ये अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला गुरुमहाराज ने अंतर घट में बताया था की बच्चू तूने जीते जी ये मन्दिर बनवाया है इसमें मैं अखण्ड रूप से विराजमान हूँ तो यहाँ पर जो आयेगा सच्चे मन से ध्यान भजन करेगा तो आंख खुल जायेगी तो वो काम गुरुमहाराज कर रहे हैं अखण्ड रूप से विराजमान हैं उनकी अखंडता का परिचय लेने के लिये समस्त भारत एवं विश्व के प्रेमियों के लिए अह्वाहन किया जाता है आमंत्रित किया जाता है की एक बार आकर के सब लोग आप भी गुरु की परीक्षा ले लो और अपनी परीक्षा दे दो और ये चाहते हो की हमारा सुमिरन भजन ध्यान बन जाये तो एक बार पधारो और आकर के बैठकर के सच्चे लगन के साथ गुरु से माफ़ी मांग कर के गुरु के सामने सुमिरन भजन ध्यान करो अगर तुम्हारा सुमिरन भजन ध्यान बनने लगे तुम्हे दिखाई सुनाई पड़ने लगे तो तुम सच्चाई को मान लो अगर तुम्हे दिखाई सुनाई ना पड़े तो कभी मत मानो और जब दिखाई सुनाई पड़ने लगे तो इक्षा हो यहाँ बैठ कर के करो इक्षा हो देश विदेश बैठकर के करो अब तो बनने लगा गुरु की दया होने लगी और जब तुम्हे इक्षा हो जब अंतर से आदेश हो तब फिर चले आये और फिर गुरु की दया मेहर लेकर के चले गये यहाँ कोई रोक टोक तो है नही और नाही कोई दबाव है ना कोई मिलौनी है और ना कही जाने आने के लिए आपको मना किया जाता है की वहां मत जाना यहाँ जाना यहाँ मत जाना वहां जाना ये सब कोई मनाही नही और कोई भी किसी के भी साथ हो कही भी जाता आता हो यहा आता है तो उससे ये नही पूछा जाता की तुम कहाँ कहाँ गये और वह आया है हमारा गुरुभाई है कहीं भी गया किसी भी दर पे गुरु को ढूढने गया गुरु की दया को ढूढने गया तो गया तो गुरु की दया को ढूढने था तो उससे क्या पूछना की तुम कहाँ कहाँ भटके जब तुम सच्चे रास्ते पर आये हो तो तुमको सच्चा रास्ता बता दिया जाये और सच्चा सुमिरन भजन ध्यान कर लो तुझे भी अनुभव होने लगे दिखाई सुनाई पड़ने लगे तो वो भी १० को जोड़ेगा ५० को जोड़ेगा १०० को जोड़ेगा १००० को बतायेगा की भैया इस तरह से है तुम भी कर लो तो तुम्हारा भी काम बन जाये उसकी भी सेवा बन जायेगी वो भी निकल जायेगा और तुम भी निकल जाओगे प्रेमियों जब गुरु की चर्चा होती है तो सतगुरु हर प्रकार से विराजमान होते हैं हर प्रकार से दया मेहर की धार उनकी बरसती रहती है गुरु चाहे तो १ सेकेण्ड में तमको सतलोक अनामधाम पहुंचा दे, न चाहे तो तुम जीवन भर नाक रगड़ते रहो कुछ नही होने वाला १०-१० घंटे बैठते रहो तब भी कुछ नही होगा और १ ही सेकेण्ड में सब कुछ हो जायेगा अगर तुम गुरुमहाराज से अपने सतगुरु से प्यार करते हो गुरुमहाराज को हीं सबकुछ समझते हो गुरुमहाराज को हीं सबकुछ मानते हो तो गुरु में होकर के चलोगे तो भगवान को देखोगे गुरु में, तो गुरु के अंदर भगवन दिखेगा प्रभु दिखेगा परमात्मा और अगर अलग से तुम देखना चाहोगे तो भगवान नही दिखेगा क्योकि “गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाँव बलिहारी गुरु आपने जो गोविन्द दियो लखाये” तो गोविन्द को जो है गुरु लखाता है तो गुरु ही बताता है तो हमको आपको सबको गुरु के अंदर परमात्मा को देखना है परम पिया को देखना है परम पुरुष को देखना है और गुरु के साथ रहना है अपने गुरु के साथ रहना अपने सतगुरु के साथ रहना है उन्हीं का नाम भजन करना है |
सतगुरु जयगुरुदेव
मग्न मन सतगुरु अंगना में नाचो |
दात दियो जिन है सतगुरु ने, पहिनो है नाम का कँगना |
नाम शब्द की लड़ी लगी जब, पग पैजनियाँ बजना |
लगन लगी जब अंतर घट में, धुँढ लेवो मेरा संजना |
सतगुरु सुरत व स्वामी मिल जायें, सज धज सतदेश तेरे अंगना |
स्वामी सुरत एक हो जाये, हो गया सुरत का मिलना |
सतगुरु चरनन करी वंदना, नाम भजन मन अंगना |
सच्चे प्रीतम साईं मालिक, पहिना नाम तेरो कंगना |
सुध बुध्द रहे तुम्हारे चरनन, सत के प्रेम में सजना |
सतगुरु को प्रणाम दण्डवत, सत्यदेश मेरो अंगना |
सतगुरु जयगुरुदेव मेरे स्वामी, येही सत्य के संजना |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 24 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु नमन वंदना तेरी, चहु दिशी से होये फेरी तेरी |
नाम शब्द की सड़क बनाई, उसपे सूरतें करें चढ़ाई |
मानसरोवर होत धुलाई, सुरते हंस रूप हो जाई |
शब्द रूप का होये घमशाना, महाशुन्य का बड़ा मैदाना |
सुरत समाये शब्द देश में, बैठा तहां पर सतगुरु श्याना |
सतगुरु कंचन रूप सुहावन, चरण वन्दना अति मनभावन |
श्रीचरणों में शीश झुकाओ, गुरु की सब वंदना बजाओ |
सतगुरु जयगुरुदेव
मालिक का अलौकिक सतनामी स्वरुप बड़ा ही अनुपम अद्भुत और बड़ा ही मनमोहक और बड़ा ही प्यारा होता है प्रेमी साधक जो वहां पहुचते हैं देखते हैं खुब अमृत छक छक कर के पीते हैं और अपने सतगुरु को धन्यवाद देते हैं की हे मालिक तुम्हारी दया कृपा से मैं यहाँ पहुँचा आप यहाँ लाये तो हम यहाँ पहुंचे अगर आप यहाँ नही लाते तो कभी भी भूते न भविष्यते हम यहाँ नही आ सकते थें हे प्रभु आपकी बहुत बड़ी दया कृपा है हे सतगुरु आपकी बहुत बड़ी कृपा है की आप हमे यहाँ ले आये आपको कोट कोट बार नमन और प्रणाम है की हे प्रभु आप हमको लाये आप मेरे पिता हैं पिया हैं मालिक हैं स्वामी हैं हम आपके शरणागत रहेंगे और आपके साथ घुल मिल जायेंगे आपकी दया मेहर २४ घंटे बनी रहे आठों याम बरसती रहे, मेहर की नजर दया की नजर रूहानियत की नजर हे प्रभु आपकी मिलती रहे यही आरजू यही तमन्ना है हे प्रभु आप सब पर दया करो, दीनो पर दया करो और जो है आपके शरणागत, सब पर दया करो हर प्रकार से हाजिर नाजिर प्रभु आप सबकी आशाओं को पूरा करो कोई निराशा न रह जाये और सबकी आशा बंधी रहे |
“दयालु मेरे प्रभु गुरु सतनामी |
सतलोक सतधाम के नामी, सतगुरु मेरे नामी |
हैं कृपासिंध गुरुवर मेरे, सतगुरु जयगुरुदेव मेरे स्वामी |
सतगुरु की वाणी वचनामृत, छक छक अमृत पियो ना |
नाम शब्द वाणी के ऊपर, श्रध्दा भाव से झुको ना |
परम दयालू ने दिया आशीष, घाट पार में मिले जगदीश |
मुक्ति मोक्ष परमपद पाओ, जो सतगुरु में नेह लगाओ |”
सतगुरु जयगुरुदेव
ऐ प्रेमियों जब गुरुमहाराज में नेह लगाओगे गुरु के चरणों में मन लगाओगे लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करोगे तो दया मेहर की बरसात होगी गुरु दयालू है कृपालू है हर प्रकार से दया का सागर है दया की बरसात होती रहती है वो तुम पर दया कर देंगे और तुम्हारी झोली को भर देंगे हर प्रकार से कृपालू दाता दयालू सतगुरु हैं सतगुरु को कोटी कोटी नमन करते हुये अपना सुमिरन भजन ध्यान करो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 23 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन सतगुरु जी का ध्यान |
ध्यान धरोगे जो सतगुरु का, अंतर मन कल्याण |
ज्योत शिखा और दीप शिखा का, मिले अंतर प्रमाण |
राम प्रभु के दर्शन होवें, मंगल सतगुरु राज |
बाजा बाजे मोहक मोहक, सतगुरु जी का साज |
नाम भजन करो तुम सतगुरु का, अंतर मन में राज |
सतगुरु नाम भजन मन प्रेमी, येही एक शिष्य का काज |
शीश धरो सतगुरु चरनन में, मंगल पावन राज |
सतगुरु जयगुरुदेव
चनचल चितवन नाम भजन में, अंतर शब्द का राग |
धसे सुरतिया झिलमिल ज्योति, अंतर खेले फ़ाग |
जग जाये मनवा काल पीत युग, अमृत छक छक राज |
बाजे बाजा ध्वनी अलौकिक, अंतर मन में गाज |
शब्द सुहावन मंगल पावन, अंतर मन का काज |
सतगुरु प्रीतम मेरे सांवरियां, जहाँ बैठे वहीं राज |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
बन जायो काम नाम भजन से, कर गुजारन गरीबी में |
दया मेहर आवे नामी की, सबर का फल है मंजूरी |
शब्द भेद का शब्द सुनावे, येह पर काम जरूरी |
ऐसा भेद है अद्भुत विधाना, शब्द की कृपा सरूरी |
सतगुरु जयगुरुदेव
पड़ो तुम नाम के पीछे, नाम ही गुरु को चाहेगा |
किया जो वादा सतगुरु से, वो वन्दा तु निभायेगा |
नाम का दान सतगुरु ने, थमाया तुमको सस्ते में |
करो कुछ काम अंतर का, कटे मैलाई जो सारी |
दिव्य और दिव्य ज्योति हो, शब्द की अंतर उज्याली |
करो प्रणाम सतगुरु को, मेहर सतगुरु की है आई |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, नित प्रति हम अपने निरख परख रोज रोज करते रहें अपनी रहनी गहनी सहनी में और ये ध्यान देते रहें की हमसे कहाँ पर भुल हो रही है कहाँ पर चूक हो रही है कहाँ हमसे अच्छा हो रहा है कहाँ हमसे बुरा हो रहा है और जब जब समय मिल जाये थोड़ी देर के लिए ५ मिनट १० मिनट २ मिनट १ घंटे आधा घंटे तो अपना गुरु भजन में नाम भजन में लग गयें और आत्म मंथन करते रहें | आपके घर में गुरु महाराज की पत्रिकाये होंगी या अगल बगल में प्रेमियों के यहाँ रहती हैं तो उसको उलट पलट के पत्रिकाओ को देख लिया तो गुरुमहाराज का उसमे सत्संग और परवचन गुरुमहाराज का उसमे मिलती है तो उसको पढने से मन भी लग जायेगा और मन पाप से मुक्त हो जायेगा ऐसे ऐसे काम करने से जो है मन में भाव बनता है की गुरुमहाराज की पत्रिका पढ़ ली प्रार्थना पढ़ ली और गुरु को हाजिर मानकर के सारा काम किया, हाजिरी को सारा संसार ही मानता है चाहे किसी देव का, चाहे किसी देवता को, या किसी को पीपल में पानी डालता है तब भी कहेगा की इसके अंदर ब्रह्मदेव बाबा हैं और ये हमारा भला करते हैं तो ऐसे अपने गुरु महाराज को मानकर के की हाजिर नाजिर हैं आपलोग भजन करो | हाजिर नाजिर हैं शंका मत करो तब काम सारा बनेगा कोई भी काम करने पर ये मन लगा कर कहा जाता है की हमारा ये काम हो जायेगा इसप्रकार का है तो तभी सारा काम होता है “तीन लोक नौ खण्ड में गुरु से बड़ा न कोए, कर्ता कुछ ना कर सके गुरु करे सो होये” गुरु जो करेगा वही होगा तो गुरु के अधीन रहो गुरु के अधारे गुरु के द्वारे गुरु के साथ रहो गुरु का संग करो गुरु ने जो बताया है उस तरह से सुमिरन भजन ध्यान करो अपने देश चलने की तैयारी करो अगर यहाँ बवालों में पापाचारों में दुनियादारी में ज्यादा समय देते रहे फसे रहे तो कौन निकालेगा जब सुमिरन ध्यान करोगे जब अंतिम समय आएगा तो कोई बीबी बच्चा साथ देने वाला नही और फिर जब बीबी बच्चे हैं तो मोह भर्म तो लगा ही रहता है तो उतना काम करो जितना तुम्हरा कर्तव्य है इधर भी कर्तव्य अपना पूरा करो और उधर जो अपने मनुष्य जीवन के लिए तुमने कौल करार किया है सांसो की पूंजी मिली की हम सुमिरन भजन ध्यान करेंगे तो सुमिरन भजन ध्यन भी करते रहो जितना बन पट्टे अधिक से अधिक ज्यादा से ज्यादा समय निकाल कर के उसमे भी दो और अपने घर परिवार में भी दो, गुरु की पूरी की पूरी दया बरक्कत आप पर बरसेगी |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजो मन सतगुरु जी का नाम | नाम भजन के लिए मिला नर तन, फिर क्यों न करो सुबह शाम |
भजन करो सतगुरु मीरा राम |
अद्भुत वीणा अंतर बाजे, अलौकिक धनी धूरधाम |
मूढ़ गवाह समझ जब पावे, ताकत चतुर सुजान |
दया भाव जो श्रध्दा बनावे, आवे गुरु के काम |
नाम भेद जो समझ जात है, गुरु चरनन प्रणाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, मालिक की अशीम दया अनुकम्पा है जो हम सब को रोज मालिक का कुछ ना कुछ संदेशा मिलता है कुछ ना कुछ सत्संग सुनने को मिल जाता है मालिक ने हमेशा से यही बताया चेताया की लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करो यह देश सर्व सराय है रैन एक सपना, सपना है सपना, सराय है सराय, आज नही तो कल यहाँ से जाना होगा यहाँ जो कोई आया है उसे जाने है, रहता हमेशा हमेशा के लिए कोई नही है चाहे रजा हो रंक हो फ़क़ीर हो साधू सन्यासी जो भी हैं सबको यहाँ का विधान है यहाँ से जाना है तो जब यहाँ से जाना है जानते हो की हमको यहाँ से जाना है तो जहाँ पर जाना है वहां भी खाने पिने की व्यवस्था, खर्च पाने के लिए कुछ चाहिये तो यहाँ पर की तो व्यवस्था आपने की तो जहाँ जाना है कहाँ जाओगे कहाँ पर पहुंचोगे किस देश में जाओगे स्वर्ग जाओगे नर्क जाओगे बैकुंठ जाओगे या आगे सतधाम जाओगे कहाँ जाओगे इसके बारे में आपने सोचा की हम जब हमारा शारीर छूटेगा तो मरने के बाद कहाँ जायेंगे किस स्तर पर होंगे, क्या हमारे साथ होगा क्या नही होगा तो दुनियादारी के बारे में सोचते हो उधर के बारे में भी सोचना चाहिये और जब प्रभु का भजन करने के लिए कौल करार किया तो भजन कर के पूंजी जमा करना तुम्हरा काम सबसे पहला था और उसको ही भुल गये पुरे दिन रात लगे रहे खेती दूकान दफ्तर के काम में बच्चों के पालन पोषण में और प्रभु का भजन, हरी का भजन, अपना जो नाम भजन कर कर के अपना ऊपर जाने की स्वर्ग, बैकुंठ धाम, प्रभु के धाम जाने की जो पूंजी थी उसको तो इक्कठा किया नही सारा समय बर्बाद कर दिया तो बोलो यमराज के यहाँ कौन मदद करेगा जब तुम भजन करोगे सतगुरु को याद रखोगे गुरुमहाराज को याद रखोगे “सतगुरु जयगुरुदेव” “जयगुरुदेव ” बोलोगे तो मालिक तुमको वहां मिलेगा और जब तुम बोलोगे ही नही तो तुमको वहां कौन मिलेगा बाहर से जब कोई मिल गया तो जयगुरुदेव भैया जयगुरुदेव कर लिया और जब समय आया तो शाम को भोजन किया, ना सुमिरन किया ना भजन किया ना ध्यान किया और सो गये और जहाँ भी सत्संग में जाते हो तो सत्संग में सत्संग सुना दिया गया २ घंटा ३ घंटा 4 घंटा और सत्संग में जो कुछ बोलना था आगे पीछे की बोल दिया गुरुमहाराज ने ये कहा गुरुमहाराज ने वो कहा पर आप लोगो को जब बिधिवत ये बताया जाये की किस तरह सुमिरन होता है किस तरह भजन होता है किस तरह ध्यान होता है तब तो काम बने उस पर आप सब लोग अमल लाया करो उसपे पूरी की पूरी अपनी क्षमता बुध्दि विवेक को लगाओ की हमे भजन करना है और सत्संग में हर प्रेमी सत्संगी गुरुभाई बहन जो भी सत्संग सुनाता है उसे चाहिये की सबसे ज्यादा भजन पर जोड़ दे भजन के बारे में बताये की भजन करो जब भजन करोगे तब ही कुछ होगा और तुम समझते हो की हम भजन नही करेंगे हमारा काम ऐसे चल जायेगा वहां गये थे संगत में झोली में १०-५ डाल दिला है अबकी बार ५०० डाल देंगे तो ५००० आ भी जायेगा आपकी सारा काम भी हो जायेगा तो देखो भाई गुरुमहाराज ने कहा की जो तुम करोगे उसके बदले में मै दूंगा लेकिन भजन करना ही पड़ेगा भजन करना बहुत अनिवार्य है सुमिरन ध्यान भजन करते चलोगे नाम तुम जपते चलोगे तुम्हे कुछ दिखाई सुनाई पड़े न पड़े उसकी जिम्मेदारी मेरी है | गुरुमहाराज ने कहा की अगर तुम रोज रोज बैठते हो हाजिरी देते हो करते हो तो तुम्हे नही भी दिखाई सुनाई पड़ता है तो मेरो जिम्मेदारी है की मै तुमको पार कर दूंगा लेकिन तुम नही बैठते हो तो कौन तुमको पार करेगा, कोई करेगा पार ? तो लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करो और दोनों वक्त निकालो, ना कुछ हो तो चारपाई पर पड़े पड़े पांचो नाम की धुनी “सतगुरु जयगुरुदेव” “जयगुरुदेव” नाम की माला फेरते रहो मन में बोलते रहो जब रास्ते चलते हो कही भी जाते हो तो गुरु का नाम जपते रहो |
सतगुरु जयगुरुदेव
“सतगुरु जयगुरुदेव” का मतलब सत्य के गुरु हमारे सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी जी महाराज तो हमारे सत्य के गुरु है इसलिए उनको सतगुरु और वो सतगुरु है हमारे, इसलिए “सतगुरु जयगुरुदेव” बोलते हैं ताकि निशाना किसी दुसरे पर ना जाये निशाना हमारे गुरुमहाराज पर ही रहे की हम अपने गुरु महाराज को ही मानते हैं बाकि सबको अपना गुरुभाई मानते हैं |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव
न किसी की निंदा आलोचना करने को गुरुमहराज ने बताया ना किसी की करते हैं ना किसी की है ना किसी को कुछ कहते हैं जो करे सो भरे और जिसको जो बताया है वो अपना काम करे मुझे जो बताया मुझे जो आदेश दिया मै उस आदेश का पालन करता हूँ मुझे जो बताया है की बच्चू तुम्हारा काम है सुमिरन भजन ध्यान बताना उनको, और खुद करना और करवाना, मै अनुभव करवा लूँगा तो जब यहाँ अखण्ड रूप से विराजमान हैं गुरुमहाराज, तो यहाँ पर जो आयेगा सच्चे मन से सुमिरन भजन ध्यान करेगा तो उसके आँख तो खुलने हीं खुलना है कोई माई का लाल नही रोक सकता वो तो खुल ही न खुल ही जायेगी तो जब गुरुमहाराज ने वचन कहे हैं तो वो काम गुरुमहाराज कर रहे हैं तो उसको कोई माई का लाल थोड़ी न रोक सकता है वो तो गुरु के वचन है गुरुमहाराज कर रहे हैं कोई दूसरा तो कर नही रहा है तो प्रेमियों आप सब को चाहिये की एक बार आकर के यहाँ अपने जीवात्मा की कल्याण के लिए अपने कान आँख खोल लेना चाहिये उसके बाद में मर्जी आये तो अपने घर पर बैठ कर करो मर्जी जहाँ जाना चाहो वहा जाओ मेरी तरफ से तो कोई रोक टोक तो है नही की तुम यहाँ मत जाना इधर मर जाना उधर मत जाना चाहे इधर चले जाना, उधर मत आना जिसकी मर्जी जिधर जा सकता है सुमिरन भजन ध्यान के लिए आ सकता है यहाँ बैठ कर के सुमिरन भजन ध्यान करे गुरु नियम के मुताविक आवे और गुरु नियम के मितविक जावे |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मिलन मन भजन गुरु का नाम |
श्रीचरनन में नेह लगावे, जाये वो सतधाम |
मिलन मन गुरु चरनन में ध्यान |
गुरु अलौकिक कुंज स्वरूपी , इन्ही का करियो ध्यान |
शब्द रसायो अमृत वेला, उसको करियो पान |
हरी अनंत हरी कथा अनंता, ऐसे सतगुरु राम |
शीश धरो सतगुरु चरनन में, हो पूरा कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, मालिक की अशीम दया अनुकम्पा है और ऐसा खेल रचा है की किसी की बुध्दि में नही आ रहा है सबकी बुध्दि से परे हो जा रहा है कोई कह रहा है इधर हैं कोई कह रहा है उधर हैं कोई कह रहा है जिन्दा हैं तो कोई कह रहा है निजधाम चले गये, हर प्रकार के ऊठा पोह लगी हुई है और मालिक तो शब्द भेदी है हर प्रकार से हाजिर नाजिर है वो उसको अद्भुत दर्शन अलौकिक दर्शन हर प्रकार की दया मेहर कर रहे हैं, कहते हैं जब तक नामी रहता तब तक नाम का असर, अनुभव अनुभूति हो रही दिखाई सुनाई पड़ रहा साधक प्रेमी आगे की तरफ बढ़ रहे हैं गुरु महाराज की जय जयकार कर रहे हैं और जो कुछ भी हो रहा है सब गुरुमहाराज की दया कृपा से हो रहा है अगर उनकी दया मेहर नही होती तो एक भी पग कोई भी प्रेमी चल नही सकता था और गुरुमहाराज ने बताया आगे कई कई “जयगुरुदेव” हो जायेंगे तमाम बजार लग जायेंगे हर जगह दुकाने खुल जायेंगी तो ये तो जो कुछ बताया है वो तो होने है इसमें कोई लेष मात्र का फर्क आना नही है पर हमे आपको ध्यान कर कर, मन लगन लगा कर के सुमिरन भजन ध्यान अवश्य करना है सुमिरन भजन ध्यान ही मुख्य पूंजी है वही इस पार से उस पार ले जायेगा कोई दूसरी चीज हमारे तुम्हारे साथ नही जायेगी सुमिरन ध्यान भजन ही जायेगा , ध्यान भजन मन में रहे नाम सतगुरु का वही दिव्य देश दिखलायेगा और वही सतगुरु के चरणों में पहुँचायेगा इसलिए नाम भजन करना सबसे आवश्यक है और परम जरूरी है गुरुमहाराज ने हमलोगों को अमोलक दौलत दी है वो दौलत है नाम, दात बक्शी है नाम की तो उस नाम को हमको बराबर लेते रहना है जपते रहना है और गुरु में मन लगाये रहना है |
सतगुरु जयगुरुदेव
धरो मन सतगुरु चरनन ध्यान |
धीर गंभीर अधम और पापी, गुरु चरनन कल्याण |
धरो मन सतगुरु चरनन ध्यान |
जिन सतगुरु ने नाम दियो है, सुन वीणा की तान |
धरो मन सतगुरु चरनन ध्यान |
घंटा शंख मृदंग किंगरिया, किरके आठों याम |
धरो मन सतगुरु चरनन ध्यान |
अद्भुत दिव्य देश दिखलावें, बन प्रभु सतगुरु राम |
इन्ही के चरनन पुरुषारथ है, हो जाये कल्याण |
धरो मन सतगुरु जी में ध्यान |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन पावन सतगुरु नाम
पतित से पावन नाम गुरु का, अन्तर घट कल्याण |
दया मेहर बरसे नामी की, नाम भजन दो ध्यान |
चढ़े सुरतिया जब अम्बर में, दया मेहर की मिले खान |
प्रीतम ना-मी मेरे सांवरियां, दात दियो है दान |
मन चित लग जाये नाम भजन में, बस तेरो कल्याण |
विनती विनय प्रार्थना गुरु से, धुन मिल जाये जी ध्यान |
सतगुरु जयगुरुदेव
पावन चंचल शब्द सहारा, शब्द की सीडी का सकल पसारा |
शब्द पकड़ होऊ उस पारा, मेहर होई दाता की आला |
खोलें अंतर्घट का ताला, सतगुरु प्रीतम दीन दयाला |
हे मालिक सतगुरु कृपाला, नामी मेरे दीन दयाला |
प्रभु की कृपा होये सब काजू, मंगल रहे अमंगल न साजू |
श्रीचरणन की चमक जो आवे, मुक्ति मोक्ष परमपद पावे |
पद पंकज चूमे हरसावे, अपनी सतगुरु में घुल मिल जावे |
सतगुरु जयगुरुदेव
मगन मन जपना नाम गुरु का |
अंतर ध्यान हो सतगुरु प्यारे, हर क्षण रहूँ तुम्हारे सहारे |
हे मालिक मेरे कृपाला, सच्चे सतगुरु दीन दयाला |
दया मेहर करो खोलो ताला, सतगुरु प्रीतम हे नन्दलाला |
सतगुरु सांवरियां से नेह लगाऊ, नाम भाजन मै इन्ही का गाऊं |
शब्द सिरोही सतगुरु प्रीतम, दया मेहर की खानी जो आला |
हर घट का खुल सतगुरु ताला, सतगुरु प्रीतम हैं कृपाला |
सतगुरु जयगुरुदेव
मंगल मन में प्रार्थना कर के अपने गुरु में ध्यान लगाने में प्रेमियों को साधकों को, और आनंद आता है अंतर में, जब भीनी भीनी अवाज आने लगती है हरियाली की रील चलने लगती है मालिक की मेहर से मन बुध्दि चित एकाग्रचित हो जाता है तब अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है अच्छी सुगंधी आती है और अच्छी दया कृपा होती है गुरु महाराज की | गुरु महाराज से प्रेमी बाते कर के गदगद हो जाते हैं बाग बाग हो जाते हैं हर प्रकार से मालिक उन पर दया मेहर करते हैं और मालिक का गुणगान वे करते रहते हैं, मालिक समर्थ है सनातन से परम पिता परमेश्वर है सबका मालिक है यही ईशवर है सच्चा, अनाम पुरुष करतार निर्गुण निराकार शिव, या श्रीराम पुरुष करतार को हीं कहते हैं परम पिता परमेशवर भी इनको कहा जाता है तो जब इनमे मन लगाओगे इन्हीं का भजन करोगे इन्हीं का गुण गाओगे तब सारे देवी देवता सारे धनी सब कोई खुश रहेगा सबकी पुजा गुरु की पुजा में हो जाती है गुरु के साथ जब लगकर के सुमिरन ध्यान पुंजन हवन जब किया जाता है तो सारे कार्य सफल हो जाता है गुरु के आधारे गुरु के द्वारे जब गुरु अधारे गुरु द्वारे रहोगे तो सारा काम तुम्हारा बनता चला जायेगा अब असली गुरुद्वारा घट के अंदर है घट में घाट, घाट पर सतगुरु तो सतगुरु की जहाँ बैठक होगी वहां असली गुरुद्वारा है यहाँ पे तो सभी लोग जानते हैं की गुरु द्वारा कहाँ पर है, आश्रम मथुरा और प्रेमी जाते आते रहते हैं माथा भी टेकते हैं किसी को कोई रोक टोक नही ना कोई मनाही है की वह मत जाना | मालिक की चीज है मालिक ने एक एक तिनका जोड़ के बड़े ही परिश्रम से आश्रम का निर्माण किया जहाँ मालिक के चरण रचे बसे और हमेशा से वह भूमि पवित्र है और आगे भी पवित्र रहेगी तो आप लोगो को निशाना अपने गुरुमहाराज से रखकर के गुरु को हाजिर नाजिर मानकर के सुमिरन भजन ध्यान करना है और आत्मबोध आत्मज्ञान के तरफ बढ़ते रहना है अपने मालिक में लव लगाते रहना है गुरु की दया कृपा को प्राप्त करना है और अपने गुरु के बताये हुये बातों पर अटल रहना है जो भी वाणी गुरुमहाराज ने बोली है उस पर ध्यान देना है क्योकि संत की वाणी असत्य नही हो सकती कभी, “संत वचन पलटे नही पलट जाये ब्रहमांड ” तो उनकी बातें जो हैं वो सच्च होनी है तो सच्चाई के तरफ लगन से लगे रहे और गुरु महाराज की पुरानी बातों को याद करते रहें , पत्रिका को उलट पलट कर देखते रहें जो पुरानी पत्रिका है तो गुरुमहाराज ने क्या कहा और ध्यान भजन करते रहें जब तक सांसो की पूंजी है और अपने गुरु के सहारे रहें और अपने गुरु के अधारे रहे जब गुरु सहारे गुरु अधारे गुरु द्वारे रहोगे तो सारा काम बना रहेगा अगर गुरु अधारे नही रहे तो काम नही बनेगा तो प्रेमियों हमको नेह अपने गुरु से लगाना है और गुरु का हीं नाम भजन को गाना है |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु कहते है अपने गुरु को अपने गुरुमहाराज को ही सतगुरु कहते हैं तो जो हम “सतगुरु” कह देंगे तो पहले हमारे गुरुमहाराज याद आ जायेंगे फिर “जयगुरुदेव”, “जयगुरुदेव नाम प्रभु का” है तो “प्रभु” ही वही और वही “सतगुरु” एक ही चीज है तो पहले कहते हैं “सतगुरु जयगुरुदेव “

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम से मिली अमोलक नाम |
नाम अमोलक दियो गुरु ने, जो सच्चा प्रमाण |
नामी प्रीतम मेरे सांवरिया, सतगुरु हीं हैं राम |
शीश राखो इन्हीं चरनन में, इन्ही के चरण अराम |
सतगुरु प्रीतम मालिक अपने, यही तो हैं प्रभु राम |
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु महाराज ने समस्त प्रेमियों को सिखाया बताया नाम की अमोलक दौलत दी नाम जड़ी दी और ये बताया इसको बराबर रगड़ते रहना अंतर में चमक आएगी तुम्हे दिखाई पड़ेगा सुनाई पड़ेगा किसी भी विषम परिस्थिति में मेरे चेहरे को मुझको याद करना मै तुम्हारी मदद कर दूंगा तुम्हारा मददगार हूँ हर प्रकार से मैं तुम्हारा मदद करूंगा तुम्हे अपने साथ रखूँगा मालिक ने सत्संग सुनाते हुये सबकुछ बताते हुये शाकाहारी सदाचारी रहते सुमिरन भजन ध्यान का रास्ता बताया की जब आप खा पी लो शाम को चारपाई पर लेटने चलो तो १ घंटे सुबह और १ घंटे शाम उस मालिक को दे दो जिससे तुम्हारा भी काम बन जाये और उस मालिक का भी काम बन जाये दोनों का आपस में ताल मेल हो जाये रास्ता सच्चा है सतगुरु सच्चे हैं तो राही सच्चे हैं तो उस देश की तरफ चल चलो अपने मालिक से मिलो सतधाम सतदेश की तरफ बढ़ो गुरु समरथ है हर तरह से पार करेगा उध्दार करेगा कोई मिलौनी और कोई उस प्रकार से छाया नही है गुरु के सामने जो तुम्हे रोक सके गुरु का नाम लेते हीं भव पार हो जाओगे |
“निष्कंटक निश होऊ प्रभाऊ, नाम जपत जहाँ जरत हैं राहु
कलमल सिंध सुख जहाँ जाई, जब तुम लोगे नाम दुहाई ”
तुम्हारे ऊपर विशेष दया मेहर होगी सारे कर्म कर्जे छुट जायेंगे और जो कलमल के सिन्धु हैं वो सुख जायेंगे जब तुम नाम लोगे नाम भजन करोगे प्रभु के बताये मार्ग पर चलोगे तो सारे के सारे काम तुम्हारे बनते जायेंगे गुरु महाराज की दया कृपा होती जायेगी दया मेहर की बरसात होती जायेगी और सब तुम उसमे ओत पोत होते चले जाओगे |
“सतगुरु स्वामी शब्द स्नेही, नामी अपने रहे विदेही
नाम की ज्योति जलाई नामी, निष्कलंक निश पाप हे नामी
दया मेहर उपजी नामी की, दात दीन्ह सतगुरु स्वामी की ”
जो कुछ मिला है उसको गुरुमहाराज ने दिया है आपको सब प्रकार से जो भी दात बक्शी है वो गुरु महाराज की तरफ से बक्शी हुई है उन्ही की कमाई हुई पूंजी है जो तुमको मिली है तुम सब लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करो और अपने देश चलो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मेहर बस दीन्हा सतगुरु नाम |
दया मेहर उपजे साईं की, सत्य है देश अनाम |
सच्चे सतगुरु सत्य देश के, किया त्रिलोक मुकाम |
नाम भजन का मार्ग दीन्हा, बन जाये सब काम |
दीन गरीबी और बिमारी, ये सब दीन्हा दान |
कर्म निपटावे आगे बढ़ाये, सुरत जाये निजधाम |
सतगुरु मेहर से देश आपनो, कीन्हा जाये मुकाम |
शीश झुकायो सतगुरु चरनन में, जिनने दियो था नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन मालिक की अशीम दया कृपा अनुकम्पा से हमको आपको सबको “एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनियद गोस्वामी संगत साध की कटे कोट अपराध” तो जो भी समय हमको आपको मिलता है सत्संग का छोटा मोटा उसमे गुरुमहाराज की विशेष दया कृपा होती है और दया मेहर की बरसात होती रहती है उसी में समझ आती है और सत्संग के दौरान अपनी गलतियों को सुधारा भी जाता है चुकि सत्संग सुनने के बाद हमको कुछ न कुछ पता चलता रहता है कि क्या कमी है क्या अच्छाई है क्या बुराई है तो उसको समझने के लिए और अपने सुरत जीवात्मा की धुलाई के लिए सत्संग में जाते हैं संत सतगुरु की सत्संग सुनते हैं जो बड़ी ही दया कृपा कर के मालिक की वाणी सुनने को मिलती है गुरु महाराज ने अपार दया कर के करोड़ो करोड़ की संगत जोड़ी और सबको नामदान दिया पर कहा निशाना मुझसे रखना बच्चू किसी दुसरे से नही हमको देखते रहना भजन करते रहना मै तुमको अंतर में मिलता रहूँगा | असली मिलन अंदर का और अंदर का रास्ता अंदर से, अंतर में सारी खिलकत है अंतर में सारी दुनिया बसी है अंतर में सदा सर्वदा के लिए बैठा हुआ हु अंतर में सारा खजाना रखा है अंतर की आत्मबोध आत्मज्ञान की पढाई पढाई है तो आत्मबोध आत्मज्ञान कि पढाई पढ़ो आत्मसिध्दी प्राप्त करो |
आत्मबोध हो नाम भजन से, जो करे गुरु का ध्यान |
दया मेहर बरसे सतगुरु की, अंतर घट खुलेयाम |
जब मालिक की विशेष दया कृपा होती है जब मालिक की दया की बरसात होती है तो अंतर का ताल्ला खुल जाता है दिखाई और सुनाई पड़ने लगता है अनुभव होने लगता है, मालिक की दया मेहर बरसने लगती है सच्चा सुमिरन ध्यान भजन लगन के साथ करने पर मालिक विशेष दया कृपा करते हैं और अंतर का ताल्ला खोल देते हैं सतगुरु के साथ प्रेमी गुरु महाराज के साथ आगे बढ़ने लगते हैं उनको आनंद आने लगता है रस मिलने लगता है ऊपर चढ़ाई होने लगती है तो ये सब गुरुमहाराज की दया कृपा से होता है शिष्य कुछ भी नही गुरु सबकुछ है शिष्य ने अपना सर्वस्य सबकुछ गुरु को सौंप दिया सतगुरु के चरणों में कर दिया की हे मालिक दया करो हर प्रकार से, और हमे अपने निज घर पहुंचा दो जहाँ सुरतो का असली मुकाम है उस मुकाम पर पहुँचाओ मालिक, हम आपके साथ हैं जाने अनजाने कोई गलती हो जाये भुल हो जाये अपराध हो जाये उसको क्षमा कर दो और अपने साथ हमको अपने देश निज घर निज धाम ले चलो और जीवन मरण से मुक्ति दिलाओ सुरत जीवात्मा साधक प्रेमी प्रेमियों को प्रार्थना गुरु महाराज से इसी तरह करनी चाहिये और गुरु महाराज दाता दयाल हैं विशेष मौज के धनी हैं वो हरदम दया करते रहते हैं दया की धार उनकी हरदम आती रहती है और मेहर बरसती रहती है और हमसब को लेना नही आता देते तो वो बहुत कुछ हैं पर हमे लेना नही आता अगर हम ठीक से सारी दया कृपा को ले लें ग्रहण कर लें एक पैसे भी ग्रहण कर लें तो बहुत अच्छी बात है जब ग्रहण कर लेंगे तो हमारा काम बन जायेगा गुरु की मौज से हमारी साधना बन जायेगी हमारा सुमिरन भजन ध्यान बन जायेगा मालिक तो दयाल है ही सबकुछ दे रहा है लुटा रहा है दोनों हाथ से बांट रहा है लेने वाला तैयार हो लेने के लिए, देने वाला देने के लिए उपस्थित है हर क्षण बैठा हुआ है | सतगुरु ने बहुत कुछ गुरुमहाराज ने बताया समझाया और चेताया की ये कर्मो का देश है यहाँ लेन देन है कर्मों का निपटारा करो अपना लें दें चुकता करो और अपने रास्ते चलो घर चलो
कहते हैं—“देश अपने चलो भाई, पराये देश नही रहना
काम सच्चा करो जाई, ध्यान मन भजन को गहना
गुरु का ध्यान कर पहले, बहुर घट शब्द को सुनना
नाम के रंग में रंग जा, मिले तोहे देश निज अपना “
प्रेमियों गुरुमहाराज ने सबकुछ सुना सुना कर के बता बता कर के और चेता चेता कर के आपको समझाया बताया अथक प्रयास किया अथक मेहनत की और अब भी अथक मेहनत कर रहे हैं आपको अनुभव करा रहे हैं बराबर दया मेहर बांट रहे हैं पर आप लेने वाले बन जाओ और लग कर के १ घंटे सुबह एक घंटे शाम सुमिरन भजन ध्यान कर लो तो तुम पर दया मेहर हो जाये मलिक तो हर प्रकार से साथ हैं हर प्रकार से हाजिर नाजिर हैं लोग समझते हैं हर प्रकार से हाजिर नाजिर किस तरह, इस तरह तो गुरुमहाराज दिखाई नही पड़ते इसके मतलब जब हर प्रकार से हाजिर नाजिर हैं तो हर प्रकार से हाजिर नाजिर मतलब जो सर्वेश्वर हो तो हर प्रकार से हाजिर नाजिर होगा की नही होगा, सर्वविदित हो तो हर प्रकार से हाजिर नाजिर होगा की नही होगा और ये अपना घट है घट में घाट , घाट पर सतगुरु की बैठक तो हम जिन्दा तो हमारे गुरुमहाराज जिन्दा हैं उसमे बैठे हुये हैं और उनका बोध आत्मज्ञान हमलोगों को होता रहता है और फिर उनके शरीर के लिए क्या मुश्किल ये है वो है जिस कपड़े में घूम रहे हैं उस कपड़े में अगर घूम नही रहे होते शशरीर, तो हमलोगों को अनुभव नही होता इसलिए तो वे हैं हीं हैं मालिक तब हीं अनुभव होता है तभी उनका शब्द सुनाई देता है अंतर में शब्द का रस उतरता है शब्द का ज्ञान बरसता है ऐ प्रेमियों लग कर के सुमिरन भजन ध्यान सब लोग करो वक्त नाजुक है और जो जहाँ पर है भारत में या बाहर विदेशों में जब समय मिले तो सुमिरन ध्यान भजन बनाने के लिए अनुभव अनुभूति पाने के लिए तो एक बार अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला तहसील रुदौली जनपद फ़ैजाबाद अयोध्या में जरुर पधारें, आओ जिससे आपका सुमिरन भजन ध्यान जरुर बनने लगे तुम्हे भी अनुभूति होने लगे यहाँ किसी से कोई टैक्स वसूल नही किया जाता आपकी जो इक्ष्छा है गुरु नियम के अनुसार श्रध्दा भाव के अनुसार आपका शक्ति हो और यहा भोजन करो भजन करो अपना भजन ठीक करो तुम्हे दिखाई सुनाई पड़े यही सबसे बड़ी चीज है तुम्हारा भजन बन जाये समझो सब कुछ बन गया अंतर में सतगुरु के दर्शन होने लगे सबकुछ मिल गया |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 सितंबर 2015

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अधारे रहियो गुरु सहारे |
तुम सुरतें सतगुरु की प्यारी , सत्य भेद है अधारी |
सतनाम का नाम मिला है, खोलो अधर किवाड़ी |
रूप अलौकिक अंतर देखो, मेहर घाट मजधारी |
श्रीचरणन सतगुरु जी की सेवा , नाम शब्द की मिल जाये मेवा |
सतगुरु चरनन शीश झुकाकर, करूं वंदना यही हैं देवा |
सतगुरु जयगुरुदेव अनामि, श्वेत पुरुष सुन्दर यही स्वामी |
सतगुरु जयगुरुदेव
भेद मन ध्यान कर गुरु का, गुरु अधार सच्चा है |
पार सतगुरु ले जायेंगे, यही तो दयाल सच्चा है |
तुम सब को सतगुरु स्वामी महाराज अपने गुरु महाराज ही पार ले जायेंगे कोई दूसरा नही ले जायेगा | हे श्वेत पुरुष सच्चे दयाल, हे सच्चे समरथ स्वामी, हे हमारे नामी, यही सारा काम करेंगे दूसरा कोई नही करेगा और सारी चीजों को यही बतायेंगे यही समझायेंगे और यही सारा काम करवायेंगे इनके बिना कोई काम होने वाला नही है अगर आप सबको पार चलना है तो गुरु का हीं भजन करना होगा |
नाम भजन चित धारो प्रेमियों, सतगुरु नाम है दीन्ह |
दया मेहर पाओ सतगुरु की, उसी में होवो लीन |
नाम भजन अंतर का गाओ, जिसमे बाजे बीन |
सतगुरु मेहर आवेगी भाई, हो जाओ तर्ल्लिन |
गुरुमहाराज का नाम भजन करना ही सबसे अच्छा उचित कार्य है उसी में तर्ल्लिन होने पर सारा काम बनेगा अगर मालिक का नाम नही भजोगे मालिक में लव नही लाओगे मालिक में लगन नही लगाओगे तो तुम्हरा काम नही बनेगा इसलिए मालिक में तर्ल्लिन हो मालिक में लव लगाओ मालिक का भजन करो |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Satguru Jaigurudev

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : १३-०९-२०१५ **** समय : ६.० AM


गुरु महाराज ने गुरुबहन बिंदु को लिखवाया सन्देश : गुरु महाराज के शब्दों में
सबके सब मनमानी करने पर तुले हैं | खूब मनमानी कर करा लो | आगे समय मिले न मिले , कोई रोक टोक नहीं हैं | लेकिन मनमानी करने का नतीजा भुगतने को भी तैयार हो जाओ | बातों का खंडन करना , बार - बार काटना अच्छी बात नहीं | गुनाह पर गुनाह करते जा रहे हो, माफ़ कौन करेगा | अरे बच्चे ! सच की अदालत पर सुनवाई के लिए जिस दिन बुलाया जायेगा , उस दिन कोई सहाय नही होगा | माफ़ की अर्जी लगाई नहीं अपनी मर्जी में जो आया वही कर रहे हो | देखते जाओ आगे क्या क्या होता है | सब सच सामने ही आ रहा है | मेरे न्यायाधीश मत बनो | अन्याय से बचने का यतन करो | होनी को अनहोनी में बदलने पर तुले हो , यह अच्छी बात नहीं | (सबके सब सम्भलो , सब एक ही झटके में डूब जाओगे अगर मेरी बातों का मनन नहीं किये |) मेरी आगे और पीछे की सारी बातें पुनः याद करो | एक भी बात कटने वाली नहीं है |
सच्चा सौदा करने के लिए धरती पर लए गए हो | सच्चे को खोजो अंतरघाट पर बैठकर, बाहर कुछ नहीं मिलेगा , सारा खेल अंतर का है | वहीँ अंतर में सूरतों का सच्चा सौदागर बैठा है | उसी से पूछो और नूरी खिलकत की कदर करो | सब सच सामने आ जायेगा | सत से सत को पाओगे | अरे धोखाधडी , छलकपट छोड़ दो |
********जीत को सके अजेय सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी, सत से सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी पुनः है आयी | ************
********सत सत सत सब सत में मिल जायी|********
सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी की सच्ची महा लीला समझ अब आयी | सत साईं की सच्ची लीला समझ अब जाओ | सतगुरु स्वामी का भजन सच गाओ | गा गाकर के सबको सुनाओ | सबको सत दरबार का सतसंदेश पुनः सुनाओ | सबमें सोते भाग्य जगाओ |
सबका अमर सौभाग्य पुनः दिलाओ |
अखंड अमर देश का अमर दयालु पुनः है आया | सतखंड का अमर देश लखाया | ऊँगली पकड़कर आ जाओ किनारे | खेय के नैया ले आया है दुवारे | सत देश की सच्ची खबर हूँ मैं लाया | सच्चा सन्देश ही मैं सबको सुनाया | अनहोनी को सच में बदलने पुनः हूँ मैं आया | अंतर बाहर परम सौभाग्य है सबका अब जगने ही वाला | अंतर का ही परम दयालु है बाहर आया |
सतगुरु सतनाम | सतगुरु जयगुरुदेव नाम की महिमा लखाया | बताया |
स्वांस स्वांस पर जपो सब सतगुरु सतनाम या सतगुरु जयगुरुदेव नाम हो जाये सबका कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड भारत संगत गुरु की
गुरु बहन - बिंदु
जिला - फैज़ाबाद, अयोध्या

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 31 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
पावन सतगुरु का सुन्दर धामु, नाम भजन करो मिले परमानु |
सतगुरु प्रीतम बृहद अलौकिक, नाम दियो नामधारी |
नाम भजन करो वीणा पार करो, करो अपनी उध्दारी |
मन चित धारो नाम भजन में, करो नही सब जन अबारी |
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में, चढ़े चलो अगम अटारी |
सतगुरु प्रीतम मिले सवारियां, नही करो सब जन अबारी |
जल्दी पहुँचो गुरु चरनन में, आई भजन की बारी |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 30 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन भजो गुरु का नाम |
नाम गुरु का प्यारे लागे, प्यारे गुरु धुरधाम |
धुर के मालिक सतगुरु नामी , हरी बतायो नाम |
भेद एक एक सतगुरु दीन्हा , सतगुरु संग बने काम |
नाम भजनिया में सब मन डालो, सतगुरु मेहर बदाम |
रंग रंगीली योगि नही है, श्वेत पुरुष करतार |
सत्य भेद के सतगुरु मालिक, येही सच्चे अधार |
घट पट खोलत हैं सतगुरु जी, शब्द भेद झंकार |
चढ़े सुरतिया अम्बर में, सतगुरु से हो प्यार |
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊ , यही तो हैं अधार |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन दूर दराज से आये हुये समस्त प्रेमियों सब लोग मन चित बुध्दि लगाकर के मन को एकाग्र कर के मन को रोक कर के मालिक की साधना में लगेंगे मालिक से प्रार्थना करेंगे हे मालिक हमे भी आत्मबोध आत्मज्ञान कराओ अंतर दर्शन दो और हमे भी बताओ की आपकी क्या दया मेहर क्या कृपा है हे प्रभु हर प्रकार से सर्वग्य समरथ नामी अनामी आपने सबका भेद बताया सबसे मिलवाओ और जहां तक हम मिले हैं वहां तक आप ही ने मिलवाया अंतर में, आप ही हमे लेकर चले हैं अपने बल से मै कहीं नही गया हे प्रभु हे सतगुरु हे नामी हम पर दया मेहर करो हम तुम्हारे जीव है तुम्हारे बच्चे हैं तुम्हारे शरणागत रहेंगे तुम्हारे पास रहेंगे हम भूल जाये अगर तो आप मत भूलो हमे २४ घंटे आप याद दिलाते रहो और अपने चरणों के पास रखो हे प्रभु हमारा सुमिरन भजन ध्यान बने हमारा मन चित नाम भजन में लगे ऐसी दया मेहर करो की हम आपके साथ लगे रहे जो कुछ आपने अब तक कहा है सारी बाते पूरी हो रही हैं आगे भी जो कुछ कहे हैं वो पुरे होंगे आप हमे हर प्रकार से संभाल कर रखो हर प्रकार से हमे अनुभव अनुभूति हो दर्शन पर्शन हो अंदर बाहर ऐसा आत्मबोध आत्मज्ञान हो की हमारे गुरु से हर प्रकार से मुलाकात हो रही है हर प्रकार से बात हो रही है आप सर्वग्य हो आप सचर हो आप स्वामी हो दयाल हो आपने ही हमको संभाल कर के रखा है आपने ही हमको सारा भेद बताया है तो हे प्रभु हम पर पूरी की पूरी दया मेहर बनाये रखो सदा सर्वदा से आप ही सच्चे मालिक रहे हैं और आगे भी रहेंगे तो हे प्रभु हम यही चाहते हैं की आप ही मेरे मालिक हो आप ही मेरे स्वामी हो आप ही मेरे दाता हो कोई दूसरा ना हो निर्विघ्न हम आपके जीव और आप हमारे पीव |
सतगुरु जयगुरुदेव
भेद मन सतगुरु जी का नाम |
बिन्दु अधार दियो सतगुरु ने, येही से बन जाये काम |
मनवा लग जाये नाम भजन में, हो जाये कल्याण |
सुख दुःख रहे अधार गुरु की, शब्द सिरोही प्यार |
लार तार एक धार है आई, देखो हरी का द्वार |
मन चित लागे नाम भजन में, हो जाओ उस पार |
सतगुरु नामी हे मेरे स्वामी, कर दीजो उध्दार |
नाम भजन कुछ बन नही पाये, हम हैं नाम अधार |
शीश धरत हैं तेरे चरनन में, सतगुरु करो वही पार |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम

पूनम के शुभ अवसर पर गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ने परम संत सतगुरु जयगुरुदेव की दया मेहर से रूहानी संत्संग सुनाया |

सतगुरु जयगुरुदेव :
मंगल पावन सतगुरु नामी |
नाम भजन अंतर परनामी |
चढ़े सुरतिया दिव्य गगन में, मेहर होये सतगुरु जब नामी |
अद्भुत अंतर दृश्य दिखाये |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा लागे नाम भजन में, सुख पावे अन्तर्यामी |
आमी रसा का सेई प्याला, होये नाम मन मतवाला |
सतगुरु नामी अंतर मिल जायें, सुखद कृपा हो दयाला |
नाम भजन में लगे मनवा, सतदेश कृपाला |
सतगुरु नामी दीन दयालू, मेहर करो बन दयाला |
मनवा लग जाये नाम भजन में, खुले का अंतर का ताला |
नाम वेग सतगुरु का सुहाये, शब्द भेद झन्कारा |
सतगुरु नामी मालिक प्रीतम, मिल जाये दीन दयाला |
मेहर हुई मेरे नामी की, बन गयो काम कृपाला |
शीश झुकाऊ तुम्हरे चरणन में, हे मेरे नामी सतगुरु लाला |
मेहर तुम्हारी ऐसी वर्षी, वर्षी बदरिया आला |
घट के पट सब खोल दियो है, मेहर कियो सतगुरु दीन दयाल |
तुम्हरी मेहर को शीश झुकाऊ, हे मेरे नामी नन्दलाला |
सतगुरु मालिक प्रीतम स्वामी, तुम हो दीन दयाला |
सतगुरु जयगुरुदेव
भजन मन नामी सतगुरु मालिक |
मनवा लगे नाम भजन में, दया मेहर बरसे मालिक |
हे मालिक दयाल मेरे नामी, तुम हो अन्तर्यामी |
मेहर करो स्वामी मेरे दाता, नाम भजन खुल जाये खाता |
मन चित लागे श्रीचरणन में, मेहर होये ऐसी मेरे दाता |
करूं वंदना विनती स्वामी, होये कृपा सतगुरु मेरे नामी |
तुम्हरे चरनिया में शीश झुकाऊं, मुक्ति मोक्ष परमपद पाऊं |
महिमा नाम की तुम्हरी गाऊं, हे सतगुरु तुममे मिल जाऊं |
सतगुरु जयगुरुदेव बुलाऊं |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन मालिक की अशीम दया कृपा है आज पूनम है और रक्षावंधन, रक्षावंधन का मतलब ये है की हर तरह से हर गाठ्ठे सतगुरु से बंध जाये और मालिक से प्रेम प्रतीत हो जाये हर तरह से रक्षा सुरक्षा मालिक से प्राप्त हो जाये ऐसी नेह और लगन अपने सतगुरु से लगाते हैं मालिक से कहते हैं की हे मालिक ये जो आठों गाठ्ठे हैं खुल जाये और आपकी सुरक्षा की मेहर की दया की दृष्टि पड़ जाये और उसी में हम लिपट जाये उसी में बंध जाये और आपके हो जायें हरदम हमेशा हर प्रकार से आपमें रत हो जायें |
****सतगुरु स्वामी मंगल नामी, मेहर नाम श्रुति मिले हे नामी |****
सुरत सतगुरु से विनती करती है की हे मालिक हर प्रकार से आपकी दया मेहर हो और आपकी अनाम देश की भक्ति आपका अनाम देश प्राप्त हो आपके अनाम देश में सुरत जीवात्मा आपके श्रीचरणों में जाये और आपकी पूरी की पूरी दया मेहर हो आप दयाल हो हे प्रभु दीन दयाल कृपाला हर प्रकार से दया मेहर कर के अपने चरणों में लगा लो अपने बंधन में बांध लो किसी दुसरे की बंधन में हमे बंधने की जरुरत नही है |
****श्रुति सावन जस बरसे मेहर, मेहर बदरिया भारी |****
जिस तरह सावन भादो में बरसात होती है उसी तरह मेहर की बदरिया मेहर की बरसात हमारे ऊपर हो, मालिक हर प्रकार से आपकी दया कृपा हो, मालिक हर प्रकार से हम आपके अंग-संग हो मालिक किसी प्रकार हम भटक न जाये और आपके श्रीचरणों में रहें, निशाना आपसे रहे किसी दुसरे से ना रहे हर प्रकार से आपकी दया मेहर रहे हर प्रकार से आपकी कृपा रहे किसी प्रकार की त्रुटी ना हो हम पापी हैं अधम है नकार हैं पर आप अमृत की धार हैं आप हर प्रकार से दया के सागर हैं हर प्रकार से सर्वग्य हैं हमारी गलतियों को क्षमा करे और हम पर दया मेहर करते हुये अपने श्रीचरणों में लगाये रहें |
****मेहर दयाल करो मेरे नामी, ऊपजे ज्ञान हे अन्तर्यामी |****
ऐसी दया मेहर कर दो हे प्रभु ऐसी कृपा कर दो की आपकी मेहर हमारे अंदर ऊपज जाये हमे ऐसा अनुभव अनुभूति हो की आपमें रत हो जायें जब हम नाम भजन के लिए बैठे तो ऐसा मन लग जाये ऐसा अद्भुत दृश्य चले ऐसी आपकी मेहर बरसे की हम आपमें ही मिल जायें और जब तक बैठे रहे आपको ही देखते रहें आपको हीं सुनते रहे आपकी ही मेहर में तल्लीन रहे हर प्रकार से आपकी दया मेहर बरसती रहे और उसी को हम देखते रहें उसी में हम रत रहें कहीं दुनियां में ना भटके |
****हरी भजन का मार्ग बतायो, प्रभु राम से सतगुरु मिलवायो |****
सबसे बड़ी दया मेहर कर के आपने नाम बताया नाम दिया और प्रभु राम से मिलवाया प्रभु राम का भजन बताया प्रभु राम का मार्ग बताया हरी भजन बताया सबकुछ आपने बताया आपकी बहुत बहुत बड़ी कृपा है बहुत बड़ी दया है बहुत बड़ी मेहर है जो ऐसा हुआ हम इस लायक नही थे फिर भी आपने लायक बना दिया हम नालायको को लायक बना दिया और लाकर के इस स्थान पर खड़ा किया मालिक जहाँ से हमको सबकुछ आपके द्वारा ही प्राप्त हो रहा |
****मेहर बस नामी मिला है नाम, नर तन कृतारथ हुआ है नामी |****
आपकी मेहर आपकी दया के बस हमको जो कुछ मिला है और ये नर तन है ये कृतारथ हो गया कृतग्य हो गया पार हो गया ये सफल हो गया आपके नाम से आपके द्वारा नाम मिल जाने से हमारा काम बन गया हर प्रकार से आपकी दया मेहर हो गई और आपकी दया मेहर से हमारा सारा काम बन गया हे सतगुरु आप दया मेहर करते रहें और हमारा काम बनता रहे हे मालिक हम किसी क्षण भुल जाये पर आप मत भुलना हर प्रकार से दया मेहर करो प्रभु और अपने चरणों में लगाये रखो |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 28 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद गुरु ने दीन्ह |
नाम पकड़ कर अंतर चलियो, लो सतगुरु को चीन्ह |
हरी भजन सतगुरु ने बतायो, बाजे तामे बीन |
नाम भजन सतगुरु का प्यारा, उसमे होवो तर्ल्लिन |
प्रथम होये दर्शन प्रभु रामा, घंटा संख सुनो धुनी |
सतगुरु जयगुरुदेव
मन में नाम होये सतगुरु का , बन जायेगा काम |
अंतर मेहर विराजे गुरु की, यही गुरु अंतर ध्यान |
सतगुरु जी में लगन लगाओ, हो पूरा कल्याण |
नाम भजन एक कुंजी सच्ची, इसे में धरो सब ध्यान |
सतगुरु दया बरसे अंतर, हो पूरा कल्याण |
सतगुरु भजन नाम को करियो, सतगुरु नाम अधार |
नाम रूप सतगुरु का सच्चा, मिले हरी प्रभु जी का घाट |
राम प्रभु खुश हो जायेंगे, सतगुरु जोहत बाट |
नाम दियो है भजन करण को, करो भजन दिन-रात |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखन रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन मालिक की अशीम दया और अनुकम्पा आप सब पर विराजमान हो आपका सुमिरन भजन ध्यान सब बन जाये मालिक का दया मेहर बरसे और आप सब मालिक के चरणों में लगे रहो | गुरु हर प्रकार से सर्वग्य सर्वदाता सर्वविदित स्वयम जीता जागता एक समरथ देवता है वो अनाम पुरुष करतार का स्वरुप है उन्हें देखोगे तो वो प्रभु राम का स्वरुप है ब्रह्म और पारब्रह्म का स्वरुप है महाकाल का स्वरुप है हर जगह पर गुरु की बैठक है और हर जगह उनका स्वरुप है गुरु ही वंदो को पार कर के अपने देश में सतदेश में ले जाते हैं गुरु की दया कृपा से हीं सारा काम होता है गुरु चाहे तो छण में कुछ का कुछ कर दे गुरु के चरणों में बैठे रहो जैसे भी रखे उसमे खुश रहो और गुरु की जय जयकार करते रहो और गुरु से प्रार्थना करते रहो हे मालिक दया करो गुरुमहाराज हर प्रकार से दयालु हैं हर प्रकार से दया करते हैं और करते आये हैं आगे भी करते रहेंगे आप लोगो को चाहिये की भाव पूर्ण प्रार्थना बोलने के बाद सुमिरन भजन ध्यान गुरु में मन लगाना और गुरु का भजन गाना, भजन अंतर में गाया जाता है जब भी तुम सुमिरन भजन ध्यान के लिए बैठो तो मालिक की भावपूर्ण प्रार्थना बोलो और भावपूर्ण प्रार्थना बोलने के बाद सुमिरन भजन ध्यान में आपलोग लग जाओ सुमिरन भजन ध्यन में लग जाओगे तो अनन्य दया मालिक की विराजेगी और तुमको दिखाई भी पड़ेगा सुनाई भी पड़ेगा मालिक की इस समय विशेष मौज दया चल रही है | २५ जून सन् २०१२ से गुरुमहाराज ने कहा बच्चू तुमने जीते जी ये मंदिर मेरा बनवाया है मै अखण्ड रूप से इसमें विराजमान हूँ यहाँ पर जो प्रेमी आयेगा तीन बार सच्चे मन से ध्यान भजन करेगा उसकी आँख खुल जायेगी तो अब अमृत की बरसात आँख खोलने की बरसात सुमिरन भजन ध्यान बनने की बरसात गुरुमहाराज कर रहे हैं इसमें कोई कमी नही जो प्रेमी आते हैं उनको अनुभव होता है दिखाई भी पड़ता है सुनाई भी पड़ता है उनके आँख कान खुल रहे हैं और समस्त भारत के प्रेमियों से और विश्व के प्रेमियों से अनुरोध है की यहाँ पर आकर के एक बार गुरुमहाराज के अखंड स्वरुप का दर्शन करें और इस मंदिर में माथा टेके और अपनी आँख कान खुलवा लें अपने घर पर बैठकर भजन करे, मर्जी जहां चाहे जाना आना जाते आते रहें यहाँ से कोई रोक टोक नही है गुरु अधारे गुरु के द्वारे रहोगे तो सारा काम बनता चला जायेगा, मै किसी को मना नही करता की आप यहा मत जाओ वहा मत जाओ, उधर मत जाओ जहाँ भजन बन जाये वहीं चले जाओ पर यहाँ के लिए जो गुरुमहाराज ने कहा है की सुमिरन भजन ध्यान बन जायेगा आँख कान खुल जएगी तो एक बार आपको वहां पहुंचना चाहिये और उसकी परीक्षा करनी चाहिये जैसे तुमने नामदान लिया गुरुमहाराज से तो गुरु की फिर एक बार परीक्षा कर लो और गुरुमहाराज के बताये हुये स्थान पर पहुचो और ना हो तो कभी मत मानना और हो जाये बन जाये तो बहुत अच्छी बात अपनी दया दुआ गुरुमहाराज की जो भी दया की बरसात है उसको ले जाओ | देखो प्रेमियों पावन रक्षा-बंधन का पर्व आ गया है तो पावन रक्षा-बंधन का मतलब ये होता है की गुरु अपने नाम की रक्षा सुरक्षा से बांध ले इसी को कहते है रक्षा-बंधन कहते हैं जिससे हमेशा के लिए गुरु से शिष्य बंध जाये और प्रेमी से प्रेमी पर पूरा प्रेम विश्वाश हो और गुरु के साथ लग जाये रक्षाबंधन का मतलब यही है की गुरु पूरी तरह रक्षा सुरक्षा कर दे और शिष्य पूरी तरह गुरु के रक्षा सूत्र में बंध जाये गुरु के आदेश में चले और गुरुमहाराज का नाम भजन करे और गुरुमहाराज का नाम पालन करे पूरी दया मेहर गुरु की बरस रही है आप सभी लोग गुरुमहाराज के चरणों में लगे रहो और गुरुमहाराज का भजन करो जबतक साँस रहे सांसो की पूंजी गुरु की चरणों में लगे रहो गुरु ही पार करेगा कोई दूसरा नही, प्रभु के दरवाजे पर गुरु ही बतायेगा की भाई ये तुम्हारा भक्त इसको पार कर दो या यम के दरवाजे पर चिट्ठी पत्री जब तुम पहुचोगे तो तुम्हारा मदद गुरु ही करेंगे कोई दूसरा नही करेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 27 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
निज चरणो में अरज करो सतगुरु के , हे मेरे मालिक सतगुरु नाम,
सत्य भेद के अंतरयामी , हमको तुम्ही ने नाम लख्यो ,
मेहर कियो जो हमें बुलायों, दीन्हा है दात बड़ी है भारी,
पाप की गठरी लिया है उतारी, मेहर होए नर्तन बन जाये ,
सुमिरन ध्यान भजन मन लागे, करू भजन मैं रहौं शाकाहारी ,
निश्छल प्रेम आराधना तुम्हारी , नाम भजन में मनवा लागे ,
भाग्य उदय हो अमृत जागे , जगत विधाता सतगुरु नामी,
श्रीचरणों में करू प्रणामी, नाम भेद मेरा बन जाये ,
अंतर अदभुद दृश्य दिखाए , नाम भजन में मनवा लागे ,
मेरो भक्ति चरण में लागे , चरण बंदना करू साईं की ,
सतगुरु मालिक अरु नामी की, सतगुरु चरण शीश झुकाऊ,
चरण बन्दना गुरु जी गाउँ , सतगुरु जयगुरुदेव |
मुझे एतबार है मालिक, मेरी नैया संभालोगे ,
दिया है नाम जो भगवन, किनारे नाव लाओगे ,
बड़ा भैरी मै पापी हूँ , मुझे विश्वास है बचाओगे ,
दया के खान सिंधु हो , मेरे सतगुरु जी विंधु हो ,
नाम की दात है बक्शी, दया के आप सिन्धुं हो ,
विनय मेरी मेरे मालिक, मेरी नैया करो उस पार,
दया हो मेरे सतगुरु जी , बंदना हो तुम्हारी ही ,
शरण में शीश रखता हूँ, जाऊं तुम पर बलिहारी मैं,
सतगुरु जयगुरुदेव |
मनवा लागे नाम भजन में,
मेहर यही करो सतगुरु , नाम की अंतर महिमा जागे ,
दया करो मेरे सतगुरु , नाम भजन मै तुमहरा गाऊँ,
मेहर करो मेरे सतगुरु , दीनदयाला प्रभु किरपाला,
तुम्ही हरी हो सतगुरु , प्रभु राम के दरश कराओ ,
इस सूरत को आगे बढ़ाओ , मनवा लागे नाम भजन में,
ऐसी दया मेहर बरसाओ , शीश धरु चरनन में तुम्हरे ,
नाम भजन किरतराथ गाउँ ,श्री चरनन में नेह लगाउन,
मुक्ति मोक्ष परम पद पाउन , सतगुरु जी बलिहारी जाऊं
सतगुरु जयगुरुदेव |
प्रेमियों मालिक की अशीम दया अनुकम्पा है आप सब के ऊपर , आप सब लगकरके सुमिरन ध्यान और भजन करो , गुरु में मन लगाओ और गुरु से माफ़ी मागो , कि हे मालिक दया करो मेरा सुमिरन ध्यान और भजन बन जाये | आप अपने घट में घाट पर समय दे और सुबह शाम लगकर सुमिरन ध्यान भजन करे और अपने गुरु महराज से अपने गुनाहो कि माफ़ी मांगे कि हे गुरु महाराज मुझसे जाने अनजाने जो भी गलती अपराध हो गया हो उसे क्षमा करदो और अपने चरणो में लगाये रखो , मुझे जाने अनजाने मांगना नहीं आता, पर आप हमपर कोई भी हरी वीमारी है या कोई दुख कलेश है तो मालिक उसमे हर प्रकार से दया मेहर करे और मालिक मै अनजान हूँ और मालिक आप तो जानते है कि आप को किस पर किस तरह दया करनी है तो मालिक आप अपनी तरह से जिस पर जिस तरह से दया करनी है उसपर उस तरह से दया कृपा कर दीजिये | गुरु महाराज हम सब आपकी संतान है आप के शिष्य है सदा आप का ही नाम लेंगे और अंतिम श्वांस तक सतगुरु जयगुरुदेव सतगुरु जयगुरुदेव बोलेंगे ||
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 24 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम अधीन सतगुरु के रहियो, जिन्होंने नाम नीध दीन्ह |
मेहर जो बरसेगी अम्बर से, शब्द रसा की झीन |
अदभुद अलौकिक अंतर दिखे, लो सतगुरु को चीन्ह |
नाम भेद का गूढ़ दियो हैं, इसी में होवो लीन |
मनवा लगाओ नाम भजन में, मुक्ति मोक्ष लीजो चीन्ह |
नाम धना प्रताप गुरु का, इन्ही चरणों में हो विलीन |
शीश धरो सतगुरु चरणन में, जहाँ पे बाजे बीन |
सतगुरु जयगुरुदेव
नाम का मिला खजाना भारी |
नाम दिया है अनाम पुरुष ने, सत्य पुरुष करतारी |
माता-पिता सतगुरु मेरे, धर्म के हैं अधिकारी |
उज्जवल सुरत श्वेत फकीरा, सतगुरु मोहन मुरारी |
शब्द भेद के दाता सतगुरु, सतगुरु निधी अधारी |
नाम भजन करो सतगुरु जी का, रहो सब नाम अधारी |
नाम को धारण कियो है तुमने, बनो शिष्य नामधारी |
पद पंकज में शीश झुका कर, जाओ सब बलिहारी |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, समय धीरे धीरे अपने सुई की रफ़्तार से बढ़ रहा है अदभुद अलौकिक घड़ियाँ आती जाती रहती है जिसमे जीर्ण और क्षीर्ण समय भी निकल रहा है ऐसा विषममयी समय निकला और ऐसी उज्जवल भविष्य की परिस्थितियाँ निकली आगे मंगलिक कार्य होंगे और मंगलमय फुल खिलेंगे सतगुरु से मिलन अंतर्घट में होगा बाहर से भी मिलने की पूरी उम्मीद है देखो प्रेमियों समरथ संत सतगुरु एक नही अनेक होते हैं और एक भी होते है वे अनन्य रूप भी रख सकते हैं और एक ही रूम में भी दर्शन दे सकते हैं सतगुरु की मौज बदली उन्होंने कपडा बदला स्थान बदला तो जहाँ पर वे हैं उनकी नाम की महिमा होती है उन्होंने हर प्रकार से दिखा कर के हर जगह विराजमान होकर के अपनी संगत को संभालना शुरू किया हर प्रकार से सबको दर्शन देना शुरू किया अगर अब कोई कहता है की नही दर्शन तो मेरे हो रहे हैं मै ही सबसे बड़ा, तो ये भुल है जिन प्रेमियों को नामदान गुरुमहाराज से मिला है उनकी संभाल तो गुरुमहाराज ही करेंगे और जिनको नामदान किसी दुसरे से मिला है तो उसकी संभाल दुसरे गुरु करेंगे जिससे जिसको नामदान मिला है उस धनी का वो जिव है और वो धनी पूरी संभाल अपनी जीवों का करता है अंदर और बाहर से जिव को विश्वास होना चाहिये की हमारा मालिक हमारा प्रभु समरथ है हमारा सतगुरु समरथ है हमपर हर प्रकार से उनकी दया मेहर बरस रही है और जिव को शिष्य को प्रेमी को मन चित लगाकर के अपने गुरु को हाजिर नाजिर मानकर के पूरी की पूरी विनती प्रार्थना अराधना सुमिरन ध्यान भजन करना चाहिये ये नही समझना चाहिये कभी की गुरु निजधाम चले गये गुरु निजधाम कभी नही जाते वे हर प्रकार से सर्वग्य हैं सर्व विदित हैं शब्द स्वरूपी सत्य स्वरूपी रूप अरूपी हर प्रकार से जब हैं तो उनको तुम नही कह सकते की वे चले गये ये हमारा तुम्हारा घट है घट में घाट है घाट पर गुरु की बैठक तो जब हम तुम जिन्दा हैं तो गुरुमहाराज बोलो जिन्दा हैं की नही जिन्दा हैं अंदर | जब अंदर में बैठे गुरुमहाराज हम जीवित है तो उसमे वे भी जीवित हैं ये सब समझने की चीज है जैसे ये लोग कहते हैं की गुरुमहाराज जिन्दा नही है चले गये तो मंदिर के अंदर मूर्ति रखी होती है तो वहां जिन्दा मानकर जाते हो प्रेमियों की मुर्दा तो जब जिन्दा मानकर जाते हो की इसमें जीता जागता देवता बैठा है तो हमारे गुरुमहाराज हर प्रकार से जिन्दा हैं भाव होनी चाहिये और भाव झरोखे सब कुछ मिलता है तो ऐ प्रेमियों हमेशा गुरु को हाजिर नाजिर मानकर के समर्थ मानकर के सत्यता के साथ अपने गुरु की दी हुई नाम जड़ी को रगड़ते हुए अंतर के शीशे में चमक लाओ और लगकर के सुमिरन भजन ध्यान करो और गुरु में लीन रहो यही गुरुमहाराज का आदेश है यही निर्देश है और यही तुम्हारा कर्तव्य है |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 23 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मुझ पर दया करो मेरे नामी |
नामी अनामी पुरुष सतनामी, मेहर करो मेरे स्वामी |
मुझपर दया करो मेरे नामी |
मै पापी दुखियारा जीवा, आया शरण तिहारी |
मुझपर दया करो नामधारी |
जन्म जन्मांतर पाप कमाई, मेहर करो नामधारी |
पाप की गठरी सर पे लदी है, उसको लोवो उतारी |
दया मेहर से नर तन पायो, दया मेहर है तिहारी |
हे सतधारी मालिक सतगुरु, सुन लो अरजिया हमारी |
नाम निधि की बरसा कर दो, हट जाये सब बिमारी |
सुखमय सेवा करूं तिहारी, नाम भजन जाऊं बलिहारी |
नाम की महिमा तुम्हरी गाऊं, हे समरथ नामधारी |
मुझपर दया करो नामधारी |
सत्य विरह की लगन लगे जो, आऊ शरण तिहारी |
मुझपर दया करो नामधारी |
विनय प्रार्थना मेरी मालिक, सुध तुम लेव मुरारी |
हरी भजन मनवा लग जाये, गाऊं किरत तुम्हारी |
श्रीचरणन में शीश झुकाऊ, जाऊं मै बलिहारी |
सतगुरु जयगुरुदेव
धन धन मालिक नामी सतगुरु, धन्य है दया तुम्हारी |
हम पापी दुखियारी जीवा, आये शरण तिहारी |
हे अनाम श्रुति मंगल स्वामी, पाटी राखो शरण तुम्हारी |
नाहक हँसी हंसारक होवे, जायेगी लाज तुम्हारी |
शरणागत की लज्जा राखो, आये शरण तुम्हारी |
कोटि वन्दना श्रीचरणन की, हे मेरे सतगुरु मुरारी |
जब जब भीड़ पड़ी भक्तन पर, लियो मेरे सतगुरु उबारी |
अबकी मेहर करो मेरे मालिक, विनती करूं मै तुम्हारी |
कुल आदेश का पालन होवे, रहूँ मै शरण तुम्हारी |
सतगुरु मालिक नामी मेरे, करूं मै तुम्हरी प्रणामी |
सतगुरु जयगुरुदेव
विनय मन भाव झरोखे आवे |
विनय प्रार्थना तुम्हारी गाकर, सतगुरु जी को मनावे |
शब्द भेद से जुड़े सुरतिया, मूरत तुम्हरी दिखलावे |
नाम भेद कुछ जानू न मालिक, नाम भजन ही भावे |
निमित मात्र सतगुरु मै बोलूं, इतने मेहर हो जावे |
दुःख दलिद्र को दूर करो तुम, और ऊपरी मार भगाओ |
सदा संसार है निष्कंटक, नाम भजन मन आवे |
श्रीचरणन की करूं वंदना, नितप्रति दर्शन पावे |
प्रत्यक्ष प्रकट हो नामी मालिक, सगरे काम बन जाये |
शीश धरुं सतगुरु गोसाई जी, तुम्हरे गुण को गावे |
तुम सर्वागी मेरे दाता हो, तुम्हारी मेहर होई जावे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद गुरु ने दीन्ह |
नाम भजन मन सब जन प्रेमियों, लो अंतर में चीन्ह |
गुरु की मेहर सुरत चले अम्बर , अंतर बाजे बीन |
मनवा लागे नाम भजन में, हो गुरुचरणन लीन |
सतगुरु नाम विराजे अंतर, नाम भजन तर्ल्लिन |
सतगुरु जयगुरुदेव
नाम की आरत नामी स्वामी |
तुम्ही दयाल दीन हरी हो, तुम्ही अन्तर्यामी |
मन चित लग जाये नाम भजन में, तुम्ही हो मेरे स्वामी |
शीश धरुं तुम्हरे चरणन में, तुम्हारी मेहर उपजानी |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम मन भजन सतगुरु ज्ञान |
नाम भजन से समझो प्रेमियों, हो पुरा कल्याण |
मनवा रम जाये नाम भजन में, गाये सतगुरु का नाम |
मुक्ति मोक्ष परम पद पाये, पहुंचे सतगुरु धाम |
नाम भजन मन चित में धारो, यही तुम सबका काम |
रूप अलौकिक मोरे नामी का, जिसने दियो है नाम |
शीश झुकाओ उन्ही के चरणों में, हो पूरा कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
जब जब चले झकोले संसारी |
आवे अंध के विषय ब्यारी, तब तब सतगुरु नाम सम्भारी |
मन चित नाम भजन जो लाया, मिठ्ठा फल है उसी में पाया |
नाम सतगुरु जी का जिसने गया, काम उसने ही अपना बनाया |
मन चहु दिशी में है भागे, इससे ना है भजन में लागे |
करे गुरु चरणन की अराधना, तेरा सारा काम बन जाये |
सतगुरु संग नेह लगाओ, फिर नाम भजन को गाओ |
सतगुरु चरणन में जाओ, मन चित उन्हीं में लगाओ |
अब सच्चे फल को पाओ, और नाम की महिमा गाओ |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बदला के प्रांगन में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, गुरुमहाराज की अति दया कृपा है जो आपको सत्संग भजन गुरुमहाराज की प्रार्थनायें निष्पक्ष सुनने को मिलती है और आप लोग बराबर उसमे सरीक होते हैं और साथ देते हैं मालिक के लिए इतने समय निकाल कर के बैठते हैं जितना समय मालिक के चरणों में बितता है उतना परम सौभाग्यशाली समय होता है उतने समय वहां हाजिरी होती है गुरुमहाराज के दरबार में लिख जाता है की हमारे लिए इन्होंने इतना समय निकाला | आप सब रोज सुबह शाम प्रार्थना बोलकर के सुमिरन भजन ध्यान किया करो तब सबका सुमिरन भजन ध्यान बनेगा मन चित आपका लगेगा आपके सारे काम बन जायेंगे मैलाई कट जायेगी और ये जीवात्मा जग जायेगी मन बुध्दि चित गुरु के चरणों में लग जायेगा और रोज सुमिरन भजन ध्यान करने से आपकी मैलाई धीरे धीरे कट जायेगी आपको अनुभव होगा दिखाई भी पड़ेगा सुनाई भी पड़ेगा गुरुमहाराज ने बताया है “हरी आनंत हरी कथा अनंता, शब्द रूप व्यापक भगवंता ” देखो हरी की कथा का कोई अंत नही वो अनंत है और वे शब्द रूप में हर जगह विराजमान हैं जब तुम अंतर में गुरु को पुकारोगे गुरु के अंदर प्रभु को देखोगे तो प्रभु तुम्हे दिखाई देगा गुरु तुम्हे सब कुछ बतायेगा गुरु सर्वशक्तिमान है हर प्रकार का प्रभु है और जैसी आशा आप रखोगे वैसी आशा आपको मिलेगी गुरुमहाराज ने सबकुछ आपको चेताया बताया सुनाया है अब लगकर के सुमिरन ध्यान भजन करने की जरूरत है अगर सुमिरन भजन ध्यान करोगे गुरु में मन लगाओगे गुरुमहाराज सर्वग्य हैं तो हर प्रकार से तुमको दर्शन देंगे अंतर घट में तुम्हारी जिज्ञाशा को पूरी करेंगे जब उनकी इक्छा होगी उनकी मौज हो जायेगी तो तुमको हर प्रकार से दर्शन वे दे सकते हैं हर प्रकार से सक्षम हैं असक्षम वे नही हैं असक्षम तो हम हीं लोग हैं जो सारा काम नही कर पाते गुरुमहाराज का और न गुरुमहाराज के बताये हुये रास्ते पर पूर्ण परिपूर्ण चल पाते हैं गिर जाते हैं क्योकि हम मानव हैं पापी जिव हैं गुनाहगार हैं गुनाहों की माफ़ी भी गुरुमहाराज हीं करते हैं दूसरा कोई कर नही सकता गुनाहों की माफ़ी गुरुमहाराज के दरवार में हीं होती है किसी और के नही |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 20 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : मालिक का विशेष संदेश सभी प्रेमियो के लिये
अन्तर घट सतगुरू जयगुरूदेव मन्दिर ग्राम बड़ेला में अखण्ड रूप से विराजमान गुरूमालिक ने आध्यात्मिक रूप से अन्तर में गुरू भाई अनिल कुमार गुप्ता को लिखाया-
सतगुरु जयगुरुदेव :
महापर्व पावन गुरू जन्माष्टमी के पावन पर्व पर हर प्रकार की दया दुआ अखण्ड रूप से विराजमान अन्तर घट मन्दिर ग्राम बड़ेला से मिलेगी जिसमें गुनाहो की माफी दया, दुआ, बरक्कत की पुरी बरसात होगी| जो भी प्रेमी पावन पर्व पहुँचेगा उसका अन्तर के पट खुल जायेगा| सुमिरन, ध्यान, भजन बनने लगेगा ऐसी मौज मालिक की है| परम प्रभू सतगुरू की इच्छा है| सारे प्रेमी गुरू भाई बहनो को दिखाई और सुनाई पड़े| सब के सब अनुभव से सराबोर हो अपने अन्तरघट में बैठ गुरू का सतसंग सुने और आन्तरिक दया दुआ को प्राप्त करें | देखो प्रेमियों किसी को कही भी जाने से मना मत करो अपनी मर्जी से वो जहॉ जाना चाहे जाने दो पता नही मालिक की दया दुआ उसे जहॉ जा रहा है वही मिल जाय| ये सराय मनुष्य रूपी पोल का पुरा इस्तेमाल अगर मन कहता है कि ये कार्य सही है तो वो सही भी हो सकता है| आप मालिक की खोज में जावोगे तो मालिक पूरी दया करेगें तुम्हें विश्वास हो गुरू पर बस| विश्वास की जरूरत है , मालिक तुम्हारा राह देख रहा है बस तुम घाट पर तो आवो पूरा दर्शन पूरा लाभ प्राप्त करो
सतगुरू जयगुरूदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 20 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु नैया पार लगाओ |
कामी क्रोधी मन घट बीचे, इस पर मालिक दया फरमाओ |
सतगुरु नैया पार लगाओ |
ध्यान भजन बने आपकी मेहर से, नेह अपने चरणन में लगाओ |
सतगुरु नैया पार लगाओ |
दीन गरीबी और बिमारी, इसमें विशेष दया फरमाओ |
मेहर की बादल ऐसे बरसे, तब करूं मन को देव धुलाई |
नाम भजन में मन लग जाये, सतगुरु मेरे होऊ सहाय |
शीश धरुं तुम्हरे चरणन में, नैया मेरी पार लगाओ |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा गुरु संग खेले होली |
सुरत सुहागन जब सत नाही, तब ले गुरु संग ना डोली |
नाम भजन हो घाट के ऊपर, सतगुरु संग न बोली |
शीश प्रतीत करे सतगुरु से, निश दिन खेले होली |
नाम भजन में जाये समाई, सतगुरु संग हो होली |
नाम भजन को अंतर गावे, नाही करत ठिठोली |
सतगुरु मेहर विराजे सब पर, हो सतगुरु संग होली |
शीश धरे सतगुरु चरणन में, सतगुरु जयगुरुदेव बोली |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बदला के प्रांगन में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, मालिक का आंतरिक हुक्म है लगकर के सुमिरन भजन ध्यान करते रहो जिससे दया मेहर घाट पर बरसेगी पूरी की पूरी दया मेहर आपको मिलेगी जैसे मालिक को याद करोगे मालिक तत्तक्षण हाजिर हो जायेंगे और आपकी हर प्रकार से मदद करेंगे पर आप गुरु के सहारे गुरु के द्वारे रहोगे तो काम आपका बन जायेगा इधर उधर भटकोगे तो आपका काम नही बनेगा | आप मन दूसरे में लगाओगे तो कैसे काम बनेगा मालिक ने कहा था की निशाना मुझसे रखना तब काम बनेगा जब भी जरूरत पड़े तो इस सुरत को गुरु के चेहरे को याद करना वो तत्तक्षण मदद कर देंगे आप सब को चाहिये की हमेशा गुरु महाराज को याद करते रहो उनमे मन लगाते रहो अगर कोई कहता है की गुरु महाराज नही तो सीधे सीधे समझा दो की देखो ये हमारा घट है मनुष्य रुपी मंदिर है मंदिर में दरवाजा है ये मनुष्य रुपी मंदिर घट है घट में घाट और घाट पर गुरु की बैठक और जब तक मै जिन्दा हु तब तक गुरु महाराज हमारे घाट पर जिन्दा हैं हमारे लिए वे जिन्दा हाजिर नाजिर हैं आपके लिए वे कही गये हों उसके लिए आप ही समझो और अगर समझते हो तो तुम्हारे लिए भी इस तरह जीवित है संत मानव पोल पर सतगुरु एक संत जाता है दूसरा आ जाता है संतों का शील-शिला आने का अब बंद नही होगा गुरु महाराज ने बताया है और दूसरी बात आप गुरु महाराज से पूछोगे की मालिक आप कहाँ बैठे हो किस जगह हो रोओगो गाओगे चरणों में माथा टेकोगे तो मालिक जरुर बतायेंगे और आप सब को समझायेंगे की देखो बच्चू मै इस तरह से हूँ मै भी मालिक से प्रार्थना करता रहता हूँ की मालिक दया करो प्रतयक्ष प्रकट हो जाइये सबको दर्शन दीजिये सबके दुखो को हर लिजिये और ये जो आडम्बर बना है उसको साफ़ कर दीजिये हम सब आपके साथ और आप हमारे साथ और हमारा ध्यान भजन बने आपके श्रीचरणों में नेह लगे किसी प्रकार का विकार न आये और विकार आये तो आपकी दया मेहर से साफ़ हो जाये आप हर प्रकार से दया मेहर करो मालिक की अशीम दया अनुकम्पा ऊपर से हो रही है आप लोग लेने के लायक बन जाओ इस समय घनाघोर अनुभव अध्यात्मिक चमत्कार अंतर का हो रहा मालिक पुरी की पुरी दया कृपा कर रहे हैं हर कार्यक्रम पर विशेष दया मेहर होती है आने वाले कार्यक्रम में जन्माष्टमी पर मालिक की विशेष दया मेहर बरसेगी जिनको दिखाई सुनाई नही पड़ता उनके आँख कान खुला जायेंगे उनको दिखाई सुनाई पड़ेगा मालिक की ऐसी दया कृपा की मौज है और मालिक ने हमेशा से कह रखा है की हर कार्यक्रम निष्कंटक निर्विघ्न पार होंगे और मालिक से यही हमारी प्रार्थना है की जब तक जितने भी कार्यक्रम यहाँ पर हो निष्कंटक निर्विघ्न पार हों हर प्रकार से आपकी विशेष दया मेहर बरसे सबको अध्यात्मिक अनुभव हो आपका यश फैले आपका नाम फैले आपके नाम भजन में सब लोग लगें हरी का भजन करें प्रभु का भजन करे प्रभु राम का भजन करें प्रभु राम में नेह लगावें और आपको प्राप्त कर जावें आदि अनाम पुरुष करतार निर्गुण निराकार आप हीं तो हैं कोई दूसरा नही आपमें जो प्रभु राम को देखेगा वो राम को अवश्य देखेगा और जो आप में राम को नही देखेगा उसे कभी राम के दर्शन नहीं होंगे इसलिए सभी प्रेमी लग कर के ध्यान भजन किया करें और मालिक में मन लगावें |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन सतगुरु जी का ध्यान |
नाम भजन हो मेरे मालिक का, हो पूरा कल्याण |
मन चित लागे नाम भजन में, भजुं गुरु जी का नाम |
मोह और माया फ़ांस हटाकर, चंचल चित गुरु नाम |
सतगुरु मेरे प्रीतम मालिक, गुरु चरणन आराम |
शीश धरत हैं मालिक चरणन में, हो पूरा कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
नाम मन सतगुरु जी का भजन |
जन्म जन्मांतर बाद मिले हैं, सच्चे प्रीतम सज्जना |
नाम भजन का चितवन कर के, दिव्य अटारी चढ़ना |
सुख सावन है सतगुरु संग, सतगुरु नाम है गहना |
नाम भजन हम करी सतगुरु का, पहिने नाम का कँगना |
गुरु में हम जब घुल मिल जावें, नाम भजन को गहना |
नाम दियो समरथ मालिक ने, जिसको सुरत ने पहना |
करो धन्यवाद गुरु सतगुरु का, जिन्होंने दिया नाम धन गहना |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन भजन गुरु का नाम |
गुरु प्रार्थना और अराधना, बस एक ही है काम |
मनवा लागे नाम भजन में, सतगुरु जी का काम |
नाम बतायो भेद लखायो, कुल मालिक सतगुरु नाम |
नाम भजन मन चित को ढालो, तब पुरा अविराम |
शीश झुको सतगुरु चरणन में, सतगुरु करे कल्याण |
सतगुरु जयगुरुदेव
विनय मन नाम भजन को गाना |
नाम भजन सतगुरु ने बतायो, मिलो नाम को खजाना |
नाम में शब्द की डोर लगी, उपर को चढ़ जाना |
सत्य भेद जब होई सुरतिया, संगम हो तब पुराना |
सतगुरु प्रीतम सत्य देश के, सत से मिले खजाना |
मन चित लाओ नाम भजन में, नाम भजन मन लाना |
सतगुरु जी के लागे नेहिया, मिल जाये नाम खजाना |
सतगुरु जयगुरुदेव
विनय मन सतगुरु जी का नाम |
सतगुरु संग में समस्त देवता, देवियों के चरणों में प्रणाम |
मंगल मूरत है नामी की, ज्योति जले आठो याम |
दिव्य प्रकाश होये अंतर में, भज लो सतगुरु नाम |
मनवा लाओ नाम भजन में, हो पुरा कल्याण |
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, जिन्होंने दियो है नाम |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
श्रीचरणों मे अरज करो सतगुरु की |
हे मेरे मालिक सतगुरु नामी, सत्य भेद के अंतरयामी |
मोको तुमने नाम लखायो, मेहर कियो जो हमे बुलायो |
दीना है दात बड़ी जो भारी, पाप की गठरी लिया है उतारी |
मेहर होये नर तन बन जावे, सुमिरन ध्यान भजन मन लागे |
करूं भजन मैं रहू शाकाहारी , निश्चल प्रेम अराधना तुम्हारी |
नाम भजन में मनवा लागे, भाग्य उदय हो अमृत जागे |
जगत विधाता सतगुरु नामी, श्रीचरणों में करूं परणामी |
नाम भेद मेरा बन जावे, अंतर अद्भुत दृश्य दिखावे |
नाम भजन में मनवा लागे, मेरो भाग्य श्रीचरण में जागे |
चरण वंदना करूं साईं की , सतगुरु मालिक और नामी की |
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊँ, चरण वंदना गुरूजी की गाऊं |
सतगुरु जयगुरुदेव
मुझे एतवार है मालिक, मेरी नैया संभालोगे |
दिया जो नाम हे भगवन, किनारे नाँव लाओगे |
बड़ा बैरी मैं पापी, मुझे विश्वाश है तुम बचाओगे |
दया के खान सिन्धु हो, मेरे सतगुरु जी बिन्दु |
नाम की दात है बखशीश, दया के आप सिन्धु हो |
विनय मेरी मेरे मालिक, मेरी नैया करो उस पार |
दया हो मेरे सतगुरु की , वंदना हो तुम्हारी भी |
चरण में शीश रखता हूँ, जाऊं तुम पर बलिहारी मैं |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा लागे नाम भजन में, मेहर यही करो सतगुरु |
नाम की अंतर महिमा जागे, दया करो मेरे सतगुरु |
नाम भजन मै तुम्हरा गाऊं, मेहर करो मेरे सतगुरु |
दीनदयाला प्रभु कृपाला, तुम हरी हो सतगुरु |
प्रभु राम के दरश कराओ, इस सुरत को आगे बढाओ |
मनवा लागे नाम भजन में, ऐसी दया मेहर बरसाओ |
शीश धरु चरनन में तुम्हरे, नाम भजन कृतारथ गाऊं |
श्रीचरणन में नेह लगाऊं, मुक्ति मोक्ष परमपद पाऊं |
सतगुरु जी बलिहारी जाऊं |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये हमारे समस्त गुरुभाई बहनों, मालिक की अशीम दया अनुकम्पा है आप सब के ऊपर आप सब लग कर के सुमिरन ध्यान भजन करो, गुरु में मन लगाओ और गुरु से माफ़ी मानगो की हे मालिक दया करो हमारा सुमिरन भजन ध्यान बन जाये हे प्रभु हम पर मेहर करो की हमारा काम बन जाये आप सब लग कर भजन ध्यान करें गुरुमहाराज में मन लगाये और गुरु की चर्चा करते रहें रोज रोज अपने घट में घाट पर समय दें सुबह शाम लगकर के सुमिरन ध्यान भजन करें और गुरुमहाराज से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगे हे गुरुमहाराज मुझसे जाने अनजाने में जो भी गलती अपराध हो गया हो क्षमा कर दो दया कर दो अपने चरणों में लगाये रखो मुझे मांगना नही आता पर आप मुझे हारी में बिमारी में हर प्रकार से कष्ट कलेश में मुझ पर दया करो मालिक, मै अनजान हूँ क्या क्या माँगू ,आप तो जानते हैं की किस पर दया किस प्रकार करनी है तो जिस पर जिस प्रकार से दया करनी उसी प्रकार दया कर दो, पुरी की पुरी दया कृपा करो , मालिक हमे अपने चरणों में लगाये रखो हमसब आपके संतान है आपके बच्चे हैं आपके शिष्य हैं सदा आपका हीं नाम लेंगे अंतिम क्षण तक “सतगुरु जयगुरुदेव” “सतगुरु जयगुरुदेव” बोलेंगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भजन मन धारो सतगुरु नाम, सतगुरु नाम है सत्य स्वरूपी ,
सत्य ही आवे काम , सत्य सत्य से होए मिलनवा,
सूरत करे आराम , सुन्न शहर की होवे चढाई ,
भज सतगुरु का नाम , मुक्ति मोक्ष परम पद पावे ,
हो जाये कल्याण , नाम भजन मन चित में लागे ,
बन जाए सारो काम, सतगुरु नाम भजन मन धारे,
सतगुरु का यह काम , नाम भजन जब करे ये मनवा ,
सतगुरु का ये आधार , झट पट खुले क्षणिक तुम देखो ,
दिव्या अलौकिक धाम , मन आनंदित शीश झुकावे ,
सतगुरु सो प्रणाम |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन सतगुरु जी का ध्यान |
विनय करो सतगुरु स्वामी की, जिन्होंने दिया है नाम |
मन चित धारो नाम भजन में, घट गुरु का यही काम |
नाम बतायो आदेश कियो है, नाम भजन गुणगान |
मन चित लागे नाम भजन में, भजो गुरु का नाम |
चंचल चितवन हो अंतर में, सतगुरु जी के प्रभु राम |
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, कुल घट पट आराम |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये हमारे समस्त गुरुभाई बहनों, गुरुमहाराज का हमेशा से यही आदेश रहा की नाम भजन करो और उसकी कमाई करो वही कमाई तुम्हारे काम आयेगी यहाँ से जब चलोगे ये शारीर छुटेगा तो नाम भजन ही काम आयेगी वहाँ जब हिसाब होगा तो देखा जायेगा की आपने कितना भजन किया, क्या किया, क्या नही किया, गुरुमहाराज का नाम जब आप लेते रहोगे तो गुरुमहाराज पुरी की पुरी दया मेहर और मदद करेंगे | गुरुमहाराज ने कहा है जब भी विषम परिस्थित आये तो मेरे चेहरे को नही भुलना मेरा नाम लेना तो जैसे “सतगुरु जयगुरुदेव” “जयगुरुदेव” बोलोगे तो मै तुमको मिलूँगा और तुम्हारी मदद करूंगा तुम्हे बचा लूँगा हर हारी- बिमारी से हर तकलीफ से तुम्हारी पूरी मदद करूंगा पूरी रक्षा करूंगा लेकिन जब तुम नाम लोगे तब ये काम बनेगा नाम नही लोगे तो काम कहाँ से बनेगा तो जब तुम पुकारोगे नही तो कैसे होगा जैसे किसी से काम है तो कहते हो की भैये राम प्रकाश आ जाओ तो उसी तरह गुरु महाराज को पुकारोगे की गुरुमहाराज आ जाओ तो गुरुमहाराज का नाम लोगे तो गुरुमहाराज प्रकट होंगे और पूरी दया मेहर कृपा करेंगे | गुरुमहाराज ने हमे पहले भी बताया और चेताया की मेरी एक एक वाणी अकाट्य है इसको कोई काट नही सकता जो भी हमने भविष्यवाणी की है सारी होंगे पूरी, निशाने पर रहो और उसमे अटल विश्वाश करो | लगकर के सुमिरन ध्यान भजन करो गुरुमहाराज में रत रहो प्रभु में रत रहो , खेती दुकान दफ्तर का काम करो और सुमिरन ध्यान भजन का भी काम करो और अपने संसारी जीवन में रहते हुये उस प्रभु का भजन करो और अपना काम बना लो सतगुरु के चरणों में लगे रहो सत्य के चरणों में लगे रहो हर प्रकार से दया मेहर सतगुरु करेंगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अधर बीच चमके नाम गुरु का |
नाम भजन एक सच्ची खेती, करो प्रेमियों इसको चेती |
लगन लगाओ पाओ आराम |
शब्द सुनावे अधर सेन में , गुरु दर्शन का होवे लाभ |
दया मेहर बरसे सतगुरु की, सुख समृधि सुरतिया का काज |
चरण को सेवै सुरत प्यारी, बन जाये सतगुरु जी की दुलारी |
शीश धरे सतगुरु चरनन में |
झूले वो तो अझर मझारी, सतगुरु नामी की बन जाये प्यारी |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा नाम भजन में लागे, यही सतगुरु का कमवा |
काम इ सच्चा करो सभी जन, घाट के पार आवे कामवा |
दो उतराई नाम भजन की, बन जाये सारे कामवा |
गुरु दक्षिणा यही सतगुरु की, भजो गुरु का नामवा |
विमल हो चेतन अंतर घट में, सुरत पिये जब शब्द का जमवा |
सतगुरु निर्मल स्वक्क्ष हैं प्यारे, चलो देश वोही जनवा |
मन चित लाओ नाम भजन में, यही एक है कामवा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 11 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मै विनती करूँ सतबार ,गुरूजी तेरे चरणन की ।
सतगुरु खोलो न बन्द किवाड़ , लगन लागी दर्शन की ।
टुटी - फूटी नैया मेरी , गहरा जग संसार ।
चौहुदिश घुम - घुम कर हारी , मिलती नही पतवार ।
स्वामी सम्भालो न मेरी पतवार , अरज मेरे तन मन की ।
हे सतगुरु सतलोक के वासी सुन लो मेरी पुकार ।
जनम - जनम की प्यासी सूरत आयी तुम्हारे द्वार ।
सतगुरु कर दो दया की बरसात,प्यास बुझे तन मन की ।
हे करुणा - करुणा के सागर , विनती मेरी सुन लीजै ।
और कछु की इच्छा नाही , राम रतन धन दीजै ।
सतगुरु छुटे जगत जंजाल , लगन लागी सुमिरन की ।
मै विनती करूँ सतबार ,गुरूजी तेरे चरणन की ।
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु में मन को लगाना, सतगुरु में मन को लगाना |
सतगुरु नाम भजन मन गाना, सतगुरु में मन को लगाना |
जब चढ़े सुरतिया अम्बर, तब दिव्य देश दिखलाना |
सतगुरु की महिमा न्यारी, सतगुरु की महिमा न्यारी,
चहु दिशी दिखे हरियाली, चहु दिशी दिखे हरियाली |
जब गयी सुरत है अधर में, तब शब्द सुनाया घर में |
सतगुरु की मेहर निराली, सतगुरु की मेहर निराली |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा नाम भजन को गाना, सतगुरु चरणन नेह लगाना |
नाम दिया है नाम दिया है, नाम भजन मन गाना |
मनवा सतगुरु में है लगाना |
शब्द भेद का मिला खजाना , सतगुरु में मिल जाना |
मनवा नाम भजन को गाना |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमीजन, इस समय जीर्ण और क्षीर्ण समय चल रहा है देखो कही पर बाढ़ है कही पर सुखा है कहीं हारी है कहीं बीमारी है | परिवर्तन की ये सब छोटी छोटी दृश्य है आपलोग लगकर के सुमिरन भजन ध्यान करो गुरु महाराज की पूरी की पूरी दया का लाभ लो गुरु में मन लगाओ और गुरु के साथ चलो | गुरु के साथ रहोगे, अंग संग रहोगे मैलाई कट्टी जायेगी गुरु महाराज की दया मेहर बरसती जायेगी आप सब लोग खुश रहोगे मालिक के पास रहोगे मालिक आप पर मेहर करेंगे , हर प्रकार से हाजिर नाजिर मानते हुये मालिक का भजन करो, ये समझ लो ये हमारा घट है घट में घाट है घाट पे गुरु की बैठक तो जब तक हम जिन्दा तब तक गुरु महाराज जिन्दा यही मान लो और जिन्दा हाजिर नाजिर मानकर के आप लोग सुमिरन भजन ध्यान करो | सुमिरन भजन ध्यान करोगे तो मालिक की विशेष दया अनुकम्पा होगी और गुरुमहाराज तो इसी धरा पर हैं समय आने पर आयेंगे और सबको दर्शन देंगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 10 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
दया कर सतगुरु दीन्हा दान |
नाम अमोलक ऐसो दीन्हों, ध्यान भजन मन काम |
सतगुरु में जो लगन लगाओ, हो पूरा कल्याण |
मन चित लग जाये गुरु प्यारे में, पाओगे अभिराम |
नाम नामनी गुरुमालिक की, सतगुरु मूरत विशाल |
मनवा लगाओ सत्य देश में, सत्य का करो व्यापार |
हानि न होवे लाभ लाभ है, पहुंचे सुरत सतधाम |
नाम भजन कर काम बनाओ, पी लो असली जाम |
नाम भजन ही सच्चा रास्ता, नाम ही आवे काम |
शीश धरो सतगुरु चरणन में, बन जाये सारो काम |
सतगुरु जयगुरुदेव
नैन की तार में देखो, बसी सतगुरु की मूरत है |
खोल कर द्वार तो देखो, घट में गुरु की मूरत है |
नाम के एक एक मनके पर, गुरु की नाम मूरत है
शब्द आता अधर से है, इधर घट में सुनाता है
मेहर सतगुरु की होती है, तो बंदा नाम गाता है |
गुरु को मन लगाओगे, बनेंगे काज सब तेरे |
भुलकर तुम कहीं सतगुरु, फसोगे जम के घर में जा |
नाम सतगुरु का भजते चल, परम आनंद आयेगा |
दया की धार उतरेगी, बगीचा सींच जायेगा |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये समस्त प्रेमियों मालिक की बड़ी मेहर है जो सत्संग सुनने को मिलता है मालिक की वाणी सुनने को मिलती है बड़े ही भाग्य से सारा काम होता है कहते हैं “कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं अंत राम कहे आवत नाहीं” तो ये रटने की चीज है की अंत समय में भी तुमसे “सतगुरु जयगुरुदेव” “सतगुरु जयगुरुदेव” निकले अगर तुम सतगुरु जयगुरुदेव बोलोगे तो गुरुमहाराज तत्काल हाजिर हो जायेंगे और तुम्हारी मदद करेंगे | गुरु महाराज ने हमेशा बताया की बच्चू सुबह शाम हमको एक एक घंटे दे दो नाम भजन करो इससे तुम्हे हर प्रकार का फायदा होगा हर प्रकार का लाभ होगा हर प्रकार की दया दुआ मिलेगी | तुम नाम भजन में लगे रहो नाम भजन सार है और ये संसार है यह फ़साने का देश है अपने देश निकल चलो अपने देश में चलोगे वहां कोई मिलौनी नही है शब्द हीं शब्द की क्यारियाँ हैं शब्द ही खाओगे, शब्द ही पीओगे, शब्द हीं बोलोगे, शब्द हीं सुनोगे और पाक पाकीजा देश है सतदेश, तो उस सतदेश में चलो जहाँ से सतगुरु आते हैं अपने सतगुरु में घुल मिल जाओ अपने गुरु की जय जयकार करो गुरु ने जो कुछ दिया है उसका इस्तेमाल करो |
गुरु के साथ रहने में भलाई हीं भलाई है संसार के साथ बहने में बुराई हीं बुराई है किससे चिलाओगे सबपर गुरु की ही रहमत है और गुरु ही हर प्रकार से दया मेहर करते हैं सब प्रकार से दया मेहर करने वाले दाता दयाल सतगुरु हैं तो सतगुरु के साथ रहकर के नाम भजन कर लो जब नाम भजन कर लोगे तो हर प्रकार की मेहर सतगुरु की बरसेगी और हर प्रकार से दया मेहर होगी |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 09 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मनन मन लाऊ गुरु का नाम |
नाम गुरु का मनन करोगे, बन जायें सारे काम |
नाम भजन में मनवा डालो, पाओगे आराम |
सुखद अलौकिक अनुभूति हो, अंतर घट दरमयान |
दिव्य अलौकिक रूप दिखाए, सतगुरु का प्रमाण |
पांचो खंड पांचो धनी दिखाए, सतगुरु दीना नाम |
सतगुरु चरणन में नेह लगाओ, बन जाये सब काम |
सतगुरु जयगुरुदेव
भजन मन सतगुरु जी सतनामी |
ध्यान-भजन मीरा ने कीन्हा, सगरो जग है जानी |
कहे कवी रैदास सुनावे, सत्संग की मिट्ठी वाणी |
गोस्वामी ने लिखी रामायण, घट घट दया उपजानी |
दया मेहर कर राधा स्वामी, नाम नामनी जानी |
मेहर करी सतगुरु प्यारे, नाम दीन्ह है जबानी |
भजन ध्यान कर पार चलोगे, सबकी यही कहानी |
सतगुरु जयगुरुदेव हमारे, सत्य प्रभु को जाने |
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊ, करै न कबो मनमानी |
सतगुरु घट घट वासी प्रीतम, अनुभव सुनो जुबानी |
सत्य प्रकट के नामी मालिक, एक रस नाम कहानी |
नामी प्रीतम सतगुरु प्यारे, नाम दीन्ह है सहारे |
ध्यान भजन कर सब जन प्रेमियों, चलो सत्य देश की खानी |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुए दूर दूर से आये हुए गाँव की समस्त प्रेमियों मालिक की अशीम दया कृपा है लगकर के सबलोग सुमिरन भजन ध्यान करो पूरा का पूरा अनुभव अनुभूति गुरु महाराज की हो रही है | गुरु महाराज कहीं चले नही गये हैं वो हरदम हर छड़ हर प्रेमी के संग विराजमान रहते हैं और गुरु महाराज हर प्रकार से हाजिर नाजिर हैं, हर प्रकार से हाजिर नाजिर इस तरह से कहते हैं की ये तुम्हारा मानव पोल है ये एक घट है, घट में घाट है और घाट पर गुरु की बैठक अगर तुम जिन्दा हो तो घट में बैठा गुरु जिन्दा है की नही जिन्दा है | तो तुम्हे मानना चाहिये की हमारे गुरु महाराज हर प्रकार से जीवित हैं जैसे की आप शंकर भगवान की मंदिर में श्री कृष्ण की मंदिर में प्रभु राम की मंदिर में हनुमान जी की मंदिर में या किसी देवी-देवता के मंदिर में आप जाते हो तो उसमे मूर्ति पत्थर की होती है पर आप ये मानकर जाते हो की इसके अंदर जीता जागता देवता बैठा हुआ है ये मानकर के जाते हो श्रध्दा से आँख बंदकर के सिर झुकाते हो हे महाराज जी हे भोले नाथजी हे रामजी हमको ये दीजिये तो वैसे तुम्हारा गुरु हर छड़ जीवित हाजिर नाजिर है अगर आप मान लो की इसके अंदर पत्थर की मूर्ति तो भाई कोई जायेगा वहां, तुम यही तो मानकर जाते हो की इसके अंदर सबकुछ है वैसे ये मानव स्वरुप पोल एक मंदिर है इस मंदिर के अंदर दस दरवाजे हैं और दसवें दरवाजे पर गुरु की बैठक है, गुरु का दर्शन जब वह दरवाजा खुलेगा तो होगा | इसके लिए गुरु महाराज ने जो नामदान दिया है रास्ता बताया है लग कर के सुमिरन भजन ध्यान करोगे तो तुम्हे अनुभव अनुभूति होगी दिखाई भी पड़ेगा और सुनाई भी पड़ेगा गुरु के दर्शन होंगे अंतर में गुरु से बात चित होगी और गुरु महाराज जो बोलेंगे वो आप सुनोगे और आप जो बोलोगे वो गुरु महाराज सुनेंगे |
आप दोनों की बात चित होगी तीसरा कोई नही होगा | तब आपको मालूम पड़ेगा की अध्यात्म क्या है अध्यात्म विद्या क्या है गुरु महाराज बतायेंगे की कल बरसात होगी तो कल बरसात होगी कल ये होगा तो होगा परसों वो होगा तो वो हो जायेगा | इसी को कहते हैं अंतर में चलना अंतर में मिलना और सतगुरु से मिलते रहना | गुरु समरथ होता है वो कहीं जाता आता नही है सर्वे-सर्वा सतगुरु सतनाम स्वयम सर्वव्यापी परमपिता परमेश्वर होता है सतगुरु ही सबकुछ होता है वो ही प्रभु से मिलवाता है वो प्रभु से दर्शन करवाता है और उसी के बल से साधक प्रेमी चढ़ कर के उपर उच्च कोटि के स्थानों तक जाते हैं और पूरी की पूरी दया मेहर पाते हैं तो जब दया मेहर पाते हैं तब यहाँ आकर के गाते हैं अपने सतगुरु का भजन, किस प्रकार से गाते हैं—
“सतगुरु दीन्ह पायों मै भारी, नाम जड़ी की रगड़ाई
अजब अलौकिक नाम जड़ी, रगड़ रगड़ के कटे मैलाई
अजब निराली होये सफेदी, अंतर घट होये हरियाली
सतगुरु नाम भजन मन धरा, निर्मल सतगुरु सत्य संग धारा
सत्य रूप के दर्शन कीन्हा, दया मेहर से सतगुरु कीन्हा
सत्य धर्म से कटी मैलाई, सतगुरु समरथ दया बनाई
नाम भजन कर हमने पाया, तुम भी भजन करो मेरे भाई
सतगुरु चरणन शीश झुकाओ, विनय मेहर से नाम कमाओ
संत शिरोमण सतगुरु नामी, जिनकी मेहर मिलै सत्यखानी
संत सतगुरु की सुनो जबानी, अंतरघट की सारी कहानी
नाम भजन मन लो तुम ठानी, बन जाये काम बड़ा असानी
मिल जायें सतगुरु सत्य के नामी, सचर अचर अद्भुत हो कहानी
सतगुरु जयगुरुदेव मेरे नामी ”
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों जब लगकर के तुम भजन करोगे गुरु से प्रार्थना करोगे तो तुम अद्भुत अलौकिक देखोगे प्रथम प्रभु राम के दर्शन होंगे और वहां के खिलकत देखोगे उस देश की पूरी उपमा गरिमा को देखोगे स्वर्ग बैकुंठ की रील चलने लगेगी , उपर देखोगे जाओगे अध्या महाशक्ति का देश सतगुरु परम दयाल का देश और प्रभु राम का देश प्रभु राम रास्ता देंगे फिर ब्रह्म का देश देखोगे तो ओंगकर का वहां फटक शिला गुरु की बैठक वहा सत्संग सुनोगे उसको देखोगे सुनोगे काफी दीन आते जाते रहोगे ततपश्चात गुरु महाराज आपकी सूरत को उपर ले जायेंगे मानसरोवर पर तीसरे धाम जिनको पारब्रह्म कहते हैं वहां उसमे स्नान कर के आपकी मैलाई कट जायेगी गुरु महाराज के चरणों में लग जाओगे सूरत हंस समान हो जायेगी आना जाना हो जायेगा और आते जाते रहोगे फिर सारी मैलाई कट जायेगी तो आपको पूरा का पूरा अनुभव होने लगेगा गुरु महाराज की पूरी दया बरसने लगेगी | सतगुरु पूरी दया मेहर करेंगे और तुमको पूरा नाम खजाना देंगे साथ हीं साथ सारा दया मेहर आपके उपर उतार देंगे और आपके उपर सारी की सारी दया मेहर आने लगेगी फिर आप सतगुरु के चरणों में लग कर के भजन करना और सतगुरु के साथ रहना सतगुरु से ही सारा काम बनेगा दुसरे से नही | अगर तुम अपने सतगुरु को छोड़ कर के किसी दुसरे के पास जाते हो तो एक तो तुम्हे पाँप लगेगा और दुसरे तुम्हे कुछ मिलेगा नही और नर्को चौरासी में जाना पड़ेगा इसलिए जब समरथ संत सतगुरु का जब हाथ पकड़ा है तो अपने सतगुरु के साथ रहो और अपने सतगुरु के बताये हुए मार्ग पर चलो अपने सतगुरु को हाजिर नाजिर मानकर के नाम भजन करो और गुरु महाराज से प्रार्थना करते रहो की हे मालिक मुझसे जाने अनजाने में जो भी गुनाह अपराध हुआ हो क्षमा कर दो दया कर दो हम पापी अधम जिव हैं पर जिव आपके हैं आपके चरणों में रहेंगे जैसा आप कहेंगे वैसा हमसे बन पटेगा सतगुरु नाम भजन को करेंगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 08 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद गुरु ने दीन्ह |
अंतरयामी सतगुरु मेरे, घट घट में हैं लीन |
नाम धन सतगुरु जी ने दीन्ह |
नाम भजन कर दूना कर लो, ना कोई लेगा छिन्ह |
नाम निज सतगुरु जी ने दीन्ह |
अंतर में सब शब्द सुनावे, मधुर मधुर बाजे बीन |
नाम निज सतगुरु जी ने दीन्ह |
नाम अधारे सतगुरु प्यारे, इन्ही में रहियो लीन |
शीश झुकाओ सतगुरु चरणन में, जिन्हों ने दीन्ही नाम जड़ी |
नाम भजन कर चलेंगे सब जन, जब आवे दिव्य घड़ी |
नाम निज सतगुरु जी ने दीन्ह |
सतगुरु जयगुरुदेव
मै करूं विनती गुरु चरणन की, दया मेहर कर दीन्ह |
दया मेहर बरसी स्वामी की, विनती से ये चीन्ह |
नाम भजन कर लागो मनवा, विनती कर तर्ल्लिन |
विनय मन सतगुरु जी का कीन्ह |
भाव झरोखे बैठो सबजन , शब्द को लीजो चीन्ह |
नाम निज सतगुरु जी ने दीन्ह |
विनती प्रार्थना यही हमारी, आपके चरणन लीन |
विनय मन सतगुरु जी का कीन्ह |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु नाम भजन मन गाना, सतगुरु में मन को लगाना |
जब चढ़े सुरतिया अम्बर, तब दिव्य देश दिखाना |
रिमझिम ये फुहार जो आये, सुखा बृक्ष हरे हो जावे |
होवो नाम भजन में लीन , अंतर में बाजे बीन |
मनवा नाम भजन में लीन, अंतर में बाजे बीन |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 07 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम भजन का तार पड़ा है, इसी से होवो पार |
मनवा लागे नाम भजन में, हो तेरा उध्दार |
मंगल पावन चले बयरिया, शब्दों की झंकार |
अंतर वाणी दिव्य अलौकिक, दिव्य अलौकिक तार |
घट के भीतर सतगुरु दिखे , मनमोहक अधिपार |
पद पंकज में शीश झुका कर, सतगुरु के संग चलो पार |
सत्य देश में बसों जाई कर, मिले पूरा अधिकार |
सतगुरु का तुम नाम भजन करो, निकल चलो उस पार |
सतगुरु जयगुरुदेव
मन में स्वागत करो सतगुरु का जरा, नाम को तुम भजो थोड़ा जरा |
आज तुम तो भजन को करो तुम जरा, तुम सुनो अंतर वाणी श्रांवण बीच |
अपने मन के तुम अंतर सुनो तो जरा, कुछ भजन मन में गाना है सतगुरु का जी |
शीश चरणों में सतगुरु के झुकाना तुम्हे, है भजन सतगुरु का गाना तुम्हे |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 06 अगस्त २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम निध सतगुरु जी ने दीन्ह |
नाम भजन करो सब जन प्रेमियों, जो अंतर में चीन्ह |
अंतर विद्या गुरु ने बतायो, उसी में होवो लीन |
मंगल चमके अंतर ध्वनियाँ, निर्मल बाजे बीन |
दया मेहर बरसे सतगुरु की, मेहर गुरु ने कीन्ह |
शीश धरो सतगुरु चरणन, उसी में हो तल्लीन |
नाम भजन करो सब जन प्रेमियों, नाम में होवो लीन |
सतगुरु दया विराजे तुमपर , शब्द भेद की जीन्ह |
पद पंकज सतगुरु का देखो, वही गुरु को लो चीन्ह |
धरो शीश सतगुरु चरणन में, दया मेहर कर दीन्ह |
सतगुरु जयगुरुदेव
भजन बिन नीरसत है जिंदगानी |
जिनने जगाया नाम भजन, उनकी क्या जिंदगानी |
नाम भजन सतगुरु से मिलता, सत्य की यही जुबानी |
सतगुरु अपने मालिक प्रीतम, उनकी सुनो जुबानी |
ध्यान भजन की बात बतावें, अन्तःपुर की कहानी |
खेल चले जब घट के भीतर, सब सतगुरु की वाणी |
नाम धरो सतगुरु आधीन, मेहर भजन मन ठानी |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला अंतरघट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुये प्रेमियों, गुरुमहाराज बार बार इशारा अंतर में करते रहे हैं की समय खराब आने वाला है और समय खराब चल हीं रहा है तुमलोग लगकर ध्यान भजन करो एक दुसरे की निंदा अलोचना न करो न किसी को तुम परेशान करो न कोई तुमको परेशान करे अपना अपना काम करो अपने रास्ते पर चलो अपने गुरु का भजन करो २४ घंटे में २ बार और ना हो सके तो कम से कम एक बार उस मालिक को याद करो मालिक के शरणागत रहो मालिक के साथ रहो तो बहुत से पापाचार बहुत से बुराइयां आपकी कट जायेगी आपकी मैलाई कट कट जायेगी आप पवित्र हो जाओगे अपने सतगुरु में मिल जाओगे और सतगुरु की हीं गाओगे सतगुरु नाम भजन गाकर के उस पार हो जाओगे और सतगुरु नाम भजन नही, हरी का भजन नही गाओगे तो ये जीवन निरर्थक चला जायेगा क्या फायदा मिलेगा क्या तुम्हे मिलेगा, करोड़ो जन्मे और करोड़ो जन्म आगे लोगे तो इससे क्या फायदा निकलेगा | नर्को चौरासी में चले जाओगे कौन बचायेगा इसके लिए समरथ संत और सतगुरु किया जाता है जो तुम्हे बचा कर के अपने देश ले जायेंगे तुमसे निमित मात्र भजन करा कर के अपने देश पहुंचा देंगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 28 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अधर सेन के सतगुरु मालिक , जिन ने नाम है दीन्ह ,
नाम भजन करो सब जान प्रेमी , लो सतगुरु को चिन्ह ,
दया मेहर गुरु जी विराजे , अंतर बजे बीन ,
भाव झरोखे सतगुरु द्वारे, गुरु चरणो में ही लीन ,
दया मेहर पाओ मालिक की , अमृत जल को चिन्ह,
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में , जिन ने नाम दीन्ह ,
सतगुरु जयगुरुदेव |
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर के प्रांगण में बैठे हुए प्रेमियों इस समय धीरे धीरे बड़ा ही अद्वतीय, अदभुद कार्यक्रम नजदीक आता चला जा रहा है | जो हम लोगो के लिए अलौकिक अनोखा रहता है , हम सभी प्रेमियों के लिए , कोई भी हो अपने गुरु की पूजा सब लोग अपने अपने तरह से करते हैं , गुरु पूजन का दिन बहुत महत्व पूर्ण होता हैं , तो गुरु पूर्णिमा का कार्यक्रम धीरे धीरे नजदीक आ रहा है , सब लोग भाव और श्रद्धा से अपने अपने गुरु की पूजा करेंगे| हम सब अपने गुरु की पूजा करेंगे , उन्ही चरणो को धोएंगे और पुष्प चढ़ाएंगे और जो भी प्रसाद है जो अपने यंहा चढ़ता है ओ चढ़ेगा और प्रेमी जन अपने साथ ले जायेंगे , मालिक की जो भी दया दुवा होगी ओ बरसेगी और सब को मिलेगी| हर जगह पुरे देश में पुरे विश्व में गुरु पूर्णिमा का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जायेगा | सब जगह हर पंत में , हर संतों के यहाँ ये कार्यक्रम होगा और यहाँ पर भी ये कार्यक्रम होगा | अपने गुरु की पूजा सब लोग मन चित लगा कर करेंगे | हम सब अपने गुरु महाराज का गुरु पूजन करेंगे और गुरु मालिक से दया मेहर की भीख मांगेगे की ये मालिक दया करो की हर प्रकार से आप की दया मेहर हो| हर प्रकार से आप के दर्शन हो और आप से यही प्रार्थना है की आप मिलो और हर प्रकार के हमारे गलती अपराधों को जो भी मुझसे हुवा हो उसे क्षमा करदो और हम पर दया करो और अपने चरणो में लगाये रक्खो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 26 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद गुरु ने दीन्ह |
नाम भजन कर सब जन प्रेमियों, लीजो उसको चीन्ह |
नाम निज सतगुरु जी ने दीन्ह , बड़े पुन्न प्रताप तुम्हारे |
सतगुरु जी की दया विराजे, तो तुमको निध दीन |
नाम निध सतगुरु जी ने दीन्ह , भजन कर लीजो इसको चिन्ह |
सतगुरु जयगुरुदेव
नाम मन सतगुरु अंजीकार |
सतगुरु नाम अधार रहो , यही करेगा पार |
नामी सतगुरु प्रीतम ठाकुर, येही हैं खेवनहार |
नैया सतगुरु पार लगावें , खेयीं करैं उस पार |
नाम भजन में सब जन लागो , नाम येही अधार |
नामी नाम से तुम्हे मिलेंगे , खेयीं करेंगे उस पार |
गुनाह जो बनी हो तो सतगुरु से, माँगों माफ़ी बारम्बार |
सतगुरु दया विराजे तुम पर, दया मेहर हर बार |
नाम भजन में सब जन लगो, नामहीं है अधार |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 24 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नैन बीच बसाओ सतगुरु को , बन जाये सारे कमवा ,
ध्यान भजन मन लगे अंतर , जपो गुरु का नमवा,
नाम भजन का प्रताप बड़ा है , सतगुरु दया से हो यह कमवा,
शरणागत रहो गुरु चरनन में , छके के पियो ये जमवा,
सतगुरु चरण शीश झुका कर, लेव सतगुर का नमवा ,
सतगुरु जयगुरुदेव ,
प्रेमियों सब प्रेमी नित प्रति अपनी निरख परख करते रहें , गुरु महाराज ने यही बताया है की अपनी निरख परख करते रहो , और जो कमी है उसे थोड़ा थोड़ा दूर करते रहो , और लग करके सुमिरन ध्यान और भजन करो , सुमिरन ध्यान और भजन करने से मन सात्विक होगा और बुद्धि विवेक निर्मल रहेगा , और जहाँ सत्संग हो , गुरु महाराज की चर्चा हो उसे सुनना चाहिए, चाहे कोई भी सुनाता हो , गुरु की चर्चा हो गुरु की निंदा न हो | गुरु महाराज के चरणो में बैठ करके नाम भजन करोगे तो मुक्ति मोक्ष मिलेगा , जितने दिनों स्वांशो की पूंजी है उतने दिन कम से कम काम करो और सुमिरन ध्यान भजन करो और यदि ये भी न कर सको तो कम से कम सतगुरु जयगुरुदेव, सतगुरु जयगुरुदेव करो और अपने गुनाहो की माफ़ी मांगते रहो और कहो हे मालिक मुझसे जो भी गलती गुनाह हो गया हो ओ माफ़ कर दो और दया कर दो हमारा सुमिरन ध्यान और भजन बन जाये | सुमिरन ध्यान और भजन जब बनेगा तभी काम बनेगा और यदि सुमिरन ध्यान और भजन नही बना तो कोई काम नही बना , नामदान मिला है दर्शन किया है आप ने तो मनुष्य शरीर मिल जायेगा पुनः लेकिन बिना भजन के मुक्ति मोक्ष नहीं मिलेगा | इसलिए प्रेमियों जितना ज्यादा से ज्यादा बन सके उतना प्रतिदिन सुमिरन ध्यान और भजन करो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 23 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भाव झरोखे करूं वंदना, सतगुरु नामी तेरी |
विनय प्रार्थना यही हमारी, लगन लगी रहे तोरी |
श्रीचरणन स्थान को पाऊं, नाम भजन मै तेरा गाऊं |
ध्यान भजन मन चित में लाऊं, मुक्ति मोक्ष परम पद पाऊं |
नाम भजन तेरा सतगुरु गाऊं |
सतगुरु जयगुरुदेव
झरोखे देखो सतगुरु प्रीतम, नाम भजन से चढ़े जब सुरतिया |
घट के भीतर जाई, घाट झरोखा देखा उसने |
याही में सतगुरु दिखाई, भाव भजनिया करो सतगुरु की |
लीन्ही सबहीं बनाई, बन गयो काज प्यारी सुरत का |
भाव भजन मन गाई, सतगुरु प्रीतम रीझ गये हैं |
चरणन शीश झुकाई |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे हुए प्रेमियों नित प्रतिदिन जो भी समय मिल जाये मालिक कि काम के लिए सुमिरन ध्यान भजन के लिए तो चुको मत सबलोग सुमिरन भजन ध्यान लग कर के करो नाम की कमाई करो, रोज रोज अपने गुनाहों की माफ़ी अपने गुरुमहाराज से मांगते रहो और कहो की हे दाता दयाल मुझसे गलती हो गई अपराध हो गई मुझको क्षमा कर दो दया कर दो और अपने चरणों में लगाये रखो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु स्वामी तुम्ही रीझाऊ, बन जाये अंतर काम |
शब्द सुनावे घट के भीतर, हे सतगुरु मेरे राम |
नामी प्रीतम मालिक मेरे, मेहर होये आठोंयाम |
सतगुरु चरणन शीश झुकाऊँ, करूं वंदना साथ |
सतगुरु जयगुरुदेव
मन चित लागे नाम भजन में, येही एक सच्चा काम |
नाम भजनवा जो बन जाये, खुल जाये अंतर के पाट |
दया मेहर होवे मालिक के, बन जाये सगरी बात |
सतगुरु प्रीतम महादयालू, अनुभव उनके हाथ |
शीश धरो सतगुरु चरणन में, दया मेहर है साथ |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुए प्रेमीजन सबलोग लगकर के सुमिरन ध्यान भजन करो अंतर में मालिक से रो रो कर के प्रार्थना करो कि हे मालिक दया हो जाये मेहर हो जाये आपसे मुलाकात हो जाये बात हो जाये फिर गुरु से मुलाकात होगी बात होगी तो अपना काम बन जायेगा |
गुरुमहाराज का दर्शन होना बहुत जरुरी है हफ्ते में महीने में तीन महीने में छह महीने में साल भर में अगर गुरु का दर्शन नही हुआ तो गुरुदोष लगता है तो ऐसा यत्न करो ऐसी विनती प्रार्थना करो गुरुमहाराज से की हे मालिक सैन बैन में दर्शन दें सैन में होंगे तब भी ठीक है और बैन में होंगे तब भी ठीक है दोनों तरीके से किसी भी तरीके से दर्शन होनी चाहिये तो गुरु का दर्शन होना अति जरुरी है और अति उत्तम है क्योकि गुरु ने ही नाम दिया है गुरु ही पॉवर देगा गुरु के दर्शन से सारे बदन में सारी शरीर में ताकत आती है गुरु की एक वाणी सुन लेते है और जैसे गुरुमालिक बुलाते थे की चलो बच्चू, चलो चलो जल्दी करो जल्दी करो तो आप लोग दौड़ते हुये तुरंत सतसंग स्थल पर पहुँच जाते थे वैसे आज भी ललक बना कर रखो की गुरुमहाराज अंतर में अवाज दे रहे हैं तो अंतर में सुनने की कोशिश करो और अंतर में चलो अंतर में भजो, भजना बहुत जरुरी है समय धीरे धीरे खिसकता चला जा रहा है कब किसकी सांसों की पूजी पूरी हो जाये किसी को क्या पता कब किसका शरीर छुट जाये किसी को कुछ नही मालुम कोई कुछ लेकर नही आया जाना सबको है “आया है तो जायेगा राजा रंक फ़कीर” सब जायेंगे कोई यहाँ रहेगा नही तो आप जाओगे नाम भजन के साथ गुरु के साथ कोई मारा पिटी नही होगी कोई पकड़ धड़ नही होगी अराम से चले जाओगे अपने गुरुमहाराज के साथ अपने परमधाम तो तुम्हे मुक्ति मोक्ष प्राप्त हो जायेगा |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय भाव बस करो प्रार्थना, अंतर्घट के माही |
अंतरघट में बसते हैं मालिक, हर प्रकार के छाई |
जिन मालिक ने नाम बतायो, घट में दरस उसी का पाओ |
उस मालिक की करो वन्दना, जिसने सारो भेद बताया |
शीश झुकाओ उन्ही चरणों में, पर सारथ फल सारा पाया |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियो रोज रोज अपने घाट पर घट में हाजिरी देने से घाट साफ रहता है मालिक के दर्शन होते रहते हैं दिखाई सुनाई पड़ता रहता है अनुभव अनुभुति होती रहती है मालिक की दया बरसती रहती है तो अच्छा रहता है इस तरह जो कूड़ा-कचरा जम जाता है तो दिखाई सुनाई नही पड़ता, मन रुखा-फ़ीका हो जाता है मन भजन में नही लगता तो इसलिए रोज रोज घाट पर बैठकर के भावपूर्ण प्रार्थना बोल कर के भजन करते रहते हैं और अपने मालिक में मन लगाते हैं और मालिक से हीं सब कुछ मांगते हैं |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 20 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम निधि सतगुरु जी ने दीनी, नाम नाम्नी सब सतगुरु की |
दया मेहर को चीन्ह, नाम निधि सतगुरु जी ने दीनी |
भाव प्रार्थना विनती अराधना, सतगुरु जी की कीन्ह |
नाम निधि सतगुरु जी ने दीनी |
प्रीतम प्यारे शब्द सनेही, शब्द में लागे नेह |
नाम निधि सतगुरु जी ने दीनी |
सतगुरु जयगुरुदेव
अधारे रहियो सतगुरु जी के, द्वारे रहियो सतगुरु जी के |
भाव प्रार्थना विनती अराधना, करते रहियो सतगुरु जी के |
होगी गुनाहों की माफ़ी मालिक, करते रहियो सतगुरु जी से |
सतगुरु परम दयालु मेरे स्वामी, चरण वंदना सतगुरु जी से |
सतगुरु चरणन शीश झुकाना, चरणन में बलिहारी जाना |
सतगुरु नाम भजन को गाना |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मनवा लागे नाम भजन में, समझो सब तरलीन |
अंतर मधुर ध्वनी सुनावे, झीनी झीनी बीन |
नाम अलौकिक दियो सतगुरु ने, नाम भजन कर चीन्ह |
मनमोहक अंतर तुम्हीं दीखे , बाग बगीचा समलीन |
सतगुरु मेहर दीन्ह हैं अपारा, भजन करो बाजे बीन |
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरुचरणों में मन को लगा के चलो, भाव भक्ति में खुद को लुटाते चलो |
नाम सतगुरु का अपने पुकारते चलो, राह में तुम कही पर भी डरना नही |
कर भजन नाम के लोक चढ़ना तुम्हीं, है भजन पार ले जाने वाला सही |
मार्ग सतगुरु ने सच्चा बताया यही, गुरु में लग कर के सब जन भजन अब करो |
ध्यान मय सतगुरु का अंतर धरो, शीश सतगुरु चरण में झुकाते चलो |
नाम सतगुरु का अपने तुम गाते चलो |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नमन वंदना गुरु चरणन की, आठों याम नमामी |
लगन से नाम भजन हो अंतर, तबही तो पीर बुझानी |
सतगुरु सत्य देश के मालिक, घट में जाये समानी |
राग अलौकिक अद्भुत सुनकर, रीझी बहुत सुहानी |
शीश धरो सतगुरु चरणन में, दया मेहर हुई न्यारी |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रागंण में बैठे हुए समस्त प्रेमीजन हर प्रकार से हाजिर नाजिर सतगुरु साईं जयगुरुदेव | देखो प्रेमियों समय समय पर प्रभु को बताने वाले चेताने वाले संत महात्मा आते रहे हैं धर्म की स्थापना के लिये राम कृष्ण आये अबकी बार में गुरुमहाराज ने बीड़ा उठाया की कलियुग में कलियुग जायेगा और कलियुग में सतयुग आयेगा, तो आप लोग समझते हो की बाबाजी तो गायब हो गये तो काम होगा नही, पर ये सारा काम होगा एक भी भविष्यवाणी गुरुमहाराज की कटने वाली नही है, समय से सारा काम होगा आप लोग देखते रहो, निशाने से लगे रहो, सुमिरन भजन ध्यान करते रहो, जो जो गुरुमहाराज ने कहा उन वचनों को उलट पलट कर देखते रहो या पत्रिकओं को उलट पलट कर देखते रहो की क्या कहा है जो कहा है उसको याद करते रहो | और जब सुमिरन भजन ध्यान तुम करोगे अपने घाट पर बैठकर जब हाजिरी तुम दोगे तो गुरुमहाराज से मुलाकात होगी तब आपकी बात चीत साफ़ हो जायेगी, साफ साफ बात होगी, गुरुमहाराज आपसे बोलेंगे आप जो कुछ पुछेंगे उसका जबाब गुरुमहाराज देंगे जब आपको जबाब मिलता चला जाये तो उसी के हिसाब से आप अपना काम करो और गुरु सहारे रहो गुरु के द्वारे रहो | जब गुरु के सहारे गुरु के द्वारे रहोगे तो सारा काम आपका बनता चला जायेगा, गुरुमहाराज की ही बातों को मानोगे गुरुमहाराज के बताये हुए रास्ते पर चलोगे उनसे विनती प्रार्थना करते रहोगे तो हर गलतियों की माफ़ी होती चली जायेगी, जो भी गुनाह अपराध होता है वह गुरु महाराज से गुनाहों की माफ़ी मांगते रहो, नित्य मन लगाकर के गुरु चरणों में अपना ध्यान देते हुये सुमिरन भजन ध्यान करते रहते हैं | सुमिरन भजन ध्यान में मन एकाग्रचित होना चाहिए इसलिये सुमिरन ध्यान भजन करने से पहले भावपूर्ण प्रार्थना बोलनी चाहिये, जब भावपूर्ण प्रार्थना बोलोगे एक प्रार्थना बोलोगे तो तुम्हारा भाव बन जायेगा तुम्हारा मन बुध्दि चित गुरु चरणों में हो जायेगा और तुम्हारा सुमिरन भजन ध्यान बन जायेगा अगर तुम्हारा सुमिरन भजन ध्यान नही बनता तो उसके लिए कोई साधजन है जो साधना करते हैं तो उनका सुमिरन भजन ध्यान बनता है तो उनके साथ कर लो अगर वो नही चाहे, आपको साथ नही बैठाते की नही ऐसा नही, तो कही जगह खोज कर लो जहाँ सुमिरन भजन ध्यान बनता हो और पूरी अनुभव अनुभूति हो | और अगर आपको कहीं नही मिलता है तो अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला चले आओ जनपद फैजाबाद अयोध्या यहाँ आपको सिखाया जायेगा बताया जायेगा और आपको दिखाई भी पड़ेगा सुनाई भी पड़ेगा बोद्ध भी होगा, यहाँ एक मात्र काम यही होता है गुरु की चर्चा और गुरु की प्रशंसा सुमिरन भजन ध्यान आत्मबोध आत्म कल्याण | किसी की निंदा यहा व्यक्तिगत तौर से नही की जाती चाहे कोई भी छोटा बड़ा सत्संगी या जिम्मेदार हो किसी की निंदा अलोचना यहाँ नही की जाती | और नाही किसी को माना किया जाता है की तुम फलां जगह जाना फलां जहग मत जाना यहाँ जाना यहाँ मत जाना यहाँ आना यहाँ मत आना ये सब कुछ नही कहा जाता जिसकी मर्जी जहाँ जाये अगर उसे अनुभव की जरूरत है की दिखाई सुनाई हमे पड़े तो उसके लिए यहाँ आये और पूरी की पूरी दया मेहर उसपे बरसेगी | देखो प्रेमियों समय धीरे धीरे बीतता चला जा रहा है काफी प्रेमी बहुत से ये जानते हैं की गुरुमहाराज हाजिर नाजिर हैं और हम भी मानते हैं की गुरुमहाराज हमारे हाजिर नाजिर हैं अगर हाजिर नाजिर नही होते तो जो अन्तर कहा की बच्चू तूने ये जीते जी मंदिर बनवाया है तो उसमे मै अखण्ड रूप से विराजमान हूँ यहाँ पर जो प्रेमी आएगा सच्चे मन से तीन बार ध्यान भजन करेगा तो उसकी आँख खुल जायेगी तो उससे आँख खुल रही है दिखाई सुनाई पड़ रहा है तो जब गुरुमहाराज बता रहे हैं दिखाई सुनाई पड़ रहा है सारा काम हो रहा है तो शंका किस बात की है गुरुमहाराज ने कहा है की मै आऊंगा और अपना काम पूरा करूंगा तो वे आयेंगे तो चाहे जैसे भी आये जिस रूप में आयेंगे तो उसका प्रमाण देंगे बतायेंगे, हम नही खोज पायेंगे तो खुद चलकर आयेंगे बतायेंगे और समय आ गया तब खोजवा लेंगे, खोजवा देंगे की बच्चू चलो फलाना जगह मै बैठा हूँ आओ मै हीं हूँ दुसरा कोई नही है तो बता देंगे तो वहां पहुँच जायेंगे | अब इनकी मौज के उपर ही सारा काम होगा गुरु अपने मौज के धनी होते हैं आदि अनाम निर्गुण निराकार श्रीराम प्रभु इन्ही को कहते हैं जो कुल मालिक हैं कुल सत्ता के धनी हैं हम तुम भिखारी हैं वे दाता हैं आप हमेशा निशाना अपने सतगुरु से रखकर के सुमिरन भजन ध्यान में लगे रहें, अपने गुरु के रास्ते पर चले और गुरु की सेवा करें |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भरोसे रहियो संत आधारे, समरथ संत हैं प्रीतम प्यारे |
वही जीवों को उध्दारे, भरोसे रहियो संत के प्यारे |
संत देत हैं नाम भेद को, गगन भेद दिखलावें |
धुर का मार्ग संत बतावे, संत ही भेद चिन्हावे |
सतगुरु प्रीतम संत हमारे, रहो भरोसे सतगुरु प्यारे |
सतगुरु जयगुरुदेव
दीन बन करो गुरु का काम, दीन बनोगे दया आयेगी |
भजन में हो आराम
धसे सुरतिया अंतर पुर में, देखे मंगल राज |
अद्भुत और अलौकिक खिलकत, एक एक देखे साज |
राज अलौकिक है सतगुरु का, सुरत करे जिसपे नाज |
नाम हमारे प्रीतम दीन्हा, जिससे बनयों सब काम |
श्रधा भाव से शीश झुकाऊ, दया मेहर सतगुरु की पाऊं |
इन्हीं के चरणन घुल मिल जाऊ, सतगुरु जयगुरुदेव जुहाऊँ |v
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मनवा लागे नाम भजन में ,मेहर करो मेरे नामी |
पग पग पैर पैजानिया बान्धो, हर छड़ शब्द हो नामी |
घट बीच बाजे जोर पैजानिया ,सुनो मै रिझु नामी |
तुम्हरी दया अलौकिक देखु, अंदर बाहर स्वामी |
सतगुरु चरणन करूं वन्दना, तुम्ही सत्य के नामी |
सतगुरु मालिक प्रीतम ठाकुर, शब्द भेद के मालिक |
नाम लखायो भेद बतायो, कुल धुर के हैं मालिक |
शीश झुकाऊ तुम्हरे पद पंकज, दया मेहर रहे नामी |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेम बस गाओ सतगुरु नाम |
प्रेम भाव से सतगुरु रीझे, बन जाये सगरे काम |
प्रेम बस रीझे सतगुरु श्याम |
सतगुरु तेरी करू वंदना, लग कर आठो याम |
नाम भजन का दिया है मोती, तामे मिलेंगे राम |
तासे चेत चलो अंतर में, चितवन चंचल राग |
रूप अलौकिक अद्भुत देखो, अंतर खेलो फाग |
भाग्य जाग जायेंगे तुम्हारे, सुनो सतगुरु का राग |
धरो शीश सतगुरु चरणन में, जागे तुम्हरे भाग्य |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मालिक प्रभु के मंदिर प्रागंण में बैठे हुए समस्त प्रेमी अंतरघट जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला में जनपद फ़ैजाबाद उत्तरप्रदेश, यहाँ जो भी प्रेमी बैठे हैं इस समय सतसंग स्थल पर वे बड़े भाग्यशाली है मालिक की अशीम दया से सतसंग मिलता है | सतसंग जल ही सुरत जीवात्मा को हरा करता है और सींच-सींच कर बलवती बनाता है सतसंग न मिले तो सूरत रुखी फिकी हो जाती है सतसंग मिलने से बहुत बड़ा विवेक होता है जब विवेक होता है तो बुद्धि जागृत होती है तो वो नाम भजन में लय होती है सतसंग सुनने में गीता भागवत सुनने में मन लगता है और जो सच्ची परम्परा है संतमत के तो उसमे लय होने में बड़ा आनंद आता है | पूर्व में गुरुमहाराज ने बहुत कुछ कहा समझाया और अपने निशाने पे चलने की राह बता रखी मार्ग दर्शन कर रखा इस तरह चलना है बच्चू, इस तरह काम करना, इस तरह सुमिरन करना, इस तरह ध्यान करना, इस तरह भजन करना कोई कोर कसर नही छोड़ी और हमेशा कहा की जब भी आओ यहाँ कुछ कमा कर के ले आओ, जब आप लोग मथुरा आश्रम जाते जाकर के बैठ जाते गुरुमहाराज के सामने तो गुरुमहाराज ये कहते कि बच्चु चले आये निठ्ठले कुछ कमा कर के नही आये तो वे रुपया पैसा नही मांगते थे वो नाम की कमाइ की दौलत मांगते थे कुछ कमा कर के लाते तो तुम्हारे पास जमा होता, कमाते ठीक से हो नही बस चले आते हो और चले जाते हो हुक्म होता उसका भी पालन नही करते हो | मथुरा हमारा आप सब का गुरुद्वारा है उसको लाख बार कोटि कोटि नमन सबलोगों को करना चाहिए वो गुरुमहाराज का बनाया हुआ स्थान है और हमेशा रहेगा वहां तो भारतवर्ष का किसी भी कोने का किसी भी प्रकार का प्रेमी हो जो स्वामीजी महाराज से नामदान ले रखा हो तो गुरुद्वारा तो उन सबका है और सब वहां जा सकते हैं आ सकते हैं कोई रोक टोक तो है नही जिसकी मर्जी जहाँ चाहते की भाई हम वहां सतसंग सुनेंगे वहां रहेंगे उधर आयेंगे उधर जायेंगे तो उसकी मर्जी की बात है पर गुरुद्वारा तो अपना है ही गुरुद्वारा में जाना आना अतिआवश्यक हैं गुरु के दर्शन एक बार साल में करना जरुरी हैं पर अब गुरु महाराज प्रत्यक्ष में हैं नहीं अंतर में मिलते हैं तो जब अंतर में मिलते हैं तो अंतर्घट में खोज करनी चाहिये की गुरु महाराज अंतर में कहाँ मिलेंगे कहाँ पर हमारी साधना बनेगी किस तरह क्या होगा उस स्तर की विद्या की पढाई का मार्ग कहा से चल रहा है और कैसे मिलेगा उसकी खोज करनी चाहिए और अपने गुरुमहाराज के बारे में तड़प विरह विवेक और दो बूंद आंसू के गिराना चाहिए की मालिक हम पर दया करो सैन बैन में बताओ की आप कैसे मिलोगे कहाँ हो किस जगह हो हमको कहा था की हम सारा काम कर के जायेंगे फिर आप ऐसे कैसे चले गये और काम कैसे पुरा होगा किसके द्वारे रहे किसके सहारे रहे तो मालिक बता दें जिसके सहारे रहो तो उसके सहारे हो जाओ मालिक बता दें की इनके साथ हो जाओ तो इनके साथ हो जाओ मालिक कह दें की उनके साथ चले जाओ तो उनके साथ चले जाओ तो इसमें कौन सी रोक टोक है और मालिक कहे की मेरे सहारे रहो तो मालिक के सहारे रहो और मालिक का नाम भजन करो मालिक में लय रहो और उनके बताये रास्ते पर चलो जो कुछ गुरुमहाराज बताया है उसका पालन करते रहो और उपर चढ़ने की तैयारी करो प्रथम सुमिरन दूसरा ध्यान तीसरा भजन जब सुमिरन बनने लगेगा तो ध्यान भी बनने लगेगा जब ध्यान बनेगा तो भजन भी बनने लगेगा तो भजन में सुनाई पड़ने लगेगा और दिखाई भी पड़ेगा और दिखाई पड़ने लगेगा तो गुरु जो बोलेगा वह सुन लोगे, सुनोगे समझोगे लिखोगे पढ़ोगे और अपने रस्ते पर चलोगे अपने निज घर पंहुच जाओगे गुरुमहराज समरथ सर्वग्य हर प्रकार से हाजिर नाजिर हैं कभी भी जाते हो मंदिर में तो मंदिर में यह सोच कर जाते हो की इसमें कृष्ण भगवान हैं यह नही सोचते हो की पत्थर की मूर्ति है वो है तो पत्थर की मूर्ति ही लेकिन उसमे यही तो समझकर के जाते हो की इसमें कृष्ण भगवान विराजमान हैं साक्षात इसके अंदर बैठे तभी तो हाथ जोड़ कर कहते हो की हे कृष्ण भगवान हमे ये चीज चाहिए तो हमारी ये इक्षा कामना पुरी करो तो तुमको किलो लड्डू चढ़ाएंगे किलो मिश्री चढ़ाएंगे तो जिन्दा हाजिर नाजिर मानकर के नही जाते हो तो किससे कहते हो क्या पत्थर से कहते हो वो तो सचर के हिसाब से कहते हो की वे सचर हैं तो उसी तरह गुरुमहाराज सचर सर्वग्य हैं जब भी जो कुछ कहोगे उसको वो सुन लेते हैं और समझ लेते हैं इसीलिए गुरु को सर्वग्य कहा जाता है इसीलिए हाजिर नाजिर कहा जाता है कि गुरुमहाराज हाजिर नाजिर हैं हर घट में घाट है और उस घाट पर गुरु की बैठक है सबके अंदर और शब्द स्वरूपी सत्य स्वरूपी रूप अरूपी वो बैठे हुए हैं और सबकुछ सुन रहे हैं और आप सब प्रेमी लोग मन चित लगा कर सुमिरन ध्यान भजन करो और गुरु की आराधन करते रहो गुरु की चर्चा करते रहो गुरु में रत रहो समय आगे खराब है दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है इससे तुम्हारा बचाव हो जाये, कम से कम सुमिरन ध्यान भजन करते रहो जब सांसों की पुंजी खत्म होगी तो अपने निजघर चले जाओगे यही सबसे बड़ा काम है और नर तन पाने पर नाम भजन को गाना, नाम में लग जाना और ये मानव पोल सुमिरन ध्यान भजन के लिए मिला है भरण पोषण करो और सुमिरन भजन ध्यान में लग जाओ और अपने निजघर चले चलो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
अधर में चमके सतगुरु नाम, भजन कर देखो तो आराम |
नाम भजन ये बिंदु अधारा, अधर में चमके निश्चल तारा |
धँसे सुरतिया होए उस पारा, नाम भजन अभिराम |
अधर में चमके निर्मल तारा, सतगुरु प्रीतम सच्चे मालिक |
येही हैं नाम अधारा, अगम बिच चमके सुंदर तारा |
सतगुरु जयगुरुदेव
अपने सतगुरु की महिमा सुनाते चलो, हँसते गाते चलो गुनगुनाते चलो |
नाम सतगुरु का तुम कभी छोड़ना नही, पड़े झकोले तो उसमे डोलना नही |
नाम सच्चे व समरथ पिता का दिया, नाम से काम सारा ये बन जायेगा |
जब लगोगे भजन में सभी जन यहाँ, नाम की महिमा अंतर में दिखलायेगी |
जैसे सूरज व चन्दा अलौकिक वहाँ, धार सुंदर उस देश की मिलेगी |
हार जायेगा मन जीत जाओगे तुम, अपने गुरु की द्वारे पहुँच जाओगे |
जो दिया भेद सतगुरु ने तुमको यहाँ, भेद के द्वारा धुरधाम पहुँच जाओगे |
करो धन्यवाद सतगुरु को अपने सभी, दे दिया है ठिकाना सही है यही |
सिर झुकाओ गुरुजी के चरणों में सब ||

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
धरो मन सतगुरु के चरनन में |
धीर अधीर गंभीर बनो तुम, हरो जनता की पीर |
नाम बताओ अपने सतगुरु का, दुनिया को धराओ धीर |
संत शिरौमणि सतगुरु नामी, यही धुरी यही कील |
नाम भाजनवा इनके द्वारा, इन्होने नाम है दीन्ह |
नाम भजन करो सब जन प्रेमी, उसी में हो तल्लीन |
ध्यान भजन एक अमोलक कुंजी, रहो सतगुरु में लीन |
शीश झुकाऊ सतगुरु चरनन में, वही में होवो लीन |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियो , अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगण में बैठे समस्त प्रेमियो, नाम दान बड़े ही जन्म-जन्म की तपस्या के फल के बाद मिलता है नामदान समरथ संत सतगुरु नामी अनामि पुरुष करतार जो नामी अनामि से मिला होता है वही देता है और पूरी संभाल भी करता है हर प्रकार से बताये हुए रास्ते पर अपने सतगुरु के चलने से पूरा का पूरा फायदा लाभ होता है | जीवन-मरण चौरासी का चक्कर छुट जाता है नाम भजन करने से अद्भुत ताकत क्षमता प्रेमियो के अंदर आती है जो भूतो भविष्य देख सकते हैं समझ सकते हैं | वो गदय पद छंद जोकि उनको अंतर ज्ञान होने पर वो लिख सकते हैं अंतर में वाणी गुरु की उतरती रहती और वो लिखते रहते हैं तो इसी को कहते हैं गुरु अंतर में बोलता है | गुरु महाराज ने हमेशा कहा की तुम शब्द को पकड़ो जब शब्द को पकड़ोगे तो मै जो बोलूँगा तो तुम सुन लोगे और बात का ध्यान दोगे तो प्रेमियो तुम अगर नाम भजन में लगोगे सुमिरन ध्यान में लगोगे तो गुरुमहाराज जो बोलेंगे उसको आप सुन सकोगे लिख सकोगे आपके लिए गुरुमहाराज २४ घंटे हाजिर-नाजिर हो जायेंगे कही दूर आपसे नही होंगे आपके २४ घंटे पास होंगे तो आपकी सारी क्षुधा पूरी हो जाएगी और आपको सारी चीजे मिल जाएगी आप अपने निशाने पे हो जाओगे और जब अपने निशाने पे हो जाओगे तो दुसरो को भी चलने के लिए बताओगे की ऐसा नही ऐसा करो ऐसे करो सुमिरन ध्यान भजन गुरुमहाराज के दर्शन होंगे और आपको बहुत कुछ मिलेगा तो लोग दर्शन करेंगे उनको मिलेगा तो प्रेमियो जब लग कर के करोगे तो सारी चीजे मिलेंगी गुरु महाराज की दया कृपा से बरसात होंगी और उसी में सबलोग तल्लीन हो जाओगे और गुरुमहाराज में लीन हो जाओगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 13 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम मन भजन एक आधार |
नाम भजन से सब जन प्रेमियो, जाओगे उस पार |
नाम भजन समरथ साईं का, सच्चा है यह धार |
बलिहारी जाओ गुरु अपने, जिन्होंने दियो है नाम |
शीश झुकाऊ सतगुरु चरनन, मेहर की हो वरसात |
सतगुरु जयगुरुदेव
मनवा लागे नाम भजन में, बन जाये सारे काम |
सच्ची प्रीत प्रतीत हो अंतर, पहुचो सतगुरु धाम |
रूप अलौकिक अद्भुत दिखे, बन जाये सब काम |
अंतर विद्या दी मालिक ने, अंतर रहा विधान |
आत्म बोध और ज्ञान की कुंजी, सतगुरु नाम आधार |
नाम भजन करो सब जन प्रेमी, नाम ही सच्चा आधार |
मन चित धारो गुरु चरनन में, गुरु ही करेंगे पार |
सतगुरु जयगुरुदेव |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 12 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विमल मन गाओ सतगुरु नाम |
नाम प्रार्थना करो दाता की, बन जाए कुछ काम |
विनय मन प्रार्थना सतगुरु नाम |
सतगुरु नाम भजन में लागो, पाओगे अराम |
विनय मन सतगुरु जी का नाम |
श्रधा भाव सतगुरु में राखो, हो पुरा कल्याण |
शीश झुकाऊ अपने समरथ को, बन जाये पुरे काम |
सतगुरु जयगुरुदेव |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 10 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव भजन में , काम तेरा बन जायेगा ,
मनवा लग जाये नाम भजन में, सच्चे सुख को पायेगा ,
नाम भजन एक रीत अलौकिक , गुरु चरणो में लग जायेगा ,
अंतर बाहर सतगुरु दिखे , सच्चे फल को पायेगा ,
मन में धीर धरे जो प्रेमी , सतगुरु देश को जायेगा ,
सतगुरु चरनन शीश झुकाये , सुखद फला को पायेगा,
सतगुरु जयगुरुदेव |
मन मूरत मोहन सतगुरु की , सतगुरु सत्मय मैं हो जाऊं ,
लागे नाम भजन में मनवा जब , अधर अम्बर में मैं चढ़ जाऊं ,
सब चीज अलौकिक अद्भुद हो , गुणगान गुरु जी का गाऊं ,
मन चित अर्पण कर सतगुरु को , उस नाम भजन को मैं गाऊं ,
नामी जो मिला निराला हैं , खुला हर घट का अब ताला हैं ,
सतगुरु प्रीतम तो आला हैं , देखो सतगुरु परम दयाला हैं ,
बचना अमृत की माला फेरो , अंतर में घट में चढ़ जाओ ,
घट बीच घाट पर सतगुरु हैं, दर्शन परशन सब कर आओ ,
तुम शीश धरो गुरु चरणन में, और नाम भजन को सब गाओ ,
सतगुरु जयगुरुदेव |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 07 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का हो भजन सच्चा, देश मिले रघुराई का ,
छूट जाये बंधना कच्चा , नाम सतगुरु का सच्चा है ,
भजन मन नाम का करना , भजन में लौ लगाता चल,
लगन मन गगन बिच घुरना, गगन में सत्य को सुन्ना ,
महल सतगुरु के यहाँ रहना , सत्य में मेल हो सच्चा ,
सतगुरु शरण गत रहना |
सतगुरु जयगुरुदेव |
मनवा लागे नाम भजन में , ना सुखराना जगी री,
नाम भजन एक सच्चा सौदा , कर गुजरान गरीबी,
सतगुरु संग में नेह लगाओ , सत के संत फकीरी में ,
सतगुरु जी की जो मेहरिया, कर गुजरान फकीरी में ,
दया मेहर आवे प्रीतम की , अनबन आवे सबूरी में ,
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में , नाम भजन हो गरीबी में ,
सतगुरु जयगुरुदेव |
अखण्डरूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगड़ में बैठे हुए समस्त प्रेमी जन - देखो मालिक ने बहुत कुछ बताया चेताया , और रास्ता दिया है नाम भजन का , तो जब हम सबको रास्ता मिला है नाम भजन का तो समय निकल कर सुबह और शाम को जैसे भी बन जाये वैसे कर लो , और जैसे आप की स्वांसे खाली निकल रही है तो उन स्वांसों पर हम सब को बोलते रहना है - जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव जिससे ओ हमारे भजन में जुड़ेगा ऐसा गुरु महाराज ने पहले से ही बता रक्खा है | किसी की भी निंदा आलोचना नहीं करना | गुरु मालिक में मन लगाना , गुरु मालिक में ही रचना और बसना और गुरु का सत्संग करना, गुरु की बताई हुई वाणी को याद करना ,उसी को सुनना और उसी में मन को लगाना यही सच्चा काम है | परमार्थी और प्रेमी का कर्तव्य गुरु की वाणी का आत्ममंथन करते रहना और अपने आत्म की मैलाई को निकालते रहना और गुरु वाणी को अंतर में उतारते रहना , यही परमार्थी का काम है, जब परमार्थी गुरु वाणी को अंतर में उतरता रहेगा तो उसमे कोई मैलाई नहीं आएगी, ओ विशेष प्रकार से गुरु की धार अंतर में उतर जाएगी और सच्चे मन से ओ काम करेगा, और सुमिरन ध्यान भजन करेगा |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 06 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम भजन में जब मन चित लाओ , तभी बने कोई बात ,
नाम भजन एक सार भेद हैं , झूठा झंझट छाट,
हाथ जो मलते रहते देखो , नहीं आया भजन साथ ,
सतगुरु दीन्हा नाम रतन धन , जो है तेरे हाथ ,
शीश झुकाओ समरथ साईं को , लेले दात जमात ,
नाम की दात मिली सतगुरु से , क्या समझे खैरात,
मेहनत करके नाम भजन कर , चलना है उस पार ,
सतगुरु मिलन को चित में लाले , हो जाओगे पार् ,
सतगुरु जयगुरुदेव |
प्रेमियों जब गुरु महाराज में मन चित लगालोगे , तो पार हो जाओगे , नाम भजन बन जायेगा , जब निशाना अपने सतगुरु से , अपने गुरु से, अपने संत से होगा तो संत सार भेद पता चलता जायेगा | सबकुछ तुमको मिलता जायेगा, धीरे धीरे उस मालिक की रूहानी दौलत का खजाना आप को मिलेगा | आप के अंदर धीरे धीरे जिज्ञासा बढ़ती जाएगी तड़प बढ़ती जाएगी तो आप को मिलने लगेगा | मालिक समरथ सर्वज्ञ है , आप समझ करके रहो भूल मत करो और मालिक के बताये हुए निशाने पर चलते रहो | धीरे धीरे सुमिरन ध्यान और भजन करते रहो सत्संग सुनते रहो , सत्य में मन लगाते रहो तो सत्य में मिलोगे और सत्य से चलोगे तो आप को फायदा ही फायदा होगा और कोई नुकसान नहीं होगा | सत्य पथ सबसे बड़ा पथ हैं, पंथ का कोई आधार नहीं , सत्य का आधार हैं | पथ पर आप बैठे कहा भाई हमें लखनऊ से से दिल्ली जाना है तो आप उस पथ पर जायेंगे लखनऊ से दिल्ली पथ ,उस पथ पर जायेंगे , तो पथ और पन्थ में बहुत बड़ा अंतर है | पन्थ तो पन्थ है और पथ एक मार्ग है मार्ग से ही जाया जा सकता है और जहाँ पर रुकाव हो तो उधर से क्या जाया जायेगा तो अपने पथ पर चलते रहो सतगुरु में मन लगाते रहो किसी की निंदा अलोचना ना करो गुरु की सुनो गुरु ने जो बताया है उसको मानो उसी का अनुशरण करो उसी पर चलते रहो और अपने सतगुरु के साथ रहो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 04 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मंगल चितवन करो नामी की, जिन्हों ने दियो है नाम |
नाम भजन कर पार उतरियो, शब्द डोर आधार |
मन चितवन हो गुरु का चिंतन, सतगुरु नाम आधार |
शीश जुकाऊ सतगुरु चरनन में, कुल मालिक आधार |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगन में बैठे प्रेमी जन सबलोग ध्यानपूर्वक से सुनिये, मालिक ने भविष्य के लिए बड़ी बड़ी चेतावनिया कर रक्खी , बताया आगे बच्चू परिवर्तन होगा परिवर्तन ऐसा होगा जो किसी के दिलो दिमाग में नही होगा | किसी को पता उसके बारे में उसकी गणना नही होगी जिसे सतगुरु दिखा दे रील बता दे और समझा दे उसी को पता होगा | परिवर्तन ऐसा होगा जो भूते भविष्यते नही हुआ |गुरु समरथ हैं उन्होंने रोक रखा है जीवों को बचाने के लिए की जितने अधिक से अधिक बच जाये उतना अच्छा , जितना धर्म का प्रचार हो जाये जितना धर्म कल्याण का कार्य हो जाये उतना अच्छा , इसलिए संतो की सब महिमा है संत ही सारा कार्य करते हैं और संत ही बातो को सब समझाते हैं संत ही सार भेद बताते हैं संत ही नाम दान देकर के नाम भजन के बारे में इंगित करते हैं, की आप लोग सब नाम भजन करना नाम भजन करोगे तो दिखाई पड़ेगा सुनाई पड़ेगा , गुरु के दर्शन होंगे हरी के दर्शन होंगे राम के दर्शन होंगे कृष्ण के दर्शन होंगे शिव भोले ब्रह्मा विष्णु महेश के दर्शन होंगे आपको बहुत कुछ दिखाई सुनाई पड़ेगा आप ब्रह्म पद पर चले जाओगे परब्रह्म हो जाओगे बहुत कुछ मिलेगा सब अंतर में बाहर से कुछ नही | अंतर से जब प्रबल शक्ति आ जाएगी तो बाहर से भी उस समय शक्ति प्राप्त हो जाएगी तो प्रेमिओ अंतर की विद्या पढाई शब्द भेद बताया है , पर हमारी आपकी मेहनत कितनी रंग लाएगी कितना काम करेगी ये हमे आपको देखना है | अपने गुरु के निशाने पर गुरु आधारे गुरु द्वारे रहना है और गुरु का सुमिरन भजन ध्यान करना है गुरु में मन लगाना है| निशाना अपने गुरुमहाराज से रखना है बाकि किसी दुसरे से नही , निंदा आलोचना किसी की नही करनी और नाही किसी को कुछ कहना है|
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 03 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन गाओ प्रभु जी का नाम , प्रभु हरी सतगुरु सत्संगी ,
एक लड़ी एक दावं, विनय मन हरी भजन एक काम ,
हरी भजन से मोक्ष मिलत हैं, सतगुरु जो दीन्हा नाम ,
नाम भजन से कुल प्राप्ति हो , सगरे मालिक नाम ,
संत शिरोमणि सतगुरु प्यारे , जिन्होंने दिया है नाम ,
खेई के नैया पार लगावै, पहुँचावै गुरु धाम ,
सतगुरु चरण शीश झुकाओ , येही तो है कुल मक़ाम |
सतगुरु जयगुरुदेव |
अखंड रुप से विराजमान सतगुरु के प्रांगण में बैठे समस्त प्रेमी जन आप लोग बड़े भाग्यशाली हैं की कुछ न कुछ सत्संग रोज आप को प्राप्त होता हैं | हरी भजन प्रभु भजन नाम भजन कीर्तन , उस प्रभु उस मालिक की चर्चा करना उस प्रभु में मन लगाना सच्चे परम पिता परमेश्वर को याद करना , प्रभु राम कृष्ण को याद करना , अपने अपने आराध्यों को याद करना ,ये भी एक समय है उस समय जितने समय वह याद करते हैं बैठ करके पूजा आराधना करते हैं वह बड़े विशेष और महत्व के समय में जुड़ता हैं , वह बड़ा ही महतवान् समय होता हैं, प्रेमिओ उतना छण बड़ा ही आनंदित और अलौकिक होता है | जितनी टाइम आप को सत्संग , प्रभु की चर्चा सुनने को मिलती हैं | प्रेमियों प्रभु ही सर्वज्ञ है और सचर हैं और प्रभु ही सबकुछ है बताने वाला सतगुरु हैं , सतगुरु जब बताता मार्ग नामदान देता है तभी कोई काम बनता है | उसी नाम भजन के द्वारा गुरु के बल के द्वारा आगे चलकरके आत्म बोध आत्म ज्ञान होता हैं और दिखाई भी पड़ता है और सुनाई भी पड़ता हैं | गुरु ही समरथ ही सबकुछ करता हैं और गुरु कभी असमर्थ नहीं होता है और अपने बच्चे की जाँच करता है पड़ताल करता हैं और दया मेहर करके उसको खड़ा करता है | माता इतनी दयावान नहीं जितना गुरु अपना सतगुरु दयावान होता हैं | हर प्रकार से दया मेहर बरसाते रहते हैं , प्रभु का रास्ता बताते रहते हैं , समस्त देवी देवताओं के दर्शन करते रहते हैं और हरप्रकार की चीजों को समझाते रहते हैं और हरी बीमारी में दया दुवा करते हैं , हर प्रकार से मदद करने वाले एक मात्र सतगुरु ही होते हैं | गुरु से बड़ा दर्जा और किसी का नहीं है "गुरु गोंविंद दोऊ खड़े काके लांगू पावँ, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो लखाय "| स्वयं प्रभु राम , कृष्ण सभी लोग सतगुरु के आगे नतमस्तक रहे | सभी प्रेमी अपने गुरु के बताये हुए मार्ग पर चलते हैं और सभी देवी देवताओं का सम्मान करते हुए चलते हैं और किसी का तिरिष्कार नहीं करते हैं | सभी की चरण वंदना करते हैं और सभी दिशाओ में शीश झुकाते हैं , सभी दिशाओ में ओ सर्वेश्वर सर्वज्ञ सतगुरु विद्यमान हैं | ऐसे में किस तरफ कह दोगे की ओ मालिक नहीं है , प्रभु तो कण कण में हैं | आप के जैसे भाव होंगे वैसे ही आप को प्राप्ति होगी |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 01 जुलाई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम मन रंगना नाम के रंग , नाम के रंग में जो मन रंग जावै , हो जाये सतगुरु संग , नाम मन उसको उसी में रंग , चंचल चितवन नाम भजन में , संगी हैं ये मन , राग अलौकिक धुर से रीझे , रहे सतगुरु के संग , मन चित अर्पण करूँ को ,बन जाये सारे रंग , मन रंगना हो नाम में रंगना , रहना सतगुरु संग , सतगुरु नाम भजन मन लागो, चंचल चितवन संग , चितवन करो सत्य चरण को , शीश झुकाओ लागो अंक, सतगुरु चरनन प्रति फल पहियो , जागे भाग्य अनंत , नाम भजन में मन लग जावै , बन जाये सारे अंग , शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में , दया मेहर नहीं होवेगी कम,
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद का भेद सतगुरु दीन्ह , दया मेहर हुयी दयाल की ,
नाम भजन मन चीन्ह, नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह ,
पवन कंचन सतगुरु प्यारे , होवो नाम भजन में लीन्ह ,
नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह, सत्य के प्रीतम सतगुरु प्यारे ,
रहो इन्ही के अधीन , नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह,
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में , जिन की कृपा बाजे बीन ,
नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रुप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगड़ में बैठे हुए समस्त प्रेमी जन, आप सब बड़े ही सौभाग्य शाली हो , सत्य का संग मिले , सत्संग जल मिले ये परम अलोकिक अनोखी बात है , सबको ऐसी चीजे नहीं मिलती हैं, गुरुमहाराज की अशीम दया कृपा से , जो भी समय निकलता हैं प्रेमी के लिए सत्संग के लिए गुरु की चर्चा के लिए ओ बड़ा अमोलक समय होता है | उसका कोई मोल नहीं , कहते है संत मिलन को जाइये तज ममता अभिमान, ज्यो ज्यों पग आगे बढ़े कोटिन यज्ञ समान , तो ऐसा पुण्य प्रताप प्राप्त होता हैं | प्रेमियों मालिक ने बताया और चेताया , और नाम भजन के बारे में खोल कर के बताया , और ये कहा की बराबर नाम भजन करते रहना और मुझको याद करते रहना और मै आप को बराबर मिलता रहूँगा | प्रेमियों जब गुरु को याद करोगे तो गुरु आप को याद करेगा , तुम भूल जाओगे फिरभी गुरु महाराज तुमको याद करते रहते हैं | तो आप का भी ये कर्तब्य है की आप गुरु महाराज को याद करते रहो | गुरु में मन लगाते रहो | ये मलमास चल रहा है इसमे लोग शिव भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं प्रेमी जन करते हैं , और उनको खुश करके नाना प्रकार के वरदान प्राप्त करते हैं | हर प्रकार की दया मेहर बरसती हैं | कोई राम की पूजा करता है कोई कृष्ण भगवन की पूजा करता है कोई देवी माओ की पूजा करता हैं , प्रेमी जन कुछ न कुछ पूजा किया करते हैं | तुम्हे गुरु महाराज का आदेश है की आप अपने प्रभु का पूजन करो , अपने गुरु का बताया हुआ मार्ग अनुसरण करो | और रोज रोज लगकरके नाम भजन गाते रहो | आगे बढ़ते रहोगे तो कूड़ा कचरा साफ होता रहेगा, मैले जमने नहीं पायेगी , नाम भजन करने से हरी बीमारी दूर होती रहेगी | गुरु महाराज में मन लगते रहो गुरु अपार अविरल है और वही दया के सागर है और वही दया मेहर करते है | तो प्रेमियों मन चित लगाकरके सुमिरन ध्यान और भजन करना | जैसे भी बन सके बोलते रहो जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव ,सतगुरु जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव, खाली समय में स्वांसों की पूजी निकलती जा रही हैं तो उसमे आप सतगुरु जयगुरुदेव बोलते रहो तो ये आप के नाम भजन में जुड़ेगा और नाम भजन करना ही गुरु महाराज ने हमको आपको सिखाया हैं , शब्द से मिलने की सीढ़ी बताई हैं , शब्द से मिलना ही हमारा काम है , शब्द में मिल जाना ही हमारा लक्ष्य हैं | जब आप अंतर में चलोगे तो सारी ध्वनिया सुनाई पड़ेगी और गुरु महाराज के दर्शन होने लगेंगे और गुरु महाराज से बात होने लगेगी | तो सभी लोग मन चित लगाकर प्रभु का भजन करो | सभी प्रेमी एक दूसरे प्रेमी से प्रेम करें और कोई भी किसी की भी निंदा आलोचना न करे| कोई कहीं भी जाता आता हो उससे कोई मतलब नहीं | वह है तो प्रेमी जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव बोलता तो हैं , गुरु महाराज का नाम लेता तो है शाकाहारी सदाचारी तो हैं | सभी प्रेमियों को चाहिए की आपस में प्रेम से रहे और मर्जी आये तो कहीं चले जाये और चले आये | प्रेमियों लगजाओ नाम भजन में आगे बड़ी बड़ी आपदाए आने वाली हैं उन आपदाओ से बच जाओगे, गुरु महाराज की दया मेहर रहेगी जब तुम शाकाहारी और सदाचारी रहोगे |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 28 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नैन में बेस गुरु जी मेरे , चहुँदिश मेरे सतगुरु दिखावे ,
रूप अलौकिक नूरी , मन चित खिले अंतर कलियाँ ,
बाग बगैचा होली , पग पंकज बांधे पैजनिया ,
मानव जैसे होली , सतगुरु रूप अति प्यारो लागो,
सतगुरु संग अब होली , मालिक दया विराजै ऐसी ,
नाम की चल रही होली , सतगुरु जी से घुल मिल जाओ ,
खेलो सब रंगोली , सतगुरु मेहर को शीश झुकाओ ,
सतगुरु संग अब होली|
सतगुरु जयगुरुदेव
अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगड़ में बैठे प्रेमी जान बड़े ही ध्यान से सुनेगें , समय नूतन वर्ष सन २०१५ चल रहा है मालिक की अशीम दया कृपा अनुकम्पा से विशेष प्रेमियों को अनुभव हो रहा है मालिक ही सबको अनुभव करा रहे है , मालिक ही सब पर दया वर्षा रहे है मालिक ही एक आधार है बाकि सब सेवादार हैं | सब कुछ मालिक की दया कृपा से हो रहा है | यहाँ पर आने वाले समस्त प्रेमियों को मालिक ही पूरा का पूरा आत्म बोध आत्म ज्ञान कराते हैं पूरा अनुभव कराते हैं | यहाँ पर जो भी सेवादार हैं ओ सारी चीजो को सच्चाई से बता देते हैं की इस तरह सुमिरन इस तरह से ध्यान और इस तरह से भजन करना है इस तरह से गुरु में मन लगाना हैं और मालिक मेहर करते हैं और गुरु में मन लग जाता हैं | और गुरु की कृपा मिलती है अनुभव अनुभूति होती हैं | समस्त भारत के प्रेमियों से प्रार्थना है की एक बार आकर के अनुभव केंद्र "अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर" ग्राम बड़ेला , पोस्ट - ताल गाँव , तहसील - रुदौली , जिला - फैज़ाबाद , अयोध्या , उत्तर प्रदेश , भारत में अनुभव का लाभ ले और गुरु के अखंड सरूप का दर्शन करें, अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव का दर्शन करें और अपने तीसरे नेत्र (थर्ड आई ), तीसरे कान को खुलवा लें | जब गुरु महाराज ने ये कहा है की जो प्रेमी यहाँ आएगा और सच्चे मन से ध्यान और भजन करेगा तो उसकी आँख खुल जाएगी , तो उसे अंतर में दिखाई भी पड़ेगा और सुनाई भी पड़ेगा , प्रेमियों गुरु की वाणी जो अंतर में बताई गई हैं यथार्थ हो रही है हर प्रकार से प्रेमियों को अनुभव हो रहा है जो प्रेमी यंहा आ रहें हैं उनको पूरा का पूरा लाभ मिल रहा है तो आप सब मौका मत चुको आप सब जो भी है कहीं भी आते जाते हैं इससे कोई मतलब नहीं हैं जहाँ भी मर्जी हो वहां जाओ पर एक बार यंहा आओ और आप को अनुभव होने लागे तो आप अपने घर बैठ कर सुमिरन ध्यान और भजन करो और जहाँ जाना चाहते हो चले जाओ यंहा से कोई रोक नहीं है की आप यंहा मत जाना वहां मत जाना | चाहे आप कशी जाओ, चाहे उज्जैन जाओ , चाहे आप मथुरा जाओ , चाहे आप कही जाओ परन्तु यंहा पर किसी से ये नहीं कहा जाता की यहाँ जाओ यहाँ न जाओ जिसकी जहाँ मर्जी हो वहां जाये | यहाँ तो प्रार्थना की जाती है की आप एक बार यहां आप जाओ गुरु के अंतर में दर्शन करो जिन्होंने गुरु से नामदान लिया है, ओ प्रेमी यंहा आ करके अपनी साधना यंहा कंठस्थ करले , जिन प्रेमियों को नामदान नहीं मिला है या किसी ने और किसी गुरु से नामदान लिया है ओ भी यदि साधना करेंगे तो उनकी भी साधना बनेगी , यही सच्चा प्रमाण है, उन्हें भी दिखाई सुनाई पड़ेगा | ये भारत के प्रेमियों ,<- मैं अनिल कुमार गुप्ता आप सभी से हाथ जोड़कर ये विनती प्रार्थना करता हूँ आप के चरणो में की आप सब यंहा पहुँच करके अंतर में गुरु महाराज के दर्शन करो और आप सब अनुभव अनुभूति का लाभ लो और आप सब को दिखाई पड़े और सुनाई पड़े और आप सब का काम बन जाये यही सबसे अच्छी बात है | सतगुरु जयगुरुदेव |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 27 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद गुरु ने दीन्ह , नाम भजन करो सब जन प्रेमियों ,
लो अंतर में चीन्ह, नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह ,
कौतूहक कुछ अंतर दीखे, उसमे होवो लीन ,
नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह, नाम भजन आधार बतायो ,
ऐसा गुरु का द्वार है पायो , नाम भजन कर उद्धार तू होगा ,
.बेड़ा अब उस पार ही होगा, लगो भजन मन बीन ,
नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह , घट में घाट के ऊपर ,
सतगुरु दर्शन दीन्ह , नाम निधि सतगुरु जी ने दीन्ह|
सतगुरु जयगुरुदेव |
प्रेमियों अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगड़ में बैठे हुए समस्त प्रेमी जन, मन चित लगाकरके गुरु महाराज के बताये हुए निशाने पर चलना ,नाम भजन करना ही हमारा आधार हैं , जब जब समय मिल जाये तब तब ध्यान भजन सुमिरन में लग जाये , और सुमिरन ध्यान और भजन करे | बराबर अपने सतगुरु से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते रहे, गुरु दयाल है सर्वज्ञ है हर प्रकार के दाता है , वो हर प्रकार से माफ़ी करते रहते हैं | हमको तुमको बराबर लग करके अपने सतगुरु के शरणगत होकरके गुरु काज करना है | गुरु में मन लगान है उस पर को चलना है | नाम भजन तो करना पड़ेगा , मालिक ने कहा था की देखो आगे विषम परिश्थितिया आयेगीं और बालू की दिवार बन जाएगी पर तुम उसमे पैर मार देना तो उस पार हो जाओगे | इस समय बालू की दिवार ही खड़ी है , अगर तुम अंतर सतगुरु को देखोगे तो गुरु महाराज घट में घाट पर बैठे है , बराबर तुमको दिखाई पड़ेगें , बात करेंगे, तुम्हे बताएँगे चेतायेंगे और तब तुम समझ बूझ जाओगे और अपने निशाने पर चलते रहोगे | अगर तुमने इधर उधर देखा कहीं दूसरी तरफ तो गिर जाओगे बह जाओगे , देखो निशाना गुरु के द्वारे गुरु के अधारे गुरु से ही रखना है , अगर गुरु से निशाना रख करके चलोगे तो गुरु भाई गुरु भाई दिखेगा और गुरु गुरु दिखेगा , अगर निशाना गुरु से नहीं रखा तो कहा की यहाँ पर गुरु महाराज वहां पर गुरु महाराज वहां पर गुरु महाराज तो कौन सी ऐसी जगह है जहाँ गुरु महाराज नहीं है , हर जगह गुरु महाराज हैं | प्रेमियों लगन के साथ जब तुम सारे काम करोगे तो काम हो जायेगा | मथुरा आश्रम हम सब बराबर जाते आते रहे गुरु महाराज का सत्संग सुनते रहे | गुरु महाराज दया दुआ देते रहे , अब गुरु महाराज हमें चर्म आँखों से नहीं दीखते, पर जिसकी श्रद्धा भाव है उसे गुरु महाराज चर्म आँखों से भी दिखाई पड़ते हैं और अंतर भी दिखाई पड़ते हैं | हर प्रकार से गुरु महराज दर्शन देते हैं तभी तो कहा जाता है की गुरु महाराज हर प्रकार से हाजिर नजीर हैं | सारा काम भाव झरोखे होता है यदि भाव नहीं तो कोई काम नहीं | गुरु महाराज हर प्रकार से हैं | अब तुम जैसे उनको पूजो गे , मानोगे उस तरह से आप को दर्शन मिलेगा |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 26 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम निज सतगुरु जी ने दीन्ह , भाव झरोखे सब जन बैठो |
रहो सतगुरु के अधीन , नाम भजन में मन चित लाओ |
उसी में होवो तल्लीन , अंतर घट में चढ़े सुरतिया |
जहां पे बाजे बीन , नाम भजन में मन चित धारो |
सतगुरु नाम हैं दीन्ह , सत्य विनय व प्रार्थना कर लो |
मालिक में हों तल्लीन , शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में |
इन्ही में होवो लीन |
सतगुरु जयगुरुदेव
मालिक की अशीम दया कृपा से आप को निर्मल उज्जवल सत्संग जल सत्य का संग मिलता है साध का संग मिलता है सतगुरु की मेहर से जितना समय यंहा आप देते हो वो समय आप का बहुमूल्य और बड़ा ही अमोलक होता है जितनी सांसों की पूजी उतनी उस परमात्मा के यंहा नोट होती है की इन्होने इतनी देर यहाँ सत्संग में दिया | हमारे नाम भजन में हमारे लिए इन्होने कुछ बहुमूल्य समय निकला हरी भी खुश प्रभु भी खुश सतगुरु भी खुश सब लोग खुश हो जाते है की हमारे बच्चों ने हमारे शिष्यों ने हमारे जीवों ने हमारे लिए कुछ समय निकला | तो प्रेमियों रोज रोज जो हम सत्संग करते हैं सत्संग सुनते हैं सत्य की बातों को मनन करते हैं की हम प्रभु के नजदीक हो जाये और अपने सतगुरु के द्वारे हो जाये और सतगुरु से दूर न हो जाये यही प्रार्थना प्रभु से बराबर किया करते है | और अपने सतगुरु में मन लगते हैं और उस प्रभु को रिझाने की पूरी कोशिश करते हैं , प्रभु राम रीझ जाये , ओंकार रीझ जाये , ररंकार रीझ जाये और सोहंग पुरुष रीझ जाये, सत्यनाम पुरुष रीझ जाये और सबसे पहले हमारे सतगुरु रीझ जाये | सतगुरु खुश हो जाये तो सारा जहां खुश हो जायेगा , सारी खिलकत खुश हो जाएगी , हर प्रकार की दया मेहर आप पर उतरेगी आप के घाट के ऊपर, कोई घाट खाली नहीं रहेगा , बराबर सतगुरु की दया की वर्षात होती रहती है | सत्य स्वरूपी वर्षात में हम सब तल्लीन हो जाये और लग करके मन चित लगाकर सुमिरन ध्यान और भजन अपने सतगुरु का करें | सतगुरु का ध्यान भजन करने से, सतगुरु को प्रशन्न करने से बहुत बड़ी उप्लभ्धि प्राप्त हो जाती है , सत्य देश का मार्ग प्रशस्त हो जाता है | इसलिए प्रेमियों सतगुरु में मन लगाओ |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 24 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन भजन गुरु का नाम |
अंतर दया सतगुरु की आवे, मन पावे अभिराम |
विनय मन सतगुरु जी का नाम |
नाम भजन में मनवा लाओ, समझो सच्चा काम |
झीनी झीनी महक शब्द की, दिखे अंतर धाम |
चंचल चितवन हो सतगुरु का, मन पावे अभिराम |
सच्चा ज्ञान हो अंतर उर में, सतगुरु का हो नाम |
विनय मन भजन गुरु का नाम |
सतगुरु जयगुरुदेव
देखो प्रेमियों विनय से प्रार्थना से सतगुरु जी रीझते हैं, रूठे हुए गुरु मान जाते हैं रूठे हुए प्रभु रीझ जाते हैं खुश हो जाते हैं इससे काफी अच्छा काम बनता है | इसलिए विनय प्रार्थना बहुत जरुरी है विनय प्रार्थना कर के सच्चे मन से अपने घट में घाट पर समय हाजिरी रोज देना जितना समय तुमको मिल सके | उतना समय आप सच्चे मन से उसमे लगाओ मन चित सतगुरु में लग जाये सुमिरन ध्यान भजन करो और मालिक की वन्दना करते रहो | मालिक से अराधना प्रार्थना करो की हे सतगुरु हमको सद्बुध्दी दो हे सतगुरु हम पर दया मेहर करो हे सतगुरु हम पर पुरी कृपा करो हे सतगुरु पुरी तरह से अनुकम्पा हो आपकी की हमे सुमिरन ध्यान भजन में दिखाई सुनाई पड़े अनुभव अनुभुति हो और आपका नाम भजन आपका दिया हुआ रास्ता आपका दिया हुआ नाम मै गाता रहूँ अंतिम साँस तक आपका नाम लेता रहू और हे मालिक अंतिम साँस निकलने पर ये जो सूरत जीवात्मा है इसकी डोरी आपकी हाथ में है हमारी सूरत जीवात्मा को आप संभालेंगे आप हमारे सूरत जीवात्मा को आगे ले चलेंगे अपने निजघर अपने देश, हे प्रभु आप से विनती प्रार्थना है की हमारी जीवात्मा सूरत को कही छोड़ मत देना किसी दुसरे के हाथ में न जाये, बजाये आप अपने साथ ही ले जाना अपने घर ले चलो और आपके देश में रहेंगे वही जहाँ आपकी इक्छा होगी भजन करेंगे और आपका नाम गायेंगे आपके श्रीचरणों में लगे रहेंगे आपकी अनुकम्पा को गाते रहेंगे | प्रभु भजन ही एक सच्चा मार्ग है प्रभु का भजन नही किया तो समझो जगत में कोई कार्य नही किया, गुरु आदेश का पालन नही किया तो कोई काम नही किया इसलिए प्रेमियों लग कर के रोज सुबह शाम सुमिरन ध्यान भजन नित अराधना प्रार्थना सतगुरु की करते रहते हैं और अपने गुरु चरणों में मन लगाते रहते हैं | कभी भी भूल चुक हो जाये तो सतगुरु से जाने अनजाने से हमसे जो भूल हो गई है गुनाह हो गई गुनाहों की माफ़ी मांगते रहते हैं की हे परम पिता हे सतगुरु हमसे जाने अनजाने जो भी गुनाह अपराध हुआ हो क्षमा कर दो दया कर दो हमको माफ़ कर दो हम अनजान पापी जीव हैं रोज रोज हमसे गलती होती है लेकिन आप की दया के सागर हो अमृत की खान आप में कोई मिलौनी नही कोई विष नही, इसलिए हे सतगुरु आप हमको माफ़ करते रहो और हमे दुर्गुणों से बचाते रहो सद्गुण हमारे पास आते रहे ऐसी दया मेहर करते रहो | हे प्रभु हे हमारे नामी हे सतगुरु सतनामी हे प्रभु अनामी हर प्रकार से दया मेहर करो और अपने में जोड़ कर के रखो
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 22 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मनवा नाम भजन में लागे, अंतर चेतन सुखवा |
ज्यों ज्यों भजन रस अंतर रीझे, कटे करम के जलवा |
सतगुरु में जो मन चित लगावे, भाव भजन के निशवा |
सुंदर समरथ नामी साईं, नाम रतन के दातवा |
दिया दात मेरे दाता ने, सतगुरु साईं जतवा |
बिन बिधाता को मार्ग बतायो, खोलो अंतर खतवा |
शीश झुकाऊ सतगुरु चरनन में, नाम मिलो प्रभातवा |
सतगुरु जयगुरुदेव
बड़ी ही मालिक की असीम दया कृपा मेहर मौज से संत मिलते हैं | जब समरथ संत मिलते हैं तब जाकर के उनकी मौज होती है तब नाम मिलता है | जब नामदान मिल जाता है और गुरु शिष्य मिल जाता है शिष्य गुरु का और गुरु शिष्य का, तब प्रेमियो काम बनता है | आगे की रील चलती है आगे नाम भजन होता है सुमिरन नाम भजन के लिए हीं संत सतगुरु समरथ संत हर प्रेमी को बताते रहते हैं की बच्चू लग कर के सुमिरन ध्यान भजन करो, ये दुनिया बेकार है यहाँ माया की छाया है सब इकट्ठा करते रहोगे एकदिन सब छुटना है इसलिए लग कर के नाम भजन करो यही सच्ची चीज है जब जब समय मिले नाम भजन बोलते रहो अंतरमन जैसे भी जपते रहो गुरु को पुकारते रहो प्रभु को पुकारते रहो हरी को पुकारते रहो उसमे मन लगाते रहो | जब हरी में प्रभु में मन लगा रहेगा सतगुरु में मन लगा रहेगा तब अनर्गल सोच नही आयेगी खराब चीज नही पूछोगे अछि चीजे पूछोगे | नाम भजन की सात्विकता और अंतर में यथार्तता और अंतर में दया कृपा उस प्रभु की प्रबल आपको प्राप्त होती रहेगी | हर प्रकार से दया मेहर की बरसात हो रही है उसको आप सब ले लो और अपने घर चले चलो, दीन गरीबी में रहकर के अपने काम को करते चलो और निकलते चलो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम निज सतगुरु जी ने दीन |
नाम मेहर सतगुरु से मिलती, उसी में होवो लीन |
मेहर जो बरसे मेरे नामी की, जागे सुरतिया मलींन |
आदि अनंत अनाम के स्वामी, इन्ही में होवो लीन |
बीन बान्सुरी अंतर बाजे, लीजो इसको चीन्ह |
दया मेहर पाओ साईं की, नही तो रहोगे मलीन |
मन चित में लाओ गुरु चरनन में, उसी में हो लीन |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 20 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
मनवा लागे नाम भजन में, गुरुमुख होवे जीव |
जीवो की मेहर जो बरसे उपर, छक छक पीवे जीव |
आस दिवस वोही लगन युगन की, पीर बुझावे तीर |
मनवा लागे नाम भजन में, सतगुरु प्रति गंभीर |
नामी मालिक प्रीतम प्यारे, इन्ही के चरनन धीर |
सतगुरु के पद पंकज में सब, शीश झुकाओ धरो धीर |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियो नामी से नाम मिल जाने के बाद नित-प्रत लगकर के, जो भी बन पटे “एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनीयाद गोस्वामी संगत साध की कटे कोट अपराध”
प्रेमियो वह जो दिया हुआ है गुरुमहाराज ने नाम , उसको जपना चाहिये और सुमिरन ध्यान भजन करना चाहिये जैसा बन पटे | जैसे गर्मी का मौसम है तो जिस समय बन पटे जब बन पटे तभी कर लो पर करो जरुर | थोड़ा थोड़ा करते रहोगे मालिक की दया मेहर बरसती रहेगी और उनकी मेहर मिलती रहेगी जब उनकी मेहर मिलेगी तो सारा काम बन जायेगा | देखो साधकों का संग करना उचित है किसी की निंदा अलोचना करना अनुचित है | किसी को कुछ मत कहो, अंतर अगर पता चलता है तुमको की ये कल गिर जायेगा तो तुम चुप चाप रहो तो वो जब समय आएगा तो वह गिर जायेगा और जब समय आएगा तब उठ जायेगा तुम मत बोलो | तुम बोलोगे तो वो उसमे टिक्का टिपड़ी करेगा की ये कैसे वो कैसे वो कैसे और उठते गिरना तो है ही , वो समय से पहले ही या समय पर गिर जायेगा |
प्रेमियो अपने नामी के साथ लगन लगाना अपने नामी का गुणगान करना, गुरु आधारे गुरु द्वारे रहना हमारा कर्तव्य है | हमको नामदान मिल चुका है नामदान लेने की जरूरत नही है , किसी को जब नाम की जरूरत होगी तो वो खोज करेगा, हमे जब नाम मिला है तो हम अपने नामी का गुणगान करेंगे ,अपने नामी का नाम लेते रहेंगे और अपने ही नामी का शरणागत रहेंगे | हमेशा अपने नामी में लव लगाएंगे और अपने नामी का नाम भजन करेंगे अपने नामी में पुरी मन चित और बुध्दि को उसी में लगा देंगे |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
भाव झरोखे सतगुरु भजन, सतगुरु नाम मगन मन अंगना |
सतगुरु ध्यान भजन मन लाना, सतगुरु जी की प्रीत में जाना |
सतगुरु ध्यान भजन मन गाना, सतगुरु जी में मन को लगाना |
ध्यान भजन हो सच्चे साईं का, मिले सतगुरु का नाम खजाना |
मन चित रखकर गुरु चरनन में, सतगुरु जी को शीश झुकाना |
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु में मन लगाना और गुरु में रहना, गुरु का सुमिरन भजन ध्यान करना | गुरु की चर्चा करना, यही हमारा लोगों का कर्तव्य है | गुरु में लगे रहना, गुरु में रत होना यही सबसे बड़ी चीज है | गुरु ही सर्वोपर्य है सतगुरु ही सबका मालिक है और सतगुरु में मन चित ध्यान लगाना ही हमारा पावन परम पवित्र कर्तव्य है | गुरु महाराज ने जो रास्ता बताया है जो नाम दिया है उसी नाम के सहारे हमे नाम भजन करते रहना है और सतगुरु में मन लगाते रहना है |
सतगुरु जयगुरुदेव
पद पंकज में करूं आरती, सतगुरु साईं तेरे |
हम हैं कृतज्ञ बड़े पापी जन, तुम हो समरथ मेरे |
अवगुणों को माफ़ करो जी, समरथ संत हो मेरे |
शीश झुकाऊ सत सत चरनन में, सतगुरु प्रीतम मेरे |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम का भेद भजन मन ठानो |
नाम मिला है नाम भजन को, अंतर मनवा डालो |
दिव्य दृष्टि तेरी जम जाये, खुल जाये अंखियाँ तेरी |
सतगुरु नाम भजन की बेरी |
नाम भजन में जो मन लावे, सच्चा सुख सतगुरु का पावे |
दया मेहर की ढेरी, सतगुरु नाम भजन मन बेरी |
मन चित धरो सतगुरु चरनन में, भाव भजन की बेरी |
भाव भजन करे अंतर चितवन, पकड़ो नाम की डोरी |
करो वंदना सतगुरु चरनन की, मिले नाम मेहर की बेरी |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों सतगुरु में मन लगाना , अपने गुरुमहाराज के बताये हुए रास्ते के अनुशार प्रभु का भजन करना, हरी का भजन करना, राम का भजन करना, देवी-देवतओं का पूजन करना, सुबह नितक्रिया से उठकर के स्नान करना, तत पश्चात कुछ धुप दीप अगरबती किसी भी देवी-देवता को समर्पण-अर्पण कर के, उसके बाद काम पर अपने निकलते हैं | इससे घर में रहमत रहती है , दया दुआ बरसती है , धन और धान्य से घर परिपूर्ण रहता है , बरक्कत होती है | घर में सुगंधी करने से घर का वातावरण शुध्द होता है और प्रभु की दया-कृपा होती है | की देखो ये जिव है इसने हमको नमन किया या किसी भी को नमन किया प्रभु को नमन किया, राम राम बोला, दो अगरबती लगाई तो उससे सब खुश होते है | संत सतगुरु के शिष्यों को पुरा का पुरा गुरुमहाराज का आदेश है, की सुबह उठो, नित्यक्रिया से निवृत हो , अपनी चारपाई पर बैठ जाओ | हाथ मुह धो लो और चुप-चाप बैठकर के ध्यान भजन सुमिरन ब्रह्मवेला में करो | उसके बाद में अपने दिनचर्या का काम करो, जो दुनिया दारी का काम है उसको करो | जब शाम हो तो फिर भोजन प्रसाद करने के बाद , जब आप चारपाई पे जाओ, तो तुमे समय मिले तो फिर से सुमिरन भजन ध्यान कर लो | तो जब प्रभु की रोज-रोज वंदना करते रहोगे , वन्दगी बजाते रहोगे , उसकी चरणों में मन लगाते रहोगे तो उसकी दया-मेहर बरसेगी आप पर | और आपको बहुत कुछ मिलेगा , आपका मन सात्विक रहेगा, झगड़ालु नही रहेगा | आप के घर में पुरे के पुरे, बच्चे और जो भी लोग हैं , आप को देख कर के, की हा भाई वो पुजा करते हैं , तो थोड़ी देर पुजारी तुमको कहने लगेंगे पर उनमे भी श्रद्धा हो जाएगी देवी-देवतओं में और प्रभु में हरी में , गुरु में, की वो भी लगेंगे वो भी कुछ ना कुछ करेंगे | तो जिससे उनका भी मन बुद्धि चित सात्विक हो जायेगा और निर्मल हो जायेगा |
“सतगुरु साधु नाम भजनवा, एक दिन जईहें तोहरे प्राणवा |”
सतगुरु ने जो नाम दिया है उसका भजन करो , प्रभु को याद करो और उनकी वंदना बजाओ और प्रभु राम को खुश करो, उपर चलने की तैयारी करो, नही तो एक ना एक दिन किसी दिन किसी समय सांसों की पुंजी पूरी हो जाएगी, उस दिन ये प्राण मतलब ये जीवात्मा , सुरती मनुष्य रुपी पोल से निकलकर बाहर खड़ी हो जाएगी | चली जाएगी और ये यहाँ पड़ा रहेगा और उसके पास जब दाम रहेगा, कहते हैं की उपर जो दाम है वह भजन का दाम होता है जो नाम भजन कर के, आप इक्कठा कर के रखे होंगे | वही भजन तुम्हारे वहां काम आएगा |
“मनवा नाम भजन की बांधे, ब्रह्म पद भारी गठरिया |
पारब्रह्म महाकाल पुरुष की, देखि यही न नगरिया |
सतगुरु संग सतधाम विराजो, नाम भजन की डगरिया |”
प्रेमियों, अपने सतगुरु से जो कुछ भी मिला, उससे भजन कर के थोडा-थोडा एकत्र कर के पूर्ण प्रताप इकठा करते करते करते करते सतगुरु के संग वो अपने सतधाम की तरफ, सत्यता की तरफ बढ़ गया और सत्यमय हो गया, उसको बहुत कुछ प्राप्त हो गया | सत्य मंगलमय होता है, सत्य शुभकारी होता है, सत्य ही सत्य ही सदाचारी होता है , सत्य ही सबकुछ होता है | इसलिए हे प्रेमियों, सबलोग सत्य में मन लगाओ और सत्य का भजन करो |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन करो गुरु का ध्यान | विनय प्रार्थना सतगुरु जी की | अंतर पूर्ण आराम |
धसे सुरतिया सत्य देश में | सत्य मिले प्रमाण |
सतगुरु प्रीतम मेरे सांवरिया | इन्हें माना प्रभु राम |
भाव झरोखे सब कुछ मिलियो | विनय प्रार्थना राम |
विनय प्रार्थना सबसे साची | विनय से बन जाये काम |
विनय मनन चित से करी राखो, बरसे मेहर की छांव |
विनय प्रार्थना अति उत्तम है | रीझे सतगुरु राम |
चरण वंदना सतगुरु जी की | कुल मालिक का ध्यान |
भाव झरोखे सब जन बैठो | करो सतगुरु का ध्यान |
सत्य भाव अंतर में उपजे | पाओ निश्छल छांव |
शिष्य झुकाऊ सतगुरु चरनन में | रहो सतगुरु के ठांव |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों अखंड रूप से विराजमान सतगुरु अंतरघट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला के प्रांगन में बैठे हुए प्रेमियों , मालिक हर प्रकार से सर्वग्य हाजिर नाजिर , एक जीता जगता , परम अलौकिक महाशक्ति स्वरूपा , वो चर अचर से व्याप्त हाजिर नाजिर होते हैं | कण कण में विराजमान जो प्रभु है , वैसे ही कण-कण में विराजमान सतगुरु है | असली प्रभु को ही सतगुरु कहा जाता है | आदि अनामि निर्गुण निराकार , अनामि पुरुष करतार को ही श्रीराम पुरुष कहते हैं | निर्गुण निराकार , आदि अनाम , निर्गुण निराकार शिव भी उन्हीं को कहते हैं | तो ये कण-कण में विराजमान हैं | हर जगह सुनने वाले हैं , जहाँ भी आप पुकारोगे, वही मदद करेंगे | जैसे कहा हे परम पिता परमेश्वर तुरंत मदद होगी , हे सर्वेश्वर तुरंत मदद होगी | हे सतगुरु जयगुरुदेव तुरंत मदद होगी | आप पर पुरी की पुरी दया मेहर बरसेगी | तो प्रेमियों मन चित लगा कर के , गुरु में और अपने गुरु को प्रभु मान कर के मूरत मान , ये नही की मिट्टी का पुतला है | गुरु सर्वग्य है , हर प्रकार से समरथ , हर जगह तुम्हे उठाएंगे, हर जगह बैठायेंगे , हारी में, बिमारी में, हर प्रकार से तुम्हारी मदद करते हैं | तो प्रेमियों हर प्रकार से मदद करने वाला सतगुरु है | सतगुरु में दृढ निश्चय , भाव लाना और विनय प्रार्थना कर के रोज सुमिरन ध्यान भजन पर बैठना चाहिए | ऐसा नही की नागा हो जाये | सुबह के नागा हो जाये तो शाम को पुरा कर लो | शाम को नागा हो जाये तो सुबह को पुरा कर लो | एक दो दिन हो जाये तो चार बार कर लो | जैसी-जैसी समय प्रस्थित्ति हो वैसे वैसे सुमिरन ध्यान भजन करते रहो | सांसों की पुंजी मिली है धीरे-धीरे खाली हो रही है , सभी को जाना है कोई यहाँ रहने नहीं आया है | ये देश विराना है , अपने देश को जाना है तो सतगुरु का नाम भजन गाना है | अगर सतगुरु का दिया हुआ नाम का भजन नही किया तो काम नही बनेगा | इसलिए सबको नाम भजन करना ही है , नाम भजन करते हुए अपने देश को चलना है | देखो ये घट है, घट में घाट है , ये मनुष्य रूपी पोल , ये घट है , घड़ा है , घड़ा में घाट है , घाट पर गुरु की बैठक है | तो जब तुम जिवित हो तो तुम्हारे गुरु जिवित हैं , क्योकि जब तुम जिन्दा हाजिर नाजिर चल रहे हो , इस घट में गुरु दिखाई पड़ते हैं तो तुम्हारे गुरु जिवित , हाजिर नाजिर हैं तो अब यही असली गुरुद्वारा है | इसी को असली गुरुद्वारा कहते हैं , इसी में २४ घंटे जाकर आप किसी भी समय गुरु से मिल सकते हो | उस तरह गुरु जहाँ होगा मानव पोल पर तो वहां आपको जाना होगा , गुरु महाराज ने कहा की जब तुम सच्चे मन से सतगुरु जयगुरुदेव जयगुरुदेव बोलोगे तो मैं तुम्हे यहाँ मिलूँगा |तो तुम सच्चे मन से जब सत्य के गुरु को खोजोगे , सतगुरु को खोजोगे तो सतगुरु यहाँ पर विराजमान हैं , तुरंत तत्काल मिलेंगे, तुरंत तत्काल जबाब देंगे | पुरी की पुरी आपकी प्रार्थना सुनी जाती है, हर प्रकार से मेहर बरसती रहती | क्योकि संत सतगुरु हीं सबकुछ है | आप और हम एक विष की वेल हैं और गुरु अमृत की खान , उस अमृत की खान में , उस विष को भिंगो देते हैं तो वो भी अमृत रुपी हो जाता है |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन भजन गुरु का नाम |
विनय भरोसे सब कुछ मिलियो | विनय से सब आराम |
विनय प्रार्थना से सतगुरु रीझे | बन जावे सब काम |
सतगुरु प्रीतम मालिक मेरे | येही सतगुरु राम |
संत विद्या संतन से मिलती | सत्य के रघुवर राम |
पांच धनी का भेद बतावे | देते हैं नव दान |
नमन करो सतगुरु चरनन में | सतगुरु सत्य सुझान |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों जब ये मन बुद्धि चित गुरु के चरणों में समर्पित होकर के , गुरु चरणों में लग जाता है और नाम भजन को बोलता है | सुमिरन करता है तब सच्चा सुख आनंद अंतर में उसको प्राप्त होता है | उसे दिखाई भी पड़ता है सुनाई भी पड़ता है | गुरु एक सनातन , सत्य , सचर चीज है , हर प्रकार से सर्वग्य है , हर प्रकार से समरथ है | वो अपने बच्चो को संभाल कर के रखता है | हारी-बिमारी दुःख तकलीफ आती जाती रहती है , हर प्रकार से गुरु दया मेहर करता रहता है | शिष्य हरदम गलतियाँ करता रहता है | कहते हैं की-
"यह तन विष की वेलरी गुरु अमृत की खान , शीष दियो जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान “
गुरु जो है, हर प्रकार से दया मेहर करते रहते हैं , हम आप जो हैं, उलटी-सीधी हरकते करते रहते हैं और हमसे गलतियाँ होती रहती हैं | तो ऐ प्रेमियों, गलतियों को छोडकर के सबलोग नाम भजन में लगो , नाम भजते रहो , नही कुछ है तो जयगुरुदेव , सतगुरु जयगुरुदेव बोलते रहो | अगर कोई कहता है की भाई तुम जयगुरुदेव के वजाय सतगुरु जयगुरुदेव क्यों बोलते हो तो "सतगुरु ,सत्य के गुरु , हमारे जो सत्य के गुरु हैं , हमारे सतगुरु स्वामी जयगुरुदेव हैं , हम इसलिए पहले सत्य बोलते हैं कि सत्य के गुरु, सत गुरु, जय गुरु देव, जैसे सतगुरु सत्य के गुरु , सत नाम , सतगुरु सतनाम तुमको लाखो प्रणाम वैसे सत्य के गुरु जयगुरुदेव तुमको लाखो प्रणाम , सत्य के जो हमारे गुरु हैं हम तुमको प्रणाम करते हैं , हम तुमको नमन करते हैं, हम तुम्हारे आगे सिर झुकाते हैं , हर प्रकार से आप दया मेहर करो | प्रभु राम के दर्शन आपकी वजह से हुए , आपने करवाये और कृष्ण के दर्शन आपकी वजह से हुए, शंकर के दर्शन आपकी वजह से हुए , देवी-देवतओं के दर्शन आपकी वजह से हुए , सब दया मेहर आपकी वजह से हुई | तो जब जो चीजे आपकी वजह से हुई , आपने हमे दिलवाया , आपके कारन मिली तो हम आपको छोड़ कर के कहाँ जाये हम तो आपही को जानते हैं | हर प्रकार से सर्वग्य, हर प्रकार से हाजिर-नाजिर हमारे सतगुरु हमारी मदद करो और हमे हर प्रकार से दर्शन दो | रोज-रोज गुरु से गुहार लगाते हैं , प्रार्थना करते हैं और कहते हैं, हे मालिक , हम पर विशेष अनुभव अनुभूति की दया कृपा करो , जिससे हम आपके श्रीचरणों में लगे रहें | हमारे उपर आपकी विशेष दया कृपा वरसती रहे | देखो प्रेमियों बहुत लोग कहते हैं की गुरु महाराज चले गये , संत का अंत नही होता , एक जगह से उठे , दुसरी जगह बैठ गये , हमे देखना होगा की हमारे गुरु महाराज उठ कर के कहाँ बैठे हैं | उस तरफ हमे चलना पड़ेगा | और ये सब चीजें अंतर में पता लगेगी क्योकि ये मानव पोल है , मानव पोल में जितने दिन आयु की पूंजी मिलती है , सांसों की, उतने दिन रहना है , उसके बाद बदलना है , कोई भी हो मानव तन उसे बदलना पड़ेगा | शरीर जर्जर हो गया तो उसे छोड़ना पड़ेगा | हमारे गुरु महाराज ने कई प्रकार से कहे , चाहे साढ़े चार सौ साल रहना पड़े तो रहूँगा | ये नही बताया की उसी शरीर से रहूँगा या दुसरे शरीर से रहूँगा , वो रहेंगे | तुमको मिलेंगे , पूरा विश्वाश दिलाया है तो जब तुम खोज करोगे "खोज री पिया को निज घट में " तो अपने पिया को , अपने मालिक को निज घट में खोजोगे तो गुरु महाराज भी मिलेंगे , पिया भी मिलेंगे और हरी भी मिलेंगे , सब कोई मिलेगा और सब कुछ सचर अचर अच्छा दिखेगा | सतगुरु बोध भान पूरा करवाते हैं , आप करना चाहो तो ये चीजें होंगी , अगर आप करना ही नही चाहते , आप का मन रुकता ही नही , आप ध्यान भजन पे बैठना ही न चाहो तो काम कैसे बनेगा | इसलिए समस्त प्रेमियों से गुजारिश है प्रार्थना है की सब कोई लग कर के ध्यान भजन करो और गुरु में समर्पित रहो, कहीं गिरने-गिराने की कोशिश मत करो , अड़े रहो, खड़े रहो और जो अंतर आदेश हो जो भी, तो अंतर से अंतर का काम कर लो बाहर से करने की कोशिश मत करो | बाहर से उतना करो जितना , मर्यादा के अन्तरगत हो , बाकि बस जो हो गया सो हो गया | अंतर में चलते रहो , नाम भजन करते रहो, गुरु के शरणागत रहो , गुरु में लीन रहो, गुरु में तल्लीन रहो, गुरु ही पार करेगा , कोई दूसरा पार नही करेगा | गुरु ही तुमको पकड़ के ले जाएगा और बतायेगा की ये हमारे जिव हैं , तुम्हारे जिव हैं, तुम्हारे भक्त हैं , इनको उस पार करो | तो मेहर होती है , गुरु की दया कृपा से शिष्य साधक देखता है , गुरु की कृपा से ही एक-एक कदम चलता है और गुरु से हरदम प्रार्थना करो की हे मालिक जो जन्मों-जन्मों की मैलाई , कूड़ा-कर्कट हमपे जमा है ,हे मालिक दया करो की हट जाये , कट जाये , हारी-बिमारी , हर प्रकार से हम पर दया मेहर कर दो मालिक ,की ये पूरी तरह से समाप्त हो | किंचित मात्र तो चलती ही रहती है , 1-2 % लगा रहता है , तो पूरी दया मेहर करो मालिक | अब जैसे किसी का स्वस्थ खराब हो गया तो कहा, बाबाजी का मेहर , देखो फिर भी क्या हाल है तो ये नही सोचना चाहिए , हाल तो सबका है भाई, सबका स्वस्थ है , किसी का भी खराब हो सकता है | और लोग तंत्र-मन्त्र भी करते हैं तो तंत्र-मन्त्र करोगे तो गुरु का वंदा है , तो गुरु का वंदा है तो गुरु बतायेंगे उसको तो , वो वो सब करेगा , यहा वापस आएगी तो वो तुरंत वापस हो जायेगा , थोडा मोड़ा खरोंच लगेगा लेकिन तुम तो बहुत मारे जाओगे | इसलिए प्रेमियों किसी को कोई तंत्र-मन्त्र नही करना चाहिए और अगर किसी से तुमको तकलीफ है तो उससे कहो की भाई हमे आपसे तकलीफ है परेशानी है आप इस तरह से कर लो , तो अब वो अगर समझदार है तो कर देगा , कहेगा हटाओ गुरु के वन्दे हैं छोड़ो इनको जाने दो | तो प्रेमियों सबसे बड़ी चीज है गुरु की शरणागत होकर के नाम भजन को करना , गुरु में लीन रहना किसी दुसरे के शरणागत नही रहना |

बोलो सतगुरु जयगुरुदेव | ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 08-06-2015

Guru Purnima ka karyakaram 30 July 2015 to 01 Aug 2015 tak

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २ जून २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम हित भजन तन-मन वैन | मन में भजन करे जो प्रेमी |
बहे सनातन सैन | पारस झंनकर सुनावे |
मीठे-मीठे बैन | सत्य वन्दना गुरु चरनन की |
सुबह-शाम अरु रैन | पज-पंकज में शिश झुकावट |
विनय भरोसे बैन | मन चित लागो नाम-भजन में |
नाम-भजन की रैन |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु नाम सच्चा है | नाम में मन लगाना है |
बिना तुम नाम-भजन के | नहीं तो पार जाना है |
प्रेमियों नाम भजन में मन लगाना है और उसी में रत हो जाना है | नाम-भजन सच्चे तरीके से करना है ठीक से करना है और नाम-भजन कर करके अंदर की मैलाई को काटना है अंतर में जागृति पैदा करना है | अपने गुरु में मन लगाना है अपने सतगुरु की वाणी को सुनना है | दया की धार घाट पर बराबर चल रही है उसको लेना है उसी मे समाहित होकर चलते रहना है |
पूर्व जन्म अभिलेखों न्यारो | समरथ सन्त ने कियो किनारों |
पूर्व जन्म में ऐसे कर्म बन गये जिसके वजह से सुमिरन ध्यान भजन में अर्चन आई हमारे समरथ गुरु ने दया मेहर से उसे किनारे कर दिया | तो गुरु की दया हो गई उन्होंने एक तरफ कर दिया मालिक की दया हो गई तो उन्होंने इधर कर दिया तो सारा काम हो गया |
सावरिया प्रीतम रंग वरसे | प्रीत-सिन्धु के अधर मझारी |
उस पार सतगुरु ही उतारे | विनय तान मन भंग |
नाम भजन में जो कोई आवे | विनय काम सब तंग |
इक-इक अंग अमी रस पीवे | रंगे नाम के रंग |
प्रेमियों जैसे-जैसे जीवात्मा सुरत सतगुरु के चरणों में रत होती चली जाती है | आगे बढ़ती चली जाती है वैसे-वैसे शब्द का प्याला अमृत का प्याला पिते रहती है | जिसको सब कुछ सुनाई पड़ने लगता है गुरुमय होने लगती हर धनियो की अवाजे आने लगती है हर देश को वो देखती है सुनती है आगे को बढ़ती और चढ़ती है और गुरु में मन मस्त मगन रहती है | गाती हुई पीती हुई खाती हुई बढ़ती है और अपने गुरु की जय जयकार करती हुई सत्य धाम की तरफ बढ़ती है | सब प्रेमियों को चाहिए की मन चित ध्यान लगाकर के अपने सतगुरु का ध्यान भजन मन लगाकर ठीक से करे जिससे उन्हें अनुभव अनुभुति हो | अगर तुमने नाम दान लिया और तुम्हे दिखाई-सुने नही पड़ा अंतर अनुभव नही हुआ आत्मज्ञान नही हुआ आत्मबोध नही हुआ तो तुम्हारे गुरु समरथ नही | तो ये कहो की हमारे गुरु ने हमे नाम दान दिया पर दिखाई-सुनाई नही पड़ता तो तुमने जब कुछ किये ही नही तो तुम्हे दिखाई-सुनाई कहा पड़े | मन रोक कर के चित रोक करके बुद्धि को संभाल करके गुरुचरणों में करके गुरुमहाराज को हाजिर-नाजिर मानकर के बैठो | हाजिर नाजिर इस तरह से मानो यदि तुम्हे भ्रम है तो की ये जो घट है घट में घाट है घाट पर गुरु की बैठक है जबकि सबसे पहले गुरु ही घाट पर मिलता है सबसे पहले गुरु ही दिखाई पड़ता है उसके बाद ही कुछ और दीखता है | प्रेमियों ये मानो की हम जीवित हैं तो हमारे अंदर जो बैठे हैं गुरुमहाराज शब्द स्वरूपी वो जीवित हैं तो वो जिन्दा हैं हाजिर है नाजिर हैं वो हम पर दया करेंगे हमे दिखाई पड़ेगा सुनाई पड़ेगा हमारे अंदर से हमको अंतर मे ले चलेंगे अगर आप ये समझ लोगे की गुरुमहाराज तो निजधाम चले गये वो हैं नही अब फलाने महाराज , ढमकाने महाराज ये महाराज तो वो महाराज काम करेंगे तो उन महाराज के पास जाओ उन महाराज के पास जो ताकत होगी तो उनसे काम करेंगे | और उनसे नाम दान लीजिए इस नाम दान को बंद कीजिए और अगर आपको उन पर विश्वास है की हमारे सतगुरु समरथ हैं जब औरो को दिखाई-सुनाई पड़ रहा तो हमे भी पड़ेगा तो आप उस तरह लग कर के नाम भजन करोगे | गुरु की चर्चा करोगे गुरु की महिमा गाओगे गुरु का भजन करोगे गुरु में मन लगाओगे तो अवश्य दिखाई-सुनाई पड़ेगा |
प्रेमियों जब हमे दिखाई-सुनाई पड़ता है तो हम चिल्ला कर के कहते है की हमारे गुरुमहाराज की दया-मेहर से हमे दिखाई-सुनाई पड़ता है | जो मालिक की मौज होती है अंतर में जितनी चढ़ाई , जितनी मौज होती है उतनी चढ़ाई हो जाती है उपर जीवात्मा सुरत चढ़ती है | यहाँ अखण्ड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम-बड़ेला में जो भी प्रेमी भारतवर्ष से आते हैं वो कहीं आते जाते हों उनके लिए कोई रोक नही है और न मै कभी रोकता हूँ की तुम उज्जैन मत जाना या मथुरा मत जाना या यहां मत जाना या वहा मत जाना या इनका सत्संग मत सुनना या उनका सत्संग मत सुनना | मै तो यही कहता की तुम्हे आत्मज्ञान आत्मबोध की जरुरत है अंतर में दिखाई-सुनाई की जरूरत है तो यहाँ आवे बस और बैठकर के यहा सुमिरन ध्यान भजन करो और अगर तुम्हे दिखाई-सुनाई पड़े तो मानना तब कुछ कहना और अगर दिखाई-सुनाई न पड़े तो दुबारा यहा मत आना , दुबारा आने की जरुरत नही है | और वैसे गुरुमहाराज ने कहा है जो यहा तीन बार सच्चे मन से सुमिरन-ध्यान भजन करेगा उसकी आँख खुल जाएगी | जबकि प्रेमियों तीन बार आने से रहे तो एकहे बार में तीन बार अपना कर डालो तो तुम्हारा पूरा हो जाये और तुम्हे दिखाई-सुनाई पड़ने लगे | मेरी तो सेवादारी है मै तो आपके साथ सेवादार हु आपके साथ सेवा करूंगा आपको बताऊंगा समझाऊंगा की इस तरह करो उस तरह करो और मै भी प्रार्थना करूंगा की हे मालिक दया करो इन्हें भी दिखाई-सुनाई पड़े | और जब तुम्हे दिखाई-सुनाई पड़ने लगे तो गुरु आधारे गुरु के द्वारे | अपने गुरु के सहारे रहो किसी दुसरे के सहारे रहने की जरूरत नही है | जब गुरु समरथ है तो घर में करोगे खेत में करोगे खलिहान में करोगे तो सब कही तुम्हे दिखाई पड़ेगा सब कही सुनाई पड़ेगा है गुरु हर छण मदद करेंगे और अंतर में जो बोलेंगे उस चीज को तुम समझ लोगे और बराबर गुरु में रत हो जाओगे गुरु में विश्वास करोगे | गुरु महाराज अंतर में दया दुआ वारसायेंगे इतनी वरसा देंगे की तुम कुछ भी बता सकते हो भुत भविष्य सब कुछ बताओगे और हर चीजो का ज्ञान रहेगा | देखो बहुत से प्रेमी आते जाते पहले दुसरे तीसरे चौथे पांचवे और बहुत से पुरे भी हो चुके हैं अनाम तक आते जाते है | प्रेमियों तुम क्यों नही जा सकते | जीते जी मुक्ति मोक्छ मिलती है मरने के बाद नही और न गुरुमहाराज ने बताया | गुरुमहाराज ने यही बताया की जीते जी मुक्ति मोक्छ प्राप्त होता है मरने के बाद न किसी कि चिठ्ठी पत्री आई न तुम्हारी आएगी | जीते जी तुम्हे प्राप्त हो जाएगा और जीते जी तुम्हे सतगुरु मिल जायेगा | सतगुरु की दया-कृपा मिल जाएगी | कोई भी माई का लाल हिंदुस्तान में चाहे जितना बड़ा महात्मा हो या बन रहा हो वो मरने के बाद किसी को नही पहुचाता | जीते जी पंहुचा देता है | और जीते जी पहुचाता वही है दिखाता वही है जो समरथ होता है पूरा सन्त होता है | अधुरा नही वो उसके शरणागत होकर के लिन होकर के जब साधक प्रेमी बैठते हैं तो चिल्लाकर के बताते हैं की हमने ये आज देखा पारब्रह्म को देखा महाकाल पुरुष को देखा या पांचवे धाम को देखा वहां की खिलकत को देखा या इस तरह के सुना गुरु महाराज की कृपा से अपने सतगुरु की कृपा से तब उसके गुरु समर्थ होते हैं और वही सतगुरु कहलाते हैं समरथ सन्त कहलाते हैं |
बोलो सतगुरु जयगुरुदेव
गुप्त जड़ी अंतर एक जलती | नाम ज्योति आधार |
अधर मणि धुर-धाम से आई | ज्योति स्वरुप प्रभु राम |
ज्योति की थाल सजाओ अंतर मन | आरती सतगुरु धाम |
नाम भजन चित मन मन चिंतन | सतगुरु को करो परणाम |
शिश झुकावो सतगुरु चरनन में | पाओ पूरा अभिराम |

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

०२ -०६ -२०१५, प्रातः ०१:३५

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव l
ll सतगुरु दरसन की हाली है
भव्य समागम अब होने वाली है ll
सतगुरु कुल मालिक के दर्शन की चाह दिन रात बनाए रखो l सुरत धीरे से सरककर चरणों में जा समाती है l
|| सतगुरु चरण बसे अंतर्घट में , मैं सेवूँ हरदम तन में ||
सब के सब होश में आ जाओ l समय बहुत नाजुक है l आज कल न करते हुए लगकर भजन ध्यान सुमिरन करो l यही सच्चा साथी है और साथ ले जाएगा |
|| यही भजन तेरे साथ चलेगा , पावेगा अविराम ||
सतगुरु सतयुगी नौका के खेवनहार हैं l अपना आपा कुल मालिक के चरणों में सौंपकर विश्वास सहित आगे आओ l पीछे मुड़ने का समय अब नहीं है |
अपने को सच्चे सतयुगी नाम के आभूषण से अलंकृत करो |
|| पुरानी परिपाटी युगों की है आई खड़ी
युगों की पुरानी सुहानी घड़ी ये अब चल के है आई ||
सतगुरु की सतयुगी अंतरी मूरत अब हिये में बसा लो | संत सतगुरु नन्द गोपाल को अंतरी नैनों में बसाकर इस प्रकाट्य आज़ाद रौशनी का भरपूर स्वागत करो |
|| बसे हैं अब अंतर नैनों में सतगुरु नन्द गोपाल
स्वागत अभिनंदन करूँ दिनरात ||
आगे का सुहावना समय मौसम तुम सबका है l लेकिन उजाला होने के पहले अंधेरी घटा घिर आती है l
|| छाई थी निशा अंधेरी लेकर नया भव्य उजाला
सतगुरु जयगुरुदेव हैं पधारे स्वागत करे अब मिल मिल कर ||
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव बोलो l

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 31 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम निज सतगुरु ने दिना | सन्त हमारे समरथ प्यारे |
रहो इन्ही के आधीन | नामधन सतगुरु जी ने दिनी |
दया मेहर आवे अंतर में | भजन मनन हो परधिनी |
दया मेहर की वेग उठे उर | उपर चलो होली |
नामधन सतगुरु जी ने दिनी | नाम भजन एक सार-भेद है |
पांच शब्द विलीनी | तीन-पांच की बनी चौकड़ी |
एक गुरु समलिनी | चौरासी से गुरु बचावे |
नामधन का भेद समझावे | सत्य का रास्ता दिनी |
सतगुरु नामधन को दिनी |
सतगुरु जयगुरुदेव
समय बदलता गया | समय के हिचकोले से नैया आगे-पीछे बढ़ती रही | सत्य संगत संतमत युवाओ के पास आती रही जाती रही | सन्त गत गुरु आते रहे और मौज बदलते रहे ,अपना काम पूरा करने के लिए स्थान भी बदला मौज भी बदली | चूकि शरीर बुढा होने पर उसको छोड़ना पड़ता है इस देश का विधान है | विधान सबपे लागु होता है तो कपड़े को बदलना होता है | पर समरथ सन्त सतगुरु ये समझा कर के बता कर के रखते हैं की बच्चू जब अंतर साधना में चलोगे नाम भजन कर के चलोगे तो तुम्हे वहा पता चल जायेगा की तुम्हारा गुरु कहा बैठा है | वो धरा पर है अथवा नही है चुकी संत-सतगुरु धरा छोडकर नही जाते एक जगह से उठे दूसरी जगह बैठ गये उसी तरह संतो का काम होता है इस कपड़े से निकले उस कपड़े में बैठ गये | कही बाल-अवस्था में ,कही युवा अवस्था में, कही वृद्ध अवस्था में जिस तरह से समय की मांग हो उस तरह से काम कर लेते हैं | इस समय गुरुमहाराज भी धारा पर हाजिर-नाजिर हैं और प्रेमियो को, हमको ,सबको अंतर संकेत दे रहे हैं की पूर्वांचल में हैं बच्चू | जो तीन बार ढूढने के लिए गये और इस समय स्वास्थ अस्वस्थ होने के कारण | जो है थोड़ा दुविधा है | फिर भी जो हैं हीमत किये हुए हैं की कार्यक्रम निपट जाये | कार्यकर्म के बाद फिर निकलते हैं ढूढने के लिए गुरुमहाराज को | और जो स्थान को बताया उन स्थानों को पता लगाने गुरुमालिक की दया-कृपा हो उनकी मौज हो तो वे शशरीर हो जाये | आशा ही जीवन है आशा ही को लेकर मनुष्य कोई कार्य करता है की हमारा ये कार्य सफल होगा | सुमिरन-ध्यान-भजन प्रेमी करते हैं की हमे दिखाई-सुने पड़ेगा अंतर में | अगर अंतर में दिखाई-सुने पड़ने की बात न हो तो कोई नाम-भजन न करे | तो प्रेमियो सुमिरन-ध्यान भजन इसी से किया जाता है की हमे अंतर में दिखाई-सुने पड़ेगा | ज्ञानचछु, दिव्य दृष्टि से दिखाई पड़ेगा और अंतर में कान से सुनाइ पड़ेगा | इसलिए सुमिरन ध्यान-भजन करते हैं और उसमे दिखाई भी पड़ता है सुनाई भी पड़ता है गुरुमहाराज की दया मेहर से |
मृद मंजोल मंजन हो अंतर | नाम भजन जो करे निरंतर |
अंतर वेग प्रताप सुहाऊ | सत्य मेहर की उर में छाऊ |
जो प्रेमी मन चित लगा कर सुमिरन ध्यान भजन करता है उसके अंतर में पूरी की पूरी सतलोक धाम से दया उतरती है और पूरा का पूरा अंतर का आनंद उसको मिलता है | पुरे परमानंद में वो हो जाता है और परमानंद के पुरे दर्शन होते हैं | ऐसी गुरु की दया-कृपा बरसती है की वो बाग़-बाग़ हो जाता है | निचे से ऊपर तक सबकुछ देखता है फुल-फुलवारी ,बाग-बगीचे , नदी-नाले , अनेक पहाड़ उन देशों की किरकतो को देखता है | पांचो धनियों के दर्शन करता है | और अपने सतगुरु का दर्शन करता अपने सतगुरु के चरणों में बैठता है | लिन होता है और मालिक से हमेशा चरणों में वन्दना और प्रार्थना करता रहता है की हे प्रभु किसी तरह हमे भी रोज-रोज दर्शन निष्पक्ष मिला करे |
सतगुरु जयगुरुदेव
विमल मन गाऊ सतगुरु नाम | घट में घाट, घाट पर सतगुरु |
सत्यकोट प्रणाम | सहश्त्र लव बाती, सहस्त्रों लव भाव की |
आदर और सम्मान | भाव झरोखे करू आरती |
हे अनाम श्रीराम | सतगुरु प्रीतम मालिक मेरे |
हे प्रभु लखन अनाम | शीश झुकाऊ सतगुरु चरनन में |
सत्य भेद सत्य धाम | रहू भरोसे तेरी चरनन की |
तुम्ही ही न अविराम | हे सतगुरु मोहन हे प्रीतम |
हे सतगुरु मेरे राम | सत्य के स्वामी रूप अनामी |
तुम्ही पुरुष सतनाम |

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

१४.०५.२०१५, प्रातः ०४.४५

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव l
ll हिमालय के उतंग शिखर पर पाकर सतगुरु तुमको शीश झुकाया,
तेरे चरण कमल की रज को पाकर हिमालय भी अतिशय नूर बिखराया ,
अतिशय मन ही मन हर्षाया ll
मेरा सतयुगी अतिशय रूहानी ध्वज हिमालय पर्वत पर मेरे बच्चे फहराने जा रहे हैं l बच्चों हिलमिल कर आगे बढ़ो l मेरी एकता और अखंडता को बनाये रखो l इसमें कमी मत आने देना l हिमालय की गहराई में मेरी अमूल्य धरोहर छुपी है l सतगुरु के दिए हुए अंतरी खजाने की खोज करो l अंतर बाहर सब कुछ तुम्हारा है l जिस भाव से जो मुझे भजते हैं उसी भाव से सतगुरु भी तुम सभी का चिंतन मनन करते रहते हैं l
शंका क्यूँ करते हो शंका से कोई फायदा नहीं l सतगुरु काठ की मूरत नहीं , वह सदा आदि से जागृत संत हैं और जब तक भू-मंडल पर एक भी जीव रहेगा तब तक संत सतगुरु यहाँ आते रहेंगे l
तुम्हारे अन्दर छिपे हुए धन का पता ठिकाना बताने के लिए ही अपना धाम छोड़कर यहाँ बसते हैं l
ll तुमको सचखंड पहुंचावना एक हमारा काम ll
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव l

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

३०.०५.२०१५, प्रातः ०५.२७

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव l
|| टिकटवा काट दो सतगुरु जयगुरुदेव जी हमें भी अनामी धाम जाना है,
लगा दीजै सतगुरु सतयुगी मुहर अपनी, नहीं फिर आना जाना है ll
अपनी खोयी हुई पूंजी जो हमारे अंतर में मौजूद है अज्ञानवश इधर उधर दौड़ते हैं , उसका पता निशान सतगुरु बताते हैं l हमारे अन्दर में धन गड़ा है लेकिन हमको पता नहीं कहाँ है l सारा खुदाई जौहर अंतर में है l
ll कस्तूरी कुंडल बसे , मृग ढूंढें वन माहि,
ऐसे घट घट सतगुरु साईं विराजे क्यूँ खोजे भव माहि ll
सतगुरु की खोज करो , उन्ही की आरती वंदना करो l शब्द दिन रात उतर रहा है l ऊपर से शब्द की सतयुगी गंगा अबाध गति से बह रही है l
ll यह शब्द अधर से आता , तू सुन सुन कर क्या गाता ll
शब्द सतगुरु ही सच्चा साथी है l शब्द सतगुरु की खोज करो l सच्चे खोजी को सच्चे मिलेंगे l सीधा निशाने पर बैठो l तीर चलाना सीखो , तुक्का चलाना छोड़ दो l आगे महाभयंकर तूफानी आंधी चलने वाली है l भारी भगदड़ मचेगी l कोई किसी की बात नहीं मानेगा l सब मन मानी पर उतर आयेंगे l उस समय यह अजन्मा फ़क़ीर ही सबकी मदद करेगा l सबकी अगुवाई करेगा l
समय से जो नहीं आएगा वो जाने उसका काम जाने l आगे सारे रास्ते अपने आप ही बंद हो जायेंगे l विवश होकर आला फ़क़ीर मुर्शिद के चरण में झुकना पड़ेगा l अजन्मा फ़क़ीर की वैचारिक क्रांति पूरे एशिया से पूरे विश्व में छा जायेगी , अभी क्या देखा, देखते रहिये l एक भी वचन खाली नहीं जाएगा l एक ही न्यायकर्ता, एक ही रूहानी झंडा उसी के तले सबको महाशांति मिलेगी l
समय से पहले फकीरी मौज को पहचानकर आगे आओ | बढ़ते कदम अगर रुक गए तो कोई मददगार नहीं होगा l सतगुरु सच्चा , नाम सच्चा , चिंता किस बात की l चिंतन करो l
ll चिंतन करें हम सब तुम्हारा , चिंता तुम्ही मिटाए ll
रहमान बनकर आये हैं वो उनकी रहमत के भिखारी बनो l रहमत सबको मिलेगी l
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव |

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

२९.०५.२०१५ प्रातः ०५.५९

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
सतगुरु जयगुरुदेव जाग कर बोलो l
ll नाम लोक से आकर सतगुरु नाम का भेद बताई
नाम धन की खान हैं सतगुरु सबको नाम का अनमोल रतन लुटाई ll
नाम का भेद सतगुरु बताते हैं l नाम अमोलक है l इस बेशकीमती कोहिनूर की कीमत कोई नहीं बता सकता l दुनिया के साजो सामान एक तरफ l नामधन , नामदान से बड़ा कोई दान नहीं है l इस नामदान की बख्शीश सतगुरु की विशेष मौज से होती है l सतगुरु की एकता और अखंडता को बनाये रखना l इसमें कमी मत आने देना l हिलमिल कर आपस में अपना काम करो l धीरे धीरे हज़म करना सीखो एक बारगी नहीं l नाम उतरता जाएगा ये मनुष्य मंदिर अंतर में चमकने लगता है l
जागृत होने का समय है l खुद जागो और सबको जगाओ l सबको नाम के आभूषण से अलंकृत कराओ l नाम की थाती और कुंजी सतगुरु के पास है l देर मत करो l सच्चे की खोज करो सच्चे के पास पहुँचो l अपनी सोयी हुई आत्मा को जागृत करो l जगाने के लिए पुनः आया हूँ l मुसीबत की घड़ी में नाम ही रक्षा करेगा l
नामी से मिलकर नाम को जागृत करो l बिना नामी से मिले काम बनने वाला नहीं है l हज़ार गुरु कर लो जब तक सच्चे गुरु सतगुरु नहीं मिलेंगे भटकते रहोगे l जो तुम्हारे पास है वह भी चला जाएगा l
ll किया कराया सब गया जब आया अहंकार ll
वहाँ तुम्हारी रक्षा करने वाला कोई नहीं है l भटकाव छोड़कर निज सत द्वार पर बैठकर मिन्नत करो l
ll विनय मेरी सतगुरु यह सुन लीजै , अरज पूरी अब कर दीजै ll
बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव जागकर बोलो l

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

०८.०५.१५, प्रातः ०४.५६

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव बोलो l
जो सतगुरु को मिटटी का पुतला समझता है , बाबा समझने वाले बाबा समझ कर रह गए l जो जैसे मुझे समझते हैं वैसे ही दिखूंगा l
“जाकी रही भावना जैसी , सतगुरु स्वामी दिखे उन वैसे”
ll सतगुरु जयगुरुदेव पर जेह कर सत सनेहू ,
सतगुरु जयगुरुदेव मिले तेहि न कुछ संदेहू ll
अब तो साथ साथ चलने की बारी आई , तैयारी करो l धीरे धीरे मेरा सब काम पूरा हो चुका l
नाम और नामी की पहचान करना आसान नहीं है l जब तक वह स्वयं न परिचय दें l कोई बिरला ही मुझे मेरी पहचान कर पायेगा l
नाम चलता है बोलता है , नाम यहाँ उस अखिल अगोचर ब्रह्माण्ड के परे ले जाता है , जहाँ कोई जा ही नहीं सकता नामी के अलावा l
नाम अपना परिचय अंतर में देता है , कराता है l उस पार उस अदृश्य मंडल में ले जाकर सतगुरु जयगुरुदेव फिर से नामदान देते हैं l नाम का परिचय कराते हुए हर मंडलों में ले जाते हैं l
ll बिन पद चले , सुने बिन काना
कर बिन कर्म करे विधि नाना लल
वहाँ अंतरी सत्संग होता है l इस अंतरी सत्संग की बड़ी महिमा है l ये जब तक नहीं मिलेगा , बेहोशी दूर नहीं होगी l बेहोशी में आये , बेहोशी में ही चले जाओगे l अंतर में सत्संग सुनो l अंतर बाहर एक रस l
जो सतगुरु यहाँ नाम की बख्शीश अपनी विशेष मौज से करते हैं वही अंतर में हर मंडलों में सत्संग बनाते हैं और बनाते हुए ले जाते हैं l
जब तक यहाँ वहाँ नहीं मिलेंगे असली नकली की पहचान ही नहीं कर पाओगे l गुरु तो बहुत हैं अब अंतर में मुझे मिलो l
ll तूल न ताहि सकल मिल जो सुख लौ सत्संग ll
मेरी सतयुगी झोपड़ी तैयार करवा दो l पूर्व परिचित स्थान पर वहीँ मै मिलूँगा l अंतर बाहर एक रस होकर l अंतर में नाम चलता है l मै नाम से आया हूँ l मेरी अंतरी खुदाई खिलकत को पहचानो और आगे आओ सतगुरु को अपना आपा सौंप कर l
मेरे निज बच्चे जो चाहेंगे करेंगे ,वही मान्य होगा l लागू मै करूँगा l
मै अपनी निज खिलकत में समाया हूँ l हर पल रहनुमाई कर रहा हूँ , करता रहूँगा l इनके अतिशय सतगुरुमय भक्ति की मिसाल बन गयी है l इनको देखकर लोग सतगुरु बनते चले जायेंगे l ये जो कहेंगे वही होगा , वही मै करूँगा l मेरा वरद हस्त एक सिर पर एक पैर के नीचे है l चिंता मत करो , तुम सब को लेकर काम पूरा होता ही चला जाऊँगा l
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव बोलो l

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

०७.०५.२०१५ प्रातः ०६.०९

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव
मैंने अपने सतयुगी विशेषज्ञों को संभाल कर रख लिया है l ये विशेष मुहूर्त में ही सबके सामने आयेंगे l ये मेरे विशेष गुप्तचर हैं l इनकी शक्तियां ,ये अपनी विशेष शक्तियों से लैस हैं l इनकी असीम सतगुरु भक्ति और सच्चाई को देखकर सारे लोग एक झटके में बदलने के लिए मजबूर हो जायेंगे l
ये सारे विश्व को चकित एवं मंत्रमुग्ध करने जा रहे हैं l ये कोने कोने को पूरे विश्व को सतगुरुमय बनाने जा रहे हैं l अद्वितीय युग परिवर्तन होने जा रहा है l ये इतिहास उलटने जा रहे हैं l इनका इतिहास मै स्वयं लिख रहा हूँ l अभी सतगुरु का जलवा कहाँ देखा l जलवा बिखेरने वालों को तो छिपा लिया हूँ l मेरे खुद के खेल में हैरान हो जाओगे l समझ में न आये तो मुझसे पूछ लेना l
जो मेरे बच्चों पर झाड़फानुष फ़ेंक रहा है , फिकवा रहा है वो अपने ही हाथों अपनी जड़ खोद रहा है l राह सच्ची राही सच्चा डर किस बात का l जो तमाशा देखने मेरे दरबार में आयेंगे , तमाशबीन बनकर रह गए , रह जायेंगे l उन्हें कुछ नहीं मिलेगा l जो इच्छा हो करते रहे, कोई रोक टोक नहीं l
बच्चे अतिशय ईमानदारी से सतगुरु के सच्चे भक्त बनकर आगे बढ़ो l तुमको कोहिनूर की तरह खरात पर लगाकर तराश रहा हूँ l मेरे निज बच्चों की तरह धीरे धीरे सब तराशे जायेंगे , एक बारगी नहीं l रहमान का काम है धीरे धीरे होगा l
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

२३-०४-२०१५ प्रातः ५:०९

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव
परम वीरों परम वीरांगनाओ सतगुरु जयगुरुदेव |
|| हरिहर धाम हो गए मौन राजवंशों ने चुप्पी साधी है
दूर कलयुग को करने की , दूर फितरती / फिरंगी को करने की नित नयी युक्ति साधी है ||
बच्चे शांत चित्त मन से अपना काम करो | सतगुरु की बातों का मनन करो | अपने सतगुरु की धीर गंभीर सतयुगी आवाज़ / भाषा को सुनो समझो | शांत हृदय सदा मौन रहता है | जैसे सतयुग से करते आये हो , सतगुरु कुल मालिक का सतयुगी इतिहास एक दिन का नहीं बहुत पुराना है | पहले यहाँ हरिहरपुरी नगरी रचाई गयी थी | यह स्वर्गिक नैसर्गिक नगर सब ऊपर से आया है | समय की सुई घूमती रहती है , प्रकृति चुप नहीं है |
|| बंद नहीं अब भी चल रहे हैं नियत नटी के क्रियाकलाप
कितने स्थिर भाव से कितने मौन और निशिवास ||
सतगुरु कुल मालिक के भेद को कोई कोई ही समझ सकता है | मेरी अन्तः गुफा अवंतिकापुरी नाम से रचाई गयी है | ये चैतन्य नगर , मेरी चेतन अन्तः गुफा का कभी अंत ना है न होगा |
अब अपने सब काम सतगुरु स्वामी से मिलकर उनके सतयुगी कार्यों को अपना काम समझकर करते रहो |
|| पुनः पुनः आये हैं सतगुरु अपना कार्य विचारी
सबका कार्य बनाने , सबका काम बनायी ||
भजन भूल गए हो तो फिर से पिछला पाठ दोहराओ | मेरे आध्यात्मिक विद्यालय में दाखिला कराओ और पुनः लग कर के भजन करो | सेवा करो , सेवा के लिए लाये जा रहे हो | सेवा करते रहो | छोटी मोटी फ़क़ीरों के दरबार में परमार्थी सेवाएं रखी जाती थी | आज भी वही है | वही करो | ये सब काम तुम्हारा है तुम सबका | सबको पार ले जाने के लिए आया हूँ | नाम जहाज को खेय के तुम्हारे लिए किनारे ले आया हूँ / लगा दिया हूँ | सब चढ़ चलो | सबको बुलावा भेज के बुलाते रहो | धीरे धीरे आते जायेंगे एक बारगी नहीं | स्थिरता से आगे बढ़ो | कूदा कादी करोगे तो औंधे मुँह गिर जाओगे | वहाँ कोई उठाने नहीं जायेगा | परिवर्तन की सुई स्थिर नहीं है | बड़ी तेजी से धुरी पर ही घूम रही है | महात्मा कुल मालिक जानबूझ कर रोके हैं | बार - बार सन्देश देकर बुला रहे हैं क्योंकि || दिल में हमारे दर्द है तुम्हारा
सुनते तो जाओ सतयुगी सतसंदेश हमारा
लेते तो जाओ सतयुगी सतगुरु जयगुरुदेव नाम हमारा ||
वीरों वीरांगनाओं सभी बच्चे बच्चियों अपने घर परिवार कुल खानदान , गली, हाट बाट, सभी को सतगुरु जयगुरुदेव नाम की महिमा बताओ | उन्हें भी नाम के आभूषण से मेरे दरबार में अलंकृत कराओ | कोई छूटे नहीं | एक भी स्वांस खाली न जाये | हर आती जाती स्वांस सतगुरु जयगुरुदेव में लय कर दो | सदा स्वांस स्वांस पर बोलते रहो बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरुदेव |
बच्चे सतगुरु कुल मालिक की बारीकियों को समझ नहीं सकते | उनका हर कार्य रहस्यमयी होता है | सब अपनी चाल चलते रहे टेढ़ी मेढ़ी , वो अडिग निर्भीक होकर अपना काम करने के लिए आये हैं और करते रहेंगे |
|| भक्ति भाव कलयुगी जीव सभी गए विलगाय
सतगुरु जयगुरुदेव गुहारत सतयुगी रहे ठहराय ||
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव , परम वीरों परम वीरांगनाओं सतगुरु जयगुरुदेव |
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 30 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम आधारे गुरु हैं अपने | नामी नाम के दार |
पांच नाम का दियो दान है | नाम भेद उद्धार |
ज्ञान अलौकिक अंतरयामी | गूंजे शब्द मझार |
सतगुरु प्रीतम मालिक प्यारे | शब्द भेद आधार |
शब्द की सीङी न्यारी प्यारी | शब्द चलत गुलजार |
शब्द सनेही प्रीतम सतगुरु | समझो नाम आधार |
सतगुरु मालिक दया बरसती | सतगुरु करते उध्दार |
सतगुरु ने है खोला देखो | अंतर बंद केवाड़ |
मन चित लावो गुरु चरनन में | नाम भजन आधार |
सतगुरु जयगुरुदेव
प्रेमियों सदा-सर्वदा से सन्त-सतगुरु अपने संगत को बराबर सचेत करते रहे है की बच्चू लग जाओ ,सुमिरन ध्यान भजन में, नाम भजन में, आगे खराब समय आ रहा है | बताते चेताते चले आये | इस समय भी बता रहे | चेता रहे है की जगत के कार्य सब झूठे है ये जो कार्य करते हो पेट भरण के लिए इधर उधर उलटी हरकते जो करते हो ये सब मिथ्या हैं असली कार्य तो हैं नाम भजन का जो परमार्थी कमाई है वो नाम भजन की है सुमिरन भजन ध्यान की है | जो तुम्हे समय मिले अधिक से अधिक जितना अधिक समय मिले तो तुम नाम-भजन कर लो नाम-धन की कमाई कर लो अंतर में बैठो और उपर में चलो | देखो कुल-धनियों को खुश करो जो तुम को मांग कर के लाये तुम भी उन्हें खुश कर के और इस देश से निकल चलो | अपने देश को चलो | ये देश सच्चा नही वो देश परम अलौकिक है जहाँ से तुम आये हो वहा कोई दुख नही , किसी प्रकार का चिंता नही , किसी प्रकार का लड़ाई-झगडा झंझट नही | न कुछ बनता है न कुछ बिगड़ता है वह एक रस एक सामान होता है | "सब दिन होते एक समाना " एक जैसी सब चीजे हैं | उसको सत्य देश कहते हैं | सत्य समान वहा हर कथा | वही पर रोज-रोज सत्संग होता है सत्य का , वही सत्य के चरणों में घुल-मिल कर के सारी सूरतें रहती हैं | सतगुरु की दया मेहेर आठो याम बरसती रहती है | आठो याम दर्शन करती | थिथोले भरती रहती हैं | और सूरतें जिवात्मयें अपने-अपने में मदमस्त रहती हैं और वही गुरु का नाम भजन गाती रहती हैं |
सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु चितवन करो अंतर में | चढो धुरी के धाम |
निज बिंदु आधार सिन्धु का | नाम आधार मझार |
चमक नाम की आवे अंतर | जब सतगुरु से हो प्यार |
गगन मगन चड़ी उपर चलियो | खुले जाये द्वार किवाड़ |
घट में घाट , घाट पर सतगुरु | चरण-बंदना नाम आधार |
घाट के उपर करो आरती | चमके द्वार किवाड़ |
गुरु की मोती अधर में चमके | सतगुरु नाम आ|धार
सत्य शिरोमण सत्य के साईं | शब्द भेद आधार |
हरपल मन को दूर हटाओ | दया करो यही बार |
घट में घाट,घाट पर सतगुरु | आया द्वार तिहार |
हे सतगुरु मेरे विनय प्रार्थना | मुझको कर दो पार |

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 28 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नजर बीच बैठे है सतगुरु मालिक ,
घट में घाट घाट पर बैठक ,
जगह नहीं है खाली , घट बीच बैठे है सतगुरु मालिक,
दीन भाव से करो भजनिया, गठरी बंध जाए हाली ,
पुण्य करम की बंधे गठरिया , पाप करम हो खाली ,
अद्भुद सीतल निर्मल मालिक , दया मेहर करे हाली ,
राम राज प्रताप सु लागे, जैसे होत दिवाली ,
शीश झुकाओ सतगुरु चरणनन में ,
करो वंदना हाली , घट से घट संचार जुडोगो ,
रहे न कोई घट खाली , हर घट बाध्य बधाई बाजे ,
शब्द डोर झंकारी || सत्यगुरु जयगुरुदेव ||
देखो प्रेमियों ये देश है जहाँ मन दावं लगता रहता है और हर प्रकार के दावं लगते रहते हैं | मन में उठा पोह होती रहती है की, ये अच्छा ओ बुरा, ये बुरा ओ अच्छा, ये सही ओ गलत | पर निशाना गुरु को रखो जो कहे की ये सही तो एक बार में दावं लगेगा मान के चलो की कहा की ये सही है बच्चू कर लो इसको, नहीं बात समझ में आती तो फिर कहेंगे और आप गुरु महाराज से विनती करो की गुरु महाराज हमें तीन बार बताओ कही दावं तो नहीं लग रहा | और हमें वही पर पंहुचा दो वहीँ से बुलावा आ जाये और हम वहीँ सचर हो जाये और आप का काम करें और आप की दया मेहर पूरी हो | प्रेमियों हर प्रकार के दावं हर प्रकार के जुगत लोग लगाते रहते हैं की हमारा काम बन जाये हमारा काम बन जाये | लोग अपने अपने जुगत लगाते रहते हैं और तुम जुगत लगाओं अपने नाम भजन की हमारा काम बन जाये और हम गुरु महाराज से मिल जाये और ऊपर चढ़ चले | प्रेमियों जब संतो ने नाम भजन का रास्ता आप को बता दिया तो जैसे भी आप से बन पड़े वैसे कर लो | नाम भजन कई तरह से होता है मन में लगन लगी रहे और आप नाम बोलते रहो -
सतगुरु नाम भजन को गाना सतगुरु में मन को लगाना ,
सत्मन हो सूरत हमारी , सत हो मिल जाना ,
जब चढ़े सुरतिया अम्बर तो सत्य देश दिखलाना ,
सतगुरु जी मेरे प्रीतम , हे मेरे सवारिया मालिक ,
हो शब्द सिरोही दाता , तुम दिव्या देश दिखलाना ,
हे सावर सूरत मूरत , सुत चरणनन में मिल जाये ,
हो जीवन मरण से मुक्ती , ओ परम पदा को पाये ,
रहे जबतक स्वांस की पूजी ओ नाम की महिमा गए ,
फिर नाम भजन को गाये तुम्ही में मन को लगाये ||

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
गगन बीच चमके पावन नाम , यही गगन में मारग जाता ,
सतगुरु जी के धाम , नाम डोर की सड़क बानी है ,
सत इसकी पहिचान , मन चित रक्खो नाम भजन में ,
भेदो गगन मंझार , सिंधु अपार सत्य की सत्ता ,
नाम बिंदु आधार , नामी तुमको मिलेंगे प्रीतम ,
नाम से जोड़ो तार , पार चलोगे सत्य देश में ,
हो जावे उद्धार , मन चित रक्खो गुरु चरनन में ,
यही सच्चे आधार |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
देखो प्रेमियों लगन सबसे बड़ी चीज है , लगन लगी तभी काम हुआ , मीरा बाई को लगन लगी तो नाम भजन गाया | दुनिया को बताया , खुद भी जगी और बहुतों को जगाया , निज घर गई बहुतों को पहुचाया उनके गुरु महाराज समरथ थे उन्होंने वहां उनको पहुंचा दिया | आप के भी गुरु महाराज समरथ है आप भी ठीक से लग कर करो आप भी पहुँच जाओगे , नामी अनामी सत्यनामी सतगुरु , समरथ संत सत्ता , सनातन धर्म के पूर्ण प्रतिपालक मालिक सतगुरु संत ही होते है | एक वक्त में १०-२० संत नहीं होते हैं , जाग्रत संत एक ही होता है और गुप्त कई कई संत होते हैं पर प्रकट में एक ही होते हैं और पर मुक्तारों के मुख्तार तो एक ही होते हैं पर छोटी मोटी जगह कई कई हो सकते हैं उस देश में आने जाने वाले | जिसको मालिक पावर दे दें या खुद सारा काम करें , पावर ही देते हैं काम तो स्वयं ही करते हैं | साडी सृष्टि का संचार और सारा संतुलन खुद ही देखते हैं | अपनी सांगत की संभल स्वयं गुरु ही करते हैं | कोई दूसरा नहीं करता हैं | गुरु का कभी भंडारा नही होता उनका जन्म दिन होता है ओ तो रोज जाने आने वाले हैं , छिन में गए और छिन में आ गए , ऐसे सतगुरु का आप जन्म दिन ही मना सकते हो भंडारा नहीं मनाया जाता हैं और उस मालिक को आप क्या दोगे और क्या दिखाओगे जिसने तुमको स्वयं सबकुछ दिया हो | सबकुछ तुमको बताया हो सबकुछ तुमको दिखाया हो और चौबीसो घंटे आप पर दया मेहर करते हों | ऐसे नामी आप क्या दोगे | आप तो खुद ही भिखारी हो , भीख मांगते रहो दया मेहर की जो कुछ मिल जाये use रखते जाओ अपनी झोली में , और चुपचाप गुरु सरनागत रहो | गुरु के चरणो में बैठ कर नाम भजन गाते रहो | जितने दिनों की स्वांसों की पूजी मिली है उतने दिन लग करके सुमिरन ध्यान और भजन करो | यदि स्वस्थ्य अस्वस्थ है तो मुह तो नहीं अस्वस्थ है मुह से नाम भजन बोलते जाओ | गुरु का नाम बोलते रहोगे तो दया मेहर का तार जुड़ा रहेगा | गुरु ही सबका परमात्मा है वही सबका मालिक है वही सर्वोपरि है और वही सबका प्रभु है | जो प्रभु से मिला दे जो सतगुरु से मिला दे वही तो सच्चा राम हैं | वही सच्चे कृष्णा है वही सच्चे हनुमान हैं | जो पांचों धनियो के दर्शन करा दे और जहाँ का भेद बताये वहाँ ले जाकर दिखा दे उनके दर्शन करले जीवात्मा पवित्र और निर्मल हो जाये | वहाँ का आना जाना सुरु हो जाये और दया मेहर हो जाये , ऐसा नाम भेद बताने वाला नामी अविरल और अचल होता है | उसके दया मेहर का बखान और गुरु गुण गान मुख से तो नहीं किया जा सकता है और न कागज में लिखा जा सकता है | उसको कोटनि कोट प्रणाम और उसकी कोटिन कोटि वंदना की ज सकती है |

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विनय मन भजन गुरु का नाम , ध्यान भजन कर गुरु चरनन की ,
हो पूरा कल्याण , धसी सुरतिया सत्य देश में ,
सत का पावे प्रमाण, पाँचों धनियों के दरश जो अंतर ,
ब्रह्मा विष्णु महेश, महाकाल पुरुष चतरधारी,
दयावान देवी महतारी, बमबमभोले शिव त्रिपुरारी ,
ध्वजा के रक्षक वीर मुरारी , हनुमत सर और महा माइया,
मेहर करे देवी कल्याणी , दया मेहर हो सभी देवन की ,
सभी दिवियां सीताचारी, प्रभु राम का देश निरलो ,
मन चित नाम भजन में ल लो , सतगुरु हुकुम यही है बन्दों ,
नाम भजन को अंतर गा लो , बजे बधाई अंतर घट में ,
खुल जाएँ बज्र लगो जो तालो , विनय करू सतगुरु साईं की ,
सतगुरु चरनन में मन डालो ,||सतगुरु जयगुरुदेव||
प्रेमियों हमारे गुरु महाराज का हमेशा से हुक्म रहा है की किसी की निंदा आलोचना न करना | समस्त देवी देवताओ को नमन करते रहना चर अचर में | अपने पाँचों धनियो की वंदना करते रहना अपने संत सतगुरु की वंदना करते रहना | अपने सतगुरु के आदेश का पालन करना | उनकी दया मेहर को ले करके आगे को बढ़ना और आगे रास्ते पर चलना और नाम भजन को गाना | अंतर में सभी धनियो को प्रणाम करना और उसके बाद सुमिरन ध्यान और भजन करना | यही गुरु महाराज ने सिखाया है | सर्व प्रथम गुरु की चरण वंदना के बाद हम पांचो धनियो को प्रणाम करते हैं और उसके बाद सुमिरन ध्यान और भजन करते हैं | यदि पांचो धनियो को प्रणाम नहीं करेंगे तो उनकी दया मेहर अंतर में नहीं होगी | इसीलिए सतगुरु को प्रणाम करने के बाद पांचो धनियो को प्रणाम करते है और फिर सुमिरन ध्यान और भजन करते हैं | सब को यही आदेश है की अंतर दृष्टि प्रणाम करके ही सुमिरन ध्यान और भजन करेंगे | जब आप किस धनी को अंतर में प्रणाम करेंगे तो उसकी दया मेहर मिलेगी और ओ खुश हो जायेंगे और तुम पर दया मेहर विराजेंगी और देखेंगे ऊपर से की कौन हमारा नाम पृथ्वी लोक में ले रहा है | और उनकी दया जब होगी तो आप को दिखाई भी पड़ेगा और सुनाई भी पड़ेगा | सतगुरु जयगुरुदेव नाम प्रभु सतगुरु का है , हमारे स्वामी जी महाराज ने जगाया है , उन्ही की दया मेहर है और उन्ही का दिया हुवा है | यहाँ जो अखंड रूप से विराजमान सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला , अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला , इन दोनों मंदिरो में गुरु महाराज की और पांचों धनियों और समस्त देवी देवताओं , सतयुग जी महाराज, महाकाल पुरुष और शंकर शिव भोले की दया कृपा है | सतगुरु की दया कृपा है | यहाँ जो भी प्रेमी आता है और सच्चे मन से ध्यान और भजन करता है उसकी दिव्य आँख शिव नेत्र खुल जाता है उसे अनुभव होने लगता है और उसे दिखाई सुनाई अंतर पड़ने लगता है| जो गुरु महाराज ने अंतर हुक्म किया उसका पूरा का पूरा प्रमाण दे रहे हैं | सतगुरु ही दे रहे है गुरु महाराज ही दे रहे है कोई मानव पोल वाला नहीं दे रहा है | हमारे आध्यात्मिक रूप से विराजमान सतगुरु और हमारे गुरु हर प्रकार से हाजिर नजीर इस धरा पर और उन्ही की दया कृपा से ये सारा काम हो रहा है | सेवादार सब है न कोई छोटा है न कोई बड़ा है सब को सेवा दी है जिन्हे अनुभव कलश मिला है उन्हें भी गुरु महाराज ने अनुभव करने का हुक्म किया है | गुरु महाराज ने सन १९५२ से सन २०१२ तक बहुत कुछ बताया और समझाया और खूब सत्संग सुनाया | और गुरु महाराज ने यही कहा की बच्चू जब भी आया करो तो कुछ कमा करके लाया करो |
तो गुरु महाराज आप से नाम की कमाई कमा कर लेन के लिए कहते थे न की आप से रूपया और पैसा मांगते थे | गुरु महाराज बहुत ही दाता दयाल थे और दाता दयाल अब भी है और दया मेहर वर्षा रहे हैं |

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नयन बीच देखो सतगुरु मूरत, दरश परस कर सतगुरु जी का ,
रीझे सबकी सूरत , नयन बीच देखो सतगुरु मूरत,
नाम विंदू सतगुरु आधीना , जिन सेवा भाव उन्हें ही दीन्हा ,
लगन तान मन बीन , नयन बीच देखो सतगुरु मूरत,
श्रवण बीच तुम्हे ध्वनि सुनावे , सतगुरु में होवो लीन,
पांच तत्व का बना पिंजड़ा, एक दिन हॉवे बिलीन,
धसी सुरतिया सत्य देश में , सतगुरु में होवे लीन,
शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में , ध्यान भजन मन दीन्ह |
सतगुरु जयगुरुदेव||
प्रेमियों सतगुरु से नाम मिल जाने के बाद , अंतर में जब तक दिखाई सुनाई नहीं पड़ता , तब तक साधना अधुरी है , सतगुरु यही कहते है की भाव के बस , बिनय प्रार्थना करके सच्ची अंतर घाट झरोखे में बैठ करके नाम भजन करो ,और उसमे आत्म ज्ञान हो आत्म बोध हो , तुम्हे दिखाई बड़े सुनाई पड़े वही सच्चा काम है | अगर दिखाई सुनाई नहीं पड़ता आत्म ज्ञान आत्म बोध अंतर नहीं होता तो जैसे आये वैसे चले गए इसिलए गुरु महाराज कहते थे की हमारे सामने जब आया करो तो कुछ कमा करके आया करो | अब भी वही आदेश हैं गुरु महाराज का की सैन बैन में जैसे बन जाये वैसे कुच्छ न कुच्छ किया करो | देने वाले तो सतगुरु हैं उनके पास देने का खजाना है वे दाता हम सब भिखारी हैं हमें हमेश सतगुरु से अनुभव अनुभूति की भीख और दया दुवा की भीख हमेशा २४ घंटे मांगते रहना चाहिए | वो हमारे सतगुरु समरथ दाता दयाल हैं वो हरदम दात देते ही रहते हैं और आगे भी देते रहेंगे | आप सब का कर्त्तव्य है आप सब लग करके रोज गुरु के चरणो को निशाना बना करके सुमिरन ध्यान और भजन करो | आगे समय की परिस्थिति क्या होगी ओ तो संत सतगुरु ही बताएँगे और सबको इशारा करते जायेंगे | तो प्रेमियों आप को सचेत रहकर सुमिरन ध्यान और भजन करना है और सुमिरन ध्यान और भजन में मन लगाना है और गुरु के चरणो में चौविशो घंटे विश्वास रखना है | सतगुरु जयगुरुदेव नाम ही आप की रक्षा करेगा सतगुरु ही आप की रक्षा करेगा दूसरा कोई आप का रक्षक नहीं | सतगुरु के संग समस्त देवी देवताओ की दया दुवा और आशीर्वाद है और सतगुरु बिना कोई आशीर्वाद नहीं | बिना गुरु किये हुए तो कोई काशी, वनारस , जगन्नाथपुरी पिंड दान करने भी नहीं जा सकता है इसलिए तुमको सतगुरु करना बहुत जरुरी है | जिन्होंने सतगुरु कर लिया है तो सतगुरु ने नाम दिया नाम धन जब मिल गया तो भजन करना बहुत जरुरी है |
सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
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Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
निशाना मालिक से अपने लगाते चलो, अंतर ध्यान भजन मन गाते चलो ,
हां हमे कोई चूक होगी नहीं , ऐसा अद्भुद मिलेगा न धोबी नहीं ,
तेरी मैलाई सारी अब धूल जाएगी , पल में नाम भजन सब बन जाएगी ,
तार संसार का तार ढीला करो , आतम बोध का काम जल्दी करो ,
तार से तार सतगुरु से तुम जोड़ लो , शब्द की धुन सुनो शब्द की धुन सुनो ,
शब्द नमी अनामी तक ले जायेगा , हमको अंतिम शिखर पर ओ पहुचायेगा ,
नाम नामी ने तुमको है सच्चा दिया , अपने नामी का तुम सब जो गुण गाओगे,
अपने मालिक की मेहर तुम बहुत पाओगे , सतगुरु नाम धन नहीं जो मिला , ओ व्यक्ति अब तो पश्तायेगा ,
हम को तो है मिला खजाना बड़ा , अपने खजाने को हरदम जुटाते चलो ,
नाम सतगुरु का सब मन में गाते चलो |
||सतगुरु जयगुरुदेव ||
प्रेम भावना मन अंतर में ,चलो गुरु के धाम ,
चंचल चितवन करे अंतर में , करो सतगुरु को प्रणाम,
प्रेमियों सर्बप्रथम अपने गुरु को प्रणाम करते हुए नाम भजन उसके बाद करते हैं , पहले गुरु मालिक की चरण वंदना बोलते हैं , गुरु मालिक को प्रणाम करते हैं तत पश्चात सुमिरन ध्यान और भजन करते है , और जिन जिन धनियो को बताया है उनको खुश करते हैं , उनका नाम लेते हैं जपते हैं अंतर में प्रणाम करते हैं और उनसे कहते है की हमपर दया करो जैसे हमारे सतगुरु हमपर दया करते हैं वैसे ही आप भी हम पर दया करो , हम सबसे छोटे हैं और सकल पसारे के लोग हमसे बड़े है | हम सबसे दीन गरीब जीव गुरु मालिक के हैं हम पर दया करो मेहर करो , हम आप को कुछ दे नहीं सकते , हम आप का नाम ले सकते हैं| गुरु के संग मन लगाते हुए और गुरु की भाव भावना को गुनगुनाते हुए नाम भजन गाते हुए अपने देश की तरफ अग्रसर रहते हैं , जो भी टुटा बन सके सुमिरन ध्यान और भजन आतम बोध आतम ज्ञान करते चलते हैं |
*प्रथम वंदना गुरु चरनन की , जिन ने दीन्हा नाम |
नाम भजन कर तारे ये जीवा , अंतिम छण तक काम |
गुरु महाराज की चरण वंदना सर्व प्रथम करते हैं , तत पश्चात कुछ और काम करते हैं | जिन्होंने हमको नाम दिया और अंतिम छण तक काम आएगा , नाम ही हर प्रकार की दया वरसायेगा , गुरु ही हरप्रकार की दया बरसायेगा दूसरा कोई दया वर्षा नहीं सकता | गुरु स्वरुप कोई भी हो ओ छोटा गुरु हो या बड़ा हो ओ कोई भी हो जो भी संत सतगुरु का काम कर रहा हो धर्म प्रचार कार्य कर रहा हो ओ सराहनीये है| कम से कम जीवात्माओं को जागते हैं और उनको धर्म के रस्ते पर लगाते है और शाकाहारी बनाते हैं यही बहुत बड़ी बात है | किसी की निंदा आलोचना नहीं करते और न किसी को कुछ कहते है | जैसा जो करेगा ओ भरेगा | जैसा हम करेंगे वैसा हम भरेंगे जैसा आप सब करोगे आप सब भरोगे |
*दयालु मेरे सतगुरु दीन्ह नाम दान , नामदान सर्वोपरि दान है ,
अंतिम तक आवे काम , नाम भजनवा रटन करो सब ,
यही तो सच्चा जान , मन चित धारलो गुरु चरनन में ,
सब बनजावे काम , नाम भजन बल इतना है प्रेमियों ,
अंतर दिखे सत धाम , प्रभु राम और ऊँकार जी ,
ररंकार निज धाम , महाकाल पुरुष के दर्शन पाओ ,
सत्य देश अभिराम , चितवन चिंतन करो नाम की ,
बन जावे निज काम , सगरी संगत है सतगुरु की ,
सब के सच्चे राम , प्रीतम मालिक परम स्नेही ,
नहीं तो गए निज धाम , घनघोर अनुभव हो अंतर ,
सच्च ये प्रमाण, नित नित अद्भुद देखो अंतर ,
पियो नाम का जाम, शीश झुकाओ सतगुरु चरनन में ,
जिनने दीन्ह है नाम || सतगुरु जयगुरुदेव ||
संत सतगुरु जब अधर से आते हैं तो पूरी पूरी दया मेहर बरसाते हैं | समस्त जोवो पर समस्त खिलकत पर मेहर करते हैं | सब को एक समान देखते हैं | सब को रास्ते पर लगा कर रखते हैं | सब को नाम की डोरी में बांध देते हैं | सबको दया मेहर देते हैं किसी को छोटा बड़ा नहीं देखते हैं ओ सबको बराबर समझते हैं | जो नाम की कमाई गुरु आज्ञा से शिष्य करता हैं उसपर विशेष दया कृपा होती है और गुरु महाराज उसको दूर ही रखते है पास नही रखते | और दूर से पूरी देखभाल करते हुए पूरी की पूरी दया मेहर देते हैं | ऐसे हर प्रेमियों के लिए सतगुरु का बराबर हुकुम रहा की बच्चू एक घंटे सुबह और एक घंटे शाम हमें दे दो सतगुरु जयगुरुदेव जयगुरुदेव बोलते रहो , और मालिक को याद करते रहो , स्वांसो की पूजी खर्च हो रही है इसमे अपना कुछ काम बना लो | ये देश वेगाना है यहाँ हमको आप को किसी को यहाँ नहीं रहना है जो आया है ओ जायेगा | यहाँ आने जाने का सिलसिला लगा रहेगा क्योकि यहाँ इसका विधान हैं | चाहे जीव छोटा हो या बड़ा , संत महात्मा जो आये गए और पुनः आ गए यहाँ तो कपडा बदलने का विधान है तो कपडा तो बदलना पड़ेगा और निज घर जाने का भी विधान है जिन्होंने नाम की कमाई कर ली मालिक के साथ जुड़ गए अपने सतगुरु के साथ जुड़ गए , अपने गुरु को २४ घंटे याद रखा तो गुरु ने उसको दया मेहर करके उसको निज धाम पहुंचा दिया , उस घर पंहुचा दिया जहा से उसे वापस नहीं आना है , ओ अपने चैतन्य प्रभु में मिल गया और अपने चैतन्य प्रभु के यहां रहेगा |
सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 15 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
विमल मन नाचे सतगुरु अंगना, सत्य सरूपी प्रीतम प्यारे ,
यही है मेरे सजना , यही अनाम श्रुति मंगल स्वामी ,
सतगुरु नामी पुरुष अनामी , हे सत्पुरुष कोटि परनामी ,
मन चित लगे नाम भजन में , नाम नामनी तुम्हरी स्वामी ,
पद पंकज में रहूँ हमेशा , श्रद्धा भाव से करूँ नमामी,
मेरे मालिक मेरे स्वामी , सतगुरु जयगुरुदेव अनामी ,
सतगुरु जयगुरुदेव|
मालिक का नाम बिंदु आधार सतगुरु का दिया हुआ नाम रतन धन ही बहुमूल्य अमोलक वस्तु है उसको संभाल करके प्रेमियों को रखना चाहिए , धीर गंभीर हो करके मालिक की कदम पोशी करते हुए , झुकते हुए , चरण वंदना करते हुए , मालिक से अपने गुनाहो की माफ़ी मांगते हुए , मालिक से प्रार्थना करते रहना चाहिए की हे मालिक हम पर दया करो की हमारा सुमिरन ध्यान और भजन बन जाये , आपके चरणो में हमारा मन लगे , आपके श्रीचरणों में हमारा मन लगे , हमारा मन कुप्रभाव में न भागे , आप के ही साथ रहे , और आप का ही गुण गाये | सतगुरु ने हमको आपको बारम्बार समझाया और चेताया की आगे ख़राब वक्त आएगा और खराब समय में भजन ही काम आएगा , अगर आप सुमिरन ध्यान और भजन करते रहोगे तो मैं तुम्हारी मदद करता रहूँगा , तुम मुझको याद करते रहोगे तो मैं आप को याद करता रहूँगा | गुरु महाराज ने सबकुछ चेताया और बताया और गुरु महाराज ने जो भी भविष्यवाणी की हैं ओ सब अकाट्य हैं उसे कोई काट नहीं सकता | समय आने पर गुरु महाराज की साडी भविष्यवाणियां पूरी होंगी | समरे समरथ संत सतगुरु हरदम हाजिर नाजिर हैं ओ हर तरह से प्रकट और विद्यमान हैं | कहते हैं की जब तक नामी रहता है तब तक नाम का असर रहता है , अंतर में दिखाई सुनाई तभी तक पड़ता है जब तक सतगुरु धरा पर होता है ओ किसी भी पोल पर हो किसी भी जगह हो किसी भी तरह हो | यदि सतगुरु मानव पोल में नहीं है तो नाम का असर खत्म हो जाता है नामी के चले जाने के बाद तो प्रीमियो जब अनुभव हो रहा दिखाई सुनाई पड़ रहा है तब आप सबको समझना चाहिए की हमारे नामी हमारे स्वामी हमारे पिया इसी धरा पर मौजूद हैं | पर यदि आप को इस बात का बोध न हो ज्ञान हो तो आप को अंतर समझना चाहिए की ये हमारा घट है और घट में घाट है और घाट पर गुरु की बैठक है और जब तक तुम जीवित हो तब तक आप के घाट पर गुरु महाराज भी जीवित है , यही हमारा असली गुरुद्वारा है | अंतर में जो घट है घट में जो घाट है उसमे गुरु की बैठक है इसी को अंतर कहते है , अंतर में जहाँ गुरु की बैठक है वही हमारा असली गुरुद्वारा है हमें रोज रोज अपने गुरूद्वारे में जाना और गुरु के आगे चरण वंदना करना और उनसे अपने गुनाहो की माफ़ी मांगना | और अपने देश ले चलने की विनय प्रार्थना गुरु महाराज से करते रहना है | ये सब अंतर में होगा | गुरु महाराज ही सबको इस पार से उस पार ले जायेंगे और कोई दूसरा नहीं है हमको तुमको पार ले जाने वाला ये प्रेमियों मन चित लगाकरके सुमिरन ध्यान और भजन करो | वक्त बहुत ही नाजुक है और नया मोड़ ले रहा है आगे क्या क्या होगा इसको गुरु महाराज ही बताते और चेताते रहेंगे | आप सभी कड़े रहो और खरे रहो और सुमिरन ध्यान और भजन करते रहो तो अंतर में दिखाई सुनाई पड़ता रहेगा और अंतर अनुभव होता रहेगा और मालिक के अंतर में दर्शन होते रहेंगे और जब समय आएगा तो गुरु महाराज के बाहर से भी दर्शन होंगे क्योकि उन्होंने कहा है की बच्चू मैं इसी धरा पर हाजिर नाजिर हूँ | जब इसी धरा पर है तो आज नही तो कल जैसे प्रभु राम ने समय का इंतिजार किया कृष्ण ने समय का इंतिजार किया उसी तरह से गुरु महाराज भी समय का इंतिजार कर रहे हैं उसी तरह से आप सब भी इंतिजार करो समय आने पर सारा काम हो जायेगा |
प्रेमियों जब सर्वप्रथम गुरु महाराज की दया कृपा हो जाती है तब अपने सतगुरु के अंतर दर्शन होने लगते है, धीरे धीरे छोटे मोटे अनुभव होते रहते हैं फिर जब सूरत जीवात्मा की आँख खुलती है तब चरण कमल और प्रभु राम के दर्शन होते हैं, दिव्य लोक, त्रिलोक के दर्शन होते हैं , ब्रह्मा विष्णु महेश सब के दर्शन होते हैं , शिव पूरी , ब्रह्म पूरी और सत्य के को देश हैं इन सब के दर्शन होते हैं और ये सब मालिक की दया कृपा से दर्शन होते हैं | जिसको जैसी आशा होती है की हम ये देखेंगे , इधर से देखते हुए चलेंगे उधर से गुरु महाराज दर्शन कराते हुए पहला धाम , दूसरा धाम , तीसरा धाम , चौथा धाम दिखाते हुए पांचवे धाम पर पंहुचा देते हैं | सूरत धीरे धीरे बलवती हो जाती है आने जाने लगती है | प्रेमियों जब आप लगकर सुमिरन ध्यान और भजन करोगे और गुरु के सरना गत रहोगे और उन्ही को अपने निशाने पर रखोगे तभी ये सारा काम सम्भव होगा | यदि आप अपने गुरु महाराज को भूल जाओगे और कहोगे की गुरु महाराज चले गए तो तुम्हे अंतर में कोई अनुभव नहीं होगा न दिखाई देगा न सुनाई देगा |
भाई जब आप ने हाथ छोड़ दिया तो कौन आप को उस पर ले जाये नदी में डुबो या निकल जाओ इसको तो तुम जानो | और यदि हाथ पकडे रहोगे और नाव पर सवार हो तो मल्लाह आप को उस पर ले जायेगा और जो उन्होंने दक्षिणा मांगी है ओ नाम की क़ि भजन करो वही हमारी दक्षिणा है तो सब लोग लग कर भजन करो और गुरु महाराज में लीन रहो |

सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Malik ka Sewadar - Gurubhai Anil Kumar Gupta

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 मई २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
सतगुरु जयगुरुदेव :
नाम में मनवा डालो सतगुरु , अंतर तेरा आन खुलेगा ,
शब्द सुनो दे कान, निर्मल कंचन शब्द जो उतरे ,
घट के भीतर आन , काल कोठरी काला काजल ,
उज्वल करता नाम , गुरु गोविन्द सतगुरु जब आवे ,
सत्य बसे सतनाम , पद पंकज सतगुरु के रहियो ,
सच्चे प्रीतम जान , नमन प्रणामी अपने गुरु की ,
वही अमृत की खान , दया मेहर सतगुरु की पाओ ,
कर अमृत का पान , सतगुरु मेहर में सब जन रहियो ,
मनन करो गुरु नाम , पद पंकज पर शीश झुकाओ ,
शरणा गति गुरु नाम | सतगुरु जयगुरुदेव ||
प्रेमियों मालिक ने बहुत कुछ बताया समझाया सत्मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया , शाकाहारी सदाचारी रहने की बात बताई | मेहनत ईमानदारी से काम करते हुए मालिक को सुबह शाम एक - एक घंटे देने की बात कही, यही गुरु दक्षिणा मांगी गुरु मालिक ने और यही कौल करार | कराया सभी मानव जाती मानव पोल चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी का ये धरम है की प्रभु की भक्ति करे गुरु की भक्ति करे गुरु के बताये हुए मार्ग पर चलते हुए प्रभु राम , कृष्ण और पांचो धनी और देवी देवताओ की आराधना करे | समरथ संत सतगुरु की दया मेहर से सत्य की प्राप्ति होती है नाम की प्राप्ति होती है सभी देवी देवताओ समेत प्रभु राम के दर्शन होते है| अंतर में बहुत से लोको के दर्शन होते है | ब्रह्म , पारब्रह्म, महाकाल पुरुष , सत्य धाम के दर्शन हो जाते है | और गुरु महाराज की दया मेहेर से सभी लोको के दर्शन हो जाते है , ये प्रेमियों निशाना गुरु महाराज से रख करके हरदम अपने अंतर में गुरु को बिठा करके और पूर्ण रूप से हाजिर नजीर मानकर साधना की जाती है | जब आप अपने गुरु को हाजिर नजीर मानकर साधना करोगे तभी कुछ काम बनेगा | जैसे की प्रभु राम की मूर्ति रक्खी है तो प्रभु राम को उसके अंदर देखोगे की प्रभु राम हमारे यही बैठे हुए है और यही विराजमान है तब उन्हें जल चढाओगे पूजन करोगे और जो मांगोगे ओ तुम्हे प्राप्त होगा यदि तुम्हे श्रद्धा नहीं है प्रेम नहीं है की इस मूर्ति में हमारे मालिक नहीं है तो कुछ नहीं प्राप्त होगा | वैसे ही ये घट है और घट में घाट है और घाट पर हमारे सतगुरु बैठे हुए है और सभी देवी देवता की बैठक है और सभी धनियो की बैठक है अगर आप ये मानकरके आप ध्यान लगाओगे , ज्ञान चछु शिव नेत्र में देखोगे तो उसमे आप को दिखाई देगा सुनाई पड़ेगा | और मालिक की दया मेहर प्राप्त होगी | लग करके सुमिरन ध्यान भजन करना | जब नवरात आये तो महामाइयों का उपवास करना | नवरात्रि का मतलब होता है तीन तीन दिन का उपवास करके तमो गुण रजो गुण सतो गुण को समाप्त करके सत्य में मिल जाना, यही काम होता है | आप सभी लोग निर्विघ्न निष्कंटक होकर प्रभु का भजन करते रहो | मालिक में मन लगते रहो समय जीर्ण शीर्ण और ख़राब चल रहा था अभी मालिक की क्या मेहर हुयी है ओ तो कोई जान नहीं सकता , ओ जो मेहर हुई है बहुत बड़ी मेहर है और ऐसी ही मेहर बानी रही तो जल्दी से जल्दी समस्त देश और दुनिया में जाग्रति आ जाएगी | गुरु महाराज की दया मेहर हो जाएगी और गुरु महाराज प्रतियक्ष प्रकट हो जायेंगे तो दर्शन भी मिलेगा | नामी कोई हांड मांस का पुतला नहीं होता है , मानव पोल पर आते है ओ नामी और उनके लिए कोई मुश्किल नहीं चाहे यहाँ बैठे या कही और, ओ चेहरा चमचमाता रहता है सारे विश्व को ओ प्रकाश देते रहते है हर प्रकार से ओ प्रकाशवान है | हम सब उन्ही के रास्ते पर चल करके नाम भजन को गाते रहे और अपने सतगुरु में मन लगाते रहे |
सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता

अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १०-०५-२०१५ प्रातः ५:५९

बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव
नामी धाम की नूरी सूरत उतर के आई ज़मीं पर धाम धाम हर धाम पर छायी है |
मेरी नूरियत ज़मीं पर छा रही है |
समूचे एशिया का नक्शा बदल जायेगा |
फ़कीर समरथ हैं जो चाहेंगे वही होगा |
बिना उनकी मौज से सृष्टि में कंपन भी नहीं हो सकता है |
देवी देव दनुज मनुज सब वही करेंगे जो मैं चाहूँगा |
मुझसे ही खेल खेलते हो | महात्मा सब जानते हुए चुप रहते हैं | मेरे प्रेमी जो मेरे पास मेरे द्वार आ जायेंगे , उन्हें बचा लूँगा बाकि जो बचेंगे वो जाने उनका काम जाने |
धरती पर महातांडव तो होकर रहेगा |
सतगुरु जयगुरुदेव नाम मुसीबत की घडी में सुरक्षा कवच सिद्ध होगा |
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव |
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ४/०५/२०१५ प्रातः ३:२१

सतगुरु का पत्र साधक को
बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरुदेव |
अब चंटई चालाकी छोड़कर सतगुरु के खरे निशाने पर आ जावो | दिनभर अड़ंगे ढकोशलेबाजी करते रहते हो , सम्भलो | एक जलजला आएगा सब जलमग्न हो जाएगा | कुदरती आंधी में बौखला जायेंगे | दिन में अन्धेरा नजर आएगा राह नजर नहीं आएगी | अपनी माथा पच्ची धूर्तबाजी से बाज नहीं आते | सतगुरु को नीचा दिखाने पर तुले हो | जो सतगुरु पर / मुझ पर कीचड उछालने पर लगें है | उनका कभी कल्याण नहीं होगा | चाहे जितनी मेहनत करे , एड़ियां घिसे | मेरे पास पीछे मुड़कर देखने का समय नहीं है | बच्चे अपने कार्यों को दिए हुए आदेशों निर्देशों का पालन करते हुए , ठीक से करो | ढुलमुल रवैया छोड़कर आगे बढ़ो | आगे खतरनाक वक्त आ गया है | भविष्यवाणी करना छोड़ दो | बहसबाजी में अमूल्य समय मत दो | सबकी भविष्यवाणी मै काट दूंगा , लेकिन मेरी एक भी बातें इधर उधर होने वाली नहीं है | बच्चे अपने सतगुरु जयगुरुदेव के सिवा किसी की बात सुनना नहीं | मै जो भी कहूँगा सब होकर रहेगा | बच्चे बच्चियों तुम सब लोग आज के आरण में निष्ठापूर्वक परिश्रम करो | आगे सतयुगी अतिसय रूहानी राज्य तुम्हारा है | तुम सबका है | देवी देवता भी मेरे बच्चों के गूढ़ रहस्य्मय भेद समझ नहीं पायेंगें | आगे सतयुगी महायज्ञ होगा / होने जा रहा है |
"सतयुगी / सतगुरु विदेह सुतः यह होई , सतयुगी महायज्ञ अब जल्दी होई |"
मेरे सतयुगी सात घोड़े , तीन अश्व अतिरिक्त सभी दिशाओं में विचरण कर रहें है | मेरे निज बच्चे ही उसको बांध पाएंगे और किसी के माई के लाल में हिम्मत नहीं है , की हाँथ लगा सके | अब अपनी -२ कमान सम्भालो और शुभ मंगलमयी सतयुगी मनोहारी मुहूर्त में विचरण करते हुए , सतयुगी शुभ कार्यों का संपादन सतगुरु से मिलकर करो | शक्ति मै प्रदान करूंगा | सच्चे सतगुरु भक्त बनकर सामने तो आवो , पीठ दिखाने से काम नहीं होगा | आगे आवो देर मत करो | मेरा महायज्ञ होने जा रहा है | दिन तारीक का निर्धारण मै स्वयं करूंगा | मै निजधाम से आया बैठा जो हूँ |
बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरुदेव |
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १६/०४/२०१५

बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव
सतगुरु की ये वाणी अकाट्य है l अंतर से बहुतों को दिखा बता और समझा रहा हूँ l
आगे बहुत बड़ी तबाही का मंजर सामने आने वाला है l देश विदेश में सभी को बता रहा हूँ l सभी लोग जान लो और समझ लो l दूसरों को हो सके तो बता भी दो l जब वह मंजर तुम्हारे सामने आएगा तो अच्छे अच्छों के होश ठिकाने लग जायेंगे l उस वक़्त ये बातें समझ आएँगी और सतगुरु जयगुरुदेव नाम की महिमा समझ आएगी l अभी इसलिए बता समझा रहा हूँ ताकि बाद में ये न हो कि संत महात्माओं ने जाना नहीं बताया नहीं l
भारत सदा से आध्यात्मिक भूमि का गढ़ रहा है l आज भी है l भविष्य में पुनः भारत की आध्यात्मिक शक्तियों के आगे पूरा विश्व सिजदा करेगा l
यह चेतावनी विश्व स्तर पर जारी कर दो l कार्य तो पूरे विश्व में होने वाला है l आध्यात्मिक कार्य भारत से ही पूरे विश्व में किये जायेंगे l
आप सभी " सतगुरु जयगुरुदेव " नाम को जान लो l समय आने पर मान जाओगे l
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १७/०२/२०१५

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव
जेहि जानत जग जाई हेराई ,जानत तुम्ही ,तुम्ही होई जाई ||
अरे बच्चे जिसको जान लेने से / नाम लेने से जग के मोह बंधन काट जाते है | ढीले हो जाते है | वो प्रभु सतगुरु जयगुरुदेव आ रहा है | उसकी अर्चना करो , बन्दना करो |
हम सब तेरे , हम सब तेरी करें वंदना |
तन मन भक्ति ज्योति , हे माँ भरते चले |
तन मन भक्ति ज्योति , हे स्वामी हम भरते चले |
अब उस मंगलमयी प्रभु की माँ की आरती वंदना करो | अब इधर उधर न देखकर अपने सतगुरु को देखो
वो आ रहा है | अरे बच्चे सतगुरु तो इस धरा धाम पर औतार बनकर आते हैं , लेकिन उनके साथ बड़े अन्याय होते है | ईसामसीह को सूली और तुम्हारे सतगुरु को सलाखों के पीछे भेज दिया, २१ महीने
कड़ी जेल में , ऐसे निर्दोष सतगुरु जयगुरुदेव को रगड़ा गया | वो सामने कब आएंगे ? बच्चे जेल से छूटते ही तुम्हारा सतगुरु सामने आ जाएगा, उसके पैरों की बेड़ियां लगभग कट गयीं है | अब उसको कोई रोक नहीं सकता | अब सबके साथ बैठकर भजन करो | महात्माओं के ये रहस्य्मयी खेल , इसमें हैरान मत होना | जीवो को समझाने का रास्ते पर लाने का ये रूहानी तरीका बेजोड़ है | इसकी मिशाल बनने जा रही है | तुम्हारी परीक्षा की घड़ियाँ अब खत्म हुयी | अब बच्चे तुम सब खरे उतरे, अब तुम अपने सतगुरु के मार्ग दर्शन में रहकर सारे सतयुगी शुभकर्मो को संपादन करो | मुझे याद करते चलना , मै भी तुमको याद करते चलूँगा , चल रहा हुँ | अब तुम सब वो सब कुछ कर डालोगे जो कोई भी नहीं कर पायेगा |
"जो कोई भी नहीं कर सका आज तक , सतगुरु के बच्चों ने कर दिया आज ही "
प्रण में प्राण देखकर ये वादा किया पाषाण में भी प्राण डाल देंगे हम आज ही |"
अब तुम लोग एकता और अखंडता के साथ मेल बनाकर , मेरे सभी सतयुगी कार्यों का सम्पादन करो |
मै तुम लोगों के साथ हुँ |
सतगुरु जयगुरुदेव बोलते ही सामने हाज़िर मिलूंगा | समझ न आये तो परिक्षा करके देख लो अब अपने अपना-२ साधन करो | कल्याण हो रहा है | अपनी पसंद और सतगुरु की चाह एक में मिला दो काम हो जाएगा |
"सतगुरु जयगुरुदेव को पसंद करते है औरों को नहीं "
हम सब भी सतगुरु जयगुरुदेव को पसंद करते है गैरों को नहीं "
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ३१/०१/२०१५ प्रातः ३:२२

( ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में बोल बोल कर लिखवाया ) मालिक के शब्दों में :-
बोलो प्रेमियों सतगुरु जयगुरुदेव |
ये माँ की गोद में पलने वाले बच्चे नहीं है | ये कुदरत की गोद में खिलखिला रहें हैं | इनकी किलकारियां दिग दिगंत में गूँज रही है | दिग दिगंत को अपनी किलकारियों से महकाने के लिए बेताब है | इनकी बुलंद और नैसर्गिक आवाज , सुनने के लिए , देवी , देवता भी आ रहें है , बड़ेला मंदिर पर | अब वो पुनीत घडी करीब आ गयी है कि , ये बच्चे मसीहा बनकर ,सब के दिलों में बसने जा रहें है , बसने वालें है | इनकी अनछुई तरंगें अब लहर बनकर फ़ैल रही हैं | ये सब सतगुरु जयगुरुदेव और सतगुरु जयगुरुदेव बड़ेला मंदिर का रहस्मयी कुदरती करिश्मा है | यहाँ सतगुरु कुल मालिक अनामा महाप्रभु अपने बच्चो की गढ़त स्वयं करता है , कर रहा है | अति शीघ्र जितनी जल्दी हो सके , बड़ेला मंदिर में पहुँच कर अनामा महाप्रभु के बच्चों का दर्शन करो | इन बच्चो से मिल लीजिये , खुद बा खुद होश आ जाएगा | अब देर मत करो ,वैसे ही बहुत देर हो चुकी है | अपना , अपने गांव परिवार , घर देश का कल्याण हो तो आ जाओ | मुल्क-२ के कौम -२ के देश , विदेश के लोग आ जाओ | सतगुरु जयगुरुदेव बड़ेला मंदिर , कुल मालिक स्वयं आवाज दे कर बुला रहा है | घर बार ,जगत जंजाल छोड़कर मालिक से मिलने के लिए चल पड़ो | अपने घर बार की चिंता छोड़कर बड़ेला सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर सतगुरु द्वार के लिए चल पड़ो |
छोडो भेष भवन लेश , तन मन इंद्री यह प्रदेश |
सतगुरु दया मिला यह बदला सतगुरु देश |
सतगुरु को मैं करूँ अदेश, सतगुरु जी मेरे धनि धनेश |
सतगुरु मेरे अपार हैं , अपरम्पार सुरतों के स्वामी हैं | जो इस समय सतगुरु बड़ेला धाम में विराज रहे है |
इस महिमा मंडित सतगुरु की महिमा का पूर्ण रूप से वर्णन कोई नही कर सकता और ना ही इनके रहस्यों को कोई जान सकता है , न समझ सकता है | जितना जनाएंगे , समझायेंगे , समझने की क्षमता देंगे उतना ही समझ में आएगा | उसके आगे और पीछे का किसी को कुछ पता नहीं है | आगे क्या होने वाला है , पीछे क्या बीत चुका है | तुम सब सतगुरु चरणो के भिखारी बनो , मिन्नत करो |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला साकार , हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
मेरे मिन्नत सुनो बड़ेला सरकार , मुझे लेहु सम्भार , तेरे द्वार आन पड़ा |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला साकार , हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
तुम्हारे द्वार के सिवा दिखे न दूजा कोई द्वार, मुझे अब लेहु बचाय
मेरे मिन्नत सुनो बड़ेला सरकार |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला साकार , हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
मेरी अर्जी का अब करो ख्याल , तेरी मर्जी से बड़ेला दरबार आन पड़ा |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला साकार , हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
मेरी हिये की सुनकर करुण पुकार , मेरे अंतर्घट अब देहु उघार |
अब तेरे बड़ेला दरबार आन पड़ा |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला साकार , हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
सतगुरु से क्षमा मांगते रहो , सतगुरु से मिलकर सतगुरुमय बनने की कोशिश करो | सतगुरु को अंतर से पहचानो , बाहर से कुछ भी नहीं है | सतगुरु स्वामी का सारा पसारा दिव्य रूहानी खेल अंतर का है |
इसको धीरे-२ समझो , चेतन से मिलकर चेतन बनो | उस परम कल्याणमयी चेतना में लय हो जावो |
मैं को भूल जावो |
मैंपन सब तुममे खो जावे |
अंतर का मल सब धो जावे |
जीवन परम दिव्य अमृतमय हो जावे |
चेतनंता तुम्ही में लय होव |
सतगुरु जयगुरुदेव तुम्हारी जय होए |
बड़ेला सरकार तुम्हारी जय होये |
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १४-०२-२०१५ प्रातः ५:३०

(गुरुबहन बिंदु सिंह को गुरु मालिक द्वारा ब्रह्म मुहूर्त में लिखवाया अंतर्घट सन्देश)
वीरों वीरांगनाओ सतगुरु जयगुरुदेव
बच्चे अतिशय दुरूह परिस्थितियों में हँसते रहो / रहना। तुम्हारा जुझारू कर्मठी व्यक्तित्व सतगुरु को अतिशय प्रिय है ।
"पर्वतों को काट कर सड़कें बना देंगें ये।
असंख्यों मरभूमि में रूहे जगा देंगें ये ।"
अब सब काम तुम सब को करना है | जो कोई भी नहीं कर पायेगा , वो सब काम तुम सब चुटकी बजाते हुए निपटा दोगे। तुम्हारी अंतर शक्तियों का अभी किसी को पता नहीं है । पता चलते ही तुम्हारे ऊपर खतरे मंडराने लगेगें । अतः कुछ दिन के लिए तुम सब को छुपा लिया जाएगा । बस निमित मात्र , तुम्हारे छुपते ही सबके क्रिया कलाप बंद हो जायेंगें । सब अवाक् रह जायेंगे । फिर क्या होगा कुदरत का अदभुद करिश्मा बनकर सबके बीच आयेगा और अपने तौर तरीके से शुरू हो जायेंगें । कुदरती सारे क्रिया कलाप फिर से शांत और स्थिर भाव से स्फूर्त हो जायेंगे ।
" बंद नहीं अब चलतें रहेंगें , नियत नटी के क्रिया कलाप।
पर कितने एकांत भाव से और कितने चुपचाप ।"
मेरे शांति के मिसाल मेरे बच्चो पर कोई खतरा , कोई डोरे डालने की कोशिश करेगा , कोई तंत्र मंत्र करने की कोशिश करेगा , मै फाड़ के रख दूंगा । बहुत देख चुका । बहुत बर्दाश्त किया । अब तो वो होगा जो किसी युग में नहीं हुआ । मेरी अखंडता और एकता के सपनों को मेरे बच्चे साकार करने जा रहें है ।देखता हूँ कौन माई का लाल रोक सकता है।
अब बच्चो तुम सब हंसी ख़ुशी से अपनी हर आने वाली सुबह का स्वागत अभिनन्दन करो । अब तो तुम्हारा हर एक दिन नया नया उत्सव लेकर आएगा। खुद सतगुरु के रूहानी उत्सव में नहावो और सबको रूहानी उत्सव रूहानी गहराई में तैरने के लिए बुलावा भेज कर बुला लो।
तुम्हारा समरथ सतगुरु बड़ी बेसब्री से इंतजार रहा है , अपने सभी बच्चों का ।
अब देर मत करो । सतयुग स्वागत उत्सव मनाओ । मेरी अतिशय मंगल शुभकामना तुम सबके साथ है ।
वीरों वीरांगनाओ सतगुरु जयगुरुदेव

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
गुरुबहन बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 29 अप्रैल २०१५

परम पूज्य सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने अंतर में गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी को भारत एवं विश्व की संगत के नाम भेजा सन्देश: ( मालिक के शब्दों में )
सतगुरु जयगुरुदेव
समस्त भारत एवं विश्व के संगत के प्रेमियों को सतगुरु का अंतर आदेश सभी प्रेमी प्रकृति देवी एवं महाकाल पुरुष , शिव भोले नाथ एवं प्रभु त्रिलोकी और माता जी का हवन पूजन कर देश एवं विश्व के लिए प्रार्थना करे कि प्राकृतिक आपदा में पूरी दया कृपा करे, हे प्रभु सतगुरु की तरह हम सब शाकाहारी सदाचारी रहते हुए प्रभु भजन करेंगे, आप हे प्रभु सब पर दया करो |
हवन पूजन से सब देवी देवता खुश हो जायेंगे सब पर दया कृपा करेंगे :
हवन की विधि -
१ - सतगुरु जयगुरुदेवाय
२- महाकाल पुरुषाय
३- शिव भोलेनाथाय
४- महाप्रकृति देवी
५- महा सर्व शक्ति देवी
६- रामेश्वराय
७- महाप्रलय रक्षा करिश्यामि सतगुरु जयगुरुदेव इति सिध्दि
नोट: ये हवन गुरुवार के दिन प्रातः ९:२१ पर सुबह में करेंगे और पांच दिन तक इसी समय पर करना है | ऊपर बताये गए एक एक नाम बोल कर अर्पित करना है |
हवन की सामग्री : घी, गुड, तिल, जौ,चावल, धुप की लकड़ी , और पांचो मेवा
सतगुरु जयगुरुदेव
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
गुरु मालिक का सेवादार - अनिल कुमार गुप्ता
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21-04-2015

Guru malik ka antarghat sandesh

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 20-04-2015

Guru malik ka antarghat sandesh

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14 अप्रैल २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
जब आप सुमिरन ध्यान और भजन करते है तब नित नव अदभुद रचना अंतर में दिखाई पड़ती है कोई भी साधक प्रेमी पुराना नहीं होता है | रोज नित नया होता है नया नजारा दिखाई पड़ता है गुरु महाराज के सिवा दूसरा कोई समरथ नहीं होता है | गुरु महाराज के यंहा, छोटी से छोटी चीज और बड़ी से बड़ी चीज तुम्हारी भूल और गलती को माफ़ किया जाता है | अपने सतगुरु में अपने प्रभु में जितना मन लगाओ गे उतनी दया और मेहर श्रद्धा भाव के बस रोज रोज मिलती रहेगी | गुरु महाराज चौबीसो घंटे अंग संग रहते है और दया मेहर करते है | ओ दयालु है और दया के सागर हैं | हमारा तुम्हारा कर्तव्य है की लग कर सुमिरन ध्यान और भजन करना | न कर पा रहे हो जब आप का शरीर अस्वस्थ है तब सतगुरु जयगुरुदेव सतगुरु जयगुरुदेव को भजते रहना है | अपने मन में अपनी आत्मा में अपने गुरु को याद करते रहना | अपने गुरु से मिलते जुलते रहना अपने गुनाहो की माफ़ी मांगते रहना | यही तुम्हारा कर्तव्य है | जब तक स्वासों की पूजी है तब तक अपने गुरु के साथ रहो | जब अंतिम स्वांस निकलेगी तो गुरु महाराज अपने साथ ले जायेंगे इसमे किंचित मात्र भी शंका मत करो | गुरु अंदर बाहर से संभल करते है और करते रहेंगे ||
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रहिमन सतगुरु नामी पक्के, सींचे मूल सुरत जन जानी|
सत्य देश में एहि मिलावें , जहा है सुरत की खानी |
नाम भजन सतगुरु का गाओ , अंतर बाहर नामी |
श्रद्धा भाव बस गुरु चरनन में , सहस करो प्रणामी |
प्रीतम सखा मित्र सतगुरु हैं , और पद पंकज पामी |
मीरा हिरदय को पहुचाया, तुमहरा जग मग जानी|
गगन भेद ले जाये सुरतिया , जहाँ सुरत की खानी |
मंगल चितवन सतगुरु नामी , नयन बसे सत्यनामी |
प्रथम धाम प्रभु राम दिखावे , दूसरा ऊँकार की खानी |
तीसर पद जहाँ कर्म जलत है , ररंकार राग जगानी |
चौथे पद महाकाल पुरुष हैं , वंशी की तान सुहानी |
गुफा पर सतनाम समाये, सत की होय सयानी |
सतपति मिले सतगुरु प्रीतम, सुरत की प्यास बुझानी |
शीश बन्दना गुरु चरनन की, तुम हो महन महा दानी |
हे सतगुरु संसार बनायो, हर पथ कड़ के स्वामी |
हे सतगुरु प्रीतम मेरे नामी , दया मेहर रहे स्वामी |
आस फास तुम्ही में लागे, न कोई दूसर ठानी |
मिले सुरतिया श्री चरनन में , यही मैं मांगन जानी |
तुम्हारे मैं में मैं मिल जाऊं , स्वारथ होय कहानी |
सिद्ध सत्य अनामी करतारी तुम्हारे चरण शिर डारि|
यही विनती प्रार्थना सतगुरु हमारी|| सतगुरु जयगुरुदेव ||
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बिना सतगुरु के कोई भी सुरत उस तरफ नहीं जा सकती , गुरु चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो गुरु जहा तक जाता होगा जहा का भेदी होगा वही तक वह सूरतों को पहुचायेगा और धन्य है हमारे दाता दयाल सतगुरु परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज जिन्होंने हम सब को नामदान दिया और आदि से अंत तक का भेद बताया | और वहां तक पहुचने की पूरी रील दिखाई बताई | हर प्रकार से अनुभव करा रहे हैं हर प्रकार से चेता रहे है जगा रहे है और संगत को संभाले हुए है | जो गुरु महाराज को हाजिर नजीर और जिन्दा मानते हैं और उनके चरणो में है की हमारे मालिक कही गए नहीं और हमारे मालिक हमारे साथ हैं उन पर पूरी दया मेहर गुरु महाराज बरसा रहे है |
हर तरह से गुरु महाराज अपना काम कर रहे है , जितने भी प्रेमी है चाहे हम हो या कोई और सभी निमित मात्र है | समरथ तो सतगुरु दयाल स्वामी जी महाराज ही हैं कोई दूसरा महाराज नहीं है | आप जब गुरु चरणो में बैठ कर सुमिरन ध्यान और भजन करोगे तो गुरु महाराज की पूरी दया मेहर उतरेगी |
सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १३ अप्रैल २०१५

सतगुरु जयगुरुदेव : प्रतिदिन सत्संग - बड़ेला धाम
गुरु महाराज जो अंतर में बोल रहे है उसको मैं आप को सुना रहा हूँ - (गुरु महाराज के शब्दों में )-- ये बच्चे बच्चियों मैंने बहुत सी भाभिष्यवाणिया की हैं कदा चित एक भी भाभिष्यवाणी कटने वाली नहीं | आगे सारे बिगुल साज कार्य पूरे होने जा रहे हैं तुम लोग कड़ाई से खड़े रहो | सुमिरन ध्यान भजन में रत रहो मेरे निशाने पर लगे रहो चूको मत , निशाना चूकने की जरुरत नहीं है | मैं हर प्रकार से समरथ हूँ | हर प्रकार से सर्वज्ञ हूँ | हर प्रकार से मदद करूँगा | दीन गरीबी हरी वीमारी , कर्मो का लेन देन ये आते जाते रहते हैं इससे डिगना नहीं | आगे को कदम बढ़ाते रहो अनुभव प्रचार करते रहो | मैं जल्दी ही मिलने वाला हूँ | बहुत समय बांकी नहीं बचा है | तुम सब अपनी चेतना को खोयो मत | सचेत हो करके जैसे प्रभु राम का काम हनुमान जी ने किया उसी तरह से मेरे काम मेरी ध्वजा को लहराओ | मेरे काम को करो | बच्चू बोलो सतगुरु जयगुरुदेव ||
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|| धरम ध्वज धारण करो रे भाई , आई रे आई वेला आई |
सत्य देश की होइ चढाई , समरथ नाविक तेरा प्रीतम |
चौबीस घंटे होइ सहाई, सच्चे सतगुरु प्रीतम तेरे |
दुःख दर्दों को रहे हैं मिटाई, श्रद्धा सुमन तुम अर्पित करना |
बदले में नाम खजाना मिल जाइ, सुगम देश तेरे प्रभु का |
वही पर है सारी प्रभुताई , तुम रघुनन्दन भक्त उर चन्दन , आदि से अंत तक रहेंगे सहाई |
दे वरदान रहे हैं मालिक , निष्कंटक निर्विघ्न सब जाइ |
शीश चढ़ाओ सतगुरु चरनन में , जिनने दिओ है भेद बताई |
सतगुरु जयगुरुदेव ||
अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 11-04-2015

Purnar Janam Karyakaram

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: -०७-०४-२०१५, समय: प्रातः ५:१९

बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव |
परम वीरों परम वीरांगनाओ सतगुरु जयगुरुदेव
|| अंतर आँखों के अंतर आइने में जो देखा सतगुरु आपको , कभी पास कभी दूर नज़र आये
सतगुरु स्वामी अब तुम ही बताओ ये क्या रहस्मयी गुल खिलाये / लीला दिखाये ||
बच्चे सतगुरु न कभी पास न कभी दूर होते हैं | वो हमेशा एक दृष्टि से सबको देखते है | ये परम दयालु हैं | ये दया के प्रेम के अवतार होते हैं |जो उनकी बातो को मान जाते हैं , उनमे सतगुरु जयगुरुदेव का परम तेजस्वी तपोमयी तेज दिखने लगता है | अतिशय परम प्यार का प्याला छलक कर बाहर आने लगता है | वह जीव सतगुरु स्वामी से मिलकर सतगुरु बनने लगता है , बन ही जाता है | उसमे मुझमे कोई अंतर नहीं रहता | उसको जंगल पहाड़ बियाबान गुफा घाटी घर बाहर हर जगह सतगुरु कुलस्वामी , मैं ही दिखने लगता हूँ | उसके भाव इतने प्रबल हो जाते हैं , उसका सम्पूर्ण भार मैं ले लेता हूँ |
ऐसे परम सतयुगी भाव वाले भक्त का भरपूर मुझपर भार है |
अब सबके सब भाव विभोर होकर सतगुरु के बताये हुए अंतरी रास्ते पर बैठकर पुकारो | तुम्हारे सतगुरु स्वामी तुम सबके सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी भी वही मिलेंगे , चिंता क्यों करते हो | इसी के लिए आये हो |
|| आये हो / लाये गए हो हरिभजन को , मत करो उत्पात
सतगुरु स्वामी से मिलकर भजन करो दिन रात ||
अब तक अच्छे बुरे बहुत खेल खेले | अब सिर्फ भजन करो भजन |
सतयुग में सतगुरु से मेरे धाम में आकर मिलो | मैं पुनः आया बैठा हूँ किसी और काम के लिए नहीं भगवत भजन कराने के लिए , भजन तो करना ही पड़ेगा | चाहे रोकर करो या गाकर | इसके लिए सभी नर , नारी , बच्चे , बच्चियों , देवी , देवताओं अपने अपने घर से निकल पड़ो | मुझे , तुम्हारे सतगुरु को तुम्हारी जरुरत है |
|| माँओ से कहा दे बेटे , बहनो से कहा दे भाई ||
आगे आने वाला समय बच्चे बच्चियों के लिए अच्छा नहीं है | इसलिए समय रहते मेरे दरबार में हाज़िर हो | सपरिवार सबकी पुनः संभाल मैं करूँगा | तुम सब मेरा काम करो | मैं तो तुम्हारे काम के लिए पुनः आया बैठा ही हूँ |
मेरे सतयुगी परम वीरों परम वीरांगनाओं अब अपने सतगुरु की पुरानी रूहानी सतयुगी आवाज़ को सुनो गुनो और पहचानो क्योंकि पहचान तो स्वयं तुम्हे ही करनी है | कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है | समझ में आये तो आगे आओ और सतगुरु की हथबटाई करो बस निमित्त मात्र | बच्चे तुम्हें निमित्त ही बनना है | काम हमारा सब हो चुका है | बस संत महात्मा रूहानी फ़कीर अपने फकीराना अंदाज़ से रोके हुए हैं | बार बार बीच बचाव करवा रहे हैं क्योंकि वह जन जन के कल्याण के लिए आये बैठे जो हैं | अब देर मत करो | पूरे विश्व को तुम्हारी जरुरत है क्योंकि सतयुग भारत में मेरे रूहानी धाम में पूर्णतया उतर आया है | वहीं से पूरे भारत में फैलने जा रहा है क्योंकि १०१८ गुना कार्यक्रम भारत में , बाकि शेष ३ गुना कार्यक्रम पूरे विश्व में विगत माह संपन्न कराया / मनाया गया |
|| शतरंज बिछाए बैठा था कलयुग
मैंने / तूने १०२१ गुना सतयुगी रूहानी कार्यक्रम का बखूबी निपटारा कराया ||
मेरी मौज / सतगुरु की मौज समझ नहीं पाओगे | देखने की बात ही निराली है |
|| तुमको कौन लख पायेगा अलख स्वामी
जिसको तुम लखाओगे वही लख पायेगा अलख स्वामी
हे सतगुरु स्वामी , हे अलख स्वामी ||
बच्चे सतगुरु की/ कुलमालिक की जड़े इतनी गहरी हैं अथाह गहराई तक गयी हैं | निडर निर्भीक होकर आगे बढ़ो | सारी खुदाई रहनुमाई मैं करूँगा |
|| तुम्हारी तुम सबकी रूहानी नौका का मैं पुनः बन गया हूँ खेवइया
तुम सब संसारी झंझावातों / झमेलों से डरना नहीं
कभी डूबा है न डूबेगा मल्लाह तुम्हारा
इतना गहरा समंदर नहीं / संसार सागर नहीं ||
बच्चे सतगुरु की अंतरी जड़ मजबूती से कड़ाई से पकड़ो | कोई माई का लाल हिला न सके , न डिगा सके | कुछ भी बनकर आये | सतगुरु साईं से बढ़कर कोई नहीं है | ये फ़कीर / मैं देश दुनिया को बदल के रख दूंगा | विश्व में शांति मेरे रूहानी बड़ेला द्वार के अलावा कहीं नहीं मिलेगी | यहाँ की विभूतियां विश्व को नचाया करती थी | फिर पुनः वही होने जा रहा है | इनके / मेरे फकीराना अंदाज जल्दी समझ नहीं पाओगे | समझ तो तभी आएगी जब मैं समझाऊँगा |
|| जेहि समझत / जेहि जानत जेहि जाये हेराई
जानत समझत तुमही तुमही बन जाई ||
बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव
परम वीरों परम वीरांगनाओं सतगुरु जयगुरुदेव


अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर एवं अखंडेश्वर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०५/०४/2015, समय: १२:४५

सतगुरु का पत्र साधक को :
बच्चो प्रेम से बोलो सतगुरू जयगुरूदेव
सतगुरू की रूहानी गढ़त और दानशीलता पर शंका क्यों करते हो| सतगुरू को अमर घाट की उतराई पार कराई देकर पार चले आओ| हमेशा छोटे बने रहो बड़े बनने की फिराक में मत रहना| चीटी छोटे बनकर राजमहल में चली जाती है| अहंकार आड़े मत आने देना| आगे आने वाली भयंकर विपत्तियों में सतगुरू का दृढ़ संबल एवं आलौकिक रूहानी साथ तुम्हारा तुम सबका सहारा बनेगा|
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करण धार सतगुरू दृढ़ नावा
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सचखण्ड से आ रही सतगुरू जयगुरूदेव की रूहानी आवाज को सुनो एवं पहचानो| मालिक के सचखण्ड के सतशब्दों की पुजा करो| शब्द स्वरूपी सतगुरू की पुजा करो
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सत सतगुरू से जो शबद सनेही
शबद विना दुसर नही सेई
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सतगुरू की सतयुगी आराधना करने की सच्ची युक्ति सीख मेरे सतयुगी बड़ेला दरबार से ही मिलेगी| मेरा रूहानी बड़ेला दरबार, धाम सबके लिये खुला है, खुला रहेगा| ये फकीर, मै देश दुनिया को मुठ्ठी में लेकर चुटकियों में बदल के रख देगा, रख दुगाँ | देखते जाओ आगे क्या क्या होता है, क्या होने जा रहा है| अभी तो हाहाकार मचेगा| एेसी तुफानी आँधी चलेगी कि मिनटो मे सब खाक नजर आयेगा| फकीर महात्मा अपने ढ़ग से नित नये नये तौर तरीके से समझा रहे है, बीच बीच में चेता रहे है| मान गये तो पार हो जाओगे नही तो वही होगा
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अब डुबेगी भवर में नईया
कोई मिलेगा न सत समझइया
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सत माने नही असत को पकड़े रहे तो कैसे पार जाओगे| इसके लिये सतगुरू जयगुरूदेव का हर दिन ध्यान करना पड़ेगा, योग की विधी सतगुरू बतायेगें| बाहर कुछ नही सारी खुदाई नुरानी खिलकत अन्दर की है| अतिशय परम सुख शान्ति का भण्डार तो अन्तर समाया गुप्त है| छोटी से छोटी तुच्छ भेट भी सतगुरू स्वीकार करते है, कर लेते है और भावानुसार मदद भी मिलती है| लेकिन अभाव में कुछ नही कुछ भी नही मिलेगा | बच्चे अभाव मत आने दो भाव बढ़ाते रहो| सतगु़रू अन्धा बहरा नही होता और ना ही हाड़ मांस का पुतला है जैसा की समझ रहे हो| वो हर भाव अभाव देखता है समझता है और जो भी सत दरबार में मेरे रूहानी दरबार में आता है उसके, तुम्हारे कोरे कैनवास पर पहली बार ही सचखण्ड का सत अंकित कर देता है, उतार देता है| धीरे धीरे इच्छानुसार मदद करता रहता है| अपनी रूहानी सतयुगी रंग धीरे धीरे चढ़ाता जाता है| एक दिन परम दिव्य सत में मिल जाता है| उसके लिये कुछ शेष नही रहता, वह सत दिव्य परम परमार्थी बन जाता है उसके सारे क्रिया कलाप रूहानी हो जाते है|
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अतिशय रूहानी रंग चढ़ा के सतगुरू
परम रूहानी चादर ओढ़ के सतगुरू
द्वार तुम्हारे आयी
हे अतिशय परम पावन सतगुरू मेरे
मन ही मन मुसकाई
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सुरत अपने सतगुरू साई के सत परम सत उपकार को भूलती नही और न ही किसी की सुनती है| सतगुरू के अलावा उसे कुछ भी दिखाई नही देता|
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सतगुरू साई बिन कुछ और दिखता नही हम क्या करे
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अब सब लोग ससमय का सदपयोग करो, बाद में कुछ मिलेगा नही अभी दोनो हाथो से जीव भरकर दान दे रहे है| बरक्कत दिला रहे है| सचखण्ड से उतर के आयी हुई रूहानी बरक्कत कभी कम नही होती|
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दिन दिन बढ़त सवायो चढ़ायो
री मैने अतिशय रूहानी रंग चढ़ायो, नहायो
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अब देर मत करो मेरे रूहानी बड़ेला दरबार में आकर अपनी युग की सोई हुयी सुरत को जगाओ
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युग युग की खोई हुई पुँजी पाई
सतगुरू स्वामी को देत बधाँई
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सतगुरू कुल अनामी मालिक पुन: देने के लिये ही आये है और सबको बार बार होश दिला रहे है, जगा रहे है, रास्ता दिखा रहे है , नित तौर तरीका बता रहे है|
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नित नयी नयी शब्द की सीढ़ी हम रची
पढ़ी- पढ़ी/ चढ़ी चढ़ी पहुँचो सतगुरू की सच्ची नगरी
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सतगुरू जयगुरूदेव को जिसने हाँड मांस समझा वो वही का वही रह जायेगा , बढ़ते कदम रूक जायेगें | शंका का कोई समाधान नही| सतगुरू से छल कपट करते हो| सतगुरू मालिक को छलावा ढकोसले बाजी कतई पसन्द नही | सतगुरू जिसको पकड़ते है, जब तक निजघर नही पहुँचा देते छोड़ते नही लेकिन जो मेरे सतयुगी रूहानी आदेश का पालन नही करता, सतगुरू वचनो को हवा की तरह उड़ा देता है वो जाने उसका काम जाने| आगे आने वाले अतिशय दुरूह समय में कोई मदद नही करेगा| कर्मानुसार कुुदरती ऐसी आधी चलेगी कि सब कुछ खतम होता नजर आयेगा लेकिन वो रूहानी सच्चे सतगुरू मशीहा बनकर सबको सतयुगी रास्ता दिखायेगें| पुरे विश्व में सर्व शान्ति का विगुल बजेगा | किसी को अन्यत्र कही शान्ति नही मिलेगी| सबको सतगुरू जयगुरूदेव की अतिशय रूहानी सतयुगी झण्डे के नीचे आना ही पड़ेगा और सबको सतगुरू जयगुरूदेव से मिन्नत प्रार्थना करनी पड़ेगी| सच्चे सतयुगी शरणार्थी बनकर |
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शरण सबको सतगुरू जयगुरूदेव आना पड़ेगा
सबको सतगुरू की सच्ची सतयुगी आग्या बजाना पड़ेगा
झकोले युगो से जो खाते ही आये
उन्हे बन्धनो से छुड़ाना पड़ेगा
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बच्चो प्रेम से बोलो सतगुरू जयगुरूदेव

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०२/०४/२०१५, प्रातः ६:३१

सतगुरु का पत्र साधक को :
बच्चे अन्तर से जगकर बोलो सतगुरू जयगुरूदेव
सतयुगी साधको जाग जाओ तो सतयुग उतरता चला आयेगा| बच्चे महात्माओ के यहॉ हर घड़ी मुहुर्त चलता रहता है| कब क्या करना है इसका निर्धारण सन्त फकीर ही करते है| मै स्वंय करता चला आया हुँ और करता रहता हुँ| अब अन्तर बाहर से पूर्ण रूप से जगने का शुभ मुहुर्त आ गया है| अब अपने आप में पूर्ण जागृती लाओ, देर मत करो| मुझे बहुत जल्दी है, हिलाहवाली मत करो जल्दी करो| सतगुरू इधर भी मिलेंगे उधर हाथ बढ़ा कर उठा लेगें| अब अन्तर बाहर डटकर खड़े होने की जरूरत है| अनाचार बहुत बढ़ गया है|
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जब अतिशय जुल्मों का हो सामना
तब तु ही हमें थामना सतगुरू
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सतगुरू के अलावा है ही कौन सच्चा मददगार सच्चा साथी|
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सत साथी सतगुरू को बनाया ना होता
तुम्हारी हमारी भी नैया भवर में ही होती
मनुज रूप सतगुरू धराया ना होता
हमारे/ तुम्हारे से लाखो खानो में जाते
पुन: निजधाम से सतरूप अपना लाया न होता
निजधाम से पुन: पुन: आकर अपना सतयुगी सतरूप दिखाया ना होता
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अब अपनी सतयुगी साधना सम्पन्न करो और आगे बढ़ो जिन्होने मुझे निजधाम भेजकर मौज बदलने की झुठी गवाही पेश की उसका भूलकर नाम मत लेना | उसके साथ रहने वालो का मुझे मेरे दरबार में कुछ नही चाहिये, अतिशय गरीबी फकीरी में जीवन बिता लेना| उधर देखने वालो से भी कभी कोई मॉग मत करना | सुखी रोटी खाकर सो जाना लेकिन उनके सामने अपना हाथ मत फैलाना | ये तुम्हारे सतगुरू जयगुरूदेव के सत सत सत संकल्प है| इसको भुलना नही| मैं निजधाम से पुन: आकर बैठा हुँ| मै तुम्हारी सारी मिन्नते अर्जिया पुरा करता आया हुँ करता रहुँगा| चिन्ता क्यो करते हो| मेरे सतयुगी बड़ेला दरबार की किसी को चिन्ता करने की जरूरत नही है| मैं स्वयं पुरी करूगाँ| मुझे क्या करना है, कैसे करना है, किससे करवाना है, इसका निर्धारण मैं स्वयं करता हुँ करूगाँ| मेरे दरबार में आने से पहले सतगुरू से मुझसे सतगुरू से, मुझसे इजाजत लेनी पड़ेगी| बिना मेरी मर्जी के कोई चाहकर भी मेरे सतयुगी बड़ेला दरबार नही पहुँच पायेगा| मेरे सतयुगी अतिशय रूहानी़ बच्चे मुझे अतिशय प्रिय है| ये हर पल मुझे, मेरे अलावा किसी को देखते ही नही| इनका सम्पूर्ण समर्पण इनकी अतिशय सच्ची सतगुरू भक्ति की मिशाल कायम हो गयी| अब सब लोग सम्भल जाओ आगे बहुत उलटफेर होने जा रही है| एक एक बुँद पानी के लिये लोग तड़पेगे, कोई प्यास बुझाने वाला नही मिलेगा| तब ये मेरे रूहानी बच्चे मेघ पर आरूढ़ होकर गर्जन करेगें और वही से फल-फुल, धन-धान्य और पानी की रूहानी बारिश/ बौछार करेगें| सब धर्म धारण करेगें सबके सब जो बचेगें | मेरे दरबार में देश दुनिया के लोग जमीन पर बैठकर यहॉ के लोगो की तरह भजन करेगें| विदेशी लिबास को उतारकर भारतीय वस्त्र धारण करेगें | शुभ कर्मो की शुभ संकल्पो की होड़ लग जायेगी | सतयुगी राज्य की पुर्न: स्थापना होगी | शासन की बागडोर महात्माओ के हाथ में आ जायेगी| सबके सब मिलकर सतयुगी योग विधान का निर्धारण करेगें, मै स्वयं करूगाँ चिन्ता क्यों करते हो| सबके सब सतयुगी सतसंकल्प करो,पुरा मैं कराऊगाँ| कलयुगी दानवों को हटाना मेरा काम है| मेरे दरबार में काल कराल की झूठी बहस बाजी नही चलेगी| मेरा रूहानी अतिशय दिव्य बड़ेला धाम देश - देश में छाने जा रहा है| मेरे सतयुगी दरबार की चिन्ता सबको हो रही है क्योंकि
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जाकि रही भावना जैसी
मेरा सतयुगी बड़ेला दरबार दिखा उन वैसे
************************
बच्चे अन्तर से जगकर बोलो सतगुरू जयगुरूदेव

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ३१/०३/२०१५, प्रातः 05:20

सतगुरु का पत्र साधक को :
सतगुरु जयगुरुदेव,
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव , मेरे बड़ेला की पाकीजा जमीं की कीमत लगाना चाहते हैं | जो मेरे रूहानी बेशकीमती पाक जमीं की कीमत लगाने की कोशिश करेगा, उसका क्या होगा ये तो समय ही बताएगा | क्योंकि मुझे / सतगुरु को रुपये पैसे से खरीदने वालो को मैं समय से पहले ठिकाने लगा देता हूँ | मैं कही गया नहीं हूँ |
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जाकी रही भावना जैसी, सतगुरु मूरत देखि तीन तैसी |
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मेरे बड़ेला दरबार में रूहें बसती हैं | रूहानी सच्ची रूहें , रूहों के सच्चे शहंशाह निज धाम से उतर कर मैं स्वयं रूहों का रूहानी सच्चा सौदा करा रहा हूँ |
मेरे सच्चे रूहानी दरबार में मेरे अलावा न किसी की न चलेगी न चली है | मैं अपनी निज विशेष सच्ची पाक रूहों को लेकर निज धाम से आया हूँ | अपनी विशेष मौज मर्जी से और अपना विशेष काम पूरा करवाकर ही जाऊंगा |
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जीव काज आये हैं सतगुरु , अपना कार्य विचारी |
मॉल खजाने की भूख नहीं , मैं हूँ सनातन धारी |
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मुझे / मेरा रहस्य जल्दी समझ नहीं पाओगे |
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गोल रहस्य यह कथन / कहन सतगुरु का , क्यों नहीं समझे नर नारी |
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आगे बहुत कुछ होने वाला है | प्रकृति चुप नहीं , चण्डी अपना काम करवा रहा है , हाँ मैं अपने सच्चे दरबार में आँच नहीं आने दूँगा | साँच को आँच नहीं |
सच्चे साईं के सच्चे दरबार में काल की कोई जरुरत नहीं | इतना बड़ा लम्बा चौड़ा काल का राजपाठ है , कही भी जाकर होशियारी से कालाबजारी करो |
मेरे / मैं अपने काम से रोड़े बखेड़े को निकल कर बहार फेंक देता हूँ मर्यादित ढंग से |
बच्चे तुम्हारी अधीरता और अकुलाहट सतगुरु को अतिशय प्रिय है | यही होना भी चाहिए | क्योंकि सतगुरु हांड - मांस का पुतला नहीं | वो रूहानी शबद का भंडार सच्चा सतगुरु अंतर में बैठा है | दिन में सौ बार मिलो हजारों - लाखों प्रश्न पूछो सरे खुदाई प्रश्नो का जबाब अंतर का सतगुरु अन्तः गुफा में बैठ कर दे रहा है |
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जा के प्रिये न शबद सनेही , ताजिये वाहि चाहे परम सनेही |
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जो अपनी मन - मानी करता है सतगुरु की एक भी बात नहीं मानता, बच्चे वो गुरु मुख नहीं , मन मुख है |
अब सब लोग सत धारण कर लो | सच्चे साईं के सच्चे बचन की पहचान स्वयं करो और आगे बढ़ो | आगे आने वाली घोर तकलीफ़ों में सतगुरु का दृढ़ सम्बल ही तुम्हारा तुम सबका सहारा बनेगा | क्योकि सतगुरु जयगुरुदेव के सिवा / मेरे बड़ेला दरवार के सिवा कहीं उद्धार नहीं होगा | बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव बोलते रहो | मैं यहाँ भी मिलूँगा उधर भी हाथ बढ़ाकर उठा लूँगा | चिंता मत करो |
सतगुरु का अखण्ड अमर आशीर्वाद तुम्हारे साथ है तुम्हारा कोई बाल बाका नहीं कर पायेगा |
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव ||

अखण्ड भारत संगत सतगुरू की
सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १२/०३/२०१५, प्रातः ६:४८ am


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे सतगुरू जयगुरूदेव :
सतगुरू तुम भूले मैं क्या गाँऊ
जिस अन्तर हिय में बसे उसे जग के कण कण मैं क्या बिखराऊँ
बच्चे ये मिलौनी का संसार है ये देश तुम्हारा नही है| ये भूल भुलैया का देश है| ये अपना देश है ही नही , अपना देश तो सतगुरू ही बतायेंगे|
बसी है सुरत अब सतगुरू के अन्तर हिय देश
जहॉ नित नित सुने सतगुरू का नित सत संदेश
संत सतगुरू जीवो को समझाने के लिये इस धरा पर आते है आये है, और उनको अपने तौर तरीके से अथक परिश्रम कर समझाते है| सत्संग वचनो का पालन कराते है| जो चेत जाते है वो सतगुरू के साथ अन्तर में कड़ाई के साथ खड़े हो जाते है और उन्ही को लेकर सतगुरू देश दुनिया को बदलने के लिये निकल पड़ते है|
निकल पड़े सतगुरू हाथ में रूहानी सतयुगी झण्डा लेकर|
निकल रहे है सतगुरू साथ में नवरत्नो को लेकर||
बच्चे अब तुमको अतिशय परम आदर्श बनकर सतगुरू जयगुरूदेव का साथ निभाना है| मै निजधाम नही गया मै यही विराजित हुँ| मेरे लिये मेरे बताये पुर्ववत स्थान पर झोपड़ी बना दो| मै आज ही अभी वही दर्शन दुगाँ| देर मत करो मुझे देरदार बिल्कुल पसन्द नही है, ना ही मिलौनी पसन्द है | क्योकि जहॉ से तुम लाये गये हो वो मिलौनी का देश नही है| झोपड़ी पत्ते से, घास फुस से ही बना दो वही अन्त: गुफा में बैठकर इन्तजार कर रहा हुँ , करूगाँ| चिन्ता क्यों करते हो तुम्हारा सतगुरू जयगुरूदेव पुर्ण समरथ है| उस पर पुर्ण भरोसा रखो| अपना निजकाम जल्दी सम्पन्न करो ना समझ में आये तो मुझसे पुछ लो मै तुम्हारी एक एक बात का जबाब दुगाँ | तुमको एेसे ही नही लाया हुँ| तुम मेरे अतिशय परम प्रिय महापावन बच्चे हो तुम्हारे साथ हरपल रहता हुँ और हर युगों से रहता आया हुँ | अब निर्भिग्न होकर अपना सतयुगी साधन पूर्ण रूप से सम्पन्न करो कराओ| असंख्य करोड़ो क्या अनगिनत असंख्य करोड़ो युगों की मिन्नते अर्जीयाँ पुरी होने जा रही है| तो समय के साथ बीच बखेड़े भी आ जाते है लेकिन उसकी परवाह मत करो|
पर्वतों को काटकर सड़के बना देगें ये/ देते है ये
असंख्यों अनगिनत मरभूमि में पड़ी रूहों में जान डाल देते है ये/ जान डाल देगें ये
अब अपना सतयुगी कार्य सतगुरू जयगरूदेव से मिलकर अतिशीध्र सम्पन्न कराओ मुझे बहुत जल्दी है|
बच्चे तुम्हे विश्व में अतिशय परम आदर्श बनना है
सचखण्ड से आ रहा सतगुरू का अमर सन्देश जन जन को सुनाना है, जगाना है
अब स्वंय जागृती लाते हुये निकल पड़ो किसी की परवाह मत करो| तुम्हारा कोई बाल बाँका नही कर पायेगा|
निकल पड़ो सब सतगुरू के संग
सतगुरू जयगुरूदेव की अगवानी करने
सतगुरू जयगुरूदेव का सतयुगी मंगलमय स्वागत अभिनन्दन करो
रूहानी सतयुगी मंगलमय भव्य कलश सजा सजा कर
बच्चे सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०८/०३/२०१५, प्रातः २:१५ am


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे सतगुरू जयगुरूदेव :
सतयुगी साधिकाये जाग जाये सतयुग उतरता चला आयेगा
हर युग में ये जागृती लाये सतयुग भी इनको देखकर उतरता चला आयेगा|
बच्चे तुम सब अपने आप में पूर्ण जागृती लाते हुये सबको जन जन उठाने में, जागृती लाने में लग जाओ, निकल पड़ो |शक्ति मैं प्रदान करूगाँ
निकल पड़े सतगुरू/ सतयुग जी हाथ में झण्डा लेकर
बगल में खड़ी है सतयुगी देवी/ शक्ति देवी हाथ में लिये सतयुगी दिव्य ग्रन्थ करे सतयुग की चर्चा भारी
सतयुग की अगुवाई करने घरों में ताले लगा लगा कर निकल पड़ो नर नारी
सबको ग्यान मिले इतना सब हो जावे/ सब बन जाये सत्तधारी
सब लोग जितनी जल्दी हो सके मेरे बड़ेला दरबार पहुँचने की कोशिश करो क्योंकि आगे समय अच्छा नही है| द्रुह समय में हर आने वाली मुसीबत से छुटकारा पाना चाहते हो तो शीध्र मेरे बड़ेला दरबार में हाजीर हो बीच बचाव मै करूगाँ| लेकिन इसके लिये सतगुरू के दरबार में झुकना पड़ेगा, अर्जी लगानी पड़ेगी
अर्जी पर अर्जी लगाते चलो
मर्जी लखो सतगुरू दयाल की
सतगुरू की अखण्डता एवं अमरता का विश्वास करना पड़ेगा अमर सत्संग वचनो को सुनना पड़ेगा
सत्संग से विवेक सब होई
सतगुरू सत्संग में सुख समोई
विना सतगुरू के यह सुलभ न होई
सतगुरू जयगुरूदेव का दरश करो सब कोई
सतगुरू के दर्शन के लिये निकल पड़ो तुम्हारा सतगुरू जयगुरूदेव निजधाम नही गया है , वो मै यही विराजमान हुँ क्योंकि-
जाकि रही भावना जैसी, सतगुरू जयगुरूदेव दिखे उन वैसे
सतगुरू जयगुरूदेव पर जेहिकर सत्य सनेहु
सतगुरू जयगुरूदेव मिले बारम्बार यामे नही कछु सन्देहु
सतगुरू अखण्ड सतगुरू जयगुरूदेव कथा अखण्डा
विविध विधी कहत सुनावत बहु विधी सब सन्ता
बच्चे सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १२/०३/२०१५

ग्राम बड़ेला सत्संग वचन: परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज जी के द्वारा अंतर्घट में सुनाया गया सत्संग :
सतगुरु अधर अधीन ये दुनिया ,संत सनातन दुनिया|
शब्द शैल और सिखर सुहावन,मन परपूर्ण ये दुनिया|
भाव भजन मन चित एक ठोरी,साधक प्रेमी गुनिया |
भाव झरोखे शैल शिखर में,दिव्य अलौकिक दुनिया|
काम क्रोध वहां रास न आवे,साधक साधना मुनिया|
सतगुरु देश परम है सुहावन,अनिल अमिल क्या जानिया |
प्रीतम सतगुरु सबके मालिक,वही है सच्चे गुनिया|
****चढ़ो निज देश में अपने,सुहावन सात घडी आई *** मालिक का आदेश हो गया सभी सुरतों के लिए ,की सुहावन ब्रम्भ बेला अद्भुत घडी आ गयी है,आप सब लोग चढ़ चलो अपने देश अपने दुनिया में ,अपने सतगुरु के चरणो में ,उस तरफ उधर अधर में |अंदर में दरवाजा है ,घाट पर सतगुरु बुला रहा है ,सत में मिलने के लिए तैयार हो जावो|
***शिव अनाम श्रुति मंगल नामी,तोहिं बुलावत पुरुष अनामी**
प्रभु शिव शंकर ,भोले नाथ की दया कृपा है,समस्त देवी देवतावों की दया कृपा है ,
और तुझे चिट्ठी पत्री ,जो भेज रहें है अनाम पुरुष करतार तेरे सतगुरु अनामी पुरुष,ही भेज रहे है | उसको सुन और गुन,अधर देश को चल,तो उसको समझ देख करके चलते चलो ,देखते चलो |
***मंगल मन चित परम सुहावन ,सतगुरु संग गुनिया ***
देखो वो मंगल ,परम पवन देश है उसका गुड़गान करो और उसकी गड़ना करो उसका चितवन चिंतन करो और सतगुरुमय हो जावो|
***परम पुनीत दीन गुरु नामु ,नाम भजन अंतर गुनिया***
जो पवन पवित्र नाम सतगुरु ने दिया है उसको अंतर में गुनना है ,सुनना है,उसी के द्वारा सुमिरन ध्यान भजन करके अंतर में चलना है|
***परम अलौकिक शब्द धार हो ,घाट घाट सीढ़ी गुढिया ***
हर घाट में शब्द की डोरी लटकी हुयी है और जो गढ़ गढ़ कर के गुरु महाराज ने लटकायी है ,शब्द की डोरी हर घाट में लटक रही है और वो गूढ़ रहस्य्मयी डोरी है उस डोरी को पकड़ करके अपने सतधाम ,अपने सत देश में चलना है |आप लोग उसके लिए मन बना करके और ध्यान भजन सुमिरन में लग जावो|
***सत अनाम धार सतगुरु की ,सत नाम धुन सुनिया***
ऐ प्रेमियों सतनाम की जो धुन है ,वो सतगुरु के द्वारा दी गयी अमित वरदान है अमित छाप है |इसको अंतर सुनने के लिए ही सुमिरन ,ध्यान किया जाता है| गुरु महाराज में मन लगाया जाता है|गुरु महाराज से विनती प्रार्थना की जाती है |"हे मालिक हमपर दया करो ,हमें भी दिखाई ,सुनाई पड़े ,हमें भी अनुभव हो " तो मालिक परम दयालु है ,अंतर का दरवाजा खोल देते है|अंतर का घाट पात खोल देते है |जब सुरत,जीवात्मा ,साधक प्रेमी जो भी जन है ,यहाँ मानव पोल पर ,जब साधना बनने लगती है |वो सत धाम में पहुँचते है ,वहां की आवाज सुनतें है ,अधर में धस्तें है |वहां की खिलखत को अलौकिक,दिव्यता को देखतें हैं ,तो देख करके मंत्र मुग्ध हो जातें है ,और गुरु महाराज को जब देख लेते है ,पूर्ण सतधाम के दर्शन कर लेते है ,तो सतवान हो जाते है |
सतवत आ जाता है |उनमे परम अलौकिक दया की धार आ जाती है| बाग़-२ हो जाते है ,निहाल हो जाते है|
***गुरु महिमा गावै पुनि जोरि ,गुरु की मेहर बखान न थोरी***
वो गुरु महाराज की पूरी दया महिमा को गाते है,की हमको नामदान मिला | हमारे संत समरथ थे , उनकी दया मेहर से हमने सतधाम को देखा |वहां सतधाम में सत पुरुष को देखा |उनकी रचना और गड़ना को देखा |
उन्ही की दया मेहर से अगर नामदान नहीं मिलता,हमको समरथ सतगुरु नहीं मिलते, हमारे गुरु महाराज नहीं मिलते तो हमें इस तरह के दर्शन नहीं होते| हमें मुक्ति मोक्ष नहीं प्राप्त होता|
****परम अलौकिक दिव्य सुहावन,रूह रूहानी रास्ता पवन ***
परम अलौकिक मंगलमय देश है |रास्ता बड़ा पावन है,बड़ा निर्मल और पवित्र है और इस तरह की चीज है जिसके बारे में कोई गड़ना नहीं की जा सकती,ऐसा अदभुत नजारा हमने जो देखा है अंतर में |अपने सतगुरु, गुरु महाराज की दया कृपा से वो अवर्णीय है ,जिसका वर्णन नहीं हो सकता ,कोई यहाँ पर वर्णन नहीं कर सकता|

|| सतगुरु जयगुरुदेव||
अखंड भारत संगत गुरु की
सेवक : अनिल कुमार गुप्ता

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०५/०३/२०१५, समय: १२:०२


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बोलो बच्चु सतगुरू जयगुरूदेव :
रेड एेर्लट लागु हो गया फटाफट एक दुसरे को फोन/ नेट से सुचना देकर मोर्चा सम्भालने की तैयारी करो अब देर मत करो| सबमें अतिशय वीरता का जोश भर दो जल्दी करो , अतिशय शीध्र समय बहुत कम बचा है| सबके सतगुरू की एक आवाज पर संगठित होकर निकलने की तैयारी अतिशीध्र बना लो| शक्ति मैं प्रदान करूगॉ, चिन्ता क्यों करते हो | तुम्हारा सतगुरू जयगुरूदेव निजधाम नही गया है, यही विराजित है| मैं अपना काम पुरा करके ही जाऊँगा| मेरा एक भी वचन इधर उधर होने वाला नही है | मेरी एक आवाज पर सिर झुकाने वाले, सिर कटाने वाले लाश बिछाने वाले वीर हाजीर है| इनकी अतिशय हाजीर जबाबी का, इन जवानो के उबलते, दहकते खुन का कोई जबाब नही कोई मिशाल नही| ये अपने सतगुरू के बलिदान का खुलासा करने के लिये बेताब है, अधीर है| लेकिन यह सतगुरू के वचनो से बँधे है| बार बार सतगुरू के वचन उनकी अतिशय उज्जवल रूहानी पगड़ी का सम्मान, पगड़ी की ऊचाई का ख्याल आते ही अपने खौलते हुये लहु को दबाने की कोशिश करते है| लेकिन कब तक| अब इनको कोई नही रोक सकता ये वीर बालायें वीर वधु बन गयी आज और अभी | ये अपने सतगुरू की आन बान शान के लिये जलती चिता पर बैठ गयी| अपने आप से गले में फॉसी का फंदा लगाकर झुल रही है| अपने सतगुरू जयगुरूदेव की मान मर्यादा आन बान के लिये इनके जौहर की गाथाए सदा से लिखी पढ़ी जा रही है| सदा तक लिखी जाती रहेगी | ये जौहरी वीर वधूए अब हाथ में चुड़ियों के साथ नंगी तलवार भी चलाने के लिये अधीर है क्योंकि ये अपने सतगुरू जयगुरूदेव के बलिदान से पुरी तरह वाकिब है| ये सब जानती है| सतगुरू के एक एक अंग को किस तरह काटा छॉटा गया ये सब प्रतिदिन देख रही है(अन्तर में)| इनको कुछ बताना छुपाना नही है बस चुप है| पिता के वचन और इनके अतिशय रूहानी परम पुनीत पगड़ी के लिये लेकिन कब तक| ये अन्दर ही अन्दर दहक रही है लेकिन मालिक ने वचनों से बॉध के रखा है| इनकी वीर गाथा इनके जौहरी बलिदान की वीर गाथा मैं लिखुगाँ, मैं लिख रहा हुँ | अब तो वो होगा जो किसी युग में नही हुआ | ये मेरे अतिशय प्रिय रूहानी बच्चे हर वो काम वो मोर्चा सम्भाल लेगें जिसको आज तक कोई कर ही नही पाया| क्योंकि फुल पॉवर आजाद रोशनी सतगुरू जयगुरूदेव सदा से इनके साथ साथ है और सदा तक साथ रहेगें
बोलो बच्चो सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०३/०३/२०१५, प्रातः ७:४२ बजे


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
वीरो वीरांगनाओ सतगुरू जयगुरूदेव :
बच्चे अब तुम्हारे सतगुरू की तुम्हारी जरुरत है| अब अपनी अपनी कमान सम्भाल लो और अपने सतगुरू की आन बान के लिये निकलने की तैयारी करो थोड़ी बहुत सेवा जो बची हो मैलाई समझकर निकालते चलो करते चलो| वैसे ही जैसे किसी के दो चार बच्चे पॉच है तो एक बच्चा मुझे भी समझ लो मेरा है कौन| तुम्ही लोगो को लेकर तो इतना बड़ा सतयुग पुन: स्थापना का बीड़ा उठाया हुँ| अब सब मिलकर अपना अपना सेवा साधन सम्पन्न करो| अपनी गुत्थी सुलझाओ गठरी खोलो क्योकि-

यहॉ भुखा कोई नही सबकी गठरी में लाल
गिरा खोल खुलत नाही कुंजी लिये सतगुरु सरकार

क्योंकि नाम धन की बक्शिश करने के बाद भी रुहानी कुंजी सतगुरू स्वामी के हाथ स्वत: आ जाती है| इसके लिये मिन्नत करनी पड़ती है मिन्नती करनी पड़ेगी| इसके लिये सतगुरू के पास आना ही होगा, तन,मन,धन सब एवं विकरित अंगो को भी साथ साथ भेट करना पड़ेगा|

कौन सी अमोलक भेट करू सतगुरू को
नही वस्तु दिखे चौलोकन में
सतगुरू को दे ही क्या सकते हो, क्या है तुम्हारे पास| लेकिन सतगुरू की दयालुता कहन मनन से दुर है क्योंकि ये छोटी छोटी तुच्छ भेट भी स्वीकार करते है| कर लेते है| हमारे हम सबके भाव खराब न हो |अब समय की कीमत पहचानो और सतगुरू के वचनो पर मर मिट मिटने के लिये निकल पड़ो तो पूर्ण तैयारी बना लो| अब मेरे पास समय नही है सबको पुन: आमन्त्रण सतगुरू जसगुरूदेव की तरफ से भिजवा दो| मेरे बड़ेला दरबार पहुँचने के लिये पुरे विश्व में खबर कर दो मेरे रूहानी बड़ेला दरबार की | जो आ जायेगा सतगुरू के वचनो को सुनकर समझकर मान जायेगा उसका भी बचाव सतगुरू सतगुरू कर देगे|माफी दिलवा देगें|

माफी का माफीनामा सतगुरू जी ले आये
सबके माफी का परवाना दिलाता चलुँ
इतनी शक्ति दे मेरे सतगुरू जयगुरूदेव में
कि पुरी दुनिया में सतगुरू जयगुरूदेव का ढ़ंका बजाता चलुँ तहलका मचाते चलुँ
बच्चे अब सतगुरू के परम रुहानी स्वागत की बारी, शुभ मुर्हुत आ गया है| सतगुरू की परम दिव्य अतीशय रुहानी स्वागत के लिये मेरे बड़ेला दरबार घरो में ताले लगाकर पहुँचो घर बाहर दुनियादारी की सम्भाल मैं करूगॉ | चिन्ता क्यों करते हो तुम्हारा बाल बॉका कोई नही कर पायेगा | बच्चो अब तुम विश्व भ्रमण की अपनी पुरी तैयारी बनाओ अब मेरे पास समय नही जो पहुँच जाये मेरे दरबार उसे होश दिला दो माने या ना माने ये उसके उपर है|

जो भूलकर भी आ जाये मेरे बड़ेला दरबार
उसकी भी बेहोशी दुर कराते चलो
उसे भी सतगुरू जयगुरूदेव नाम की महिमा जताते चलो
वीरो वीरांगनाओ सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०२/०३/२०१५, प्रातः ७:२४ बजे


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरूदेव :
हँसी हँसी कन्त न पाइयॉ , जिन पाया तीन रोय
अरे बच्चे बच्चियों वह सतगुरू साई हँस हँस कर नही मिलता| उसके लिये रोना पड़ता है| बिना रोये तड़पे उसका दिदार नही होता है, अन्तर दर्शन की बात ही नही| बिन रोये नही पाइयों साहब को दीदार| मालिक के दरबार में अर्जी करनी पड़ती है| अंसख्य करोड़ो युगों से मिन्नत प्रार्थना करते करते तब भाग्य से सतगुरू मिलते है| विनती प्रार्थनाओं की झड़ियॉ लगा देते है और अखण्ड अमर सतगुरू जयगुरूदेव से मिलने के लिये विनती प्रार्थना करते रहते है
विनती प्रार्थना सतगुरू जयगुरूदेव मेरी सुन लिजियेगा
अरज पुरी करना या मत किजियेगा
सतगुरू स्वामी दाता दयाल बनकर हर युगों में आते रहे है और अबकी सतगुरू जयगुरूदेव बनकर अवतार लिये है, आये है| उनके एक एक बातो को सुनने के लिये बड़ेला दरबार पहुँचने की तैयारी करो देर मत करो | अब भी समय है जीवो को जागृत करने का जगाने का| एक नया तरीका अनोखा अपने ढ़ग से सबसे अलग थलग लेकर के इस पावन धरा धाम पर अवतरित हुये है| इस कुदरती करिशमाई अदभुत विलछण तरीके का स्वागत अभिनन्दन करो और अपने अपने घरो से निकलो और मेरे बड़ेला मन्दिर के बच्चो की सच्ची सदगुरू भक्ति को देखो और परखो क्योंकि ये इसी के लिये लाये जाते| अनन्त अजस्त्र सतगुरू मय दिव्य भक्ति धाम से इनकी महादानशिलता इनकी दिव्य सच्ची सतगुरूमय भक्ति को देखने के लिये दुनिया के कोने कोने से लोग लाये जा रहे है| अभी तो वो होगा जो किसी युग में नही हुआ है| सारे विश्व को एक ही झटके में झकझोर के रख देगें सब चकित रह जायेंगे| इनकी अमर सच्ची सतगुरू भक्ति को देखकर इनके अर्पुव सच्चे सतगुरू मय बलिदान को सुनकर समझकर
सुनने में ना आये समझने में ना आये
तो आ जाओ मेरे बड़ेला दरबार
ये मेरे बलिदानी बच्चे वो है जिनके लिये अभी शब्द नही, यहा शब्द है ही नही जिससे इनके बलिदान का बखान करूँ बस|
जब तुम सब मनाओगे दिवाली
ये खेल रहे होगें होली
जब तुम बैठोगें घरों में
ये झेल रहें होगे गोली
है धन्य भक्त ये सतगुरू के
और धन्य है इनकी अतिशय सच्ची सतगुरू भक्ति
बच्चे बच्चियो सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

प्रार्थना

छायी थी निशा अधेरी लेकर नया उजाला
सतगुरू जयगुरूदेव है पधारे, स्वागत करूँ मैं कैसे
कछु हाथ ना हमारे स्वागत करू मैं कैसे
मैं सतगुरू की शरण में आया, प्रण न निभाया
माया का भार भारी स्वागत करू मैं कैसे
ये सुरज चाँद सितारे इनको भी साथ लाया
फिर भी सतगुरू का स्वागत न कर पाया
बताओ सतगुरू अब तुम्ही मैं स्वागत कैसे करू तुम्हारा
छायी थी निशा अधेरी लेकर नया उजाला
वह दिव्य भाव व तेज कहॉ से लाऊ जो स्वागत करे तुम्हारा
तुम्हारे दिव्य तेज से तेजस होकर ही सतगुरू स्वागत कर सके तुम्हारा
छायी थी निशा अधेरी लेकर नया उजाला
अपने दिव्य तेजसमयी तेज की पावन धार हमें भी दिलाओ सतगुरू
फिर स्वागत करें हम सब मिलकर तुम्हारा
अब दुर हो निशा हमारी छा जाये नया उजाला
उस नये उजाले में उजास में स्वागत करें हम सब तुम्हारा
अब छा जाये दिव्य उत्सव हम स्वागत करें तुम्हारा
छा गया नया उजाला स्वागत करें हम सब तुम्हारा
सतगुरू जयगुरूदेव

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २८/०२/२०१५

सुरत जाने भेद वा घर का , सतगुरु दियो बतायी मोहे
खोजत खोजत रही फिरी मै , मिले पता न वा घर का
ढूंढत फिरूँ यहाँ वहाँ जग में , भेद समझ न पायी मै
अंतर भेद कैसे मिले जगत में , पिंड ये किसे छुड़ाऊं मै
वो घरी ले चले पिया मोरे , फिरूं न भेद हेरायी हो
सतगुरु स्वामी नाम अनामी , परमपद दियो बतायी हो
वा के घर से लौट न पाऊं , जगत में फिर न आऊँ मै
एक बार चढ़ी जो उपरि रह गयी , नीचे आवन के मन न मनाई मै
हे सतगुरु मोरे पिया बसे जहाँ , कैसन करो पहुंचाई हो
ता से मै कोई भेद न जानूं , तुम्हरी दया से पहुँच पायी हो
भेद कहूँ कैसे मै वा घर का , शब्दन मोहे न आन हो
मोरे पिया का देश है ऊँचा , चढ़त चढ़त थक जायी हो
पिया मोहे आवें लेवन खातिर , मनुज रूप धरायी हो
मोको समझ न आवे अब कुछ , पिया कौने देश बसायी हो
पिया भेद मोहें दीन्ही वा घर को , कछु न समझ मै पायी हो
सतगुरु स्वामी कहे भेद वो , हम संग तुम घर जायी हो
चढ़ी चलो अपनी अगम अटारी, पिया से मिलन कराई हो
मै मिल जाऊं रहूँ पिया संग , मन में यही समाई हो
शुकराना करूँ मै सतगुरु का , मोसे मुझको मिलाई हो
ता घर का कोई भेद ना कइहे , जो सतगुरु न बतायी हो
कहे मोरे सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी , अंतर भेद बतायी हो ll

सतगुरु जयगुरुदेव l
अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २७/०२/२०१५

ll मोरे कृष्ण कन्हैया तोहे राधा तेरी बुलाये
पल पल तेरी बाट ये जोहे अखियाँ बिछाए
कब आयेंगे मेरे कृषणा कोई तो मुझे बताये
दिन दिन पीर बढे अब मोरी कछु न समझ मोहे आये
हे गिरधर हे दीन दयाला तोहे राधा तेरी बुलाये
आन पड़ो हे मेरे स्वामी क्यों तुम मोहे तड़पाये
विष की प्याली पी रही जो तुझ बिन चैन न आये
हे समरथ हे कृपानाथ मोरे तोहे राधा तेरी बुलाये
ज्यूँ ज्यूँ बीते रैन दिवस तो ये पीर न मुझमें समाये
कासे कहूँ व्यथा अब अपनी कोई न समझने पाये
ह्रदय में ये प्रेम की ज्वाला हर दिन बढ़ती जाये
प्रियतम मोरे आन पड़ो तोहे राधा तेरी बुलाये
निशदिन देखूं स्वप्न मै तेरे रात्रि न मोहे सुलाये
काज न कोई सोहे मोहे मन बिलख बिलख रह जाये
क्यूँ समझो न प्रेम ये मेरा कौन जो तोहे बताये
स्वामी मोरे कान्हा मोरे तोहे राधा तेरी बुलाये
अब तरसूँ ये नैन ये बरसे कछु न मोहे सोहाये
बार बार तेरा रस्ता देखे नैन मेरे बरसाए
जो तुम न आये तो बोले राधा प्राण न मेरे छूट जाए
पिया मिलन की आस लगाए तोहे राधा तेरी बुलाये
मोरे कृष्ण कन्हैया मोरे तोहे राधा तेरी बुलाये ll

सतगुरु जयगुरुदेव l
अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:२६/०२/२०१५

हे रघुनन्दन जानकी नंदन , तुम हो मेरे सतगुरु स्वामी
तुम ही सबको भेद दिए हो , नाम खजाना लुटा रहे हो
जग जो जाने तुम्हें न पहचाने , तुम ही मेरे स्वामी अनामी
रात्रि दिन जो चल रहे हैं , सतगुरु मोरे आ रहे हैं
आन पधारो हे जगजीवन , तुम ही मेरे सतगुरु स्वामी
खोलो जल्दी घट के ताले , सतगुरु मोरे आ रहे हैं
अन्तर देखो भेद ये समझो , सतगुरु स्वामी को पहचानो
दया करो हे दीनदयाला , प्रभु मोरे धारे रूप निराला
रूप न समझे जो अंतर न देखे , सतगुरु मोरे आ रहे हैं
हे रघुनन्दन जानकी नंदन , तुम हो मेरे सतगुरु स्वामी
सतगुरु जयगुरुदेव l
अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:२२-०२-२०१५

सतगुरु न्यारी दया तुम्हारी , तुम बिन सतगुरु चैन कहा री
रैन दिवस तोहे नैन ये ढूंढें , सतगुरु तुम्हरी सूरत प्यारी
अंतर ढूंढें बाहर खोजे , खोजत खोजत नैन ये रोवे
अब तुम बिन कहीं रहा न जाये , कैसे कहूँ कछु कहा न जाये
नींद चैन सब खोये सुरतिया , तुम बिन अब ये जगत न भाये
तुम बैठे जो धाम अनामा , सुरत ढूंढें जाये उस धामा
ता की देखि छटा निराली , मनमोहक और अति मतवाली
पुनि पुनि लौट सुरत वहीं जाये , स्वामी सतगुरु के दर्शन पाना चाहे
हे सतगुरु स्वामी हे मुरारी , अब न खेलो आँख मिचौली
आ बैठो प्रत्यक्ष जगत , विनती करे सब जीव ये तुमसे
तुम बिन अब यहाँ रहा न जाये , आ जाओ प्रभु और कुछ कहा न जाये ||
सतगुरु जयगुरुदेव l
अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २५/०२/२०१५,प्रातः ६:३० बजे


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे, बच्चियों सतगुरू जयगुरुदेव :
तुम्हारे सतगुरू को अब तुम्हारी जरूरत है| अब अपने सतपथ पर चलकर अपने सतगुरू की भरपूर मदद करो| दुर असत से रहे बने हम सतपथ के अनुगामी, वाणी में हो अमृत-अनृत की पड़े हम पर छाया| इसके लिये तुम्हे अपने आप को अपने भाव कुभाव को सतगुरू को समर्पित करना पड़ेगा क्योंकि सतगुरू सबको अपनी तरह बनाना चाहता है| लेकिन जिसके जैसे भाव होते है वैसे मदद मिलती है|

हे सतगुरू तुम जिसे जैसा चाहो बनाकर निकालो ये सर्वसृष्टि है नाट्यशाला तुम्हारी|
नटो में कभी सतगुरू तुम बनकर आते हो नायक, ले आती है प्रेम प्रतिमा तुम्हारी||

सतगुरू महादानी होता है, अभेद है| उसका भेद कोई कोई ही जान सकता है| वो भी जिसको बताता है और वह भी जो अपने आप को मिटा कर सतगुरू में लय हो गया |

मिटा कर खुदी को खुदा बन गया
वही है जो पहचानते पुरे पुरे|
खिली क्यारियाँ सतगुरू की घट में
वही है जो पहचानते पुरे पुरे||

अब वचनो को माला की तरह पिरोते रहो | एक भी वचन की फिरौती नही सतगुरू के लिये, सतगुरू की दयालता का वर्णन नही हो सकता| उसके लिये शब्द ही नही बने है|

जो नही दे सका कोई भी आज तक
पुज्य सतगुरू जयगुरूदेव जी दे दिया आपने
आपने तप किया पुण्य हमको दिया
सतगुरू हमारे लिये विष पिया आपने
शिव हमारे लिये विष पिया आपने|

तो सतगुरूओ की लीला महिमा निराली है| बखान से परे है| अब जिस तरह बन पड़े, हो सके सेवा साधना समर्पण भाव से बस निमित्त मात्र करते रहो क्योंकि कोई कोई विरला ही सुरमा बन पाता है| जिसके लिये सतगुरू आते है और अथक परिश्रम करते है| चलना तो सबको है| इसलिये धरा धाम पर अवतरित हुये है | उनकी दानशीलता कहन मनन से परे है|उनसे मिलकर उन्ही की तरह बनने, लय होने की कोशिश करते रहो | सतगुरू को हम दे ही क्या सकते है, क्या है हमारे पास|

तन मन दिया तो भल दिया, सिरका जासी भार|
अगर कहा कि मै दिया, बहुत सहेगा मार||
अरे भाई सतगुरूओ ने जिस सच्चे धन की बक्शिश की है उसके बदले हमारे पास है ही क्या जो हम अपने सतगुरू को समर्पित करे अब तो बस

खुश रहना देश के सतपथियों, अब हम तो सफर करते है|
अब हम तो जहॉ से चलते है, अब हम तो यहा से चलते है||
बच्चे बोलो सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २३/०२/२०१५,प्रातः ६:१४ बजे


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बोलो बच्चु सतगुरू जयगुरूदेव :
सतगुरू के वचन आदेश पालन ही सतगुरू भक्ति है| सतगुरू के एक एक वचनो को माला की तरह पिरोते रहो, सहेजते रहो| एक शब्द की हेराफेरी नही, मिलौनी नही|सतगुरू के यहा उनके यहॉ उनके सच्चे साई के दरबार में मिलौनी नही चलती, उनके यहा आँख मिचौली का खेल नही होता| सच्चे साई के दरबार में दिव्य खुली आँख का दिव्य खुला नजारा एहसास पल पल होता रहता है| लेकिन इसको देखने समझने के लिये दिव्य सतगुरू भक्ति की जरूरत है|अपने भाव अभाव अपने आप को सतगुरू में मिलाकर ही ये सम्भव है,अन्यथा नही| वहा चतुराई फितरत नही चलती, बहसबाजी बकवासबाजी को अपने देश से निकालकर बाहर फेक दिया|अब सच्चा सतपथ सच्चे सतपथिक साथ साथ चल रहे है| जो सतगुरू के एक एक वचनो पर कुर्बान है, मर मिट रहे है| इनकी सतगुरू भक्ति की मिशाल कायम होने जा रही है| ये भारत मॉ के वो लाल है जिनसे ये धरती स्थिर है, टिकी है| इनके कुर्बानी लहु से हमेशा नहाती आयी है और आज भी इन वीरो वीरांगनाओ ने धरती को अपने लहु से सींच सींच कर सरोबार कर दिया है| अपने बच्चो के कुर्बानी का अमर इतिहास तो मै लिखने जा ही रहा हुँ| मै इनके कदमों में सारे विश्व को लाके खड़ा कर दुँगा, तब भी कुछ नही| सभी देव दानव इनके चरणो को देखने के लिये लालायित है | अभी आपने क्या देखा सतगुरू जयगुरूदेव का जलवा, अभी तो ठीक से शुरुवात ही नही हुयी है| ये मेरे बच्चे जो कह देगें सुन लेगें और देगें, वो एक भी इधर उधर होने वाली नही है| बस इतना है कि सतगुरू जयगुरूदेव नाम प्रभु का सच्चा नाम है|
सच्चा सतगुरू जयगुरूदेव खुद उतर के आया जमी पर मेरे लिये हम सबके लिये|
रूहानियत का सच्चा पैगाम ले करक सुनाया जमी पर मेरे लिये हम सबके लिये ||
अब अपने आप को देखो और सतगुरु को देखो, इधर देखो और सच्चाई के रास्ते पर चलकर मालिक का सच्चा दर्शन दिदार करो| खुली आँख से, और क्या चाहिये | मेरे बड़ेला दरबार में अतिशीध्र पहुँच कर सच्ची सतगुरू भक्ति का लाभ लो और दर्शन करो| यहा हर दिन उत्सव है| यहॉ पहुचने पर पलपल अन्तर उत्सव का एहसास लाभ होता है, होगा|
कल्याणेश्वर के शरण में आते ही दुखहारी दर्शन पाते ही पथ दर्शक सतगुरू जयगुरूदेव को बनाते ही आनन्द लाभ अतिशय होये|
सतगुरू तुम्हारी जय होवे
सतगुरू जयगुरूदेव तुम्हारी जय होवे||
बोलो बच्चु सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २२/०२/२०१५,प्रातः 6:0 बजे


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन अनु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बोलो बच्चु सतगुरू जयगुरूदेव :
बच्चे मेरे इस खेल में हैरान मत होना, जो मैने ठान लिया है वही होगा| उसे मैं करके दिखा दुगाँ, जो मेरे काम में बाधाँ पहुँचाने की कोशिश करेगा उसे मैं चुटकियों में मसल कर रख दुगाँ| तुम्हारे सतगुरू जयगुरूदेव का ये रूहानी कार्य (काम) होकर ही रहेगा| गाँधी महात्मा चुक हारे, मैं चुकने वाला नही ना ही चुकने वालो मे से हुँ| मुझे एेसा वैसा मत समझना, मुझे समझते समझते चकरघिन्नी खा जाओगे और जल्दी उठ नही पाओगे| अब जो कुछ होना था हो गया| सतगुरू के दरबार में लाइन लगी हुयी हुयी है| आने जाने वालो की कमी नही " आना हो तो आ जाओ, सतगुरू बुलावा भेजिया|
जाना है तो चले जाओ, दुबारा फिर सतगुरू बुलावा नही भेजिया||"
अब बडी होशियारी से सतगुरू के सच्चे बच्चे बनकर डटकर काम करने की जरूरत है| इधर उधर देखने से कोई लाभ नही है| अपने सतपथ को देखो, सतगुरू को बेकली से अधीर होकर पुकारो अवश्य सुनेगा| सब सुनेगा , यही सुनने के लिये मशीहा बनाकर लाया गया| सतगुरू के मशीहे खेल में हैरान मत होना, इससे सुरतों मे निखार आता है| सतगुरू मशीहा बनकर आते है| उनके दरबार मे/ बड़ेला दरबार में ऊँच नीच का, जात पात का कोई भेदभाव नही | सबके दु:ख दर्द की सुनवाई वो मशीहा सतगुरू जयगुरूदेव स्वंय करते है| क्योंकि वही कुल मालिक यहाँ विराजमान है, जिनके बिना सृष्टि में कम्पन्न नही होता| एक पत्ता भी नही हिलता|
" सतगुरू तुम्हारी कृपा बीन एक पग भी नही चल पाती|
हाथ पकड़ा है सतगुरू तुमने हमारा
बाँह पकड़ते ही सतगुरू तुम्हारी मुझे भी सतधाम की राह दिखाती||
सतधाम मे जाकर मिलाती||
लगन बढ़ाते चलो लगन लगते ही खीचाव शुरू हो जायेगा अब जल्दी करो देर मत करो, मुझे तुमसे भी ज्यादा जल्दी है| तुम्हारी अधीरता और बेकली सतगुरू को अतिशय प्रिय लग रही है| ये महात्माओ के खेल है| इसको समझते चलो| आसमान में गोले बारूद छुट रहे है| बराबर आवाज आ रही है | सुरत उपर जाने के लिये विकल है | ऊपर आगवानी के लीये स्वागत का थाल सजा सजा कर हर मण्डलों में खड़े है| लेकिन सतगुरू स्वामी अपनी सुरत को जाने नही दे रहे है| साथ साथ लाये है और साथ ही लेकर जायेगें परेशान मत होना, धीरे धीरे सब काम होगा एकबारगी नही| सब लोग इसी तरह बेकली में आ जाये , सतगुरू हाजीर नाजीर | इसमें देर किस बात की, अब सब लोग सेवा साधन मिल मिल कर करते रहो काम आसान हो जायेगा|
बोलो बच्चु सतगुरू जयगुरूदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - अनु सिंह
ग्राम : सोहावल, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 24/02/2015

Mukti Divas Karyakaram From 22 March 2015 to 24 March 2015 in Badela


सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, जिला: फैज़ाबाद, ( अयोध्या) , उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19/02/2015

सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु जयगुरुदेव : परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज की दया मेहर से महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर तीन दिवसीय कार्यक्रम सतगुरु जयगुरुदेव अखंडेश्वर मंदिर एवं सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ग्राम - बड़ेला में स्वामी जी दया मेहर से सम्पन्न हो गया | मालिक की अशीम दया और कृपा रही | मालिक ने बहुत से प्रेमियों को अंतर में अनुभव कराया | गुरु भाई - अनिल कुमार गुप्ता जी ने रूहानी सत्संग जो गुरु महाराज अंतर में सुना रहे थे वही सत्संग सभी गुरु भाइयों और बहनो को सुनाया | सभी गुरु भक्त भाई - बहन मालिक की दया पाकर ख़ुशी से झूम उठे|

Mahashivratri Karyakaram


सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 21/०२/२०१५

उस अनामी महाप्रभु की मौज से ये सारा पसारा बनाया गया l इस पसारे का सिमटाव भी उसी की मौज से होगा l वो जब चाहे इसे समेटने की मौज फरमा सकता है क्यूंकि वो सर्वसमरथ है l ऐसे सर्व समरथ सतगुरु को छेड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए l उसे पल भर लगता है सब कुछ मिटाने में l वो पल भर में सब कुछ समेट सकता है l
वो अनामी प्रभु अपनी मौज से ही सब कुछ करवाता है और अपनी मौज से ही वो स्वयं यहाँ आता है l उसके साथ उसकी अनेक शक्तियां जो स्वयं उनके धाम में उन्ही के साथ रहती हैं , वो भी यहाँ उनके साथ रहती हैं l कोई उन्हें जान समझ नहीं सकता न ही पहचान सकता है क्यूंकि वे स्वयं भी सतगुरु के समान ही सदैव मर्यादा में रहते हैं l
सतगुरु के वचनों में बड़ा भेद छुपा होता है l यदि कोई जीव सतगुरु के वचनों को बार बार पढ़े और उसका भेद जानने का प्रयास करे तो वस्तुतः स्वयं सतगुरु उसकी मदद कर देते हैं और जीव उसके सार को समझ पाता है l
जब जीव को अपने सतगुरु के समरथ होने का बोध होता है तो उसे दुःख होता है कि इतने समरथ संत के अधीन होकर भी आजतक वो ये भेद क्यूँ नहीं समझ पाया और सतगुरु के चरणों में रोकर अपनी भूल की क्षमा याचना करता है l
सतगुरु भी जीव के प्रेम में विह्वल होकर उसे उसका भेद बताते हैं और यही भेद ही उस जीव की असली पहचान होती है जिसे आत्मसाक्षात्कार कहते हैं l
इस आत्म साक्षात्कार के बाद जीव इस जगत के बंधन से स्वयं को मुक्त पाता है l उसे हर जीव में सतगुरु का अंश नजर आता है और वो यही चाहता है कि ये जीव भी सतगुरु की दया कृपा को समझ सकें l उसे इस जगत से कोई लगाव नहीं रहता बल्कि सतगुरु के जीवों व अन्य लोगों को समझाबुझाकर उन्हें इस पथ पर लगाकर वो जीव कल्याण का कार्य करना चाहता है l
वह जीव स्वयं भी सतगुरु के समान ही हर प्रकार से इस जगत मर्यादा का पालन करता है और रंग मंच के एक मंझे हुए कलाकार की भांति इस जगत में एक साधारण जीव के रूप में रहता है l इस जग में रहते हुए भी इस जगत से जुड़ता नहीं बल्कि अपने असली धाम से जुडा रहता है और हर पल अपने सतगुरु की याद में रहते हुए इस जगत के सारे कार्य करता है l
ऐसा जीव कोई विरला होता है जो संत सतगुरु की दया से अपना भेद समझ पाता है l यह जीव अन्य लोगों के लिए मिसाल कायम करता है l
जीव को चाहिए कि वो सतगुरु में लगन बनाए रखे l उस पथ पर चलता रहे और चलता रहेगा तो एक न एक दिन अपने सतगुरु की दया कृपा से निजधाम अवश्य ही पहुँच जाएगा l

सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २०/०२/२०१५,प्रातः ५:३८


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु हाड मांस का पुतला नहीं है | वो एक पावर है ,फुल पावर ,वो एक आजाद रोशनी है | जहाँ जिसकी जब इच्छा होती है वहीँ प्रकट होकर मदद करता है | फुल पावर काम करती है |सतगुरु की ये दिव्य रूहानी अतिसय प्रिय खेल है |उनकी रूहानी सौकत है | इसमें हैरान मत होना | ये रूह जनम जनम से यहाँ कैद है | इस कैद खाने से छूटने के लिए उसके रोम रोम से सतगुरु जयगुरुदेव की गोहार निकलती है | वो अपने सतगुरु स्वामी को ढूंढती है | खोजती है | वो खुद नहीं समझ पाती की उसे क्या हो गया है |उसके सतगुरु साईं उसकी सुनते नहीं है ,न उसकी बातों को ध्यान देते है |उसकी ब्याकुलता दिन-२ बढ़ती जाती है | अधीर होकर सतगुरु को पुकारती है |
पुकारे भी किसको उसको सतगुरु के सिवा दिखता नहीं |
"जगत में यहाँ वहां न समरथ किसी को पायी |
बतावो सतगुरु अब समर्पण किसको करायी |"
सतगुरु के दरश के लिए ब्याकुल है |पलकों के छावों में सतगुरु को बिठाने के लिए बेचैन है |
"निगाहें झुक गयीं ऐसे /झुक रहीं ऐसे ,मिलन हमराज कब होगा|
निगाहें रो रही ऐसे ,जैसे मिलन हमराज होता है |"
सतगुरु साईं करें भी तो क्या करें उनकों तो सबको पार करना है |लेकर चलना है |वो जगत के मशीहा बनकर आते हैं |जीवों को जगातें है ,चेतातें है | सबको साथ लेकर चलतें है |सब उसी देश से आयें है | वहीँ सबका मूल निवास है,दिव्य निवास है |फिर क्या सतगुरु से माफ़ी कराकर अपने दिव्य देश चलने की तैयारी करो | यहाँ का रोना धोना छोड़ों | अब जल्दी करो ,समय की कीमत समझो ,सतगुरु के पास समय नहीं है |इसलिए सभी साधकों अपने आप को सतगुरु के भरोसे छोड़कर साधना करो |दृव काम भी आसान हो जाएगा |लेकिन इसके लिए अंतर से रोना /अतिसय रोना पड़ता है |
"बिन रोये नहीं पाइए ,साहब का दीदार|
सतगुरु साहब तेरी दिव्यता जग में रही समाय|
बलिहारी वह जग की जिस जग में प्रकट भयो आय |"
सतगुरु बुलावा भेजिया ,सुरत हो गयी मौन |
क्या सतगुरु की छाँव में ,क्या दुनिया की झाँव |
दोनों में सतगुरु दिखे ,दोनों की कर लेई सेव |
सतगुरु के शब्दों को माला की तरह पिरोते रहो ,और आगे बढ़ते रहो| अनवरत गति से आगे पीछे ,और अनंत युग आगे का रहस्य धीरे-२ खुलता जाएगा |सूरत की मौन भाषा जल्दी किसी को समझ में नहीं आती | जितना बताती है ,उतना समझते चलो ,आसानी से खराब समय भी कट जाएगा |बीत जाता ही है |करम की रेख पर ,सतगुरु से मिलकर मेघ मार दो ,और भजन करो |
"भजन कर मंगन रहो मन में |
बिन शब्द तेरा कोई नहीं जग में |
शब्दन से समझौती कर अभिन चढ़ो गगन में |
सतगुरु सूर्य का दर्शन करो ,चढ़ी चलो अपने भवन में |"
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 19/०२/२०१५

सतयुग सतगुरु आगमन की बेला का शुभ नूतन संदेश -
गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l
आज इस पावन बेला पर मै अपने सभी सतयुगी बच्चों को आशीर्वाद देता हूँ कि वो जो भी कार्य करेंगे , उनके अन्दर सतगुरु का जो तेज है वो उन्हें कार्य में सफल बनाएगा l हर हाल में सतगुरु के बच्चों की ही विजय होगी l उनके पास जो आतंरिक शक्तियां हैं वो बेजोड़ हैं l ऐसी शक्तियां समूचे विश्व में सिर्फ सतगुरु के बच्चों के पास ही हैं l
सतगुरु के खेल निराले हैं और तुम्हारी बुद्धि से परे हैं l इन्हें अपनी बुद्धि से समझने का प्रयास कभी मत करना l सतगुरु सर्वसमरथ है और जो चाहे वो कर सकते हैं l सतगुरु की सतयुगी पावर उनके बच्चों में निहित है l उनके बच्चे बोध कर रहे हैं और कार्य पर लग गए हैं l अब विश्व को चौंका देने का वक़्त आएगा l जब तुम दांतों तले उंगली दबा लो तो समझ लेना सतगुरु के बच्चे कार्य कर रहे हैं l उनकी शक्तियों को देखकर हैरान मत होना l ये वही शक्तियां हैं जो पुरातन काल से भारत का इतिहास रचती आ रही हैं l पुनः ये भारत का इतिहास बनाने आई हैं l पहले से इनमें शक्तियां थीं किन्तु इन्हें इनका बोध न था l अब ये बोध में आ रही हैं और खुद का रचा हुआ इतिहास समझ रही हैं l यही इतिहास इन्हें इनकी शक्तियों का बोध करा देगा l पूरे बोध में आ जब ये खड़ी हो जायेंगी तो कोई इनके आगे टिक नहीं पायेगा l भारत का इतिहास इन्ही शक्तियों की गाथाओं से भरा पड़ा है l
मेरे बच्चों अपने कार्य पर अडिग रहो l तुम्हारी हिम्मत और साहस का पूरा विश्व कायल होगा l अब तुम सब कार्यों को समझो और उसे पूरा करने में लग जाओ l तुम जैसे जैसे काम करते जाओगे तुम्हें अपनी शक्तियों का ज्ञान होता जाएगा l तुम्हारा विश्वास ही तुम्हारी शक्ति है l अपने विश्वास को कायम रखना l ये तुमसे बड़े से बड़ा काम करवा लेगा l
जब सतगुरु की मौज और उनके बच्चों का बोध पूरा होगा तो सतगुरु प्रत्यक्ष दर्शन की मौज करेंगे l सतगुरु को जल्दी इसलिए है ताकि उनके बच्चों की प्रत्यक्ष दर्शन की मुराद जल्द से जल्द पूरी हो जाए l यही इच्छा सतगुरु की भी है l वो भी अपने बच्चों से मिलने के लिए उतनी ही तड़प रखते हैं जितनी उनके जीव और बच्चे l
ll सतगुरु दया करो , मौज फरमाओ
प्रत्यक्ष दर्शन दे , अधूरी प्यास बुझाओ
आ जाओ ह्रदय की वेदना न और बढाओ
आपके जीव पुकार रहे अब जल्दी आओ ll
मालिक ने इन वचनों को लिखवाया है और अंत में मैंने मालिक से प्रत्यक्ष दर्शन की विनती करी |
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २०/०२/२०१५,प्रातः ५:३८


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
मालिक के शब्दों में सुरत स्वामी संवाद :
"हे सतगुरु तुम कहाँ से आये ,कौन है देश तुम्हारा"
सुरत अपने सतगुरु से पूंछ रही है |हे सतगुरु मेरे मालिक तुम कहाँ से आये |कौन सा देश तुम्हारा है |
"मै तुमको खोजत फिरूँ ,कहीं न मिले ठौर ठिकाना ":
सुरत अपने सतगुरु को हर जगह खोज रही है और मालिक से प्रश्न करती है |हे मालिक मुझे अपना पता बता दीजिये |आपका अता पता नहीं मिल पा रहा है |:
"मुझको कहाँ ढूंढे रे बन्दे ,मै तो तेरे पास में "
सतगुरु मालिक कहते है |मुझको कहाँ ढूंढ रहे हो बच्चे ,मै तो तुम्हारे पास अंतर में बैठा हूँ |अपने बच्चों का अंतर्घट ही मेरा पता है ,यही मूल ठिकाना है ,यहीं मै रहता हूँ |
अपने अंतर्घट जाग री,सुरत सुहागिन |
तेरे अंतर्घट में ही ,तेरा अमर सतगुरु जयगुरुदेव सदा विराज री |
सुरत सुहागिन |
हे सुरत तेरे निज अमर घाट पर ही तेरे अमर सतगुरु जयगुरुदेव का आसन है ,बैठक है |वाही तेरा सतगुरु जयगुरुदेव आसन लगाकर विराजमान है और वहीँ से निरंतर पुकार लगा रहा है |
"हे सुरत तुम निज घाट पे आवो ;
यही से दिखे इक तारा,बिन्द निराला|
यही बुंद तुम पकड़ कर आवो ,
तोहे मिल जाए अमर सतगुरु जयगुरुदेव सिंधु अपारा"
हे सुरत तू अपने निज घाट पर बैठकर सदा विराजमान अपने सतगुरु को अपलक निहारने की कोशिश में लग जावो |वहीँ तेरे सतगुरु की झलक दिखाई देगी ,वाही तेरा मूल आधार है | जो कुछ दिखाई दे उसे पकड़ कर अपने सच्चे सतगुरु के देश चलने की तैयारी करो | इसी बिंदु को पकड़ कर अपने अमर सतगुरु जयगुरुदेव रुपी सिंधु में मिलने की कशिश ,जतन करो |वहीँ सतगुरु तुझे सच्चा पता ठिकाना दिखायेंगे |
"चल री सुरत सुहागिन ,अब अमर सतगुरु जयगुरुदेव के देश |
जहाँ मिले न सतगुरु के सिवा ,कोई दूजा सन्देश |
अमर सतगुरु जयगुरुदेव दया से मिला यही देश |
यही अखंड सतगुरु जयगुरुदेव ,मंदिर बड़ेला |
यही तेरे अमर अमिट सतगुरु जयगुरुदेव का देश |
यही सतगुरु देशवा की ,करीय खोजरी मोरी सुरत सुहागिन |
यही बड़ेला देशवा में आई ,विराजत अमर सतगुरु जयगुरुदेव तोर री |
मोरी सुरत सुहागिन |"
हे सुरत अब अपने सतगुरु के बड़ेला मंदिर में पहुँच कर | अपने निज काम में लगकर अपने सतगुरु में मिलने की कोशिश करो |
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 18/०२/२०१५

सतयुग सतगुरु आगमन की बेला का शुभ नूतन संदेश -
गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l
बच्चों तुम अपने को प्रकाशित समझो l तुम्हारा वो सतगुरु अपने तेज से तुम्हें प्रकाशित कर रहा है l तुम स्वयं को सर्वशक्तिमान समझो l विश्व में कोई भी दूसरा तुम्हारी बराबरी नहीं कर सकता है l तुम्हारे अन्दर तुम्हारे सतगुरु का तेज प्रकाशित है l यह प्रकाश तुम्हारे कार्यों के रूप में पूरे विश्व को चकित कर देगा l चारों तरफ ‘सतगुरु जयगुरुदेव’ नाम गुंजायमान कर दो l विश्व में अध्यात्म का ज्ञान फैला दो l देश और दुनिया को दिखा दो कि सतगुरु के बच्चे कितने वीर होते हैं और क्या कर सकते हैं l
तुम्हारी एक ललकार से सारा पूरा विश्व गूंज उठेगा l अपनी शक्ति को किसी के आगे कम मत समझना l मै सदैव अपने बच्चों के साथ हूँ l हर प्रकार से उन्हें उठाने और उनकी मदद के लिए तैयार हूँ , तुम हाथ बढाकर तो देखो l
बच्चों अब समय ज्यादा नहीं रह गया है l तुम सब भी जल्दी जल्दी तैयार हो जाओ और अपने अपने काम पर लग जाओ l किसी भी काम में डरो नहीं , न ही व्यर्थ की चिंता करो l सब काम समय से हो जाएगा | बस तुम्हें प्रयास मात्र करना है l सतयुग जी का आगमन उत्सव हो चुका है l नित नए कामों को करते जाओ और उत्सव मनाते जाओ l अब तो उत्सव मनाने का समय आ चुका है l सतगुरु आगमन के उत्सव की भी तैयारी कर लो l तुम लोग अपने कार्यों में तेज़ी लाओ l मै भी तुम सब से मिलने के लिए बेचैन हूँ l
अब सतयुग देवता अपने सिंहासन पर आ विराजेंगे l उनकी गर्जना से अलग अलग स्थानों पर कलयुग के पाँव उखड़ने लगेंगे l सारा काम कुछ ही समय में होना प्रारम्भ हो जाएगा l
मेरे बच्चों अधीर मत होना तुम्हारा सतगुरु हर पल तुम्हारी संभाल कर रहा है l तुम उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो | वह तुम्हारे पल पल पर अपनी निगाह रखे हैं l अपनी पुरानी स्म्रतियों को भूलकर नए सतगुरु स्वरुप के आगमन की तैयारी कर लो l अंतर में तो हर प्रकार से भेद बता ही चुका हूँ l नए लोग जो आये उन्हें भेद समझा देना l
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 17/०२/२०१५

सतयुग सतगुरु :
सतयुग बोले छटा निराली , मनभावन और अति मतवाली
झूम उठे सब नाचे गाये , आओ देखो सतगुरु आये
सब मिल गाओ मंगलगान , धूम मचे और गूंजे तान
ढोल नगाड़े बाज रहे हैं , देखो सतगुरु मोरे आ रहे हैं
सतयुग की अब बेला आई , धाम बड़ेला खुशहाली छाई
रामराज्य पुनः फिर आये , धर्म की बेल चढ़ी है जाये
सतगुरु काज पूर्ण करने को , सतगुरु जी के बच्चे आये
वीर और वीरांगनायें है तैयार ,सतगुरु आदेश पर बैठे आज
जगत में कोई जान न पाए , पुनः ये तो वही हैं आये
भारत का इतिहास रचा है , उनके बलिदान की ये गाथा है
पुनः वही इतिहास दोहराए , सतगुरु काज करन वो जाए
संग जो उनके संगी साथी , हैं आसाधारण अति बलशाली
सतगुरु जी की दया निराली , कहे वो गाथा वही पुरानी
बार बार वो ये दोहराते , काज करन को ही तुम आये
सतगुरु बोले भेद पुराना , जान समझ और तुम लो माना
अपने आप को तुम पहचानो , अपनी शक्ति स्वयं में ही जानो
उठो चलो अब हो तैयार , सतगुरु आवन का है ये विचार
सब मिल गाओ मंगलगान , चले चलो सतगुरु के धाम
ग्राम बड़ेला में आ के विराजे , सतयुग जी सतगुरु के संग
अखंडेश्वर है नाम बतायो , मिले जहाँ सतगुरु के अंग
सब मिल बैठो आज यहाँ तो , सतगुरु जी हो जाये प्रकट
सब मिल करो सतगुरु के काम , सतगुरु के अंग जो धाम अनाम
समझ बूझ से सतगुरु दिये समझायी , सब मिल काज करो अब जायी
नूतन यह बेल है आयी , सुरत सतगुरु का स्वागत गायी
सब मिल गाओ मंगल गान , धूम मचे और गूंजे तान ||
अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 16/०२/२०१५

सतयुग सतगुरु :
सतगुरु दया कीन्ही बतलानी , निर्मल सुरत होये यह जानी
स्वयं में फूले वो न समाय , विचलित होये पर खुशी मनाय
सतगुरु होवे प्रसन्न अरूप में , हुए पुलकित वो सब स्वरूप में
ता की कृपा कोऊ न जानी , अंतर जीव वो ही भेद यह जानी
सुरत चले जब गगन आकाशा , स्वयं में पाये अनाम प्रकाशा
सतगुरु स्वामी दियो मिलाई , स्वामी में सुरत जाये समाई
सतगुरु पुनः कृपा बरसानी , दे वरदान फिर वो मुस्कानी
राधास्वामी नाम जगत में , पुनः स्थापित होये यह जानी
सुरत सुहागिन होई ये जाय , जग में लौट कबहुँ न आय
पिता दीन्ही मोहे रूप सुहाना , अचरज पुलकित होये यह जाना
सतगुरु दया का रूप दिखाना , स्वामी शब्द का भेद बताना
हे नाथ दयालु यह दया विचारी , बोलूँ मै क्या कोई शब्द न जानी
आपकी महिमा अब मै जानी
छोड़ूँ न अपने पिता का घर मै , स्वामी संग चाहे जाये बसानी
हे दयालु हे करूणानिधि , मेरी तुमसे ये विनती
मुझ पर ऐसी दया की धार देना
सतगुरु के वचनों को पूरा कर पाऊँ ये वर देना
मात पिता सखा पिया सब तुमको माना
जो तुम कहो वही करूँ अब ये है जाना
जगत तलवार की धार पर चलती रहूँगी
सतगुरु का नाम रौशन करने मरती मिटती रहूँगी ||
अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: 14/02/2015 प्रातः 5:30


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव :
वीरों वीरंग्नावों सतगुरु जयगुरुदेव
बच्चे अतिसय दृव परिस्थियों में हँसते रहो ,रहना। तुम्हारा जुझारू करमठी ब्याक्तिव सतगुरु को अतिसय प्रीय है ।
"पर्वतों को काट कर सड़कें बना देंगें ये।
असंखों मरभूमि में रूहे जगा देंगें ये ।"
अब सब काम तुम सब को करना है ।जो कोई भी नहीं कर पायेगा ,वो सब काम तुम सब चुटकी बजाते हुए निपटा दोगे। तुम्हारी अंतर शक्तियों का अभी किसी को पता नहीं है ।पता चलते ही तुम्हारे ऊपर खतरे मंडराने लगेगें ।अतः कुछ दिन के लिए तुम सब को छुपा लिया जाएगा ।बस निमित मात,तुम्हारे छुपते ही सबके क्रिया कलाप बंद हो जायेंगें ।सब अबाक रह जायेंगे ।फिर क्या होगा कुदरत का अद्भुत करिश्मा बनकर सबके बीच आयेगा और अपने तौर तरीके से शुरू हो जायेंगें ।कुदरती सारे क्रिया कलाप फिर से शांत और स्थिर भाव से स्फ्रीत हो जायेंगे ।
" बंद नहीं अब चलतें रहेंगें ,नियत नटी के क्रिया कलाप।
पर कितने एकांत भाव से और कितने चुपचाप ।"
मेरे शांति के मिसाल मेरे बच्चो पर कोई खतरा ,कोई डोरे डालने की कोशिश करेगा ,कोई तंत्र मंत्र करने की कोशिश करेगा ।मै फाड़ के रख दूंगा ।बहुत देख चुका ।बहुत बर्दास्त किया ।अब तो वो होगा जो किसी युग में नहीं हुआ ।मेरी अखंडता और एकता के सपनों को मेरे बच्चे साकार करने जा रहें है ।देखता हूँ कौन माई का लाल रोक सकता है।
अब बच्चो तुम सब हंसी खुसी से अपनी हर आने वाली सुबह का स्वागत अभिनन्दन करो ।अब तो तुम्हारा हर एक दिन नया नया उत्सव लेकर आएगा। खुद सतगुरु के रूहानी उत्सव में नहावो और सबको रूहानी उत्सव रूहानी गहराई में तैरने के लिए बुलावा भेज कर बुला लो।
तुम्हारा समरथ सतगुरु बड़ी बेसब्री से इंतजार रहा है ,अपने सभी बच्चों का ।
अब देर मत करो ।सतयुग स्वागत उत्सव म्नावो ।मेरी अतिसय मंगल सुभकामना तुम सबके साथ है ।
वीरों वीरंग्नावों सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १०/०२/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
बच्चों ये तुम्हारे सतगुरु का सतयुगी सत्संग की धार है |
ये सतगुरु की मौजमर्जी से बह रही है | कितने युगों से कितने अनंत युगों तक बहती रहेगी | इसका कोई वारा पार नहीं |
सतगुरु के सतयुगी निर्मल दिव्य सत्संग का अलौकिक दिव्य आनंद , इनके सतयुगी बच्चे तो ले ही रहे है | जाने अनजाने में , ये अपूर्व आनंद उनको भी मिल रहा है | जो मेरे बड़ेला दरबार पहुँचने की तैयारी कर रहे हैं |
अब मेरे पास पीछे देखने का समय नहीं है | बहुत हो गया ,अब सब लोग अपनी कमान स्वयं सम्भालो | मुझे किसी की जरूरत नहीं है |
मेरा काम पूरा हो गया , रंच मात्र बाकी है वो भी पूरा हो गया समझो | इसे कोई रोकने वाला नहीं है | मेरे रूहानी खेल में हैरान होने की जरूरत नहीं है | हैरान भी मत होना | मेरे रूहानी खेल मेरे सतयुगी बच्चे ही समझ सकतें है | इनके अलावा मेरा है ही कौन |
ये मेरे छत विछत अंग है | मेरे छत विछत एक एक अंगों को , मेरे बच्चे जोड़ रहें है | बच्चे ये सब अंग जब जुड़ जाएंगे , तो तुम्हारा सतगुरु प्रकट हो जाएगा | अब जल्दी करो देर मत करो | तुम्हारे सतगुरु को तुम्हारी जरूरत है | तुम अपने आप को सतगुरु के हवाले कर दो |
"हो गये हम फ़िदा जाने तन सत साथियों |
अबतो सतगुरु के हवाले कर दिए सबकुछ सत साथियों|
साँस थमने न पाये ,नब्ज रुकने न पाये |
अब लाहू सतगुरु का गिरने न देंगे |
हो गाये फ़िदा अपने सतगुरु पर ,जाने तन सत साथियों |
अब तो सतगुरु के हवाले ,सत साथियों |
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १२/०२/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
ll सतगुरु मोहे दिखाए भेदा , छुप कर रहा वो सतगुरु अभेदा
सबसे अलग सबसे अनूठा , ब्रह्म , पारब्रह्म , अनाम में बैठा
ता का भेद न समझे कोई , सतगुरु कहे तो समझे सोई
ता में प्रभु लीला दिखलाये, भेद बताये क्यूँ लीलाधारी कहलाये
उनमें वो जा जा के समाये , बार बार मोहे यही दिखलाये
सुरत अचंभित बैठी उसमें , सतगुरु कहे रहो तुम जिसमें
ता का भेद ना जाने कोई , अंतर जीव भी कोई कोई पहचाने
सतगुरु दिखाए मोहे रूप अनोखा , सतगुरु दया से मैंने देखा
रूप निराला अति मन भाये , बार बार सुरत उसे देखे जाए
देखे रोये और पछताए , पहले जो भेद समझ ना पाए
रह रह कर मन पुलकित होवे , भेद समझ यह अति प्रसन्न होवे
कीन्ही दया प्रभु भेद बतायी , मुझसे स्वयं की पहचान कराई
सुरत रोये चरनन में जाए , क्यूँ यह भेद समझ नहीं पाए
सतगुरु दया पे मर मिट जाए , सतगुरु स्वामी को निहारे जाए
सुरत को हुई अति पीड़ा भारी , कहहुँ भेद तो हुई आभारी
मन पुलकित पर नैनन से रोये , सतगुरु भेद अब उसे समझाए
मत रोवो और न पछताओ , जगत मर्यादा जो तोड़ ना पाओ
संस्कार थे ऐसे भारी , विचलित हुई वो जाए विचारी
तुमको तुम्हारा भेद बताया , अंतर में स्वामी से मिलवाया
भेद जब तक न जाने पायी , विचलित रही हर मन में समाई
अब समझो और बूझो जानो , लीलाधारी को पहचानो
स्वयं की शक्ति स्वयं में मानो , अंतर में असली पहचान तुम जानो
सतगुरु उसे समझाए हर पल , दोषी न समझो खुद एक पल
सतगुरु को सदैव है तुमने माना , तभी आज ये भेद है जाना
दो नहीं तुम अब एक हो शक्ति , करो सतगुरु की पूरण भक्ति
सतगुरु काज को सर पर धारो , दिव्य सुरत बन दिव्यता को धारो
करो तुम अपना काज पुराना , विश्व को तुम्हें है पुनः बताना
सतगुरु प्रेम ही सब कुछ जाना , जगत मिथ्या का ताना बाना
पुनः निर्माण करो उस स्वरुप का , राधा गोविन्द के रूप का
जग को तुम दियो जाए बताई , सुरत स्वामी भेद दियो समझाई
राधा सुरत और गोविन्द हैं स्वामी , बिन गोविन्द राधा अधूरी मानी
सुरत को स्वामी से दियो मिलाये , राधा गोविन्द फिर एक होयी जाए
ये आशीर्वाद मैं तुमको देता , सतगुरु काज तुम्हें है सेता
अपने को सम्पूर्ण है जानो , अपनी शक्ति स्वयं पहिचानो
शुरू करो सतगुरु काज आज तुम , सतगुरु काज की बनो मिसाल तुम
समय के भेद को तुम अब जानो , स्वामी इच्छा को सब कुछ मानो
सतगुरु काज तुम मिल करो जाई , मिलजुल काज सम्पूर्ण होई जायी
करूँ विश्वास मैं अपने देखा , सतगुरु सर्वश्रेष्ठ आलेखा
उनके काज अब करूँ मैं जायी , काज करत ही अपने धाम को पायी ll
सतगुरु जयगुरुदेव


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ११/०२/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
|| हरि अनन्त हरि कथा अनंता ||
इस अनंत के भेद को जानने के लिए पूर्ण विश्वास के साथ हरिमय होना पड़ता है | उस हरि के धाम को जाना पड़ता है | मन मगन रहता है उसके चरणों में तब जाकर वो हरि मिलता है |
|| मन माने ना जाने कोई , हरी को भजे सो हरि का होई || तुम सब अपने मन में शंका मत लाओ | जो कहा जाए उसे समझो और मानो | कोई विरला ही ये करता है | तुम वो विरले बन जाओ | हर आज्ञा को सिर पर रखकर चलो | बुद्धि का प्रयोग करने वाले तो दरकिनार हो गए | अब मुझे ऐसे लोगों की जरुरत नहीं | जो हैं वो पर्याप्त हैं |
अब एक बात गांठ बाँध लो | जो इधर उधर में हैं उन्हें तुम्हें समेटना है | जल्दी में काम होने वाला है सारा | अभी तुम लोग थोड़ा और तैयार हो जाओ | सतगुरु का कार्य छोटा मोटा नहीं होता | हँस खेलकर कर लोगे तुम लोग | ये शक्तियाँ तुम्हारी विरासत हैं | तुम इनका प्रयोग पहले भी कर चुके हो पुनः फिर करोगे | ये तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात नहीं |
|| एकै साधे सब सधे , सब साधे सब जाए ||
जिसने उस एक अनामा को पुकारा और उसका हो गया उसने सब कुछ पा लिया और सबको प्रसन्न कर लिया | इस बात को वो साधक जानते हैं जो इसे अंतर बाहर से अनुभव कर रहे हैं |
तुम सब देखते जाओ कैसे मैं अपना एक एक काम करता जाऊंगा | मुझे काम करना कराना दोनों आता है | तुम्हें कुछ आता हो या न हो , मैं अपना काम करा ही लूँगा |
तुम लोग मेरे काम को देखकर सकते में आ जाओगे | जो मुझे जानते हैं समझते नहीं, वो आगे जानेंगे और उनकी आँखें खुली की खुली रह जायेंगी |
अभी थोडा समय तुम और हंस खेल लो |
|| जयति करे सतगुरु की जो , जयति करे सतगुरु के बच्चों की ||
तुम सब चरण वंदना के लिए तैयार हो जाओ | अब बहुत जल्दी ही तुम्हें ये अवसर मिलेगा | बागों में फिर से फूल खिल उठेंगे | फिर से चमन महकेगा | अब तुम चाहे जो कर लो , मेरे बच्चे काम करके दिखा देंगे | संसार में मिसाल कायम करके दिखा देंगे |
तुम सब सुन लो | समय पर तो सारा विश्व ही मानेगा इसे |

बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०८/०२/२०१५ प्रातः७:२०


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
बच्चो ये तुम्हारे सतगुरु के सतयुगी सत्संग की धार/गंगा बह रही है | इस अमृतमयी सत्संग को छक छक पीने की कोशिश करो | जो बात समझ में ना आये उसे दुबारा अपने सतगुरु से पूंछो | सतगुरु तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर देगा और अपना निज भेद भी बताएगा | ये अमर देश का अमर दिव्य सत्संग हैं | बच्चे ये देश तुम्हारा नही है | यहाँ तक ये शरीर भी मिटटी का है | ये नीचे के मसाले लगा कर तैयार किया जाता है /किया गया है | इसको भी नीचे छोड़ना पड़ता है | इसको समझने के लिए सतगुरु की जरुरत पड़ती है | सतगुरु ऐसे वैसे नहीं मिलते | उनकी खोज करनी पड़ती है | रोना पड़ता है |
"हँसत खेलत जो गुरु मिले ,वो सतगुरु न होय |
रोवत डहकत ,विरह ,जगावत नित नूतन हिये |
अंतर उमंग यथावत जगावत वो सतगुरु होय |"
सतगुरु भाग्य से मिल भी जाय तो उनकी पहचान कैसी होगी ,कैसे करोगे ,क्योंकि ऊपर से कुछ है ही नहीं | जो कुछ भी है सब अंतर का है , तो उनके बताये हुए रास्ते पर जब अंतर से मुड़ोगे , अंतर में जहाँ से आये हो ,जहाँ से बोलते हो | वहां जब पहुंचोगे तब उनकी अंतरी ,पहचान होगी | सतगुरु अपना भेद ,उपदेश ,नामदान देता है |मानव पोल पर बैठकर और अंतर का सतगुरु अंतर में रोहानी तौर तरीके से पुनः अंतर ही अंतर अपना रहश्यमयी भेद ,अंतर आध्यात्मिक रूप में देता है | बताता है | बताते समझाते हर मंडलों में ले जाते है | अब अपने मालिक का सच्चा भजन करो | मालिक के सच्चे नाम का सुमिरन करो | मालिक बोलेगा क्यूंकि वह सच्चा सतगुरु है | सच्चे और झूठे की पहचान तो अंतर में होती है | बाहर तो कुछ नहीं बस झूठा फितरती नजारा है | अंतर गहरा रूहानी सत्संग सुनना हो तो मेरे बड़ेला मंदिर पहुँचो | वहां की रूहानी खेल सत्संग अपने आप में कुछ और है ,अपने आप में बेजोड़ है |
"हैं चर्चे जमी पर ,आसमान छूने वालों का क्या होगा |
आसमां उतर के आया है जमी पर धरती वालों से मिला होगा|
धरती वालों की तरह होगा | "
सब पहचानेंगे उसको ,सबकी तरह होगा ,सब से मिला होगा |
बेहोश पड़ी रूहों को होश दिलायेगा|
उनको भी मालिक का सच्चा रूहानी पैगाम सुनाएगा |
अब मालिक का रूहानी अंतरी स्वागत करो | अब देर मत करो ,जल्दी से अपने निज काम को अंतर से मेहनत और ईमानदारी से करो | अंतर में इधर उधर मत देखो | मालिक को देखो और मालिक के पास पहुँचो ,देर मत करो | अब समय नहीं है | नामी को साथी बना लो काम हो जायेगा |
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०७/०२/२०१५ प्रातः६:०६


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
बच्चो मालिक के आंतरिक सत्संग सुनने के लिए तैयार हो जावो | अंतर सत्संग नित सुरत के घाट पर हो रहा है | चलो -२ घाट पर चलने की तैयारी करो |घाट पर बैठकर बेहोशी दूर कर लो | तुम्हारे कुल मालिक नित निज घाट पर सत्संग दे रहें हैं | यहाँ क्या देख रहे हो , ये देश तुम्हारा नहीं है | तुम्हारा देश परम प्रकाशवान है |
"परम प्रकाश रूप अति लागी,
नहीं कही दिया ,नहीं कहीं बाती"
उस परम प्रकाशवान सतगुरु के साथ नाता जोड़ लो | क्योंकि युग-२ से यह बिछुड़ी सुरत साईं के लिए
विकल हो उठती है | युग -२ से ये डोर छूटी है | मालिक के सत पथ को निहारती है | सत पथियों से सवाल पूंछती है ,रास्ते को खोजती चलती है |
"सत पथ किसका देखा ,जो पहुँचावे,सतगुरु स्वामी के निज देशा"
मालिक मिलन की सच्ची पीर उठने दो |वह प्रभु सच्ची विरह वेदना को बर्दाश नहीं कर पाता |
हाँथ बढ़ा कर महामंत्र कानो में गूंजा कर उठा लेगा |
"हाँथ उठा कर बुलाते हो ,सब सम्भव कर देते हो |
सत पथियों को साथ मिलाते हो ,सत पथिकों को राह दिखाते हो |"
सत के साथ हमेशा सतगुरु चलता है | सतगुरु आगे-२ चलता है ,पीछे सुरतों की कड़ियाँ , मालिक की बनायी हुयी लड़ियाँ साथ-२ जुड़ती जाती है | सत पथ पर चलने की तैयारी करती हुयी चल देती है |
अब सब के सब तैयार हो जावो | सत सत्संग सुनने के लिए ,सत्संग की नाम गंगा में सब स्नान करो |
"सत सत्संग करो ,सब कोई भाई ,सत सत्संग बिना मैलाई कटे नहीं भाई"
सत्संग सुनते ही जीवात्मा पर लगी हुयी काई कटने लगती है और सुरत धीरे से साफ़ हो जाती है |
सत्संग से एकाग्रता आती है | मन रुकने लगता है | मन की भाग दौड़ धीरे-२ कम होने लगती है | मालिक के सत शब्द सुनाई पड़ने लगते हैं | मालिक हर पल हाज़िर मिलते हैं | ऑंखें हमेशा खुली रहती है | आधा बंद होती है | एक टक मालिक के रास्ते निहारती है |
"इक टक टकी पंथ निहारे ,सतगुरु जी कहाँ छिपे हमारे"
एक पल भी चैन न पाये ,सबसे पूंछें सबको मिलाये |
सबसे पूंछती हैं और सबको साथ -२ लेकर चलती हैं | सबमे सतगुरु दिखाते हैं | सबके हृदय में वह साईं
विराज रहा हैं |
"घट-२ दिखे सतगुरु ,सूना घट न कोय |
बलिहारी वह घट की ,जा घट सतगुरु प्रकट होय"
सतगुरु रुपी मडी को मस्तक पर धारण कर लो | मडी के उजाले में देखते-२ लय हो जावो |
धीरे-२ बढ़ता जायेगा, लेकिन मडी को धारण करना पड़ता है |
उसके चमक से ही अंदर ,बाहर चमक प्रकट होती है |
"सतगुरु नाम का दीप धरकर ,अंदर बाहर उँजियार"
अंदर बाहर एक रस ,अंदर उजाला है | बाहर भी चमक रहा है | अपना काम बनाते चलो | इससे मुश्किल काम भी निपट जाएंगे | हर जगह हर,दर पर सतगुरु हाज़िर मिलेंगे | ये भी दया कृपा बिना सम्भव नहीं है | बच्चे बड़े मिन्नतों प्रार्थनाओं के बाद ये शुभ अवसर आता है | जिससे मालिक का अंतरी अतिसय रूहानी सत्संग सुनने को मिलता है | अब सचेत होकर काम करने का समय है | मुझे देखो ,इधर उधर देखने का वक्त नहीं है | जिस काम को करवाने के लिए लाया हूँ | वो काम पूरा कराते हुए ले जायुंगा|
सतगुरु के वचन ब्रम्हास्त्र होते है | पालन करते रहो | सब कुछ सम्भव हो जायेगा | यहाँ वहां की कोई ऐसी चीज नहीं है , जो तुमको नहीं मिलेगी |सब कुछ के हकदार मेरे सतयुगी बच्चे हैं | इनके सिवा और है ही कौन मेरा | जिससे अपने सतयुगी संसार की दिव्य रचना करूँ ,अब सब लोग अपने कुल मालिक की याद में खो जाने की कोशिश करो | मालिक इक्छा अनुसार मदद करेगा |
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०५-०२-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
बच्चे और बच्चियों हर हाल में खुश रहो और इसी हँसी ख़ुशी में मेरा सारा काम कर जाओ | तुम लोग जब खुश होते हो तो तुम लोगो को देखकर मैं बहुत प्रसन्न होता हूँ |
ये बच्चे मेरे शरीर का एक एक अंग हैं | जब ये खुश होते हैं तो मेरे रोम-रोम में आनन्द छा जाता है | अपने सतगुरु की दया से मेरे बच्चे हर प्रकार से सतगुरु के कार्यों के लिये तैयार किये जा रहे हैं |
जब मेरे बच्चे तैयार होकर तुम्हारे सामने खड़े हो जायेंगे , तब तुम्हारी समझ में आयेगा | मैं अपने बच्चों में प्रकट रूप में विद्यमान हूँ | मेरे प्रत्यक्ष होने में अब ज्यादा देरी नहीं है | तुम समझते हो झूठे ढोल नगाड़े पीटे जा रहे हैं | अभी तुम्हें जो समझना है समझो | जब एक बार कार्य होने प्रारंभ हो जायेंगे तो तुम अपने झूठे अहंकार से बाहर आओगे और पछताओगे कि मैंने इनकी क्यों नहीं सुनी या एक बार प्रयास करके क्यों नहीं देखा | अभी तो दया की धार खुली हुई है , जब बंद हो जायेगी तो तुम्हारे रोने-गाने से कुछ नहीं होगा |
अभी जो रो रहे हैं दीनता में, उन्हें कुछ मिल सकता है , बाद में वो भी नहीं मिलेगा | तुम चाहे दौड़ो या भागो |
समरथ संत कभी झूठा नहीं होता , वो सिर्फ मौज बदलता है | ये धरती और समय उसके इशारों पर चलते हैं | पर तुम जब तक अहंकार में बैठे रहोगे , संत को क्या जान पाओगे |
संत का होता कभी नहीं अंत |
जब समय निकल जाता है तब पछताते हो कि मैंने क्यूँ नहीं सुना | पहले भी कहा था भजन कर लो तब भी किसी ने नहीं सुना | आज भी कह रहा हूँ कि मुझसे अंतर में मिलो तभी भेद समझ आयेगा तो अब भी मानने को तैयार नहीं | अरे मेरा काम तो रुका नहीं और न समय रुका है , रुके तो तुम लोग हो | चल पड़ो नहीं तो पीछे छूट जाओगे | मै और मेरे ये बच्चे अब पीछे मुड़कर देखने वाले नहीं |
तुम चाहे कितना स्वाँग रच लो , दूसरों को बरगला लो, तुम्हारी वही सुनेंगे जो मेरे जीव नहीं हैं |
अपने जीवों को तो मै हीरे की भाँति कोयले की खान में से निकाल ही लूँगा | तुम अपनी सफलता पर प्रसन्न होते रहो और मैं तुम्हारी मूर्खता पर | जिस धन और मान में तुम मदहोश हो वो खुद तुम्हारे घर की मेहमान है |
अब समय ज्यादा नहीं रह गया है | देश व दुनियाँ के लिए वक़्त अच्छा नहीं है | सब संभल कर रहो | अपने अपने कामों को करते रहो | मन में सदभावना का भाव रखो | आगे तुम्हारी संभाल वो सतगुरु करेगा |

बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०५/०२/२०१५ प्रातः ४:२३


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे प्रेम से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
अगर है चाह मिलने की तो , हरदम लौ लगाता जा |
दुइ को दूर कर दिल से , सतगुरु मिलन का साज बजाता जा / सजाता जा |
बच्चों सत्संग की बड़ी महिमा है |
बिन सत्संग विवेक न होई |
सतगुरु कृपा बिन सुलभ न होई |
सत्संग सुन सुरत होश में आ जाती है | बच्चे अपने संवारे सतगुरु की मनमोहक छवि अपने हिये में बसा लो | एक बार नैनो में सतगुरु को बसा लिया ,फिर जहाँ चाहो ,जब चाहो सतगुरु से मिलते रहो ,कोई भेद नहीं , अभेद , फिर पीया और हम एक | अंदर भी मिलेंगें , बाहर से रास्ते की रहनुमाई करेंगें | अंदर बाहर सब एक रस | सतगुरु की अंतरंग लीला , महिमा जल्दी समझ में नहीं आती | वही जो सुरत सतगुरु के साथ साथ चलती है , वही बयान करती है | बखान करती है | सतगुरु को अपना सरताज बना लेती है |
हमेशा सतगुरु के चरणो को ताज बना कर धारण कर लेती है | उसके सामने सतगुरु हमेशा खड़ा रहता है | सतगुरु से एक पल का विछोह वह सहन नहीं कर पाती | यह दुनिया ख़ाक नजर आती है | उसको अंदर बाहर सतगुरु ही दिखतें हैं | वो सब में अपने सतगुरु को ढूढ़ती है | सत और गुरु का मिलन कोई हंसी खेल नहीं है | अपने को मिटाना पड़ता है | अब तो सब के सब सतगुरु नाम सिंधु में डूब जावो | नाम की गहराई और नाम की उचाई को छूना पड़ता है | धीरे -२ चलती है ,चढ़ती है | ऊपर भी सतगुरु और नीचे भी सतगुरु , बीच में भी सतगुरु ,सतगुरु हर जगह मिलते है |
जिन ढूँढा तीन पाइयां , गहरे नाम सिंधु पैठ |
जो कोई बूडन डरा ,रहा किनारे बैठ |
अब किनारा कसी करने से काम नहीं चलेगा | अब सब को आगे आना है | मिलकर काम करना है |
कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना है |
वीर तुम बढे चलो ,वीरांगनावो तुम बढे चलो |
हाथ में मशाल है , अंग संग सतगुरु दयाल है |
अनवरत बढे चलो , हिमालय की बुलंदी चढ़े चलो |
तुम किसी से डरो नहीं , तुम कहीं झुको नहीं |

तुम सतगुरु की जान हो , सतगुरु की सान हो |
तुम सब सतगुरु की मान हो , तुम सब सतगुरु की सान हो |
वीरों वीरांगनावों तुम सब बढे चलो |
बच्चे सतयुग आ गया है | सतयुग की रहमत ,सतगुरु की रहमत ,नियामत को चारो तरफ फैला दो |
कोई कोना छूटने न पावे | सतगुरु की अमर बेल , अब पूरी दुनिया में फैलने जा रही है | सबको पुनः एक बार फिर से चेतावनी देते हुए आगाह करा दो | आ गए सतगुरु के सतयुगी द्वार पर तो सतगुरु की रहमत , नियामत मिल जायेगी | सतगुरु की सतयुगी पुकार सुनकर नहीं आये तो , जाने भाग्य उनका , मेरा क्या | मेरा सब काम धीरे -२ हो चुका है | बस समय का थोड़ा सा इन्तजार है | अब तक तो का सफाया हो गया होता , लेकिन महात्मा रोके हुए है | महात्मा की धीर गंभीर आवाज को समय से सुनकर चेतना में आ जावो , नहीं तो वो होगा जो आज तक किसी युग में नहीं हुआ | अपना बचाव करना तुम्हारा काम है | इंतना भी नहीं कर सकते तो इस धरती पर बोझ बनकर रहना ब्यर्थ है | अब अपने -२ काम में लग जावो | सतगुरु की आवाज को पहचान कर सतगुरु के बड़ेला दरबार में हाजिर हो जावो |
संभाल करा दी जायेगी ,सतगुरु समरथ है |

बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :०३/०२/२०१५ दोपहर: २:१९


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरुदेव :
बच्चे अपने सतगुरु सतगुरु की धीर गंभीर आवाज सुनो , और चेतो , उनकी एक-एक बात का शब्द का मनन करो | अब नये पुराने सबके सब संभल जावो , सतगुरु की पुकार सुनकर , सत के रास्ते पर निकल पड़ो | आगे बहुत कुछ होने वाला है | क्योंकि कुदरत बौखलाई हुयी है | ये है कि महात्मा बीच बचाव में लगें हुए है | बार -२ विनती प्रार्थना समस्त जीवों के लिए कर रहे हैं , करवा रहें है | महात्मा कि बात मान गए तो बीच बचाव करा देंगे | नहीं तो वही होगा जो हर युगों में होता आया है | अभी क्या देखा भुखमरी , बिमारी, कोलाहल वो आगे आ रहा है | अगर मेरे सतयुगी बड़ेला मंदिर के बच्चों कि बात मानकर आ गए , सतगुरु के बड़ेला दरबार में तो मांफी करा दी जायेगी , नहीं तो वही होगा , जिसका कोई अंदाजा नहीं, जो हर युगों में होता चला आया है |
"चलेगा नाश का खेल यूँ ही , भले ही दिवाली यहाँ रोज आये"
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०३-०२-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
सतयुग की कामना रखने वाले जीवों के लिये आगे अच्छा समय आयेगा | सतयुग देवता धरती पर पाँव रख चुके हैं | अभी उन्हें धीरे-धीरे पाँव फैलाना है | सतयुग देवता इस धरती पर कहीं भी पाँव नहीं रख सकते इसलिए उन्हें पावन भूमि पर ही पाँव रखना होता है | वही उसी पावन भूमि पर सतयुग देवता के साथ-साथ अन्य शक्तियों को भी स्थान मिला है | अखंडेश्वर मंदिर विश्व का एक मात्र मंदिर होगा जहाँ आध्यात्मिक ज्ञान और रूहानी दौलत बँटेगी | विश्व के अनेक देशों के लोग यहाँ आकर सजदा करेंगे | तमाम मुल्क एवं धर्म के लोग एक साथ एक ही झंडे के नीचे होंगे और सतयुग धरा पर पूरी तरह फैलेगा |
आध्यात्मिक शक्तियाँ इस धरती पर उतारी जा चुकी हैं | इस बात का प्रमाण मेरे बड़ेला मंदिर के उन बच्चों के पास है जिन्होंने स्वयं अपनी चर्म आँखों से उन्हें बड़ेला की पावन भूमि पर उतरते देखा है |
तुम सोच रहे होगे कि मालिक ने जो कहा वो पूरा नहीं हुआ | अरे अभी वो मेरी एक-एक बात सच होकर रहेगी | मुझे तो सिर्फ अपनी सच्ची संगत एकत्र करनी है और जिन्हें मेरा काम पूरा करना है वो शक्तियाँ भी एकत्र हो चुकी हैं | धीरे-धीरे आगे जो और आयेंगे , उन्हें भी सेवा मिलेगी | मैंने कहा था मेरे काम को कोई रोक नहीं सकता | आगे मेरी एक-एक बात सच होती दिखाई पड़ेगी | यह बात पूरे विश्व के लोगों के लिए है | पहले मैंने शाकाहार का प्रचार करवा दिया | अब अपने बड़ेला मंदिर का प्रचार करवा रहा हूँ ताकि विश्व के लोग जान जायें कि रूहानी दौलत पाने के लिए उन्हें भारत आना ही पड़ेगा | भारत तो आध्यात्मिक शक्तियों का गढ़ है ही | जब यहाँ की शक्तियाँ पूर्ण रूप से प्रकट होंगी तब सबको समझ आयेगा |
मेरे बड़ेला मंदिर के बच्चों में इतनी शक्ति है कि पूरा विश्व हिला कर रख दें किन्तु वो अपने सतगुरु की आज्ञा के बिना कुछ नहीं करेंगे |
आगे का समय बतायेगा कि इन बातों में कितनी सच्चाई है | अभी तो सुन लो और समझ लो | जब ये बातें पूरी होने लगे तो मान लेना | और सबको भी बता दो ताकि कोई इसे जानने से बचा न रह जाये |आगे संभाल और मदद मेरे सतयुगी बच्चे ही करेंगे | अगर तुम्हें मदद की जरुरत हो तो शुद्ध शाकाहारी रहना और “ सतगुरु जयगुरुदेव ” नाम से मदद मांगना | मदद हो जायेगी | इस नाम में सतयुगी शक्ति है | वही शक्ति जो मेरे बच्चों में है | तुम्हें मदद मिलेगी | इस नाम को कभी भी मुसीबत में परख कर देख लेना | इसकी सत्यता का प्रमाण मिल जायेगा | जब प्रमाण मिल जाये तो शुद्ध शाकाहारी रहते हुए इस नाम का मनन करना , अंतर में चलोगे ( ध्यान की अवस्था में ) तो मैं मिलूँगा और संसारी मदद चाहिये तो वो भी मिल जायेगी |
विश्वास में ही सबकुछ है , अविश्वास से कुछ नहीं मिलता | जब तुम्हें मेरी जरुरत हो बुला लेना मैं आ जाऊँगा | तुम्हें प्रमाण भी मिल जायेगा और मदद भी मिल जायेगी |
मेरे इस सन्देश को पूरे विश्व में जन जन तक पहुँचा दो | ये मेरी सेवा का कार्य होगा | जिसे समाचार मिल जायेगा वो अपनी जीवात्मा के कल्याण के लिए इस नाम का प्रयोग अवश्य करेगा | मैने अपने बच्चों को काम पर लगा दिया है | ये मेरे बच्चे इसी कार्य के लिए लाये गये थे | इनमें अपार शक्ति थी | किन्तु इन्हें इसका बोध न था | अब ये बोध में आ रहे हैं | जब इन्हें अपनी शक्तियों का पूर्ण ज्ञान होगा तो ये अपनी मर्यादा एवं सतगुरु की आज्ञा में रहते हुए पूरे विश्व को आध्यात्म का पाठ पढ़ा देंगे | पूरा विश्व इनकी शक्तियों को देखेगा | भारत की भूमि पर आज भी वही शक्तियाँ पैदा होती हैं जिन्होंने भारत का इतिहास रच दिया | आगे ये मेरे बच्चे भी इतिहास बनायेंगे | पूरे विश्व में भारत की शक्ति का डंका बजेगा | पूरा विश्व भारत की आध्यात्मिक शक्तियों का लोहा मानेगा |
कल्याण के लिए सत्मार्ग चुनना ही होगा | आगे जैसा तुम स्वयं के लिए उचित मानो | मेरा कार्य बताना , समझाना था | आगे का समय स्वयं बतायेगा |
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ०२-०२-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
बच्चों सतगुरु के दरबार में हाजिरी लगाते रहो | इससे तुम्हारी लगन बनी रहेगी | छूटोगे नहीं , गिरोगे नहीं | तुम नहीं जानते अंतर में क्या रूहानी खेल चल रहा है | जो खेल रहे हैं वे स्वयं भी उसका भेद पूरी तरह से नहीं जानते | यह भेद सिर्फ सतगुरु ही बता सकते हैं | तुम लोग लगे रहो | धीरे-धीरे आईना साफ होता चला जायेगा | तुम लोग अभी कुछ नहीं समझ पा रहे | जब समझोगे तो पूरी तरह बोध में आ जाओगे | |
तुम्हें अब अपना काम करना है | जिस काम के लिए लाये गये हो वो अब समय आ गया है | तुम सभी को कहीं भी देखने की जरुरत नहीं सिर्फ मुझे देखो और जो कहा जाये उसे करो | अपनी बुद्धि मत चलाओ | अभी मेरे बहुत से सेवादार आगे आयेंगे | सभी मेरी सेवा का कार्य करेंगे | मैंने अपने जीवों को इस धरा पर बिखेर दिया था | मुझे पता था समय आने पर ये उठ खड़े होंगे और मेरा कार्य (विश्व स्तर पर) करेंगे | अब मेरे सारे जीव जाग रहे हैं | विश्व स्तर का कार्य भी प्रारम्भ हो चुका है | तुम बच्चों को मेरा कार्य इस प्रकार करना है कि पूरा विश्व जग जाये | तुम्हारे अंदर बहुत शक्तियाँ हैं | समय पड़ने पर तुम इसका उपयोग करोगे | पूरा विश्व भारत की आध्यात्मिक शक्ति को देखकर काँप उठेगा ||
जब जब आवश्यकता पड़ी हमारा देश वीर बालको और बालिकाओं से सुशोभित हुआ है | अतः आगे भी ऐसा ही होता रहेगा | तुम ये मत समझना कि कलयुग में इन वीर बालकों एवं बालिकाओं द्वारा भारत भूमि पर कार्य नहीं होगा | मीरा , लक्ष्मीबाई इत्यादि भी कलयुग में कार्य कर गयी तो क्या अब माताओं के गर्भ से पुनः ऐसी वीर बालायें जन्म नहीं ले सकती क्या ||
आगे चलकर तुम्हें भारत भूमि की पवित्रता का ज्ञान होगा | ईश्वरीय शक्ति आज भी भारत की भूमि पर कार्य कर रही है और समय आने पर पूर्णतया अपने बोध में आकर ऐसा कार्य कर जायेंगी कि पुनः पूरे विश्व में भारत का नाम जगमगा जायेगा ||
भारत के बच्चे और बच्चियों तुम सब मर्यादा में रहो | यही मर्यादा ही तुम्हारी असली पहचान है | विश्व के अन्य देशों में तुम्हारी मर्यादा का उदाहरण दिया जाता है | इसे खोकर तुम अपनी पहचान खो दोगे ||
समस्त विश्व में ये बात फैला दो कि भारत में आध्यात्मिक शक्तियाँ आज भी काम कर रही हैं | यदि कोई भी इस बात को नहीं मानता है तो भविष्य में उसे मुँह की खानी पड़ेगी | बहुत सारी महान आत्मायें अपने बोध में आ रही हैं और जब ये कार्य कर जायेंगी तब तुम्हें समझ आयेगा कि मैं क्या कह रहा था | भारत का परचम पूरे विश्व में लहराने वाला है | भारत की शक्तियाँ सिमट कर एक हो रही हैं | जब ये कार्य करना प्रारंभ करेंगी तब तुम सबको मेरी एक-एक बात याद आयेगी | तुम अहंकार और अभिमान में बैठे रहो लेकिन काम होने पर सबकी अकल ठिकाने आ जायेगी | यह आसान काम नहीं है | इसके बारे में बहुत से लोग जानते और मानते हैं | जो नहीं मानते वो भविष्य में मानने पर मजबूर हो जायेंगे ||
मेरी हर बात सत्य होकर रहेगी | तुम चाहे जो कर लो अब मेरे कार्य को कोई रोक नहीं सकता | न ही मेरे इन बच्चों को कोई रोक पायेगा | ये वो महान विभूतियाँ हैं जिन्होंने भारत देश में ही जन्म लिया है किन्तु इनमे वो विशेष आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं जिनके आगे कोई टिक नहीं सकता | पूरा विश्व इन शक्तियों के आगे नतमस्तक होगा | तुम अभी सुन लो , जब मन करे तब मान लेना | मेरा कार्य तुम सब को आगाह कर देना था ||
मेरे वीर बच्चों और बच्चियों | अपने कार्य पर लगे रहो , डटे रहो | समय आने पर तुम्हें सब कुछ बता दिया जायेगा | पूरे विश्व की शक्तियों के आगे भी तुम्हारी शक्ति ज्यादा है | अपना कार्य करते चलो ||
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ३१-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
संत सतगुरु का कार्य निराला होता हैं | सब यही सोचते हैं कि यह कार्य असंभव हैं या ये कार्य नहीं हो सकता किन्तु सतगुरु मर्यादा में रहते हुऐ उस कार्य को कर देते हैं | कारण इस प्रकार के बनते हैं कि लोग इस कार्य को समय का नाम दे देते हैं किन्तु सतगुरु अपना कार्य समय से ही करते हैं और समय का चक्र सतगुरु के अधीन होता हैं |
सतगुरु के कार्य एक सुखद भविष्य का निर्माण करते हैं | जब जब धरती पर पाप या अन्य अनैतिक कार्य बढ़ जाते हैं तो ईश्वरीय अवतार धरती पर जन्म लेकर धर्म की स्थापना करते हैं | वो सत्संग के द्वारा जीवों को समझाते बुझाते हैं | जीवन में सत्य और धर्म का मार्ग प्रशस्त करते हैं | जीवों को निजघर की याद दिलाकर उनके लिये मोक्ष का मार्ग बताते हैं |
संत सदैव परमार्थ का मार्ग बताते हैं जिस पर चलकर मनुष्य कर्मबंधन से मुक्त हो, जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति पा जाता हैं | यह सिलसिला सैकड़ों वर्षों से कलयुग में चला आ रहा हैं | संत एक निश्चित संख्या में अपने जीवों को निजधाम पहुँचाने का कार्य लेकर आते हैं | जो जीव छूट जाते हैं उनकी संभाल अगले आने वाले संत करते हैं | एक मनुष्य के लिये ये सिलसिला कई जन्मों तक चल सकता हैं जब तक वह मुक्तिधाम तक ना पहुंच जाये | यह अमोलक मनुष्य शरीर बार बार नहीं मिलता|
यह चौरासी लाख योनियों के बाद अथवा संतो की दया कृपा से मिलता हैं |
संतो की बातें सदैव गूढ़ होती हैं | उनकी बातों में भेद होता हैं जिसे एक सच्चा साधक ही अपने अनुभव से समझ पाता हैं | साधकों की संगत संत के जीव के लिये पारस के समान होती हैं | जिस प्रकार पारस लोहे को सोना बना देता हैं ठीक उसी प्रकार साधक की संगति में रहने वाला जीव संत की दया कृपा एवं साधक की मदद से अपनी जीवात्मा का कल्याण कर लेता | यह संगति जाने अनजाने भी मिल जाये तो
भी जीव का कल्याण सुनिश्चित होता हैं |
साधक ही संतो की असली पहचान कराते है | अंतर में जाने वाला जीव ही संत के असली भेद को उन्हीं की दया कृपा से जान समझ पाता हैं | साधकों की संगति जीव को संसार और परमार्थ में गिरने से बचा लेती हैं और हर पल उसकी आंतरिक चढ़ाई में सतगुरु की दया लेकर मदद भी कर देती हैं |
जब जीव को संत सतगुरु की आतंरिक दया का बोध होता है तो वह अत्यंत प्रसन्न होता है और पुनः अन्य जीवों के लिये मदद एवं प्रेरणा का स्त्रोत बन जाता है |
सतगुरु की दया के बिना परमार्थ में एक पल भी ठहर पाना संभव नहीं | सतगुरु की दया प्राप्त करने के लिये समर्पण का भाव अतिआवश्यक है | समर्पण के भाव के साथ जब जीव सतगुरु प्राप्ति की इच्छा करता है तो वह मालिक प्रसन्न होकर उसका रास्ता खोल देता है | उसे हर प्रकार से परमार्थ के मार्ग पर चलने में मदद देता है | संसार में उसका संयोग साधकों से करवाकर वाह्य जगत के झंझटों से बचे रहने के लिये सदबुद्धि एवं मार्ग देता है |
जीव की लगन, सेवा, भाव , भक्ति , तड़प , विरहवेदना ये सब सतगुरु की दया कृपा का आधार होते हैं | परन्तु इन सबसे पूर्व जीव की इच्छा होती है | जब जीव की इच्छा जागृत होती है तभी शेष भाव उसे मदद कर सकते हैं |
|| भाव का भूखा सतगुरु बैठा , मांगे नहीं तोरा धन मान
भूत भविष्य का ज्ञाता वो तो , सतगुरु ऊँचा पद ये जान
बिन सतगुरु दया कृपा मिले , जाने न तू खुद की कोई पहिचान
जिस दिन जायेगा जग को छोड़ के , मान न तेरा कोई सम्मान
मनुज तन छोड़ जाये चौरासी , वहीं बसेगा तेरा डेरा वही तेरी पहिचान
बिन सतगुरु तू मुक्ति न पइहो , जन्म मरण में घूमत रहो अजान
सतगुरु शब्द जो कान पड़े तो , मूरख बने सुजान
अपना भेद बताये वो तोहे , तुझे ले चले अंतर धाम
सूरत उड़े जब गगन माहि तब , समझे तू सतगुरु ज्ञान
अंतर बोध न जब तक पइहो , मूरख ही रहे बुद्धिमान
बिन सतगुरु दया कृपा के , बुद्धि न होव सुजान
मान अब ले सतगुरु की मान ||

बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :१/०२/२०१५ रात्रि :१२:३७


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बच्चियों को मेरा सतगुरु जयगुरुदेव :
मेरे बड़ेला दरबार में मंदिर बनाये जा रहें है ,कारीगर लगे हुए है तरासने में | बच्चे इसी तरह अंतर में रूहानी कारीगर लगे हुए है |अंतर में चेतन मंदिर बनाये जा रहें है |अंतरघट में जौहरी लगे हुयें हैं तरासने में |बच्चे अंतर का जौहर बाहर आने वाला है |अंतर बाहर सब एकरस होकर काम करना है |अब सब लोग जल्दी से तैयार हो जावो |तुम्हारा सतगुरु विह्वल होकर पुकार रहा है |उसके ब्याकुलता की घड़ियां बढ़ रही है |अब देर मत करो |अब अपने सतगुरु से अपनी गढ़त करवा लो |अपने अंतर गुनाहों की मांफी करवा लो |अभी तो तुम्हे बहुत काम करना है |तुमको डर किस बात का ,तुम्हारा समरथ सतगुरु साथ-२ है |अरे बच्चे बच्चियों तुम सब तो मेरे वो बच्चे हो जो करोङो जन्मो से बेजान हुयी ,भटकती रूहुँ में जान डाल दोगे |मेरे बड़ेला मंदिर के बच्चो को देखकर पढ़ पौथे ,पशुपक्षी भी अपनी अचेतन अवस्था को छोड़कर चेतनता में आ जाएंगे |ये मेरी रूहानी गढ़त से बनाये गए बच्चे अपने आप में बेजोड़ हैं |इनके जैसा यहाँ कोई है ही नहीं ,जिससे इनकी बराबरी की जाय |बच्चे तुम सब मेरे काम में लगे रहो |मै भी दिन रात तुम सबके काम में लगा रहता हूँ |बच्चे तुम्हारे सतगुरु जबसे वहां से आये हैं ,बस एक काम जीव जागरण का कर रहे है और करवा रहें है |बच्चे हमेशा से सतगुरु यहाँ रहे है ,रहते आयें हैं |बच्चे ये भारत भूमि वीरों और वीरांगनावों कुर्बानी लहू से हमेसा नहाती आई है और आज भी अपने आँचल में छीपाये माँओं से वीर बालक एवं वीर बालाओं की याचना कर रही है | बच्चे बच्चियों कुदरत की कराह पुकार सुनकर अपने -२ बच्चे बच्चियों को बड़ेला सरकार सतगुरु जयगुरुदेव की गोद के हवाले कर दीजिये |
कर चले हम फ़िदा जाने तन सत साथियों ,
अब तो सतगुरु जयगुरुदेव के हवाले सत साथियों |
साँस थमती रहे नब्ज रूकती रहे ,
लाहु अब किसी का गिरने न देंगे हम साथियों |
कारवां सतगुरु का अब निरंतर चलता रहे |
सतगुरु की दया धार का स्रोत अब तो निरंतर बहता रहे |
कर चले हम फ़िदा जाने तन सत साथियों |
मिन्नत (कसमे) हमने खायी सतगुरु के बड़ेला दरबार में |
सतगुरु जयगुरुदेव के हवाले करेंगे ,कर्म और धर्म साथियों |
कर चले हम फ़िदा जाने तन सत साथियों |
सबने अब कोई देव भी आ जाए तो क्या |
सतगुरु जयगुरुदेव का सतयुगी झंडा तिरंगा हिमालय
पर हम सब लहराते चले |
कर चले हम फ़िदा जाने तन सत साथियों |
जब तलक न हिमालय की बुलंदियों से सतगुरु जयगुरुदेव
की आवाज आने लगे |
तब तलक न बैठेंगे हम सत साथियों |
अब तुम्हारे हवाले ये तन सत साथियों |
कर चले हम फ़िदा जाने तन सत साथियों ,
बच्चे प्रेम से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: ३०-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
बच्चे और बच्चियों शुभ आशीर्वाद | मेरे बच्चे और बच्चियों मेरे काम को लगकर तल्लीनता के साथ कर डालो | ये काम ही तुम्हारा पहचान है | तुम इसलिए लाये गये हो | अपने बोध में आओ | किसी भी प्रकार अभाव न आने दो | तुम्हारे अंदर बैठा हुआ सतगुरु का अंश तुम्हें पुकार रहा है | उसे समझ कर पूरे बोध में आ जाओ |
सुरत और स्वामी जब एक हो जाते हैं तो वह अत्यंत शुभ घड़ी होती है जिसका स्वयं सतगुरु भी इंतजार करते हैं | उन्हें (उस स्वामी को) भी अपने सुरत से अत्यंत प्रेम होता है और इसी प्रेमवश सतगुरु मनुष्य स्वरुप में आकर अपनी सोयी हुई जीवात्माओं को जगाते हैं |v जब जीवात्माये जग कर अपने बोध में आती हैं तब संत सतगुरु उन्हें उनके धाम का बोध कराते हैं और ये सुरतें जगत के बंधन को छोड़कर अपने असली स्वामी के पास उन्हीं के साथ जाने के लिए तैयार हो जाती हैं | कई जन्मों के अथक मेहनत के बाद जीवात्मा अपने असली स्वामी और अपने सच्चे घर की पहचान करती है | इसके लिए संत सतगुरु जीवात्मा की कई जन्मों तक संसारी और परमार्थी संभाल करते हैं |
सुरत अपना सच्चा भेद जानकर अपने स्वामी, अपने प्रभु के लिए तड़पती है | उसे इस संसार में कुछ भी अच्छा नहीं लगता है | हर वक़्त बस सतगुरु की ही लगन लगी रहती है | वे हर जगह अपने सतगुरु को ही पाना चाहती हैं |
यह बिल्कुल उसी प्रकार है जैसे गोपियाँ कृष्ण के प्रेम में तड़प रही थी और किसी भी प्रकार से कृष्ण के अलावा कुछ और उन्हें नहीं भा रहा था |
जब सुरत का सतगुरु के प्रति ऐसा तड़प भाव जागृत हो जाता है तो सुरत पिया मिलन के लिए अपने स्वामी की ओर चल पड़ती है | सतगुरु से मिलकर वो उन्हीं में विलीन हो जाना चाहती है |
जब सुरत सतगुरु से मिलकर एक हो जाती है तो उसे पूर्ण तृप्ति होती है | जिस प्रकार एक बूंद जल सागर में मिलकर सागर ही बन जाता है उसी प्रकार सुरत सतगुरु में मिलकर सतगुरुमय हो जाती है |
उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं रहता और वो स्वयं सतगुरु ही बन जाती है | इसे ही सुरत का सुहागन होना कहा गया है |
सुरत सुहागिन होकर उस मालिक में घुलमिल जाती है | सुरतों का अवतरण भी सतगुरु से ही हुआ था और पुनः उन्हीं में मिलकर वो पूर्ण हो जाती हैं | इसे समाधी भी कहते हैं | इसके बाद कोई और प्राप्ति शेष नहीं रह जाती |
सुरत और सतगुरु का मिलन ही इस मनुष्य जीवन का उद्देश्य होता है जिसे कोई-कोई सुरत ही सतगुरु की दया कृपा से प्राप्त कर पाती है |

सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : ३१/०१/२०१५ प्रातः ३:२२


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बोलो प्रेमियों सतगुरु जयगुरुदेव :
ये माँ की गोद में पलने वाले बच्चे नहीं है | ये कुदरत की गोद में खिलखिला रहें हैं | इनकी किलकारियां दिग दिगंत में गूँज रही है | दिग दिगंत को अपनी किलकारियों से महकाने के लिए बेताब है | इनकी बुलंद और नैसर्गिक आवाज , सुनने के लिए , देवी , देवता भी आ रहें है ,बड़ेला मंदिर पर | अब वो पुनीत घडी करीब आ गयी है की , ये बच्चे मशीहा बनकर , सब के दिलों में बसने जा रहें है , बसने वालें है | इनकी अनछुई तरंगें अब लहर बनकर फ़ैल रही हैं | ये सब सतगुरु जयगुरुदेव और सतगुरु जयगुरुदेव बड़ेला मंदिर का रहस्मयी कुदरती करिश्मा है | यहां सतगुरु कुल मालिक अनामा महाप्रभु अपने बच्चो की गढ़त स्वयं करता है ,कर रहा है | अति शीग्र जितनी जल्दी हो सके , बड़ेला मंदिर में पहुँच कर अनामा महाप्रभु के बच्चों का दर्शन करो | इन बच्चो से मिल लीजिये , खुद बा खुद होश आ जाएगा | अब देर मत करो , वैसे ही बहुत देर हो चुकी है | अपना , अपने गांव परिवार , घर देश का कल्याण हो तो आ जावो | मुल्क-२ के कौम -२ के देश , विदेश के लोग आ जावो | सतगुरु जयगुरुदेव बड़ेला मंदिर , कुल मालिक स्वयं आवाज दे कर बुला रहा है | घर बार ,जगत जंजाल छोड़कर मालिक से मिलने के लिए चल पड़ो| अपने घर बार की चिंता छोड़कर बड़ेला सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर सतगुरु द्वार के लिए चल पड़ो |
छोडो भेष भवन लेश ,तन मन इंद्री यह प्रदेश |
सतगुरु दया मिला यह बदला सतगुरु देश |
सतगुरु को मैं करूँ अदेश,सतगुरु जी मेरे धनि धनेश |
सतगुरु मेरे अपार हैं ,अपरम्पार सुरतों के स्वामी हैं |जो इस समय सतगुरु बड़ेला धाम में विराज रहे है |
इस महिमा मंडित सतगुरु की महिमा का पूर्ण रूप से वर्णन कोई नही कर सकता और ना ही इनके रहस्यों को कोई जान सकता है ,न समझ सकता है |जितना जनाएंगे ,समझायेंगे ,समझने की क्षमता देंगे उतना ही समझ में आएगा |उसके आगे और पीछे का किसी को कुछ पता नहीं है |आगे क्या होने वाला है ,पीछे क्या बीत चुका है |तुम सब सतगुरु चरणो के भिखारी बनो ,मिन्नत करो | मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला सरकार ,हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
मेरे मिन्नत सुनो बड़ेला सरकार ,मुझे लेहु सम्भार ,तेरे द्वार आन पड़ा |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला सरकार ,हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
तुम्हारे द्वार के सिवा दिखे न दूजा कोई द्वार,मुझे अब लेहु बचाय
मेरे मिन्नत सुनो बड़ेला सरकार |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला सरकार ,हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
मेरी अर्जी का अब करो ख्याल ,तेरी मर्जी से बड़ेला दरबार आन पड़ा |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला सरकार ,हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
मेरी हिये की सुनकर करुण पुकार ,मेरे अंतर्घट अब देहु उघार |
अब तेरे बड़ेला दरबार आन पड़ा |
मेरे अनोखे सतगुरु बड़ेला सरकार ,हमसब तेरे द्वार पर आन खड़े |
सतगुरु से क्षमा मांगते रहो ,सतगुरु से मिलकर सतगुरु मय बनने की कोशिश करो |सतगुरु को अंतर से पहचानो ,बाहर से कुछ भी नहीं है |सतगुरु स्वामी का सारा पसारा दिव्य रूहानी खेल अंतर का है |
इसको धीरे-२ समझो ,चेतन से मिलकर चेतन बनो |उस परम कल्याणमयी चेतना में लय हो जावो |
मैं को भूल जावो |
मैं पन सब तुममे खो जावे |
अंतर का मल सब धो जावे |
जीवन परम दिव्य अमृतमय हो जावे |
चेतनंता तुम्ही में लय होव |
सतगुरु जयगुरुदेव तुम्हारी जय होवे|
बड़ेला सरकार तुम्हारी जय होवे |
सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २९-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
परम पूज्य स्वामी जी महाराज की असीम दया कृपा से उनके जीवों को नामदान मिला और उस नामधन की कृपा से उन्होंने जीवों को आंतरिक दया प्रदान की |
उन्होंने जीवों को अंतर का बोध और अंतर का ज्ञान दिया और बताया कि नाम डोर पकड़ कर अंतर में चलना, मैं मिलूँगा | जो साधक थे वो अंतर में मालिक से मिला करते थे | यहाँ तक भी कहा कि मरते समय ‘जयगुरुदेव’ नाम बोलना " मैं " (नामधन देने वाला) मिलूँगा |
(सतगुरु के शब्दों में-)
जब जयगुरुदेव नाम पर लोगों ने दुकानें लगा ली तो मैंने (सतगुरु ने) सचखंड से आये हुए नाम में सतयुगी पावर दी और और उस सचखंड के नाम को जोड़कर "सतगुरु जयगुरुदेव " नाम को जगाया | जो मेरे बच्चे अंतर में मुझसे मिलेंगे वही इस भेद को जान सकते हैं क्योंकि वही मेरी सच्ची संगत होगी | बाकी सब भूसे के उस ढेर के सामान हैं जिसमे गेहूं के कुछ दाने छिटक के चले गए और भूसे में मिल गए | मैं उन जीवों को निकाल लूंगा, यदि उन्होंने मेरी आस रखी तो नहीं तो भेड़ चाल चलते हुए वो भी अन्य लोगों की भांतिअपना रास्ता स्वयं चुनेंगे |
जब जीवों को पुकारा तो मेरे सच्चे जीव जो मुझपर पूर्ण विश्वास रखते थे , मुझ तक पहुँच गये और कुछ जीव जो भ्रम और अभिमान में बैठे थे वो मुझे निजधाम गया मान लिये | ऐसे जीवों ने मुझे कभी समरथ नहीं जाना सिर्फ एक साधारण बाबा समझा तो- जिसकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी , ऐसे लोगो की हर प्रकार की आंतरिक दया बंद हो गयी |
जिन्हें मुझ पर भरोसा था उन्होंने मुझसे अंतर में मिल मेरे भेद को जाना | ये जीव ही मेरी सच्ची संगत हैं जिन्हें छँटनी के बाद सतयुगी संगत बनना है | शेष जो जीव अहंकार और भ्रम की बलि चढ़ गये और बार-बार समझाने और संदेश देने के बाद भी अपने घमंड में बैठे रहे , ये अपनी संगति के फलस्वरुप अपना मार्ग तय करेंगे | संगत में इनका स्थान नये जीवों ने ले लिया है जो इस समय मेरे जगाये एक नाम “सतगुरु जयगुरुदेव” से साधन कर आंतरिक दया ले रहे हैं | समय आने पर इन्हें नामदान मिल जायेगा |
मेरी सच्ची संगत अब मेरे सतयुगी संगत के नीचे खड़ी होगी और मेरे अंतर बाहर हर प्रकार से संग होगी | मेरे सभी सतयुगी जीव सिर्फ मेरे साथ होंगे | उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं कि बाकि कहाँ जा रहे हैं और क्या कर रहे हैं |
मेरे सन्देशों को मेरे जीव सुनेगे तो दौड़े चले आयेंगे और जो अहंकारवश छूट जायेंगे , वे अपना भाग्य खुद सँवारेंगे | मेरी गिनती तो हर हाल में पूरी होकर रहेगी | तुम नहीं कोई और सही |
मंदिर का जागृत देवता सोया नहीं , बड़ेला मंदिर में अब भी जाग रहा है और रूहानी दौलत बाँट रहा है | जब तुम्हें इस दौलत को पाना हो तो मेरे अखंड मंदिर बड़ेला चले आना | समय रहा तो तुम्हारा काम हो जायेगा |
मेरे अपने बच्चे मेरा कार्य कर रहे हैं | वे यही बच्चे हैं जिनके बारे में मैंने बता दिया था | अब ये जाग रहे हैं , बोध में आ रहे हैं | जब ये काम कर जायेंगे तब सबकी समझ में आ जायेगा | मेरे काम को कोई रोक नहीं सकता | इनमें दिव्य शक्ति है जो हर असंभव कार्य भी कर सकती है | विश्व के लोग इसी दिव्य शक्ति को नमन करेंगे और भारत की आध्यात्मिक शक्ति के आगे घुटने टेक देंगे |
भारत विश्व गुरु बन कर रहेगा |
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 30/01/2015


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बच्चियों बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
दिनाक : 09/12/2014 समय : सुबह : 10:00
बच्चे , सतगुरु जयगुरुदेव
वचनो का खंडन मत करो | बवाल बाजी में उलझो नहीं | बहज बाजी मत करो |
||हरित भूमि (त्रिनशंकुल), समझ परत नहीं पंत ||
||जिन पाखंड विवाद से, लुप्त भये सब ग्रन्ध ||
(इतनी वाणी लिखवा सतगुरु ने वाणी को विराम दे दिया | सतगुरु जयगुरुदेव नहीं कहे तो पूरा नहीं हुआ | 30\ १ \१५ को पुन: साधना में जब यही पक्तियाः सूनी तो तुरंत बोध हो गया उनको की इस दिन साधना में यह पूरा नहीं हुआ था स्वामी जी से पूछी तो सतगुरु ने कहाँ की इसके आगे से लिखो )
दिनाक : ३०/०१/2015 समय : सुबह ७: ५५
बच्चे तुम्हारी बवाल बाजी की वजह से बड़ेला मंदिर के सारे (ग्रन्थ ) रहस्य मैंने गुप्त कर दिए है | मेरे बड़ेला मंदिर की भूमि इतनी रूहानी है, इतनी हरित है, इस भूमि पर रूहे पैदा होती है | जन्म लेती है | यहाँ मंदिर बनते नहीं बनाये जाते है | यहाँ मंदिर ऊपर से आते है , आये है | इसका रहस्य ,इसका भेद विधाता भी नहीं जानता | यह उसके लेखे में नहीं है | इसका भेद सतगुरु जब बताएगा तब ही पता चलेगा |
मेरे रूहानी बडेला मंदिर और मेरे रूहानी बड़ेला मंदिर के बच्चो के प्रति जैसी जिसकी सोच होगी, वैसी ही उसको फल मिलेगा | इसलिए मेरा बड़ेला मंदिर और मेरे बड़ेला मंदिर के बच्चो के प्रति अपनी सोच को सही बना लो |
जाकी रही भावना जैसे बड़ेला प्रभु मंदिर देखी तीन तैसे
सतगुरु जयगुरुदेव पर जिही कर परम सत्य सनेहु
सतगुरु जयगुरुदेव तेही मिले न कछु सन्देहुँ
सतगुरु जयगुरुदेव अखंड ,सतगुरु जयगुरुदेव कथा अखंडा |
कहत सुनत बहु विधि सब संता |
इनकी सेवा भावना इनकी सतगुरु भक्ति को देखो और समझो इनके कार्यो को देखो कैसे करते है कैसे कर रहे है |
|| सतगुरु बड़ेला मंदिर प्रचार प्रसार का रहे ध्यान इतना
सतगुरु सन्देश बिन धरा का कोई कोना छूट न पाये हम से
इनसे सच्ची सतगुरु भक्ति की सीख मिलेगी
यह ऊपर से जो दिखते है अंदर से कुछ और है | इनके अंतर के रहस्य और इनकी अंतरी सतगुरुमई लीला कहन मन्नन से दूर है | वही सतगुरु जयगुरुदेव इनके अंदर भरपूर रूप से विराज रहा है | जिनको सब लोग बहार खोज रहे है |
अरे बच्चे बच्चियों सतगुरु का दिया हुआ मेरा सब अंतर का है | अंतर खोज करते तो उसकी अंतरी रूहानी पहचान मिलती | अब बहार भटकना बंद करके अंतर में सतगुरु के दरवाजे पर बैठ करके पुकारो सतगुरु बोलेगा | और उसकी आवाज को सुनो | बहार से विमुख होकर | ऐसे भटकने से कुछ मिलने वाला नहीं है | अब आंतरी आवाज लगाने का समय है | अंतर में पुकारो सतगुरु जरूर सुनेगा | और इच्छा अनुसार, कर्मा अनुसार, मदद भी करेगा | अब देर मत करो | सब अपने साधन करो | मालिक की रहमत सबको मिलेगी | वो महाप्रभु किसी एक का नहीं है , वह सबका है | सबका मालिक है
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २८-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
वो प्रभु अनाम अरूप और अविनाशी है | वो न तो जन्मता मरता है और न कोई उसे जानता है | वह अपना भेद स्वयं बताता है |
जब उस महाप्रभु की कृपा होती है तो अपनी जीवात्माओ से मिलने और उन्हें अपना भेद देने के लिए वह मनुष्य शरीर धारण करता है | इस मानव पोल पर रहते हुये वो हर प्रकार से मर्यादा का पालन करता है | मर्यादा के परे कार्य भी इस प्रकार सीमा में रहकर वो प्रभु करता है कि उसके अपने सच्चे जीव ही उसका बोध कर पाते हैं | ये बोध करने वाले जीव भी साधारण नहीं होते | ये वो अवतारी शक्तियाँ होती हैं जो उस महाप्रभु की आज्ञा और इच्छा से इस भूमिमंडल पर अवतरित होती हैं | जब ये अपने बोध में आती हैं तो उस महाप्रभु के कार्यो में सहयोग प्रदान करती हैं | वो महाप्रभु अपने कार्यो को इन्हीं अवतारी शक्तियों द्वारा संपादित कराते हैं | ये अवतारी शक्तियाँ उस महाप्रभु के प्रेम में दीवानी रहती हैं और सतगुरु (महाप्रभु) के एक इशारे पे सबकुछ लुटाने को तैयार रहती हैं |
( सतगुरु के शब्दों में -) मैंने पहले ही बताया था कि आगे चलकर नये लोग सामने आयेंगे |
ये मेरे बच्चे इनमें बहुत शक्ति हैं |
समय आने पर इन्हें इनका बोध होगा |
इनकी शक्तियों को बस थोड़ा उभारना है |
अब मेरे यही बच्चे बोध में आ रहे हैं | ये हर प्रकार से सक्षम हैं | तुम इन्हें कम समझने की भूल कभी मत करना | इनके कार्यो को देखकर तुम्हारी बुद्धि फेल हो जायेगी | तुम सब स्तब्ध रह जाओगे | पूरा विश्व इनके कार्यो को देखेगा | अभी तो थोड़ा समय है | ये जब पूर्णतया तैयार हो जायेंगे तो इनके आगे कोई टिक नहीं पायेगा |
मेरे कार्यो के पूरा होने के बाद इन बच्चों को पूरा विश्व जानेगा | ये मेरे बच्चे ही मेरी असली पहचान हैं | ये पूरे विश्व में मेरे जगाये “सतगुरु जयगुरुदेव ” नाम का डंका बजा देंगे | इस नाम को पूरा विश्व जानेगा और मानेगा |
मुझे गर्व है अपने इन बच्चों पर जो सतगुरु सेवा में नाम अमर कर जायेंगे | अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से पूरे विश्व का कठिन समय में बचाव करेंगे | ये भारत के वीर पुत्र एवं वीरांगनाओं में से हैं जो भारत की भूमि पर आध्यात्मिक प्रचार प्रसार के साथ-साथ वो आध्यात्मिक कार्य करेंगे जो इनकी पहचान बतायेगा |
मेरी आवाज को सुनकर मेरे बच्चे तत्क्षण खड़े हो जायेंगे और अपने कार्यो को सतगुरु (महाप्रभु) की दया कृपा से कर जायेंगे |
मनमोहक मेरी मोहिनी छाया ये मेरे बच्चे हैं | आध्यात्मिक शक्तियों से भरपूर ये बच्चे मेरे शक्तियों का प्रारूप हैं | जब सम्पूर्ण विश्व जल रहा होगा तो ये मेरे बच्चे रक्षा बचाव कार्य करेंगे | अभी तुम्हें इनकी शक्तियों का अंदाजा नहीं है |
मेरे सभी सतयुगी बच्चों को मेरा सतगुरु जयगुरुदेव |


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : २८/०१/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बच्चे बच्चियों बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
मेरे जितने नामदानी जीव है | जिनको तुम सबके ,सतगुरु जयगुरुदेव ने नामदान दिया है | वो सब मेरे जीव बड़ेला मंदिर में अति शीघ , जितनी जल्दी हो सके आ जाये | उन सब को चेतावनी देते हुए बता दो ये मेरे आखिरी सन्देश मेरे पुराने नामदानी जीवो के लिए है |
यह मेरे बड़ेला मंदिर के आल राउंडर बच्चे , पूरी देश दुनिया को सतगुरु जयगुरुदेव की फैलाई हुई अनामी धाम तक की फौलादी चादर के नीचे ले आयेगे | उस फौलादी चादर के नीचे आने वालो का बाल बांका नहीं होगा | विदेश के लोग भी यहाँ के लोगो की तरह जमीन पर बैठ कर साधन करेंगे और अपनी तीसरी आँख खोलेंगे | सब एक धर्म सतगुरु जयगुरुदेव को मानेगे | सबका एक रूहानी सतयुगी झंडा सतगुरु जयगुरुदेव होगा | इस झंडे के नीचे आने वालो की लाइन लग जाएगी | यह मेरे सतयुगी बच्चे द्रिव्य अलौकिक मिसाल बनेगे | पूरी दुनियाँ को चैलेंज करेंगे |
ये खेती, दूकान ,दफ्तर जहाँ भी रहेंगे | ये जिस दिन काम नहीं करेंगे उस दिन का वेतन ये सरकारी कोष में जमा कर देंगे | खेती वाले उतना ही अन्न अपने घर में रखेंगे जितनी जरूरत है | बाकी का अन्न गरीबो या सरकारी अन्न कोष में जमा कर देंगे | दूकानदार भी एक पैसे की हेरा फैरी नहीं करेंगे |
सब योग करेंगे | सब नियम से ध्यान भजन करेंगे | शुभ कर्मो की एवं भगवत भजन की होड़ लग जाएगी | यह सतगुरु जयगुरुदेव के नूर है | जौहर है | इनकी बराबरी कोई नहीं कर पायेगा | यह अपने सतगुरु के सिवा और अपने बड़ेला मंदिर के सिवा कहीं झुकेंगे नहीं | यह मेरे बड़ेला मंदिर और सतगुरु जयगुरुदेव का प्रचार प्रसार करने विदेशो में जा रहे है | इनकी रूहानी धार वहाँ भी बह रही है , चल रही है | बच्चे सब तरफ चेतावनी देते हुए अपने सन्देश दे दो / बोध करा दो | अपने कुल मालिक, अखंड अमर सतगुरु जयगुरुदेव , अपने मंदिर की रूहानी रहसयमयी लीला बता दो |
"आये न आये जाने भाग्य उनका , सुनते तो जाओ सन्देश सतगुरु का "
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २७-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को अंतर में बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
यह सारा जग का पसारा फैलाया गया है ताकि जीव इसमें फँसकर कभी भी इससे बाहर न निकल पाये | लेकिन वो प्रभु वो मालिक अपनी जीवात्माओं से अत्यधिक प्रेम करता है और चाहता है कि उनकी जीवात्माये (जीव) उनके पास वापस आ जायें | वह मालिक मनुष्य शरीर धारण करके अपने जीवों को समझाता बुझाता है , अपने घर की याद दिलाता है | वो प्रभु दयावान है और अपने जीवों पर निरंतर दया करता है | उसकी दया मेहर से जीव अंतर का ज्ञान प्राप्त कर अपना निज भेद जान पाते हैं | अपने निरंतर प्रयास एवं सतगुरु की दया मेहर से जीव अंतर के पथ पर चल अपने धाम पहुँच जाता है | यही संत सतगुरु (प्रभु) के मनुष्य शरीर में आने का ध्येय होता है | वह देश यहाँ से बहुत दूर है किन्तु उस पथ पर चलने वाला जीव यदि इच्छा रखे एवं प्रयास करता रहे तो एक न एक दिन वो सतगुरु की दया कृपा से निजधाम पहुँच जाता है |
वो संत सतगुरु उस जीव का आजीवन ध्यान रखते हुये पल-पल उसकी संभाल करते हैं | किन्तु यदि जीव की निजधाम जाने की इक्छा बीच में ही समाप्त हो जाये तो सतगुरु उसकी इच्छा के विरुद्ध उसकी मदद नहीं कर पाते | संत सतगुरु परमार्थ और संसार दोनों में हीं दया प्रदान करते हैं | अपने जीव को संसार में भी उतना ही देते हैं जितना उसे संसार में रहने मात्र के लिए आवश्यक हो और जीव की इच्छा परमार्थ में बनी रहे | इस कार्य के लिए संत सतगुरु इतनी मेहनत करते हैं कि उस जीव के कई जन्म बीत जाते हैं | कई जन्मों के अथक प्रयास के बाद जीव परमार्थ के मार्ग पर चलने के लायक बन पाता है | जब जीव परमार्थ के पथ पर चलकर अंतर में सतगुरु का जलवा देखता है तब उसे अहसास होता है कि वो अब तक जग में भटक रहा था | अब जीव का सतगुरु के प्रति प्रेम, भाव और सतगुरु के प्रति कृतज्ञता बढ़ जाती है जो जीव के परमार्थी मार्ग में मददगार होती है | जीव हरपल सतगुरु के प्रति दीवाना हो उनकी चर्चा और उन्हीं की महिमा का गुणगान करता है | सतगुरु की वास्तविक दया का भेद कोई साधक ही जानता है और वही उनके संकेतो को समझ सही रूप में उनकी महिमा का बखान करता है | ऐसा साधक अन्य जीवों की मदद कर सतगुरु की सेवा का कार्य करता है |
सतगुरु ऐसे जीवों से प्रसन्न हो उन्हें रूहानी दौलत से मालामाल कर देते हैं |
जीव हर प्रकार से सतगुरु की दया कृपा प्राप्त करते हुये अपना पूर्ण कल्याण कर लेता है | इस जग में रहते हुये भी सतगुरु की दया से यहाँ उलझता नहीं , संसारी कार्यो में लिप्त नहीं रहता | वह अपनी पूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुये अपने धाम को प्राप्त करता है | यह संत सतगुरु के अथक परिश्रम एवं उन्हीं के दया से सम्भव हो पाता है |
|| जब लगि दया सतगुरु की न मिलिहें
मान बड़ाई जग फाँस न छुटिहें
इधर उधर भटकत फ़िरिहै सब
जाने न भेद सतगुरु का दुर्लभ
सतगुरु आये अगम धाम से
लोक अनामी उनका डेरा
तुम्हें ले चले वो सब समुझाय
जानु दया कृपा उनकी पाय
संग चले वो लेकर तुमको
जग की फ़ांस डरि वो हटाय
जुग-जुग मानो कृपा उन्हीं की
जो तुम नामदान उन्हीं से पाय
नाम खजाना देकर तुमको
दया देत वो करे निहाल
दया कृपा से तुम्हें सजाकर
ले जायें वो अपने धाम ||
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : २७/०१/२०१५ सायंकाल:६:०७


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
बोलो सब मिलकर सतगुरु जयगुरुदेव :
बड़ेला मंदिर की वीरांगनावों अब तुम्हारे जौहर दिखाने का समय आ गया हैं | तुम्हारे जौहर की वीर गाथाएं आदि काल से अमर है | तुम सब मिलकर , इन बच्चों को सतगुरु भक्ति का , ऐसा दिव्य पाठ पढ़ा दो | ऐसा दिव्य तेज , सतगुरु जयगुरुदेव का भर दो कि ये रणबांकुरे पूरी देश दुनिया को झकझोर के रख दें | मेरे बड़ेला मंदिर के बच्चे गर्भ में पलने वाले शिशु नहीं हैं | ये मेरी औतारी अमर शक्तियां हैं | ये उपर से उमड़ते बादलों कि तरह , पूरी देश दुनियां में छाने जा रहे है | यही मेरे औतारी बच्चे , मेघों पर नित्य आरुण होकर वर्षा करेंगें ये तेजस्वी एवं आकर्षित ब्यक्तित्व से भरपूर , इनके मुख मंडल की तेजस्वी आभा के सामने आने की किसी की हिम्मत नहीं होगी | ये मेरे होनहार बच्चे पूरे विश्व का भ्रमण करेंगे , पूरे देश दुनिया को सतगुरु जयगुरुदेव का पाठ पढ़ाएंगे , सिखाएंगे | सतगुरु भक्ति की महिमा गायेंगें और गा गा कर दुनियां को झंकृत करेंगे | इनकी आवाज को सुनकर अपने आपको बड़ेला मंदिर के देवता को सौंप दो | वो रहनुमा सतगुरु जयगुरुदेव तुम सब की परवरिश एवं संभाल करेगा | चलो-२ जल्दी करों , अब समय नहीं है | सतगुरु के बड़ेला दरबार में पहुंचकर , सतगुरु की नामावली सूचि में नाम लिखवा लो | नहीं तो बाद में प्रायश्चित करने पर कोई सुनने वाला नहीं मिलेगा|
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: २६-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव |
बच्चों मुझसे मिलने का प्रयास करने से पूर्व तुम्हें हर प्रकार के भावों को त्यागना होगा | वह कुलमालिक पूर्ण समर्पण के भाव पर ही रीझता है | जिन बच्चों ने सतगुरु को पाया और उनकी महिमा का बखान किया उन्होंने उस सतगुरु के अलावा किसी को भी नहीं देखा | स्वयं के माता-पिता को भी किनारे रख सतगुरु को ही अपना सबकुछ जाना और माना | ये बच्चे किसी का बुरा नहीं करते किन्तु सतगुरु के अलावा किसी की सुनते भी नहीं हैं | वो मालिक भावों पर रीझता है तुम्हारी चालाकी और बुद्धि पर नहीं | तुम चाहे जितनी बुद्धि लगा लो मुझ तक पहुँचने के लिए , दीनता और तड़प जब तक नहीं होगी काम बनने वाला नहीं |
इस संसार में उस सतगुरु ने अपने जीवों को बिखेर दिया है | ये सतगुरु के बच्चे चिंगारी बन कर हर तरफ सतगुरु के नाम को फैला देंगे | जब विश्व जग जायेगा तब तुम देखना की तुम जिसे अपना सब कुछ सौंपे बैठे हो वो सिर्फ तुम्हारा अहंकार और जिद है | सतगुरु का काम तो आज भी हो रहा है और पूरा होकर रहेगा |
|| जानत बूझत न समझो भाई
समर्पण भाव मन में ले आओ जाई
सतगुरु मिलेंगे तोहि भाव तड़प से
घमंड में नहीं तो बैठे रह जाओगे भाई
जो सत समझे वो तोहे दिये बताई
घमंड में जो बैठे रहे , कुछ समझ न पाई
आगे मालिक जाने मौज तुम्हारी
हम तो पूरे जग को दिये बताई
समझो न समझो अब तुम जानो भाई
समझ परे न कुछ दिखाई दे न सुनाई
अंतर की बातें हम तुमको दिये बताई
सतगुरु मिलेंगे अंतर में ही भाई ||
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : २४/०१/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
***अंतर्घट सन्देश नंबर :१ ***
*******सतगुरु जयगुरुदेव ****** दिनाक :०९/०१/२०१५ सायं काल: ३:२१
बच्चे प्रेम से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
करिश्माई ब्यक्तित्व से भरपूर मेरे बच्चो अब क्या सोंच रहे हो | अब सोंचने का वक्त नहीं है | अबतो कुछ कर गुजरने का समय है | बच्चे तुम्हारे कुदरती करिश्माई कार्यों का , क्रिया कलापों का सारे विश्व को इन्तजार है | बच्चे अपने अपने हिस्से की सेवा करते रहो , मिल बाट कर जल्दी काम हो जाएगा | अपनी परख निगरानी करते रहो | भाव में कमी न आने पाये , माया के विकार से बचते रहो , भाव बढ़ाते चलो , अहंकार से सजह रहो | साधन भजन नित्य नियम , समय से बैठकर करो | बस निमित मात्र करना है | अंतर सत्संग की दर्शन की चाह , मालिक मिलन की सच्ची पीर हमेशा कसकती रहे , खटकती रहे | धन घमंड से दूर रहो , क्योंकि जो कुछ भी इन चर्म आँखों , दिव्य आँखों से दिखाई देता है | सब उस अनामी प्रभु की लीला है | वही सब कुछ देने वाला है | देनदार सतगुरु सतगुरु जयगुरुदेव है , देत रहत दिन रात | क्यों भरम तू करत है , बनत बड़ा होशियार | मालिक का काम करते रहो | मालिक सतगुरु जयगुरुदेव को ह्रदय में पुकारो | घाट पर हाज़िर ,नाज़िर मिलेगा | शंका क्यों करते हो | शंका मत करो | शंका दुःख देने वाली है |

अंतर्घट सत्संग भाग :२ (दिनांक : २४/०१/२०१५ सायंकाल:७:१५)
बच्चे सबका कुशल मंगल हो | सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी दाता दयाल तुम सब के साथ है | बच्चे ये फ़साहत का देश है | तुम यहाँ के वासी नहीं हो | तुम्हारा दिव्य देश बहुत दूर है | अपने देश जाने का रास्ता अंतर से गया है , अंतर में ही मिलेगा | क्योंकि सतगुरु अंतर का रास्ता बताते है और अंतर में अंतरि रहनुमाई करते है | अब अंतर घाट पर बैठ कर मालिक के अंतरि रहस्यमयी भव्य उत्सव का स्वागत करो | समरथ कुल मालिक सरकार हर जगह मैजूद है | मेरे बड़ेला मंदिर में समय से पहुँच कर दिन रात अबाध गति से उतरती रहमत का भव्य स्वागत करो | सतगुरु दाता दयाल साहब को अपने नैनो में बसा लो |
बसो मेरे नैनन में सतगुरु दयाल |
अनोखी मूरत सतगुरु की सुहानी चाल |
आय के विराजे बड़ेला मंदिर में सतगुरु नन्द गोपाल |
***सतगुरु जयगुरुदेव ***

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : २३/०१/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
***अंतर्घट सन्देश नंबर :१ ***
*******सतगुरु जयगुरुदेव ****** दिनाक :३१/१२/२०१४ प्रातः ४:४१
बच्चे प्रेम से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
अभी कहाँ सत्संग आप लोगों को सुनने को मिला है | असली सत का साथ तो अभी किया ही नही गया है | अब अपनी पारी का इन्तजार बेसब्री से करो |अभी तो प्यास जगा रहा हूँ |अभी परमात्मा से मिलने की सच्ची प्यास जगी कहाँ है | बिना प्यास भूख के कितना भी अच्छा ,अन्न पानी मिल जाय मजा नहीं आएगा |तो प्यास जागने दो |देखो कैसे रोते चिल्लाते दौड़ पड़ते है | धीरे धीरे हज़म करने की आदत डालो | एक बरगी नहीं |इन्द्रियों के घाट पर बैठ कर दुनिया का मजा लो और सतगुरु के घाट पर बैठकर ऊपर चढ़ो| शब्द पकड़ो अपने निज घर की तरफ मुङो | "शब्द शब्द पौड़ी हम रची ,चढ़ी-२ पहुंचों सच्ची नगरी" कहाँ आये हो कहाँ जाना है |ये तो अभी कुछ पता नहीं है |इन्द्रियों के दरवाजे पर बैठकर डायने फड़फड़ा रहे हो और पंख फैलने के बजाय शिकुडते जा रहे है | अपने सतगुरु के घाट पर बैठकर उड़ना सीखो | मान अपमान में लगे रहते हो | साधक बनो |

अंतर्घट सत्संग भाग :२ (दिनांक : २३/०१/२०१५ प्रातः ४:४१)
सच्चे साधक बनना सीखो | भाव से मुझे फल,फूल,पान अपर्ण करोगे मुझे स्वीकार है | अभाव में तो कुछ नहीं |घर का काम नहीं कर पाते हो ,तो सतगुरु का ,अपना रूहानी काम कैसे तय करोगे |बच्चे सतगुरु तुम्हारे धन का भूखा नहीं है |वो तुम्हारे भाव भजन का भूखा है |किसी को देखने सुनने की जरुरत नहीं है |मुझे देखो मेरी तरफ देखो | सतगुरु बनकर तुम सब को लेने आया हूँ |अब तो बेहोशी दूर करा लो |धीरे धीरे अपना काम मेल मिलाप से निपटा लो |मै तुम्हारी सुरत की सफाई करना चाहता हूँ |निखालिश सुरत को सतगुरु सामने पेश करो और है ही क्या तुम्हारे पास सतगुरु को देने के लिए | अपना आपा सतगुरु को भेंट करो और सतगुरु की रूहानी दौलत लेते रहो |सतगुरु मिलन की रूहानी प्यास भरपूर जागने दो |
"सतगुरु मिलन की प्यासी सुरत ,अबतो सतगुरु दीवानी हो गयी |
सतगुरु दीवानी सुरत अबतो ,रवानी हो गयी |"
बच्चे ये तुम्हारे कुल मालिक का रहस्यमयी खेल है | सतगुरु के इस रहस्यमयी खेल जल्दी समझ में नहीं आएगा | धीरे धीरे समझने की कोशिश करो |सत वचनो का पालन करते रहो | मालिक सतगुरु तुम्हे अपना सबकुछ सौपना, देना चाहता है | जो दे रहा है धीरे से लेते रहो |सब कुछ तो मिल रहा है | बस अपनी ,रूहानी रवानी लाइन में लगे रहो |सतगुरु की दया धार आते ही सतगुरु में मिल जावोगे |
बच्चे हर चीज का मुहूर्त होता है | इस समय सतगुरु जागरण का रहस्यमयी शुभ मुहूर्त का लाभ सब के सब लेते रहो |बड़ेला मंदिर में विराजमान ,सतगुरु साहब सतगुरु जयगुरुदेव ही तुम सबके कुल मालिक है | बच्चो तुम्हारा सतगुरु अजन्मा है अपनी मौज मर्जी से प्रकट होता आया है और अपना भेद स्वयं बताते है ,खोलतें है |मेरे बड़ेला मंदिर का रहस्यमयी इतिहास क्या है | ये किसी को भी नहीं मालुम है | इसके गर्भ में क्या छुपा है | इसकी रूहानी तरंगें बहुत ही असंख जोजन , अनगिनत , बहुत ही ऊपर तक जा रही है | वहीं से (रूहानी), वहां से क्या-२ इस मंदिर की परम पावन रहस्यमयी धरती पर उतर रहा है |इसका खुलासा धीरे धीरे वो अजन्मा कुल मालिक स्वयं करेगा| बच्चे अपने सतगुरु को सर पर धारण करके अपने काम में लगे रहो |
"सतगुरु जयगुरुदेव को सिर पर धारिये ,चलिए बड़ेला मंदिर माहि"
असंख कोतिमय लोक में सतगुरु जयगुरुदेव से बड़ा न कोय |
असंख कोटि देव न कर सके ,सतगुरु जयगुरुदेव करे सो होय |
"बच्चे बोलो प्रेम से सतगुरु जयगुरुदेव "

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Satguru jaigurudev The Name Of God:

Dated:20th Jan 2015

Dated:22nd Jan 2015 (Antarghat Sandesh No:2)
The current spritual master Saint "Satguru jaigurudev" said. In saint's words"
"Children say Satguru Jaigurudev"
My Children I take care of you. I know my children are dying to meet me.
I am also eager to meet them.I did full effort to convince the relevant to my children and true sangat(group of religious people). Those who listened me and admit my message,leaving their ego,will have experience sooner or later definitely. But those who honor wealth and wisdom to be paramount,are left on their recent. My satyugi children are working in my service. They will advertise my awakened name “Satguru Jaigurudev” in whole world. In my monolithic temple spiritual treasure is being distributed. Person who meditates (sadhan bhajan) or worships with true heart in this temple , he will definitely get inner kindness of Malik (God). My satyugi children will wake up the whole world. The whole world will sing glory of Bharat (India).
This time will definitely come. My no word has become untruthful.
You will understand when my each word will starts becoming truth.
Anybody can be overwhelmed by kindness and blessing of God.
Anybody who doesn’t take egg, flesh, fish and hard drinks; if he chants the name “Satguru Jaigurudev” with trust then he will get all kind of help and he can also also get spiritual treasure or inner kindness of God like other persons ( running on the same path) with the name of God.
People who help in any way in my work of advertising and spreading, can also be eligible to get spiritual kindness of God. Such person will get the complete kindness of God if he is pure vegetarian.
When you are in some difficult situation, you chant my awakened name Satguru Jaigurudev, you will get help. This message is for the world.Know it , assume and check it.Spread the message of Satguru in the whole world. In future,the country India will be known for its spiritual power.This land is the centre of spiritualism. Here there is constant movement of Saint Satguru.Great powers have descended on this land and the great powers are working on the ground in today's age also.In the future they will get organised and will fulfil the functions of Satguru.World will accept the powers of India and will subservient in front of India. Those who get understand in time and back on track,will get their welfare.The rest will have to rely on their own wisdom and deeds. My work will be done globally bye my highly specialized souls.when my entire work will be completed, The Golden age will be rife on whole world.The whole world will become state of truth and peace .Righteousness and truth will bloom from Indian soil.Each side will be state of religion and truth.My Golden age children are here only for that day. My Golden age children have been brought here for the same day.You have to support me for the fulfilment of this divine work. When your work would be done,you'll get back to your divine dwell(nijdhaam).My Golden age children be engaged in your actions and as a heroic warrior raised the banner of Golden Age and " Satguru Jaygurudev " name in the world.
Say children Satguru jaigurudev
Akhand Bharat Sangat Guru ki:
Devotee : Pallavi Srivastava
Satguru Jaigurudev 'Antarghat' Temple.
Village:Badela.
Post:Taalgaon.
Tahseel:Rudauli.
District:Faizabad(U.P.),India.

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :२१/०१/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
***अंतर्घट सन्देश नंबर :१ ***
*******सतगुरु जयगुरुदेव ****** दिनांक :२१ /०१/२०१५ प्रातः ७:२४
बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरुदेव
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
ये कलम ये रिफिल आपकी दी हुयी इक अमानत है ,
इसमें आपके सिवा कोई और समाता नहीं |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
इससे आपके गुन के सिवा कुछ लिखा जाता नहीं |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
इस आईने में अपने सतगुरु जयगुरुदेव के सिवा,
कोई और दिखता नहीं ,कोई सुहाता नहीं |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
सतगुरु की ये सुहानी मौज अब बड़ेला मंदिर पे छा रही |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
सतगुरु जयगुरुदेव की सुहानी झंकार अबतो ,
चहुँदिश दस दिशावों में गूँज रही |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
अपने सतगुरु सरकार के असंख्यों दीप जला रही|
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
सतगुरु सरकार की बैन बांसुरी सूना रही |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
ये कलम ये रिफिल,सतगुरु सरकार की दी हुयी
इक रूहानी अमानत है |
क्या लिखूं खत सतगुरु ,कुछ लिखा जाता नहीं |
सतगुरु जयगुरुदेव
***अंतर्घट सन्देश नंबर :२ ***
*******सतगुरु जयगुरुदेव ******दिनांक :२१ /०१/२०१५ प्रातः ५:३६
"बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव बोलो "
बच्चे अब तुम सब सतयुग में प्रवेश पा गए हो | अब तुम सब रूहानी खुली आँखों से जन्नत का नजारा देखने जा रहे हो | मेरी बड़ेला नगरी में स्वर्ग उतर आया है | कुल मालिक की असीम दया तुम सब पर दिन रात बरस रही है | कुल मालिक सतगुरु जयगुरुदेव की दया दृष्टि ये मेहरवानियां बस देखने लायक हैं | उसे अपने बच्चो की की हर क्षण फ़िक्र लगी हुयी है | अपने सुकोमल बच्चो को रह रह कर उड़ना सीखा रहें है | ये मेरे बच्चे हर पल मुझे निहार रहें है और कुल मालिक सतगुरु भी पल पल बच्चो को पुकार कुल मालिक अपने बच्चो को सतयुगी बलकल वस्त्र पहना कर उनके मस्तक पर तिलक लगा दिए है | बड़ेला मंदिर से अनामी धाम तक आरती का थाल सज गया है | बड़ेला मंदिर से अनामी धाम तक होने लगी आरती हज़ार हो |
बड़ेला मंदिर से अनामी धाम तक मंगल कलस सजायें खड़ी सखियाँ हमार हो |
सखियों के सतयुगी चुनरी में ,जड़ा कोहनूर अपार हो |
सखियों की चुनरी ,ऐसे चमके जैसे चमके कोटि चंदा हज़ार हो |
ये चुनरी सतगुरु जयगुरुदेव जी के कृपा से,
बड़े भाग्य से पायी सखियाँ हमार हो |
बच्चे तुम सब का योगक्षेम मै वहन कर रहा हूँ |तुम सब निडर होकर आपस में ,प्रेम सौहार्द बनाकर एक मुख होकर काम करो |आगे बढ़ो |मेरे बच्चो दो मुख न बनो |एक सतगुरु का दिवाना,असंख रुहनो को साथ लेकर चल सकता है |चलता है |बच्चे तुम सब आपस में प्रेम सौहार्द की मिशाल कायम करने जा रहे हो |एक दूसरे के रूहानी काम में मदद करो |तुम्हारा सतगुरु जयगुरुदेव भी हर क्षण तुम सबकी रूहानी मदद कर रहा है |अंदर बाहर एक रस सतगुरु जयगुरुदेव तुम सबके साथ है |
देखा अपने बड़ेला मंदिर के बच्चो को ,ये साथ साथ चलें |
बड़ेला मंदिर से अनामी धाम तक ,ये फूले खिले हुये|
"बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव बोलो "


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : २० /०१/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
***अंतर्घट सन्देश नंबर :१ ***
*******सतगुरु जयगुरुदेव ****** दिनांक :२० /०१/२०१५ प्रातः ८:००
बोलो बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव :
मेरी रूह में हरदम ख़याल आता है |
ये बड़ेला नगर बनाया किसने है |
ये बड़ेला नगर बसाया किसने |
ये बड़ेला मंदिर बनाया किसने |
मुझे अपने सतगुरु का दीवाना बनाया किसने |
ये बड़ेला मंदिर तो बनाया गया है
बस मेरे लिए ,हम सब के लिए |
मेरे सतगुरु जी तो आये हुए है ,
बस मेरे लिए ,हम सब के लिए |
इससे कहाँ था ये बड़ेला नगर ,
कहाँ से आया हुआ है बड़ेला मंदिर |
मेरे रूह में ख़याल आता है हरदम |
इससे पहले अमाया धाम में बस रहे थे ,
मेरे सतगुरु ,तेरे सतगुरु जी |
वहीँ से ये बड़ेला नगरी उत्तर के आई है जमी पर |
बस तेरे लिए ,तुम सब के लिए |
वहीँ से ये बड़ेला मंदिर उत्तर के आया धरा धाम पर |
बस तेरे लिए ,तुम सब के लिए |
मेरी रूह में हरदम ख़याल आता है |
ये बड़ेला नगर ,बड़ेला मंदिर धाम बनाया किसने |
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव

***अंतर्घट सन्देश नंबर :२ ***
*******सतगुरु जयगुरुदेव ****** दिनांक :२० /०१/२०१५ प्रातः ५:११
" बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव "
बड़ेला नगर सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर बड़ेला में अवतरित फ़कीर देश दुनिया को झकझोर कर रख देगा |इसके विचार इतना प्रभावशाली ससक्क्त एवं समायिक होंगे की पूरी दुनिया को विवश होकर सुन्ना पडेगा | पूरी दुनिया के लोग इस नूरी धरती को , जमी को शिज़दा करेंगे | इस धरती के एक एक कड़ को पाने के लिए तरसेंगे | अभी मेरे बच्चे सूना रहे है | होश दिला रहे है | आगे इन बच्चो को खोजते फिरोगे | इनके सत संदेशों को सुनने के लिए दौड़ोगे | ये वही बच्चे हैं जिनको अपने साथ लाया हूँ | ये मेरे शांति के दूत है | प्रेम के सुख समृद्धि के अवतार है | ये बच्चे अपने अमर सतगुरु का अमर पावन एवं अपने मालिक का अति परम दिव्य प्रवित्र चरित्र गा गा कर सूना रहें है | पढ़ा रहें है |
"अब तो सुन लेहु , सुनी सुनी चेत लेहु , जगवा के लोगवा"
हमरे सतगुरु जी के दिव्य वाचनिया बनिया हो |
अब अपने नयनवा में बसाय लेहु सतगुरु जयगुरुदेव के दिव्य चरणवा हो |
बच्चे ये परमार्थी सेवा है | इसे अखंडता पूर्वक करते रहो | मालिक की बहुत बड़ी दया है | जो ये सेवायें मिल रही है | अभी सेवा क्या देखि , अभी तो सेवा करने वालों की लाइन लग जाएगी | होड़ लग जायेगी , सब सेवा करेंगें | सब साधन भजन करेंगे | मेरे बड़ेला धाम के बच्चों सतयुग उतर आया है | ये बच्चे सतयुग में प्रवेश पा चुके हैं | इनके योग और विज्ञान की प्रबल शक्तियां जागृत हो गयी है | इनके सतगुरु भक्ति के मिशाल कयाम होने जा रही है | इन हुनरमंदों के अनोखे कारनामो को देखकर पुरे विश्व के लोग अबाक रह जायेंगे | ये साधारण सादे भेष भूसा वाले मेरे बच्चे देखने में इंसान है , लेकिन इनकी अंतरि रचना महिमा क्या है | ये स्वयं नहीं जान रहे है | ये अंतर से पूर्णतः कुल मालिक से जुड़े हुए है |
श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ किया था | जो त्रिलोकी नाथ थे | रामायण को पढ़िए ये महात्मा की लिखी रचना है | अपने इन बच्चो की शक्तियां सतगुरु से जुडी है | इनकी रगों में , नशों में सतगुरु जयगुरुदेव की जादुई करिश्माई पावर काम कर रही है | इनकी अर्ध चेतना अवश्था धीरे धीरे ख़त्म हो गयी है | ये बोध में आ गयें है | बस नाम मात्र की देरी है | बच्चे ये तुम्हारे सतगुरु का खेल है, हैरान मत होवो| जल्दी मत करो|
बच्चे तुमसे ज्यादा जल्दी मुझको है |बस समय का थोड़ा सा इन्तजार है |बच्चे तुम अत्यंत निश्छल सतगुरु भक्त हो |तुम्हारे सतगुरु जयगुरुदेव का परम पावन आशीर्वाद तुम्हारे साथ है |
"बच्चे प्रेम से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव "


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Satguru Jaigurudev

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :१८/०१/२०१५ प्रातः ७:१८


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया: मालिक के शब्दों में
सतगुरु जयगुरुदेव प्रेमियों :
जास नाम सुमिरत सुख होई ,सो सतगुरु जयगुरुदेव मेरे बड़ेला मंदिर आवा सोयी |
जास नाम ही मन गनि ज्योति ,सो सतगुरु जयगुरुदेव सुमिरत दिव्य दृष्टि होती |
अब सब लोग सतगुरु के खरे सीधे निशाने पर आ जावो | अब इधर उधर भटकने का समय नहीं है |
अब एक दूसरे को क्यों देख रहे हो ? सीधा समाने बैठकर तीर चलाना सीखो , तुक्के लगाना छोड़ दो |
अपने जीवन की अमूल्य घड़ियाँ एक एक कर काम होती जा रही है | साँस पूरा होते ही इस मनुष्य मंदिर की कोई कीमत नहीं होती है | जैसे कलम की रिफिल खत्म होते ही ,उसे फेंक देते हो वैसे ही यह शरीर है |
जब तक जतन जीवात्मा इसमें है ,तब तक इसकी कीमत है |यह मनुष्य शरीर साधन करने के लिए मिला है |(इससे मुक्ति पा लो) | साधन भजन करने के लिए सतगुरु की खोज करनी पड़ेगी |
"सतगुरु की खोज करते चलो भाई ,जगत से मन को मोड़कर"
तुम सबको आये यहाँ बहुत दिन बीत गया | ये देश तुम्हारा नहीं है | ये प्रदेश है प्रदेश | इसमें सुख की खोज कर रहे हो ? असली सुख और आनंद कहाँ है ,इसकी खोज तो तुमने की ही नहीं | राजपाठ ,सोना चांदी ,महल अटारी ,खान खजाने, कही सुख किसी को मिला? सबके सब परेशान है ,बेचैन है | किसके लिए आनंद मिल जाय | असली सुख आनंद यहाँ है ही नहीं ,तो ये कहाँ से मिलेगा |इसके लिए फकीरों महात्माओं की खोज करनी पड़ेगी |उनके पास जाना पडेगा |उनका साथ करना होगा |उनकी शरण में झुकना होगा |अब इधर उधर देखना छोड़कर फकीरों महात्माओं की रूहानी आवाज को पहचानो ,सुनो | फ़कीर सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी ,निरंतर रूहानी आवाज लगा रहें है | उसको सुनो चेतो , क्योंकि महात्मा निरंतर चलो चलो की आवाज लाग रहें है | महात्मा का रूहानी पैगाम , रूहानियत नूर , नूरी अंतरंग खजाना जो अब तक गुप्त था | अब उसका सतगुरु ने खुलासा ,ऐलान किया है और अपने अंतर्घट मंदिर बड़ेला का (खुल्लम खुल्लम ) खुलासा ताबड़तोड़ लगातार प्रचार प्रसार करवा रहे है | मंदिर में कोई और नहीं बच्चे तुम्हारा जीता जागता देवता अमर सतगुरु जयगुरुदेव स्वामी स्वयं विराजमान है |
"पीरे हक़ संत सतगुरु जयगुरुदेव जी बड़ेला मंदिर में आय के विराजे है |
उनके कदम पोशी का, उनके सुकुमार चरणो का रहनुमाई का कब ध्यान आएगा | "
अब मेरे बड़ेला मंदिर के बच्चे आवाज लगा रहे है | उनकी आवाज पहचान कर सुनकर अपने कुल मालिक के दर्शन , दीदार करने के लिए दौड़ पड़ो, निकल पड़ो , देर मत करो |(देर करने से तुम्हारा बड़ा नुकशान हो रहा है )| तुम्हारा सतगुरु समरथ है | तुम सबकी संभाल भी वाही करेगा | दाता के आगे अपना दामन फैलावो | अपने समरथ आश्रय दाता सतगुरु जयगुरुदेव के पास पेशानी करो |
"आश्रय एक बड़ेला मंदिर है दुनिया का , दाता एक सतगुरु जयगुरुदेव जी है "

बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :१८/०१/२०१५ प्रातः ६:४९


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया:
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव :
बच्चे सब मिलते रहो आपस में अपने सतगुरु जयगुरुदेव से :
आ बड़ेला मंदिर के बच्चे ,तुम्हे प्यार करें सतगुरु इतना |
क्या कोई कर सकेगा इंतना |
मेरी रूह के टुकड़े बच्चे तुम कैसे मै रह सका इतना |
आ बड़ेला मंदिर के बच्चे ,तुम्हे प्यार करें सतगुरु इतना |
मेरे बच्चे जितना फ़िदा है सतगुरु पर ,क्या कोई फ़िदा हो सकेगा इतना |
आ बड़ेला मंदिर के बच्चे ,तुम्हे प्यार करें सतगुरु इतना |
मेरे बच्चो की साँस चले अबतो सतगुरु से ,क्या कोई चल सकेगा इतना|
आ बड़ेला मंदिर के बच्चे ,तुम्हे प्यार करें सतगुरु इतना |
मेरे बच्चे मिले अंतर्घट ,सतगुरु स्वामी से ऐसे |
क्या कोई अंतर्घट में सतगुरु स्वामी से मिल सकेगा इतना |
आ बड़ेला मंदिर के बच्चे ,तुम्हे प्यार करें सतगुरु इतना |
सतगुरु जयगुरुदेव


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक: १८-०१-२०१४


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l
अखंड भारत संगत गुरु की उस संत सतगुरु की असली संगत है l ये संगत भारत की ही नहीं पूरे विश्व की है l पूरे विश्व में " सतगुरु जयगुरुदेव " नाम का डंका बजने वाला है l भयानक समय में इस नाम से मदद मिलेगी l
अखंड सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ग्राम बड़ेला अपने आप में एक ऐतिहासिक मंदिर है l बड़ेला का इतिहास बहुत पुराना है l यह प्रभु राम की जगह है यहीं पर प्रभु राम लक्ष्मण एवं सीता एक साथ इसकी भूमि पर चरण रख चुके हैं l
प्रभु राम ने इसी स्थान पर बैठकर संकल्प लिया था कि इस धरा से पाप और अनाचार को मिटा देंगे l वे सबकुछ जानते थे लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम थे l
बड़ेला के इतिहास में लगभग सभी संतो ने अपने चरण कमलो से इस जमीन को पखारा है l ये वही पवित्र भूमि है जहाँ संतों ने बैठकर यज्ञ किये और पवित्र जीवात्माओं ने साधन भजन किया l
बड़ेला का इतिहास बहुत पुराना है l नाम बदल जाने मात्र से जमीन की पवित्रता ख़तम नहीं हो जाती l आने वाले समय में सभी आध्यात्मिक कार्य यहीं से होंगे l बड़ेला में बना ऐतिहासिक अखंड मंदिर स्वयं अपनी गाथा खुद गायेगा l ये आने वाले समय में पता चलेगा l
जिसे इस मंदिर की वास्तविकता जाननी हो , वह उस मंदिर में बैठकर सच्चे मन से साधन भजन करे या वो जिस भी देवी देवता को या गुरु को मानता हो , इस मंदिर में बैठकर अपने ईश्वर या गुरु का पूजन करे , उसे इस मंदिर की महिमा का और उस जमीन की पवित्रता का ज्ञान हो जाएगा l
जिसने भी इस "सतगुरु जयगुरुदेव" नाम को लिया और वो समर्पण का भाव रखता हो तो उसे हर प्रकार से मदद मिलेगी l यह बात पूरे विश्व पर लागू होती है l
जो इसे जानता मानता होगा वो इस भेद को अन्य लोगों को बता समझा सकता है l यह कार्य विश्व स्तर का है l सभी को जान लेना आवश्यक है l कठिन समय में इसकी जरुरत पड़ेगी l सभी को शुद्ध शाकाहारी ( अंडा, मांस ,मछली एवं शराब से पूर्ण परहेज ) बनना ही होगा तभी पूरी मदद मिल पाएगी l इस नाम की परख कोई भी कभी भी कर सकता है l स्वयं को उठाना ही होगा l गिरे रहोगे तो संभल नहीं पाओगे l स्वयं को पवित्र बनाना ही होगा l
यह सन्देश विश्व के कोने कोने तक पहुँच जाना चाहिए l इस कार्य में मदद करने वालों को हर प्रकार की आतंरिक वाह्य दया मिलेगी l
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :१७/०१/२०१५ प्रातः११:४४


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया:
बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव :
सतगुरु जयगुरुदेव नगर बड़ेला में घर घर बाजन लागे अनवरत बधैया उठन लागे सोहर हो |
अरे अरे भैया अरे अरे बहनो सतगुरु जयगुरुदेव आई गये हो |
धन्य धन्य यही बड़ेला के लोगवा हो |धन्य धन्य तोहरा भाग्य हो |
जहँवा अनामी प्रभु मोरे सतगुरु सरकार ,लियो हो अवतार |
अरे अरे देशवा विदेशवा के लोग सुनी सुनी धायी लेव सतगुरु नगर बड़ेला हो |
जहँवा आय विराजे जगवा के पालनहार सतगुरु अंतर यामी हमार हो |
सुनी सुनी आय जावो सब जगवा के लोगवा अपने सतगुरु की बड़ेला नगरिया हो |
अपने सतगुरु सरकार का लेवो बलइया उतार हो |
फिर अपने सतगुरु स्वामी से मिल लेव अचला पसार हो
सतगुरु मोरे आय गये,अबतो अपने सतगुरु साई को लेव निहार |
आय गये सतगुरु स्वामी हमार हो |
अब तो अपने सतगुरु जयगुरुदेव नामवा की महिमा से पुरे जगवा ,
पुरे दुनिया का कर लेहु सम्भार हो |
सतगुरु स्वामी मोरे आय गये हो |
यही बड़ेला नगरिया की हो ,यही सतगुरु जयगुरुदेव नमवा के पुरे ,पुरे जगवा में मचै लागि धूम हो |
होय लागि महिमा अपरम्पार हो |
कि मेरे सतगुरु जयगुरुदेव सरकार आय गये हो |

"बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव"


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
संपर्क सूत्र : 09651303867, 07052705166, 09711862774, 08800228964, 08004021975

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:१७ /०१/२०१५ सायंकाल:४:५५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को अंतर सन्देश लिखवाया:
बच्चे अंतर से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव:
दुनिया में एक अनोखा मंदिर है |
सूरतों की अजब कहानी है |
सतगुरु की गजब निशानी है |
रूहें जो जागृत है ,सतगुरु जयगुरुदेव की दीवानी है |
धुन सुन सुन कर होश में आती है |
धुन सुन सुन कर होश में आना है |
कुल मालिक से मिल मिल कर ,कुल मालिक की हो जाती है |
कुल मालिक से मिल मिल कर ,कुल मालिक की हो जाना है |
बच्चे अब अंतर्यामी प्रभु से अर्जी करते चलो ,अब अपना सब कुछ मालिक को अर्पण कर दो |जहाँ भी हो जिस हाल में हो वहीँ पहुँच कर सतगुरु तुम्हारी संभाल करेंगे |अब अपने बच्चो को अंतर्यामी बेहाल नहीं देखना चाहता |बच्चे तुम्हारा अंतर्यामी पिता सतगुरु जयगुरुदेव बड़ा ही परम सामर्थवान है |
बच्चे अपने अनामी महाप्रभु परम पिता सतगुरु जयगुरुदेव पर गर्व करो |मेरे सतयुगी बच्चे ,तुम सब बधाई के पात्र हो ,तुम्हारा परम पिता अपने बच्चो पर गर्व कर रहा है |बच्चे अपने काम में डटे रहो निर्भीक बनकर |मुझे अपने बच्चो पर भरोसा है |बच्चे आज के अरण (वन) में निष्ठा पूर्वक मेहनत करो अनामी धाम ,राज्य तुम्हारा है |अपने बच्चो को नवनीत नूतन मंगलमय हार्दिक बधाई देता हूँ ,देता रहूंगा |बच्चे मेरे मुझे याद करते रहो ,रहना ,मै तुम्हे याद करता रहूंगा |

प्रेम से बोलो मेरे सतयुगी होनहार बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:१५ /०१/२०१५ प्रातः ७:०९


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को लिखवाया सन्देश :
बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव :
मेरे सभी बच्चे बच्चियों अपने सतगुरु जी की मंगल कामना करते रहो |अपने सतगुरु की दिव्य अगवानी करो | अपने सतगुरु जयगुरुदेव जी की दिव्य मंगलमय आरती लेते रहो | अनामी महाप्रभु की मंगलमय आरती का भरपूर स्वागत अभिनंदन करो | दिव्य भाव बढ़ाते रहो | दिव्य भाव बढ़ाते बढ़ाते एक न एक दिन पूर्ण दिव्य सिंधु बन जाएगा(में मिल जावोगे)|
आरती करूँ अपने अमर सतगुरु जयगुरुदेव अनामी की |
परम दिव्य स्नेहमय , सतगुरु जयगुरुदेव ज्ञानी की |
परम दिव्य मै अंतर ध्यान करूँ अपने सतगुरु जयगुरुदेव ज्ञानी की |
अरति करत परम दिव्य ही होत उजास ,
ऐसो परम सतगुरु जयगुरुदेव नमामि की |
अरति करत परम दिव्यमय ज्ञान का सुहाग उतरत,
ऐसो परम दिव्य अमर सतगुरु जयगुरुदेव सहिदानी की |
अरति करत अपने सतगुरु साहब में ऐसो मिलत , ऐसो समात
जैसे बीना के धुन में मीरा समानी |
ऐसे परम अमर सतगुरु जयगुरुदेव की आरती
करत सभी परम भक्त जन , मुदित होत मन |
गावत परम उछाह , अपने परम सतगुरु की देख बरात सुहानी |
अरति करूँ अपने अमर सतगुरु जयगुरुदेव अनामी की |
बच्चे अपना अखंड परम सौभाग्यमय सतगुरु जयगुरुदेव की रूहानी आरती उतारते चलें | अब आपका परम दिव्य सतगुरु बच्चो की आंतरिक रूहानी आरती सुनने के लिए बेताब है | अब बाहर का भटकाव छोड़कर अंतरी पुकार लगावो | अंतरघाट पर बैठकर सतगुरु को गुहारो | मालिक के दरबार में हाज़िर नाज़िर होकर, मिन्नत प्रार्थना करते चलो | देर मत करो | इस जागरण की शुभ बेला का परम दिव्य रूहानी लाभ लेते रहो |मालिक की दयामयी रूहानी दिव्य दृष्टि निहारते रहो |दिव्य लाभ ले लो | मेरी बड़ेला मंदिर में हाज़िर होने का समान बनाते रहो | इसमें चूको नहीं , इसी में तुम्हारा कल्याण है |
सतगुरु समरथ हैं साथ साथ है |
"बोलो बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव "


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर ,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक :१४/०१/२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन बिंदु सिंह को लिखवाया सन्देश :
मालिक के शब्दों में सुरत स्वामी संवाद :
"हे सतगुरु तुम कहाँ से आये ,कौन है देश तुम्हारा"
*****************************
सुरत अपने सतगुरु से पूंछ रही है |हे सतगुरु मेरे मालिक तुम कहाँ से आये |कौन सा देश तुम्हारा है |
*****************************
"मै तुमको खोजत फिरूँ ,कहीं न मिले ठौर ठिकाना "
*****************************
सुरत अपने सतगुरु को हर जगह खोज रही है और मालिक से प्रश्न करती है |हे मालिक मुझे अपना पता बता दीजिये |आपका अता पता नहीं मिल पा रहा है |
*****************************
"मुझको कहाँ ढूंढे रे बन्दे ,मै तो तेरे पास में "
*****************************
सतगुरु मालिक कहते है |मुझको कहाँ ढूंढ रहे हो बच्चे ,मै तो तुम्हारे पास अंतर में बैठा हूँ |अपने बच्चों का अंतर्घट ही मेरा पता है ,यही मूल ठिकाना है ,यहीं मै रहता हूँ |
*****************************
अपने अंतर्घट जाग री,सुरत सुहागिन |
तेरे अंतर्घट में ही ,तेरा अमर सतगुरु जयगुरुदेव सदा विराज री |
सुरत सुहागिन |
*****************************
हे सुरत तेरे निज अमर घाट पर ही तेरे अमर सतगुरु जयगुरुदेव का आसन है ,बैठक है |वाही तेरा सतगुरु जयगुरुदेव आसन लगाकर विराजमान है और वहीँ से निरंतर पुकार लगा रहा है |
*****************************
"हे सुरत तुम निज घाट पे आवो ,
यही से दिखे इक तारा,बिन्द निराला|
यही बुंद तुम पकड़ कर आवो ,
तोहे मिल जाए अमर सतगुरु जयगुरुदेव सिंधु अपारा"
*****************************
हे सुरत तू अपने निज घात पर बैठकर सदा विराजमान अपने सतगुरु को अपलक निहारने की कोशिश में लग जावो |वहीँ तेरे सतगुरु की झलक दिखाई देगी ,वाही तेरा मूल आधार है | जो कुछ दिखाई दे उसे पकड़ कर अपने सच्चे सतगुरु के देश चलने की तैयारी करो | इसी बिंदु को पकड़ कर अपने अमर सतगुरु जयगुरुदेव रुपी सिंधु में मिलने की कशिश ,जतन करो |वहीँ सतगुरु तुझे सच्चा पता ठिकाना दिखायेंगे|
*****************************
"चल री सुरत सुहागिन ,अब अमर सतगुरु जयगुरुदेव के देश |
जहाँ मिले न सतगुरु के सिवा ,कोई दूजा सन्देश |
अमर सतगुरु जयगुरुदेव दया से मिला यही देश |
यही अखंड सतगुरु जयगुरुदेव ,मंदिर बड़ेला |
यही तेरे अमर अमिट सतगुरु जयगुरुदेव का देश |
यही सतगुरु देशवा की ,करीय खोजरी मोरी सुरत सुहागिन |
यही बड़ेला देशवा में आई ,विराजत अमर सतगुरु जयगुरुदेव तोर री |
मोरी सुरत सुहागिन |" *****************************
हे सुरत अब अपने सतगुरु के बड़ेला मंदिर में पहुँच कर | अपने निज काम में लगकर अपने सतगुरु में मिलने की कोशिश करो |
**सतगुरु जयगुरुदेव ***


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:१२-०१-२०१५


गुरु महाराज (परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज) ने गुरुबहन पल्लवी श्रीवास्तव को मालिक ने इन वचनों को बोल बोल कर लिखवाया:
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l
बच्चे और बच्चियों आज का दिन शुभ है l कुछ विशेष काम होना है , उसके लिए मुहूर्त अच्छा है l वो काम आज हो जाए तो अच्छा है l
समय पर काम होना बड़ा जरुरी है l अब तो ज्यादा वक़्त भी नहीं है l तुम सब लोग मिलकर के काम कर जाओ l मिलजुल कर काम करोगे तो अच्छा होगा l मेरी शुभकामनाएं सदैव तुम्हारे साथ हैं l तुम बच्चों पर मेरा आशीर्वाद सदैव रहेगा l
गुरु का संग बहुत भाग्य से मिलता है l अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझो l सतगुरु की दया प्राप्त करने वाले जीव साधारण नहीं होते l ये वो असाधारण जीव होते हैं जिनके पास आध्यात्मिक शक्तियाँ होती हैं l इन शक्तियों का प्रयोग वे सतगुरु की आज्ञा से संगत के हित में करते हैं | अपनी शक्तियों को पहचानो l जब तक पहचानोगे नहीं , अपने बोध में नहीं आ पाओगे l एक बार बोध में आ जाओगे तो सारा काम बगैर किसी कमी के पूरा करते चले जाओगे l सब समय पर निर्भर करता है l समय का सदुपयोग करना सीखो l
सुनो बच्चों ! चेत जाओ और काम करो l स्वयं को छोटा और पीछे न समझो l कोई किसी से कम नहीं है l सबको अपना अपना काम करना है l दूसरे के काम को मत देखो l स्वयं में तल्लीनता लाओ l स्वयं को सतगुरु में मगन कर दो l फिर जो दिक्कत परेशानी है दूर हो जायेगी l
काज (जग के) बिसारे सतगुरु मिले
काज (सेवा) मिले सतगुरु से
काज (सतगुरु का) करन सतगुरु का
काज (सतगुरु का) बनाओ मगन रह सतगुरु में
काज करन के वास्ते सबको भुला
सतगुरु में रम जाओ |
बोलो बच्चों सतगुरु जयगुरुदेव l


अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - पल्लवी श्रीवास्तव
जिला - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:११ /०१/२०१५ (सायंकाल:३:२४ से ४:४५)

(नोट: ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक(परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से बोल बोल कर लिखवाया है:-) मालिक के शब्दों में :-:
"प्रेम से बोलो बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव"
अपनी अपनी पूजा साधना करते चलो |ये औतारी बच्चे जब मैदान में उतर कर अपना काम करेंगे तो ये अपने माँ बाप को भी नहीं माफ़ करेंगे | ये क्या हैं क्या करेंगे ये समय बताएगा, समय से ही इनकी पहचान बनेगी | बस थोड़ा सा इंतजार है | इनकी शक्तियों का विकाश धीरे धीरे हो रहा है |( ये बच्चे खुद ही नहीं जानते की इनके अंदर क्या क्या रूहानी दौलत मौजूद है ) बच्चे रहमान का काम है | धीरे धीरे समय आने पर बोध होता जाएगा | समय से साधना करते रहो , जागकर मालिक के दया की धार (ज्वार भाटा) आएगी| ये जागृति का समय है | जागरण करावो और स्वयं जागृति में आ जावो | मालिक के निशाने पर बैठकर दया धार लेना सीखो | हर चीज का समय होता है | सतगुरु जागरण का मुहूर्त धीरे धीरे आन पहुंचा है | समय से लगकर सेवा साधन करते चलो | समरथ सतगुरु जयगुरुदेव को भूलो नहीं | अपने बड़ेला मंदिर के प्रसार प्रचार कार्य में तेजी लावो | अभी जल्वा कहाँ देखा है | अपने सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर बड़ेला का और अपने सतगुरु जयगुरुदेव का |
जल्वा देखा जल्वा देखा ,ऐसा निराला जल्वा देखा अपने सतगुरु जयगुरुदेव का |
जल्वा देखा जल्वा देखा ,अपने सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर बड़ेला का |
उत्तर देखा दक्षिण देखा ,पूरब देखा पश्चिम देखा |
जल्वा देखा अपने अनामी प्रभु सतगुरु जयगुरुदेव का |
अखंडेश्वर मंदिर का जल्वा देखा ,जल्वा देखा |
जल्वा देखा अपने सतगुरु जयगुरुदेव का |
नीचे देखा ऊपर देखा ,ऐसा निराला जल्वा देखा अपने मालिक का |
ऐसी अदभुत लीला देखी अपने सतगुरु जयगुरुदेव की |
ऐसी निराला अदभुत करिश्मा देखा,अपने सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर बड़ेला का |
जल्वा देखा जल्वा देखा जल्वा ,जल्वा चारों तरफ ही जल्वा मेरे सतगुरु जयगुरुदेव का |

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

सतगुरु जयगुरुदेव अंतर्घट मंदिर,
ग्राम : बड़ेला, पोस्ट : तालगाँव, तहसील: रुदौली, अयोध्या, जिला: फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक:१०/०१/२०१५ शाम:७:२५

(नोट: ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक(परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से बोल बोल कर लिखवाया है:-) मालिक के शब्दों में :-:
"बच्चे प्रेम से बोलो सतगुरु जयगुरुदेव"
बच्चे शंका क्यों करते हो | शंका मत करो , श्रृष्टि के जर्रे जर्रे में जीवात्मा है | अनामी प्रभु का अंश है | इनकी सेवा करना (सबसे बड़ा धर्म है) सीखो | मालिक के वचन (प्रार्थना), मालिक की आवाज जो सच खंड से आ रही है | इसकी सी. डी. बनवाकर प्रसार, प्रचार करो | जल्दी करो ये जागृति का समय है , सोने का नहीं है |
तुम्हारा सतगुरु जग रहा है | निरंतर आवाज लगा रहा है | उसको सुनो और अपनी शक्ति , भक्ति को अपने सतगुरु में विलीन कर दो | मिला दो | शक्ति तो मालिक दे ही रहा है (पहले लेने के काबिल बनो) कुदरती शक्ति सब में समायी हुयी है | लेकिन बच्चे तुम्हे अपना बोध नहीं है , होश नहीं है | सब कुछ वो अनामा प्रभु समझा रहा है | होश दिला रहा है | अब तो बोध में आ जावो , अब सोने का वक्त नहीं है |
स्वयं में जागृति लावो |
"खुद जागो और जगत को जागते चलो ,इतनी शक्ति मुझे दो सतगुरु "
बच्चे बच्चियों पूरे विश्व को तुम्हारी जरूरत है |अपनी दिव्यता की सुगंध से दिग दिगंत को महका दो ,
अपनी परम दिव्य शक्ति की पहचान में आ जावो |तुम्हारा सतगुरु अपने (निज) बच्चो का आवाहन
कर रहा है |बच्चे बड़ेला सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर ,तुम्हारी अपनी दिव्य पहचान है |आगे बहुत कुछ होने जा रहा है |मेरे बच्चे यह चुनौती का वक्त है |अब अपने सतगुरु जयगुरुदेव की आंतरिक आवाज सुनो ,उठो स्वयं जगो और पूरे विश्व को अपने सतगुरु जयगुरुदेव की दिव्य शक्ति का खुलासा ,अहसास करा दो |
"बच्चे सतगुरु जयगुरुदेव "|

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : १३/१२/२०१४ प्रातः १२:५४

***सतगुरु जयगुरुदेव मालिक का विश्व के समस्त मुल्को के नाम सन्देश ****
(नोट: ये वचन गुरु बहन बिंदु सिंह को मालिक(परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी) ने आध्यात्मिक रूप से बोल बोल कर लिखवाया है:-) मालिक के शब्दों में :-:
"बच्चे बच्चियों सतगुरु जयगुरुदेव "
सभी बच्चे बच्चियों आपस में लड़ो झगड़ो नहीं |प्रेम सौहार्द से मिल जुलकर रहो | सतगुरु जयगुरुदेव नाम की निरख परख करते रहो |नाम नामी दोनों एक ही है |"
"राम न सकैन्हि नाम गुण गाई""
नाम का गुण तो नाम लोक से आने वाले ही गायेंगे | नाम संतों के आधीन हैं | बेसुमार त्रिलोकियां नाम से (ही) आई हुयी है और नाम में ही समायी हैं | जब नाम स्वयं अपना परिचय देता है , तब ही उसकी पहचान होती है | उस परवर दिगार का लाख लाख शुकराना करते हुए, उसके शाही दरबार में पेश होने के लिए अपने आप को उसकी खिदमद में लगा दो | मालिक के दरबार में अर्जी लगा दो (अर्जी वो क़ुबूल करेगा) | और उस आला फ़कीर से मिलने के फिक्र में लग जावो | कोई न कोई मिल ही जायेगा जो शाह इनायत के दरबार में पेशगी करा देगा | अपने हक और हकूम की पहचान तो तुम्हे स्वयं करनी है | रब की बंदगी करो , उसके इलहाम का कब ध्यान आयेगा? उस मुर्शिद से अपने गुनाहों की माफ़ी करवा लो |तब उसकी रूहानियत की झलक मिलेगी | अपने को ही नहीं समझ पाये , तो खुदा की क्या पहचान करोगे |"
कौम कौम को मुल्क मुल्क को सन्देश भेजवा दो | अब वक्त सोने का नहीं है | अपने आप में जगो और जगावो , उस अल्लाताला का लाख लाख शुकराना करो और उसकी बनायी हुयी बेसकीमती इंसानी जामे की कद्र करो | वरना बहुत सताये जावोगे | उसकी इजलाश पर चढ़ गए तो कोई सुनवाई नहीं होगी | समय रहते फकीरों की रूहानी आवाज को पहचान कर उनके दरबार में हाज़िर होकर अपने जन्मो जन्मो के गुनाहों की माफ़ी करवा लो | उसकी सच्ची नमाज़ अदा करो| अरे कौम कौम के बच्चे बच्चियों आँख पर बंधी उस काली पट्टी को खोलकर सच्ची पेशगी करो | वरना सताए बहुत जावोगे | रहमत की रहनुमाई का स्वागत कर उसकी आवाज की पहचान में लग जावो |"
"संत सतगुरु हैं आये हुए , उनके इलहाम का कब ध्यान आएगा , कब तवज्जो करोगे ""
अरे बन्दों अपनी खुदी को पहचान कर अपने स्वयं में आ जावो | खुदाई का भण्डार तो तुम्हारे अंदर लहरा ही रहा है | उस आती जाती लहर को पकड़ो | स्वांसों की पूंजी गिनकर मिली है | स्वांस पूरी होते ही कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा |"
"सतगुरु जयगुरुदेव हैं रहनुमा तुम्हारे,तुमको लेने आये हुए (हैं)|"
उनके स्वागत का कब ध्यान आयेगा ,अपने बन्दों के लिए स्वयं बन्दा बनकर आये हुए |""
सतगुरु जयगुरुदेव का डंका सुनकर होश में आ जावो | अपने निज नाम की रटन लगाते जावो |"
कड़ी से लड़ी पिरोते जावो |
"नाम की जहाज लेकर सतगुरु जी आये ,तुम्हारे लिए हैं किनारे लगाए |""
नाम को पकड़ कर आ जावो किनारे | नाम ही करेगा अब तो सबकी सम्भाल|"
"बोलो बन्दों सतगुरु जयगुरुदेव " |

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

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सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : ०९/०१/२०१५ ( रात्रि: ८:२० से ८:३५ )


गुरु महाराज ने गुरुबहन बिंदु सिंह को लिखवाया सन्देश :
"बच्चों बोलो सतगुरु जयगुरुदेव"
बच्चे अपने बड़ेला मंदिर के प्रचार प्रसार में तेजी करो , देर मत करो | अपने अपने कार्यों की धीमी गति में तेजी लावो | आलस मत करो | तुम्हारा सतगुरु तुम्हे रह रह के याद कर रहा है | उसकी पुकार सुनते जावो | सुन कर अनसुनी क्यों करते हो ? संतों के दरबार में चमत्कारी खेल नहीं दिखाए जाते है , उनके यहाँ मालिक की अंतर महिमा का गुड़गान किया जा रहा है , जाता है | अंतर महिमा धीरे धीरे समझ में आती है | कोई मदारी का खेल थोड़े है | तमसा देखा और ताली ठोक कर चलते बने | बच्चे ये आतम विद्या है | ( इसको सीखने के लिए अपना सबकुछ खोना पड़ता है | दांव पर लगाना पड़ता है | तब जाकर कहीं कुछ रंच मात्र , रत्तीभर समझ आती है ) ये अध्यात्मवाद है | मालिक की पराविद्या है | इसके लिए आतम ज्ञान वाला सतगुरु मिलना चाहिए , खोजना पड़ता है | जो तुम्हारे घट के परदे खोल सके |
"खोज री सतगुरु को निज घट में , बिन सतगुरु तेरा और न कोई जग में"
"बच्चे बोलो सतगुरु जयगुरुदेव" |

अखंड भारत संगत गुरु की से
गुरु बहन - बिंदु सिंह
ग्राम : बड़ेला, अयोध्या, जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत

Guru Purnima

Satguru Jaigurudev The Name Of God

Dated:27th Dec.2014

The current spritual master Saint "Satguru jaigurudev" said (In inner soul) to His devotee "Bindu Singh".
In saint Satguru jaigurudev's word "
Satguru jaigurudev(Name of God) living master is the great. My children God is kind to all. Satguru Jaigurudev is the best living master. The living master is born.
The Temple Badela Faizabad Ayodhya India. Best news in human country, my children God is kind, and living master is kind".
**Satguru jaigurudev**

Akhand Bharat Sangat Guru ki:
Devotee : Bindu Singh
Satguru Jaigurudev 'Antarghat' Temple.
Village:Badela.
Post:Taalgaon.
Tahseel:Rudauli.
District:Faizabad(U.P.),India.

Note:
The name "Satguru Jaigurudev" is the name of God,"Sat" means truth ,guru means The Teacher, "Jai" translates to "victory" and "gurudev" to "teacher".
Satguru Jaigurudev is neither any human name nor that of another object such as animal, tree or river.
The phrase "Satguru Jaigurudev" to be a representation of "Anami Purush", the nameless supreme being.It is told by the great Spiritual Master (Saint Satguru Jaigurudev)that a soul sent from Sat Lok (the place of truth), the perfect realm where enlightened souls dwell, can designate an indicative name for Anami Purush just as Kabir used the name "Sahib", Goswami Tulsidas used "Ram" and Guru Nanak Dev used "Wahe Guru". Such names have miraculous powers.
Miraculous powers attributed to the name Satguru Jaigurudev include the power to :
1.reduce existing pain and misery
2.save people from premature death, also known as Akaal Mrityu.
3.reduce distractions of the mind
4.reduce the burden of karmas which enables the soul to attain higher spiritual levels
5.save the soul from temptation and deception while performing sadhanas. These are believed to be fearsome shapes or erotic images that impede progress to self-realization.
Satguru Jaigurudev is the only name that can liberate the soul from the negative powers of kal (mortality) and maya (illusion).


Guru Purnima

Satguru Jaigurudev The Name Of God

Dated:26th Dec.2014

The current spritual master Saint "Satguru jaigurudev" said(In inner soul) to His devotee "Bindu Singh".
In sanit's words "Satguru Jaigurudev, my children, God is kind. Satguru Jaigurudev,God is kind to all, all to the gather, and gather is the most. Almost is the param saint (Baba) Satguru Jaigurudev. Satguru jaigurudev temple is in Badela Faizabad Ayodhya(U.P.),Rudauli.Almost news in the all Asia".

Akhand Bharat Sangat Guru ki:
Devotee : Bindu Singh
Satguru Jaigurudev 'Antarghat' Temple.
Village:Badela.
Post:Taalgaon.
Tahseel:Rudauli.
District:Faizabad(U.P.),India.

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 25 दिसंबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत को अंतर्घट सन्देश लिखवाया की महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर दिनांक 16 फ़रवरी 2015 से 18 फ़रवरी 2015 तक तीन दिवसीय कार्यक्रम अंतर्घट सतगुरु जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम - बड़ेला में होगा | इस पावन पर्व पर कुल मालिक की विशेष दया सभी गुरु भक्तो पर होगी | भारत एवं विश्व के समस्त गुरु भक्त भाई - बहन इस कार्यक्रम पर सादर आमंत्रित हैं | सतगुरु जयगुरुदेव |
नोट : सभी गुरु भक्त भाई - बहन अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ आये |
गुरु मालिक का सेवादार
अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07052705166, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07042343282

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव :

दिनांक : 14 दिसम्बर 2014

सतगुरु जयगुरुदेव : परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज की दया मेहर से गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी का सत्संग आज दिनांक (१४/१२/२०१४) को कानपुर सिटी में हुआ | गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी ने गुरु महाराज का आंतरिक नवीनतम हुक्म सुनाया साथ ही साथ गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी को मालिक अंतर में सत्संग बताते रहे और जो गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी को मालिक सत्संग अंतर में बताते रहे वही सत्संग गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी ने सभी सत्संगियों को सुनाया | ऐसा रूहानी सत्संग इस समय केवल परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज की दया मेहर और उन्ही के हुक्म से गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी सुना रहे है और जहाँ सत्संग होता है वहां सभी गुरु भक्तो को गुरु महाराज अंतर में वहीँ सत्संग स्थल पर अनुभव भी कराते हैं |
|| सतगुरु जयगुरुदेव ||
Satsang Kanpur Satsang Kanpur

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 9 नवम्बर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत को अंतर्घट सन्देश लिखवाया:
सतगुरु दीन गरीबी में मिलते, नहीं धनियों के साथ |
सत का सागर सीतल सुन्दर, सत में मल क्या लाख |
साथ रखे जो संत सतगुरु से, वाही शिस्य अभिलाष |
सुन्दर बन सुन्दर जगमग जग ज्योति, सतगुरु दया के साथ |
प्रीतम मालिक शब्द सनेही, सुरत सुहागिन नाथ |
नाद साध एक लड़ी पिरोवैं, यही संत का साथ |
आत्मसात और ज्ञान के सागर, सतगुरु दीना नाथ |
शीश झुकावो गुरु चरणन में, तभी तो बने कोई बात |

|| सतगुरु जयगुरुदेव ||

गुरु मालिक का सेवादार
जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07042343282, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07052705166

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 29 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत को अंतर्घट सन्देश लिखवाया:

|| रघुमणी खानय पापमत नाशा, मनमुख वास जहाँ रहे आशा ||

मनमुखी ,गुरुमुखी जीव में बहुत अंतर होता है | मनमुखी के- अडम्बर में फसे जीव का कल्याण नहीं होता | बल्कि लेन - देन का कर्म कर्जा बन जाता है | यह कई जन्मों में निपटता है या खत्म होता है | संत सतगुरु के शरणागत जीव जब कही फंस जाते है तब उन्हें ठोकर लगती है | उसे गुरु होश दिलाता है | फिर से एक बार विशवास जगाता है | नहीं सम्भलने पर उसकी खूब रगड़ाई होती है | अपने अंदर हर घट में घाट पर सचर सतगुरु हर क्षण हाजिर है | जीव मात्र, अपने को निमित मात्र होकर, श्रद्धा भाव से, अपने मालिक की वन्दना करने पर, सब प्रकार की दया प्राप्त हो जाती है | और भविष्य के कार्य सोच समझ कर करता है |

रघुपति नाम सतगुरु जानही
संत भेद संत ही साने, मूल्य भेद का मूल्य निदाना
संत कृपा शिष्य सब जाना,
संगत संत पर होय निवारी , आवे अंतर दया बयारी
भेद , शोध , संतन अधीना, नाम भजन कर सब जन चिन्हा
नर पति नाम जगावे जगलो, नाम भेदना मिलेगा तबलो
नाम नयन नामी एक रेखा, सतगुरु दया मेहर से देखा
संत शिरोमणी मुक्ति का निजधाम, सतगुरु आज्ञा के बिना नहीं बनेगा काम||

|| सतगुरु जयगुरुदेव ||

गुरु मालिक का सेवादार
जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07042343282, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07052705166

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 23 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत को अंतर्घट सन्देश लिखवाया:

दीप प्रज्वालित अंतर माहि होय | सब सतगुरु की दिव्य दीपावली को जोय||
नाम दीप शिखर में, सतगुरु मन विचरण माला, कुंज रज कण भान प्रकाश ||

अंतर में सुर्यमुख दीपावली गुरु संग होती है | चौहुंदिश मंडल सूर्य दीपमाला से सुसज्जित है | सतगुरु महासिंहासन विराजमान रहते हैं | अदभुद नजारे का वर्णन नहीं हो सकता | सतगुरु कृपा से जो प्रेमी उस दिव्य अलौकिक मंडल गुरु के द्वारे गए | उन्ही को पता चला | फिर गुरु हुकुम से प्रेमियों को सतगुरु का हुकुम सुनाया | जो मानते गए ओ माला माल होते गए | जिन्होंने विरोध किया ओ कंगाल हो गए | जिस तरह निंदा की उसी तरह गुरु की कृपा नहीं मिली |
जिन्होंने सतगुरु का हुकुम माना तब उसे गुरु की कुछ कृपा मिली तो आप को बता रहा है | श्रद्धा से सुनों गुनो जो अच्छा लगे ले लो न लगे निकाल फेको, पर निंदा मत करो |
सभी साधक प्रेमियों को चाहिए की ओ और को न देखें | अंतर्घट में घाट पर सतगुरु से प्रश्न करें सच्चे मन से, प्रश्न का सतगुरु ततक्षण जबाब देंगे | पर कोई दूसरा गुरु और तुम्हारे बीच न हो | शून्य स्थित में जब तुम्हें बोध शरीर का न हो , तभी कुछ समझ में आएगा ||

ब्रह्मलीन तम ज्ञान है , पारब्रह्म महिखान ||
नाम नयन सतगुरु पिया , यही सच्चा जान ||

अखण्डरूप से विराजमान हर प्रकार से हाजिर नाजिर हर प्रकार से दया मेहर इस दीपावली पर सब प्रेमियों पर बरसे ||
भारत एवं विश्व के समस्त गुरु भक्त - भाई - बहन को
दीपावली की शुभकामना ||

गुरु मालिक का सेवादार
जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07042343282, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07052705166

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 21 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला, पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत को अंतर्घट सन्देश लिखवाया:
**********************
नाम बड़ा गुरु खानी है समझ कर लोय |
पुरे संत आधार है पद ग्रहण कर लोय||
**********************
मूक की तरह "नाम" को लेकर उसका प्रमाण न जानना सबसे बड़ी भूल है | "नाम" प्रमाण सतगुरु का तत्क्षण मिलता है | जो वक़्त के नामी के गुरु की अमूल्य दौलत होती है | नाम सिंधु साधक साधना में अपने पूरे गुरु के बल से सुध धुर की रखता है | वो यहाँ गुरु आज्ञा के अनुसार कार्य करता और करवाता भी है | जिसका पूरा प्रमाण संगत होती है | जब संगत को दया मिली, फ़ौरन गुणगान करते है उन्हें तो गुरु हुकुम हो चुका | पहले भी यही हुआ जिसने पाया उसी ने गाया |
अनुभव एक आध्यात्मिक पूँजी गुरु की दौलत है | जो गुरु कृपा से ही होती है| जिसके लिए अंतर में आदेश कर दे वही बोलेगा |
"गुरुवाणी" - वाणी तो सर्वव्यापी सतगुरु की है उसे कोई मानव कैसे काट सकता है | यह गुरु की दया कृपा है | जिससे चाहे जितना उतना काम ले लेते है | इसमें एक दूसरे से इर्ष्या - द्वेष नहीं होना चाहिए | "भजन" गुरु का दिया हुआ अमृत वरदान है |
सतगुरु जयगुरुदेव
**********
अंतर्घट प्रार्थना
**********
मन मस्त मग्न मन गाना , सतगुरु में लगन लगाना
सचधाम के सच्चे मालिक, सत्य सिंध दया बरसाना
मन मस्त मगन मन गाना
मिले भाव श्रद्धा वश मोती ,जिससे है सुरतियाँ धोती
इस भाव के वश बह जाना, मन मस्त मग्न मन गाना
सतगुरु में लगन लगाना
है धुर के मालिक सतगुरु दे नाम भेद बतलाई
जब चढ़ी सुरतियाँ अम्बर तब दिव्य भेद दिखलाना
मन मस्त मग्न मन गाना,सतगुरु में लगन लगना
धर धर यह अधर में होवे ,नाम पुंज दीवाना
मन मस्त मगन मन गाना सतगुरु में लगन लगाना
मिले नाम भजन के मोती जिससे है सूरत मेरी धोती
इस नाम को है हमको गाना मन मस्त मगन मन गाना
मानव धर अगम शरीरा काटे है मन की पीड़ा
इस बंधन से छूट जाना मन मस्त मगन मन गाना
सतगुरु में लगन लगाना
मिले नाम अनाम के स्वामी जो सचर है अंतरयामी
इन्ही के संग है जाना मन मस्त मगन मन गाना
सतगुरु में लगन लगाना
है पाँच नाम के मोती ,लड़ियों में सबको पिरोती
सतगुरु का नाम है जाना मन मस्त मगन मन गाना
सतगुरु में लगन लगाना
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु मालिक का सेवादार
जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07042343282, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07052705166

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 20 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला ,पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश को अंतर्घट सन्देश लिखवाया:
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कुन्ज कंज रज नाम मणि जागे ज्ञान प्रकाश |

बिंदु सिंधु एक वारि है ,लागे नाम आधार ||
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नाम सतगुरु कृपा का मुख्य स्रोत है| गुरु दया कृपा से प्रेमी साधक ,साधना में बैठ सर्व प्रथम गुरु को सच्चे मन से याद करता है| तब सतगुरु अंतर में बिंदु प्रकाश के समान प्रकट होते है| धीरे धीरे सुरत उस बिंदु को देखते हुए उसमे रत होती है ,और आगे को बढ़ती है| घाट पार पहली मंजिल की क्यारियों को देखती है स्वर्ग क्या है ,बैकुंठ क्या ,शिवपुरी क्या ,अदभुत नज़ारे गुरु कृपा से देखती है और पकती हुयी उस त्रिलोक की खिलकत को देखती है| उसे अपने पुरे सतगुरु का बोध होता जाता है ,की "मै किसकी कृपा से यहाँ आई ये नाम प्रताप बल किसका है |पुरे गुरु क्या अलौकिक चीज हैं इनमे कितनी पावर है” धीरे धीरे साधक प्रेमी समझ समझ कर सतगुरु को धन्यवाद देते हुए चरणो में शीश झुका कर वन्दना करता रहता है |
"हे स्वामी नामी मेरे दाता दया कर मेरा खता खोला ,वरना मै इस भौजाल में भटकते आ रही हूँ |
अभी कब तक भटकते इसका क्या ज्ञान | हे परम सतगुरु आप ने दया कर इस पापी जीव को उबार लिया है |आप की मेहर से सब आंतरिक नजारे देख रहे हैं |सो हे सतगुरु स्वामी तुम धन्य हो अपार अनामी |
**सतगुरु जयगुरुदेव***
*******************
अंतर्घट प्रार्थना
*******************
सतगुरु मन मंदिर में तेरे दीप जलाऊंगा | ये नाम भजन माला तेरी हर क्षण फिरायुंगा ||
बस दया मेहर तेरी तत क्षण रहे स्वामी |
कुछ नाम भजन गाऊं बन हिरदय हे स्वामी ||
इस बुझती दुनियां में उँजियारा करना है |
नर मानव जाती को अब फिर से जगाना है ||
जल जाये ज्योति तेरी, मिला नाम खजाना है |
सत सुन्दर हे स्वामी सौभाग्य बनाना है ||
***********सतगुरु जयगुरुदेव ********
गुरु मालिक का सेवादार
जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07042343282, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07052705166

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 19 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव :

अखंड रूप से विराजमान स्वामी जी महाराज का अंतर्घट सन्देश :
गुरु महाराज ने गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ग्राम बड़ेला ,पोस्ट - तालगांव, तहसील - रुदौली, जिला - फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश को लिखवाया:
********अंतरघट प्रार्थना********
सतगुरु तेरे नाम कि मोति |सुमिरत अन्तर दिब्य हो ज्योति|
तेरे नाम कि महिमा भारी |सुख पावे सब नर नारी |
हे दीन बंधू गुरु सागर |हो दया निधेय सब आगर |
हे सरस भाव सुखरासी |हे दिब्य ज्योति अविनासी |
करुणा कर मेरे स्वामी |दो ज्ञान दान गुरु नामी ||
मै मिलूं अचल अंजल |जहाँ वार पार नहीं नामी |
उसी में मै मिल जाऊं अनामी |यही मांगन मांगू स्वामी ||
मालिक ने दया मेहर करके गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता को फिर अंतर की रामायण लिखवाया
********अंतरघट रामायण ********
ज्ञान प्रकाश सब जानै जासु |बड़े भाग्य उर आवै आसु |
मिले दया सतगुरु मणि खानिक |मूल चाँद जाने मणि मानिक|
प्रभु वेग सतगुरु सतनामा|ध्यान वेग का मूल मुकामा ||
नयन ध्यान धर ब्याधेव तिल को|बाण साधै सुध को |
नाम निशाना नाम धाम की |सतगुरु कृपा मिले नाम की |
नाम नयन फोरे एक तारा |देखे पारब्रम्भ का द्वारा||
राग रागनी किरकत ऐसे| नभ में बिजली चमकत जैसे ||
उजियारा अदभुत जहाँ सोभा |वर्णन कौन विधि कर छोभा ||
समिट तीर तर नभचर माहि |सतगुरु दया कृपा कर छाहीं|
मिलै अलौकिक दिब्य राम कृपा की खानी |
कर्म बंधना काट गए ,गुरु निहोरे जानी ||
बंदौ सतगुरु पद अनुकर्मा,मिटे काल जाल अनुकर्मा ||
सतसत मिलान सात एक वारा |जिसका कोई न वारा पारा||
विमल विभूति अंतर जनमे,नाम भजन कर अंतर मनमे ||
कुशल छेम सबकी सब कहना ,सतगुरु मिलन वारि जहाँ रहना ||
मिर्ग सुगंध नभचर माहि ,वैसे सतगुरु कृपा की छाँही||
नयन नाम नर निरखै तारा |जिसका कोई न वारा पारा |
विमल रज रंजन को मिटावहिं ,सतगुरु सुख की छाँव दिलावहिं ||
नाम नयन मन अंचल ज्योति |पारब्रम्भ सूखत जहाँ कर्म सोती ||
नाम आधार पार कर ज्ञाना |नाम सतगुरु ज्ञान को जाना ||
**************************
मिलन सतगुरु नाम से जावोगे उस पार |
सतगुरु नाम आधार है ,हो जावो उस पार ||
**************************
****सतगुरु जयगुरुदेव ***
गुरु मालिक का सेवादार
जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम- बड़ेला, पोस्ट - तालगाँव, तहसील - रुदौली,
जिला - फैज़ाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
संपर्क नो :09651303867
संपर्क सूत्र : 09711862774, 07042343282, 08004021975, 09990313635, 08800228964, 07052705166

Gurubhai Anil Kumar Gupta

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 17 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश - 2 :

दिनांक : 17 अक्टूबर 2014

Guru Purnima

सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज का नवीनतम अन्तर्घट सन्देश :

दिनांक : 19 अगस्त 2014

Guru Purnima

दिनांक : 15 अक्टूबर 2014

परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा सुनाये गए सत्संग वचन

सतगुरु जयगुरुदेव : आगे आने वाले बढ़ जायेंगे और तुम बहुत पीछे रह जाओगे :

सतगुरु जयगुरुदेव : परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने जनवरी १९७० में सत्संग सुनाते हुए कहा कि:
गुरु महाराज से प्रार्थना करता हूँ : हम आप को हमेशा सावधान करते रहेंगे | आप को सुमिरन ध्यान में लगाते रहेंगे | हम गुरु महाराज से प्रार्थना करते हैं की इनकी आत्मा का कल्याण हो जाये | तुम्हारे में प्रेम भाव बढ़ता जाये | दुर्भाव न आने पावे | जब तुम शुद्ध और प्रेम मय न रहोगे तो आने वाले आगे के समय से लाभ न उठा सकोगे | अगर तुम अच्छे विचार वाले न रहोगे और रगड़े झगडे में पड़े रहोगे तो आगे आने वाले बढ़ जायेंगे और तुम बहुत पीछे रह जाओगे | नए से भी बहुत पीछे रह जाओगे ||
सबसे आगे रहो : भविष्य ऐसा आ रहा है की अपने को सदा तैयार और हर काम में आगे रहो | आगे आने वाले समय में यह कहने के अधिकारी रहो कि हम सब कदम से आगे थे | साधन में , भजन में , सेवा में | तो हम तो वह आदमीं हैं कि आप का नाम रोशन कर देंगे | आप पढ़े हों या न पढ़े हों ये ऐसी विद्या है कि सबसे सर्बोपरी | सबसे श्रेष्ठ ||
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ,सत्संग , जनवरी १९७०

सतगुरु जयगुरुदेव : जहा कोई कही बताये तो वहां जाना चाहिए:

परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज ने ९ दिसंबर २००५ को सत्संग सुनाते हुए बताया की पहाड़ो जैसी चट्टानें बुरेकर्मो की जमा हो गई तो ये सफाई हो जाएगी तो एकदम से शीशा है उसमे कुछ भी देखो ऊपर का भी और निचे का भी निचे का भी सब दिखाई देता है और ऊपर का भी ये आप को महापुरषों से मिलेगा दूसरा और कोई स्थान नहीं है तुम भटकते रहो भटकते रहो उसी भटक में संसार से सरीर को छोड़ कर चले जाओ ये किसी की भी जुम्मेदारी नहीं ये तुम्हारी स्वयं की जुम्मेदारी है | की तुमको रास्ता खोजना चाहिए और जब पता चल जाये की महात्माओ के बगैर रास्ता नहीं मिलेगा जो जगे हुए हैं जिन्होंने प्रभु को पाया तो आप उनकी खोज करे | पता लगाये जहा कोई कही बताये तो वहां जाना चाहिए और वहां बैठकर थोड़ा सा सुन्ना चाहिए उसी से तुमको एकदम से जानकारी हो जाएगी | वहां रुक जाओ ठहर जाओ जो ओ देते हैं उसको ले लो और ओ चीज मिल जाती है तो ओ चीज अमोलक है | परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज, सत्संग , ९ दिसंबर २००५

 

साधक का आंतरिक अनुभव

गुरु बहन - एकता श्रीवास्तवा, मुम्बई, महाराष्ट्र का अनुभव: दिनांक 8-6-2014

सतगुरु जयगुरुदेव
दिनांक ८ -६-२०१४ को जब मई ध्यान में बैठी तो मैंने देखा मालिक एक जगह बैठे थे उनके बगल में गणेश जी भी बैठे थे और मालिक के पैर के पास अनिल भैया को भी बैठे देखा .फिर गणेश जी गायब हो गए और वहाँ दादा गुरु जी आ गए फिर उनके (दादा गुरु) हाथ से एक रौशनी निकल रही थी फिर मैं उस रौशनी में जाने लगी तो देखा की बहुत सारे फूल है फिर वहाँ की धरती फटने लगी मैं डर गयी की कही गिर न जाऊँ.फिर देखा की उस जगह से स्वामी जी की तरह कोई मुह पीछे करके खड़े है आध्यात्मिक स्वरुप में .फिर सामने की तरफ हो गए तो मैंने देखा की वो मालिक ही थे.फिर उनके ऊपर मालिक के नए स्वरुप को देखा.मैंने पुछा मालिक ये कौन सा धाम है तो वो बोले ये कोई धाम नहीं है इसका संकेत है की मैं जल्दी ही आने वाला हूँ.फिर मैंने पुछा की क्या मालिक आप हमेशा मेरा साथ रहेंगे तो वो बोले हा मैं मरते दम तक साथ रहूँगा. मालिक की दया पाकर मैं धन्य हो गयी.
अखंड भारत संगत गुरु की से गुरु बहन
एकता श्रीवास्तव
मुंबई(महाराष्ट्र)

मुज्जफर नगर के सत्संगियों का अनुभव , दिनाक : २९ फ़रवरी 2014 :

सतगुरु जयगुरुदेव :
परम संत सतगुरु जयगुरुदेव जी महाराज के अंतर आदेशानुसार जयगुरुदेव मंदिर , ग्राम - बड़े ला से प्रदान किये गए अनुभव कलश को प्रणाम कर मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश के सत्संगिओ ने आंतरिक अनुभव किया :दिनाक २९ फ़रवरी 2014

१) गुरु बहन - बिमला, मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : जब मैंने अनुभव कलश को प्रणाम किया और मालिक से दया की भीख मांग कर सुमिरन ध्यान और भजन किया तो हमें बाबा जी के दर्शन हुए और ज्योति दिखी और भजन में आवाज सुनाई दी |
२) गुरु बहन - कलासी, : सतगुरु जयगुरुदेव - जब मैं ध्यान, भजन पर बैठी तो सफ़ेद ज्योति दिखाई दी |
३) गुरु बहन - ज्ञान देवी , मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : मैं जब अनुभव कलश को छूकर के ध्यान मैं बैठी तो गुरु महाराज के दर्शन हुए और भजन में आवाज सुनाई दी |
४) गुरु बहन - बबिता, मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : मुझको ध्यान में तारा दिखाई दिया और भजन मैं बंशी की आवाज सुनाई दी | और मालिक के दर्शन हुए ||
५) गुरु बहन - सबिता , मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : सतगुरु जयगुरुदेव , जब मैं सुमिरन ध्यान और भजन किया तो हमें मालिक ने दर्शन दिए नीली कुर्शी पर बैठे हुए और मालिक ने सतयुगी ध्वज दिखाया ||
६) गुरु बहन - प्रभा , मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : जयगुरुदेव , हमका ध्यान मा तारा दिखाई दिया और मालिक के दर्शन हुए ||
७) गुरु भाई - कौशल , मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : मैं जब कलश को छूकर मालिक से प्रार्थना किया तो ध्यान मैं बैगनी रंग , फिर काला फिर सफ़ेद प्रकाश दिखाई दिया और भजन मैं बंशी की आवाज आई ||
८) गुरु भाई - सरोज , मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश : मैंने अपनी गलती की क्षमा मांगी फिर सुमिरन करते समय घंटे की आवाज सुनी फिर शंख की फिर बंशी की आवाज आई ||
अखंड भारत संगत गुरु की से गुरु भाई
अनुभव कलश सेवादार - सेवादार गुरु भाई- सुरेन्द्र सिंह चौहान
मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश